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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
विंशतिः = वीसा त्रिंशत् = तीसा संस्कृतम् = सक संस्कारः = सकारो
संस्तुतम् = सत्तुअं (१४) मांसादिगण के शब्दों में अनुस्वार का लुक विकल्प से होता है। जैसे--- (क) प्रथम स्वर के आगे अनुस्वार का लोप
मासं, मंसं ( मांसम् ) मासलं, मंसलं ( मांसपम् ) कि, किं (किम् ) कासं, कंसं ( कांसम् ) सीहो, सिंघो ( सिंहः )
पासू, पंसू ( पांसुः-शुः ) (ख) द्वितीय स्वर के आगे अनुस्वार का लोप
कह, कहं ( कथम् ) एव, एवं ( एवम् )
नूण, नूणं ( नूनम् ) (ग) तृतीय स्वर के आगे अनुस्वार का लोप
इआणि, इआणि ( इदानीम् ) संमुह, संमुहं ( सम्मुखम् ) किंसुअ, किंसुअं ( किंशुकम् )
अव्यय सन्धि अव्यय पदों में सन्धिकार्य करने को अव्यय सन्धि कहा गया है। यद्यपि यह सन्धि भी स्वर सन्धि के अन्तर्गत ही है, तो भी विस्तार से विचार करने के लिए इस सन्धि का पृथक् उल्लेख किया गया है। यहां अव्यय सन्धि के नियमों का विवेचन किया जाता है।
(१) पद से परे आये हुए अपि अव्यय के अ का लोप विकल्प से होता है । लोप होने के बाद अपि का प यदि स्वर से परे हो तो उसका व हो जाता है। यथा
केण + अपि = केणवि, केणावि ( केनापि )
कह + अपि = कहंपि, कहमवि ( कथमपि) १. मांसादेर्वा ८।१।२६. मांसादीनामनुस्वारस्य लुग वा भवति । हे० । २. पदादपेर्वा ॥१॥४१. पदात् परस्य अपेरव्ययस्यादेलुग वा भवति । हे० ।