________________
अभिनव प्राकृत-व्याकरण
वयसो ( वयस्यः ) = वयंसो
पडिसुदं ( प्रतिश्रुतम् ) - पडिंसुदं। तृतीय स्वर के ऊपर अनुस्वारागम
अणिउतयं ( अतिमुक्तकम् ) = अणिरंतयं, अइमुंतयं, अइमुत्तयं उवरि ( उपरि ) = उवरिं
अहिमुको ( अभिमुक्तः ) = अहिमको (९) जिन शब्दों के अन्त्य व्यंजन का लोप होता है उनके अन्त्य स्वर के ऊपर अनुस्वार का आगम होता है। जैसे-पृथक् = पिहं-इस उदाहरण में अन्त्य व्यंजन क् का लोप हुआ है और में संयुक्त कार के स्थान पर इकारादेश हुआ है, तथा 'थ' के स्थान पर 'ह' हो जाने से 'पिह' बना है। पश्चात् उपर्युक्त नियमानुसार अनुस्वार का आगम हो गया है। - (१०) जहाँ स्वरादि पदों की द्विरुक्ति हुई हो, वहां दो पदों के बीच में 'म्' विकल्प से आ जाता है । यथा
एक + एक = एकमेकं, एकेक ( एकैकम् ) एक + एक्केण = एकमेकेण, एकेकेण ( एकैकेन )
अंग + अंगम्मि = अंगमंगम्मि, अंगअंगम्मि ( अङ्ग, अङ्ग ) (११) उण एवं स्यादि के ण और सु के आगे विकल्प से अनुस्वार का आगम होता है । यथा
काउण ( कृत्वा ) = काउणं, काउण काउआण = काउआणं, काउआण कालेण ( कालेन ) = कालेणं, कालेण वच्छेण ( वृक्षण) = वच्छेणं, वच्छेण वच्छेसु ( वृक्षेसु ) = वच्छेसु, वच्छेसु
तेण = ( तेन ) तेणं, तेण (१२) प्राकृत में अनुस्वारागम जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही अनुस्वार लोप भी। अतः व्यंजन सन्धि कार्य के अन्तर्गत अनुस्वार लोप का प्रकरण भी आया है। यहाँ कुछ नियमों का निरूपण किया जायगा।
(१३) संस्कृत के विंशति, त्रिंशत् , संस्कृत, संस्कार और संस्तुत शब्दों के अनुस्वार का लोप होता है।
१. क्त्वा-स्यादेणं-स्वोर्वा ८।१।२७. क्त्वायाः स्यादीनां च यो णसू तयोरनुस्वारोन्तो वा
भवति । है। २. विंशत्यादेलु ८।१।२८. विंशत्यादीनाम् अनुस्वारस्य लुग् भवति । हे० ।