Book Title: Pooja Sangraha Part 3 Author(s): Buddhisagar Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal Catalog link: https://jainqq.org/explore/008634/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रीमद् बुध्धिसागर सूरिजी ग्रंथमाळा ग्रंथांक-६६ पूजा संग्रह भाग १-२ रचयिता शास्त्रविशारद जैनाचार्य योगनिष्ठ श्रीमद् बुद्धिसागर सूरिश्वर. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शेठ अमथालाल वेलाभाई महेसाणा अने शेठ मनसुखलाल लल्लुभाई पेथापुर एमनी द्रव्य सहायथी. छपावी प्रसिद्ध करनार श्री अध्यात्म ज्ञानप्रसारक मंडळ. हा. वकील मोहनलाल हीमचंद - पादरा. आवृत्ति पहेली प्रति १०००.. सं. १९८० सन १९२४ महावीर सं. २४५० कींमत रु. २-०-0 For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ ग्रंथ मळवानुं ठेकाणुःवकील मोहनलाल हीमचंद. पादरा. (गुजरात. ) श्री " प्रजाहीतार्थ मुद्रालय " प्रेसमां पटेल डाह्याभाई दलपतरामे छाप्युं ठे० शाहपुर नवी पोळ - अमदावाद For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भजनसंग्रह भाग ९ छपाइ बहार पडयो छे. मूरीश्वरजीनी. आभ्यंतरभावनाना प्रतिबिंबरूपरसथी छलाछलसुंदर पद्योथी भरपूर आ पुस्तक खरेखर गुजरातना काव्य भंडोळमां अगत्यनो उमेरो करे छे, ते जाणीने खरेखर दरेक गुजरातीने आनंदज थशे. आ संग्रहमां वैराग्य, अध्यात्म ज्ञानचारित्र तथा नीतिना तरंगो छलकाता होवाथी जगत्मां तेनो प्रचार एकदम थवानी जरुर छे. वळी तेओए जैनजगत्ने हालनी मंदावस्थामांथी जागृत करवा सार अने लोकोने कर्तव्यपरायण करवासारु जुदा जुदा पात्रोद्वारा अनेक विषयो चर्ची जैनजगत्ने तद्दन नवी ढबे कर्तव्यदिशानो मार्ग जणाव्यो छे. जेथी जैन जगत् खरेखर प्रगतिशील बनी जशे. अने जैनजगत् खरेखर वखतसरनी कार्यप्रणालिकारूप मार्गमां विचरशे. हालनी स्वराज्य अने स्वदेशनी अग्ध्यात्मिक भावनाने पण आ ग्रंथमां योग्य स्थान मळ्यु छे, एटलुंज नहि पण बाह्य स्वराज्य अने बाह्यस्वदेशनी साथे आभ्यंतर स्वराज्य अने आभ्यंतर स्वदेश के सर्वविश्वजनोनुं परमादर्शध्येय छे, अनेक गूढतत्त्वोथी भरपूर तथा ज्ञाति अने धर्मना भेदभावरहित दरेकने समान उपयोगी आ पुस्तक छे. एक वार वांच्याथी हाथमाथी मूकवानुं मन थशे नहीं. सुंदर पाकुं बाइन्डींग पृष्ठ ५८० किंमत रू. १-८-० पोस्टेज अलग. मा.श्री केटालमागसुरि ज्ञानमदिर श्री महावीर जैन आराधना कंगन बेचा जि गांधीनगर For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मज्ञानथी भरपूर. भजनसंग्रह भाग १० जेओए सूरीश्वरजीना पहेलाना भजनसंग्रहना भागो वांच्या हशे तेओ तो आ ग्रंथने तरतज संग्रही लेशे. सूरीश्वरना काव्यरसनी धारानुं पान करवानी आ तक गुमावशो नहि. अनेक अध्यात्मज्ञान तथा वैराग्यनी खुमारी प्रगटावनारा तथा मस्त फकीरी दशाना अनुभव करावनारा जूदा जूदा स्वरूपना भजनोनो आ खजानो खरेखर ते तेना रूपनो एक अनोखोज वाचकोने मालुम पडशे. आ मंडळ तरफथी प्रगट थता दरेक ग्रथो एटलाबधा सस्ता होय छे के आq अमूल्य वांचन आटली सस्ती कीमते मळतुं गुमावq ए खरेखर एक अमूल्य तक गुमाववा जेवू थशे. दरेकने सर उपयोगी सुंदर पाकुं बाइन्डींग पृष्ठ २०० किंमत रु.१-०-० पोस्टेज अलग. पत्र सदुपदेश भाग २ गुरुवर्ये पोताना परिचयी तथा भक्तजनो उपर प्रसंगानुसार शुद्धहृदय पूर्वक लखेला पत्रोनो आ बीजो भाग मनोरंजक दळदार संग्रह दरेक मनुष्यने पोतानी जींदगीमा मुक्तिनी प्राप्ति माटे खरेखर "एक मार्गदर्शक भोमीओ थइ पडशे. अधिकारी परत्वे लखायेला तेमना सुंदर विचारो अनुभवना खजानारूप खरेखर छे. एक नकल खरीदी अनुभव करो. सुंदर पाकुं बाइन्डींग सर्वमनुष्यने सरखा उपयोगी अध्यात्मतत्त्वज्ञानमय वाचनथी भरपूर. पृष्ठ ५७५ र रु.१-८-० पोस्टेज अलग. For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निवेदन. श्री अध्यात्मज्ञानप्रसारकमंडळतरफथी श्रीमद् बुद्धिसागरमूरि मन्थमाळाना ६६मा मणकातरीके पूजासंग्रहग्रंथ के जेना रचयिता शास्त्रविशारदजैनाचार्य अध्यात्मज्ञानमस्तयोगी बालब्रह्मचारी महा कविराजश्री बुद्धिसागरजी मूरिजी छे. ते संवत १९८० नी सालमां बहार पाडवामां आवे छे. जेनी किंमत रु. २-०-० राखवामां आवी छे. आचार्य महाराजश्रीनी रचेली पूजाओ द्रव्यभावरसथी अलंकृत छे. पूर्वे अनेकमहापुरुषोए भक्तिप्रधानपूजाओ रची छे, जेनो अत्यारसुधीनो जे संग्रह छे, तेमां आ रचनानो उमेरो थतो जोइ आनंद थाय छे, एटलुंज नहि पण आ पूजासंग्रहग्रन्थ खरेखर प्रशंसाने पात्र छे. द्वितीयभागनी पूजाओ प्रथमभागनी पेठे अध्यात्मज्ञानरसथी भक्तोने भक्तिनी धूनमां दृढ करनारी अनेक विविधरसथी दीपकनी पेठे झळहळी रहेल छे. आ पूनाओ रचवानो प्रसंग, गुरुश्री सं १९७९ ना माहसुदि ५ नी प्रतिष्ठा कराववा साणंद पधार्या हता त्यारे बन्यो हतो. प्रतिष्ठा क्रिया करावी, वपोरे जैनमंदिरे पूजा भणाववा पधार, सवारमा उपदेश देवो, अने थोडीज विश्रांतिना समये पूजाओ रचवी, ए केटलं बधु मुशकेल कार्य छे ? ते वांचको स्वयमेव विचारी जोशे. आनी अंदरनी पूजाओ क्यां कया गाममां रचवामां आवी छे ते पूजाना अंतना कळशपरथी सहेजे समजी शकाय तेम छे. मुख्यताए आ पूजाओ साणंद, गोधाची, पेयापुर, प्रांतीज, एम चार गामोमां रचवानो प्रयत्न गुरुश्रीए सेव्यो छे. समाजमां एवी पण व्यक्तिओ हजु हयात छे के जे छतागुणोने पण अवगुणरूपे दर्शावनारा होय छे, एटलुंज नहि पण बीजानी प्रशंसनीय प्रवृत्तिओने गमे ते रीते उतारी पाडवा कटिबद्ध थै प्रयत्न करे छे. आवी व्यक्तिओपर करुणा For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ 66 भाव अने दया आवे छे अने तेवा निन्दकोमाटे गुरुश्रीए भजन पद भाग ६ मां कहां छे के “ हमारुं पाप धुवो छो, बनी धोबी वगर पैसे, तमारा कर्ममां एवं, दया आवे तमारापर आ वाक्यनो विचार करनारने गुरुश्रीना अंतर्भावनानी खात्री थशे, एटलुंज नहि पण तद्भावना प्रमाणे दरेक मनुष्यो गुण ग्रहण करवा प्रयत्नवान बनशे एम इच्छीए छीए. गुरुश्रीनी प्रवृत्ति, रोमराये ज्यां त्यां महावीर प्रभुना गुण गावानी सेवाएली होय तेम प्रतिभासे छे. पूजाना रसिकजनो रुचि अनुसारे स्वाधिकार प्रमाणे गुण ग्रहवा प्रयत्नवान् बनो, भक्तो, भक्तिनी धूनमां लयलीन वनशे अने गुणदृष्टि धारण करशे एम इच्छी पछीए. आ ग्रंथनी अंदर प्रथम भागनी पूजाओ तथा प्रस्तावना वगेरे दाखल करवामां आवेल छे. जे आवा उपयोगी ग्रंथ साथै सचवाइ रहे तेहेतुथीज आ ग्रंथ साथेज जोडवामां आवेल छे.. आ ग्रन्थ छपाववामां पेथापुरना निवासी सद्गत शेठ. मनसुखलाल ललुभाइए रु.१२०० ) सहाय तरीके पांचसो नकलो छपाववा माटे आप्या छे तेमज मेहसाणानिवासी शेठ डाह्याभाई घेलाभाइए पोताना सद्गत भाइ अमथालाल घहेलाभाइना स्मरणार्थे रु.१२०० ) नी सहाय पांचसो नकलो छपाववा माटे आपी छे. जे माटे बने भा इओनो अंतःकरण पूर्वक आभार मानी तेओने तथा तेओना कार्य कर्ता शेठ. डाह्याभाइ तथा श्राविका माणेक बेन वगेरेने धन्यवाद आपवामां आवे छे तेमज सद्गतबंधुओना अत्र जीवनवृत्तांतो तथा फोटोओ आपवामां आवेला छे. सहाय करती वखते तेओए आ ग्रंथमां गुरुश्रीनी छबी मूकवा माटे तेमने नम्र विनंति करेली अने तेपरथी गुरुश्रीने अमोए पण मान भरेली भक्तिनो स्वीकार करवानी नम्र विनंति करेल पण तेओश्रीए ते विनंति स्वीकारी नहोती पण अमोए भक्तिथी छवी मूकी छे. आ ग्रंथमां जीवन For Private And Personal Use Only "" Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संवत् १९८० आषाढ शुक्लपक्ष एकादशी. ७ वृत्तांत तथा घणी उपयोगी सूचनाओ आपवामां सहाय करनार मेहसाणानिवासी गुरुभक्त भाखरीआ. मोहनलाल नगीनदासे, तेमज पेथापुर निवासी मणिलाल हीराचंदे सहाय आपी छे, जे माटे तेओनो पण अंतःकरण पूर्वक आभार मानवामां आवे छे. आ मंडळ तरफी सस्ती किंमते पुस्तको वेचाय छे, ते जैनकोम सारी रीते जाणे छे. मंडळ तरफथी अनेक पुस्तको छपावी बहार पाडवानी इच्छा थाय छे पण धनवंतोनी सहाय विना बनी शके तेम नथी. मंडळ पासे उत्तम फंड नथी छतां ते सहायकारकोनी मदतथी उत्तम पुस्तको बहार पाड्या करे छे. जे जे गृहस्थो पुस्तक छपाववा धननी सहाय आपे छे तेमनां मुवारकनामोनी पुस्तकोमां यादी करवामां आवे छे. जेओ अन्य पुस्तको छपाववामां सहाय करशे, तेओनो पण उपकार मानवामां आवशे, अने पुस्तकोमां आपेला रुपिआनो यादी सहित तेओनां नामोने अक्षरदेहथी अमर करवामां आवशे. छेवटे आ प्रथम सहाय आपनार सर्वेनो उपकार मानवामां आवे छे, आ ग्रंथमां सहाय मळेली होवाथी पडतर करतां घणीज ओछी किंमत राखवामां आवी छे, अने जे कांइ वेचाणनी किंमत आवशे तेथी मंडळनां अन्य पुस्तको छपाववामां आवशे, एटलो खुलासो करी विरमीएछीए. ॐ श्रीगुरुः शांतिः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेखक सद्गुरु चरणोपासक आत्माराम खेमचंद कापडीया. साणंद. मोहनलाल हिमचंद वकील. पादरा, श्री अध्यात्मज्ञानप्रसारकमंडळ तरफथी For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir या हतो. जन्मी हात्सर्ग थयो हालतराम मानचंद पेथापुरना जैन शेठ. मनसुखभाइ खल्लुभाइर्नु जीवनवृत्तांत. गुजरात महीकांठा एजन्सीमां साबरमती नदीना तटपर आवेला पेथापुर गाममां संवत् १९३२ ना माह सुदि ५ ने सोमवारे तेमनो जन्म थयो हतो. जन्मथी साधारणस्थितिमा उछरेला हता. नानी वयमां तेमनी मातुश्रीनो देहोत्सर्ग थयो होवाथी तेओ पोतानी बेननी साथे स्वपिताना मोसाळमां संघवी दोलतराम मानचंदने त्यां मेहसाणामां केटलोक समय रह्या हता. तेमनुं बाल्यजीवन मेहसाणामां अने मुंबाइमां पसार थयुं हतुं, तेओए विद्याभ्यास मुंबाइमां कीयो हतो, तेमनामां इंग्रेजी ज्ञान साधारण हतुं. मेहसाणावाळादोलतराम गुजरी जवाथी दोलतराम मानचंदनी पेढीमां तेओ पोताना पिताश्री साथे जोडाया हता. मनसुखलालनु लग्न पेथापुरना रहीश, रतनचंद धुलाखीदासने त्यां तेमनी दीकरी मेनाबाइ साथे संवत् १९५४ नी सालमां थयु हतुं. लग्न पछी बे वर्षना टुंका समयमां तेओना पिताश्रीनो सं. १९५६ ना दुष्काळना समयमा देहोत्सर्ग थवाथी तेमने अत्यंत दुःख लाग्युं हतु. बावीसवर्षनी युवानवयमां माता पिताना सुखथी तेओ वंचित बन्या हता, जेथी गृहसंसारनो तथा पेढीनो वहीवट तेभोना शीरपर आवी पडयो हतो. केटलाक कारणोथी दोलतरामनी पेढीनो वहीवट बंध करी सं. १९५६ ना फागणवदि ३ त्रीजे तेमणे पोताना नामथी पेढीनो वहीवट शरु कर्यो हतो, शरुआतमा तेमने घणाज टुंका नाणांथी वेपार शरु को हतो. पोतानी जात महेनतयी थोडा समयमां दुकाननी प्रतिष्टा सारी रीते वधारी शक्या हता. तेओनी पेढी कोटमां पारसी बजारमा आवेली छे. तेओ चाहना कुशळ वेपारी हता. सं. १९५८ नी सालमां प्लेगना महान् भयंकर व्याधिमां तेमनुं शरीर सपडायुं हतुं, पण देवगुरु अने धर्मना For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 80008 % + 000 00004 © 8000 www.kobatirth.org 80000 80 જન્મ સંવત ૧૯૩૨ના મહા સુદ પ * મરહુમ G શેઠ મનસુખલાલ લલ્લુભાઈ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only 80008 પેથાપુર નીવાસી. સ્વર્ગવાસ સંવત ૧૯૭૮ના ફાગણ સુદ ૯ *** G 000+ 80008 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्यप्रतापथी पोताना कर्मसंयोगे मृत्युना भयथी बची गया हता. शरीर संपत्ति सुधर्या बाद तेमणे खंत अने उत्साहथी वेपार शरु कर्यो हतो. तेओ व्यापारमां घणो सारो लाभ मेळवी शक्या हता. तेओनी पेढीमां मुनसीनी सारी मदद हती. सं. १९७० नी सालमां तेमनी श्री अने पुत्र रतिलालनो देहोत्सर्ग थयो हतो. तेमना जीवनमां चार पांच पुत्रो थया हता पण बघा पुत्रोनुं मृत्यु थतां सुख नष्ट थयुं हतुं, जेथी तेमना हृदयने आघात थयो हतो. सं. १९७० ना वैशाख मासमां पेथापुरना रखचंद रामचंद गांधीने त्यां तेओ फरीने परण्या हता. तेमनी स्त्रीनुं नाम माणेक हतुं, रवचंद गांधीए धर्मार्थ सारो द्रव्यव्यय पेथापुरमा कर्यो हतो अने तेमणे सिद्धाचलजीनो संघ वि. सं. १९५५मां काढयो हतो. आ लग्न प्रसंगे मनसुखलालनी उमर ३६ वर्षनी हती. लग्न पछी पैसा संबंधी तेमज शरीर संपत्ति संबंधी सारा संयोगो हता. तेमनी बीजी स्त्रीने एकपुत्र तथा एकपुत्री हती पण तेनुं सुख थोडा समये नष्ट थयुं हतुं. सं. १९७५ ना मागशरसुदि ५ ना रोज एक पुत्रीनो जन्म माणेक बाइए आप्यो हतो जे अत्यारे पण हयात छे. पुत्र पुत्रीओ जीवतां न होवाथी आ पुत्रीनुं नाम सांकुबेहन राखवामां आव्युं हतुं. पोतानी इच्छा तो पुत्रनी हती पण पुत्रीनुं सुख मळयुं जेथी तेमने संतोष राखवो पड्यो हतो. सं. १९७६ नी सालमां तेमने क्षयरोग जेवो भयंकरजीवलेण रोग लागु पडघो हतो, घणा उपचारो तथा वैद्य डाकटरोनी दवा करी हती, तेमज पानसर, देवलाली वगेरे हवा लेवाना स्थळोमां महिनाओना महिनाओ गाळ्या हता, पण शरीर प्रकृति नहि सुधरवाथी मुंबाई पाछा आव्या हता. सं. १९७८ ना फागण सुदि ९ ना दिवसे तेमनो आत्मा आ स्थूळ देहरूपीपींजरमांथी पोतानी पाछळ एक विधवा स्त्री तथा पुत्रीने शोकसागरमां डूबाडी सदानेमाटे अहस्य थइ गयो. पोतानी पाछळ तेमणे पोणालाखनी सखावत करी छे. तेमां For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० केशरीयाजीनो संघ काढवानी, उजमणुं ( उद्यापन ) रचवानी, धर्मशाळा बंधाववानुं, ए त्रण मुख्य सखावतो छे. केशरीयाजीपर तेमने यात्रानी अडग श्रद्धा होवाथी नियमितपणे केशरियानी यात्रा करता हता. तेओ प्रतिवर्षे सगाव्हालाओने लइने श्री केशरीयाजीनी यात्रा करता हता. पोतानी वे वर्षनी मांदगीमां एक यात्रा करी हती. तेमणे धर्मकार्यों पोतानी जाते कर्या हतां. पेथापुरमा सागर विमळ. गच्छनी उपाश्रय जमीनबाबतनी तकरारो पडी त्यारे तेमणे समाधान कराववा अथाग परिश्रम सेव्यो हतो पण ते सफळ थयो नहोतो. मुंबाइमां कोटमां शान्तिनाथना देरासरना मेनेजर तरीके लगभग छ सातवर्षसुधी तेमणे काम कर्तुं हतुं अने तेओ तेमाटे प्रशंसा पात्र बन्या हता. स्वभावे मिलनसार अने बनतां सुधी कोइने खोटुं न लागे तेवुं कहेनारा हता. ते पेथापुरना केळवणी मंडळना लाइफ मेम्बर हता. अहिना जैनो वेपार तथा विद्यामां डीग्रीओ संपादन करी देशावरोमां वेपारमाटे प्रसिद्धताने पामेला छे, तेमज अहिंनी धार्मिक श्रावक टोळी प्रभुप्रतिष्टा, क्रिया, महोत्सवो कराववामाटे प्रसिद्धताने पामेली छे. पेथापुरमां ठाकोर श्री फतेहसिंहजी राज्य करे छे, तेओ सखावते उदार तथा दयालु, मेमी, परोपकारी छे, तेओ गुरु महाराजश्री आचार्यबुद्धिसागरसूरिना चूस्त भक्त श्रावक बन्या हता अने तेमनी सलाहथी तेमणे सखावतो करी छे. ते देवगुरु धर्मनी अचळ श्रद्धाधारक जैन हता. बाहोश वेपारी हता. पेथापुरमां आवा एक प्रतिष्टित खानदान गृहस्थना मरणथी पेथापुरने एक उत्तम रत्ननी खोट पडी छे. तेमना आत्माने शांति मळो. मुकाम - पेथापुर. लेखक शा. मणिलाल हीराचंद. For Private And Personal Use Only वि. सं. १९८० चैत्र पूर्णिमा. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શેઠ અમથાલાલ ઘેલાભાઈ કરમચંદ જન્મ સ. ૧૯૨૭.] શ્રી મહેસાણા. [સ્વર્ગવાસ સ. ૧૯૭૪. For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेहसाणावाळा शेठ. घेलानाइ करमचंद तथा शेठ. अमथालाल घेलानाइ तथा शेठ सुरचंद मोतीचंदनुं जीवनवृत्तांत. मओम शेठ. घेलाभाइ करमचंदनो जन्म संवत्. १८९३ ना आसो सुदि १० ना दिवसे मेहसाणामां थयो हतो, तेमना पिताश्रीजें नाम करमचंद नाथालाल हतुं. शरुआतमां साधारण स्थितिना हता. शेठ. घेलाभाइ संवत्. १९०७ नी सालमां गुरुमुनिमहाराजश्री रविसागरजींनी कृपा मेळवीने पोतानुं नशीब अजमाववा सारु मुंबाइ वेपारार्थे गयेला हता, त्यां तेओ टुंक वखतमा प्रमाणिकताथी खांड बजारमा सारा प्रतिष्ठित दलाल तरीके प्रख्याति पाम्या हता. तेओश्री जैनधर्मीओना परम पूज्यमहायोगी श्रीमद् रविसागरजी महाराजना उपदेशथी पूर्ण धर्मप्रेमी बन्या हता, अने ते महात्माश्रीनी वचनसिद्धिथी पोते सारी लक्ष्मी प्राप्त करी शक्या हता. तेमणे संवत्. १९३६ नी सालमां अगीआर छोडनुं उजमणुं कर्यु हतुंः ते वखते पूजा विगेरे भावनामां घणो सारो ठाठ आव्यो हतो. तेमज अठवाडीया सुधी नवकारशी (स्वामी वात्सल्य) करवामां आव्यु हतुं. त्यारबाद वि. सं. १९४० नी सालमा तेमणे पांच छोडनुं ऊजमणुं कर्यु हतुं अने तेमां पण जैनधर्मनो सारो उद्योत थयो हतो. सं. १९४६ नी सालमां शान्तमूर्ति श्रीमान् रविसागरजी महाराजश्रीना सदुपदेशथी भोयणीजी तथा संखेश्वरजीनो छहरीपाळतो संघ कहाडयो हतो. संघमां श्रीमद् रविसागारजी महाराज तथा भावसागरजी महाराज तथा श्रीमद् सुखसागरजी महाराज तथा साध्वीजी देवश्रीजी, धनश्रीजी, शिवश्रीजी तथा हरखश्रीजी वगेरे चतुर्विध संघ हतो. महुम शेठ घेलामाइए, श्रीमद् रविसागरजी महाराजनी साथे पगे चाली यात्रा करी हती. भोयणीजी तथा संखेश्वरजी For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ जतां रस्तामां गामोमां नवकारशी वगेरे करवामां आवती हती. तेथी शाशननी सारी उन्नति थइ हती. सं. १९४८ नी सालमां साध्वीजी महाराजनो उपाश्रय घणोज जीर्ण थवाथी, श्रीमद् रविसागरजी महाराजना उपदेशथी मर्हमे उपाश्रय नवीन बंधावानुं कार्य उपाडी लीधुं हतु; अने तेमां रु. १७०००) नी रकम खर्चाइ हती, जेमा मर्हमे रु. ८०००) आप्या इता. बाकीना रु. १००००) नी मदद मेहसाणाना संघे आपी हती. सं १९५२ सालमां परमपूज्य महायोगी श्रीमद् रविसागरजी महाराजजीए शेठ घेलामाइने जणाव्युं हतुं केसाध्वीजी महाराजनो उपाश्रय जेटलो शुशोभित थयो छे तेना करतां साधु महाराजनो उपाश्रय घणो सारो बंधाय एम थाय तो धर्मनी वृद्धि छे. कारण के मेहसाणा जेवू क्षेत्र मध्यमां छे अने साधु महा.. राजने उतरवानी घणी मुश्केली पडे छे. मर्तुमने उपदेशनी एटली बधी असर थइ के तेमणे तरतज महाराजश्री आगळ अभिग्रह कयों के जो बे वरसमां माराथी उपाश्रय ना बंधावी शकाय तो मारे वीगई त्याग. आवी सचोट लागणीथी श्रीमद् रविसागरजी महाराजश्रीनी कृपा दृष्टि थइ अने तेमनी कृपाथी मुंबाइ जइ रु २७०००) नी टीप, टुंक समयमां थतांनी साथे काम आरंभ्युं, काम पूर्ण थतां कुल्ले रु. ३५०००) थया ते मध्ये बाकीना रु. ७००० पोताना ऊमेरी काम पूर्ण कर्यु. हाल पण मेहसाणामां साधुमहाराज तथा साध्वी महाराजनो उपाश्रय वखाणवा लायक छे, अने मेहसाणामां पण एम कहेवाय छे के श्रीमद् रविसागरजी महाराज तथा घेलामाइ होय तोज आ उपाश्रय बंधाय. मर्हम शेठ घेलामाई जैनसुधाराखाताना पहेला नंबरना ट्रस्टी हता अने तेपनाथी देरासर वगेरेनो घणो सुधारो थयो हतो. श्रीमद् रविसागरजी महाराजना सदुपदेशी देवद्रव्य विगेरेमा आगळ घणा गोटाळा हता ते दूर थया हता. मर्दुमने मौनअगीयारसनुं For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३ व्रत हतुं तेथी तेओए अगीयारछोडनुं उजमणु करवा सं. १९५५ नी सालमा नक्की कर्यु, परंतु कुदरतनी बलिहारी छे के महुम सं. १९५५ ना फागण वदि ५ ना दिवसे मुंबाइमां अचानक वे दिवसनी प्लेगनी मांदगीथी अवसान पाम्या. तेमना मानमां मुंबाइमां खांड बजार तथा मेहसाणामां जैन तेमज जैनेतर कोममां पाखी पाळवामां आवी हती. तेमना अचानक अवसानथी मेहसाणामां जैनकोममां मोटी खोट पडी. महुम स्वभावे शांत, दयाळु तेमज जैनधर्मना पूर्ण श्रद्धाळु तथा गरीब जैनोप्रत्ये मायाळु तथा प्रसंगोपात्त जैन भाइओने गुप्त दाननी मदद करता हता. पोताना कुटुंबीजनोने तेमज जैनभाइभोने धंधे लगाडवा मुंबाई लइ गया हता. तेओ वर्षमां एक वखत सिद्धाचलनी यात्रार्थे जता हता. छेवट सुधी पण नित्यकर्म चूक्या नहि. बे वखत प्रतिक्रमण, सामायिक, प्रभुपूजा, गुरुवंदन, ज्ञानपंचमी व्रत तथा एकादशी व्रत पूर्ण करी शक्या हता. तेमनी पाछळ पोतानी धर्म पत्नी तथा वे सुपुत्रोने मुकी अक्षर देहथी नाम अमर करी चाल्या गया छे, तेमना आत्माने शांति मळो. तथास्तु. २ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महुम शेठ अमथालाल घेलाभाइनो जन्म सं. १९२७ ना मागशर सुदि १२ ना रोज थयो हतो. तेमनामां पण तेमना पिताश्रीनी माफक सदगुणो खील्या हता. तेमनामां जैनधर्माभिमाननो मुख्य गुण हतो. मेहसाणामां जैन उपाश्रय पासे हनुमाननी देरडी छे. हिंदु कोम ते देरडीपर मोटुं मकान करी उपाश्रय जेवा पवित्र स्थळने ढांकी देव प्रयत्न करती हती; अने धार्मिक क्रियामां खलेल करती हती. ते वखते महुम शेठ अमथालालने मुंबइमां खबर पडतां सर्वे वेपार धंधो छोडी योग्य वकीलनी सलाह लेइ मेहसाणे आवी न्याय मेळवावा आत्मभोग आप्यो हतो. तेमनी तेमज मेहसाणाना संघनी मददथी आपणा लाभमां न्याय मळ्यो हतो. सं. १९५७ ना For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ महा मासमां तेमना पूज्य पिताश्रीनी उमेद उजमणुं करवानी हती. सं. १९७० नी सालमां योगनिष्टशास्त्रविशारदजैनाचार्य श्रीमद् बुद्धिसागर मरीश्वरजीना सदुपदेशथी मेहसाणामां घगी धामधूमथी भोयरावाळा पद्मप्रभुना देरासरमा समोवसरणनी रचना करी हती, तेमां अहाइ महोत्सव, साधर्मिकवात्सल्य घणां कर्या हतां; तेओ ४७ वरसनी उमरे मांदगी भोगवी सं. १९७४ ना कारतकवादि १४ ना दिवसे कालधर्म पाम्या, मढेममां तेमना पिताश्रीना जेवाज घणाखरा गुणो खील्या हता. गरीबो प्रत्ये दयाळु तथा धर्मनी सखावतमांपण दातार हता. तेमना काळधर्म वखते तेमना लघुबंधु शेठ डाह्याभाइए रु. २००००) रकम पुण्यार्थे खर्चवा जणावी हती. तेमनी पाछळ तेमनी पूज्य मातुश्री तथा लघु बंधुए पालीताणामां सारा रुपीआ खा हता; अने शत्रुजयना डुंगरपर महेमनी तथा तेमना पिताश्रीना नामनी सदासोमजीना चोमुखमध्ये देरीमा छ प्रतिमाजीनी प्रतिष्ठा करावी हती. ते सिवाय मर्दुमना नामनां घणां कार्यो थयां हतां. मर्दुमनी मातुश्री बाइ चुनीवाइ पोताना सुपुत्र अमथालालना पुण्यार्थे सिद्धाचलमां क्षेत्रमा सारी रकम खर्चतां हतां, तेफ्ज यात्रा करतां हता, वृद्धावस्थामां सं. १९७५ ना मागशर वद २ ना दिवसे अवसान पाम्यां. तेमनो देहोत्सर्ग थयो ते अगाउ तेमना हृदयमां जैनधर्मशाळा बांधवानी उमेद हती ते उमेद, देह छोडतां तेमना सुपुत्र शेठ, डाह्याभाइने जणावी, ते उपरथी शेठ. डाह्याभाइए पूज्य मातुश्रीनुं वचन मान्य करी झघडीयातीर्थमां धर्मशाळा बंधावी अने तेमनुं नाम अक्षरदेहथी अमर कयु छे. हाल शेठ डाह्याभाइ घेलामाइ हयात छे, तेमणे गुरु महाराजश्री बुद्धिसागर सूरिजीना उपदेशथी मेसाणा श्री दादागुरु रविसारजी महाराजनी देरीमां रुपैया पांच हजार आप्या छे. अनेकधार्मिक खातांओमां तेओ हजारो रुपैयानी दरवर्षे मदत करे छे. शेठ डाह्या For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - १५ 'भाइ दयाळ, दातार, देवगुरु भक्तिकारक, मातपितानाभक्त, गंभीर दीर्घवाळा अने स्वभावे मिलनसार छे गुरु श्रीमद् बुद्धिसागरजीसूरि महाराजना परमभक्त छे. देरासर, उपाश्रय, पांजरापोळ वगेरेमां हजारो रुपैया खर्चे छे. शेठ. उत्तमचंद हरिचंद दयाल, दातार, सखी मर्द हता तेमना मित्र डाह्याभाई छे. महाजनमां तथा गाममां तथा मुंबाई खांड बजारमां शेठ डाह्याभाइनी लागवग प्रतिष्ठा सारी छे. तेओ तेमना पिताश्रीना पगले चालनारा जैन रत्न छे. तेमना हाथे धर्मनां शुभ कार्य थाओ. महुम शेठ सुरचंद मोतिचंदनो जन्म सं. १९०४ ना चैत्र सुदि १३ ना रोज थयो हतो. तेमना पिताश्रीनुं नाम मोतीचंद करमचंद हतु एटले तेओ शेठ घेलाभाइना भत्रीजा हता. तेमनामां पण तेमना काका श्रीनी माफक घणा गुणो खील्या हता. तेओ पण खांडना सारा प्रतिष्ठित दलाल हता. तेमनामां मुख्य गुण समता तथा जैन धर्मपर पूर्णश्रद्धा हती, तेमना जीवनमां कोइ पण दिवसे क्रोधी थया नथी. तेओए सं. १९५२ नी सालमां अगीआर छोडनुं जणुं कर्तुं हतुं, ते सिवाय अट्टाइमहोत्सव विगेरे धर्मनां कार्यों घणां कर्या हता. जैन देरासरना सुधारा खातामां पोते ट्रस्टी हता, अने छेवट सुधी पण तेमणे जैनधर्मनी सेवा बजावी छे. तेओ सं. १९७६ ना चैत्र सुद५ ना दिवसे जैनधर्म प्रत्ये पूर्णश्रद्धा सहित काळधर्म पाम्या हता. तेओना मानमां मेहसाणामां जैन तेमज जैनेतर कोममां पाखी पाळवामां आवी हती. तेमज मुंबाइमां खांड बजार बंध राखवामां आव्युं हतुं महुम श्रीमद् रविसागरजी महाराजना परमभक्त श्रावक हता, अने क्रियाकांडमां मेहसाणाना जैन कोममां सौ करतां आगळ हता. तेमनामां श्रावकना अनेक गुणो खील्या हता. ओए मरण समये पोताना हस्तक सर्वे मीलकतनुं बील कर्यु हतुं, For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अने रु. ८००००) नी सखावत करवा उदारता करी छे. तेमना धर्म पत्नी जमना बाइ श्राविका पण धर्मनां पूर्ण रागी छे अने तेमना हस्तक तेमनी यादी माटे सं. १९८० ना चैत्र वदि ११ ना रोजे पालीताणानो मेहसाणाथी संघ काही मर्हमनी सारी नामना यादी करी छे संघमां कुल्ले खर्च रु. २००००) ने आसरे थयो छे. हजु पण जमनाबाइ घणां सारां कार्यों करवा उमेद धरावे छे. एज तथास्तु. श्राविका जमनाबाइ धर्ममाटे सारी रकम खर्चशे एवी आशा छे. For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ ॥ पूजासंग्रह उपोद्घात ॥ अनादिथी परमेश्वर छे अने तेनी पूजा पण अनादिकाळथी छे. दरेक तीर्थकरनी अपेक्षाए आदि छे एम अपेक्षाए ज्ञानीओ जाणे छे. जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, फल वगेरे पूजानी साधन वस्तुओं छे. अंगपूजा, अग्रपूजामां साधनवस्तुओ छे ते उपकारे पूजा कहेवामां आवे छे. द्रव्य पूजामां जलादि साधन पूजानो समावेश थाय छे. भावना, श्रद्धा, प्रीति, प्रभुगुणोनी स्तवना, तथा व्रतादिगुणोवडे प्रभुनी स्तवना करवी, प्रभुनी प्रभुना गुणो गाइ श्रद्धा पूर्वक भक्ति करवी, प्रभुना द्रव्य अने भाव अतिशयोनी स्तुति करवी, इत्यादि मानसिक सेवाभक्तिशुभपरिणामनो अने स्तुति पूजामयशब्दोनो भावपूजामां समावेश थाय छे. द्रव्यपूजा अने भावपूजा ए वे भेद पण प्रभुनी सेवा भक्तिरूप के अने एवी सेवा भ तिमां मतिश्रुतज्ञान पण अंतर जाग्रत् होय छे, तेनी साथे चरिवनी भावनाओ पण उल्लसे के ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, जगत्मां अनादिकालथी सर्वदेशमां अनेकरूपे होय छे. साधनभक्तिनी अपेक्षाए भावभक्तिना पण अनेकभेद पडे छे. दरेक धर्ममां भक्तिने प्रभुनी प्राप्तिनुं साधन मानत्रामां आव्युं छे. केटलाक मतवा - oाओ प्रभु परमात्माने साकार मानीने तेमनी भक्ति करे छे. मुसमानो अल्ला खुदाने अनंतनूरनो दरियो मानीने प्रभुनी भक्ति करे छे. वेदांतीओमां केटलाकमतवादीओ - रामानुज, रामानंद, मध्य, निंबार्क, वल्लभाचार्य, स्वामीनारायण वगेरे परमेश्वरने साकार माने छे अने भक्तोना उद्धारमाटे परमेश्वर वारंवार जन्म अवतार ले छे एम माने छे. रामानुज वल्लभाचार्यमतवावादीओ परमेश्वर सदा साकाररूपी रहे छे एम माने छे. शंकराचार्यवाळा वस्तुतः परमात्माने For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निराकार माने छे अने विवर्तवादनी दृष्टिए परमेश्वरनां अमुक प्रतीको कल्पीने तेने साकार इश्वर तरीके माने छे. नैयायिको अने वैशेषिको परमेश्वरने निराकार माने छे. पतंजलिए पातंजलयोगदर्शनमां परमात्माने निराकार मान्यो छे. आर्यसमाजीओ, परमेश्वरने निराकार माने छे. स्त्रीस्तिओ परमेश्वरने साकार माने छे. बौद्धो परमेश्वरने साकार तथा निराकार माने छे. जैनो परमेश्वरने साकार तथा निराकार भाने छे. हिंदुओ, मुसलमानो, ख्रिस्तिओ, जैनो, बौद्धो, अनेक दृष्टिविंदुओनी अपेक्षाए परमेश्वरनी द्रव्यपूजा तथा भावपूजाने माने छे. द्रव्य ते भावनुं कारण छे. साधनथी साध्यनी प्राप्ति थाय छे. ज्यां सुधी केवलज्ञानी परमात्माओ अघातीकर्मना योगे शरीरमां रहेला होय छे त्यां सुधी ते साकारपरमेश्वरो छे अने सर्वकर्मथी रहित थे सिद्धबुद्ध परमात्मा थाय छे त्यारे ते निराकार परमेश्वर तरीके गणाय छे. साकारपरमेश्वरमां अरिहंत, जिन, आचार्य, उपाध्याय अने मुनि साध्वीनो समावेश थाय छे. अष्टकर्म रहित सर्व शुद्धात्माओनो निराकार परमेश्वरमा समावेश थाय छे. आत्माना असंख्यप्रदेशो अने तेमां रहेल अनंतज्ञान ज्योतिने अनंत नूर-तेज सागर कहेवामां आवे छे. श्रद्धाप्रीति ज्यां छे त्यां अवश्यप्रतिमा पूजा आदि स्वयमेव प्रगटे छे. प्रेम त्यां प्रतिमा पूजा छे. साकारना प्रेमथी साकारनी पूजा थाय छे, अने निराकारना प्रेमथी निराकारनी पूजा थाय छे. साकारनी पूजा सिद्ध थया बाद निराकारमभुनी पूजा थइ शके छे. बाल जीवो, साकारप्रभुओनी भक्ति करीने हृदयनी शुद्धि करी शके छे. हृदयनी शुद्धि थया पछी ज्ञान प्रगटे छे अने ते ज्ञानथी निराकारप्रभुनी ध्यानरूप पूजा थाय छे. साकारपूजा ए प्रथम मोक्षमार्गर्नु पगथियुं छे. साकारपूजा करनार साकार प्रभु अने तेना वियोगमांसाकार प्रभुनी प्रतिमानुं तथा गुरुनी प्रतिमार्नु पूजन करे छे, तेनी दृष्टिमां प्रतिमामां साकार प्रभुतुं स्वरूप रमो रहे छे. For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साकारप्रभुनी द्रव्य पजाना अधिकारी गृहस्थो छे अने प्रभुनी भाव पूजाना अधिकारी मुनियो छे. जेवा प्रभुमां शुद्ध ज्ञानादि गुणो छे तेवा पोताना आत्मामा सत्ताथी गुणो छे. प्रभुनी श्रद्धा प्रीतिथी पभुना गुणो प्राप्त करवामाटे प्रभुपूजानी आवश्यकता छे. प्रभुनी पूजा भक्ति करतां आत्मामा रहेला सद्गुणो प्रगटे छे अने आवरणो टळे छे. प्रभुना जे जे गुणोनुं बहु मान स्तवन करवामां आवे छे ते ते गुणो पोताना आत्मामां तिरोभावे-सत्ताए रहेला होय छे ते प्रगट थाय छे. प्रभुना गुणोनुं बहुमान पूजा ते वस्तुतः पोताना आत्मानी पूजा छे. कारण के तेथी पोताना आत्मानी शुद्धि थाय छे अने गुणो प्रगटे छे. ज्यारथी मनुष्यो छे त्यारथी गमे ते भाषामां अनेकरीते प्रभुनी स्तुतिद्वारा पूजा करवानो रीवाज प्रवां करे छे. श्री ऋषभदेव प्रभुथी ते श्रीमहावीर प्रभुनी पूनाओ ते ते कालमां ते ते देशमां प्रचलित भाषाद्वारा थती हती. प्रभुनी पूजामां मुख्यभाव प्रेम होय छे अने ते गमे ते भाषाद्वारा बहार आवे छे. प्रभुना गुणोनी श्रद्धा प्रीति भावनाने भक्तो गमेतेभाषाद्वारा वहार प्रगट करे छे. पूर्वे संस्कृत भाषा अने प्राकृत भाषाद्वारा जैनो प्रभुनी पूजानां गानो गाता हता. संस्कृत प्राकृतभाषादिद्वारा प्रभुनी पूजा अने वतादि गुणोद्वारा थती प्रभुण्जाद्वारा जैनो प्रभुनी भक्ति करता हता. सोळमा वा सत्तरमा सैकाथी गुजराती भाषामां प्रभुनी पूजाओ रचावा लागी, श्रीसकलचंद्र उपाध्याये श्रीसत्तरभेदी पूना रची ते पहेलांनी पूजाओ रचेली न जाणवामां आवे त्यां सुधी गुजराती भाषामा प्रथम पूजाना रचयिता श्रीसकलचंद्र उपाध्यायजी गणावाना. श्रीसकल. चंद्रजी उपाध्यायजी पश्चात् श्रीयशोविजयजी उपाध्याय, श्रीज्ञानविमलमूरि, श्री विजयलक्ष्मीसूरि, श्री पद्मविजयजी पंन्यास, श्रीरूप. For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयजी पंडित, श्री वीरविजयजी पंडित, आचार्यश्री विजयानंद सूरि, पच्यासश्री गंभीर विजयजी, श्रीमान्हसविनयनी, श्रीमान वल्लभविजयजी श्रीराजेन्द्रसूरि वगेरे आज सुधी पूजाओ रचनारा थया छे. खरतरगच्छ, अंचलगच्छ वगेरेमां गुजराती भाषामां पूजाओना रचनार अनेकसूरि पंडित मुनिवरो थया छे अने भविष्यमां घणा थशे. पूजाओ भणाववानो श्वेतांबर जैनोमां घणो रीवाज छे. सर्वपूजाओमां नवपदनी अने वीशस्थाकपदनी नवाणुपकारी, पूजाओ वधारे भणावाय छे. उपाध्यायजी श्री यशोविजयजी, श्रीमद देवचंद्रजी अने ज्ञानविमलजी सूरि, एत्रणनी नवपदनी स्तुतिनो संग्रह करीने कोइ मान्य मुनिए नवपदपूजानी योजना करी छे. खरतरगच्छ अने तपागच्छ, बन्नेमां ए नवपदनी पूजा भणावाय छे. श्री विजयलक्ष्मीसूरिकृतवीशस्थानकनी पूजानी जैनोमां घणी प्रसिद्धि छे. विद्वानो ते पूजाने भणावी विशेषहर्ष पामे छे. पूर्व पुरुष मुनिवरोर्नु अनुकरण करीने मारावडे प्रसंगोपात्त केटलीक पूजाओ रचाइ छे. ते आ पूजासंग्रहनुं पुस्तक वाचतांज वाचको जाणी शकशे. मारी बनावेली पूजाओ-वसो, विजापुर, साणंद, महुडी (मधुपुरी ) मेसाणा, ए पांच गाममां रचायेली छे. दरेकमां पूजा रच्यानो संवत् छे. विशेषमा गुरुपूजा अने प्रभुमहावीरदेवना यक्ष तरीके श्री घंटाकर्णमहावीरनी पूजाओ छे त्रीजा, चोथा अने पांचमा परमेष्ठीमां गुरुतत्त्वनो समावेश थाय छे. श्रीमद् रविसागरजी गुरु महाराज अने श्रीमद् सुखसागरजी गुरु महाराज, ए वे परम उपकारी गुरुओना गुणनी पूजा रचवामां आवी छे. गुरुनी पादुका तथा मूर्ति आगळ अगर अन्यत्र गुरुनी स्थापना करी गुरुपूजा भणाववी. नवपदनी पूजामां अरिहंत, सिद्धनी पेठे आचार्य, वाचक, तथा साधुनी पूजा छे. गुरुमां आचार्य, वाचक, मुनिनो समावेश For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २१ · थाय छे, खरतरगच्छमां श्री जिनदत्तसूरि तथा श्रीजिनकुशलसूरिनी पूजा भणाववामां आवे छे. पूजाओनी चोपडीओमां दादानी पूजा प्रसिद्ध छे. श्रीमद रविसागरजी दादागुरु महाप्रभावक, चारित्रपात्र चूडामणि थया छे, माटे तेपनी पूजा रचेली छे, गुरुभक्तो गुरुगुणरागीओ गुरुनी पूजा भक्ति करे तेथी तेओना आत्मानी शुद्धि थाय a. श्रीघंटाकर्ण महावीर एक जैनशासन देव छे. शान्तिस्नात्रमां अष्टोतरी स्नात्रमा अने प्रतिष्ठा विधिमा श्री घंटाकर्णवीरनी स्थाली-यंत्रवाळी मंत्रीने वेदिकाउपर स्थापवामां आवे छे, अने घंटाकर्णनी पूजामां सुखडी करायले ते श्रावकोने वेंचवामां आवे छे. श्री सकलचंद्रजी उपाध्यायजीए प्रतिष्ठाविधिनी संस्कारितयोजना करी छे. शांतिस्नात्र अने अष्टोत्तरीस्नात्रविधिनी योजना पण तेमना वखतमां तथा जगद्गुरुतपागच्छ गगनभानुसमानश्रीहीरविजयसूरिजीना वखतमां थएली छे अने ते आचार्योंए जैनशासन देवतातरी के श्री घंटाकर्ण महावीरनी प्रसिद्धि करी छे अने ते परंपरा आज सुधी तपागच्छमां चाली आवे छे. श्री महुडी ( मधुपुरी ) गाममां शासन यक्ष तरीके श्री पद्मप्रभु जिनेश्वरदेवनी जमणी बाजुए एक देरी करी श्री घंटाकर्ण महावीरनी मूर्तिनी अमोए प्रतिष्ठा करी ले. ते शासनयक्षनो चमत्कार प्रभावक सर्वत्र देशमां विस्तार पाम्यो ले. घंटाकर्ण कल्प वांचवाथी तेमनो प्रभाव समजाशे जेटला शासन देवो अने देवीओ छे ओ समकितधारी छे, तेओ साधर्मिक बंधुतरीके छे. गृहस्थ श्रावको जैनो तेमनी शासन पावक साधर्मिकतरीके सेवा भक्ति करे छे अने तेथी शासनयक्षदेवो, गृहस्थजैनोने धर्म साधतां संकट पडे छे ते काले सहाय करे छे. अमोए गृहस्थ जैनोने साधर्मिकदेव तरीके तेमनी पूजा भणाववानो तेमनी मूर्त्ति आगळ अधिकार छे एवं जाणी तेओ माटे पूजा रची छे के जेथी जैनो पोते, मिथ्यात्वी देवो अने देवीओनी सहाय छंडीने समकिती देवदेवीओनी सहाय पामी शके ३ • Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्मदिठ्ठी देवा दिंतु समाहिच बोहिं च (वंदितासूत्र) ए वाक्यथी श्रावकोए सम्यग्दृष्टि देवोने कह्यु छे के हे सम्यग्दृष्टि देवो ! अमने समाधि अने बोधि-समकित आपो. सम्यग्दृष्टि गृहस्थ जैनो सम्यग्दृष्टि देवदेवीना गुणोनुं स्तवन करी तेओनी द्रव्यपूजा करी शके छे. अष्टादशदोषरहित परमात्मा महावीरजिनेश्वरना सम्यग्दृष्टि देवो अने देवीओ ते सेवको छे अने ते जैनशासननी प्रभावनामां मदत करे छे. तेमने साधर्मिक समकितदृष्टि देव तरीके मानवा पूजवामां दोष नथी. चक्रेश्वरी, पद्मावती, माणिभद्र वगेरेनी देरासरोमां श्रावको पूजा करे छे तेम घंटाकर्ण वीरनी मूर्ति आगळ तेनी स्तुति करी तेनुं पूजन करवू ए जैन शासननी सेवा करनार देवनी भक्ति छे. पूजा भणावनाराओए ज्ञानी मुनि वगेरेनी सेवा भक्ति करीने तेओनी पासेथी दरेक पूजाना अर्थ धारवा. दरेक पूजाना रागने धारवा. पूजाने सारीपेटे गातां शीखवू. पूजानां साहित्य तरीके जे जे वाजिंत्र योग्य लागे ते वगाडतां शीख, जे पूजा भणाववानी होय तेनो भावार्थ प्रथमथी समजी लेवो. एक सरखी रीते सर्व गानाराओए तालबद्ध गावं. मुखे खेसनो छेडो राखवो, पूजा एक सरस गानार उपाडे अने बीजा पाछळ ते पद्य गाय, वच्चे कोइ जातनी गरवड थवा न दे, वचे आडी अवळी वातो न करे, प्रभुना सन्मुख दृष्टि राखे, जे पूजामां जेवो भाव होय तेत्रो परिणाम धारण करे, प्रभु वीतरागना गुणोनुं बहु मान करे अने आनंदथी गायतो पूजा भक्तिनुं वातावरण एवं छवाइ जायके जेथी तद्धेतु अनुष्ठान अने अमृत अनुष्ठाननो आनंद रस प्रगटे, जिनमंदिरमा पूजा भणावती वखते सर्व श्रावकोए नियमसर बेसबुं, पूना भणाववामां विधिनो खप करवो अने आशातनाना दोषो टाळवा. वेठनी पेठे पूजा न For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ भणाववी. मोक्ष माटे पूजा भणाववी. सुज्ञ भक्त स्नात्रीयाओ करवा. पतासांनी लालचेज पूजामा सामेल थवं ते विषानुष्ठान छे, माटे पूजा भणाववामां, गावामां अने पूजा श्रवण करवामां खास लक्ष्य राखवं. गातां आवडे, सारुं गानारा गवैयाओ गाय, वाहिरनी सारी धामधूम देखाय, तेटला माटेज पूजामां जवं एवं न धारखं, परंतु सारी रीते गावं. पजाओ गातां तेना अर्थनो विचार करवो, आत्मामां प्रभु भक्तिनो हर्षोल्लास प्रगटावको अने प्रभुवीतरागना गुणने प्रगटावचा खास लक्ष्य राखी सर्व पूजानी साधन सामग्री सेववी अने साध्य लक्ष्यनो केन्द्रसमान उपयोग भूली न जवो. श्रीमद् देवचंदजी महाराजे कहुं छे के, . स्वामीगुण ओलखी स्वामीने जे भजे, दर्शन शुद्धता तेह पामे; ज्ञान चारित्र तप वीर्य उल्लासथी, कर्म जीपी वशे मुक्ति धामे, तार० ॥ प्रभु महावीर देवना गुणोने प्रथम जाणी अने पछी प्रभु महावीरादि देवनी जे पूजा सेवा करे छे ते आत्माना सम्यग् दर्शननी शुद्धता प्राप्त करे छे. सम्यग् दर्शननी शुद्धताना बळे ज्ञान चारित्र तप वीर्य गुणना उल्लासने प्रगटावीने ते आत्माना शुद्ध ज्ञान दर्शन चारित्र गुणने पामीने तथा अष्टकर्मनो क्षय करीने मुक्ति धाममां वसे छे. प्रथम ज्ञान प्राप्त करीने पश्चात् पूजा वगेरेनी क्रिया करवी. गाडरीयाप्रवाहनो त्याग करी प्रथम पूजाओनुं सारी रीते ज्ञान कर. विद्वान साधु गुरु अने दक्ष श्रावक पासेथी पूजाओना अर्थ धारवा. एवी रीते पूजाना गीतोद्वारा प्रभुनी पूजा करवायी श्रावको मोक्षपदने पामे छे, त्यागी मुनियो प्रभुनी आगळ भावनाथी पूजाओ For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाई शके छ पण द्रव्य पूजा करता नथी, कारण के तेओए द्रव्य पूजानो त्याग करेलो छे. पूजा भणावतां आत्मोल्लासथी अनेक कमेनी वर्गणाओनो क्षय थाय छे. में यथाशक्ति पूजाओ रचवामां प्रयास को छे. समकितदृष्टिवाळा जीवो श्री कृष्णनी पेठे तेमाथी गुण सार ग्रहण करशे अने मिथ्याष्टियो काकनी पेठे दोषो जोशे. गुणानुरागी जे भक्तो हशे तेओ अवश्य फल प्राप्त करशे. वसो गामना संघना आग्रहथी पहेली अष्ट प्रकारी पूजा रचवामां आवी हती अने त्यां प्रथम देरासरमां भणावी हती. वास्तुक पूजा विजापुरमां वकील. शा. रीखवदास अमुलख, दोशी. नथुभाइ मंछाचंद वगेरेना आग्रहथी रचवामां आवी हती अने प्रथम शेठ. रीखवदास अमुलेखना नवा घरमां भणावी हती. मोटी नवपदनी पूजा प्रथम महुडी गाममां श्रीपद्मप्रभुनी आगळ विजापुरनी अने साणंद श्रावकनी टोळीए सारी रीते भणावी हती पूजासंग्रहमां आपेली पूजाओ जोवार्थी मालुम पडशे के ते ज्ञानदर्शन चारित्ररूप मोक्ष मार्ग छे. व्यवहारनय अने निश्चयनय एम बे नयनी स्या द्वादशैलीथी अनेकांतनयसहित पजाओ रचेली छे, तेनो भाव उत्तम छे. गीतार्थमध्यस्थभावी गुणानुरागी मुनियो पासे तेनो भावार्थ धारवो. पूजाओमां रुचिभेदे कोइने कोइ रुचे छे अने कोइने कोइ रुचे छे. रुचिज्ञानभेदे जुदी जुदी पूजाओ सर्वने रुचे छे. पूजानो सार ग्रहण करवो पूजाओपैकी जेना जे अधिकारी हशे ते तेने ग्रहण करी भणावशे अने फल प्राप्त करशे. पूजासंग्रहने छपाववामां साणंद संघना श्रावकोए आगेवानीभों भाग लीधो छे. शेठ गोविंदजी उमेदनी पाछळ तेमना भाइ त्रिभोवनदास तथा चुनीलाले तथा भाइ दलमुखमाइए धर्मदान करेलं, तेओए तेमनी नाम स्मृतिमाटे पूजाओ For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वगेरे रचवानो आग्रह कयों, तेथी निमित्त पामीने बाकीनी केटलीक पूजाओ रचाइ छे. पूजासंग्रह छपाववामां जे जे श्रावकोए धननी सहाय करी छे तेओने धन्यवाद आपवामां आवे छे. पूजासंग्रह प्रथमावृत्तिमा जे कंइ स्खलन, भूल, दोष रहेल जणाशे तेने द्वितीयात्तिमा सुधारी लेवामां आवशे अने बनशे तो बीजी पण केटलीक नवीन पूजाओ रची दाखल करवामां आवशे. पूजासंग्रहनां प्रफ सुधारवामां मुनि कीर्तिसागरे मदत करी छे तेथी तेने धन्यवाद आपवामां आवे छे. जे कंइ वीतराग महावीर प्रभुनी आज्ञा विरुद्ध लखायुं होय तेनो मिच्छामि दुक्कडं देवामां आवे छे. पूजा भणावनारा अने श्रवण करनाराओना हृदयमा सेवाभक्ति पूजाना परिणामनी वृद्धि शुद्धि थाओ. इत्येवं ॐ अर्हमहावीरशान्तिः ३ मु. महेसाणा. ___ सं. १९७९ कार्तिकमुविज्ञानपंचमी. ले. बुद्धिसागरसूरि. For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजासंग्रहनी प्रस्तावना. शास्त्रविशारद - कविराज, जैनाचार्य श्रीमद् बुद्धिसागर सूरिकृत पूजासंग्रह खरेखर ज्ञान भक्तिरस अने चारित्र भावरसनो सागर के. श्रीमद्नी रचेली पूजाओमां भाव मुख्य छे. जे जे विषयनी पूजा रचेली छे तेनुं उत्तम हार्दिक स्वरूप चितयुं छे, एटलुंज नहि परंतु तेमां स्थळे स्थळे तेमना उद्गारो के जे ज्ञानभक्तिरसमय के ते देखाय छे. कर्तानुं ज्यां हृदय नीतरे छे ते काव्य छे. आनंद रसना उभरा अने अनुभव ज्ञानना उभराओ ज्यां त्यां पूजाओमां वांचतां अनुभवाय छे ते सहृदय साक्षर पूजानुभवीभक्तो स्वयमेव जाणी शकशे. गुरुमहाराजे रागो के जे पूजाओमां प्रचलित छे तेमां पूजाओ रची छे, केटलीक पूजाओने रागणीओमां पण रची छे. पंचधा योग पूजा, अष्टांग योग पूजा, दानशीयलतपभाव पूजा, पडावश्यक पूजा, महावीर जन्मजयंती पूजा वगेरे पूजाओ के पहेलां कोइए रची नहोती एवी पूजाओ रचीने तेमणे पूजारसिकोने नवीन पूजाओना आनंदरस आस्वादन प्रति आकर्ष्या छे. गुरुमहाराजनी रचेली पूजाओमां प्रासानुपास, झडझ मक साथै आध्यात्मिक ज्ञान भक्ति चारित्र रसनो प्रवाह वह्या करे छे. तेमनी रचेली पूजाओ घणे ठेकाणे भणाववानी इच्छावाळा श्रा वको ज्यां त्यां गामोगाम पूजासंग्रह बहार पडया पहेला अगाउथी मागणीओ कर्या करे छे. अष्टप्रकारी तथा वास्तुक पूजा आजसुभी घणा गामोमां शहेरोमां भणाववामां आवी छे. तेमनी रचेली नवपदनी मोटी पूजा पहेलवहेली विजापुर पासेना महुडी गाममां विजापुर तथा साणंदनी श्रावक टोळीए भणावी हती. गुरुश्रीए सत्तरभेदी पुजा एक दिवसमां पांच कलाकमां रची पूरी करी हती. पंचपरमेष्टी पूजा, पडावश्यक पूजा, अष्टांगयोग पूजा तथा पंचधायोग पूजा वगेरे पू + For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाओ एकेक दिवसमां चार चार पांच पांच कलाकमां रची पूरी करी हती. गुरुमहाराज ज्यारे पूजा रचवा बेसे छे त्यारे गद्यना ल. खाणनी पेठे सपाटाबंध पूजाओ रची दे छे. शीघ्रकवि तरीके तेओ जाहेर छे. तेओए भजन पद्यसंग्रहना आठ भाग रची बाहेर पाडया छे. तेमनी रचेली सत्तर भेदी पूजानो भावार्थ, आध्यात्मिकदृष्टिए उत्तम छे. वीश स्थानकनी पूजामां थोडी गाथाओमां घणो भाव समाव्यो छे. पहेलांनी अनेक पूजाओ छे. हाल पण केटलाक पंडित मुनिवरोए पूजाओ रचेली छे. भिन्न रुचिवाळा लोको छे तेथी आ पूजाओना सचिवाळा जे लोको छे तेने आ पूजाओ भणावतां घणो भक्तिरस प्रगटशे तथा भविष्यमा जेओ आवी पूजाओनी रुचिवाळा जीवो प्रगटशे तेओने आ पूजाओ घणी उपयोगी थै पडशे. आचार्य महाराजजी भविष्यमां बीजी पूजाओ प्रसंगोपात्त रचे एवो संभव छे. आ पूजासंग्रहनी आत्ति खपी जतां वीजी आत्ति छपावतां भविष्यमां रचाशे ते पूजाओने पण आ पूजाओना सुधारा वधारा साथे दाखल करवामां आवशे. सज्जनो गुणानुरागी होय छे. दुर्जनो काकना जेवा दोष दृष्टिवाळा छे. दुर्जन इाळुओ तो छता गुणने पण अवगुण तरीके देखाडवानो प्रयत्न करे छे अने पयमांथी पूरा काढवा जेवी चेष्टा करे छे, एवा इालुओ उत्तम पूजाओ अने तेना रहस्यने दोषरूप देखाडवा प्रयत्न करे तेथी सज्जन गुणानुरागी समजुजनोने खराब असर थती नथी. जेओने सम्यग्दृष्टि प्रगटी होय छे तेओ तो श्री कृष्णनी पेठे ज्यां त्यां सारूं देखे छे तेनी प्रसंशा करे छे अने गुणनारागी बने छे. जैन कोममा आचार्य महाराज साहेब जेवी प्रभावशाळी अल्प व्यक्तियो छे. तेमणे जैनकोमपर घणो उपकार कयों छे. जैनो अने हिंदुओ वगेरे सर्व कोमोमां, राजा रजवाडाओमां जैनाचार्य गुरु महाराजनी प्रतिष्ठा भारी छे, सर्वदर्शनवाळाओ ते For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ मना लेखोने ग्रन्थोने प्रेमभावथी वांचे छे. गुरु महाराजना रचेला अनेक ग्रन्थो छे. ग्रन्थमाळाना मणकामां आ ग्रन्थथी वधारो थयो छे. तेमना हाथे विश्व लोकोनुं कल्याण थाय एवा ग्रन्थो हजी घणा लखाशे एवी इच्छा राखीएछीए. पूजाओमां ज्ञानदर्शन चारित्रादि गुणोनी भक्ति स्तुति अने ज्ञानीआदि गुणीओनी भक्ति करवामां आवे छे अने व्रत गुणोनी रुचि प्रगट थाय एवी भावना होय छे. आत्मानी शुद्धि करी आत्माने परमाला बनाववो अने अनंत जन्म जरा मरणना दुःखथी मुक्त थर्बु एज सर्व प्रकारनी पूजाओनो मूळ उद्देश अने उद्देशगामी पूजाओनो भावार्थ होय छे. वाचकोए पूजामो गाइने बेसी न रहेवू पण तेनो भावार्थ ग्रहयो, सांभळी सांभळी फूटया कान-वाची वाची फूटी आंख, गाइ गाइ थाक्युं मुख, एम गाडरिया प्रवाहे चालतां पूजानुं अने तेमां कहेला भावनुं रहस्य समज्याविना आत्मानो आनंदरस प्रगटतो नथी. ज्ञानपूर्वक अने भावपूर्वक पूजाओ भणाववामां आवे छे तो वक्ताओने तथा श्रोताओने अत्यंत आल्हादभाव भक्तिरस प्रगटे छे अने ज्ञानावरणीयादि कर्मोनी निर्जरा थाय छे. आत्मामां प्रभु भक्तिनो समाधिभाव प्रगटे छे तेथी प्रभुनो हृदयमां प्रगट भाव थाय छे. पूजाओ भणाववामां, श्रवण करवामां एकांत भक्तिनुं फल छे तेनो भावार्थ विचारी आत्मोल्लास प्रगटावतां उत्कृष्टभावे क्षणमा मुक्ति थाय छे. भक्त जैनो आवी उत्तम पूजाओ भणावीने तथा श्रवण करीने प्रभु भक्तिना रसिया बनी आनंद रस पामो. एम इच्छु छु. सं. १९७९ का. सु ११ एकादशी. ॥ गुरुभक्त. लेखक. गांधी आत्माराम खेमचंद, महेता हरिलाल मंगळदास, मु. साणंद. For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजासंग्रह. द्वितीय भागनी प्रस्तावना. दउं उपदेश जीवोने, प्रतिफळनी नथी इच्छा, फर्ज मारी अदा करवी, पडे जो प्राण तोपण शुं ? (भजनपद भा. ६) जेमनुं लेखनकार्य विश्वना जीवोनुं भलं केम थाय तेनी योजनाओना उद्देशनुं परिणामभत होय छे एवा गुर्जर भूमिमां विचरता अध्यात्मज्ञानी शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्रीमान् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी कृत आ पूजासंग्रहनो द्वितीय भाग पण प्रथम भागनी माफक अनेक गुणसंपन्न अने भावप्रधानस्वरूपथी अलंकृत जोरामां आव्यो छे. तेमनी रचनामां दरेक विषयतुं व्यावहारिक अने अध्यात्मिकस्वरूप यथायोग्यरूपमां द्रव्यभाव गुणदृष्टिए चीतरेलु जोवामां आवे छे जे खास खूबीरूप छे. दरेक दर्शनोमां प्रभुभक्ति छे ते प्रभु प्राप्तिना साधनरूप मनाइ एक या बीजी अनेकरीतीए तेना व्यावहारिक स्वरूपमा प्रगट थयेली होय छे, जेनुं दिग्दर्शन सूरिश्रीए पूजासंग्रह भा. १ ना उपोद्घातमां करेलुं छे ते वांचवाथी तेनो ख्याल वाचको सहज रीते करी शकशे. __ जैनोमा अगाउ अनेक मुनिवरोए भक्तिप्रधान पूजाओ रची छे जेनो अत्यारसुधीनो जे संग्रह छे तेमां आ रचनानो उमेरो अनेक रीते प्रशंसापात्र छे. अत्यारसुधी रचायेला संग्रहमां आ रचनाथी एकदम धरखम वधारो करीने पूजा साहित्यने शक्यता परिपुष्ट करेलु छे. तेम प्रथम भागमां अने आ द्वितीय भागमा प्रथम करस्पर्श नहि ययेला अनेक विषयो पूजानुष्ठानमां परोवीने तेना क्षेत्रमा विशाळता साबीत करी बताबेली छे अने पात्र परत्वे अमर्यादतान मंत्र सूचनछे. For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ द्वितीयसंग्रहमा द्रव्य श्रावकना एकवीस गुणनी पूजा, भावश्रावकना सत्तर गुणनी पूजा, बार भावनानी पूजा, महावीरपरमेश्वर पंचकल्याणक पूना, पंचज्ञान पूजा, मंगल पूजा, जंगमस्थावर तीर्थपूजा अने अढार पापनिवारक पूजा के जे अत्यारसुधी रचायेली नहोती तेवी पूजाओ रचीने विविध चित्तवृत्तिवाळा मनुष्योने माटे खास खोराकरूपे थइ पूजारसिकोने ते निमित्ते ज्ञानवैराग्य पोषणर्नु नवु साधन मळे छे जेथी खास खुशी थवा जेवू छे. श्रावकधर्मना अधिकारी बनवानेमाटे द्रव्यश्रावकना एकवीश गुणनी पूजा तथा भावश्रावकना अधिकारी बनवाने माटे भावावकना सत्तरगुणनी पूजा खास उपयोगी होइ श्रावकना गुणोमां श्रावकोने उन्नत करवा सरळ अने रसिक भाषामां उपदेशामृत पूर्ण रचना आगळ करवामां मुरिश्रीनी प्रवृत्ति प्रशंसापात्र छे अने आ रचना श्रावकोने स्वत्वनुं सहेलाइथी भान कराक्वा अणमोला साधन रूप छे. आनिमिसे श्रावकोमां किंचित् पण गुणवृद्धिनी सापेक्षदृष्टिए आ पूजाओनी उपयोगिता सिद्ध थाय छे . बारव्रतनी पूजा तथा बार भावनानी पजा पण तेटलीज उपयोगी छे महावीर परमेश्वर कल्याणक पूजा के जेमां ललित भाषामां संक्षेपथी महावीरस्वामीनुं मननीय चरित्र गुंथीने दरेक जैनने स्मरणपटमां अपवाद रहित गोखी राखवा लायक वस्तु रजु कर्यु छे ते जाणीने कोण खुशी नहि थशे ? तेवीज रीते जंगम स्थावर तीर्थपूजामां तमाम तीर्थोनी यादी स्मृतिपटमा सहेजे उपस्थित थवाने सुंदर प्रबंध करेलो छ के जेथी मानवहृदयमां तीर्थभक्ति सदोदित जागृत रही शके अने परीणामे सांसारिक क्लेशोमां निरंतर रचीपची रहेली चित्तवृत्ति क्षणभर पण आत्मानंदन आस्वादन करी दुःखोदधि संसारमा किंचित् विश्रांतिनुं साधन मेळवी शके. पंचज्ञानपूनामां जैनदर्शनमां प्ररूपित पंचज्ञान- स्वरूप आळेखेलुं छे सर्व शुभ कार्यारंभमां विघ्नविनाशन हेतुए अने कल्याण For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१ फळ निमिते रचेली मंगलपूजा खास मंगलस्वरूप रजु करे छे. आ संसार विघ्नोथीज भरेलो के अने पदे पदे संसारी जीवोने विघ्नोनो अनुभव सामान्य छे. एटले मंगलेच्छुजीवोनो विघ्नभय दूर थइ आश्वासन प्राप्त थवामां तथा अनेक मंगलमय नामोनुं स्मरण-मनन थइ भक्ति नम्रतायुक्त चित्तवृत्ति थवामां तेमज दुःखी पण सुखेच्छुओने 'कहीं लाखो निराशामां' लंबायेला आशातंतुनुं दर्शन थवामां आ पूजानी उपयोगिताथी मनुष्यहृदयनुं सहेजे आकर्षण थशे ए निःसंशय छे, खरेखर आ पूजा " लोगस्स " अने “ संतिकर " उपरांत अनेक मंगलपाठोना खजानारूप होय तेवी खूबीथी भरपूर छे. आ उपरांत अठार पापस्थानक निवारक पूजा स्वविषय परत्वे तेमज जीवोनी अनिवार्य रुचिभेद परत्वे उपयोगी के एम प्रथम भागना उपोद्घात तथा प्रस्तावनामां दिग्दर्शित सिद्धांतप्रमाणे जणाय तेबुं छे, तेथी तेनी पुनरुक्तिनी आवश्यकता नथीज, शत्रुंजय विषयक कथा वृत्तांतनो उद्बोध करनारी, द्रव्यभावमय तीर्थनो तथा द्रव्यभावमय शबुंजय तीर्थनो ख्याल आपनारी, तीर्थभक्ति उपर प्रेम जगाडनारी, तीर्थ उपर रहेला स्थानकोनी नोंध लेती, तीर्थमहिमानो विस्तार करती, तेना उद्धार अने नामोनुं गणशुं गणती अनेकप्रकारनी व्याख्यायुक्त नवाणु प्रकारी पूजाथी तीर्थभक्तोना आत्मानी शुद्धि अने आनंदरसमां वृद्धि थाय ए स्वाभाविक छे. पूजानुभवी जनोने आ पूजाओ वांचता-भणावतां सूरिश्रीना हृदयमंदिरमांथी नीकळेला ज्ञाननां झरणांनो अने तेमनी मधुर- सरस अने एकधारी लेखिनीनो साक्षात्कार थइ भक्तिरसनो अमूल्य रहावो महशे, एटलुंज नहि पण गुणग्राही सज्जनोने तो आ रचना खास दीपक समान नीवडशे. आत्मगुण प्राप्त करवामां अनेक साधनो अस्तित्व धरावे छे, तेमां पूजाओनुं पण अग्रस्थान छे, एटले सर्व प्रवृत्तिओमां साध्यदृष्टिए आत्मगुणनी माप्ति के कयुं छे के “आतमगुण विना रे होळी राजा For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ सरखो वेष. " खरेखर वेषक्रिया ए आत्माना गुणो प्राप्त करवाने माटे होय छे ते बिना तो जेम होळीराजा ते खरेखर राजा होतो नथी ते आत्मगुण दृष्टिबिंदु विनानी वेषक्रिया लाभकारक नीवडती नथी, माटे दरेक इवानुष्ठानयां आत्मगुण प्राप्तिनुं छेल्लं साध्य सदोदित नजर समक्ष राखवामांज इष्टानुष्ठाननी सार्थकता छे, रुचि - भेद परत्वे उपयोगी गणातां (साध्यनां) साधनोनी- अनुष्ठानोनी मात्रा रुचिभेद परत्वे लागु पाडवानुं लक्ष्य अनेक सांसारिक-धार्मिक झघडाओनुं निराकरण थवामां अने तेओनी जड पेसती अटकाववामां लाखेणा मूल्यनुं छे. खास तकेदारी इष्टानुष्ठानमां भूलाइ गयेला साध्यरूपी आत्मानुं संचारण करवामां मौखिक मात्र नहि पण हार्दिक पलटारूपे भाग जवशे त्यारेज मार्ग निष्कंटक, सरळ, सर्व साध्य अने मुमुक्षुप्रिय थशे. " अनेक कर्ताओनी आवी भक्तिप्रधान रचनाओमां अनेक विषयो अनेक रीते समावेश पामीने हाल सुवीमां प्रचरित थया छे तेम छतां बीजां स्थळोए मळी आवता भावोना समान भावोनुं मात्र व्यक्तिगत विरोधना कारणे एम “ अपने बोर पीछे, दूसरेके खट्टे " ए कहेबत साची पाडवाना आशयथीज ज्यारे दिग्दर्शन करी सामानी कृति उतारी पाडवानो प्रयत्न करवामां आवे त्यारे आ उद्योग जनसमाजने केटलो रोचक थइ शके ? अने एमांथी जनसमुदायने कल्याणकर धारणा केटले अंशे फळ निष्पन्न थाय ? ते विचारवा जेवुं छे. आवोज एक प्रयत्न पन्यास गंभीरविजयजी गणिनी केटलीएक प्रसादीओनो संग्रह करी " भक्तिमार्ग प्रकाश " ना नामे एक लघु पुस्तक प्रगट थयेलुं छे तेमां प्रास्ताविक लखाणमां तेमना शिष्य आनंद विजयगणिए करेलो दृश्यमान थाय छे. तेओ लखे छे के- केटलाक प्राकृत लोको निरसनाय अर्थशून्य तेगज कविताना ढंगबगरना " त्रिशलाना जायारे महावीर सहाये For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवजोरे" आवा स्तवनादि मंदिर विगेरेमा पूजन समये गाइने पोतानो समय पूर्ण करे छे. अतएव षोडशकमां श्रीमान् हरिभद्र मूरिश्रीए "वैराग्यपूर्ण आत्मनिंदात्मिका अने वीतराग गुणबोधक एवं विविध अलंकार साथे शब्द अर्थनी गांभीर्यतामय रसोत्पादक स्तोत्र स्तवनादि जिन प्रतिमाग्रे गावानुं" कहुं छे. __आमां उपरनी चर्चावाळी कृति तेमने निरसपाय लागती होय तो तेमां तेमना रुचिभेदतुं कारण कल्पी शकीए पण ज्यारे तेओ तेमां अर्थशून्यता निहाळे छे त्यारे अर्थात् तेनी शब्द रचनामां अर्थोत्पत्ति वा अर्थनी सुसंगतिनो अभाव छे एवो पडकार करे छे, त्यारे तो खास सूरिश्रीनी कृतिने कोइ पण रीते उतारी पाडी चोक्स आशय सिद्ध करवानो तेमनो इरादो तरी आवे छे वा तेमन अज्ञान स्फोटन थाय छे. वळी उपरना स्तवनने कविताना ढंग वगरनुं कही पोताने राग ना बेसतो होय तेथी द्राक्ष मळवानी शक्तिना अभावे द्राक्षने खाटी कहेवानी जनश्रुतिने चरितार्थ करवा जेवू कयु छे. गणिजीनो आ श्रम भक्तिमार्ग प्रकाशांतर्गत पंन्यास गंभीरविजय गणिकृत स्तवनादिक अत्यंत भावपूर्ण, रसवाळां, कविताना मापतालवालां अने हरिभद्रसूरिसंमत रहस्यवाळां टुंकामां सर्वगुण संपन्न सिद्ध करवाना उत्साहमां मननुं समतोलपणुं गुमाववामां सहायभूत थयो छे एम सिद्ध थाय छे. गणिजीने “त्रिशलाना जायारे महावीर सहाये आवजोरे" इत्यादिक पंक्तिओ निरस, अर्थशून्य अने निरर्थक समय पर्ण करवा जेवी लागे छे त्यारे तेमना गुरुश्री पंन्यास गंभीरविजय गणिजीना स्तवनादिमां रहेली तारो तारो पद्मप्रभु तारोरे दीनानाथ निहालिए वृद्धिगंभीर हशे सब पीडा, सेवक आपने उगारीएरे भक्तिमार्ग प्रकाश पा. १०८ For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४ सुपारस शरण दियो, दास बचावो, वृद्धिगंभीर दिल धारणिया. भक्तिमार्ग प्रकाश पा. ११३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृद्धिगंभीर आशा पूरो, देतां नहीं तुम खामी, ते विण करणी न आवे कामे, तिणे मागुं शिरनामी, भक्तिमार्ग प्रकाश पा. १४६ " जेवी पंक्तिओ रसपरिपूर्ण भावथी ओतप्रोत अने षोडशकमां व्याख्या बांधी छे तेवा समस्त गुणोवाळी गंभीर शब्दार्थ चमत्कृतिवाळी लागे छे तेमां रागदशाजन्य पक्षपात सिवाय अमने बीजुं कारण वास्तविक लागतुं नथी. Mtume आ उपरथी अमे पंन्यास गंभीरविजयजीनी कृतिने कोइ रीते उतारी पाडवा मागता नथी. ए कृति पण एकंदर उपकारक छेज. पण अत्र अमे जे देखाडवा मागीए छीए ते एटलुंज के सामान्य प्राकृत जनोने अर्थनी मुश्केली पडे तेवी, भाषा विषयक कंइक जूनी दवाळी पंन्यासजीनी कृति करतां सरळ अर्थवाळी प्रभुनुं शरण मागती, प्रभुनी सहाय विना जीवनी बेहाल दशानो इसारो करनारी, संसारना उद्वेगोनुं वर्णन करती, संसारमां भावशत्रुओना थता व्याघातोनुं दिग्दर्शन करनारी, उपरनी सूरिश्रीनी कृति तथा तेवीज बीजी सेंकडो कृतिओनी उपयोगिता प्राकृत जनो के जेनी संख्या अप्राकृतजनो करतां अनेक गणी छे तेओने माटे ओछी तो नथीज. जे छटा सूरिश्रीनी रचनामां छे तेवीज प्राचीन रचनाओमां पण अनेक स्थळे जगाइ आवे छे. जे नीचेनी पंक्तिओ उपरथी जणाशे. तार हो तार प्रभु मुज सेवक भणी, जगतमां एटलं सुजश लीजे, दास अवगुण भर्यो, जाणी पोतातणो, दयानिधि दीनपर दयाकीजे.Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीनबंधुनी महिर नजरथी आनंदघनपद पावे हो मल्लि. श्रीमद् आनंदघनजी. श्री मुनिसुव्रत कृपा करो तो आनंदघन पद लहिये. श्रीमद् आनंदघनजी. सिद्धारथनारे नंदन विनg-ए आलुं स्तवन." .इत्यादि संख्याबंध कृतिओ गणिजी तपासशे तो समान कक्षावाळी मळी आवशे. __ आ सघळी कृतिओ तथा उपरनी मूरिश्रीनी कृति हरिभद्रमूरिना षोडशक प्रकरणना नवमा षोडशकना ६-७ प्रलोकना कया भाव साथे बंधबेसती नथी ते गणिजीए दर्शाक्वानो सहेज पण प्रयत्न कर्यो नथी. अमे तो उपरनी सरिश्रीनी कृति अगाउ जणाव्यु तेम प्रभुनी सहाय मागती, संसारमा भावशत्रुओना थता व्याघातनुं दिग्दर्शन करनारी, तथा संसारना दुःखोथी त्रस्त थयेला जीवनी प्रभुनी सहाय विना बेहालदशा थवानी संभावना करनारी होइ आ कृतिमां षोडशकगत लोकना " आशयविशुद्धिजनक" "संवेगपरायण" " पुण्यपापनिवेदनगर्भ" इत्यादिक विशेषणोने यथा साध्य सार्थक करनारी छे एम निःसंकोच भावे जणावीए छीए. अमे आ कृतिना आध्यात्मिक रहस्यने आ स्थळे छोडवू इष्ट गणता नथी, कारणके गणिजी उक्त कृतिना सामान्य अर्थने पण प्रतिपन्न नथी करी शकता तो तेमनी साथे तेना आध्यात्मिक अ. र्थ विशिष्टतानी वातो करवी ए वधु पडतुंज गणाय, पण गणि. जीने अत्र एक वातनुं खास दिग्दर्शन करावीए छीए के शकस्तवमा इंद्र पण प्रभुनी स्तुति करती वखते "शरण दयाणं " "तारयाणं" इत्यादि विशेषणोनो उद्घोष करे छे तेज उद्घोषोनो जमानानी अने गुजराती भाषानी ढबे विस्तार होय तेने जोइए ते करतां वधु उपयोगितानो भार मूकवानो तेमन रुचिभेद परत्वे उपयोगितानी For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३६ तरतमतानो अपवाद राखतां छतां तेने कोइपण अशे तेमज रुचिभेद परत्वे उपयोगितानो अस्वीकार तेमज तुच्छतानुं आरोपण तदन अनुचित छे. संवत १९८० अशाडशुक्लपक्ष अष्टमी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ पूजाओ रचवानो प्रसंग संवत १९७९ ना माघ मासमां प्रतिष्ठा निमित्ते सरिश्री साणंद पधार्या ते वखते मळ्यो. प्रतिष्ठा प्रसंगे अनेक प्रवृत्तिओमांथी जे कांइ वखत बचेलो तेमां आ पूजाओ रचत्रानुं शरु थयुं अने त्यारबाद जे जे दिवसे जे जे ठेकाणे रचाइ ते प्रत्येक पूजाओना कळश उपरथी जणाइ आवे छे, एटले अत्र तेनो उल्लेख करता नथी. सूरिश्रीप अस्खलितप्रवाहथी अत्यार सुधीमां जनोपयोगी अनेकानेक ग्रंथो जुदा जुदा दृष्टिबिंदुओथी जुदी जुदी रुचिवाळा जीवोने उपयोगी जैन साहित्यसागरमां वहेता करी स्वशाखागत पद्वी विषयक उणपनी जेम साहित्य विषयक उणपने दूर करवामां जे पोते निमित्तभूत थया छे तेवीज रीते तेनो लाभ गुणग्राही सज्जनो इंसचचुवत् ग्रहण करो गुणानुरागी बनवा करशे तो तेमना अविश्रांत श्रमनी सार्थकता थशे. सूरिश्री जेवी प्रभावशाळी लेखक व्यक्तिओना हाथे विश्वजीवोनुं श्रेय करनारा अनेक ग्रंथो रचाय एवं अमो इच्छीए छीए. ॐ शांतिः ३ लेखक सद्गुरुचरणोपासक. संघवी केशवलाल नागजी. गांधी आत्माराम खेमचंद. मु. साणंद. For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बृहत्पूजासंग्रहनी प्रस्तावना. भजनसंग्रह प्रथम भाग वि. १९७९, मां छपाइ बहार पड्या पछी प्रथम भागनी साथे-पूजासंग्रहनो वीजो भाग-साणंद, गोधावी पेथापुर, प्रांतिजमां रचायो छे ते बन्नेने भेगा करी बृहत्पूजासंग्रह एवा नामे आ पूजासंग्रह बहार पाडवामां आवे छे. पूजासंग्रहना बीजा भागमां-१ श्रावकना एकवीस गुणनी पूजा, २ भाव श्रावकना स. तर गुणनी पूजा. ३ वारव्रतनी पूजा. ४ वार भावनानी पूजा. ५ श्री महावीरपंचकल्याणक पूजा. ६ पंचज्ञानपूजा. ७ जंगम स्थावरतीर्थपूजा. ८ शुभकार्यारंभमां मंगलपूजा. ९ अष्टादश पापस्थानकनिवारकपूना. १० सिद्धाचलनवाणुप्रकारी पूजा, ए दश पूजाओ रचाइ छे अने छपाइ छे.मासंग्रह प्रथम भागनी प्रस्तावना के जे उपयोगी छे ते अत्र छपाववामां आवी छे अने तेथी हाल शरीरनी अशक्तिथी बृहत्पूनासंग्रहनी विस्तृत उपयोगी प्रस्ता. वना लखवानो भाव होवा छतां ते लखाइ नथी. छद्मस्थदशामां भूलाय ए स्वाभाविक छे, तेथी पूजाओमां जे कंइ भूलो रही गइ होय तेओने गीतार्थो सुधारशे. तथा ग्रन्थमां शब्द वगेरेमा प्रेसना घसायला अक्षरो वगेरेथी अशुद्धियो रही गइ होय तेओने गीतार्थ मुनिराजो सुधारशे अने पोतानी सजनतानो प्रकाश करशे, पयमांथी पण पूरा काढवानी दृष्टिवाळा दुर्जन शत्रुओनी दृष्टिएतो काकनीपेठे सारं पण खराब भासवानु, एटले तेजो नो-बृहत्पूजासंग्रहनी उत्तमता अवलोकी शकवाना नथी. सज्जन संतोनी दृष्टिए तो सारु सत्य ग्रहाय छे. तेओ आ पूजाओमाथी सारुं ग्रहण करी शकशे. कर्तानी हयातीमां रागी अने प्रतिपक्षी एवा बे पक्षो हयात होय छे. परंतु ग्रन्थ कर्ताओ कवियो वगेरेनी पाछळ पञ्चाश शत वर्ष पछी बन्ने पक्षो होता नथी. तेथी पाछळथी घणा गुण ग्रहीओ थाय छे. For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ जनतानो मोटो भाग ग्रन्थो वांचीने मध्यस्थ दृष्टिए विचार करनारो होय छे तेथी ते समये ग्रन्थ महत्ता अगर अमहत्तानो ख्याल आवे छे. हंसनी दृष्टि धारीने सज्जनो सारु ज ग्रहण करे छे. जैन जैनेतर सर्व लोकना कल्याणार्थे रचायलो एवो आ बृहत्पूजासंग्रह सर्व विश्व जनोनी आत्मशुद्धि अने आत्मानंद प्रगटतामां उपयोगी बनो. इत्येवं ॐ अ महावीर शान्तिः ३ मु. पेथापुर. वि. सं. १९८० श्रावण शुक्ल पंचमी. लेखक. बुद्धिसागर. For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बृहतपूजासंग्रहनी नाम गाम तिथि पृष्टवार यादी सांकळीयु. पूजांक-पूजानुं नाम. कया गाममां रची. कइसालमां. पृष्ट. १ श्रावकना एकवीस गुणनी पूजा साणंद १९७९ माघसुदि २ १थी २२ २ भाव श्रावकना सत्तर गुणनी पूजा साणंद १९७९ माघसुदि ५२३थी ४७ ३ श्रावक द्वादश व्रत पूजा साणंद १९७९ माघसुदि१५४८यी७२ ४ बार भावनानी पूजा गोधावी १९७९ माघवदि १३७३थी१०० ५ महावीर प्रभु पंच क ल्याणक पूजा गोधावी १९७९ फागणसुदि२१०१थी१२३ ६ पंच ज्ञान पूजा पेथापुर १९७९ फागणवदि५ १२३थी१३९ ७जंगम स्थावर तीर्थपूजा पेथापुर १९७९ फागणसुदि३ १३९थी१५६ ८ सर्व शुभ कार्य आरं____भमां मंगळ पूजा पेयापुर १९७९ फागणसुदि१० १५६थी१६८ ९ अष्टादशपापस्थानक निवारक पूजा पेयापुर १९७९ फागणसुदि१३१६८थी२०० १० लात्र पूजा साणंद १९७७ २०१थी२१६ ११ नवपद पूजा साणंद १९७७ आसोसुदि १०२१७थी२४३ १२ पंचाचारपूजा साणंद १९७७ आसोवदि २. २४४यी२५३ १३ विंशस्थानकपद . लघुपूजा साणंद १९७७ आसोवदि ४. २५४यी२७६ १४ दशविधयति धर्म पूजा साणंद १९७७ आसोवदि ६. २७७यी२९५ १५ चार भावनानी पूजा. साणंद १९७७ आसोवदि ७. २९६थी३०५ १६ दानशीयळतपमा. रनी पूना साणंद १९७७ मासोपदि ८.३०६यो३१६ For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० १७ अष्टांग योगनी पूजा साणंद १९७७ आसोवदि१० ३१७यी ३३४ १८ नवधा क्रिया भक्तिपूजा साणंद १९७८ ज्ञानपंचमी ३३४थी३५३ १९ अष्टकर्म सूदनार्थ अष्ट प्रकारी पूजा साणंद १९७८ कारतकसुदि८. ३५४थी३७१ २० षडावश्यक पूजा साणंद १९७८ कारतकसुदि९.३७२थी३८६ २१ अष्टप्रकारी पूना मोटी. वसो १९६० फागणवदि११. ३८७थी४०६ २२ वास्तुक पूजा विजापुर १९६० माघसुदि १२.४०७थी४१७ २३ अष्टप्रकारी पूजा विजापुर १९७८ चैत्रसुदि ९. ४१८थी४२९ २४ श्री रविसागरजी गुरु पूजा विजापुर १५७.. चैत्रसुदि १५. ४३०थी४४२ २५ श्री सुखसागरजी गुरु पूजा महुडी १९७९ चैत्रवदि २. ४४३थी४५५ २६ सत्तरभेदी पूजा महुडी १९७८ चैत्रवदि १०. ४५६थी४७० २७ नवपद लघु प्रजा म्हमाणा ९७८ आसोवदि२. ४७१थी४८० २८ पंचधा योग पजा म्हेसाणा १९७८ आसोवदि५. ४८१थी४९४ २९ पंचपरमेष्टि पूजा विजापुर १९७८ अक्षयत्रीज. ४९५थी'५०१ ३० श्री महावीर जन्म क ल्याणक महोत्सव पूजा. विजापुर १९७८ चैत्रसुदि१३.५०२थी५१२ ३१ श्री महावीरदेवनी अष्ट प्रकारी पूजा विजापुर १९७८ वैशाखवदि४.५१३थी५२५ ३२ श्रीघंटाकर्ण वीर पजा. विनापुर १९७८ अक्षयत्रीज ५२६थी५३६ ३३ श्री सिद्धाचळ नवाणु प्रकारी पूजा प्रांतिज १९८० चैत्रसुदि१५. ५३७थी५५६ ३४ गुरुनी आरति ५५६ ३५ गुरु मंगळ दीपक ३६ जिनेश्वरनी आरति ३७ मंगळ दीपक For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ग्रथांक श्री अध्यात्मज्ञानप्रसारक मंडळ तरफथी श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजीग्रन्थमाळामां प्रगट थयेला ग्रन्थो. * www.kobatirth.org १ क. भजन संग्रह भाग १ लो. १ अध्यात्म व्याख्यानमाळा. २ भजनसंग्रह भाग २ जो. ३ भजनसंग्रह भाग ३ जो. ४ समाधिशतकम्. ५ अनुभवपश्चिशी. ६ आत्मप्रदीप. ७ भजनसंग्रह भाग ४ थो. ८ परमात्मदर्शन. ९ परमात्मज्योति. * * १० तत्त्वविदु. * ११ गुणानुराग. ( आवृत्ति बीजी ) * १२-१३. भजनसंग्रह भाग ५ मो तथा ज्ञानदीपिका. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only पृष्ठ २०० ३३६ ३३६ २१५ ६१२ २४८ ३१५ ०-८-० ३०४ ४०० ५०० २३० २४ १९० * १४ तीर्थयात्रानुं विमान (आ. बीजी ) ६४ * १५ अध्यात्मभजनसंग्रह १६ गुरुबोध. # १७ तवज्ञानदीपिका किंमत. 01610 ०-४-० १९० १७४ १२४ ०-८-० 01210 0-2-0 ०-८-० 0-2-० ०.१२-० ०-१२-० ०-४-० ०-१-० ०-६-० 0-2-0 ०-६-० 0-8-0 ०-६-० Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२ १८ गहूंलीसंग्रह भा. १ * १९-२० श्रावकधर्मस्वरूप भाग १ - २ ( आवृत्ति त्रीजी ) * २१ भजनपदसंग्रह भाग ६ ठो. २२ वचनामृत. २३ योगदीपक. २४ जैन ऐतिहासिक रासमाळा. * २५ आनन्दघनपद ( १०८ ) संग्रह भावार्थ सहित. * ३६ विजापुरवृत्तांत. ३७ साबरमतीकाव्य. ३८ प्रतिज्ञापालन. * २६ अध्यात्मशान्ति ( आवृति बीजी ) २७ काव्यसंग्रह भाग ७ मो. * २८ जैनधर्मनी प्राचीन अने अर्वाचीन स्थिति. * २९ कुमारपाल ( हिंदी ) ३० थी ४ - ३४ सुखसागर गुरुगीता. ३५ षड्द्रव्यविचार. ३९-४०-४१ जैनगच्छ्पतप्रबंध, संघप्रगति, जैमगीता. ४२ जैनधातुप्रतिमा लेखसंग्रह भा. १ ४३ मित्रमैत्री . # ४४ शिष्योपनिषद्. ४५ जैनोपनिषद्. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ११२ ४०-४० २०८ ८३० ३०८ ४०८ ८०८ १३२ १५६ ९६ २८७ ३०० २४० ३०४ ०-३-० ૪ ४८ ०-१-० ०.१२.० ०-१४-० ०-१४-० ०-३-० 0-2-0 ०-२-० ०-६-० 0-8-0 ९० १९६ ०-६-० ११० 004-0 ०-४-० 0-8-0 0-0 0-2-0 0-2-0 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३-०-० २-०-० १६८ ८.० ४६-४७ धार्मिक गद्यसंग्रह तथा सदुपदेश भाग १ लो. ९७६ ३-०-० ४८ भजनसंग्रह भा. ८ . ९७६ * ४९ श्रीमद् देवचंद्र भा. १ १०२८ ५० कर्मयोग. १०१२ ५१ आत्मतत्त्वदर्शन ११२ ०.१०.० ५२ भारतसहकारशिक्षण काव्य ०.१०.० ५३ श्रीमद् देवचंद्र भा. २ १२०० ३-८-० ५४ गहुली संग्रह भा. २ ०-४-० ५५ कर्मप्रकृतिटीकाभाषांतर ३-०-० ५६ गुरुगीत गुंहलीसंग्रह. १९० ०.१२.० ५७-५८ आगमसार अने अध्यात्मगीता ४७० ५९ देववंदन स्तुति स्तवन संग्रह. १७५ ०-४-० ६० पूजासंग्रह भा. १ लो. १-०-० ६१ भजनपदसंग्रह भा. ९ १-८-० ६२ भजनपदसंग्रह भा. १० २०० १-०-० ६३ पत्रसदुपदेश भा. २ ६४ धातुप्रतिमालेख संग्रह भाग २ १-०-० ६५ जैनदृष्टिए ईशावास्योपनिषद् भावार्थविवेचन. १-०-० ६६ पूजासंग्रह द्वितीयावृत्ति तथा अन्यपूजाओ सहित-२-०-० भाग २ बीजो ६७ स्नात्रपूजा. ०-२-० ६८ श्रीमद् देवचंद्रजी अने तेमनुं जीवनचरित्र (पदराकर कृत.) ४१६ ५८० For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ संस्कृत ग्रन्थो. नं. ६९ शुद्धोपयोग । ७० दयाग्रन्थ ७५ श्रेणिक सुबोध किं. ०-१२-७ ७२ कृष्णगीता ७३ संघकर्तव्यग्रन्थ ७४ प्रजासमाजकर्तव्यग्रन्थ ७५ शोकविनाशक किं. ०-१२-० ७६ चेटकबोधग्रन्थ ७७ सुदर्शनासुबोध. ७८ लाला लाजपतराय अने जैनधर्म ०-४-० पृ. ९६ हाल छपाता ग्रन्थो. आत्मप्रकाश. कन्याविक्रयनिषेध. ध्यानविचार. तत्त्वविचार. चिन्तामणि. जैनधर्म अने स्त्रीस्तीधर्मनो मुकाबलो. जैन नीस्तिसंवाद जैनधार्मिक शंका समाधान, सत्यस्वरुप क्षमापनामोटुं विजापुर वृत्तांत उ० श्री यशोविजयनिवन्ध संस्कृत अध्यात्मगीता आत्मशक्तिप्रकाश आत्मसमाधि शतक संस्कृत श्री देवचंदजी निर्वाण रास. श्री मणिचंद्रजी कृत २१ (जीवनचरित) सज्जाय भावार्थ मुद्रित जैन श्वेतांवर ग्रन्थ भजनसंग्रह भा. १ आवृत्ति ४ नामावलि. * आ निशानीवाळा ग्रंथो सीलकमां नथी. For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४५ उपरना पुस्तको मळवानुं ठेकाणं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वकील मोहनलाल हीमचंद. ( गुजरात ) पादरा. गांधी. आत्माराम खेमचन्द. साणंद. भाखरीआ - मोहमलाल नगीनदास. मुंबाई कोटबजार गेट नं. १९२-९४ बुकसेलर, मेघजी हीरजी. पायधुनी - मुंबाई. शेठ. नगीनदास रायचंद. मु. मेसाणा. शेठ. रतिलाल केशवलाल. सु. प्रांतीज. शेठ. चंदुलाल गोकलदास. विजापुर जैन ज्ञानमंदिर (गुजरात ) For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पृष्ट ३१ ४२ ३९ ५५ ५७ ६३ ६८ ७२ ९५ १२८ १२९ १५६ १६७ १७३ १९२ २०८ २५८ २६८ २९७ २९७ ३०४ फोटो १८ १९ ६ ६ ३ ४६ पूजासंग्रहनुं अशुद्धि शुद्धि पत्रकम्. ॥ पूजासंग्रह भाग २ जानुं शुद्धि पत्रकं. अशुद्धं अवधारता निवारता प्रतिपक्षा व्यवहाररे १० १८ १७ ३ १८ २ ३ १० १५ १० www.kobatirth.org ११ ११ क्राडा अनर्थदड अग्यारमी अगन्याऐंशी प्रभु भरतमा ज्ञानने मङ्गलंपूजा क्रियोद्वारी जडथां अरतिमा विशाला मंगलधर्या उत्कृ मत्री व्यवहर भावता Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only शुद्वं अवधारतो निवारतो प्रतिपक्षी व्यवहारे क्रीडा अनर्थदंड अग्यारमा अग्न्याऐंशी जिनवर भरतमां ज्ञान न मङ्गलपूजा क्रियोद्धारी जडधी अरतिमां विमाना मंगलभर्या उत्कृष्टुं मैत्री व्यवहरे भावतां Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पृष्ट माटो ३२७ अशुद्धं अष्टाग वाह्य द्रव्यमाव परभातमा पूजी शुद्धं अष्टांग बाह्य द्रव्यभाव परभातमा पूजा ३३९ ३६१ ३७१ ४१४ पूजा मुनि ४३६ ४४० ४५६ ४६९ ५३२ ५३२ ५३२ ५४९ ५५९ 22132 मुनिवर मुनिवन्द मुनिन्द बभेदथी बे भेदथी सुरकुमरीनी सुरकुमरीना महवीरनासंघ महावीरसंघ पृथ्वीने मेरुने पात्रीस पांत्रीस मंडल पृथ्वी मंगल For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजासंग्रह भाग १-२ नी अनुक्रमणिका. विषय. १ निवेदन. २ पेथापुरना जैन शेठ मनसुखभाइ लल्लुभाइर्नु जीवनवृत्तांत. ८ ३ मेहसाणावाळा शेठ घेलामाइ करमचंद तथा शेठ अम थालाल घेलाभाइ तथा शेठ सुरचंद मोतीचंदy जी. वनवृत्तांत. ४ पूजासंग्रह उपोद्घात. (प्रथम भागमां छपायेल) ५ पूजासंग्रहनी प्रस्तावना. (प्रथम भागमां छपायेली) २६ ६ पूजासंग्रह द्वितीय भागनी प्रस्तावना. ७ बृहत्पूजासंग्रहनी प्रस्तावना. ८ पूजाओनी नाम गाम तिथिवार यादी. ९ बुद्धिसागरसूरिनी ग्रथमाळामां प्रगट थयेला ग्रंथोनीयादी. ४१ १० पूजासंग्रहर्नु अशुद्धि शुद्धि पत्रक. पूजासंग्रह भाग २ नी पूजाओनो अनुक्रम. १ श्रावकना एकवीश गुणनी पूजा. २ भाव श्रावकना सत्तर गुणनी पूजा. ३ श्रावक द्वादशव्रत पूजा. ४ बार भावनानी पूजा. ५ महावीर प्रभु पंचकल्याणक पूजा. ६ पंचज्ञान पूजा. ३९ For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १० स्नात्रपूजा. ११ नवपदपूजा. १२ पंचाचारपूजा. १३ विशस्थानकपद लघुपूजा. १४ दशविध यतिधर्मपूजा. १५ चार भावनानी पूजा. विषय. ७ जंगम स्थावर तीर्थ पूजा. ८ सर्व शुभकार्य आरंभमां मंगळ पूजा. ९ अष्टादश पापस्थानक निवारक पूजा. पूजा संग्रह भाग १ नी पूजाओनो अनुक्रम. ५० १६ दान शीयल तप भावनी पूजा. १७ अष्टांग योगनी पूजा. १८ नवधा क्रिया भक्ति पूजा. १९ अष्टकर्मसूदनार्थ अष्टप्रकारी पूजा २० षडावश्यक पूजा. २१ अष्टमकारी पूजा मोटी. २२ वास्तुक पूजा. २३ अष्टप्रकारी पूजा. २४ श्री रविसागरजी गुरु पूजा. २५ श्री सुखसागरजी गुरु पूजा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only पृष्ठ, १३९ १५६ १६८ २०१ २१७ २४४ २५४ २७७ २९६ ३०६ ३१७ ३३५ ३५४ ३७२ ३८७ ४०७ ४१८ ४३० ४४३ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१ विषय. ४५६ पृष्ठ २६ सत्तरभेदी पूजा. २७ नवपद लघु पूजा. ४७१ २८ पंचधा योग पूजा. ४८१ २९ पंच परमेष्ठि पूजा. १९५ ३० श्री महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव पूजा. ५०२ ३१ श्री महावीर देवनी अष्टप्रकारी पूजा. ५१३ ३२ श्री घंटाकर्ण वीर पूजा. ५२६ ३३ श्री सिद्धाचळ नवाणुं प्रकारी पूजा. ( आ पूजा पूजासंग्रह भाग २ नी छ) ५३७ ३४ गुरुनी आरति. ५५६ ३५ गुरु मंगळदीपक. ५५७ ३६ जिनेश्वरनी आरति. ५५८ ३७ मंगळ दीपक. ५५९ अनुक्रमणिका समाप्त. For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रस्तावना वगेरेनां पृष्ठ लोटी ६ १४ ७ १५ 1*3 १२ २२ १७ २६ २१ १९ २२ ६ २३ १५ २४ ३७ २९ ३० ३२ ३३ "" १३ १० "" १९ अमुलेखना पूजाओ २२ शक्यता १७ पजा १७ एम २२ पर्ण २६ 33 ३५ ३६ १३ ३७ २६ ३८ www.kobatirth.org S अशुद्धि शुद्धि पत्रक. अशुद्ध गुरुश्रीना छपाववाभां ग्रथमां रविसागारजी वस्तुतः चमत्कार प्रभावक परभात्मा वशे हशे आपने छोडवुं पट्टी ग्रहीओ एचो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only शुद्ध गुरुश्रीनी छपाववामां ग्रंथमां रविसागरजी वस्तुतः चमत्कारक प्रभाव परमात्मा बसे Munelle अमुळखना पूजाओ शक्यतः पूजा अने पूर्ण हरो आपनो छेडवुं पदवी ग्राहीओ एवो Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अशुद्ध पृष्ठ लीटी ___ मूल ग्रंथनां २२४ २५ ४ २८ १५ ३१ ७ ३३ १० ४० ११ हीरविजसरि इंन्द्रिय सरसे हीरविजयसूरि इन्द्रिय सरशे वत वर्ते गुरुप्रसंज्ञा इष्टानिष्टा मास अन्तरमा सविभाग ७० सि गुरुप्रशंसा इष्टानिष्ट मांस अन्तरमा संविभाग प्रभु दृश्यादृश्य अर्थावग्रहने दुःपसहसूरि. धूपं, दीपं, कच्छमां ११२ १२४ १२८ १४५ १५० १६३ &ะ * * * * * ๕ * * * दश्यादश्य अथार्वग्रहने दुःपहसूरि कच्छमा ड्री १७१ १८ पुरुषाय ब्रह्म १७६ १२ १८०४ पूरुषाय बह्मा ही हायमां चढाव, ४ २०२ * * २०४ ११ हायमां चढाव २ For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पृष्ठ- लीटी २११८-९ २१४ २ २३८ १८. २४१ १६ २४२ २१ २६९ २० २९० १५ २९६ ३. २९९ ११ ३०९ १५ ३१७ २० ३६० २० ३७६ २१ ३९४ १४ ३९५ ४०७ ४१२ २ १७ १६ १९ "" ४१३ ४२० ४२३ ४२६ १४ ४४४ १८ ४४९ १७ www.kobatirth.org अशुद्ध उपकारणो छाटा वंताने बाह्मानंतर ध्याई गौयम शोच सर्व क्षयोपश वारोरो आस्तव जिनं अकय सुसाल दीपा घरणेन्द्र ५४ स्वास श्रीसंस्वे० पंपाचार कर सवकु जडतां भ्राति वीर्ये For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुद्ध उपकरणो छांटा तवंताने बाह्यानंतर ध्याइ गोयम शौच सर्व क्षयोपशम वारोरे आस्रव जिन अक्य रसाळ दीवा धरणेन्द्र खास श्रीसंखे ० पंचाचार करतां सवळं जडमां भ्रांति वीर्ये Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पृष्ठ लीटी ४५५ १९ ४६२ ४६६ o mr ૪૮૪ ४९० ३ २१ १४ ५०३ ७-८ ५०६ २१ ५१४ १६ ५२९ १७ ५३८ ५३९ १७ ५४०. १० ५४६ १८ ५५३ १६ www.kobatirth.org अशुद्ध उपदेशोनुसारे कुसुमागी श्रीवस्त ह्रीं ५५ विषमीपं विश्वोद्वारक प्रगटया ओऽहं पुष्ट्यय पंच सहश्रकमल चेत्री शिद्धाचल ॐ ही For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुद्ध उपदेशानुसारे कुसुमांग श्रीवत्स ही विषयोपशुं विश्वोद्धारक प्रगट्या kubb पंच सहस्रकमल चैत्री सिद्धाचल ॐ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनाचार्य बुद्धिसागर मूरिकृत मात्रादि पूजा संग्रह. पूजासंग्रह. भाग २ जो. - - - श्रावकना एकवीश गुणनी पूजा. मंगल. परब्रह्म परमातमा, पानसरा महावीर; संघचतुर्विधतीर्थने, थाप्युं धोरमां धीर. ॥ श्रावकगुण एकवोशने, नाख्या शिवसुखकाज; तेनी पूजा विरचतां, प्रगटे गुणसाम्राज्य. ॥२॥ अष्टप्रकारी पूजना, प्रत्येक पूजा दीठ; श्रावकधर्मनी योग्यता, प्रगटे नासे रिष्ट. ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम अक्षुद्रगुण पूजा. राग. भैरवी-ए जमवा अनिलाष सरस मही ए जमवा अनिलाष. ए राग. गंभीर नरने नार, बने छे श्रावक जग जयकार; क्षुद्रविचाराचारने टाळे, निंदादोष तजनार. बने सागरसमगंभीर उदार ज, परदोष ढांके लगार. बने छे० १ प्राणांते परमर्म न हणतो, परदोष नहीं वदनार. बने छे० निजपरउपकारी ते थावे, तुच्छबुद्धिपरिहार. बने छे० २ निंदक बकवादी न उछांछळो, पामे श्रापक धर्म; बने छे० बुद्धिसागर श्रावकगुणने, धारे प्रथम ए मर्म. बने छे० ३ ॐ प० अक्षुद्रगुणलाभाय जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वितीयरूपगुण पूजा. अंगोपांगे पूर्ण जे, सुंदर इन्द्रिय पंच; योगबळे दुःखो सहे, प्रभावहेतु सञ्च. ॥१॥ होरोनो राग. बीजो गुण धरनार रे-जैनधर्म प्रचारे-धी० अंगोपांगे पूर्ण जे सुन्दर, गुणसुन्दरता धारे; पांचे इन्द्रिय पूरो धर्ममां;जीवन प्रेमे गाळे रे. जैन० बी० १ संकटपरिषह दुःख सहो जे, धर्ममां वृत्ति वाळे; धर्मप्रभावनानिमित्त थावे, आकृति गुणने धारे रे. जैन० बी० २ पुण्यधर्मकारक रुपवंत ज, नीति मार्गे चाले; बुद्धिसागर रुपवंतमानव, परमप्रभु घट भाळे रे. जैन० बी० ३ ॐ परम जावरूपगुणलानाय जलंग य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तृतीया सौम्यस्वभावगुणपूजा. दुहा. प्रकृति सौम्यस्वजाव जे, पापकर्म तजनार; तेनी संगत सहु करे, परशांति करनार. धन धन संप्रति साचो राजा - ए राग. प्रकृतिए जे सौम्यस्वजावी, करे न पापनां कर्म रे; संतगुरुनी सेवा करवा, शांत योग्य धरे धर्म रे. अन्यजनोने शांत करे जे, सुखे ते अन्योए सेव्य रे; परउपकारी खूब बने ते, परने होय आदेय रे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only प्रकृति० १ प्रकृति० २ एवा गुणने धारे श्रावक, धर्मनी योग्यता पाय रे; बुद्धिसागर शांतस्वभावी, श्रावक गुणे वखणाय रे. ॐ परम० सौम्यस्वभावगुणलाभाय जलं० य० स्वाहा ॥ प्रकृति० ३ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्थी लोकप्रियगुणपूजा. इह परलोक विरुकने, सेवे नहीं नरनार; दान विनयने शोलथी, लोकप्रिय ज हितकार. ॥१॥ प्रभात राग. श्रावकधर्मनां अधिकारी ते. जाणो नरने नारी रे, सर्वलोकना प्रेमने खेंचे, कार्य करे हितकारी रे. श्रावक० १ दान विनयने शीलथी शोभे, मैत्री सौथी वधारी रे; शुद्धप्रेमे लोकमां व्हालां, बनतां जग शुजकारी रे. श्रावक० २ अन्यजनोनुं धर्मविषे बहु,मान करावे विचारी रे बुफिसागर विश्वमा वल्लभ, धर्मप्रजावक भारी रे. श्रावक ३ ॐ प० लोकप्रियगुणलानाय जलं० य स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ पंचमी अक्रूरतागुणपूजा ॥ निर्दय क्रूरस्वभावीजे, धर्मयोग्य नहीं तेह; अक्रूर धर्मने योग्य छे, श्रावक धर्मी जेह. ॥१॥ धन्य धन्य सप्रंति साचो राजा. ए राग, श्रावकधर्मने योग्य ते थावे, अक्रूरनरने नारो रे क्रूरस्वभावीने क्रूरकर्मी, धर्मना नहि अधिकारी रे. श्रावक० १ अतिहिंसक अतिवै। जेओ, पापकर्मरत नारी रे अधिकारी नहीं तेओ धमें, अक्रूर छे ठाधिकारी रे. श्रावका २ प्रभु श्रीमहावीर उपदेशे एम, अक्रर थायो विचारी रे बुद्धिसागर श्रावक अक्रूर, जैनधर्म जयकारी रे. श्रावक ३ ॐ प० अकरगुणलाभाय जलं० य० स्वाहा ॥ षष्ठी पापभीरुता गुणपूजा. पापविचारप्रवृतिथी, जय पामे नरनार, धर्मयोग्य ते जाणवां, श्रावक गुण धरनार. For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रजात राग. मनवचकायथी पाप करंतां, जय पामे नरनारी रे; ते नरनारी धर्मने योग्य ज, थावे जगहितकारी रे. . मन० १ इह परलोक अपायो विचारी, पाप तजे गुणधारी रे; अपयशने जे कलंकथी बीवे, बीवे न धर्म लगारी रे. मन० २ द्रव्यक्षेत्रने कालने नावथी, वर्ते विवेके विचारीरे; बुद्धिसागर धर्मयोग्य ते, थावे धर्मावतारी रे. मन० ३ ॐ प० पापनीरुतागुणलानाय जलंग य० स्वाहा ॥ सप्तमी अशठतागुण पूजा. मनवचकायथी शठपणुं, धरे न जे नरनार; श्रावकधर्मना योग्य ते, सरल सत्यव्यवहार. १ For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राग उपरनो. मनवचकायथकी शठताने, त्यागे जे नरनारी रे, धर्ममिषे नहीं अन्यने वंचे, धर्मयोग्य निर्धारी रे. मन० १ धर्मीजनोने छेतरतो नहीं, प्रमाणिक गुणधारी रे, द्रोह कपटथी दूरे रहतो, विश्वासी सुखकारी रे. मन० २ मार्गानुसारीगुण धारी, प्रशस्य परहितकारी रे; बुद्धिसागर धर्मयोग्य ते, नरनारी बलिहारी रे. मन० ३ ॐ प० अशठतागुणलानाय जलंग यम् स्वाहा ॥ अष्टमी सुदाक्षिण्यगुणपूजा. सुदाक्षिण्यगुणे नवी, करे विश्व उपकार जोडे अन्यने धर्ममां, धर्मी बने नरनार... ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org उत्सवरंग वधामणां. ए राग ॥ सुदाक्षिण्यगुणी सदा, धर्मी नरनारी; अन्यनुं श्रेय करी शके, थावे उपकारो. सुदाक्षिण्य. १ दाक्षिण्यगुण ज्यां आवियो, अन्यगुण त्यां यावे; इर्ष्या भीति खेदने, तजी धर्मने पावे, सुदाक्षिण्य. २ अन्यनी प्रार्थना साधतो, देवगुरु आराधे; बुद्धिसागरधर्मनी, व्रतकरणी साधे. सुदाक्षिण्य. ३ ॐ० प० सुदाक्षिण्यगुण लाजाय - जलं० य० स्वाहा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवमी लज्जागुण पूजा. दुहा. धर्मबुद्धिकर लाजथी, दुर्गुणपापविनाश; धर्ममार्गमां वृत्तिने, थाय प्रवृत्ति खास ॥१॥ उत्सव रंगवधामणां. ए राग. सुलज्जागुण पामतां, दुष्टकाज न थावे; व्यसन अनीति कार्यथी, दूर रही शिव पावे. मातपितावृद्धसद्गुरु, शीख मानी चाले; गक मूके नहीं, सदाचारने पाळे. For Private And Personal Use Only सुलज्जा. १ सुसज्जा. २ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अधर्मपापथी लाजतो, श्रावक हितकारी बुद्धिसागरधर्मनी-, वाटे वळतो विचारी. सुलज्जा . ३ ॐ प० सुलज्जागुणलाभाय जलं या स्वाहा ॥ ॥ दशमी दयागुणपूजा॥ दया धर्मनुं मूल छे, दयाविना नहीं धर्म; दयाथकी तपजप अने, सफळां धर्मनां कर्म. ॥१॥ ए गुण वीरतणो न विसार, ए राग. प्रथम दयागुण प्रगट थयाथी, धर्मी बने नरनारीरे; दया नहीं त्यां धर्म न जाणो, दयाए धर्माधिकारीरे. प्रथम.१ अहिंसा ए धर्म परम छे, दया, आचारविचाररे; दयाविना प्रभु पामे न कोइ, आतमगुण न सुधारेरे. प्रथम. २ दयावंत, यतनाथ प्रवर्ते, श्रावकधर्मने पाळेरे; For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११ बुद्धिसागरधर्मी दयावंत, आप तरे पर तारेरे. प्रथम. ३ ॐ परम० दयागुणलाभाय जलं० य० स्वाहा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकादशमी मध्यस्थ सौम्यदृष्टिगुणपूजा. सौम्यदृष्टि मध्यस्थ ते, पामे जिनवरधर्म; पक्षपातवण सत्यथी, करतो धर्मनां कर्म. ॥ १ ॥ सिद्धारथनारे नंदन विनवुं. ए राग. सौम्यदृष्टिमध्यस्थगुणे खरां, धर्मी बने नरनार; दृष्टिरागनी वृत्ति छंडतां, पक्षपातपरिहार. For Private And Personal Use Only सौम्य. १ सर्वबाजू की सत्य तपासीने, साचो धर्म ग्रहंत; सत्य असत्यने परखे ज्ञानथी, धर्मथकी न पडत. शांति अने मध्यस्थता पामीने, धर्मी श्रावक थाय; बुद्धिसागरपरमातमप्रभु, सौम्य. ३ शुद्धतमपद पाय. ॐ प० मध्यस्थसौम्यदृष्टिगुणलाभाय जलं० य० स्वाहा ॥ सौम्य. २ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ર बारमो गुणानुरागगुण पूजा. दुहा. गुणरागी गुणवंतनो करे मान सत्कार; दुर्गुणीने उवेखतो, धर्मी बने जयकार. ॥ १ ॥ गिरुआरे गुण तुमतला. ए राग. गुणानुरागने धारतां, धर्मी बने नरनारीरे; दुर्गुण दोष व्यसन टळे, समकित प्रगटे भारीरे. श्वानना दंत वखाणिया, कृष्णे गुणना रागेरे; ज्यां त्यां गुण देखायने, अवगुणदृष्टि त्यागेरे. गुणरागे गुण जागता, समकित निर्मल थावेरे; बुद्धिसागर धर्मनी -, योग्यता साची पावेरे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir S For Private And Personal Use Only गुणानुराग. १ गुणानुराग. ३ ॐ प० गुणानुरागगुणलाभाय जलं० य० स्वाहा ॥ गुणानुराग. २ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रयोदशमो सत्कथनगुण पूजा. अशुभकथा करतां थकां, निन्दक पापी थाय; शुभकथाथी गुण वधे, विकथालवरी तजाय. ॥१॥ गिरुआरे गुण तुमतणा. ए राग. शुभकथनथी सद्गुणो, पामे नरने नारीरे; पापकथा कुथली टळे, जूठ टळे निर्धारीरे, शुभ. १ अनेकपापविपत्तिने, वैरक्लेश शमी जावेरे; धर्म विवेक प्रगट थतो, विश्वमां मान्य ते थावरे.शुभ.५ स्वपरहितकरसत्कथा, मीठी कथनी करवीरे; बुद्धिसागरधर्मनी, भाषासमिति धरवीरे. शुभ. ३ ॐ प० सत्कथनगुणलाभाय जलं या स्वाहा ॥ चौदमी सुपक्षयुक्तगुणपूजा. दुहा. सज्जन धर्मी सुपक्षने, धारे जे नरनार; धर्मी बनावे कुटुंबने, टाळे विघ्न उदार. ॥१॥ सुमतिनाथ गुणशुं मिलिजी. ए राग. सदाचारी अनुकुल भलोजी, धर्मी जेनो परिवार; For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुपक्ष तेने भय नहींजी, अंतराय, मन धार; श्रावक सुपक्षी थावे करी उपकार. १ अनुकुल संबंधीओने-, करतो रहे धरे धर्म; संकटविघ्नादिक हणीजी, करतो धर्मनां कर्म. श्रावक. २ अनेक उपाये संबंधीओने, अनुकुल करी वहे दक्ष; बुद्धिसागर सुखी सदाजी, जेने छे धर्मो सुपक्ष. श्रावक.३ ॐ परम सुपक्षयुक्तगुण लाभाय जलंग यण् स्वाहा॥ ॥ पन्नरमी दीर्घदर्शित्वगुणपूजा. ॥ परिणामे सुन्दर करे, दीर्घदर्शी सहुकाज; अधर्म दुःखथी दूर रहे, पामे सुखसाम्राज्य. ॥१॥ सुमतिनाथ गुणशुं मलीजी. ए राग. दीघदर्शी परिणामनेजी, देखी करे सहुकाज; अल्पक्लेश बहुलाननेजी, समजे खरो परमार्थ, श्रावक छे एवो दीर्घदर्शी जयकार. For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५ अधर्म्य साहस नहीं करेजी, अविचारी नहीं थाय, धर्मार्थने कामनेजी, मोक्षने साधे उपाय. श्रावक. २ द्रव्य क्षेत्रने कालने भावथी, करे विचारीने कर्म; बुद्धिसागर धर्मी एवा, श्रावक लहे शिवशर्म. श्रावक. ३ ॐ प० दीर्घदर्शित्वगुणलाभाय जलं० य० स्वाहा ॥ शोळमी विशेषज्ञगुणपूजा. ॥ दुहा. ॥ पक्षपात वण वस्तुना, गुणने दोषनो जाण; विशेषज्ञ धर्मार्ह ते, चारबुद्धियुत मान ॥ १॥ जगजीवन जगवाल हो. ए राग. विशेषज्ञ गुणे शोजतो, द्रव्यश्रावक गुणवंत, लालरे. सर्ववस्तुगुणदोषने, जाणे मतिश्रुतवंत. लालरे. द्रव्यक्षेत्रकालभावथी, द्रव्यलक्षण गुणजाण, लालरे, उत्सर्ग ज अपवादने, जाणी वर्ते प्रमाण. लालरे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयोचितज्ञने निश्चयो, व्यवहारमाही दक्ष, लालरे. For Private And Personal Use Only वि. १ वि. २ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि.३ बुद्धिसागरधर्मी ते, धरे न जगे पदा, लालरे. ॐ प० विशेषज्ञगुणलानाय जलं० य० स्वाहा ॥ ॥ सत्तरमो वृद्धानुगगुणपूजा ॥ परिणतबुद्धिमानने, अनुसरतां नरनार; वृद्धानुग थे सद्गुणो, पामे छे (नर्धार. ॥१॥ जगजीवन जगवालहो. ए राग. ज्ञानादिकगुणे वृद्ध जे, परिणामिकमतिमंत. लालरे; तेवा वृद्धनी सेवना, शिक्षा बहुगुणवंत. लालरे. ज्ञाना. १ वृद्धानुग गुणगण लहे, करे न पापाचार. लालरे; वृद्धसंगते बहु अनुभवो, पामे सुख निर्धार. लालरे. ज्ञाना. तपश्रुतधृतिध्यान अनुनवे, वृद्धगुरु सत्संग. लालरे. बुद्धिसागर सद्गुरु-, वृद्धानुग गुणरंग, खाखरे..ज्ञाना. ३ ॐ प० वृद्धानुगगुणलाभाय जलंग य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अढारमी विनयगुणपूजा. दुहा. विनय धर्मनुं मूल छे, विनये ज्ञान पमाय; विनय सहु गुणमां वडो, विनये सिद्धि थाय॥१॥ श्री दर्शन पद पामे प्राणो. ॥ राग. विनये सेवा भक्ति प्रगटे, प्रगटे केवलज्ञानरे; वैरादिकदोषो सहु शमता, धर्मी बने भगवानरे; विनयी बनो जगमा नरनारी. दर्शनझानचरणतपविनये, गुरुविनये गुण थायरे; औपचारिकविनये, दुर्गुण दोष पलायरे. विनयो. २ अच्युत्थान प्रणाम ने आसनदेवं वंदन गुरु बोलेरे; सांभळवो अनुगमने साधन, गुरु सेवे गण अमोलरे. विनयी०३ मातपितावृद्धधर्मगुरुनी, सेवानक्ति करंतरे; For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ बुद्धिसागर सद्गुरुविनयी, श्रावकधर्म धरंतरे. ॐ० प० विनयगुणलाभाय जलं० य० स्वाहा ॥ विनयी० ४ ॥ ओगणी शमी कृतज्ञगुणपूजा ॥ समकित प्रद्सद्गुरुतणो, माने बहु उपकार; कृतज्ञ, सर्वे सद्गुणो, पामे धर्मी धार. सोवे सोवे सारी रेंन गुमाइ ए राग. धर्मगुरु उपकारीवर्गना, उपकार माने जे नरनारी: ते सद्गुणनी वृद्धि पामे, सगुणा सगुराजन बलिहारी. मातपिता स्वामी गुरु उपकारने, जाणी सेवे निज हितधारी; अनंतगुणा उपकारी अनुक्रमे, गुण लोपे नहीं धर्माधिकारी. कृतगुणज्ञाता, उपकारकारक-, सेवो प्रेमे नरने नारी; बुद्धिसागरधर्मार्हत शुभ, मंगलमाल लहे सुखकारी. ॐ० प० कृतज्ञगुणलाभाय जलं० य० स्वाहा | धर्म • ३ For Private And Personal Use Only धर्म० १ धर्म० २ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीसमी परोपकारगुणपूजा. दुहा. धर्मस्वरूपने जाणीने, परोपकारी थाय; निष्कामी महासत्त्व ते, नरनारी शिवपाय. ॥१॥ उपकारी नरनार, धर्मी ते उपकारी नरनार० ॥ परहित करवामां जे तत्पर, अर्पाइ जाय सदाय; अन्यजनोने धर्ममां योजे, परमार्थे जीवन जाय. धर्मी०१ उपकारनुं फल मुक्ति इच्छे, भवमा रही निष्काम; तनमनधन अर्पे परमार्थे, पामे शिवपुर ठाम. धर्मी०२ परोपकारी धर्मी श्रावक, थाय मुनि भगवान् तीर्थकर आदि पदवीने, पामे केवलज्ञान. धर्मी०३ महासत्त्व नरनारी धन्य ते, देवगुरुना भक्तः For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुद्धिसागर परोपकारे, धर्मी सदा आसक्त. धर्मी०४ ॐ १० परोपकारगुणलाभाय जलं यः स्वाहा ॥ एकवीशमी लब्धलक्ष्यगुणपूजा. लब्धलक्ष्यगुणी जे बने, धर्मी ते नरनार: सर्वधर्मकरणी करे, शिवपदलक्ष्य विचार. ॥१॥ राग. कान्हरो. आतम ते परमातम करवा, लब्धलक्ष्यी छे जे नरनारी; समकितधारी धर्मकर्ममां-, वर्ते तम उपयोग धारी. आतम० १ जल्दी शीख धर्मनुं शिक्षण, शासनयोग्य छे धर्मावतारी; ध्येयादर्श छे आतमशुद्धि, तेनी छे जगमा बलिहारी. आतम०२ अनेकथर्मनां साधन साधे, स्वाधिकारे धर्म विचारी; धीर वीर ने शुद्धप्रेमी, उद्यमी उत्साह दिलमा भारी. आतम०३ For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्माभ्यासी देवगुरुनी, भक्ति करवामां हुशियारी; बुद्धिसागर लब्धलक्ष्यगुणी, द्रव्यथी श्रावक निज हितकारी. आतम०४ - ॥ कलश. धन्याश्री.॥ गाया गायारे महावीर जिनेश्वर गाया. श्रावकगुण एकवीश प्रकारी, पूजा रची प्रभु ध्याया; द्रव्यभावसमकितीश्रावक, गुण अनेक सुहायारे. महावीर० १ सम्यग्दृष्टिश्रावक गुणवंत. वीरप्रभुए जणाव्या; तरतमयोगे गुणना धारक, ज्ञान भक्ति उजमायारे. . महावीर०२ संवत् ओगणिश अन्याऐंशी. माघसुदि बीज गाया, सानन्दशहरे आनन्दल्हेरे, सर्वसंघ सुख पायारे. महावीर०३ For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभुमहावीर पट्टपरंपरातपगच्छशासनराया; जगगुरुहीरविजसूरि प्रगट्या, जारतसुजश छवायारे. . महावीर० ४ सागरशाखा पट्टपरंपरा-, नेमिसागरगुरुराया; तस शिष्य शांत संवेगी सनूरा, रविसागर वखणायारे. महावीर० ५ तस शिष्यसुखसागरगुरुराया, संवेगीशीर सुहाया; ज्ञानी क्रियावंतयोगीतपस्वी, संघप्रशंसा पायारे.. महावीर०६ तसशिष्य बुद्धिसागरसूरिए, पूजा रची सुख पाया; सकलसंघमा आनन्दमङ्गल-, शांति तुष्टि वर्तायारे. महावीर० ७ ॐ प० लब्धलक्ष्यगुणलाभाय जलंग य स्वाहा। aapa For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ भावभावक सत्तरगुणपूजा ॥ परमप्रभु परमातमा, महावीर ब्रह्मजिनेश: पूजुं वन्दु प्रेमथी, नासे सघळा क्लेश. १ गौतम आदि गणधरा, प्रणमी सद्गुरुपाय; भावभावकगुण सप्तदश - पूजा रचुं सुखदाय. ॥ २ ॥ द्रव्यभावथी सम किती, देवगुरुनो भक्त; गुरुपासे व्रत उच्चरे, देशविरति गुणवंत ॥ २ ॥ क्षयोपशम करी आठनो, साधुव्रतअभिलाष; करता श्रावक व्रतधरा, सत्तरगुणी छे खास ॥ ३ ॥ अनुक्रमे पूजा रचुं, सत्तरगुणनी खास; अष्टप्रकारी पूजना, करतां गुणगणवास. ( ४ ) श्रद्धाविवेकने सत्क्रिया, युक्त छे श्रावक भव्य; व्यवहार निश्चये वर्ततो, तेनां शुभ कर्तव्य ५ प्रथमा स्त्री मोहनिवारक पूजा. इडर आंबा यांबलीरे. ए राग. गुरुपासे समकितत्रतोरे, उच्चरे सुणे सिद्धांत; कृतत्रतकर्मा शीलगुणीरे, ऋजुव्यवहारी शांतरे -, साचो जाव श्रावक छे एह, थावे गुणगणगेहरे. For Private And Personal Use Only साचो • १ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४ धर्मक्रिया तत्पर सदारे, विनयी विवेकी जेह; सर्वसंघनक्ति करेरे, गुरुसंतभक्ति सुस्नेह रे. उत्सर्गने अपवादथी रे, वर्ते कालानुसार; सूत्र अर्थ सुणे सहुनयेरे, संयतव्रतरुचि धाररे. स्त्रीपर मोह नहीं करेरे, उपशमावे पुंवेद शमावे वेद श्राविकारे, टाळे मोहना खेदरे. वार अनंती जोगव्यारे, अनंतमैथुन जोग; तृप्ति न पाम्यो जीवडोरे, धारे मैथुन रोगरे. वैराग्यथी स्त्रोमोहनेरे, वारवा करे पुरुषार्थ; बुद्धिसागरनावथरे, श्रावकगुणपरमार्थरे; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only साचो० २ साचो. ३ साचो० ४ साचो० ५ साचो० ६ ॐ० प० स्त्री मोहनिवारणाय, जलं य० स्वाहा. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५ इन्द्रियविषयमोह निवारक गुणरूपाद्वितीया पूजा दुहा. ॥ ४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांचे इंन्द्रिय विषयमां-, रागरोषपरिणाम; तेहज जवनुं मूळ छे, अनंतदुःखनुंधाम इन्द्रियमोहने टाळवा, जावे वैराग्यजाव; श्रावक, संयत पदवरे, जाणी जवदुःखदाव ॥२॥ शुं कहुं कथनी म्हारी राज. शुं कहुं कथनी म्हारी ए राग. प्रभु महावीर मुजने तारो हो राज, महावीर मुजने तारो; म्हने आशरो एक छे व्हारो हो राज, आशरो एक छे व्हारो ॥ पांचे इन्द्रियविषयना रागे-, द्वेषे भवमां भटक्यो; सुखबुद्धिए जड विषयोमां, अंध बनीने अटक्यो हो राज. जड विषयोमां सुख दुःख जान्ति-, कल्पी निजसुख भूल्यो; आतमनुं सुख साधुं न जाण्युं, जाणी जडमां झुल्यो हो राज. महावीर० २ For Private And Personal Use Only ॥ १ ॥ महावीर० १ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकेक इन्द्रियविषयना मोहे, अनंतभवदुःख लहियो, मोहविना इन्द्रियविषयोथी, ज्ञानी न भवमा वहियो हो राज. महावीर० ३ शन्द्रियविषयोमांहि मुंझायो, अनंतदुःखडां पायो; भोगावलिकर्ममांहि न मुंझं, तुज शरणे हवे आयो हो राज. महावीर०४ विषयोमांहि आसक्त थउं नहि, निश्चय दिल निर्धायों; बद्धिसागरनिश्चयभावे, श्रावक, मोहथी न्यारो हो राज. महावीर० ५ ॐ ह्रीं श्री परम इन्द्रियविषयमोहनिवारणाय, जलं-य० स्वाहा ॥ तृतीया अर्थनिर्मोहपूजा. आसक्ति धरतो नहीं, अर्थविषे नविजीव; अर्थादिक ममता तजी, थावे जीवनो शिव. १ जलपंकजवत् दिलथकी, निर्लेपी नरनार, अर्थमा मोह नहीं धरे, मुनिव्रत लेवा प्यार. २ For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायाकारमीरे, माया मकारो चतुर सुजाण. ए राग. महावीर !! तुजथकीरे, मुजने साचो लाग्यो प्यार. धन्य धन्य तुं प्रभुरे, म्हारा आतमना आधार. सर्वप्रकारे परिग्रह लक्ष्मी-, मांहे मोह न धारुरे; तनधनसत्तासर्वे न्यारं, मानुं न कोइ मारु. म. १ अनंतनवमांही अडवडीयो, वित्तने मानी व्हालंरे; आतमज्ञाने जाग्यो अनुभव, निजधन निजमांधार्यु.म०२ दर्शनज्ञानचरण निजधन छे, जाणी दिल निधायुरे; वाहिर अर्थमां करुं न ममता, अहंवृत्तिने वालं. म०३ अर्थसंयोगवियोगनीमांहि, हर्ष शोक नहीं धारुरे; अर्थादि पुद्गलमा निर्मम-, वर्ती जीवन गाळु. म०४ पुण्योदयथी मळती लक्ष्मी, पापे टळती विचारुरे; बुद्धिसागर वैरागी थै, आतमधनने भालं.महावीर०५ चतुर्थी संसार असारताभावनागुणपूजा. दुःखफल दुःखरूप जाणतो, आ संसार असार; तत्र रति नहीं पामतो, धन्य श्रावक गुणधार.॥१॥ कानुडो न जाणे मोरीप्रीत. ए राग, चेतन !! आ संसार असार, महावीरप्रभुजी प्रकाशेरे, चेतन. For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जूठी छे काया माया, जेवा जलमां पडछाया; बाजीगरनी बाजी फोक, स्वप्नाजेव मायारे. मोहथी भवमां मुझे, साधुं न क्यारे सूजे; हारुं छे नहीं जगमां कोइ, एकलो परभव जाशेरे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only चेतन० १ चेतन० २ मारुं मान्युं सहु न्या, पडतुं रहेशे सहु प्यारुं; भोळा चेतीले झट भव्य !! खूब तुं खत्ता खाशेरे. माटीमां माटी मळशे, स्वारथ न एके सरसे चटपट चेतीले चेतन, धर्म ते साये याशेरे. जीवो जोतां कै चाल्या, चाले छे जोने टाला; बुद्धिसागरधर्मने धार, रहे दिल प्रभुविश्वासेरे. ॐ ० ० संसारस्य असारता भावनार्थ जलं० य० स्वाहा। चेतन० ५ चेतन० ३ चेतन० ४ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९ पंचमी जोगास तित्यागगुणपूजा ॥ क्षणसुखदायक जोग छे, अनंतदुःखदातार; विषयगृद्धिने नहि धरे, श्राद्ध धन्य अवतार. जोतां जोतां चाल्या गयारे जोडिया तारा ए राग. १ जोगथकी रोग झाझारे चेतन जाणो; भोळो थै भ्रमणाए भूलेरे, मर्म न छानो जोग. ॥ भोगमाटे जरमायो, पामर थे दुःख पायो; धरी लोन धायेोरे. विषयो विषना जेवा, जाणे मळे जिनदेवा; बहु चेतन० १ मोह तजे सुखमेवारे. चेतन चेतीने चालो, विषयवने न म्हालो; ठाठ पडी रहेशे ठालोरे. For Private And Personal Use Only चेतन० २ चेतन० ३ चेतन० ४ भोगनी भ्रमणाए मूल्यो, दुःखना दरियामां डूल्यो; फूलण तुं ? फोक फूल्यो रे. चेतीले चतुर ! चित्ते, ज्ञानने वैराग्यप्रीते; बुद्धिसागरधर्मरीतेरे. वेतन० ५ ॐ० प० भोगगृद्धिनिवारणाय ज० य० स्वाहा ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छडी निष्कामप्रवृत्तिपूर्वकती वारंजत्यागजाव गुण पूजा. ॥ ती वारंजने त्यागतो, कर्म करे निष्काम; नारंभमुनिसंशतो; श्रावक, गुणानिराम. ॥ धन्य धन्य संप्रति साचो राजा, ए राग. प्रभुमहावीरजिनेश्वर वंदो, सर्वजीव हितकारीरे; जावावकगुण वर्णव्यो साचो, तो वारंज परिहारीरे, धन्य महावीर जगजयकारी, सर्वारंभ परिहारीरे. तीव्रारंभने दूर निवारे; निष्काम आरंजकरणारे; निरारंज जे धर्मनी करणी, जाणे नवोदधितरणीरे. निरारंज मुनिवरने प्रसंशे, सर्वजीव पर रहेमरे; अनिर्वाहे जीवन कायें, वृत्ति करे घरी नेमरे. कर्मयोगी बनी कार्य करे सहु, निज अधिकार विचारीरे; For Private And Personal Use Only धन्य० १ धन्य० २ धन्य० ३ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अल्प दोष बहुधर्मदृष्टिए, वर्ते दयागुण धारे. आरंजपरित्यागी मुनि संशे, मुनित्रतनो अभिलाषीरे; बुद्धिसागर उपयोगी थे, धर्मोलासी रे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्य० ४ For Private And Personal Use Only धन्य० ५ ॐ० प० तीव्रारंजत्यागपूर्वक निष्कामप्रवृत्ति गुणलानाय जलं० य० स्वाहा ॥ सप्तमो गृहावासपाशवत् ज्ञानपूर्वक चारित्रमोहनीय जयार्थपुरुषार्थप्रवृत्तिगुणपूजा. दुहा. गृहावासने पाशसम, जाणे श्रावक भव्य; मोहनी कर्मने जीतवा, करे सत्य कर्तव्य. ॥ १ ॥ विमला नव करशो उच्चाट. ए राग. गृहस्थावास पाशसम, दुःखकर दिलमां धारतोरे; कुटुंब परिजन सर्वे, मोहराज्य अवधारतारे. गृहस्था. ॥ आधिउपाधिकारक जाणो, गृहावास बेडीसम मानो; Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२ पडे नहि चेंन कशुं त्यां; वैराग्ये, मन वाळतोरे. घरबंधनमां दुःखना दरिया, आस्रवकर्मथ लोको जरियाः ज्ञाने जाणी एवं, चारित्रमोहने वारतोरे. चारित्रमोह प्रगट बहु थातो, कुलव्याकुलजीवडो थातो; भमतुं मनडुं भृतनी पेठे, मनने मारतोरे. ते भव मुक्ति निश्चय जाणी, दीक्षा लेता प्रभुत्रिज्ञानी; धन्य छे त्यागी वर्गने, जन्म न फोगट हारतोरे. अंतरमां एवो वैरागी, पुरुषार्थी श्रावक वडभागी: बुद्धिसागर आतमबलथो, मोहनिवारतारे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only गृह० १ गृह० २ गृह० ३ गृह० ४ गृह० ५ ॐ परम० पाशवद्रगृहावास मान्यतागुणलाजाय जलं० य० स्वाहा ॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३ अष्टमी प्रभावनावर्णवादकारकगुणपूजा. आस्तिकभावथी युक्तने, वर्णवाद करनार; गुरुभक्तियुत श्राद्ध जे, दृढसमकित धरनार. कानुडो न जाणे मोरी प्रीत. ए राग. भावथी श्रावक सुन्दर धन्य, धर्मन | श्रद्धा धारीरे. देवगुरुनी भक्ति--, करवा प्रगटावे शक्ति, करे जे गुरुप्रसंज्ञा वेश, गुरु आशातना वारेरे. कोटि उपाये करतो, धर्मप्रभावना भारे; गुरुनी सेवामां इ, निज आतमने सुधारेरे. धीरज धरीने चाले, जैनशासन अजुवाळे, संघोन्नति करवामां शूर, क्यारे धर्म न हारेरे मिथ्यात्वबुद्धिनिवारे, तमसम सहु भाले; ૫ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only भावधी० ॥ भावधी ० १ भावथो० २ भावथो० ३ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४ नावे अन्यलोकने धर्मी, मरे नहि मोहने मारेरे. वारे; साधर्मिकभक्ति धारे, प्रगट्या दोषो सहु बुद्धिसागर धर्मी सत्य, निर्लेपभाव वधारेरे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावथो० ४ ॐ परम० प्रभावनावर्णवादगुणलाभाय, जलं० य० स्वाहा ॥ लोकनी देखादेखी न वाले, लोकसंज्ञा परिहारी; सम्यग्ज्ञाने प्रवृत्तिनिवृत्ति, करतो समयविचार . For Private And Personal Use Only भावधी ० ५ ॥ नवमी लोकसंज्ञात्यागगुणपूजा ॥ गाडरियाप्रवाहनी, रीति प्रवृत्ति त्याग; लौकिकसंज्ञा परिहरी, धरे धर्ममां राग ॥ १॥ आशावरी. अवसर बेर बेर नहि खावे ए राग. श्रावक समजो करे सत्यरागी, गाडरियारीति त्यागी. श्रावक० ॥ श्रावक० १ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३५ धोर वीर बनी संकट दुःखो-, सहेतो धर्माधिकारी; सत्याचारविचार तजीने, ग्रहे न जूठ लगारी. धर्मादिकमां हानिकारक -, दुष्टरुढि परिहारी; संघादिकनी पडतीनां कार्यों-, त्यागे शूरता धारी. नामर्द थैने शक्ति न गोपवे, कार्य करे सुविचारी; भीतिखेदने लज्जा त्यागी, कार्य करे दोष वारी. तमबल प्रगटावी वर्ते, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रावक० २ For Private And Personal Use Only श्रावक० ३ भावक० ४ आतमशुद्धिकारी; बुद्धिसागरवो यल्लासने, चढताभाव वधारो. ॐ० प० लोकसंज्ञात्यागगुणलाभाय श्रावक० ५ जलं० य० स्वाहा ॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशमी आगमादिपुरस्सरधर्मप्रवृत्तिरूपगुणपूजा. जैनागमने अनुसरी, धर्मकर्म करनार, परंपरागमशास्त्रनी, धर्मक्रिया धरनार प्रभु सुमतिरे सुमति आपो प्यारा. ए राग. ॥ प्रभुमहावीररे तुजवाणी जयकारी, जगजीवने शिव सुखकारी. ॥ तुज आगमना अनुसारेरे, पंचांगीपरंपरा धारेरे; धर्मकि रियारे करता नविजन तरिया, श्रावक सापेक्षज्ञाने भरिया. प्रभु. १ जैनशास्त्रोने साचां मानीरे, करे लेश न खेंचाताणीरे, देशकालादिनुं सर्वनयेज्ञान धारी, करे धर्मक्रिया अधिकारी. प्रभु•३ जैनशास्त्रनी श्रद्धा धारेरे, गुरुगमथी सुणीने विचारेरे; महाज्ञानीने पुछी शंका टाळे, कुतर्कीनास्तिकसंगवारे. प्रभु०१ For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वाधिकारे जैनागमाधारेरे, धर्मक्रिया करे बहुप्यारेरे; मोक्ष वण बोजु श्च्छे न क्यारेरे, कर्मयोगीरे बनी प्रवतें भारी; बुद्धिसागर जगजयकारी. प्रतु०४ ॐ परम जैनागमानुसारधर्मक्रियालाजाय जलंग-य-स्वाहा ॥ अग्यारमो यथाशक्तिदानादियाराधनगुणपूजा. दुहा. दानशीयलतपभावने, साधे शक्तिए दक्ष, यथालाभ बहुधर्मनो, तथा धरे गुणपक्ष. ॥१॥ माढ. राग अशाप्रीतिधारी, मोह नीवारी, सेवो चतुर्विधधर्म, दानशीयलतपनावनाभेदे, धर्मना चार प्रकार; शक्तिने गोपव्याविण अप्रमादे, आराधो थै हुशियाररे हानिवण सुविचारी, धर्मनी यारी, धारीने नरनार. श्रद्धा० १ For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ अनेकभेदे दानने देवं, शीयल धरो सुखकार; सर्वशुभाशुनइच्छा निरोधे, तप छे सत्य उदाररे, जावो जावना सारी, निर्मलकारी; शुद्धात मसुखकार. श्रद्धा० २ आतमधर्मना लाजनी रे, वृद्धिनां साधन सर्व, आत्मोपयोगे साधी एरे, टाळी ममतागर्वरे, वीरवचनविचारी, गुरुगमधारी, श्रावक सेवो धर्म. श्रद्धा० ३ निष्कामयात्मोपयोगयी रे, सुखदुःखमां समजाव; धारी कर्तव्यो साधतांरे, प्रगटे आतमधर्मरे, बुद्धिसागर गावे, निजगुण पावे, वर्तो यै अप्रमत्त. श्रद्धा० ४ ॥ बारमी धर्माराधनायां लज्जात्यागगुणपूजा ॥ दुहा । नास्तिक मूढजडवादियो, धर्म करतां हसंत. तेथी लाजे नहि जरा, श्रावक समकितवंत. ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९ जिम तरु फुले भमरो बेसे. ए राग. जावभावक जगजनहितकारी, व्रतगुणशुद्धिधारी; धर्म करतां लज्जानिवारी, शंकादिकपरिहारी रे. साचा श्रावकनी बलिहारी. नास्तिक मूढो धर्म करंतां, हसीने निंदा करता; प्रतिपक्ष | हेलनादिक करता, तो पण लज्जा न धरतारे. साचा० २ परिषद उपसर्गे स्थिर रहेता, दैन्यभाव परिहारी; मैत्र्यादिकजावना दिलधारी, जमनो मोह निवारीरे. साचा० ३ १ कामदेवादिकभावकपेठे, श्रावकत्रतगुणधारी; बुद्धिसागरवी राज्ञाये, वर्ते जग उपकारीरे. साचा० ४ ॐ परम० लज्जात्यागपूर्वकधर्माराधनार्थ जलं० - य० - स्वाहा ॥ तेरम समजाववर्तनगुणपूजा. देहस्थितिना हेतुमां, स्वजनगृहादिकमांच; वसे रागने द्वेषवण, ममता द्वेष न क्यांय For Private And Personal Use Only ॥१॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचम तप तमे करोरे प्राणी. ए राग. धन्य धन्य महावीरप्रभुजी, वंदु पूजुं ध्याउंरे; समभावे तुं केवलज्ञानने, पाम्यो प्रेमे गारे. धन्य०१ देहने आजीविकाघरधनमां, कुटुम्बमा समन्नावरे जडभावोपर रागने द्वेषने, करवो न आत्मस्वभावरे. धन्य०२ इष्टानिष्टासंयोगवियोग छे, पुण्यपाप अनुसार हर्षशोकसुखदुःखपरिणामी, थाउं नहीं निर्धाररे. धन्य०३ स्वजनगृहादिक क्षणिकस्वप्नसम, जाण न श्राद्ध, मुंझायरे, धावमातापरे जलपंकजवत, निलेपभाव सुहायरे. धन्य ४ सर्वसंग छतां अंतरनिसंग, निश्चय आतमवासरे; बुद्धिसागरसद्गुरुसंगी, भावथी श्रावक खासरे. धन्य०५ For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . ॥चउदशमी उपशमसारगुणपूजा.॥ दुहा. उपशमसार विचारवंत, हितकामी मध्यस्थ; जीताय नहिं जे मोहथ), त्यजे कदाग्रहपक्ष ॥१॥ ( आज सखी मोंये वालमा, मन मंदिर आये. ए राग.) प्रणमुं महावीरदेवने,चिदानंदगुणदरिया; उपशम शीखव्यो विश्वने, अनंतगुणथी नरिया. प्रणमुं० १ भावश्रावकने वर्णव्या, उपशमगुणधारो; रागने रोषे नहिं रहे-, ब्रह्मरूप विचारो. प्रणमुं०२ आर्तरौद्र बे वारता, देहाध्यास निवारी बातमपरहितकामी जे, मध्यस्थता धारी. प्रणमुं०-३ सर्वसंसारपदार्थमां, मुंझे नहीं रागधारी; साक्षीभाव, उपयोगथी, परपरिणति वारी. प्रणमुं०-१ For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२ सर्वकषायो शमावता, ज्ञानवैराग्य धारी; बुद्धिसागरभावथी-, श्राफ लहे भवपारी. प्रणमुं०५ ॥पन्नरमी आंतरप्रतिबंधत्यागगुणपूजा॥ द्रव्यक्षेत्रकालभावथी, अंतर प्रतिबन्ध त्याग; रागरोष प्रतिबन्ध छे, टळतां प्रगटे त्याग. ॥१॥ (ए व्रत जगमां दीवो मोरे प्यारे. ए राग. ) ज्ञान प्रतिबन्ध टाळे हो दिलथीज्ञानी प्रतिबन्ध टाळे द्रव्यक्षेत्रकालभावथो प्रतिबन्ध, रागरोष बे खाळे; क्षणभंगुर सहुवस्तु जाणी-, चडे न मोहना चाळेहो. दिलथी ज्ञानी० १ जडभावे जडवस्तु भाळे, आतम आप निहाळे; आतमनी ऋषि संभारे, निःसंगभावने धारे हो. दिलथी ज्ञानी० २ For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org સર विषयो मांही शुभाशुजवृत्ति, थाती न उपयोगकाळे; शुभाशुभ परिणाम विना तो, विषयो न जीवने मारे हो. दिलथी ज्ञानी० ३ शुभाशुनपं जड विषयोमां-, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानी न माने क्यारे; तीव्रनिकाचित पुण्यपापफल, जोगवे उपयोग धारे हो. दिलथी ज्ञानी० ४ रागशेष वण बाह्यमां छे नहीं, प्रतिबन्ध, ज्ञानीने क्यारे; कर्म न बांधे निर्जरे बहुलां, मोहने जीती मारे हो. आकाशपेठे निर्लेप भाळे, दिलथी ज्ञानी० ५ आतमजावने धारे; बुद्धिसागर अप्रतिबन्धी-, मौन हे छे भारे हो. दिलथी ज्ञानी० ६ ॥ सोळमी अनासक्तिगुणपूजा ॥ भोगादिकमां तृप्ति नहि, जाणी मनमां विरक्त, परानुरोधप्रवृत्ति पण, यांतर नहि खासक्त. ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (विमलाचलना वासी म्हाराव्हाला सेवकने विसारी नहीं विसारो नहीं. ए राग.) गृहावासी प्रभुमहावीर जिणंद, धन्य त्हारी दशा त्हारी दशा, प्रभु भोगी छतां नहीं भोगी-, विरक्त दिलमांहि वस्या-, मांहि वस्या.॥ अनंतपुण्य विपाके शाता-, लोग अने उपभोग; जोगवतां तृप्ति नहिं क्यारे, भोगादिक गण्यो रोग, जिणंदधन्य० १ पूर्व निकाचितकर्मना प्रेर्या-, परानुरोधे प्रवृत्ति; कामनोगमां करे तथापि, वैरागी, नहीं आसक्ति. जिणंदधन्य पांचे इन्द्रियकामभोगमां-, तृप्ति न मानो लेश; सर्व विरति धरी यातमसुखनी,चाहना धारी बेश. जिणंदधन्य० ३ इन्द्रादिक पण कोटि उपाये--, जोगे तृप्ति न पाय; For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षणिकजमविषयोथी न आनन्द, थयो न थाशे कदाय. जिणंदधन्य०४ एवी दशाए घरमा रहीने-, वर्ते नरनेनार; बुद्धिसागरप्रभुमहावार-, पद पामे निर्धार. जिणंदधन्य ५ ॐ परम जलं० य० स्वाहा ॥ ॥सत्तरमी सर्वविरतिचारित्रग्रहणेच्छा गुणपूजा॥ दुहा. श्राजकाल घरत्यागीने-थाइश मुनि अनगार; तीवेच्छा प्रगटे खरी, निराशंस व्यवहार. ॥१॥ ( तेजे तरणिथी वडोरेः ए राग.) धन्य धन्य महावीरप्रभुरे-, इच्छ्यो न घरमां वास; पराया पेठे वर्ततारजलपंकजवत् खासहो. जिनजी,संसारसागर तारशोरे, शरणागतने उगारशोरे, एक छे तुज आधार. १ बंदीखानाने पाशनीरे पेठे गृहस्थावास For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मानी नटनागरपेरेरे-; वर्त्या दिलमां उदासहो. जिनजी संसार० २ वेश्यावत् परसाथमारे, अंतरथी नहीं राग; विश्वोद्धार ने आत्मनारे-, हेते इच्छ्यो त्यागहो. जिनजी संसार० ३ केदखानामा केदीनेरे, रहेवानो नहीं राग; जालमां पंखोडां पड्यांरे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इच्छेछे झट त्यागहो. जिनजी संसार० ४ तेवी रीते नरनारीयोरे, तुजरीत ग्रहवा त्याग; बुद्धिसागर उसे रे, धारी ज्ञानवैराग्यहो. जिनजो संसार० ५ ॐ० प० जलं०-५० स्वाहा ॥ भै ॥ कलश. धन्याश्री ॥ गाया गायारे महावीरजिनेश्वर गाया. ॥ भावभावकना सत्तर गुणनो,पूजा री प्रभु ध्याया; For Private And Personal Use Only - Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७ सर्वविरति ग्रहवा अधिकारी-, जावश्रावक दर्शायारे. महावीर०-१ प्रत्याख्यानीक्षयोपशमथी, चरणरुचि प्रगटाया; बाठकषायना क्षयोपशमथी, सात्विकगुण घट पायारे. महावीर०२ संवत् ओगणिश अग्न्याऐंशी-, वसंतपंचमी गाया; सानन्दशहेरे आनन्दल्हेरे; पूजा रची सुख पायारे. महावीर०-३ महावीरपट्टपरंपग तपगन्न-, हीरविजयसूरिराया; पट्टपरंपरा रविसागर गुरु, नारतमा वखणायारे. महावीर०-४ तस शिष्यपट्टधर सुखसागरगुरु-, मुनिगणशान्त सुहाया; तस शिष्य बुद्धिसागरसूरिए-, पूजाथी प्रभुवीर गायारे. महावीर०-५ ॐ ह्री श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय श्रीमते जिनेन्द्राय जलं चंदनं पुष्पं धूपं दीपं अक्षतं नैवेद्यं फलं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ ॥श्रावकद्वादशव्रतपूजा॥ दुहा. परमेश्वर परमातमा, तीर्थकर जयकार; परब्रह्ममहावीरजिन, वीतरागसुखकार. पूजी वंदी प्रेमथी,-सर्व जिनेशने सिद्ध सदगुरु वंदो स्नेहथी, पंचपरमेष्ठि प्रसिद्ध २ श्रावकनां व्रत वारनी-, पूजा रचुं हितकार; बारव्रते प्रनु पूजीने-सद्गति लहे नरनार. ३ गीतार्थ गुरुने ग्रहे-गुर्वाज्ञाअनुसार; शास्त्रविधि अनुसारथो,-समकित ग्रहे नरनार. ४ देवगुरुने धर्मनो-, सेवा भक्तिमंत; अविरतिश्रावक जाणवा, व्रत अभिलाषी भक्त.. व्रत ग्रहे प्रत्याख्यानी जे, देशविरतिधर जाण; पंचमगुणस्थानकतणा, अधिकारी ते प्रमाण. ६ पंचाचारने पालता, टाळे सह अतिचार; बारव्रतोमा उपज्या-टाळे प्रतिक्रमी धार. ७ ज्ञानने. दर्शनचरणना-आठ आठ अतिचार; तपना बार ने वीर्य त्रण, संलेषणा पंचधार. ८ समकितना अतिचार पंच,-ओगणपचास ए जाण; द्वादशवत अतिचार सहु-पंचोत्तरले मान. For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरवाळे अतिचार सहु-एकशोचोवीस जाण; षट् आवश्यककरणीए, टाळे श्राद्ध प्रमाण. १० यथाशक्तिभंगेसहित-, व्रत उच्चरे गुरुपास; देवगुरुदर्शन करी, खावे श्रावक खास. ११ द्रव्यथकी व्रत उच्चरे, सद्गुरु सुणे उपदेश; मुनिव्रत ग्रहवा चाहना, टाळे कर्मना क्लेश. १२ श्रावकत्रत पूजा रचुं-अनुक्रमे सुखकार; समकितपूर्वक व्रतक्रिया, मुक्तिफल दातार. १३ प्रथमसम्यक्त्वारोपणे प्रथमजलपूजा. ॥ दुहा. ॥ देवगुरुने धर्मनो-श्रद्धा समकित खास; गुरु पासे समकितग्रहे-श्रावक धर्मावास ॥१॥ नयव्यवहारे समकितो-श्रावक ते कहेवाय; श्रकाविवेकक्रियाबले, व्रतधरी शिवपुर जाय. २ शंकाकंखा वारता, वितिगिच्छा परिहार, मिथ्यामतादि प्रशंसना-टाळे ते अतिचार. ३ कुतीर्थिपाखंडीनो-परिचयादिक त्याग; देवगुरुने धर्मनो-घोलमजीठसम राग, For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५८ ( वीसवरस घरमा वस्या रे - ए राग. ) सर्वज्ञ परमातम विभुरे, - महावीरदेव छो खास; वंदु पूजूं भावथी रे-, धाय बे तुज विश्वासहो; महावीर !!! देव खरो दिल धारियो रे, मिथ्यात्वमोहने वारियो रे; सत्य कथ्यो हें धर्म. 100 तुजजाषितदेवतत्त्वनी रे, गुरुनी श्रद्धा बेश; जैनधर्मश्रद्धा ग्रही रे जेथी न रहे जवक्लेशहो. - महावीरदेव० २ समकितवण व्रततपदया रेसाधने होय न मुक्ति; समकितयुतव्रततपथकी रे, मुक्ति निश्चय युक्तिहो. सर्वज्ञभाषिततत्त्वमांरे- समकिती नहीं मुंझाय; शंकादिक व्यतिचारने रे, टाळी निर्मल था यहो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरदेव० ३ महावीरदेव० ४ For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवगुरुधर्मतत्त्वनी रे-, श्रद्धाप्रीति अपार; बुद्धिसागरसमकिती रे, प्रभुभक्तो नरनारहो. महावीरदेव० ५ ॐ प० सम्यक्त्वारोपणार्थ जलं, य० स्वाहा । प्रथमस्थूलप्राणातिपातविरमणव्रतेद्विती याचन्दनपूजा.॥ दुहा. वध, बंधन, उविजेदने, प्राणीपर अतिभार; भक्तपानविच्छेद ए, पांच तजे अतिचार. ॥१॥ स्थूलप्राणीहिंसा तजे, देशविरतिधरजव्यः सवावसानी दया नली, श्रावकनुं कर्तव्य देवगुरुधर्मसंघनी, सेवाभक्तिकाज; बाह्यथकी हिंसाछतां, धर्म अहिंसाराज्य. निरपराधीप्राणीसहु-, यतनाए रक्षत; देशथी अहिंसक छतो,-सापेक्षे व्रतवंत. प्रमादयोगथी प्राणना-,नाशे हिंसा थाय, उत्सर्गने अपवादथी, व्रतसापेक्षा सुहाय For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (मारे दिवाळी थइ आज जिनमुख जोवाने. ए राग. प्रभुमहावीरजिनानगवंत, से सुखकारी; माराप्राणतणा आधार,पूजु हितकारी; || स्थूलप्राणातिपातथी विरमुं-, पंच अतिचार टाळु रे दयासमो नहीं धर्म को मोटो, जाणी व्रत अजुवाळु. सेतुंग--प्रभु १ सर्वकार्यमा यतना धारूं, प्रगट्या प्रमादने वारं रे उत्सर्ग अपवादे व्रत धरीतुज आणाए चालू. से--प्रभु० २ आतम उपयोगे दोष टाढं-, पहेलं व्रत शुज पाळु रे; हिंसा अहिंसाजेद विचारु-, साधनयोग संभालं. सेवु-प्रभु० ३ अधर्मयुद्धथी दूरे रहे,धर्मयुद्धथी चालुं रे, देवगुरुधर्मसंघनी भक्ते-, धर्मस्वार्थे न अकारु. सेतुं. प्रभु For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंदने पूर्जु व्रतने धारी, तुज भक्ति बहुप्यारी रे बुद्धिसागर जगजयकारीमहावीर तुज बलिहारी. सेवु-प्रभु०-५ ॐ प० चन्दनं या स्वाहा ॥ द्वितीयस्थूलमृषावादविरमणव्रते तृतीयावासपूजा. दुहा. स्थलमृषावादपंचथी-विरमद् व्रत जयकार; द्रव्यादिक उत्सर्गने,-अपवादे हितकार. ॥१॥ पंच तजी अतिचारने, प्रभु पूजे नरनार; आनव परभव सुख लहे,-शिवपद मळे निर्धार. २ (चोमाशी पार| आवे, ए राग. ॥) प्रभुमहावीरजिन जयकारी, पूनुं प्रेमथी जगहितकारी, सत्यव्रत भाख्यु सुखकारी, पाळे तेनी छे बलिहारी , महावीरप्रभु जयकारी महावीरः १ For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कन्यालीक गोवालीक त्याएं, जोमालीक तजी घट जाएं; न्यास अपहारथी दूर भागुं -, सत्यपंथनी लगनीमां लागुं रे. महावोर० १ सहसा झूठ बोलवु वारुं; गुप्तमर्मरहस्यने धारुं, दारासंबंधी जूट निवारुं, मृषा उपदेशने झट टाळु रे. महावीर० ३ जवसाक्षी कूटलेख टाळं-, व्रत ग्रही उपयोगे संजाळु सत्य जूठ सापेक्षे विचारु-, अल्पदोष बहुधर्मने धारूरे. पांच मोटकुं जूट निवारी, पंच अतिचार पडिकमी वारी; सत्यना बहु जेद विचारी-, वर्तु प्रजु आणाने धारी रे. महावीर० ५ बीजुं व्रत उच्चरी नरनारी; अंशधी सत्यव्रत आचारी; प्रभु महावीरआणाधारी, बुद्धिसागरधर्माधिकारी रे. For Private And Personal Use Only महाबीर० ४ महावीर० ६ ॐ परम० वासं य० स्वाहा ॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५ तृतीयस्थूलअदत्तादानविरमणवते चतु र्थपुष्पमालपूजा॥ दुहा. स्थूलचोरीथी विरमद्-त्रीजुंवत ते जाण; पांच अतिचार टाळवा-व्यवहाररे व्रत मान उत्सर्गे अपवादथी-त्रीजुं अणुव्रतन्याय राज्यदंड जेथी थतो,-चोरी ते कहेवाय%; ( हवे शक्र सुघोषा वजावे. ए. गग.) प्रभुमहावीरजी जयकारी, पुष्पमालथी पूजीए नारी; स्थूलचोरीने परिहरीए, चोरीधनथी पेट न भरीए. ॥ प्रभुमहावारदेवने जजीप, निज आतमगुणगण सजीए; चोरीनो माल लइए न क्यारे, चोरी करावीए नहिं क्यारे. प्रभु भेळसेळ न मालमा करीए-, तेम तद्रूपता परिहरिए राज्यविरुद्ध दाणनी चोरी; परचोरी न लए व्होरी; For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कूडां तोल मान परिहरीए-, प्रमाणिकपणे धर्म धरीए, प्रभु०२ उत्सर्गे पांच अतिचारो, तजी धरीए नीति आचारो; बुद्धिसागरव्रत शुभ धारी, बने धर्मी जलां नरनारी. प्रभु० ३ ॐ प० पुष्पमालां य० स्वाहा. चतुर्थस्वदारासंतोषपरस्त्रीत्यागरूपव्रत पंचमे दीपकपूजा॥ ___ दोहरा. निजदारा संतोषी जे-करे परस्त्रीत्याग; गृहस्थचोथु व्रत नलं, सहुव्रतमा वडभाग पांचे अतिचारो तजी, पाळे जे नरनार, दीपके प्रभुने पूजतां, मुक्ति मळे निर्धार (ए व्रत जगमां दीवो, मेरे प्यारे. ए राग.) चोथु व्रत सुखकारी हो आतम! चोथु वत सुखकारी. ॥ सर्वव्रतो नदीयो जस आगळ, सागरसम जयकारो; निजनारी संतोषी श्रावक, परदारा परिहारीहो... आतम ! चोथु ? For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपरिगृहीता इत्वरकामिनी-, क्रोडादोष निवारी; अन्य विवाहने तीव्रकामोदय-, पण तिचार परिहारीहो. आतम! चोथुं० २ गृहस्थनरनारीने परस्पर-, नववाडी हितकारी; धर्मशास्त्रवैदक अनुसारे, वीर्यरक्षण सुःखकारीहो. खातम! चोथुं० ३ रोगशोकजी तिदुःखवारी, आयुष्यरक्षण भारी; आरोग्यबळ सुख आपे सारुं-, वृत्ति टाळो विकारीहो. आतम ! चोथुं० ४ अत्यंतकामविचारप्रवृत्ति, त्यागी धन्य नरनारी; बुद्धिसागरप्रभु दीपकथी-, पूजो आनन्दकारी हो. आतम! चोथुं० ५ ॐ परम० दीपं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥पंचमपरिग्रहपरिमाणवते षष्ठीधूपपूजा॥ दुहा. परिग्रह परिमाणव्रत, पंचम अणुव्रत सार; मूर्छानापरिमाणथी, मनस्थिरता सुखकार. ॥१॥ पांचे अतिचारो त्यजी, धूपे प्रभु पूजंत; नरनारी स्वर शिववरे, अनंतशर्म लहंत. ॥२॥ (शुं कहुं कथनी मारी हो राज ! शं कई कथनी मारी. ए राग.) प्रभुमहावीर जिनवर तारो हो राज, महावीर जिनवर तारो; प्रजु तार्यावण नथी आरो हो राज!!! महावीर० लाख चोराशी वार अनंती, परिग्रहममताए फरियो; लक्ष्मीलोभे बहु लोभायो, मोही थैने मरियो हो राज !!! महावीर ॥१॥ परिग्रहग्रहवश ठाम न ठरियो, आधिउपाधि वरियो; हडकायाश्वानवत् वेळे वळियो, मोहे मार्यो दुःखथीभरियोहोराज! महावीर०-॥२॥ लोभनी संज्ञाए भव हार्यों, क्षण पण त्हने न संभाों ; For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकेन्द्रीआदि जन्मोमा, लोभथको लुटायो हो राज!!! महावोर० ॥३॥ परिग्रहपरिमाणवतने धारूं, पंच अतिचार वारं; धन धान्य क्षेत्र वास्तु परिग्रह, बे अतिचार निवारूं हो राज!!! महावीर--॥४॥ रुप्य सुवर्ण कुप्य परिमाण, द्विपदादिकवत धारूं; उपयोगे अतिचार निवारं, आतमधन गणुं प्यारं हो राज !!! महावीर०-५ नवविधपरिग्रह साथे न आवे, आतम एकलो जावे; जडमां सुख दुःख कल्पना जूठी, ज्ञानी निश्चय पावे हो राज!!! महावीर० -६ ज्ञानानन्द बातमधन जाणी, तुज शरणे प्रभु श्राव्यो; बुद्धिसागर प्रभुमहावीर, तुज चरणे चित्त लाव्यो हो राज!!!महावीर-७ ॐo--प-धूपं यक- स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ छडे दिक्परिमाणत्रते सप्तमीपुष्पपूजा ॥ ३ दुहा. छहुँ दिक्परिमाणव्रत, उच्चरतां सुख थाय; उर्ध्व अधः दिक्चारनुं, परिमाण ज पच्चखाय. १ उर्ध्व अधः तिर्च्छिदिशा--, उल्लंघे यतिचार; यो अधिक दिशिमां करे, चोथो अतिचारधार. २ दिशिमार्गे स्मृतिफेरथी, संदेह पांचमो जाण; पहेला गुणवतने ग्रहे, आतमगुण छे प्रमाण. ( अली साहेली गुरुवाणी सांभळवा उभीं रहेने. ए राग. ) महावीरप्रभु त्रिशलानन्दन सर्व जगत् उपकारी. केवलज्ञानी परमेश्वर परमातम तुज बलिहारीतुज सदुपदेशो गुणकारी, आदरतां धन्य ते नरनारी; हणी कर्म लहे शिवसुख भारी. दिशिविदिशिमोहे फरवानुं, परिमाण करे मन ठरवानुं; निर्मोहे क्यारे न मरवानुं. प्रभु तुजपर मुज लगनी लागी, मिथ्या प्रान्ति दूरे जागी; आतम चढती वेळा जागी. मुजभक्तिथी च्या आवो, महावीर० १ For Private And Personal Use Only महावीर० २ महावीर० ३ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिशलानन्दन हारे थावो; गुणवतमां गुणगण प्रगटावो. महावीर.४ पुष्पे पूजी प्रनुगुण धरद्यु, उपयोगे शुद्धगुणो करगुं; बुद्धिसागरप्रभुपद वरशुं... महावीर० ५ ॐ--40 -पुष्पं यजामहे स्वाहा ॥ ॥सप्तमभोगोपभोगविरमणव्रते अष्टमी अष्टमाङ्गलिकपूजा॥ दुहा। लोगोपभोगथी विरमवु, रुचिशक्तिअनुसार; श्रावकनुं व्रत सातमुं-गुणकारी सुखकार. १ अष्टमंगलथो पूजीए-,महावीर जिनभगवान् ; सप्तमवतने उच्चरीए-,बनीए बहु गुणवान्. २ (सिद्धचक्रपदसेवाकीजे. ए राग.) पूजी महावीरप्रभु जयकारी, सर्वविश्व उपकारीजी; लोगोपनोगविरमणव्रतसातमुं.., उच्चरे नरने नारी, वीरप्रभु सेवोजी. चोवीशमा जिनराज, अरिहंत देवाजा. १ For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मदिरामासमधुने माखण.., रात्रीभोजन त्यागोजी; अभक्ष्यबावीश बत्रीशअनंतकाय, त्यागी घरो जिनरागो. वीरप्रभु०२ सचित्तप्रतिबद्ध अप्पोल दुप्पोल, तुच्छौषधि नहि खावीजी; ए पांचे अतिचारने टाळी--, लेजो मनडुं मनावो. वीरप्रभु०३ अन्नादिक भोग उपभोग जाणो, गृहनारी परिभोगोजी; यथाशक्तिरुचिथी विरमीए--, गणवा भोगने रोगो. वीरप्रभु०४ इंगाल वनने साडी नाडी.., फोडोकर्मने तजीएजी; दंत लाख रस केशने विष पंच, कुवाणिज्य न नजीए. वीरप्रभु०५ यंत्रपीलन निलोछन दवदान, सरदहशोषण चारोजी; पांचमुं असतीपोषण वारो, टाळो पन्नर अतिचारो. वीरप्रभु०६ For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीश अतिचार प्रगटतां वारी, धरीए व्रत गुणकारीजी; बुद्धिसागर धन्य छे एवा, श्रावक व्रत गुणधारी. वीरप्रभु०७ ॐ परम अष्टमंगलानि यः स्वाहा ॥ ॥आठमी अनर्थदंडविरमणवते नवमी अक्षतपूजा॥ स्वार्थविना दंडावg, अनर्थदंड ते जाण; मनवचकायथी विरम, आठमुं व्रत गुणखाण. १ कुटुंब आदि कारणे, पापनां कर्म कराय; अनर्थदंड न ते कयो, स्वार्थिकदंड गणार. २ (भमरा भूधरसें नाव्यो. ए राग.) महावीरजिनवर पूजीजे, व्रत आठमुं भावधरी लीजे; अनरथदंडे नहि मन दीजेरे, महावीर पूजो सुखकारी; व्रत आठमुं ग्रहो नरनेनारीरे. महावीर० १ For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपध्यानाचरितने परिहरीए--, चउविकथा पाप नहीं करीए; प्रमादाचरित दूषण हरीएरे. महावीर० २ हिंसाप्रदान न आचरीए, पाप उपदेशथी पाछा फरीए; एम अनरथदंडने परिहरीएरे. महावीर०-३ निजस्वार्थविना अनरथकारी, शस्त्रादिब्रूटी परिहारी; तजीए को उपद्रवकारी रे. महावीर०-४ वेश्यादिक नाटक त्यागीजे, यूतादिकथी दूर भागीजे; गुण व्रत आदरमा लागीजेरे. महावीर० ५ कंदर्प कौकुच्य वे अतिचारो, मुखरी अधिकरणने झट वारो; भोग अतिरिक्त अतिचारने वारोरे. महावीर० ६ निंदी गीं सह अतिचारो, मानवभव फोगट नहीं हारो; बुद्धिसागर आतम तारोरे. महावारण ७ ॐ प० अक्षतं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६५ नवमे सामायिकव्रतेदशमीदपर्णपूजा दुहा. उत्कृष्ट समजावथी, सामायिकत्रतधार; क्षणमां केवलज्ञानने, पामे नरने नार ॥१॥ ( तप पदने पूजीजे हो प्राणी, तप पदने पूजीजे. ए. राग. ) सामायिकत्रत धारुं हो बेघडी; सामायिकत्रत धारुं; प्रभुमहावीर पूजी बंदी, सावद्ययोग निवारुं; मनवचतनुना दुःप्रणिधानना, arr अतिचार वारु हो .. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दश दश मनवच बार तनुना-, बत्रीशदोष निवारु; समभावे आतमने भावुं, आतमरूप संभारुं हो ૯ अनादर न्यूनकाले पाळं, अनवस्थानने टाळं उपयोगशून्य ए पांच अतिचार--, प्रगट्या झट संहारु हो..... .... .... बेघडी ० १ For Private And Personal Use Only 403596 बेघडी ० २ . बेघमी० ३ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बे घमी सामायिकनी तोलेइन्द्रनी पदवी न आवे; समतायोग छे सौमां मोटो, क्षणमा मुक्ति थावे हो............. ....बेघडी० ४ समताथी रागरोष निवारं, आतममा मन वाळु समभावे प्रभुरूप बनीने, आप प्रभुरूप भालु हो................बेघडो० ५ मानवभव मळियो नहिं हालं, मोह अरिने मारूं; परपुद्गलमां म्हारु न हारुं,शुभाशुभनाव टाळु हो..........बेघडो० ६ शुद्धातम उपयोगने धारु, आपोआपने ता; बुद्धिसागर ब्रह्म संभालं,घटमां प्रजुने निहाळु हो............बेघडो० ७ ॐ परमा दर्पणं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशमे देशावकाशिकव्रते अग्यारमी नैवेद्यपूजा. दुहा. देशावगाशिकव्रतधरी, चउदनियमसंखेव; करतां निजगुण संपजे, नासे मोहकुटेव. ॥१॥ (श्री श्रेयांसजिन अंतरजामी. ए राग.) प्रभुमहावीर वंदी पूजी,दशमुंबत धलं सारे; घउदनियम संक्षेपी प्रतिदिन, तृष्णामोह निवारे. प्रभु०१ आणवणे, प्रेषवण बे अतिचार, शब्दानुपाति टाळुरे; रूपानुपाती पुद्गलउत्क्षेप--, पांच अतिचार वारे. प्रभु०२ अन्यव्रतोना नियमनो संक्षेप, दशमा व्रतमां धारुरे; गंठसी आदि सर्व समाता, विवेके व्रतने विचारुरे. प्रभु०३ मोहमहाविषधरविष हणवा, जांगुलोसमवत जाणोरे, For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६८ अन्तरमा आतम उपयोगे, रही निश्चय व्रत आणोरे. मोहादिपरभावथी न्यारुं--, शुद्धतमपद प्यारुंरे; बुद्धिसागरघट उजियारुं, परमानन्दघट भालुंरे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु० ४ प्रभु० ५ ॐ० परम० - नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ अग्यारमी पौषधव्रते बारमी ध्वजपूजा. दुहा. ॥ पौषधत्रत अगियारमुं-, उच्चरवुं गुरुपास; तिचार पंच वावा, शिक्षाव्रत शुभखास. १ For Private And Personal Use Only ( सांभळशी सुनि संयमरागे उपशम श्रेणि चडियारे. ए राग . ) प्रभुमहावीर पूजी बंदी, जावथ पौषध करिएरे; निरुपाधिक तमगुण समरी, भवसागरने तरिएरे. सावद्ययोगने पञ्चखीनावे, सामायिक उच्चरियेरे; प्रभु० १ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वथी देशी आहार पौषध, तनुसत्कार परिहरीएरे. प्रभु०२ सर्वथकी ब्रह्मचर्यनो पौषध, उच्चरी निवृत्ति धरीएरे; सर्वथकी अव्यापार पौषध, उच्चरी सावद्य हरोएरे. प्रभु० ३ जावदिवस अहोरात्री वा पौषध, दुविध त्रिविध नंगेरे; पौषधशाला मंदिर घरमां-, उच्चरिये मनरंगेरे प्रभु०४ उपवास वा एकासण करीनेधर्मव्यापारने करीएरे; दर्शनज्ञानचरणनी शुद्धि-, आतमध्यानने धरीएरे. प्र० ५ अप्पडिले हिअ दुप्पडिले हिय--, शय्या संथार जाणोरे; अप्पमजिअ आदि शय्या--, बीजो मनमा आगोरे. प्रभु०६ अप्पडिले हिअ आदि उच्चार--, पासवण भू धारोरे; For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अप्रमार्जित आदि उच्चारपासवण भूमि विचारोरे. प्रभु० ७ नोभणाजोए पांचमो जाणो, पंचने झट परिहरीएरे; बुद्धिसागर आत्मरमणता--, पुष्टि पौषध वरीएरे. प्रभु० ८ ॐ प० ध्वजय० स्वाहा. बारमा अतिथिसविभागवते त्रयोदश मीफलपूजा. दुहा. अतिथि संविभागवत-, बार, छे सुखकार; स्वर्गने शिवफल आपतुं, उच्चरीए हितकार. १ हर्षाश्रु गदगद वचन, रोमांच विकसित थाय; मुनिवरने वहोवरावतां, श्रावक मुक्ति पाय. २ सञ्चित्त निक्षेपने पिधान, व्यपदेश मत्सर चार, कालातिक्रम पांचमो, पांच तजो अतिचार. ३ पौषधपारणे व्रततणो,-आचरवो आचार; वहोराचीने जमे पछी-,श्रावकव्रतव्यवहार. ४ For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१ मुनि० १ ( मनमंदिर आवारे कहुं एक वातलडी. ए राग. ) मुनिने दान देइरे, श्रावक हर्ष धरे; मेघनी पेढे वर्षेरे, श्रद्धाप्रीति बळे. साखी. विनति करी सद्गुरु मुनि, पधरावे निजघेर; व्यसन आपे बेसवा, माने आनन्दल्हेर. हर्षोल्लासथी राचेरे, चढताभावे घणो गृहावासनो सारजरे - मुनिने दान गणो. मुनि० - २ साखी. मुनि देखी सामो जतो- दश डगलां पूठ जाय; यादरने सत्कारथी - भक्तिनुं फल पाय. मुनि दाने न आवेरे-खाय न श्राद्ध खरो; छेवटे दिशि देखीरे - जमे निश्चयने धर्यो. मुनि० ३ साखो. प्रतिदिन मुनिवर श्रमणी --, आहारादिक दान; देवामां संतोष नहि, उत्तम श्रावक जाए. श्रावक पुणिया पेठेरे, दानने देतो सदा; खेदादिदोष टाळेरे-- आस्तिकजावे मुदा मुनि० ४ साखी. तद्धेतुने अमृते-दान दिये नरनार; दाने मुक्ति नक्की छे, शंका नहीं लगार, For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीरणशेठनी पेठेरे, दाननो राग धरे; बुद्धिसागरदानीरे, श्रावक सुखडां वरे. मुनि० ५ ॐ प० फलं० य स्वाहा ॥ कलश. गायो गायोरे महावीर जिनेश्वर गायो. श्रावक द्वादश तनी पूजा, विरची प्रमुगुण ध्यायो; श्रावकबतकल्पवृक्षतस्ना-, पुष्पे प्रभुने वधायोरे. महावीर०..१ प्रभुमहावीरपट्टपरंपरा-, तपगच्छजगगुरुरायो; हीरविजयमूरिपट्टपरंपरा-, नेमिसागर मुनिरायोरे. महावीर०२ रविसमर विसागरगुरुमहिमा,भारत सुजश छवायो; तसशिष्यसुखसागरगुरु संघमां, सत्यचारित्रे सुहायो रे. महावीर० ३ संवत् ओगणिश अगन्याऐंशी, माघपुनम विरचायोः For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीर०४ सानन्दशहरमां आनंदल्हेरे, संघमां हर्ष वधायोरे. पूजा भणेने भणावे सुणेजे--, संघ सकल नरनारी; बुद्धिसागर मंगलमाला.., पामो आनंद भारीरे. महावीर० ५ ॥ बारभावनानीपूजा॥ परमप्रभु परमातमा, महावीरजिनवरदेव गौतमयादिगणधरा, पूजं करूं शुभसेव. जिनवाणी सदगुरु नमुं, नमुं संघ जयकार: बारनावनानी रचुं, पूजा शिवसुखकार. प्रत्येकपूजा अष्टधा,-पूजा साधन सार; द्रव्यभावथी पूजना-,आतमशुद्धिकार. अनित्य अशरण भव अने, एकत्व ज अन्यत्वः अशुचि आस्रव संवरा,निर्जराए होय सत्त्व. ४ लोकस्वभावनी भावना--,बोधिदुर्लन जाण; धर्मकथक अरिहंत छे, बार छे ए गुणखाण. ५ बारे भावना जावतां, प्रगटे छे वैराग्य; वैराग्ये विरति थती, प्रगटे चारित्रत्याग. For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७४ त्यागथी केवलज्ञाननो, आविर्भाव ज थाय; सर्वकर्मना क्षय की, आतम मुक्ति पाय. द्वादशभावनाए प्रभु --, पूजी जे हितकार; आत्मशुद्धि झट यती, ज्ञानानन्दपद सार. बारजावना जावतां, ममता अहंता जाय; आतम ते परमातमा, शांतरसे प्रगटाय. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( समकितनुं मूल जाणीएजी. ए राग. ) अनित्य तनधन कारमुंजी--, पुत्रादिक परिवार; विजळी चमकारा समुजी --, यौवन निश्चय धाररे. -- ॥ प्रथमअनित्यभावनापूजा || दुहा. अनित्य जग सहुवस्तु छे, तनधनने घरबार; लक्ष्मी विद्युत्सम क्षणिक, स्वप्ननी लीला धार. १ तनु यौवन प्रभुता क्षणिक, - नदीना पूर समान; जलना परपोटा समो, कुटुम्बनो परिवार. बाहिर सुखनां साधनो, क्षणमां विणशी जाय; एवं जाणी तीने, प्रभु पूजे सुख थाय. ३ For Private And Personal Use Only ८ ९ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५ चेतन!!! अनित्य सघळु जाण-- कर नहीं मोहने मानरे. चेतन!! अ०१ देखाती सहु वस्तुयोजी-, राज्यादिक घरबार; पाणीपरपोटा समुंजी, इन्द्रजालसम धाररे. चेतन०-२ जन्मनी साथे मरण छेजी, प्रगटे तेनोरे नाश; अमर न को जगमा रह्याजी.. जडमां न सुखनी आशरे... चेतन !o-३ बाजीगर बाजीसमाजी, जडविषयोना संबन्ध; मोहथी अज्ञानीजनोजी, कर्मबन्धथी अन्धरे... चेतन!०४ सर्वसंयोग वियोग छेजी, ममता अहंता शी? जोय; आसक्ति करवी नहींजी, जाणे निर्लेप होयरे.-- चेतन० ५ जिनवरमहावीरे उपदिशीजी, अनित्यनावना बेश; For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६ भावतो मोहाहिविष टळेजी, जन्ममरण टळे क्लेशरे. चेतन०६ भरत बाहुबली शिव वर्याजी, अनिका गजसुकुमाल; प्रत्येकबुद्ध शिवसुख वर्याजी, आतममां मन वाळरे. चेतन०-७ अनित्यनावना नावीएजी--, पूजीए वीरजिनेश; बुद्धिसागर उपदिशेजी, रहे नहीं रागने द्वेषरे...............चेतन !-८ ॐ प० जलं. य स्वाहा ॥ बीजी अशरणभावनापूजा. शरणुं नहीं संसारमां,-मरता जीवने कोइ; परमातम एक शरण छे-,जोशो जोश्ने जोइ. १ मृत्युथी कोनहीं रक्षतुं-,जन्म्या मरता खास; जाणी चार शरण करी-,पामो शिवपुरवास. २ .: (विमला नव करशो उच्चाट के वहेला आवशुरे. राग.) जगमां प्रभुवण शरणं न कोय--, खरं ए विचारशोरे. For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | ৩৩ चेतन !!! चेती झटपट, आतमने उद्धारशोरे. जगमां-॥ इन्द्र चक्री सुरनर जे बळीया,मृत्यु आगळ थे गया गळीया; उगरिया कोइ न-, अमर रह्या नहि नजरे भाळशोरे. जगमां० १ मृत्युघटीमा जीवो दळाता-, कोटिउपाये न को बची जाता; जन्म्या तेने मरवं, निश्चय ए निर्धारशोरे. जगमांग २ मंत्रतंत्र औषधिने योगे-, मरणथकी बचशो नहि भोगे; सिंहे ग्रहीबकरीवत्, बेंबे करतां चालशोरे. जगमां०३ मातपिता सुतदारा न रक्षे-, काल जगत्मां सहुने भक्षे; माटे चेती चालो, मोहे आयु न हारशोरे. जगमां०४ आतमवडे आतमने तारो,आपोआपने झट उद्धारो; For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोहे आशाए अरे, आतमने न संहारशोरे. जगमां० ५ मुनिअनाथीए आतम तार्यो, अशरणनावे संयम धाों; उत्तराध्ययने अनाथी, मुनिजीवन संचारशोरे. जगमां०६ अशरणभाव धरी प्रभु पूजो-, जडमांही रीझो नहीं खीजो; बुद्धिसागर आतमधर्म--, शरण स्वीकारशोरे. जगमां०७ ॐ पण जलं० य स्वाहा ॥ तृतीया भावनापूजा.॥ अनंतशः नवमां भम्यो-,नव ग्रहीने अनंत; चारगतिमां आथयो-तार तार लगवंत. १ पूनुं वंदु सेवु हुँ, ध्यावं गावं नित्य; सर्वसाक्षी जगमां बनी, राखुं तुजमा चित्त. २ ( मन मोहनजी जगतात. वात सुणो जिनराजजीरे. ए राग.) परमेश्वर महावीर देव,करुणा करीने मुज तारशोरे; For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमेश्वर०-१ परमेश्वर०२ परमेश्वर० ३ समरू वंदु गुण गाउं,शरण ग्रह्याने उद्धारशोरे. जन्म मरणे भर्यो संसार--, अनेकरोगदुःखे जोरे; एकेन्द्रो आदि ग्रही नव-, वार अनंती जवमा फोरे. चउदराज एकेकप्रदेश-, अनंतजन्ममरणो कोरे एकेकगतिमा अनंत-, सगपण सहुजीवोथो धर्या रे. देवनर तिरिनरकमझार--, पुण्यने पापे उपज्यो मर्योरे; लक्षचोराशीयोनिमझार, अनंतवार दुःखे सड्योरे. मनुभवमां सद्गुरुसंग-, पाम प्रभु तुज शरणुं ग्रपुरे; हवे तार तार प्रभु तार, दुःख न जाए सघळं सह्युरे. देवसद्गुरुधर्माधार, रत्नत्रयीसाधन आदर्युरे; परमेश्वर परमेश्वरः ५ For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषयोमा न सुखनो राग, तुजप्रेमे मुजदिलडं भयुरे. परमेश्वर०६ थावच्चाइलाचीपुत्र--, महाबलनावनारसनयोरे; अवन्तीसुकुमाल आदि--, संसारसागर झट तारे. परमेश्वर प्रभु लागी तुजथी लगन, एक खरो तुज आशरोरे; बुद्धिसागरप्रभुमहावीर-, आतम माह्यरो उद्धरोरे. परमेश्वर ॐ प० जलं० य स्वाहा ॥ चतुर्थीएकत्वभावनापूजा. दुहा. एकलो आव्यो आतमा--,एकलो परनव जाय%; को न साथे आवतुं-जाणे ते सुख पाय.॥१॥ शुद्धातम एक सत्य छे, बाकी जड भिन्न जाण; दर्शनज्ञानचरणमयी, आतम एक प्रमाण. ॥२॥ पुष्पादिके प्रभु पूजीने-आतमद्रव्य एकत्व; नावना नावतां भव्यजन, प्रगटावे शुद्धसव ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (दशमे देशावगासिकेरे. ए राग. तेजे तरणिथी वडोरे ए राग.) वीरजिनेश्वर उपदिशेरे, आतम एकलो जाण; एकलो आव्यो एकलोरे-, जातो निश्चय मान हो. .... ..... आतम ! एकत्वभाव विचारशोरे, आपोआपने तारशोरे; एकला जवु निर्धार. .... ... ...१ माटीनी काया माटीमा रे, मळती निश्चय धार; तनु आदिरूपे ग्रह्यारे, पुद्गलमायाजाळ हो. आतम !!! एकत्व०-२ पुद्गल ग्रहीने छंडियांरे, जगमां अनंतीवार; अनंतरूपे ग्रह्यां तज्यांरे--, पुद्गलस्कंध अपार हो. .... .... आतम०३ दृश्य अदृश्य जड खेल छेरे, आतम भिन्न विचार; पुद्गलमाया कारमीरे-, त्यां मुंझे ते गमार हो. .... .... आतम ४ ११ For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मसंयोगे द्वैततारे-, अद्वैत आप विचार; कनककामिनीमोहथीरे-, आयु न एळे हार हो. .... .... आतम ५ कर्मे संयोग वियोगछेरे-, ए सहु पुद्गल खेल; म्हार रहारं मोहवृत्तिथीरे-, ममताअहंता मेल हो. .... .... आतम० ६ कोनो न हुँ को न माह्यरुंरे-, एकत्वभावना भाव !!!; सत्यने समजी आतमारे, मोहमायाने हठाव हो. .... ..... आतम ७ नमिराजर्षि शिववर्यारे, भावना भावी उदार; बुद्धिसागरबोधथीरे-, चेतो नरने नार हो. .... .... आतम ८ ॐ प० जलं यः स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचमी अन्यत्वभावनापूजा. आतमथी तनु श्रादि सहु-छे अन्यत्व ए भाव !!, मोहाहिविषजांगुली; अन्यत्वभावना दाव ॥१॥ अन्यत्वभावना भावीए, आतमशुद्धिकार: अरिहंतमहावीर पूजीए-लहीए शांति अपार ॥२॥ पुद्गलजडमायासकल--, छे आतमथी अन्य; भरत अट्टाणु भाइयो,-मुक्तिवर्या धन्य धन्य ॥३॥ (शुं कथु कथनी मारी हो राज !!! शुं कहुं कथनी मारी. ए राग.) प्रभु महावीरजिनवर तारो हो राज!!!, महावीर जिनवर तारो; म्हने आशरो एक छे त्हारो हो राज!!!-महावीर०॥ मनतनयौवनधन नहीं म्हारूं,पुत्रकुटुम्ब सहु न्यारं; जडमायामां म्हारं न हारूं,अन्यत्वभावे विचारं हो राज ! !..... महावीर० १ घांचीनी घाणीना वृषभनीपेठेचाल्यो ठामनो ठामे; आस्त्रवकर्म करी अथडायो-, पडियो मोहना भामे हो राज !!!......महावीर॥२ For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म्हारं हाहं मोह अंधारूं-, प्यारं गण्यु थयुं न्यारं, सद्गुरुज्ञाने थयुं उजियारं,हवे न मोहथी हारं हो राज !!! .... महावीर- ३ जडमां म्हारुं मानी मूल्यो-, फोगट फूलण फूल्यो, भवदरियामां मोहे डूल्यो,जडना मोहे झूल्यो हो राज !!!-- .... महावीर० ४ मरुदेवाए मोह निवारी-, अन्यत्वभावना धारी; सगरचक्रीए मोह निवारी, मुक्ति लही सुखकारी हो राज!!!--.... महावीर०--५ जर जमीन जोरु सहु न्यारं-, कोइ न साथ थनारं, आतमवडे आतम उद्धारूं-, शरणं हारुं स्वीकार्य हो राज!!! .... महावीर०-६ जडद्रव्योथी आतम न्यारो,ज्ञानानन्द आधारो; बुद्धिसागर वीरजिनेश्वर-, प्यारामां तुं प्यारी हो राज !!! .... महावीर०७ ॐ० प जलं यः स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ छट्ठी अशुचिभावनापूजा ॥ अशुचिथी तनुनयु-,त्यां शुं ? करवो राग; तनुरूपमा शुं राचकुं-ज्ञानी धरे वैराग्य. ॥१॥ नरनारी नवबार छे, अशुद्धिद्वार विचार; तनुनो मोह निवारीने; धर परमेश्वर प्यार. ॥२॥ चिदानंद आतमसमो,-पवित्र नहि जग कोय; जोगादिक अशुचिभर्या-,समजे मोह न होय॥३॥ (॥ भावना मालती चुसीए ॥ ए राग. विरतिए सुमति धरी आदरो. ए राग.) वीरजिनेश्वर पूजीए-, मुंझोए नहीं देहमांह्यरे; चामडोरागे न राचीए-, माचीए नहीं जडमांडरे. वीर०१ देहना रूपे न रोझीए,भीजीए वैराग्यमांडरे, देह पवित्र न कोइन, देह अशुचि जिहां त्यांयरे, वोरण २ कायागारव नहीं कीजीए, सीझीए धरी गुणरागरे, For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देहने साधन धारोए,जाळीए ब्रह्म वडभागरे. वोर०३ देह अध्यासने टाळीए-, बाळीए कामनुं बीजर देहथी भिन्न निज भाळीए-, वाळीए ब्रह्ममां रीझरे. वोर०४ भोगनी वृत्तिने वारीए, हारीए नहीं शुद्धधर्मरे; आतमतत्व विचारीए, धारीए जिन्नतनुकर्मरे. वीर० ५ शुभआतममहावीरप्रभु-, सत्य पवित्र प्रमाणरे; प्रभुरूप थै प्रनु पूजीए, थाय आतम भगवारे. वीर०६ भोजनभरी हेम पूतळी-, पामिया बोधमल्लिमित्ररे; बुद्धिसागरप्रभुभक्तिथीकीजीए आत्मपवित्ररे. वीर०७ * प० जलं या स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्तमी आस्रवभावनापूजा. सप्तमी आनवभावना-भावे जे नरनार; आतम ते परमातमा, थावे निश्चय धार. ॥१॥ आस्त्रवभावना भावतां, थातो आस्रव त्याग; वैरागी आतम बने-,थतो सिद्ध वडभाग. ॥२॥ जलचन्दनपुष्पादिके, प्रभु पूजी नरनार; आसवनावना जावतां, शुद्ध थतां निर्धार. ॥३॥ (रघुपति राम हृदयमांही रहेशोरे. ए राग ) जिनेश्वर वीरजो जयकारीरे-, पूनुं वन्दु जग उपकारी. .... .... जिने. राग रोषे कर्म बंधायरे-, जीव चारगति जटकायरे; टळे आस्रव शिवपद थाय. जि० १ मिथ्या अविरति कषाय योगरे-, कर्मबन्धना हेतु संयोगरे; जाणो आस्रवकर्मनो भोग. जि० २ द्रव्यने नाव आस्रव टाळोरे-, रागरोषपरिणाम खाळोरे; कामादिमोहवृत्तियो बाळो. जि० ३ For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८८ परमेश्वर महावीर जाखेरे-, रागरोष न मनमां राखेरे; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमानंदरसने चाखे. रागरोषे नहीं परिणमबुंरे-, -- शुद्धनिजरूपमांही मळवुरे; तेथी आस्रवथी होय टळबुं - जि० ५ सहु आस्रवभेद विचारीरे-, द्रव्यभावासवने निवारीरे; लहे मुक्ति जवी नरनारी. शुभ आस्रव घरी शुद्धभावेरे-, परिणमतां निर्लेप जावेरे; बुद्धिसागर सिद्धता पावे. Hu 。 ॐ० प० जलं य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only जि० ४ जि० ६ अष्टमीसंवर भावनापूजा. संवरजावना भावीने, सिद्धया जीव अनंत, जावी अनंता सिद्धशे-, भाखे जिनजगवंत. ॥१॥ संवरभावना जावीने-, अइमुत्तामुनि सिद्ध, नागकेतु शिवपद वर्या, पाम्या शाश्वतऋद्धि. ॥२॥ संवरभावे पूजीए, शुद्धात मअरिहंत; अष्टप्रकारे पूजतां, स्वयं शुद्ध जगवंत. 11311 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८९ (मेरुशिखर न्हवरावे हो सुरपति मेरुशिखर नवरावे. ए. राग . ) संवरभावना भावो दो खातम ! संवर भावना भावो. महावीर जिनवर वंदी पूजो-, महावीरसम निज भावो; आतम पूरण शुद्धमहावीर-, आपोआप सुहावो हो. मिथ्यात्व अविरति योग कषायने-, निज उपयोगे दावो; आतमना उपयोगे क्षण क्षण, रहेतुं निश्चय लावोहो. - आतम !! संवरना सत्तावन भेदो-, आशवयोग हठावो; समितिगुप्तिपरिषहयतिधर्मने, भावना चरणे सुहावो हो. आतम ! भावना बार ने चार ने भावो - आतममां लय लावो; समकित पूर्वक संवरकरणी -, करीने मुक्ति पावो हो. तमना उपयोगे समपणं-, साक्षीनावे सुहावो; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ For Private And Personal Use Only यानम० १ संवर० - १ संवर०-३ आतम० ४ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीतरागभावे परिणमीने-, निःकर्मा थै जावो हो. आतम० ५ मेतारज बाहुबलि सुकोशल-, पेठे मन स्थिर लावो; स्कंधकसूरिना पांचसे शिष्यो-, पेठे समता पावो हो, आतम०६ शुद्धातम उपयोगे निर्लेप-, आपोआपने नावो; स्वाधिकारे कार्य करतां, निष्क्रिय अंतर थावो हो. आतम०७ संवरभावे आतमशुछि,करवामां लय लावो, बुद्धिसागरब्रह्मस्वरूपे,आतमने प्रणमावो हो. आतमा ८ ॐ प० ज० य० स्वाहा ॥ ॥ नवमीनिर्जराभावनापूजा। द्वादशधा तप निर्जरा-,तत्त्व कर्मक्षयकार; कर्मनिकाचित झट टळे, मुक्ति लहे नरनार. ॥१॥ सर्वकर्म क्षय जे करे-,तप ते तपो नरनार; For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वोरप्रभु जिन तप तप्या-,धन्नादिक अनगार.॥२॥ ज्ञान- फल छ निर्जरा-,निर्जराथी छे मुक्ति; पञ्चाशलब्धि उपजे-निर्जरा भावना युक्ति.॥३॥ (प्रभु सुप्रतिरे सुमति आपो प्यारा. मुज पाणतणा आधारा. ए राग.) प्रभु महावीररे मुज मन मन्दिर स्वामी, पूजु वंदु बातमरामी-॥ इच्छारोधकतप तप्या भारोरे,बारवर्ष अधिक हितकारी रे शुक्लध्यानेरे केवल लही उपकारी-, थया सर्व जगत् हितकारो. प्रभु०१ बहिरन्तर षड् षड् भेदरे, नावो भावना धारी उमेदरे; राग रोषने टाळो खेदरे, तप तपशोरे अंतर बनो निष्काम); मुक्तिवरवाना थै कामो. प्रभु०२ सेवाजक्तिज्ञानना योगेरे, अशुजवृत्तिकर्मवियोगेरे; मोक्ष बुद्धेरे सकामतप जयकारी,धर्मकमें मुक्ति थनारी. মুম্বই For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९२ समकितीनी तप करणीरे, - मोक्षमन्दिरनी निःसरणिरे; शुद्धउपयोग सहु करणी रे, जवसागर मांहि तरणी रे; निष्कामेरे कर्मयोगी नरनारी-, कर्म खेरवे समताधाररो. - सुख दुःख उदयमां आवे रे,जश अपयश रोगादि थावेरे; पुण्यपापविपाकमां भावेरे, - समयोगेरे निर्जरा आत्मस्वनावे; शुद्ध श्रातमपरिणामदावे. WHITE Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only नभु० ४ घोरपरिषह उपसर्ग आवेरे,समभावे आतमभावेरे; शुद्धतम उपयोगदावेरे; इन्द्र चक्रीनीरे पदवीनी इच्छा न थावे-, प्रजु० ६ शुद्ध आतमपद प्रगटावे. स्वाधिकारे प्रवर्ते विचारीरे, निष्कामे नरने नारीरे; ममताने अहंता वारीरे, सर्वजीवो आतमसमधारीरे; प्रभु० ५ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९३ आपो आपजरे सिद्ध बने निर्धारी, बुद्धिसागर आनन्दकारी. प्रभु० ७ ॐ० प० ज० य० स्वाहा ॥ ॥ दशमीलोकस्वरूपभावनापूजा !! लोकस्वरूपनी जावना, जावंतां शिव थाय; समकितदृढ श्रद्धा यती, - मिथ्यामति दूर जाय ॥१॥ लोक अलोक विचारणा, - जैनागम अनुसार; देवगुरुने धर्मनी, - श्रद्धा मुक्तिद्वार. जैनागम श्रद्धाबळे, - धर्माराधन थाय; प्रतिकुल सर्व कुतर्कने, – छंडे शांति सुहाय ( सिद्ध चक्रवर सेवा कीजे. ए राग. ) सहीए हितकारी: महावीर पूजोजी. दोष अढार रहित -, एवो न बीजोजी. षड्द्रव्यात्मक लोकस्वरूप छे-, वैशाखसंस्थान जाणोजी: For Private And Personal Use Only 11211 केवलज्ञानी महावीर जिनवर, - पूजोए उपकारीजी; लोकालोक स्वरूप प्रकाश्युं-, ॥३॥ महावीर पू० १ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९४ दृश्य सूक्ष्म विषयमां श्रद्धा-, साची मनमां यणो. वीतरागप्रभु केवलज्ञानी-, जूठ कदापि न भाखेजी: एवी श्रद्धाथी आतमबल -, प्रगटे भवी रस चाखे. परोक्षसूक्ष्म विषयमा श्रद्धा-, धारीने नरनारोजी; देवगुरुने धर्मनी सेवा, भक्ति करे सुखकारी. देवगुरुने धर्मविषयमां-, श्रावण नहीं यारोजी; लोक लोकनी श्रद्धा धारी, लोकस्वरूप विचारो. उदराजलोक असंख्य प्रदेशो, अनंतजन्मने मरणेजी; वार अनंती फरश्या जवमां, आव्यो प्रभु तुज शरणे. परमेश्वरमहावीर जिनेश्वर, तुज शरणुं में स्वीकार्यजी; For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावोर०-२ महावीर० ३ महावोर० ४ महावीर० ५ महावीर०-६ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुद्धिसागर परमानन्दमय-, तुजस्वरूप दिल धायु. महावोरण- ॐ प० जलंग य स्वाहा ॥ ॥ अग्यारमी बोधिदुर्लभभावनापूजा॥ कंचनकामिनी इन्द्रनी,-पदवी मळवी स्हेल; जिनवरनाषितधर्मनी,-प्राप्ति छे मुश्केल. ॥१॥ राज्यादिक सहु सुलन छे, दुर्लभजिनवरधर्म; सम्यग्दृष्टिबोधिनी,-प्राप्तिथा शिवशर्म. ॥२॥ समकिती नरनारियो, करे कुटुम्ब प्रतिपाल; अंतर निर्लेपी रहे, धाव रमाडे ज्युं बाल. ॥ ३ ॥ बोधिदुर्लन भावना,-भावंतां नरनार; दर्शन ज्ञानने चरणनी,-प्राप्ति लहे निर्धार. ॥४॥ (उत्तम फल पूजा कीजे. ए राग.) जिनवर महावीर पूजीजे-, प्रभु भ्याइ दिल रीझोजे; तुषीजे नही जडमां रोझीजेरे-, बोधिदुर्लभ भावीजे; . अही बोधि प्रमाद हठावीजेरे-, जिनवर महावीर पूजोजे. १ For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुर्लन नरभव दश दृष्टांते,पामी न पडो मिथ्यानान्तें; समकित लही रहो निभ्रान्तेरे. (जनवर० २ आर्यदेशमा जन्म भलो-, श्रावककुलमा जन्म खरो; धर्मसामग्रीयोग धरोरे. जिनवर०३ मिथ्याबुद्धिने परिहरोए-, सत्संगत क्षण क्षण करोए; मोहना मार्या नहि मरीएरे. जिनवर-४ शुद्धातमनां मन दीजे-, प्रभुनु स्मरण क्षण क्षण कीजे; आनन्दरस अमृत पीजेरे. जिनवर ५ वीर बनी वीर समरीजे-, जन्म धर्यों नहीं हारीजे; वारंवार न जन्मीजेरे. जिनवर०६ बोधि पामीने रीझीजे-, आतमने प्रकट प्रभु कीजे; जयडको जग वगडावीजेरे. जिनवर० ७ विजतेजे मोति परोवीजे, For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावनाभावी मन वश कीजे; बुद्धिसागर सद्गुण लीजेरे. जिनवर ८ ॐ प० ज० य० स्वाहा ॥ बारमी धर्मकथकभावनापूजा. अरिहंत सर्वज्ञ छे,-धर्मकथक जिनराज; अर्हन् आज्ञाधारको,-सद्गुरुमुनिवरराज. ॥१॥ षद्रव्यो ज प्रकाशियां,-नवतत्वो जैनधर्म; मुनि श्रावक बे धर्मने-उपदेश्या शिवशर्म. ॥२॥ जैनधर्मने उपदिश्यो, सर्वविश्व हितकार, केवलीभाषित नान्यथा,-निश्चय ए निर्धार. ॥३॥ (आनन्द क्यां वेचाय चतुरनर. ए राग.) अरिहंत छे सुखकार-,सर्वे अरिहंत छे सुखकारः केवलीजाषित जैनधर्म सत्य, सर्वविश्व हितकार; दानशीयलतपभावनानेदे, श्राद्धयतिधर्म धार. सर्वे०१ For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९८ अहिंसा सत्य अस्तेय संतोष-, ब्रह्मर्य सुखकार; दुर्गुणदोष ने व्यसननिवृत्ति -, ज्ञानने जक्ति उदार. तमशुद्धिकारक उपयोग -, धर्म विचाराचार; दर्शनज्ञानने चारित्रधर्म छे, तथा तेनो व्यवहार. गृहस्थ त्यागी स्वाधिकारे-, जाख्या धर्माचार: स्वाधिकारे स्वधर्माराधे-, तरतां नरने नार. धर्मसाधनवण जीववुं निष्फल, धर्मत्याग दुःखकार; प्राणपडे पण धर्म न छंडवो, श्रद्धा धरो ए उदार. धर्मनानाषक सर्वज्ञ अरिहंत, जूठ न बोले लगार; वीतराग अनुसारीसंतो-, जिनवाणी आधार. For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सवें० २ सर्वे० ३ सर्व० ४ सर्वे० ५ सर्वे० ६ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९९ समवसरणमां महावीरदेवे-, धर्म कथ्यो सुखकार; बुद्धिसागर पूजो वंदो, अरिहंतने नरनार कलश. (आशावरी.) ( अवसर बेर बेर नहीं आवे, ए राग. ) भावना पूजाए गायामहावीर भावना पूजाए गाया ॥ बारजावना भावतां यातम आनन्दगुणने पाया; गामगोधावी जावनापूजा, " रचतां मोह हठाया. संवत् ओगणिश अग्न्याऐंशी-, विहार करतां श्राया; माघवदितेरसजौमवारे, पूजा रची प्रभु गाया. वीरजिनेश्वर मन्दिर मोडं-, वीरप्रभुने ध्याया; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only सर्वे 3 महावीर० १ महावीर० २ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीरजिनेश्वरपट्टपंरपरा-, तपगच्छ छे शिवदाया. महावीर०३ पट्टपरंपरानोमिसागरगुरु,रविसागरगुरुराया; श्रीसुखसागरगुरुसुखकारी, गुरुकृपा सुखदाया. महावीर भावनापूजा भणशे जे गुणशे, ते थाशे शिवराया; बुद्धिसागरसर्वसंघमा,प्रगटो गुणसमुदाया. महावीर ५ ॐ प०--जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमहावीरपरमेश्वरपंचकल्याणक पूजापरमेश्वर परमातमा, वर्धमान जिनराज; प्रभु महावीर पूजतां, प्रगटे प्रभुसाम्राज्य. १ प्रभुना गुणने गावतां, आतमगुण प्रगटाय; आतम ते परमातमा, सिद्धबुद्ध जिन थाय. च्यवन जन्म दीक्षा अने, चो) केवलज्ञान; निर्वाण पांच ए जाणवां, कल्याणक गुणखाण,. ३ प्रभुमहावीरदेवनां, पांच भला कल्याण; कल्याणकपूजा करे, आप बने भगवान्. कल्याणकभक्तिबळे,-निज प्रगटे कल्याण; कल्याणकना महोत्सवे-आतमशुद्धि प्रमाण. ५ अष्टप्रकारी पूजना, प्रत्येक पूजा दीठ; कल्याणकनक्तिवडे, नासे सघळा रिष्ट, प्रभुगुणपूजायोगथी, निजगुण प्रगटे खास; सेवानक्ति प्रतापथी-ज्ञानानन्दविलास. For Private And Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ ॥प्रथम च्यवन कल्याणकपूजा॥ दुहा. समकितने पाम्या पछी, भवनी गणतरी थाय; तीर्थकरपद पामबुं-,समकितयोगे सुहाय. ॥१॥ सम्यग्दृष्टि थया पछी, देवगुरुपर प्यार; धर्मनी श्रद्धा प्रगटती-,टळे मिथ्या अंधकार. ॥२॥ साधु श्रावक धर्मीपर-प्रगटे अपूरवराग; सांसारिकसगपण सहु-,मिथ्या लागे, त्याग. ॥३॥ प्रथम नयसार ग्रामणी, साधुसंगे धर्म; पाम्यो समकित निर्मलु-नाटुं मिथ्याकर्म. ॥४॥ साधु सेवा भक्तिथी-,सम किती थयो गुणरंग; पच्चीशमा मनुजवविषे, चारित्री थयो चंग. ॥५॥ (पुस्कलवइ विजयो जयोरे. ए राग.) पच्चीशमा भवमा थयारे-, नन्दन शुभ अनगार; चारित्र ग्रही तपने तपेरे, भावे भावना चाररे.... मुनिवर!!! नन्दन धन्य अवतार. तपथी मंगलमालरे. मुनिवर १ For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०३ एकलाख ऐंशी हजारनेरे-, छसें पिस्तालीश सार; मासखमण आदितप करीरे-, समता घरे सुखकाररे. धर्मरसी जगजीवनेरे-, करवा वीर्योल्लास; भावदया दिल उल्लसीरे उत्कृष्टी गुणवासरे. तमरूपे परिणमेरे, - धर्मध्यान धरी बेश; संयममां शूरता धरीरे-, टाले मोहना क्लेशरे. सर्वजीवोने उद्धारवारे-, उत्कष्टो परिणाम; प्रगट्यो तीर्थकरनामनेरे-, बांधयुं रागे तामरे. चारित्रशुनपरिणामधीरे -, प्राणतस्वर्ग मझार; वीशोदध्युपम आउखेरे, उपन्या देव उदाररे. For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनिवर० २ मुनिवर०-३ मुनिवर० ४ मुनिवर० ५ मुनिवर० ६ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल बीजी. (चौमासी पारणुं आवे. ए राग.) थया प्राणत सुर अवतारी-, भोगवे शातावदनी भारी; मतिश्रुत अवधिज्ञानधारीरे-, महावीर प्रभु जयकारी. धन्य तीर्थकर सुखकारीरे. महावीर० १ जंबुद्वीपे दक्षिणभरते-, क्षत्रिकुंड नगर शुल वर्ते; राजा सिद्धारथ गुणी वर्तेरे. महावीर त्रिशला राणी गुणखाणी-, पतिवृता निर्मल वाणी; दंपती जैनधर्मी ज्ञानी रे. महावीर०३ आषाढी सुदि छठीए आव्या-, त्रिशलाकुखमांहि सोहाव्या; सुरनर सहु हर्षने पायारे. महावोर० ४ चौदस्वप्नने देखे राणी-, त्रिशला बहु हर्ष भराणी; तोर्थकरनी ए निशानीरे. महावोर० ५ For Private And Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वप्नपाठकने बोलाव्या,-- चौदस्वप्नना नाव जणाव्या; बुद्धिसागर प्रभु परखायारे. महावीर० ६ ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते महावीर जिनेन्द्राय च्यवनकल्याणके जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दो, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं यजामहे स्वाहा ॥ द्वितीया श्रीमहावीरजन्मकल्याणक पूजा॥ त्रिशलाराणी स्नेहथी, सुणीने स्वप्ननो हार्द; तीर्थकरप्रभु प्रगटशे-सांनळो लही आल्हाद. १ विधिपूर्वक खावेपोवे-वैदकशास्त्रानुसार; धर्मकर्म प्रेमे करे-, दान करे उपकार, ॥२॥ साधु संतने दान दे-भय शोक द्वेषनो त्याग; योग्याहार विहारथी-धारे धर्माचार. ॥३॥ ( अवसर बेर बेर नहीं आवे. ए राग. आशावरी.) जिनेश्वर महावीर जगजयकारी-, त्रण्यभुवन उपकारी. जि० ॥ For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०६ गर्जविषे पण जननजक्तिए, स्थिर थया दुःखहारी; उलटं मातने दुःख थवाथी-, करी प्रतिज्ञा विचारी. माता पिता जीवे ज्यांसुधी-, दीक्षा न ग्रहु अनगारी; द्रव्यने भावदयानंमारी, सर्वविश्वहितकारी. चैत्रसुदितेरसमध्यरात्री -, जन्म्या आनन्दकारी; त्रभुवनमां थयुं जवाळु, आनन्द हर्ष व्यापारी. छप्पन्नादिशिकुमरी तिहां श्रावी, शुचिकर्म करे निर्धारी; घोसठ इन्द्रादिक सुरगिरिपर, करे प्रभुस्नात्रने जारी. नाचे राचे हर्षे गावे, प्रजुने निजघेर धारी; माता पासे मूकी सुरवर, नंदी उत्सव करे भारी. For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनेश्वर० १ जिनेश्वर० २ जिनेश्वर० ३ जिनेश्वर० ४ जिनेश्वर० ५ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २०७ ढाल बीजी. ( प्रभु सुमतिरे सुमति आपो प्यारा. ए राग. ) प्रभु जन्म्यारे शांति आनंदकारी, जग शांति लघुं निर्धारीः ॥ भारतमां उत्सव भारीरे, देशोदेश नगर सुखकारी रे; थता उत्सवरे जनता हर्ष अपारी, क्षत्रीकुंड उत्सव जयकारी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्धमान नाम शुभ खाप्युंरे, मात पिताए हर्षे थाप्युंरे; सुरे महावीरनामने स्थाप्युंरे, प्रभु रूपनेरे बलनी न करे कोइ होडी; मळे सुरपति कोडाकोडी. कल्पवृक्षपरे प्रभु वाधेरे, जगजीवनां वांछित साधेरे: dr.. लहे शांतिश्वास नरनारीरे, प्रगट्यां जग मङ्गल नारीरे; मोह ज्ञानरे - तम हवा निर्धारी-, प्रभु रवि प्रगट्या उपकारी. For Private And Personal Use Only प्रभु० १ प्रभु० २ प्रजु० ३ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ क्रीडा करतारे आनंदथीज विचरता, त्रएयज्ञानी प्रभु शुभ करता. प्र०४ प्रभु शाळामां लीलाए जावेरे, गृहगुरुने त्यां समजावेरे; शब्दशास्त्रनो रचना थावरेत्यां इन्द्रेरे आवी प्रभुने वखाण्या, सर्वलोकोए सर्वज्ञ जाण्या. प्रजु० ५ प्रभु यौवनवयने पावेरे, यशोदासाथ लग्न ज थावरे; त्रिज्ञानीरे महावीर प्रभु गृहवसिया-, बुद्धिसागर शिवसुखरसिया. प्रभु० ६ ॐ ह्री श्री परम पूरुषाय, परमेश्वराय जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जन्म कल्याणके जलं० या स्वाहा ॥त्रीजी महावीरदीक्षाकल्याणकपूजा ॥ दुहा. नंदिवर्धन मोटका,-भाइ सद्गुण खाण; बेन सुदर्शना सदगुणी, सुपार्श्व काका जाण. ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुत्री गुणी प्रियदर्शना, चेटक मामा सुजाण; अठ्ठावीश वर्षे थयां, मातपिता निर्वाण. ॥२॥ नंदिवर्धन आग्रहे, घरमा रह्या बे वर्ष दान संवत्सरी देइने, साधे गुण उत्कर्ष. ॥३॥ ( मल्लिजिन बंदीए भवी भावेरे. ए राग. रहो मुनि फागण मास चोमासुंरे. ए राग.) पहेली ढाल. जिनेश्वर वीरजी जयकारीरे, मोह छंडी दीक्षा धारी. जि ॥ त्रीशवर्षसुधी गृह वसियारे, संवत्सरीदाने उल्लसियारे, थया चारित्र लेवा रसिया. जिनेश्वर० १ सुरनरवरकोडाकोडीरे,इन्द्र चोसठ बेकर जोडीरे वंदे पूजे आव दोडी. जिनेश्वर०२ करे दोक्षोत्सव जयकारीरे, चन्द्रप्रभा शिबिका सारीरे; चढ्या वरघोडे प्रभु हितकारी. जिनेश्वर० ३ For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० गावे गोरीओ दीक्षागानोरे-, पुष्पवृष्टि करे सुरो जाणोरे; दीक्षा वरघोडो मझानो. (जनेश्वर० ४ वृद्ध स्वजन वदे शिख सारीरे, मुक्ति वरशो मोहने मारीरे; पामो विजयपताका जारी. जिनेश्वर ५ क्षत्रिकुंड वच्चे थै जावेरे, ज्ञातखंड उद्यानमां आवेरे; प्रणमी लोक सह गुण गावे. जिनेश्वर०६ वस्त्राभूषण त्यजी लोच कीधोरे-, छतप शिवमार्गने लीधोरे धरी चारित्रने मोह रंध्यो. जिनेश्वर०७ मागशरवदि दशमी रूपाळीरे-, छेल्ला प्रहरे दीक्षा ग्रही सारीरे; बुद्धिसागरप्रभु उपकारी. जिनेश्वर०८ ढाल बीजी. ( व्हेलां व्हेलां दर्शन देबोरे गुरु शातामा रहेशो. ए राग.) मनथी ममता अहंता निवारी, सामायिक उच्चरे सुखकारी; For Private And Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्व सावध संहारीरे--, प्रभु दर्शन देशो. हेलां व्हेलां दर्शन देशोरे. प्रभु दर्शन १ बंधुवर्गने पुछे त्यारे-, वनमां विचरोश निरहंकारे; ध्यानसमाधिविचारेरे. प्रभु दर्शन २ नंदि कहे प्रभु शातामा रहेशो; समरीने संदेशा कहेशो; केवलज्ञानने लहेशोरे. प्रभु व्हेलां०३ क्षण एक नाइ न अळगा थश्या, पल पल वीर वीर मुख कहिया, हवे अळगा हमे रहियारे. प्रभु दर्शन॥ ४ नयणे वहे छे अश्रुनी धारा; स्मरशो मळशो बन्धु हमारा; तव वण घर शून्य, प्यारारे. प्रभु दर्शन०॥ ५ देवी यशोदा बोले विचारी, जग उद्धरशो केवल धारी; क्षण क्षण रहुं संभारीरे. प्रभु दर्शन॥ ६ एक तमारो छे आधारो, प्राणपति मुज आतम प्यारो For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ सर्वजीवोने उद्धारोरे. प्रभु दर्शन॥ ७ त्यागी थै वनवाटे वळिया. सगां संबंधी पाछां फरियां; बुद्धिसागर बळियारे. प्रभु दर्शन॥ ८ ॐ० ५० दोदा कल्याणके जलं० यजामहे स्वाहा ॥ चतुर्थी केवलकल्याणकपूजा॥ सामायिक अंगोकर्यु-,वोर्योल्लासे भदंत; मनःपर्यव प्रगट्युं तदा, सर्वविरति गुणवंत. ॥१॥ उपसर्ग परिषह जीतता, अप्रतिबद्ध विहार; करता धरता ध्यानने, निर्मोही अनगार. ॥२॥ पंचेन्द्रिय मनवश करे, सुख दुःख सहे समजाव; आतमना उपयोगथी-साधे मुक्तिदाव. ॥३॥ दश्यादश्य जगतविषे-,कर्ममां साक्षीभाव; आतम उपयोगे थया, नवपाथोधि नाव. ॥४॥ प्रगट्या प्रमादने वारता, मेरुवत् थै धार; क्षयोपशमादिनिजगुणे---,स्थिरता धरे महावीर.॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११३ ढाल पहली. (सांभळशो मुनि संयमरागे उपशमश्रेणि चढियारे. ए राग.) वंदु महावीर मुनि वैरागी, थातमध्यानी त्यागीरे; श्मशानउद्याननिर्जनवासी, कोपर द्वेष न रागीरे. वन्दु० १ शूलपाणि उपसर्गने सहेवे, चंडकोशी दंश देवरे; समतानावे मनमा रहेवे, कोइने कांइ न कहेवेरे. वन्दु० गोवाळ कटपूतना व्यंतरीने, संगमसुर दुःखकारीरे; षट्मासी रह्या प्रभु निराहारी, समतागुण भंडारीरे. वन्दु०३ काने खीला ठोक्या गोपे, तोपण रोष न धारि, पगपर खीरने रांधतां समता, रोष गयो रोषे हार्योरे. वन्दु०४ लाढा आदि देश अनारज, घोरपरिषह सहियारे; ૧૫ For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वन्दु" ५ वन्दु०६ ११४. लोको मारे गाळो देवे, तोपण समता वहियारे. चमकोशिक आदि अपराधी, उद्धर्या प्रभुए भावेरे; मूठी बाकुला लेइने चन्दना, नद्धरी नक्तिदावेरे. बेषट्मासी नवचोमासी, बेत्रणमासी धारीरे; दोढमासी अढीमासी बेबे, षट् बेमासी विहारीरे. मासखमण बार पाक्षिक बहोतेर, बार अठमतपयोगीरे, बसे योगणत्रिशतप भद्रादिक, तप तपियो तुं अनोगीरे. त्रणसे ओगणपञ्चाश पारणां, चोविहारी कीधांरे; बुद्धिसागर प्रभुमहावीरनां-, श्रात्मकारज सिद्धयारे. वन्दु० ७ वन्दु०८ वन्दु० ९ For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११५ ढाल बीजी. - ( श्री श्रेयांस जिन अंतर्यामी.. ए राग . ) महावीर ! ! ! धन्यदशा छे व्हारी, आतमध्यानना धारीरे; पंचसमिति त्रणगुतिए गुप्ता -, उत्कृष्टा अनगारीरे. धर्मध्यान श्रुतउपयोगे जारी, भावप्रतिमा धारीरे; कल्पातीतदशा हितकारी -, शुद्धोपयोगे बिहारीरे. तरोद्र बे ध्यान निवारी, त्यागी मोहनी यारीरे; उपशम क्षयोपशमे परिणम्या, देहाभ्यासने वारीरे. द्वादश वर्षाधिकषट्मासी-, ध्यानस्थ स्थिति विहारी रे; आतम उपयोग। समभावी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only महावीर० १ महावोर० २ आतमरस आहारीरे. अनुक्रमे विचरंता ऋजुवालिक, - नदीनो पासे आव्यारे; महावीर० ३ महावीर० ४ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्यामाककुटुम्बी क्षेत्रमा शालि-, वृक्षे छकृतप भाव्यारे, महावीर० ५ धर्मध्यान पछी शुक्लध्याननो,बीजो पायो ध्यायोरे; वैशाखसुदिदशमी चउघातो-, हणी केवल प्रगटायोरे. महावीर० ६ सुरगणे समवसरण शुभ रचियुं, प्रभुए देशना दीधीरे; अपावापुरीमा गणधर--, थाप्या तीर्थ प्रसिबिरे. महावीर० ७ समवसरणमां बेशो देशना,देइ जारत उझार्योरे; बुद्धिसागर महावीर वन्दु आप तर्या म्हने तारोरे. महावीर ॐ प० केवलज्ञानकल्याणके जलंग य स्वाहा ॥ de -4 ॥ पंचमी निर्वाणकल्याणकपूजा॥ इन्द्रभूतिआदि थया,-एकादश गणधार; छत्रीस सहस सुश्रमणीओ, मुनिवर चौदहजार. १ For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दोढलाखने सहसनव, श्रावक व्रतगुण धार; तिलख अढारसहस मली,-श्राविका व्रतपाल. २ चौदपूरवी त्रणसेंमुनि, तेरसे अवधि जाण; सातसे केवली सातसे-, वैक्रियधारी मान. ३ पांचसे विपुलमति मुनि, वादी चउशत सार; राजा आदि कोटिजनो-, समकिती परिवार. ४ चोत्रीश अतिशयवंत जिन, वाणी गुण पांत्रीश; सर्वदेश विचरे प्रभु, टाळे रागने रीस. (दशमे देशावगासिकेरे. ए राग.) गाम नगर पुर विचरियारे-, देशविदेश विहार; नरनारी प्रतिबोधियारे-, टाळ्यो जग अन्धकार हो जिनजी-, महावीर प्रभुजी तारशोरे, मुज आतम उद्धारशोरे, तारशो दीनदयाल.१ हिंसायज्ञ निवारियारे, सात व्यसन कर्या दूरः मिथ्यातम दूरे कर्युरे-, प्रगटाव्युं ब्रह्मनूर हो जिनजो; महावोरण २ For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૦ श्रातमधर्म जणाव नेरे, मोहराज्य दूर कीध; विश्वमां शांति प्रसारीनेरे अरिहंतपदने लोध हो जिनजी; महावीर० ३ षड्द्रव्यं नवतत्त्व कथ्यारे, केवलज्ञाने सत्य; संघ चतुर्विध थापीयोरे, समजाव्यां धर्म कृत्य हो जिनजी, महावीर० ४ श्रेणिककोणिक नरपतिरे, प्रसन्नचन्द्र भूपाल; दशार्ण उदायन भलारे, कीधा धर्मी दयाल हो जिनजो; महावीर० ५ चंडत आदि घणारे, राजा राजकुमार; प्रधान क्षत्रिय शेठियारे, ब्राह्मणादि परिवार हो जिनजी; महावीर० ६ सर्व खंड दयामय कर्यारे, कीधो विश्वोद्धार; बुद्धिसागर धर्मनेरे, प्रगटाव्यो सुखकार हो जिनजो; महावीर० ७ For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल बीजी. (प्रभु पडिमा पूजीने पोसह करीएरे. ए राग.) वोर जिनेश्वर वंदु जग उपकारोरे, त्रीशवरस घरमांहि वासो वस्या; बारवर्ष छद्मस्थदशा अनगारीरे, बेतालीश वर्ष सयोगी प्रभुदशा. त्हारे शरण कर्यु शिव आपशो, व्हालारे वेगे दुःखडां कापशो, परमातमपदमां मुजने थापशो, उपयोगे मुज दिलमांहि व्यापशो. श्रेणिक आदि नवने जिनपद थाप्युरे, ताारे मेघ कुमारआदिजना; अर्जुन रोहणियोने चन्दनबालारे, कौशिकने तार्योरे राखी नहि मणा. त्हालं० २ अस्थिक प्रणितभूमि सावत्थी नगरीरे, बालभिका चोमासु एकेक रह्या; त्रण चंपा, षट् मिथिला, बार वैशालीरे, वाणिज्य राजराहीमा घउदे शुभ वह्या. हालं०३ For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० वरमचोमासुं पावापुरीमां आव्यारे, अष्टादशगणराजा भेळा थया; कार्तिक अमावास्या नक्षत्र स्वातिरे, सोळप्रहर देशना देता शिवगया. ल्हारु० ४ जावोद्योत गयाथी द्रव्यदीवाळीरे, सुरपति नरपतिए भावथकी करो; देवशर्म प्रतिबोधवा गौतम स्वामीरे, गया तिहां ते जाणी लह्या बहु दिल्गीरो. व्हा०५ वीरजिनेश्वररागे शोकने पाम्यारे, उपयोगे शोक तजी केवल वर्या; भारतभानु आथम्यो फर्ज बजावी रे; बोतेर वर्ष आयु ते शिववर्या. पार्श्वनाथ निर्वाणथी अढी में वर्षेरे, वीरप्रभु मुक्तिवर्या जगजयकरी; बुद्धिसागर वीरप्रभुनुं शासनरे, - वर्तेरे आनन्दमंगल गुणधरी. For Private And Personal Use Only हारु० ६ व्हा० ७ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलश. आशावरी. ( अवसर बेर बेर नहीं आवे. ए. राग.) महावीरपूजा रची सुखकारी,आतम आनन्दकारी. महावीर नयसारनवमां बहिरातम तजी,सम कितदृष्टि धारी; अन्तरात्मपद पाम्या नारी, मिथ्यादृष्टि संहारी. महावीर० १ पच्चीशमाभवमा तीर्थकर,नाम बांध्युं निर्धारी; वर्धमान अनगार बनीने, शुद्ध थया अविकारी महावीर० २ आतम ते परमातम कीधा, टाळ्यां घाती विकारी; विश्वजनो प्रतिबोध्या करोडो; भारत उद्धारकारी. महावीर०३ जैनधर्म संघतीर्थने स्थाप्यु, विश्व अहिंसा प्रचारी; For Private And Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ ज्ञानसेवा नक्ति सत्कर्मने-, असंख्ययोग पसारी. महावीर ४ असंख्यश्रुतदृष्टिसापेक्षा, समजावी हितकारी; मिथ्यादृष्टिनो मोह टाळ्यो, देशना देइ सुखकारी. महावीर ५ तुजमां लगनी लागी भारी-, प्रगटी प्रेम खुमारी; कोटि उपाय करे को कुतर्के,उतरे न होये उतारी. महावीर० ६ आत्ममहावीर शुद्धि करवा, तुजमां लगनी लगाडी; चारनिक्षपे भक्तिथी तुजमां, अंतत्ति जगाडी. महावीर ७ पंचकल्याणक प्रेमे गायां, पूजा रची जयकारी; गाम गोधावी महावीरमन्दिर-, वांद्या प्रभु हितकारी. महावीर०८ वीरजिनेश्वरपट्ट परंपरा-, तपगच्छ गगनविहारी; For Private And Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२३ जगगुरु हीरविजयसूरिजानु, तपतेजे सुखकारी. पट्टपरंपरा मिसागर, रविसागर हितकारी; श्रीसुखसागरगुरु गुणकारी, मुनिगुणगणना धारी. संवत् ओगणिश अग्न्याऐंसी, फागण बीज अजवाळी; बुद्धिसागर संघमा आनन्द-, मंगल वर्तो अपारी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीर० ९ For Private And Personal Use Only महावीर० १० महावीर० ११ ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरा मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय निर्वाणकल्याणक पूजार्थ, जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ पंचज्ञान पूजा | परमेश्वर परमातमा, वर्धमान जिनराज; प्रभु महावीर जगपति, सर्वमुनि शिरताज. शासनपति चोवीशमा, - तोर्थंकर अवतार; ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा, - परब्रह्म निर्धार. Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वन्दु पूजु जावथी, श्रीगौतम गणधार; सद्गुरु चरणकमल नमुं, श्रुतदेवी सुखकार. ३ पंचज्ञान पूजा रचुं- जैनागम अनुसार, पंचज्ञाननक्तिथकी, शिव पामे नर नार. ४ प्रथम ज्ञान पछीथी दया, ज्ञाने क्रिया प्रमाण; क्रिया नक्ति ने त्यागनुं-ज्ञान मूल छे जाण. ५ ज्ञाने मिथ्यातम टळे, ज्ञाने मुक्ति थाय; ज्ञान ते आतमधर्म छे, ज्ञान सदा सुखदाय. ६ मतिश्रुत अवधिज्ञान छे, मनपर्यव सुखकार; पांचमु केवलज्ञान छे, अनुक्रमे पूजा सार. ७ ॥ प्रथमामतिज्ञानपूजा॥ मति अहावीश भेद छ, त्रणसे चालोश तेम; सम्यग् श्रद्धायोगथी, सम्यग्मति गुण क्षेम. १ चउभेदे मतिज्ञान छे, सापेक्षाए जाण; केवलज्ञाने प्रकाशियु, श्रीवोरे मतिज्ञान. व्यंजनावग्रह भेद छ, मन चक्षुवण चार; अर्थावग्रहलेद , चोवीस सत्य विचार, अथार्वग्रहने इहा, अपाय धारणा चार; पंचकरण मन चउगुणे, चोवीस निश्चय धार. ४ For Private And Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२५ अहावीश प्रत्येकना,-बार बार बे नेद तेमां चार उमेरतां, त्रणसो चालीश वेद. ५ (मारे दीवाली थे आज जिनमुख जोवाने. ए राग.) ॥ ढाल॥ महावीर विभु जिनचंद, जिनवर जयकारी; मतिज्ञान प्रकाश्युं सत्य, जगने हितकारी-॥ द्रव्यक्षेत्रकालजावथी मति . श्रुतनिश्रित सुखकारीरे; सम्यग् मतिश्रुत बन्ने साथे, प्रगटतां निर्धारी. जिन -महा॥ १ समकितपूर्वक सम्यग् मतिश्रुत, आगमशास्त्रे प्रकाश्युरे; समकितवण नवपूर्वी अज्ञानी,ज्ञानी दिल सत्य नास्युं. जिमहा०२ चोथाथो बारमा सुधी मतिश्रुत,क्षयोपशमीभावेरे; अन्तरात्मपद आतम पामेआतम ते सिद्ध थावे. जि० महावीर०३ For Private And Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२६ प्राकार मन नयन छे, बाकी करण प्राप्यकारी रे; द्रव्यथो षड्द्रव्य क्षेत्रोकालोक, काली कालचारी. जावधी पांचे भाव अनंता, - पर्य परोक्षे जाणेरे; अंतर्मुहूर्त जघन्यथी रहेवे, एक जीवाश्रित माने. छासवसागर अधिक नरजव, उत्कृष्टुं मतिज्ञानरे; बहुविधजीवाश्रित अनंतर, - असंख्यजीव मतिमान. मतिज्ञानी पडिवाइ अनंता, गुरुगमे अनुभव थायरे; बुद्धिसागर ब्रह्म महावीर-, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जि० महावीर० ४ जि० महावीर० ५ जि० महाबीर० ६ जि० महावीर० ७ आतम प्रभुपद पाय. ॐ नमो ज्ञानाय, लोकालोकप्रकाशकाय, मतिश्रुतावधिमनः पर्यव केवलज्ञानाय जलं चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२७ ॥ द्वितीया श्रुतज्ञानपूजा ॥ श्रुतना च दशनेद छे, वीशभेद परमाण; जिनवाणी श्रुतज्ञान छे, मतिपूर्वकश्रुत जाण. उमुंगां श्रुत बोलतुं, स्वपरप्रकाशक सत्य; स्याद्वादश्रुतज्ञानथी, सफलां धर्मनां कृत्य. प्रकार आदि एकेकनी, पर्याय राशि अनन्त; अनंत स्वपरपर्यायरूप, वर्णमां विश्व समंत. अनादि अनन्त ले श्रुतभलुं, द्रव्यनये भवी जाण; सादि सांत पर्यवनये, - सापेक्षाए प्रमाण. जघन्य अन्तर्मुहूर्त छे, - एकजीवाश्रयी ज्ञान; छासठ सागर अधिक छे, उत्कृष्टी स्थितिमान. ३ (सिद्धचक्रपद सेवा कीजे नरभव लाहो लीजेजी. ए. राग. ) निजपर उपकारक श्रुतज्ञानना, बोधक जिन जयकारीजी; वीर जिनेश्वर पूजी बंदी, श्रुत सेवो उपकारी; महावीर भजीएजी, मिथ्या श्रुतनो मोह; वेगे तजीएजी. पंचविदेहमां शाश्वतश्रुत छे, सादि सांत अन्यक्षेत्रे जी; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२८ दक्षिणभरतमा महावीरशासन, वर्ते छे श्रुतनेत्रे. जिनवरवीरे त्रिपदी भाखी, अर्थथकी सुखकारीजी; गणपरगणे द्वादशांगी रचना, शब्दथी करी हितकारी. दृष्टिवादमां पूर्वने अंगो, सघळं श्रुत समातुंजी, अगियारअंग ने बार उपांग छे, गुरुगमे श्रुत समजातुं. दशपयन्ना छेद सूत्र षट्, नंदी अनुयोगद्वारजी, मूलसूत्र चारे पंचांगी, परंपरागम धार. पूर्वागादि उद्धृत ग्रन्थो, रच्यां स्थविरे जेहजो; सूरि आदि रच्यां धर्मनां शास्त्रो, सापेक्षे गुणगेह. दुःपद सूरिपर्यंत श्रुत रहेशे, सर्वसंघ सुखकारीजी; For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीर० २ महावीर० ३ महावीर० ४ महावीर० ५ महावोर० ६ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानने निंदो ज्ञानी न निंदो, आधार कलि श्रुत भारी. महावीर० ७ श्रुतज्ञानथी ध्यानने केवल, चारित्र श्रुत उपयोगेरे; श्रुतउपयोगे धर्म प्रवर्ते; श्रुतथी रहो सुखभोगे. महावीर०८ श्रुतज्ञानी केवलोसम संप्रति, सुणीए श्रुत हितकारीजी; बुद्धिसागर श्रुतज्ञानी श्रुत-, सेवो नरने नारी. महावीर० ९ ॐ नमो ज्ञानाय लोकालोक प्रकाशकाय मति श्रुतावधि मनः पर्यव केवलज्ञानाय जलं या स्वाहा ॥ ॥ तृतीया अवधिज्ञानपूजा ॥ मतिश्रुतज्ञान परोक्ष बे, प्रत्यक्ष अवधिज्ञान; रूपोद्रव्यने जाणवू, अवधिलक्षग जाग. १ भवप्रत्ययो गुणप्रत्ययो, अवधि दोय प्रकार; जवप्रत्ययो सुर नारको, नरतिरि गुणथी मान. २ अवधि असंख्य प्रकार छ, षड्भेद शास्त्र प्रमाण; मिथ्यात्वीने विभंग छे, समकीतीने ज्ञान. ३ For Private And Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० जघन्य एक समय कथ्यु-कोइक जीवने जाण; छासठ सागर अधिक छे,-गुरु ठिइ अवधिज्ञान. ४ (सांभळशो मुनि संयमरागे उपशमणि चढियारे. ए राग.) जिनवर महावीर पूनुं वन्दु, प्रभुरूप उपयोग धारोरे; अवधिज्ञानस्वरूप प्रकाश्यु, लगनी लागी प्रजु त्हारीरे. जिनवर १ अनुगामी अवधि लोचनवत्, ज्यां त्यां साथे जातुंरे अननुगामी स्थिरदीपकवत्-, अन्यत्र साथी न थातुरे. जिनवर० २ वर्धमान गुण वृद्धि पामे, वर्धमान ते जाणोरे, अवर्धमान पूरव अधोघटतुं, पडतुं प्रतिपाती मानोरे. जिनवर०३ अप्रतिपाती प्रगट्यं न जातुं, लोकावधिनी उपरेरे, केवलज्ञान अनंतर थावेप्रगटे शुद्धातम समरेरे. जिनवर०४ वीरपसाये शिव राजर्षि, विभंगदोषने टाळेरे; For Private And Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यक्षेत्र काल नावथी अवधि, जाणे ते सुख भाळेरे. जिनवर०५ द्रव्यथकी रूपी द्रव्य अनंतां, जघन्य जाणे देखेरे; उत्कृष्टथी सर्वे पुद्गलने, अवधिज्ञानी पेखेरे. जिनवर०६ क्षेत्रयी अंगुलनाग असंख्यने, जघन्य जाणे पेखेरे; उत्कृष्टा अलोकमां लोकसम, असंख्य खंडने देखेरे. जिनवर०७ कालथी आवलीनाग असंख्यने-, जघन्य गुरु तेम जाणोरेः भूतनावी असंख्य उत्सर्पिणी-, जावथी चारभाव आणोरे. जिनवर०८ जघन्य चारभाव उत्कृष्ट प्रत्येक-, द्रव्य असंख्य पर्यायोरे; बुद्धिसागर गुरुगम पामी-, सम्यगज्ञान सुहायोरे. जिनवर०७ ॐ नमो ज्ञानाय लोकालोकप्रकाशकाय मति. श्रुतावधिमनःपर्यवकेवलज्ञानाय जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ चतुर्थी मनःपर्यवज्ञानपूजा ॥ ऋजुमति विपुलमति द्विधा मनःपर्यव छे ज्ञान; सामान्यग्राहो ऋजुमति, विशेष विपुलमति मान. १ मनोद्रव्यने जे ग्रहे, मनःपर्यव ते जाण; मनचिंतितपदार्थहैं,-थावे सम्यग्ज्ञान. सातमा गुणठाणे मुनि, ध्यातो धर्मध्यान; लहे मनःपर्यवज्ञानने, श्रुत उपयोगे जाण. ३ (दान सुपात्रे दीजे हो भविया. दान सुपात्रे दीजे. ए राग.) वीरजिनेश्वर ध्यावो हो आतम !! वीर जिनेश्वर ध्यावो. ॥ संयमठाण विशुद्धिए चोथु-, मनःपर्यव प्रगटावो; वीरने वंदो पूजी ध्याइ, स्वयं महावीर थावो हो आतम! वीर १ तिनाणी जिनवर सर्वसंयम-, दीक्षा ग्रहे छे ज्यारे; अध्यवसायशुद्धिवृद्धिथी, मनःपर्यव लहे त्यारे हो आतम! वीर० २ For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संज्ञीपंचेन्द्रीमनपणे परिणम्या, अनंत मनद्रव्य जाणे; क्षेत्रथा तिर्छ मनुष्यक्षेत्रने,ज्योतिष व्यंतरठाणे हो आतम !!! वीरण ३ साधिकशतयोजन अधो जाणे, अतीत अनागत काल; पल्य असं खितनागने जाणे, आगमथी धर ख्याल हो आतम!! वीर०४ भावथो सर्व पर्यायना अनंत,नागने ज्ञाने जाणे; ऋजुमतिथी अधिकापर्यत्र,विपुलमति जाणे ज्ञाने हो आतन! वीर ५ मतिश्रुतज्ञानी तथा विज्ञानी, मनपर्यव प्रगटावे; साकार उपयोगी मनपर्यव,क्षयोपशम सद्भावे हो आतम ! वीर०६ अप्रमत्तदशाए प्रगटे, उपयोग सातमे नावे, अवधि मनपर्यव उपयोगे, कोइ न केवल पावे हो आतम! वीर० ७ For Private And Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विपुलमति निर्मलपरिणामी, ते नव मुक्ति जावे, क्षयोपशमभावे मनःपर्यव, प्रगटे चारित्रभावे हो आतम ! वीर०८ अंतर्मुहूर्त व्यक्तोपयोगज,मनपर्यवनो जाणो; मनुष्यगतिमां चारित्री पामे,शास्त्रभाव प्रमाणो हो आतम ! वीर० ९ निःसंग वैराग्यश्रुतउपयोगे,मनःपर्यव प्रकाशे; बुद्धिसागर आत्ममहावीर, आपोआप विलासे हो आतम ! वीर० १० ॐ नमो ज्ञानाय लोकालोकप्रकाशकाय मति श्रुतावधिमनःपर्यव केवलज्ञानाय जलं० य० स्वाहा॥ ॥ पंचमी केवलज्ञानपूजा॥ घातिकर्मनो क्षयकरी, पाम्या केवलनाण; नमो नमो अरिहासकल, परमशुद्धभगवान् अनंत दर्शनशानीजे, क्षायिकसमकित धार; क्षायिकचारित्री नमो, पूजो जगदाधार. १ For Private And Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( सहियर सुणिएरे भगवती मूत्रनी वाणी. ए राग.) केवलज्ञानीरे महावीर पूजीए भावे, जिनरूपे आतमरे प्रणमावे प्रभु थावे; मिथ्या निंददशाने निवारी, स्वप्नदशाने टाळी; शुद्धातम उपयोगे जाग्रत् , ध्यानसमाधि धारी. कवलर : शुक्लध्यानथी चोथी उजागर, लही मोह शत्रु हठायो; केवलज्ञानने केवलदर्शन, परमानन्द प्रगटाव्यो. केवल०२ क्षायिकनवलब्धिना धारी, अनंतशक्तिदरिया; परमेश्वर महाविष्णु परब्रह्म, अनंतगुणगण भरिया. केवल०३ चार अघातीयोगे जवस्थ , अभवस्थ डे सिद्धा; पश पश्यंती पामी झांखी-, पामे प्रगट प्रसिद्धा. केवल०४ For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३६ द्रव्य तत्त्व सहु नाव प्रकाश्या, क्षायिककेवलज्ञाने; सापेक्षाए सहु तुज वचनो, तुज भक्तो सत्य जाणे. परा पश्यंती अंतर गायो, वैखरी बाहिर गायो, पंचज्ञानथी प्रभु तुज पूजा, जावे करीने घ्यायो. रूपारूपी नामी अनामी, अनंतरूपे सुहायो; बुद्धिसागर आत्ममहावीर, परमप्रभु परखायो. " युगपत्, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only केवल० ५ कलश. गायो गायोरे महावीर जिनेश्वर गायो. पंचज्ञाननी पूजा रचीने प्रभु पूजी सुख पायो; समकित साधे मतिश्रुत प्रगटे गुण समुदायोरे.. केवल० ६ केवल० ७ महावीर० १ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समकितवण मति श्रुत अज्ञान छे, अवधि विनंग कहायो; समकित साथे सम्यगमातश्रुत, अवधिज्ञान लहायोरे. महावीर०२ सम्यग् श्रुतज्ञाने जैनशासन, संघ सदा वर्तायो; सम्यग्ज्ञानी गीतार्थसद्गुरु-, सेवाए ज्ञान वहायोरे. महावीर०३ ज्ञानी ज्ञाननी सेवा भक्ति-, करतां मोह हठायो; ज्ञान मा निंदो ज्ञानी मा निन्दो-, ज्ञान ते धर्म सुहायोरे.. महावीर० ४ ज्ञानी श्वासोच्छ्रासमां अनंत--, भवनां कर्म खपावे; झानानन्द ते आतमरूप छे, संतो भक्तो गावेरे. महावीर०५ मतिश्रुत पश्चात् अवधि प्रगटे, मनपर्यव सुहायो; मतिश्रुत पश्चात् शुक्लध्याने, केवल प्रगटे जणायोरे. महावीर०६ For Private And Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ सम्यग्ज्ञानी, मिध्याश्रुतने, - सम्यकूपणे प्रणमावे; मिथ्याज्ञान सम्यग्श्रुतने-, मिथ्यापणे प्रणमावेरे० पंचमआरे गीतार्थ सद्गुरु-, श्रुतआधार सुहायो; संघचतुर्विध जिनवरप्रतिमा, - आधार छे समजायोरे. वीर जिनेश्वरपट्टपरंपरा-, तपगच्छजगगुरुरायो; हीर विजयसूरिपट्टपरंपरा,नेमसागरमुनिरायोरे. प्रौढप्रतापीर विसागरगुरु,विश्वमां सुजशे वायो; श्री सुखसागरगुरुसुखकारी-, मुनिसंघश्रेष्ठ सुहायो रे. ओगणिश अग्न्याऐंशी फागणवदि-, पंचमी बुधवार गायो; पुण्यवंत पेथापुरमध्ये, पूजा रची सुख पायोरे. For Private And Personal Use Only महावीर० ७ महावीर० ८ महावीर 9 महावीर० १० महावीर० ११ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जणशे गणशे जे सांभळशे,पामशे गुण समुदायो; बुद्धिसागर संघमां मंगल, वों पुण्य पसायोरे. महावीर० १२ ॐ नमो ज्ञानाय लोकालोकप्रकाशकाय मतिश्रुतावधिमनःपर्यवकेवलज्ञानाय जलं य० स्वाहा ॥ जंगमस्थावरतीर्थपूजा. पानसरा श्री जिनवरा,-महावीर जगदाधार; वर्धमान शासनपति, चोवीशमा जयकार. अतीत अनागत संप्रति, विद्यमान जिनराय; सर्व सिद्ध त्रण कालना, प्रणमुं प्रेमे पाय. जंगमस्थावरतीर्थनी-, पूजा रचुं सुखकार; आतमशुद्धिकारिका, शिवगतिनी दातार. जंगमस्थावरतीर्थ छे, निश्चय तारणहार; जेवडे तरीए तीर्थ ते, निमित्तपुष्ट विचार. नमो तित्थस्स कही सकल, वंदे अरिहंतदेव जंगमतीर्थ ते संघ छे, करीए भावे सेव. ४ ५ For Private And Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ર तीर्थकर प्रतिमा अने, - कल्याणकथी थाय; अनेक हेतुयोग्यथी, - स्थावरतीर्थ सुदाय. जंगमस्थावरतीर्थनी, सेवाथी शिव थाय; आतमतीर्थनी शुद्धिमां, निमित्ततीर्थो गणाय. 9 ॥ चतुर्विधसंघ रूपजंगमतीर्थपूजा ॥ संघ चतुर्विध तीर्थ छे, सर्वतीर्थ शिरताज; अरिहंत वीरे थापियुं, जंगमतीर्थ सुराज्य. जंगमतीर्थनी पूजना, करतां शिवपद थाय; तीर्थनी सेवा भक्तिथी, आतम प्रभुपद पाय. २ ( सहियर सुनीएरे भगवती सूत्रनी वाणी. ए राग. ) संघने पूजोरे प्रेमधरी नरनारी, तीर्थनी सेवारे भक्ति सदा सुखकारी. अनंत तीर्थकरनी खाणी, बोले महावीर वाणी; गुणमणिरत्नरोहणसम जाणी, नमीए प्रीति आणी. चौदसो बावन गणधर नमीए, मोहनी वृत्तिने दमी; For Private And Personal Use Only ६ संघने० १ १ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संघने २ संघने०३ संघने०४ वाचक साधु श्रमणी प्रणमीए-, आपस्वभावमा रमीए. च उविहाहारे सेवा करीए, अश्जे स्मरीए; खेदद्वेषभीति परिहरीए, संघरक्षार्थे मरीए. अतीत अनागत वर्तमान जे-, सूरिवाचकमुनिवर्ग, दोषदृष्टि त्यागो थै रागो, सेवंतां अपवर्ग. संघ आशातना द्रोह न करीए, संघभक्तिए तरीए; संघसेवार्थे जीवन धरीए, तनधनमन वापरीए. साधु श्रमणी श्रावक श्राविका, देखी हर्षे उल्लसीए; संघनी सेवाभक्तिमां मरीए, डगलं न पाछळ खसीए. संप्रतिजीवंतसंघ छे तीर्थ ज, व्यवहारनये दिल धरीए; संघने० ५ संघने०६ For Private And Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संघने ७ संघन०८ पंचमारक अनुसार वर्ते, तीर्थकरसम स्मरीए. अनेकरीतिए संघनी सेवा-, भक्ति करंतां तरीए; नमो तिथ्थस्स कहीने नमोए, निज आतम उद्धरीए. साधु श्रमणी श्रावक श्राविका, देखी प्रेमे गहगहीए; प्रभुदर्शनसम हर्षने वहीए, समकिते छाना न रहीए. अडतालीश गुणे गुणवंतो-, सर्वोपमाए छाजे बुद्धिसागरजंगमतीर्थनेपूजो महावीरराज्ये. संघने० ९ संघने १० ढाल बीजी. (धन धन संप्रति साचो राजा. ए राग.) संघ चतुर्विध जग उपकार, समकिती नरनारोरे; श्रावक श्राविका डे तीर्थ ज, मुनि श्रमणी व्रतधारीरे. संघ०१ For Private And Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४३ श्रावकने देखी जे श्रावक, - मनमां हर्ष न लावेरे; समकित त्यां प्रगट्युं नहि जाणो, जैन रहे जैनभावेरे. मुनिने देखी मुनिना मनमां, शुद्धप्रेम ज्यां जागेरे; अर्पाइ जाता एकताए, त्यांथी मोह दूर जागेरे. गच्छक्रियामतभेदे न निन्दा, द्वेष भेद नहीं प्रगटेरे; मैत्री प्रमोद मध्यस्थता गुणनी, - दृष्टि दोषो विघटेरे. गुणरागीने दोष उपेक्षक, समय विचारी चालेरे; जैनधर्म जगमां फेलावे, संघधर्म अजवाळेरे. जैनागमशास्त्रोनी श्रद्धा, - गीतार्थश्रद्धा धारेरे; सूरियादि आणाए संघनी, - चडती छे कलिकालेरे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only संघ० २ संघ० ३ संघ० ४ संघ० ५ संघ० ६ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संघ०७ संघ०८ १४४ साधु श्रमण श्रावक श्राविका,तीर्थ जीतु जगमारे; एवा तीर्थनी श्रद्धाप्रीति,भक्ति धरो रगोरगमां रे. संघतीर्थ आशातना नास्तिक-, बुद्धिने परिहरीएरे; संघना अणुसम सेवक थेने, संघाज्ञा शिर धरीएरे. देशकाल अनुसारे संघमा व्रतगुण किरिया वर्तेरे; वर्तमानमा वर्ते ते संघ ज, मानीए सापेक्ष शर्तेरे. देवगुरुने धर्मनी श्रद्धा-, व्रतधारकनरनारीरे; जैनशास्त्र श्रधालु अविरत-, जनता तीर्थ डे भारीरे. ज्यां त्यां जैन ते तीर्थ गणीने, सेवा भक्ति करीएरे; साधर्मिक सगपण साचुं, मिथ्यामति परिहरीएरे. संघ०९ संघ० १० संघ० ११ For Private And Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४५ संघचतुर्विधतीने वंदो, पूजो अर्पाई जावोरे; अवगुण दोषना सामुं न जोशो, गुणदेखी दरखावोरे. पनरक्षेत्रमा संघ चतुर्विध, विहरमान परिवारोरे; सद्गुरुसमकितदायक मुनिवर, बंदु कर्यो उपकारोरे. संघचतुर्विध जगजयकार, पूजकनी बलिहारीरे; बुद्धिसागर जंगमतीर्थने, वंदु चार हजारीरे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૩ For Private And Personal Use Only संघ० १२ संघ० १३ संघ० १४ ॐ ह्रीं ॐ चतुर्विधसंघाय, जंगमतीर्थस्वरूपाय, सर्वतीर्थाधाराय, अर्हदादिपरमेष्ठिपूज्याय, जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, यजामहे स्वाहा ॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ द्वितीया स्थावरतीर्थपूजा॥ चोपाइ. शत्रुजय बीजु गिरनार, समेतशिखर अष्टापद चार, आबु पंचतीर्थ डे सार, वन्दु पूजु वारंवार. ॥१॥ (सिद्धचक्रपद सेवा कीजे नरभव लाहो लीजेजी. ए राग. ) स्थावरतीर्थमां सर्वथी मोटुं, शत्रुजय जयकारीजी; रैवत सम्मेत अष्टापदने, आबु छे सुखकारी-यात्राकरीएजी; वारी सर्व प्रमाद, भक्ति धरीएजी. पंचतीर्थयात्रापूजाथी, आतमशुद्धि करीएजी; निरुपाधिकता अनुभव आवे, गुरुसाथे संचरीए. यात्राणवारो॥२ तारंगा श्रीअजितजिनेश्वर, श्रीसंखेश्वरपासजी; पाटणमां पंचासराप्रभुजी, पूजे होय गुणवास. यात्राणवारो०३ For Private And Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राचीनचारुप तीर्थ छे चारु, कुंभारीया जयकारीजी; विमळशाहे देरी कराव्यां, पूजो भाव वधारी. यात्राावारी०४ इडरगढ केशरियासाबळीया, पोसीना सुखकारीजी; पानसरा नोयणी शेरीसा, मेत्राणा रांतेज भारी. यात्रा॥बारी ५ खंभायतमां थंभणपासजी, मातर साचादेवाजी; भरुचमा मुनिसुव्रतस्वामी, करीए भावे सेवा. यात्रागवारी०६ जघडिया ने तीर्थ अगाशी-, अंतरिक्ष हितकारीजी; तीर्थफलोधी मक्षीजी भारी, वरकाणा उपकारी. यात्रावारो०७ नाडुलाइनाडोल राणकपुर, नादिया ओशिया सारुंजी, पावा राजगृही क्षत्रीकुंड, चंपाकुंडलपुर चारु. यात्राणवारो०८ For Private And Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४८ द्रावती सिंहपुरी विशाला, गुणायाकाकंदी प्रणमुंजी; मथुरा ऋजुवालिका साचोर, भद्रावती नमी विरमुं. उपरियाळा कापडहेरा, जोराउला वन्दोजी; भीलडिया अजारापासजी, वंदे टळे जवफन्दो. अमीजरा नाशकने मांडव, अवंतीने प्रभासोजी; चिंतामणिपास विजापुरमां, मेसाणा मनरंग वासो. कुल्पाक इलोरा रींगणोद शेमली, नवखंड मुहरीपासजी, काशीतीर्थने दादापासजी, कावीगंधार खास. तीर्थ तलाजा सानंद मांडल, मुंबाई गोडीपासजी; पालणपुरमां पास पल्लविया; सिद्धपुर सुल्तानपास. यात्रा०॥वारी० ९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यात्रा०वारी० १० यात्रा०वा० ११ यात्रा०॥ वारी० १२ यात्राणावारी० १३ For Private And Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डभाइ पादरा खेडा कपडवंज, भावनगर वढवाणजी, महवा लींवडी जामनगरने, वडनगर चैत्यमान. यात्रा॥वारी १४ शिरोही सादडी विकानेरने, जोधपुर जयपुर देरांजी; पाली जालोर जावरा खेडा, दील्ली चैत्य भलेरां. यात्रा॥वारी० १५ विसनगर खेरालु उंझा, वीरमगाम कल्लोलजी; माणसा चाणस्मा हिंमतपुर, वडाली प्रांतिज आजोल. यात्रा॥वारी १६ पाटण राजनगर खंभायत, सुरत जेसलमेरेजो; एम अनेकपुरनगरगाममां-, चैत्य नमो दिल ल्हेरे. यात्रा॥वारी १७ गुर्जर मालव मरुधर सोरठ, कच्छ बंगाल विहारजी; पंजाब आदिस्थचैत्यो पूजु-, मनमां धरीने प्यार. यात्रा॥वारो०१८ For Private And Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५० कच्छमा भद्रेश्वर सिन्ध कांगरा, मेरु रुचक जयवंताजी; कोरंट वर्धा विस्फुलिंग पास, शाश्वतेतरसन्ता. शिरोही जोधपुर पाली मेडता, चितोड वांकानेरजी, उदेपुर डुंगरपुर रतलाम, चैत्य नमे सुखल्हेर. खेटक भिन्नमाल सह चैत्यो, गिरिकुट प्रकट जे छानांजी; बुद्धिसागर चैत्यने प्रणमुं, वर्ते जेह मझानां. आतमशुद्धिकारो. ऋषभ चंद्रानन वारिषेणने; वर्धमान जयकारी; नंदीश्वर मेरु रुचक द्वीप, अंजनगिरि सुखकारी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यात्रा०वारी० १९ यात्रा०|वारी० २० ढाल बीजी. ( राग आशावरी ० ॥ अवसर बेर बेर नहीं आवे . ए राग . ) स्थावरतीर्थ नमुं हितकारी, यात्राणवारी० २१ For Private And Personal Use Only स्थावर ॥ स्थावर० १ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहले स्वों बत्रोशलाख छ, अठ्ठावोश लाख बीजे; बार लाख त्रीजे चोथे आठ, पांचमे लख चउ रीझे ..... .... स्थावर०२ अर्धला व छठे जिन चैत्य छे, चालीश सहस्त्र प्रमाणो; सातमे आठमेक हजार छे, शत चार नव दशे जाणो. .... स्थावर० ३ अग्यार बारमे त्रणसें त्रणसें, त्रणशे अढार ग्रैवेके पांच अनुत्तर मळी सहुचैत्यो, वांदो विनय विवेके. स्थावर० ४ चोराशीलाख ने सहससत्ताणु,अधिक चैत्य सरवाळे; लांबां शतयोजन ने उंचां, पञ्चास पूजो प्यारे. .... .... स्थावर० ५ सभा सहित एकचैत्ये एकशो,ऐंशी बिंब परिमाणो; सोकोड बावन कोड बोराणु,लाख उपर ले जाणो. स्थावर०६ For Private And Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौबालसहसने सातसें षष्टि, वंदु त्रिकाले भावे; सातकोड ल खत्रोंतेर देवल, भुवनपतिमां सुहावे. स्थावर० ७ एकेक चैत्ये एकशो ऐंसी-, प्रतिमा प्रमाण विचारो; तेरसेंकोटि नव्याशी कोटि, ति लोकमां धारो. .... .... स्थावर ८ त्रणलाख एकाणुसहस ने त्रणसे-, वीश प्रतिमा वन्दु ध्यंतरज्योतिषीमां बिंब वन्दु, भवोनवपाप निकन्दु. स्थावर०९ पन्नरक्षेत्रमा जिनवरचैत्यो, सघळां प्रेमे जुहारूं; वीशविहरमान संप्रति जिनवर, कल्याणक संझालं. स्थावर० १० अतीतअनागत चोवीश जिनवर-, कल्याणकभूमि वन् अतीत अनागत संप्रति सर्वे, तीर्थसेवनरढ मंडु. स्थावर ११ For Private And Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५३ भरतादिकसर्वविश्वमास्थावर-, तीर्थ नमुं उपकारी; बुद्धिसागरतीर्थथी तरीए, प्रगटे चिदानंद नारी स्थावर० १२ स० १ सर्व०१ कलश. गाइ गारे सर्वतीर्थनो पूजा गाइ. जंगमतीर्थ जीवंतां सर्वतीर्थ जीवे सुखदा तीर्थ तीर्थकरभक्ति सरखी, समजुने समजारे. तोर्थशब्दवाच्य ज श्रुतज्ञान छे, संघ चतुर्विध जाणो; प्रथम गणधर जागी भव्यो, तीर्थनक्ति मन आणोरे. तीर्थने तीर्थकरनी एकता, सापेक्षाए विचारो; प्रत्येकदेहदेवलमा समकिता, यातम तीरथ धारोरे. सर्व०२ सर्व० ३ For Private And Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्व०४ सर्व० ५ सम्यग्दृष्टि देशवतीने, साधुतीर्थ जीवंता; व्यवहारे तीर्थी संघसर्वे, माने ते जैन जीवंतारे. तीर्थनी रक्षा सेवा भक्ति, तीर्थकरपददाइ; जंगमस्थावरतीर्थनी पूजा, करतां प्रभुता जणाइरे. तीर्थनी सेवाजक्तिथी निर्जरा, संवरने पुण्य थावे; सातक्षेत्रमा तन धन अर्पे, आतम सिद्ध सुहावरे. तीर्थमा तीर्थकर सातक्षेत्रो, स्थानक वीश समाता; तीर्थनी सेवा भक्ति करता, सर्वयोगो प्रगटातारे. तीर्थनी सेवानक्तिविना कोइ, सिद्ध थयो नहीं थाशे; सर्व०६ सर्व०७ For Private And Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्व० ० सर्व०९ १५५ जंगमतीर्थनी वृद्धियोगे, स्थावरतीर्थ रक्षाशेरे. तेमाटे तीर्थकर जगमां, तीर्थने स्थापे जारी; तीर्थकरदेव तीर्थने नमता, तीर्थ भजो नरनारीरे. वीरजिनेश्वरपट्टपरंपरा, श्वेतांबर जयकारी; तपगच्छजगगुरुहीर विजयसूरि, पट्टपरंपराधारीरे. नेमिसागरगुरुरविसागरगुरु, उत्कृष्टचारित्रधारी; श्रीसुखसागरगुरुगुणकारी, धर्मक्षमा अवतारीरे. ओगणिश अग्न्याऐंसी फाल्गुन-, सुदि सप्तमी सुखकारी; पेथापुरमा तीर्थनी पूजा, सम्यग् रची जयकारीरे. जणशे गाशे जे सांजळशे, आचरशे नरनारी सर्व०१० सर्व०११ सर्व०१२ For Private And Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुद्धिसागर मंगलमाला, पामे ऋद्धि अपारीरे. सर्व० १३ ॐ ह्रीं श्री अर्हदादिपरमेष्ठिपूज्याय सर्वजं. गमस्थावरतार्थाय जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दोपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, यजामहे स्वाहा ॥ सर्वशुभकार्यारंभमांमङ्गलपूजा॥ दुहा. परमप्रनु परमातमा-,महावीर जिनवर्धमानः परब्रह्म मंगलकरा, प्रणमुं शक्तिनिधान. असंख्यसुरासुरदेवीओ, योगिनी बावनवीरः ए सहुदास बनी नमे, जय जय प्रभुमहावीर. २ विश्वेश्वरमहावीरजिन, नामथी मंडल थाय%; मंगलनी पूजा रचुं, भक्तो मंगल पाय. देवगुरु ने धर्मनी, श्रद्धावंत नरनार; मंगलपूजा भणी सुणी,-मंगल ले निर्धार. ४ समलकार्यप्रारंभमां,-मंगल पूजा बेश; करतां करावतां गावतां, सुणतां नासे क्लेश. ५ For Private And Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५७ ( सहियर सुनिएर भगवती सूत्रनी वाणी, ए राम || ढाल पहेली . ) मंगल करशोरे चोवीश जिन जयकार |; विनो निवारोरे नामस्मरण अघहारो. ऋषभ अजित संजय अभिनन्दन, सुमतिप्रभु सुखकारी; पद्मप्र सुपार्श्व जिनेश्वर, चन्द्रप्रभ हितकारी. सुविधि शीतल श्रेयांस जिणंदा, वासुपूज्य वसुकारी; विमल अनंतने धर्मने शान्ति, कुन्थुअर अघहारी. मल्लिजिन मुनि सुव्रत नमि विभु, नेमि पार्श्व शुभकारी; वर्धमान महावीर मंगलकर, मंगल करो निर्धार. अतीत अनागत तीर्थकर सहु, पापोदय संहारो; गणधर चौदसे बावन समरूं, मंगल द्यो निर्धारो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only मंगल० ६ मंगल० २ मंगल० ३ मंगल० ४ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतम गणधर मंगल करशो; नाम छ मंगलकारी; बुद्धिसागरसूरिवाचकमुनि,नक्ति मंगलकारी. मंगल ५ ढाल बीजी. (सिद्धचक्रवर सेवा कीजे. ए राग.) अरिहंत चोवीस प्रनुना भक्तो, चोसठ इन्द्रो विवेकीजी; अरिहंतभक्तिना प्रेर्या मंगल, करशो निश्चय टेकी; मंगल करशोजी,संकटने उपसर्ग; विघ्नो हरशोजी. ॥१॥ नवग्रहोने दशदिक्पालो, प्रभुभक्ते अहीं आवोजी; साधर्मिक तमे प्रभुना जत्तो, मंगलकारी थावो, मंगल०२ लोकपाल तमे उपयोग देइ, उपसोंने निवारोजी; For Private And Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५९ धर्मीजनाने करवी सहायो, ए अधिकार तमारो. शांतिजिनेश्वर शांति करशो, सर्व शांति हरशोजी; संघ चतुर्विध मंगलमाला, मंगल शांति करशो. देवी सरस्वती लक्ष्मीदेवी, विद्यालक्ष्मी आपोजी: विप्पोसहि पत्ताणं मंत्रे, - घर घर मंगल व्यापो, खेलो सहि पत्ताणं मंत्रे, भक्तो शांति पावेजी, सूरिमंत्रना वासक्षेपे, ऋद्धि सिद्धि सुहावे. रोहिणी प्रज्ञप्ति वज्रशृंखला, वज्रांकुशी शुभकारीजी; चक्रेश्वरी नरदत्ता काली, - महाकाली सुखकारी. गोरी गांधारी महाज्वाला, मानवी ने वैरुहाजी; For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगल० २ मंगल० ३ मंगल० ४ मंगल० ५ मंगल० ६ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगल.० ७ मंगल॥८ १६० अहुप्ता मानसिकादेवीमहामानसिकायुक्ता. गौमुखमहायक्षत्रिमुख ईश्वर, तुंबरु कुसुम मातंगाजी; विजयाजित ब्रह्मा मनुज ज सुर, षण्मुख पाताल चंगा. किंनर गरुड गंधर्व यक्षेन्द्र, कुबेर वरुण भ्रकुटीजी; गोमेध पार्श्व मातंग ए यक्षो-, शांति समपों स्फूर्ति. चक्रेश्वरी अजिता दुरितारि, काली ने महाकालीजी; अच्युता शांता ज्वाला सुतारा-, जैनशासन रखवाळी. अशोका श्रीवत्सा चंडा, विजया अंकुशा देवीजी; पन्ना निवाणी अच्युता धारिणी, वैरुट्या शुभ देवी. अच्छता गांधारी अंबा, पद्मावती जयकारीजी; मंगल॥९ मंगल०॥ १० मंगल० ११ For Private And Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६१ सिद्धायिका मंगलकारी, देवीओ हितकारी. जिनपद भ्रमरी विजयादेवी, सुजया रहाये आवोजी; अजिता ने अपराजितादेवी, मुज रक्षा हित लावो. ॐ वीर वीर महावीर जयवीर, सेनवीर वर्धमानजी, जया विजया ने जयंता अपरा-, जिता करशो कल्याण. संघचतुर्विधजैनशासननी-, चढती निशदिन करशोजी; हाय अमारी वेगे करशो, आधिव्याधिदुःख हरशो. धार्मिक व्यावहारिक सहुकाजमां, वेगे मंगल पोजी; शांति तुष्टि पुष्टि करशो, दारिद्र दुःख कापो. २१ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगल० ॥ १२ मंगल० १३ मंगल ॥ १४ मंगल० ॥ १५ मंगल० १६ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६२ ऋद्धि सिद्धि कीर्ति कांति-आपो मंगलमालाजी; बुद्धिसागरसूरिशक्ति-, वृद्धि जय दो विशाला. " जिनवर महावीर मंगल करशो, दुर्गुण पाप निवारो; दुर्व्यसनोने दूर निवारो -, टाळो दुष्टाचारो. ढाल त्रीजी. ( आतम भक्ते मल्या केइदेवा ए राग. ) असंख्यसुरासुर इन्द्रादिक सहु-, प्रणमे महावीर पाया; महावीर नामे ज्यां त्यां मंगल, महावीर मंगलराया. परब्रह्म महावीरने प्रणमुं, - महावीर विश्वना त्राता; गौतम आदि गणधर मंगल, करशो शांति शाता. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगल० १७ For Private And Personal Use Only जिनवर० ९ जिनवर० २ जिनवर० ३ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६३ स्थूलभद्रादिकमुनिवर सर्वे, संकट दुःख निवारो; संघ चतुर्विध मंगलरूपी-, करशो विश्वोद्धारो. सर्वतीर्थरूप जैनधर्म बे, ज्यां त्यां मंगलकारी; उपसर्गाने विघ्न टळो सहु, टळो दुर्भिक्षने मारी. सर्वविश्वमा शांति थाशो, धर्मी बनो नरनारी; मनुष्यपशुपक्षीजीव सघळा, - शांति लहो सुखजारी. ॐ ह्री घंटाकर्ण महावीर, जागंतो कलिकाले; जैनसंघनी व्हारे चडतो, स्मरण करे दुःख टाळे. ॐ ह्री माणिभद्रमहावीर, जैनसंघ रखवाळा; स्मरण करतां स्हाये आवो, करशो मंगलमाला. For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनवर० ४ जिन० ५ जिन० ६ जिन० ७ जिन० ८ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६४ थाशो सुदृष्टि सर्वदेशमां, - रोग उपद्रव नासो; धर्मी बनो जगलोको सर्वे, थाशो पुण्य प्रकाशो. पुण्यधर्म करवाथी मंगल, महावीर आणा धारो; जैनधर्म सेव्याथी मंगल, ज्यां त्यां प्रगटे अपारो. साधुसंघनी सेवानक्ति, सर्वथा मंगलकारी; परमेष्ठी महामंत्रना जापे, मंगल यानन्द भारी. चारनिकायना दुष्ट देव ते, - उपशांतिने पामो; शत्रुदुष्टगण उपशमी जाओ, सिद्ध शो शुभकामो. परमेश्वरमहावीरजिनेश्वर, मंगलरूपी नक्की, For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिन० ९ जिन० १० जिन० ११ जिन० १२ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६५ सर्वमंगलनुं मंगल महावीर, एवी श्रद्धा पक्की. ज्यां त्यां चारनिक्षेपे मंगल, महावीर खानन्दकारी. बुद्धिसागरसेवानक्ति, सुख पामो नरनारी. मंगलपूजा रची सुखकारी, विश्वमां मंगलकारी. कलश. आशावरी. ( अवसर बेर बेर नहीं आवे . ए राग. ) परब्रह्म परमेश्वर महावीर-, मंगल छे जयकारी, गौतम गणधर मंगल निश्चय-, स्थूलजद्र मंगल भारी. जैनधर्मने संघचतुर्विध-, मंगल आनन्दकारी; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only जिन० १३ जिन० १४ मंगल० ॥ मंगल० १ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगल०२ मंगल०३ १६६ मंगलपूजा जणेने भणावे-, मंगल लहो नरनारी. सर्वसंघमां मंगल घर घर, प्रगटो विघ्ननिवारी; सर्वकार्यप्रारंभमां मंगल-, पूजा मंगलकारी. मंगलपूजाने श्रद्धाथी-, करशे जे नरनारी; इच्छितकार्यनी सिद्धि करशे, फळशे मनोरथ भारी. लक्ष्मीराज्यविद्यादेनारी, कीर्तिसिद्धिकरनारी; पुत्रादिक इच्छितदेनारी, पुण्यधर्म सुखकारी. परमेश्वरमहावीरजिनेश्वर, वीरप्रभु उपकारी; श्वेतांबरसत्यपट्टपरंपरा-, तपगच्छ जग हितकारी, तपगच्छननमणि हीरविजयसूरि, जगगुरुपदवी धारी; मंगल०४ मंगल० ५ मंगल०६ For Private And Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगल० ७ मंगला ८ १६७ पट्टपरंपरा प्रौढप्रतापी, नेमिसागर क्रियोद्वारी. संवेगीमुनिवरमा महामान्य, चारित्री उपकारी; रविसमरविसागरगुरु भारी, वचनसिद्ध हितकारी. दर्शनज्ञानचरणगुणधारी,उत्कृष्टा याचारी; गुरुसुखसागर समताचारी, वैरागी उपकारी. पेथापुरमा सुविधिजिनेश्वर, मंदिर के मनोहारी; तास पसाये मंगलपूजा-, रची जग आनन्दकारी. संवत् ओगणिश अगन्याऐंशी, फाल्गुन बुध शुनकार; अजवाळी दशमी दिनपूजा, रबी मंगल करनारी. मंगल० ९ मंगल० १० मेगक्षा ११ For Private And Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ द्रव्यनाव सर्व मंगलकाजे, मंगलपूजा सारी; बुद्धिसागरसूरिमंगल, ऋद्धिसिद्धि शिवकारी. मंगल० १२ __ ॐ ह्री श्री सर्वजिनेश्वरेभ्यः सर्वसुरासुरेन्द्र परिपूजितेभ्यः सर्वतीर्थकरेभ्यो मंगलार्थ जलं, चंदनं, पुष्प, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्य, फलं, यजामहे स्वाहा ॥ अष्टादशपापस्थानकनिवारकपूजा. प्रणमुं पानसराप्रभु, महावीर जगदाधार; सद्गुरु पदपंकजनमुं, नमुं जिनवाणी उदार. ॥१॥ अढारपापस्थाननो, करवाने परिहार, महावीरप्रभुपूजा रचुं, आत्मशुद्धि करनार. ॥२॥ प्रथमाप्राणातिपातनिवारकजलपूजा. हिंसा दःखनी वेलडी, अहिंसा सुख खाण: दयाधर्मसम धर्म नहि, अधर्म हिंसा जाण, ॥१॥ हिंसाथी प्रभु नहि मळे, मुक्ति न क्यारे थाय; प्राणीओना नाशथी, वोभव दुःख सदाय, ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६९ [ राग आशावरी.] ( अवसर बेर बेर नहीं आवे. एा राग.) प्रभु महावीरजिनेश्वर तारो, नवोदधि पार उतारो. प्रभु॥ भवसागरमां नौका डुबंती, पेलीपार उतारो; हिंसासागरपार उतारी, करशो मुज उद्धारो. प्रभु १ प्राणीओनी हिंसा न करवी, मांसलक्षण परिहारो सर्वजीवो आतमसम गणवा, धर्म प्रकाश्यो त्हें सारो. प्रभु०२ प्राणीओना प्राण हणोने-, लह्यो न नवोदधि पारो; हवे तुज शरणे आव्यो नको, हिंसाबुद्धि निवारो. प्रभु०३ प्राणातिपात करूं न करावं, संशु न मुजने उगारो; दयाथकी प्रभुद्वार खूले छे, मळता प्रभु निर्धारो. प्रभु For Private And Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० आत्ममहावीर पामवा साचा, अहिंसा आचारो; बुद्धिसागर आत्मप्रन्नु छे, टळतां हिंसाविचारो. प्रभु० ५ ॐ ह्री श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा ॥ द्वितीया मृषावादनिवारकचन्दनपूजा॥ असत्य महातम दुःख , असत्य दोषनुं मूल; असत्यथी प्रभु दूर बे, असत्य नरकनो पूल. ॥१॥ पापर्नु स्थान असत्य , असंख्यदुःखनुं द्वार; सुखनुं द्वार ते सत्य बे, सत्य हो नरनार. ॥२॥ ( लागी लगन गुरु कैसे छूटे तुम चरणकमलकी सेवासें. ए राग.) लागी लगन प्रभु त्हारी साथे, जूठथको दूरे भागुं; साचं जाणुं ने साधु बोलं, निश्रय ए मुज मन लाग्युं. लागी०१ For Private And Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७१ जूठ वदंतां पाप अनंतु, अनेकदोषो प्रकटाता; तेथी बातमप्र ढंकाता, जूठे नहीं देख्या जाता. স্ত্রালাই प्रभु आज्ञाना लोपक थावं, सत्य अवाजो दबावाता; विश्वासघातादिकदोषोथी, भवमा फेराओ थाता. लागी०३ जूठाथी विरमुंडं निश्चय, तुज आज्ञा शिरपर धारी; मोहशयतानना फंदे फसुं नहीं, लालच लाखो परिहारी. लागी०४ भवबाजीमा रहुं नहि राजी, जूठनी बाजी नहीं बाजी; बुद्धिसागरप्रभु रह्यो गाजी. हवे न कहुं जूठनी हाजी. लागी० ५ ॐ ह्री श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय,जन्मजरा मृत्युनिवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय, चन्दनं यजा. महे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ तृतीया अदत्तादानपापस्थानक निवारक पुष्पपूजा. दुहा. संकटवध दुःखोतएं, चोरो मूल छे जाण; दुष्टगति महाद्वार छे, चिंता भयनो खाण. ॥१॥ चोरीथी व्यसनो घणां, पाप घणुं बंधाय; चोरनो विश्वास ज नहीं, चोरी तजे सुख थाय.॥२॥ (फाग राग. रंग मच्यो जिन दरबाररे चालो खेलीए होरी ए राग.) प्राणजीवन आधाररे, दिल महावीर प्यारा; चोरी तजे प्रभु प्राप्तिरे, टळे दुःख अपारा. ॥ चोरी करवाथी सुखशांति, थइ न कोने न थाशेरे; दिल. ॥ हिंसा जूठ ने बीजां व्यसनो, प्रगट थतां परखाशेरे. दिल०१ चोरीनुं धन स्थिर न रहेतुं, जोति शोक वपुनाशरे; दिल.॥ चोरने स्वप्ने पण नहीं शांति, धरे न कोई विश्वासरे. दिल०२ For Private And Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७३ चंचल चित्तहुं ठाम ठरे नहीं, ज्यां त्यां जटकवं थायरे दिल.॥ निर्दय नफ्फट नवरो नागो, भृतपेठे लटकायरे. दिल०३ प्रभु तुज आज्ञा शिरपर धारी, चोरी तजा निर्धाररे; दिल. ॥ द्रव्यनावथा अस्तेयत्नावे-, देख्यो तुज देदाररे. दिल ४ मनमोहन प्रभु मळीया महावीर, प्रभु लाग्यो तुज प्याररे; दिल. ॥ बुद्धिसागर आतम बळिया, अलबेला आधाररे. दिल०५ ॐ ह्री श्री परम पुष्पं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ चोथी मैथुननिवारकदीपकपूजा ॥ मैथुन आस्रव कर्मन, भवनुं मूल पिडान; मैथुनत्यागे संत ते, स्वयं बने नगवान्. ॥१॥ जडथां सुखनी बुद्धिथी, मैथुनवृत्ति थाय; आतममां सुखबुद्धिथी, मैथुनमोहविलाय ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७४ ( राग होरी . ) ( रविसागर गुरुराया, जग जरा डंका बजाया. रवि० ए राग. ) ब्रह्मचर्य जयकारी, चिदानन्दशक्तिधारी ब्रह्मचर्य. ॥ प्रभु महावीरनुं शरण स्वीकारी, मैथुनवृत्ति निवारी; तमयानन्दरस घट धारो, पापस्थानक तजो भारी. जोगनी इच्छा वारी. प्रथम रुरुं परिणामे बूरुं, किंपाकसम दुःखकाररो; सघळो दुनिया मुंझी तेमां, तजे तेन । बलिहारी. बूर वे कामनी यारी. रावणनी वृत्ति व्यभिचारी, समज्यां न कामे लगारी; अंते युद्धमां पाम्यो खुवारी, मरी गयो नरक मझारी; समजशो नस्ने नार. मंत्र फले जगजश वधे भारी, वचननी सिद्धिथनारी; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ब्रह्म० १ ब्रह्म० २ ब्रह्म० Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७५ चिंतव्यु सिद्ध थतुं निर्धारी, जोशो शास्त्रो विचारी; जवू नहीं जन्मने हारी. ब्रह्म०४ शेठ सुदर्शन वर्या शिवनारी, मैथुन इच्छा वारी; जंबू स्थूलनद्र धन्य अवतारी; नेमिजिन सुखकारी; मैथुन छे बलहारी. ब्रह्म० ५ मनवचकाया धरो अविकारी, आतममां सुखधारी; बुद्धिसागर ब्रह्मचारी सिद्ध, थातो जग उपकारी; महावीर आणाधारी. ब्रह्म०६ ॐ परम दीपकं यजामहे स्वाहा ॥ पंचमी परिग्रहनिवारकधूपपूजा. जावथी मूर्छा परिग्रह, द्रव्यथी नवविध जाण; परिग्रहत्यागथी मुक्ति छ, निर्ममता सुख मान. ॥१॥ परिग्रहमोह त्यां प्रभु नहीं, परिग्रह पाप- मूल; आत्मप्रभु प्रीतिविना, मूढ करे महाभूल. ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७३ (देखी देखी पदमणी नारी हो. ए राग.) महावीर प्रभु जयकारी, जाउं तुजपर सघळु वारी हो. ममताअहंतापरिग्रह धारी, महावीर० पाम्यो जन्म मरण दुःख जारी हो. महावीर० १ परिग्रहग्रह छे महादुःखकारी, मी तेथे न शांति लगारी हो. महावीर ॥ मूर्च्छा एज परिग्रहक्यारी, जडपुद्गलसंगनी यारी हो. महावीर २ चारगतिमां अनंतीवारी, भम्यो बह्मस्वरूप विसारी हो; || महावीर ॥ हुं मारुं करी उमर हारी, नाखी शिरपर धूली अपारी हो. महावीर० ३ हवेतो तुज शरण स्वीकारी, तजी परिग्रहवृत्ति नठारी हो; महावीर. || पुद्गल ऋद्धिगणुं नहीं प्यारी, प्यारी आतमऋद्धि भाळी हो. महावीर० ४ परिग्रहराग त्यां प्रभुनी न यारी, धनधूळनी प्रान्ति निवारी हो; । महावीर. नव विधपरिग्रहममतानारी, जाली जगमाया धूसारी हो. महाबीर० ५ For Private And Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७७ दर्शनज्ञानचरणऋद्धि सारी, मेंतो शाश्वत लक्ष्मी संभारी हो; महावीर.॥ बुद्धिसागरब्रह्ममहावीर, चिदानंद मळ्या मनोहारी हो. महावोर० ६ ॐ परम धूपं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ छट्टी क्रोधपापस्थानकनिवारक वासपूजा॥ क्रोध समो शत्रु नहीं, क्रोध समो नहीं काल; क्रोध समुं विष को नहीं, क्रोध कर्मजंजाल. ॥१॥ क्रोधथकी मैत्री टळे, क्रोधे शक्ति हणाय; क्रोधे कोडीपूरवतणुं, संयम निष्फल जाय, ॥२॥ (सखी सुणो प्रेमथी शीख सारीरे. ए राग.) प्रभु महावीर जिन दिल प्यारारे, मुज आतमना आधारा. प्रभु० ॥ काल क्रोध महाविकराळोरे, तेनी प्रलय अग्निसम ज्वाळोरे; " कृपा लावीने कोधने टाळो. प्रभु०१ For Private And Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ नवमां क्रोध करीने भटक्योरे, आडो अवळो ज्यां त्यां अटक्योरे; मुक्ति जातां वचमां लटक्यो. प्रभु०२ क्रोधथी थयुं अनंतु मरवुरे, क्रोधानावे भवोदधि तरवुरे; आपोआपस्वजावे उगरवं. प्रभु० ३ पूर्वकोटिचरणगुण हरतोरे, क्रोध कोइनुं सारं न करतोरे; क्रोध, बलप्रीतिगुण संहरतो. प्रभु०४ क्रोध संहारी तुज साथ मळवुरे, ज्योतिज्योतें तुजमाहि भळवुरे; बुद्धिसागर प्रभु अनुसरवू. प्रभु० ५ ॐ परम वासं यजामहे स्वाहा ॥ सप्तमीमानपापस्थानकनिवारक सुगंध चूर्णपूजा॥ मान अहंता धारतां, आतमशुद्धि न थाय; लघुता विनयपणुं टळे, प्रजुता नहीं प्रगटाय. ॥१॥ माने मूढता संपजे, अगुरुलघु न पमाय; मान टळ्याथी सद्गुणो, प्रगटे मुक्ति थाय. ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७९ (निशदिन जोउं तोरी वाटर्डी, ढोला अम घेर आवो. ए राग . ) परम प्रभु परमातमा, महावीर परखायो; मानने सर्वथा टाळीने, शुद्ध ब्रह्म सुहायो, मान टळ्याथी नम्रता, विद्याज्ञान थावे; माने रावण हारियो, माने धर्म न थावे. बाहुबलीए मानथी-, केवल अटकाव्यं; बेनना बोधथी आत्ममां-, केवल प्रगटाव्यं. हारुं ध्येय स्वीकारीने, मानवृत्ति हठावं; मानना अंधाराविषे, ज्ञान पामी न जावं. लघु गुरु नहीं हुं आतमा, मानवृत्ति भ्रान्ति; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only परम० १ परमं० २ परम० ३ परम० ४ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० बुद्धिसागर ब्रह्ममां, चिदानन्द शिवशान्ति. परम ५ ॥ॐ ह्री श्री परम० सुगन्धचूर्ण यजामहे स्वाहा ॥ अष्टमी मायानिवारकस्वस्तिकपूजा. माया पापनो वेलडी, सर्वकर्मनी खाण; तप जप संयम फोक सहु, दंभ छतां दिलजाण.१ कपट करीने मल्लिजिन, पाम्या स्त्री अवतार; दंभथी दिलनी न शुद्धि छे, कपट तजो नरनार.२ (मुखडा क्या देखे दर्पणमें. ए राग.) जिनवर महावीर छो जयकारी, मारी नौका ब्रूडतां तारी. जिन ॥ कपटकलानी क्रिया निवारी, शुद्ध थया सुखकारी; तेथी तुजपर लगनी लगाडी, माया जाणी नगरी. जिनवर? मायाथी नहीं बुद्धि सारी, र्गुण दोषनी क्यारी; माया महाधूतारी नारी, दुनियानी खानारी. जिनवर०२ For Private And Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८१ दंभछतां नहीं मुक्ति थनारी, तप तपतां के भारी; कपटे निन्दामति थनारी, कर्म यतां दुःखकारी. जिनवर०३ परमातम ! तुज शरण स्वीकारी, तजी मायानी यारी मायाद्वार उघाडी अंतर-, प्रभु भेट्या निर्धारी. जिनवर ४ दिलथी दंन जतां प्रभुयारी, थाती आनन्दकारी; बुद्धिसागरब्रह्मविचारी, प्रकट प्रभु हितकारी. जिनवर० ५ ॐ परमा स्वस्तिकं यजामहे स्वाहा ॥ नवमी लोभनिवारकनैवेद्यपूजा. सर्वपापर्नु मूल छे, लोभ महादुःखकार; लोभी जीवो चउगति, अटके अनंतीवार. ॥ १ ॥ लोने पापो सहु थतां, नभयी इच्छा अनंत; लोभ तज्याथो आतमा, आप बने भगवंत.॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोज तजंतां सहु तज्युं, लोभे गुण सहु जाय; लोभे सहु दोषो वधे, लोभ टळे शिव थाय. ॥३॥ ( चन्द्रप्रभुजीसे ध्यानरे मोरी लागी लगनवा. ए राग.) लोभ तजो नरनाररे, तजी कुमति यारी; तजी कुमति यारी; लोने पाप अपाररे, सत्य जोशो विचारी. लोल. ॥ पंचेन्द्रियविषयोना नोगे, स्वार्थनी मारामारीरे. सत्य० ॥ जर जमीन ने जोरुना मोहे, देता स्वभाइ संहारीरे. सत्यालोभ० १ आशातृष्णा इच्छानो अंत न, सुख न तेथी लगाररे; सत्य० ॥ लोभे लालच हिंसावृषि, मुःख अशांति अपाररे. सत्यालोभ० २ जर जमीन को सार्थ गइ नहीं,पडो रहे अहीं सर्वरे. सत्य० ॥ मारु मारूं कर मुंइयो फोगट, मिथ्या करो नहीं गर्वरे.. सत्यलोभ० ३ For Private And Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सागरचन्द्र दरियामा डुब्यो, सिकंदर गयो रोइरे. सत्यम् ।। नंदनीसाथे सोवन मुंगरी, एक न गइ जुओ जोइरे. सत्यालोभ० ४ आखरे जावू खाली हाथे, लोभथो शांति न थायरे. सत्यः रेती पीले तेल न नोकळे, जडमां नहीं सुख क्यांयरे. सत्य० ५ प्रजुमहावीर शरण स्वीकारी, करूं न लोभनी यारीरे; बुद्धिसागरप्रभुप्रीतधारी, लइशुं जन्म सुधारोरे. प्रभुप्रेम वधारी, प्रजुप्रेम वधारी. लोभ० ६ ॐ परम नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ दशमी रागपापस्थानकनिवारक पुष्पमालापूजा॥ जगमांहि शत्रु नथी, जमना रागसमान; विषयनोगनी कामना, आदिमूल ते जाणः ॥१॥ राग त्यां द्वेषनी वृत्ति बे, राग डे भवनुं मूळ; रागने टाळयावण अरे, तप डे आवळफुस ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४ ( आनन्द क्यां वेचाय चतुरनर, आनन्द क्यां वेचाय-ए राग ) महावोर जगदाधार, जिनेश्वर महावीर जगदाधार, वीतराग सुखकार. ....... जिनेश्वर ॥.... रागरोषनो क्षय करीने, यया जिनेश्वरदेवः राग हणी अर्हन्थवारे,करं चरणनी सेव. जिनेश्वर ॥१॥ देव गुरुने धर्मनोरे, राग प्रशस्य गणाय; अप्रशस्यराग जडविषेरे, प्रशस्य त्नक्तिमां थाय. जिनेश्वर ॥२॥ सद्गुरुसंतमां रागतारे, वीतरागताहेत; शुद्धातमना प्रेमथीरे,शिवसुंदरीसंकेत. जिनेश्वर ॥३॥ सर्ववस्तुसंबंधमारे, वर्त नहि दिलराग, अनासक्ति निष्कामतारे, प्रगटे त्यारे त्याग. जिनेश्वर ॥ For Private And Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८५ अनंतकालथी रागथोरे, भवमा भटक्यो अनंत; प्रभु तुज शरणुं स्वीकारियुरे, थाशे रागनो अंत. जिनेश्वर० ॥५॥ शुद्धातमप्रभु रागथीरे, बाह्यरागरंग जाय; बुद्धिसागर यातमारे, आनन्दरसे उल्लसाय. जिनेश्वर ॥६॥ ॐ ह्रीं श्री परम०-पुष्पमालां यजामहे स्वाहा ॥ ॥ अग्यारमी द्वेषनिवारकफलपूजा ॥ दुर्जनथी पण दुष्ट , द्वेष महादुःखकार; अनंतकर्म करावतो, द्वेष तजो नरनार. ॥१॥ द्वेषथी अंधा जीवमा, भूले धर्मनुं भान; द्वेष टळ्याथी आतमा, स्वयं बने भगवान् ॥ २॥ (जीवलडा घाट नवा शीद घडे. ए राग. ) प्रभुनी वाटे जे जन वळे, द्वेषने त्यागी जिनपद वरे. ॥ रागने रोषने टाळ्या वण कोइ, जवसागर नहीं तरे; For Private And Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वेषने १ द्वेषने० २ द्वेषने ३ मोहने मार्या वण नहीं मुक्ति, द्वेष धरी नव फरे. रागने द्वेषविना शुद्धातम, कदी न जन्मे मरे; द्वेष कर्याथी कर्मबन्ध ने, कर्मोदयदुःख मळे. द्वेष कर्याथी निजनी पमती, थात कर्मना बळे कर्मनी अकळकळा ठे न्यारी, ज्ञानी द्वेष न करे. द्वेषथकी जे खाडो खोदे, ते तेमांही पडे; अन्यनी निन्दा इर्ष्या द्वेष, धवळपरे पडे धरे. पुण्यपापथी चमती पमतो, द्वेष करी केम मरे; शुद्धातममहावीरशरणथी, दुर्जन वेषी न छळे. वेष तज्यावण तपजपनते, थाती न मुक्ति खरे; १-रामां-दुःखना खाडामां: द्वेषने०४ हेष० ५. For Private And Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८७ बुद्धिसागरमहावीर वाटे, ज्योति ज्योतमां भळे. द्वेष०६ ॐ परम० फलं यजामहे स्वाहा ॥ बारमी कलहनिवारकध्वजपूजा. कलह कंकास कुसंपथी, सघळी शक्ति विनाश; दंतकलह झघडाथकी, पडती दुर्गति खास. ॥१॥ क्लेशथी कर्मनो बंध छे, प्रगटे दोष अनेक; मैत्री संप सुख धन टळे, नासे सत्यविवेक. ॥२॥ शुद्धप्रेमनीति टळे, सज्जनता दूर जाय; शठता क्रूरता प्रगटती, प्रगट्यो धर्म हणाय.॥३॥ (ए गुण वीरतणो न विसालं. ए राग.) पूजें महावीर जिन जयकारी, सर्व जगत उपकारीरे; बारमुं पापस्थानक टाळी, सिद्धि वर्या सुखकारोरे. पूजुं० १ रागने द्वेषनो पुत्र कलह छे, मैत्रीघातक भारीरे; प्रमोदमाध्यस्थभावसंहारी, झघडा टंटाकारीरे, पूजुं० २ For Private And Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८८ क्लेश की वैर निन्दा युद्धो, प्रगटे पाप पारीरे; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समता क्षमाथी क्लेश टळे छे, मनडुं बने अविकारीरे. मनवाणी वशमां राखतां, टळती टेव नठारीरे; कलह कुसंप ने झघडा टळता, धरतां सहनता सारीरे. अरिहंतमहावीरशरण स्वीकारी, कलहनी वृत्ति वारीरे; बुद्धिसागर यानन्द मंगल, पामुं उपयोग धारीरे. ॐ परम० ध्वजं यजामहे स्वाहा || For Private And Personal Use Only पूजुं० ३ पूजुं० ४ पूजुं० ५ तेरमी अन्याख्याननिवारक अष्टमंगल पूजा ॥ अभ्याख्याननुं जाणवुं, ऋषिहत्या समपाप; थी पापपरंपरा, प्रगटे महासंताप ॥ १ ॥ आळी वैरने युद्ध छे, परभव वैरी थाय; कलंकवतिप्रवृतिने त्यागे शिवसुख पाय. ॥ २ ॥ 7 Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८९ ( जोगी थैने जंगलमांही फरशुरे. ए राग . ) प्रभु महावीर सेवन करवुंरे, अभ्याख्यानथी पाछा फररे. परने कूडुं कलंक न देतुं, आळ देवाथी थाय न तरखुंरे. आळशी आळना फळने वरखुं, थाय भवमांही जन्मने मरतुरे. पूर्वकर्म उदये सीतापर, चढयुं कलंक वनमां विचरकुरे. दुर्जन निजपर आळ चढावे, तदा तेपर आळ न उच्चरवुरे. आघात तेवो थाय प्रत्याघात, आळहिंसाकर्म परिहरखुरे. कलंक समुं नहीं पापकर्म छे, तेथी मनुहिंसा फळ वरखुरे. समताजावे कलंक सहीने, शुद्धमहावीररूप समरखंरे. शुद्धातममहावीर उपयोगे, आळवृत्ति निवारी विचररे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only प्रभु ॥ प्रभु० १ प्रभु ॥ प्रभु० २ प्रभु ॥ प्रभु० ३ प्रभु ॥ प्रभु० ४ प्रभु ॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुद्धिसागर आत्ममहावीर, आपोआपस्वभावे उगरवुरे. प्रभु० ५ ॐ परम अष्टमंगलानि यजामहे स्वाहा ॥ चौदमी पैशुन्यनिवारककर्पूरपूजा. चाडी चुगली पापर्नु-स्थानक चौदमुं जाण; अनेकदुर्गुणदोषनी, पेटी मोहनी खाण. ॥१॥ दुर्जनदुष्टनी वृत्ति छे, बाळने पैशुन्यदान; पैशुन्यवृत्ति त्यागतां, आत्म बने भगवान् ॥ २॥ (जिन दर्शन मोहनगारा. ए राग.) प्रभु महावीर छो आधारा, मुज आतम पूर्ण छो प्यारारे. प्रतु॥ पापर्नु स्थानक पैशुन्यवारी, थया जगत् जयकारा; चाडीचुगली दोष जणाधी, कोटि लोकने तार्यारे. प्रभु० १ चाडी चुगलीथी पाप घणुं छे, प्रगटे हिंसाचारा; For Private And Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९१ परनुं बूरुं करवानी बुद्धि, प्रगटे वैरविचारारे. चाडी चुगली मोहेयाती, दुर्जनना आचारा; विश्वासघातादिपापपरंपरा, प्रगटे दोष विशाकारे. पैशुन्यवृत्तिना धरनारा, दुर्जन पापावतारा; परनुं ब्रूरुं करतां पोते, दुःख लहे निर्धारारे. महावीर हारुं शरण स्वीकार्य, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पैशुन्यभावने टाळ्या; बुद्धिसागर महावीर दिलमां, आतम उपयोगे धार्यारे. ॐ परम० कर्पूरं यजामहे स्वाहा ॥ प्रभु० २ For Private And Personal Use Only प्रभु० ३ प्रभु० ४ प्रभु० ५ || पन्नरमी रतिअरतिपरिहारक दर्पणपूजा ॥ शुभाशुभ कर्मोदये, रति अरति प्रगटाय; हर्ष शोकभी मुझतां, नवां कर्म बन्धाय ॥ १॥ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ रति अरतिमा समपणे, वर्ततां नरनार; करे कर्मनो निर्जरा, शुफ बने निर्धार ॥ २ ॥ (आज सखी मोंये वालमा, मुन मंदिर आये. ए राग.) रति अरति आवे मनविषे, हर्ष शोक न करीए: शुद्धातम महावीरने, पूजी पापने हरीए. रति १ शुभ अशुभ कर्मोदये, रति अरति थावे; कर्मनी बाजी जाणीने, ज्ञानी रहे समभावे. रति २ जेवां गगनमां वादळां, आवे ने लय थावे; नभनिलेप तथा दशा, ज्ञानी निर्लेपभावे. रति०३ रतिथी प्रभुता न मानीए, अहंकारी न थावं; अरतिथी दीनता धरी, मोहे मरी नहीं जावं. रति०४ For Private And Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९३ बाजीगर बाजी समा, जेवा जलपडछाया; रति ने रतिनी कल्पना, इन्द्रजालनी माया. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रति० ५ नामजिन्न शुरुआतमा, रति अरति न्यारी; बुद्धिसागरसमरसी, पूर्ण ब्रह्माधारो. ॐ परम० दर्पणं यजामहे स्वाहा ॥ प्रभु महावीर जिनवर पूजीए, निन्दा करतां धूजीए. १५ For Private And Personal Use Only रति० ६ सोळमी परपरिवादपरिहारकवस्त्र पूजानिन्दा दुर्गति वेलडो, निन्दा अधर्मनी खाण, परपरिवादनी टेवथी, प्रगटे न निर्मलज्ञान ॥१॥ समिति गुप्ति में बने, सद्वर्तनमां हान; निंदात्यागतां आतमा, बने शुद्ध जगवान्. ॥२॥ ( प्रभु निर्मल दर्शन कीजीए. ए राग. ) प्रजु० Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु०१ प्रभु० २ निन्दात्याग ए प्रभुपूजा, निन्दावृत्ति हरीजीए; गुणरागो थै परगुण देखो, मनमांही बहु रीझीए. अन्यमां दुर्गुण व्यसनो देखो, मन अचरिज न धरीजीए; परमां दोषो छतां गुण एकने, देखी अचरिजे रीझीए. श्वानदंतने कृष्ण वखाणे, समकितीदृष्टांत लीजीए; मिथ्यात्वी अगुणने ग्रहशे, नाम देइ न निन्दीजीए. काकसरिखी दृष्टि न धरीए, सज्जनरीते रहीजीए; निन्दक चोथो चंडाल जाणी, परनिन्दा नहीं कीजीए. सद्गुण सद्वर्तनथी मुक्ति, दोषे न मुक्ति वरीजोए; निजमा रह्या दोषकर्मने निन्दी, प्रभुवचनामृत पीजीए. प्रनु०३ प्र०४ For Private And Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९५ प्रभु महावीरनुं शरण स्वीकारी, प्रभुना मार्गे वहीजीए; बुद्धिसागर गुणरागी थै-, उपयोगे धर्म धरीजीए. ॐ परम० वस्त्रं यजामहे स्वाहा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सत्तरमी मायामृषावादनिवारिका आभरणपूजा || कपट करी जूठ बोल, मान पूजानेकाज; तेथी कर्मनो बन्ध बे, मळे न शिवसाम्राज्य, १ धर्मादिकमां वंचवा, कपटकळाथी अन्य; तेथी मुक्ति न थाय छे, त्यागे ते धन्य धन्य २ ( सब जन धर्म धर्म मुख बोले. ए राग. ) प्रभु महावीरनी सेवा सारी, आतमशुद्धिकारी. प्रभु० दंभ धरीने धर्मीना डोंळे, जूठां वचनो उचारी; अन्यजनोने छेतरवाथी, पाप वधे बहुजारी. प्रभु० ६ For Private And Personal Use Only प्रभु० १ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९६ मायामृषावादत्याग ए प्रभुनी-, पूजा सेवा सारी; मायामृषावादत्यागथी मुक्ति, सरल ने सत्य थनारी. प्रभु० २ धर्मीपणुं मान पूजा अर्थे, मायामृषा दुःखकारी; मायामृषाथी भवपरंपरा, पामे नरने नारी. प्रभु ३ सत्यने समजी सत्यने बोली, लेवो जन्म सुधारी, प्रभुमहावीर भाखे एवं, जइए न जन्मने हारी. प्रभु०४ प्रभुमहावीरनुं शरण स्वीकारी, मायामृषा परिहारी; बुद्धिसागरप्रभुगुणधारी, प्रनु बनीए निर्धारी. प्रभु० ५ ॐ ह्री श्री परम० श्राजरणं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९७ अढारमीमिथ्यात्वशल्यनिवारिका विलेपन पूजा. मिथ्यामति महाशल्य छे, अनंतनवर्नु मूल; दयादानतपजपक्रिया, मिथ्यात्वे प्रतिकुल. ॥१॥ मिथ्याबुद्धि टळ्याविना, आतम मुक्ति न पाय; सम्यग्दृष्टि प्रगटतां, आतम मुक्ति सुहाय ॥२॥ (धन्य धन्य जगमा ते नरनार, निर्मल ब्रह्मचर्य धरनार. एराग.; धन्य धन्य महावीरप्रभु जयकार, वंदु पूजु वारंवार; टाळ्या दुःखकर दोष अढार, . जिनेश्वर परमेश्वर सुखकार. ॥ पहेली मिथ्यापरिणति नाखी, अनंतदुःख दातार; ज्यां सुधी मिथ्यात्वदशा छ, तावत् दिल अंधकार; अंधो करे शुं ? रणमां व्हार, मिथ्यामति तेवी निर्धार, धन्य धन्य ? मिथ्यात्वीनी तप जप करणी, दयाधर्म आचार; For Private And Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९८ तेथी मुक्ति याय न क्यारे, मिथ्यात्व ज दुःखकार; समकितयोगे धर्माचार, तप जप संयम शिवकरनार. भेद घणा मिथ्यात्वना जाख्या, देखो शास्त्रमझार; द्रव्यभावमिथ्यात्व टळ्याथी, प्रगटे समकित सार. शुद्धदेवगुरुधर्मनी श्रद्धा, प्रीति प्रगटे उदार; सातप्रकृति उपशम आदि, प्रगटे महावीरप्यार. देवगुरु ने धर्मनी सेवा, - भक्तिरुचि श्रद्धान; बुद्धिसागर आतममांही, जागे अनुभवज्ञान, For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्य० २ धन्य० ३ धन्य० ४ धन्य० ५ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलश. (मान मायाना करनारारे. ए राग.) गाया गायारे महावीर प्रभु उपकारी, ॥ अष्टादशपापठाणनिवारक, पूजा रची सुखकारी; पापनां स्थानक सेवू न सेवा, अनुमोदुं न मनथी लगारीरे. महावीर० १ मारे जीवे पाप सेव्यु सेवराव्यु, अनुमोद्यं तलभारी; मनवचतनुथी मिच्छामिदुक्कड, देउं पश्चात्ताप धारीरे. महावीर २ पाप करेलां निंदु गर्छ-, आतमरूप विचारी; आतमसाक्षीभावे प्रवर्तु, अशुद्धपरिणति वारीरे. महावीर० ३ परमेश्वरवीरदेवपरंपरा-, श्वेतांबर सुखकारी; तपगच्छजगगुरुहीरविजयसू शासन शोभाकारीरे. महावीर० ४ पट्टपरंपरासंवेगी नभमणि, उम्र विहाराचारी; For Private And Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीनेमिसागरचारित्रीयोगी, यतिशिथिलता निवारीरे. महावीर० ५ तस शिष्यमुनिवरसंघप्रतिष्ठित, सर्वसंघहितकारी; रविसम रविसागरगुरुगिरुआ, भारत महिमा भारीरे. महावीर०६ तस शिष्यशांतआबालब्रह्मचारी, सर्वगुणी अघहारी; श्रीसुखसागर गुरु गुणवंता, संघमां मान्य जयकारीरे. महावीर०७ संवत् ओगणिश अग्न्याऐंशी, फागणत्रयोदशी सारी; पुण्यवंत पेथापुरमा पूजा, रची जगत् हितकारीरे. महावीर०८ श्रीसुखसागरगुरुकृपाए,पूर्ण पूजा सुविशाला; बुद्धिसागरसंघऋद्धिवृद्धि, आनंदमंगलमालारे. महावीर० ९ ॐ ह्री श्री परमण विलेपनं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २०१ जैनाचार्य बुद्धिसागर सूरिकृत स्नात्रपूजा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्नात्रविधि. P प्रथम दुध, दहिं घी, केशर, फुल अने जळनुं पंचामृत करी बे कलश एक पाटली उपर चोखाना बे स्वस्तिक करी ते उपर मूकवा. कळशने महोडे नाडाछडी बांधवी. एक त्रण बाजोठनुं सिंहासन करी ते उपर प्रभुनी पधरामणीनुं सिंहासन मूकी तेमां एक रकेबीमां केशरना बे स्वस्तिक करी, त्रण नवकार गणी एक धातुनी पंचतीर्थी प्रतिमाजी तथा एक सिद्धचक्रजीनी प्रतिमाजी पधराववां. प्रतिमाजीनुं मुख उत्तर वा पूर्व तरफ राखी पधराववां. प्रतिमाजी नीचे एक पैसो मूकवो. सिंहासनना वचला बाजोट उपर चोखानो एक स्वस्तिक करी एक फळ मूकवुं. प्रतिमाजी पधराववाना सिंहास - नना एक छेडे नाडाछडी बांधवी. एक रकेबीमां थोडां बूटां फुल तथा केशरवाला चोखा करी राखवा अने श्रामर, दर्पण, पंखो, घंड, विगरे सामान For Private And Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ सिंहासन पासे राखवो. ज्या वस्त्र चडाववानां आवे त्यां नाडाछडीनो ककडो मूकवो, फूलनी अब्त होय त्यां केशरवाळा चोखानो उपयोग करवो. स्नात्र लणाववावाळो माणस हाथमां फूल लइने उभो रहे अने विधिभणावनार माणस विधि शरु करे. कुसुमांजलि बोली 'फूल चढाव'विधि भणावनार माणस कुसुनांजलि चढाववानुं कहे त्यारे भगवान्ने कुसुमांजलि चढावी. सात वखत कुसुमांजलि चढावी रह्या पछी स्नात्रीयो हाथ जोडीने उभो रहे अने विधि नणावनार विधि बोल्ये जाय, ज्यारे 'शुभ लग्ने जन्म्या प्रभु' ए दुहो पूरी थाय त्यारे स्नात्रियो त्रण खमासमण देइ चैत्यवंदननो विधि प्रमाणे चैत्यवंदनं करे ने जयवीयरायनो पाठ 'आभव मखंडा' सुधो कहो हायमां कळश लेइने उभो रहे ने विधि नणावनार ज्यारे 'सौधर्मेन्द्रे पंच रूप करीए पद पूरूं बोली रहे त्यारे जळनो प्रभुने अनिषेक करे. पछी ते ढाळ पूरी थया पछी भगवान ने सिंहासनमाथी बहार लइ चोखा पाणीथी न्हवण करावी अंगलूहणांत्रण करी चन्दन पूजा करे. पछी आरति मंगल दीत्रो करवो. For Private And Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०३ आ विधि सामान्य प्रकारे लखी छे. परंतु ज्यां नाडाछडी लखी छे त्यां उत्तम वस्त्रोनो उपयोग करे वा उत्तम उत्तम द्रव्यनो उपयोग शक्ति प्रमाणे करे तो ते उत्तम छे. “ अथ जैनाचार्य बुद्धिसागर सूरिकृत " अथ स्नात्रपूजा प्रारंभः दुहा. सर्वातिशये शोभता, प्रभु महावीर जिनेश, शासन नायक जगपति, प्रणमुं हुं विश्वेश. ॥१॥ प्रभु स्नातनी नावना-, करतां शान्ति थाय; रोग शोक दूरे टले, स्नात्रपूजा महिमाय. ॥ २॥ कुसुमांजलि ढाळ. ऋषभदेव पूजा. आठजाति कलशे न्हवरावे, इन्द्रो मनमा आनन्द पावे; प्रजु पूजा समकित प्रगटावे, प्रभु जाणी प्रभुने दिल लावे; कुसुमांजलि यी ऋषभ पूजीजे, ग्रही प्रभुगुण मन रीझोजे. ॥१॥ _ (फूल चढावबु.) For Private And Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ शान्तिजिनपूजा. दुहो. क्षायिकनवलब्धि प्रभु, शान्तिनाथ जगदेव; द्रव्यभावथो शान्तिने, पामो करीने सेव, ॥१॥ ढाल. सहजानन्दस्वनावे शान्ति, केवलज्ञाननी शोभे कान्ति; टाळे सर्वजीवानी ब्रान्ति, आपे तन्मय थातां क्षान्ति; चोसठ इन्द्रो सारे सेवा, पूनुं प्रणमुं शान्ति देवा. ॥२॥ (फूल चढाव. ४) नेमिनाथ पूजा. दुहा. केवलज्ञानमा नासतुं, अणुसम विश्व सदाय, ते नेमि प्रभुपूजीए, भावब्रह्म प्रगटाय. ॥ १ ॥ ढाल. बाल्यथकी जे ब्रह्मव्रतधारी, अनन्तशक्तिमय अवतारी, केवलज्ञानथी जगहितकारी; मोहशत्रु हणी ए मोहारि, नेमिजिनेश्वरने पूजीजे, प्रभुस्वरूप थै प्रनु प्रणमीजे ॥२॥ (फूल चढाव ३) For Private And Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५ पार्श्वनाथ पूजा. दुहा. पार्श्वप्रभु प्रणमुं सदा, त्रेविसमा जिनराय; वन्दे पूजे भावथी, सिद्धे वालित काज. ॥ १॥ ढाल. पार्श्वप्रभु जगमां जयकारी, परब्रह्म जगने सुखकारी; चोत्रिश अतिशयथी अवतारी, पांत्रिशवाणी गुणना धारी, पार्श्व पूजीजे ध्याने रहीजे, आत्मिक गुण प्रगटावी लीजे ॥ २॥ कुसुमांजलिए पूजा कीजे, प्रभुस्वरूप थावा दील कीजे. ॥२॥ (फूल चढाव, ४) वीरप्रभु पूजा. दुहा. शासननायक जगधण), परब्रह्म महावीर, सर्वदेवना देव जे, सर्वधीरमां धीर. ॥१॥ ढाळ. प्रभुमहावीरदेव समरीजे, आविर्भावे आतम For Private And Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २०६ कीजे, वीर बनी महावीरने नजीए, कायरता दुर्गु णने तजीए, प्रभुचरणे कुसुमांजलि घरीए, धीर वीरता वेगे वरीए; देहाध्यास तजी वीर थावुं ते माटे वीर गावं ध्यावुं ॥ २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( फूल चढाव ५ ) ॥ अथ सर्वजिनपूजा ॥ सकलजिनेश्वर प्रेमे पूजो, अशुभकर्मथी भवि जन धूजो; कुसुमांजलि जिनचरणे धरीए, सहज स्वभावे शिवपुर वरीए ॥ २ ॥ कुसुमांजलि पूजो सर्व जिनन्दा, तुज चरणकमल सेवे चोसव इंदा. ( फूल चढाव. ६ ) इति चोवीश जिनपूजा, ॥ सर्व जिनपूजा ॥ ढाळ, पन्नरक्षेत्रे अतीतकालमां, वर्तमानमां वर्त्तेजी, भाविकाले थाशे जे जिन; वीतरागगुण शर्तेंजी, एकसो ने सित्तेरतीर्थकर, उत्कृष्टा जे कालेजी. पूजूं For Private And Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०७ बांडुं गावं ध्यावुं, आतम जे अजवाले जी ॥ १ ॥ जन्मोत्सव कल्याणक उजवे, इन्द्रादिक बहुभावे जी; जन्मकाले तीर्थकर सहुने, मेरुपर लेइ जावेजी; सर्वजातिकलशा अभिषेके, प्रेमे प्रभु न्हवर वेजी. एवा अरिहंत त्रण कालना, पूजीजे एकभावेजी ॥२॥ ( फूल चढावुं 9 ) आतम भक्ति मल्या केइ देवा. ए राग. त्रीजेजव तीर्थकर कर्मने, वांध्यु वीरे भावे, द्रव्यभाववरथानकतपथी, प्रशस्यरागनादावे, सर्वजीवोने धर्मी बनावु, सर्वविश्व उद्धारुं, रहे न जगमां कोइ दुःखी, सर्वजीवोने तारुं ॥ १ ॥ शुभ उत्कृष्टा हर्षोल्लासे, जिनवरनामने वांधे, अनन्त पुण्य ग्रहीने प्रभुजी, सकलजीव हित साधे, मानव श्रायुः पूर्ण करीने, दशमास्वर्गमां जावे, पुष्पोत्तर वैमानिक सुरवर, स्वर्गतणां सुख पावे ॥२॥ त्यांथो चवीने दक्षिणजरते, क्षत्रिकुंडपुरमांहे, त्रिशला - राणी कुखमां आव्या, ज्ञातकुले उत्साहे, त्रिशलामाता स्वनो देखी आनंद अतिशय पावे, जारतने उद्धरवा प्रगट्या, प्रभुजी शक्ति प्रजावे ॥ ३ ॥ हाथी - For Private And Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ वृषभने केशर सिंह, लक्ष्मी पुष्पनी माला, चन्द्र रवि ध्वज कलश मनोहर, सरोवर पूर्ण विशाला, सागर रत्ननो राशी अग्नि-, निर्धूम चौद निहाळे, चौदे स्वप्ननो अर्थ सुणीने, आनंदजीवन गाळे, ॥ ४ ॥ सिद्धारथराजाना हुकमे, जोषीओ त्यां आव्या, पुर बाहिर सुरम्य सभामां, अर्थविचारे फाव्या, ज्योतिषिओ भेगा थइने, बोले साची वाणी; तीर्थकर वा चक्रवर्ती तुज, पुत्र यशे गुणखाणी ॥५॥ राजा राणी अति हरखायां, ज्योतिषी संतोष्या; दानादिकथी धर्मिलोको, याचकने संतोष्या; भारतमां सहु घरघर लोको, जाणी आनन्द पाया, त्रिशलामाता गर्भने पोषे, धरे निरोगी काया ॥ ६ ॥ चैत्रशुदि तेरशना दिवसे, मध्यरात्री थइ जातां; सर्व दिशाओ उज्वलशान्ति, आनन्दवाळी सुहातां; नवमहिनाने साडासात ज, दिवस पूरा थातां; त्रिशलामाताए प्रभु जनम्या, त्रिलोके थ शाता. ॥ ७ ॥ भारतदेशे घरघर मंगल, घरघर हर्ष वधाइ, सिद्धारथराजा मन आनन्द, प्रगट्यो विश्व न माय ॥ ८ ॥ शुन लग्ने जनम्या प्रभु, त्रणभुवन उद्योत; नारकी पण आनन्दीया, जेनी अनंत ज्योत ॥ ९ ॥ For Private And Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हवे चैत्यवन्दन करवु तेनि विधि. वोर आसने बेसी के हाथ जोडी प्रभुजी सामी दृष्टि राखी ‘इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवन्दन करूं' इच्छं एम कही 'सकळ कुशळवल्लि' कही जगचिन्तामणि कहेवू. पढ़ी जं किंचि, ननश्शुणं-, जावन्ति चेइयाई, जावन्त केविसाहु, नमोऽईत् कही उवसग्गहरं कहे, पछी आनवमखंडा सुधी अर्धा जयवीयराय कहेवा. अहिं सुधि कही पछी उभा थइ स्नात्रीआए कलश हाथमां लइ प्रभु ..ीना डाबा अंग तरफ उभा रहे पछी विधि करनार विधि भगे. राग उपरनो. बप्पन दिक्कुमरी तीहां आवे, प्रनु जन्मोत्सव हेते; प्रभु माताने प्रणमे प्रेमे, सूतिकर्म संकेते. आठे दिकुमरी वायुथ); कवरो करतो दूरे, आवे कुमरो गंधोदकथी, सुगंधी जलने पूरे. ॥ १ ॥ आठ कुमा। कलशा धारे, दर्पण आवे धारे; आठकुमारी चामर वींजे, भाव भक्ति अनुसारे. आठ कुमारी पंखा क For Private And Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१० रती, रक्षा करती चारे; चार दीपकने धारे प्रेमे, निज आतमने तारे. ॥ २ ॥ कदलीनां घर करी मनोहर, बाल प्रजुनं लावे; पवित्र कर्मने करवा माटे, जल कलशे न्हवरावे; जलपुष्पे आभरणे पूजी, प्रभु शरीर शणगारे; प्रभुना करमां राखडी बांधी, ( वधावी नाडाबडी मूकवी; ) जय जय शब्दोच्चारे ॥३॥ माता पासे प्रभुने सूकी, निज निज स्थानक जावे, इंद्रासन ते वखते कंपे, महापुण्य सद्भावे; अवधि ज्ञाने इंद्रे जाण्यो, प्रभुजन्म सुखकारी; सुघोषा आदि घंटाओ, वगडावे जयकारी. ॥ ४ ॥ पालक नाम विमानमा बेसी, इन्द्र बहु परिवारे; अन्य विमानने वाहन बेसी, निज ऋद्धि अनुसारे; अन्य सुरोने देवी यावे, प्रभुने देखी वंदे प्रभु अने प्रभु मात वधावी, इंद्र वदे गुण छंदे. ॥ ५ ॥ ( फूल नथा केसरवाळाचो वायी वधाववा. ) जय जय माता जगमां जय जय, जय जय शब्दो बोले; व्हारो बालक जगतीर्थंकर, को नहि तेना तोले; प्रतिबिंब मातानी पासे, मूकी प्रभु कर लीधाः पंचरूप इंद्रे For Private And Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २११ निज कीयां, नावे कारज सिद्धयां ॥६॥ मेरु उपर पांडुक वनमां, शिला सिंहासन गावे; सौधर्मेन्द्रे खोळा माहि, प्रभु धर्या शुभ भावे; चौसठ इन्द्रो,भाव धरीने, आव्या त्यां उल्लासे; निज निज शक्ति ऋद्धि भावे, इंद्रो पूर्ण विकासे. ॥ ७ ॥ अच्युतेंद्रे औषधि तीर्थनी-, माटी जल मंगाव्यां; आउजातिना कलश नरीने, इंद्रोए न्हवराव्या; फूल चंगेरी थाळ रकेबी, उपकारणो बहु जाति; प्रभुनी नक्ति करतां विधविध, निर्मल करता छाति. ॥ ८ ॥ भुवनपति ने व्यंतर ज्योतिष, वैमानिक बहुदेवा; अच्युतपतिनी आज्ञा पामी, करता बहुविध सेवा; एकक्रोड ने साठलाख सहु, कलशानो अभिषेक; अढीसे अभिषेक सहु मळी, सुर नहि चूके विवेक ।। ९॥ (थोडो जळ अभिषेक करवो) इशान इन्द्रे करमालीधा, प्रनुनी भक्ति कीधी; सौधर्मेन्द्रे पंचरूप करी, भक्ति करी प्रसिद्धि; (संपूर्ण जळनो अभिषेक करवो.) पुष्पादिकथी प्रभु वधाव्या, आनंदना कल्लोले; मंगलदोवो आरति करीने, सुरवर जय जय बोले ॥१०॥ अनेक बाजीत्रोने For Private And Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वजावे, अनेक नाचो नाचे; प्रभुनो जन्मोत्सव करीने, सर्व सुरासुर राचे, करमां धारण करोने प्रभुने, त्रिशला माता पासे; इन्द्रादिक आवीने बोले, पूरण हर्षोल्लासे ॥११॥ पुत्र तमारोप्रभु अमारो, सर्व विश्व आधार; तुज कुखे प्रभु जन्म्यामाटे, विश्वमात निर्धार; पंच धाव सोंप। प्रभु कोडा,-करवा माटे वेश; बत्रीश कोटि रत्नादिकनी; वृष्टि करे हरे क्लेश. ॥१२॥ (फूल केशरवाळा चोखा, नाडामी विगरे प्रभु सन्मुख उनाळवू.) इंद्रादिक प्रभु वांदि पूजो, नन्दीश्वरमां जावे; अष्टान्हिकामहोत्सव करीने, आनंद मंगल पावे; निज निज कल्प सधावे सुरवर, दीक्षोत्सव अनिला; केवलज्ञान महोत्सब इच्छा, राखी हर्ष विकासे. ॥१३॥ प्रभु जन्मोत्सव नारतदेशे, भक्ते कीधा नावे; घर घर आनंद मंगल वर्ता, स्नात्र महोत्सवदावे; सकल संवमां शांति वतों, इति उपद्रव शामो; स्नात्र महोत्सव गुणनाराने, गानारा सुख पामो. ॥ १४ ॥ परब्रह्ममहावीरप्रतापे, रोग टळो सहुजाति; दुष्ट देवना टळो उपद्रव, व्हेम टळो वहुनाति: गाम For Private And Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१३ नगर पुरदेशमां शांति, वर्तो प्रभुप्रतापे; आधि व्याधि संकट टळतां, प्रभु महावोरजापे ॥ १५ ॥ सर्व जमां शान्ति वत, धर्मी वनो नरनारी, दोषो क्षय पामो भक्तिथो, जनो बनो उपकारो; झघडा युद्धो उपशम थाओ, वृष्टि थशो मनमानी; पुण्यकर्म वधशो जगमांहि, वधशो शक्ति मझानो. ॥ ४६ ॥ तपगच्छदार विजयसूरिजगगुरु, - पट्टपरंपराधारो; पूज्यगुरुर विसागर प्रगट्या, सर्वोपमजयकारी; शान्तिदायक सुखसागरगुरु, घरघरमंगलकारी; बुद्धिसागरसूरि आशो, शान्ति लहो नरनारी ॥ १७ ॥ फूल तथा केशरवाळा चोखाथ प्रभुने वधाववा. पठी सिंहासनमांथी प्रभुजी तथा सिद्धचक्रजीने लइ चोखा पाणीथी पखाळ करी त्रण अंगलुहणां करी केशर (चंदन) श्री पूजा करी फूल चढाववां अने सिंहासन मध्येनी केवीमांथी पाणी काढी नांखी धोइ साफ करी फरी केशरना स्वस्तिक करी पंधराववा. आरती मंगळदोवो प्रगटावी बन्ने नामाछडी For Private And Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बांधी एक रकेवीमां मूकी कंकुना गटा नाखो चो खाथी वधाववा, रकेबाना सापारी तथा एक पैसो मकी रकेबो वच्चे राखी स्लात्रियाने सन्मुख वेसामवो. रकेवीनी एक बाजु सात माटोनी कांकर। तथा सात मीठानी कांकर लइ एक मोठानी कांकरी अने एक माटीनी कांकरी ए रोते दरेक ढगलोमां मूको सात ढगलीओ करवो. पली बीजो तरफ जळनी कुंडी राखवी. स्नात्रियाने उत्नापगे बेसाडो डाबा हाथ उपर जमणो हाथ रखावी विधि नणावनार माणल स्नात्रियाना हाथमा दरेक वखते एक मीगनी अने एक माटीनी कांकरो आपो ते साथे हथेलीमा चोखा पाणीना कलशमांथो थोडं पाणी आप अने आरती मंगल दीवानी रकेवी फरतुं खूण उतरावे. तेनी विगत. लुण उतारो जिनवर अंगे, निर्नल जलधारा मनरंगे. ॥ लुण ॥ १ ॥ जिम जिम तडतम लुण ज फूटे, तिमतिम अशुभ कर्म बंध त्रुटे. ॥ लुण ॥२॥ नयन सलुणां श्री जिनजिनां, अनुपमरूपदयारस For Private And Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीनां. ॥ खुणा ॥ ३ ॥ रूप सलुणुं जिनजिनुं दीसे, लाज्यु लण ते जलमांसे. ॥ लग ॥४॥त्रण प्रदक्षिणा देश जलधारा, जल निखबीए बुण उदारा ॥ बुण ॥ ५॥ जे (जन उपर दूमणो प्राणी, ते एम थाजो लुण ज्युं पाणी. ॥ लुण ॥ ६॥ अगर कृष्नागरु कुंदरु सुगंधे, धूप करीजे विविध प्रबंधे. ॥ लुण ॥७॥ एम सात वखत लूण उतारवू पछी आरती उतारवी. आरती. ___ जय जय वीरजिनेश्वर वा, सुरनर इन्द्र लहे सेवमेवा, बार गुणे गुणवंता प्यारा, त्रण भुवनना छो आधारा. जय जय. ॥१॥चोत्रीश अतिशय गुणगणधार), पांत्रीशवाणी गुगे जयकारी. जय जय. ॥१॥ त्रिशलानंदन शिवसुखकारी, सिद्वारथ कुलशोभाकार०॥ जय जय. ॥३॥ द्रव्यभावथी आरति करीए, मंगलमाला सहेजे बरोए. जय जय. ॥४॥बुद्धिसागर प्रभुगुण लेवा, संघचतुर्विध करे नित्य सेवा. ॥ जय. ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पडो प्रभुजी न देखे तेवी शेते पमस्खे जइने अगर प्रभुजीना अने स्नात्रोया वच्चे अंतर पडदो राखो स्नात्रीयाना जमणा अंगुठा उपर कंकुनो चांडलो कराववो. पलो मंगलदोवो उतारवो. मंगलदोवो उतारतां कपुर लावेला होय ते सळगावो रकेबोमां मूकी मंगलदीवो उतारवो. मंगलदीवो. मंगलदोवो मंगलकारी, करीये जिन आगल जयकारी, अरिहंत मंगल पहेलं जाणो. बोजु सिद्ध मंगल मन आणो. ॥१॥ साधु मंगल त्रोनुं लहोए, सद्गुण पाम शिवपुर वहीए. ॥ मं०॥२॥धर्म मंगल चोथु सुखकारी, चार मंगलन छे बलिहारी. ॥ मं० ॥३॥ नावमंगल हेते चित्त धारी, मंगलदीप करे नरनारी.॥ मं०॥४॥ बुद्धिसागर आनंदकारी, संघ चतुविध शोभाकारी. ॥५॥ इति स्नात्रपूजा समाप्त For Private And Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ नवपदपूजाप्रारंभः ॥प्रथम अरिहंतपदपूजा नमुं स्तवं अरिहंतने, गेय ध्येय अम्हिंत; प्राप्य प्रभुपद एह , जेना रागी संत. ॥१॥विशस्थानकमां कोइ पण, एकाराधनयोग; तीर्थकरपद संपजे, अनंतपुण्यनो जोग. ॥२॥ त्रीजेनव आराधना, अरिहंत आदि थाय; शुभ उंचापरीणामथी, अर्हत् पद बंधाय. ॥३॥ सर्वजीवो उद्धारवा, धर्मी करवा काज; उत्कृष्टापरिणामथी, वांधे पद जिनराज.॥४॥ तीर्थकर परमातमा, त्रणकालना जेह; अरिहंत ते सर्व डे, घाती हण्याथी एह. ॥ ५॥ श्री अरिहंतपद गाइए, ध्याश्जे सुखकाररे; अरिहंत जेवा थाइए, दोष रहे न लगाररे. श्री अरि. हंत ॥ १ ॥ नमणठवणद्रव्यनावथी, अरिहंत गातां ध्यातारे; आतम अरिहंतपद वरे, कर्म सकल दूर जातारे. श्री अरिहंतः ॥२॥ वीशस्थानकने सेवनां, द्रव्यभावथी भावेरे; तीर्थकरकर्मबंध ए, पूर्व त्रीजानव थावरे. श्री अरिहंत ॥ ३ ॥ वश स्थानमय आतमा, जावथी हर्षोल्लासेरे; उज्ज्वल ૨૮ For Private And Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ + शुजपरिणामथी, अर्हत् पदवी प्रकाशेरे श्री अरिहंत० ॥ ४ ॥ अरिहंतनामना जापथी, स्थापनाम प्रभु ध्यावेरे, द्रव्य भाव बेनेदयी, आतम जिनवर थावेरे. श्री अरिहंत० ॥ ५ ॥ तीर्थकरनामकर्मने, तम ज्यारथी बांधेरे, द्रव्यतीर्थंकर त्यारथी, क्षीणमोही गुण साधेरे. श्री अरिहंत० ॥ ६ ॥ जन्मथकी त्रणज्ञान बे, मतिश्रुतअवधि प्रमाणोरे; चोथुं दीक्षा हे थके, मनपर्यव दिन जागोरे. श्री अरिहंत० ॥ ७ ॥ गुणस्थानक चोथाथकी, वारमा पर्यंत जाणारे; द्रव्यश्री तीर्थकरपणुं, आलंबन शुभ आणोरे. श्री अरिहंत० ॥ ८ ॥ उपशम क्षयोपशम छाने, क्षायिकसमकित भावेरे; चरणमां क्षयोपशम पणं, द्रव्यतीर्थंकर दावेरे. श्री अरिहंत० ॥ ९॥ जावधी तीर्थकर प्रभु, समवसरणमां सोहेरे; क्षाचिकनवलब्धिधणी, भव्योनां मन मोहेरे. श्री अरिहंत० ॥ १० ॥ अंतर क्षायिकभाव ले, औदयिककर्मे प्रवर्तेरे, आत्मपणं परीणामयी, आराधीए शुभरीतेरे. श्रीअरिहंत० ॥ ११ ॥ प्रारब्धकर्म अघातियां, तीर्थकर भोगवतारे, जीवन्मुक्त जिनेश्वरा, ध्यातां कर्मो टळतांरे. श्री अरिहंत० ॥ १२ ॥ बारगुणे प्रभु शोजता, विश्वोद्धारक देवारे, असंख्य For Private And Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१९ देवाने देवीखो, करती प्रभुनी सेवारे, श्री अरिहंत० ॥ १३ ॥ निश्चय कारिहंत आतमा, रागद्वेषने हणतांरे; क्षयोपशम उपशम क्षये, शुद्धातमपद वरतांरे; वीर जिनेश्वर उपदिशे, आता अरिहंत देवारे; बाहिरमां मुंझो नहीं, निज निजनी दिलसेवारे. वीर ॥ १४ ॥ निश्चय समकित चरणथी, आपोआप प्रकाशेरे. असंख्ययोगनो जे पति, आतम ज्योते विलासेरे. वीर० ॥ १५ ॥ शुद्ध ब्रह्म निजातमा, असंख्य प्रदेशी पोतेरे; सेवा भक्ति ज्ञानथी, प्रगटे अनंत ज्योतेरे. वीर० ॥ १६ ॥ आतम ते अरिहंत बे, प्रेमे गावो ध्यावोरे; बुद्धिसागर आतमा, अनंत आतम पावोरे. वीर० ॥ १७ ॥ अर्हत्पदं नौमि गुणैर्युतं च । स्वाभाविकं शुद्ध मनन्तरूपम् ॥ पूज्यंपरब्रह्म जिनेश्वरं च । द्रव्येभावेन च पूजयामि ॥ १ ॥ ॐ अॅपरमेश्वराय, सर्वदेवाधिदेव पूजितायच, श्रीमते जिनेन्द्राय, जलं, चंदनं, पुष्पं, धूप, दीप, अक्षतं, तरकुलं, नैवेद्यं, फलं यजामहे स्वाहा ॥ इति अर्हत्पूजा समाप्ता ॥ For Private And Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ द्वितीया सिद्धपूजा. अरिहंत उपदेशथी जेह जाएया, नमुं सिद्ध ते शुद्धरूपे प्रमाण्या; अतः आदिमां पूज्य अरिहंतदेवा, पछीथी करूं सिद्धनी शुद्धसेवा ॥ १ ॥ अनंता यया सिद्ध थाशे अनंता, परब्रह्म ज्योतिस्वरूपी जदंता, परिपूर्णज्ञाने यया जेह सिद्धा; अयोगी अजोगी अवेदी प्रबुद्धा ॥ २ ॥ वीजे भव स्थानकतपकरी. ए. राग. कमोतीत निरंजन निर्मल, निःसंगी निष्कामी; सापेक्षाए रूपी अरूपी वर्त आतमरामीरे, भविका सिद्ध प्रभु आराधो, आतमशुद्धि साधारे, नविका, सिद्धः ॥ १ ॥ एकसमयमा सर्वद्रव्यना, गुणपययने जाणे; देखे आनंदजोगे वर्ते, वर्तें आत्मिक प्राणेरे जविका सिद्ध० || २ || द्रव्यथी सिद्धो शोभे अनंता, सिद्धक्षेत्रे प्रसिद्धा; एक सिडने श्राश्रयी आदि, अनंतगुण समृद्धारे, जविका, सिद्ध० ॥ ३ ॥ अंतर रहितने अजर अमर जे, नहीं मन वाणी काया; संसारीजीवांना जेओ, अनंतभागे सुहायारे. भवि का सिद्ध० ॥ ४ ॥ क्षायिकभावे सिद्ध थया जे, पुदगलसंगथी न्यारा परिणामिकतावे जीवनता, For Private And Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३१ जेहने नहीं आकारारे. भविका० || सिद्ध० ||५|| वर्ण गंध रस स्पर्श रहित जे, आपस्वरूपे रूपी; पुद्गल रूपे जेह अरूपी, वर्ते रूपारूपीरे. भविका. सिद्ध० ॥६॥ ठे कर्मनो नाश करीने, आठगुणे जे शोभे; व्यतिरेकी एकत्रिंशगुणी जे, जविजननां मन थोभेरे. भविका. सिद्ध० ॥ ७ ॥ अनंतगुणपर्याये जेओ, आविर्भावे सुहावे; प्रणमुं गावं ध्यावुं सिद्धो, मोह टळे सुख थावेरे. भविका. सिद्ध० ॥ ८ ॥ अनंत सिद्धनी ज्योतिमांही, अनंतसिद्धो ज्योते; त्रण कालमां नित्य छे जेओ, जीव भावोद्योतेरे. जविका, सिद्ध० ॥ ९ ॥ सिद्धस्वरूपी आतम भावी, सिद्धानंदने पामे; एक समयमां ऊर्ध्वगतिथी, सिद्ध स्थानमां जामेरे. नविका. सिद्ध० ॥ १० ॥ आत्मिक शुद्ध समाधि प्रकटे, मुक्तिनुं सुख प्रगटे; निर्विकल्प समाधिज्ञाने, सर्वावरण विघटेरे. भविका. सिद्ध० ॥ ११ ॥ नाम स्थापना दव्यने भावथी, सिद्धो वंदो ध्यावो; आपोआप स्वरूपे सिद्धो, परमानंदने पावोरे. भविका. सिद्ध० ॥ १२ ॥ वीर जिनेश्वर उपदिशे. ए राग. प्रभु महावीर उपदिशे, त्रणभुवननो राणोरे; अनंतगुणपर्यायी छे, आतमप्रभु घट मानारे. For Private And Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ प्रभु० ॥ १३ ॥ निज आतम ते सिद्ध छे, जीव छे ते शिव जाणोरे; शुद्धोपयोगे आतमा, परब्रह्म प्रमागोरे. प्रभु० ॥ १४ ॥ आरोपित पुद्गलदशा, तेथी आतम न्यारोरे; शुद्धतम उपयोगथी, सिद्ध स्वयं धारोरे. प्रभु० ॥ १५ ॥ अनंत ज्ञानानन्दनो, आविर्भाव स्वभावेरे; बुद्धिसागर आतमा, परमेश्वर निजजावे. प्रभु० ॥ १६ ॥ विरहितानपि कर्मजिरष्टभिः सहजसिद्ध गुणाष्टक धारिणः । समयदेशपदान्तरमस्पृशः, सकलसिद्धि गतान्परिपूजये ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री परम पुरुषाय, परमेश्वराय, श्रीमते सिद्धाय जलं यजामहे स्वाहा ॥ तृतीया आचार्यपदपूजा. बत्रीशी बत्रीशी गुणवडे, सूरिपद सुखकार; गातां पूजतां ध्यावतां, सूरिपणुं निर्धार. ॥ १ ॥ द्रव्य क्षेत्रने कालथी, भावथी सूरि महंत; तीर्थेश्वर पाछळ प्रभु, राजा शोने संत. ॥ २ ॥ जिनशासन साम्राज्यमां, संघ चतुर्विध भूप, वर्तमानमां संघना, प्रभु जे धर्मस्वरूप ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२३ धन्य धन्य संप्रति साचो राजा. ए. राग. प्रेमे प्रणमुं श्रीसूरीश्वर, जैनधर्मना धोरीरे; चार प्रकारे संघोन्नतिनी, जेना हाथमा दोरीरे. प्रेमे०॥ ॥१॥ सूरिमंत्रनो जाप करेने, धर्माचारप्रचारेरे; पंचाचारने पाळे पळावे, संघर्नु श्रेय विचारेरे, प्रेमेण॥ ॥ २ ॥ द्रव्यादिक अनुसार वर्ते, संघने जे वर्तावेरे; बत्रीश उपमा जेने छाजे, धर्मने रक्षे नावरे. प्रेमे॥ ॥३॥ गौणने मुख्यपणे सह आशये, सर्वधर्म समजावेरे; सर्वनयोनी सापेक्षाए, स्वाधिकार जणा. वेरे. प्रेमे ॥ ४॥ द्रव्यभावथी सर्व संघनी, प्रगतिने उपदेशेरे; कार्यों करता निलेपी थै, रहे न मनमा क्लेशेरे, प्रेमे ॥ ५॥ त्यागी गृहस्थी बन्ने संघने, उत्सर्गने अपवादेरे, धर्माचारविचार जणावे, आ. स्मिकसुख आस्वादेरे. प्रेमे ॥ ६ ॥ तीर्थपति सम संप्रतिकाले, धर्म करावे बोधेरे; तीर्थकरसम याज्ञाकारक, संघने रहे अक्रोधेरे. प्रेमे० ॥७॥ द्रव्यने भावथी संघजीवन ने, शासन उन्नतिकाजेरे, जे काले जे क्षेत्रे करवं, आज्ञा करी जग गाजेरे, प्रेमे ॥ ८॥ प्रतिरूपादिक चौदगुणोना, धारक योगी ज्ञानीरे; क्षमाप्रमुखदशधर्मना धारक, For Private And Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समनावीने ध्यानीरे. प्रेमे० ॥९॥ बारनावना चारभावना, नावे विकथा वारीरे; चार अनुयोगने वर्तावे, सर्वप्रमादने वारीरे. प्रेमे० ॥ १० ॥ करवू कराव ने अनुमोदवं, जे जे योग्य ते करतारे; गाडरीयाप्रवाहे न चाले, स्वतंत्रता दिल धरतारे. प्रेमे ॥ ११ ।। सूत्रो शास्त्रो ग्रन्थो आदि, परंपरा सहु जाणेरे; अनुभवथी एकनिश्चयधारी, संघर्नु औक्य जे मानेरे. प्रेमे ॥ १२ ॥ निश्चयन व्यवहारे वर्ते, संघना क्यने सांधेरे एवा आचारोने विचारो, वोधी गुणोथी वाधेरे, प्रेमे ॥ १३ ॥ सारण वारण चोयणने जे, पडिचोयण गुणधारीरे; जे श्रुतकेवल) स्वपर समयना, ज्ञाता गुणगण धारीरे. प्रेमे ॥१४॥ तीर्थकर सम सूरि करे ते, क्षेत्रने कल्पानुसारेरे; धर्मा. धारमा जेह सुधारो, करता स्वाधिकारेरे, प्रेमे० ॥ १५॥ पड्या पडता क्षुद्रप्रभेदो, टाळे उदार विचारेरे; बाह्यराज्यसम धर्मराज्यना, उन्नतिहेतु धारेरे, प्रेमे ॥ १६ ॥ चारनिक्षेपे मूरिवर पूजो, वंदो गावो ध्यावोरे, बुद्धिसागरपरमप्रभुता, परमानं. दने पावोरे, प्रेमे ॥ १७ ॥ __आतम ते आचार्ग , उपादान स्वभावेरे, क्षयोपशमने उपशमे, क्षायिक गुणगणदावेरे. था. For Private And Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२५ तम० ॥ १८ ॥ पूजो वंदो भावयी, गावोने सन ध्यावोरे, आत्मस्वजावे सहजयी, शुद्धोपयोगे सुहा वोरे, आतम० ॥ १९ ॥ आतमना एकतानथी, सर्व शक्तियो उल्लसेरे, बुद्धिसागर आनमा, सूरिपद गुणथी विकसेरे. आतम० ॥ २० ॥ " स्वरशास्त्र रहस्य निवेदिनः चरितपञ्चविधाचरणानपि जिनसुधर्मधुरीणतया स्थितान्, सफल सूरिवरान्परिपूजये ॥ ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, श्रीमते सूरिवराय जलं० यजामहे स्वाहा ॥ चोथी उपाध्यायपदपूजा. पंचविंशति सद्गुणे, उपाध्याय जगवंत, भणे भावे शास्त्रने, पूजो वंदो संत ॥ १ ॥ गुणो अने श्राचारथी, आत्मशुद्धि करनार, उपाध्याय जगमां जयो, युवराजा जयकार ॥२॥ उपाध्यायनी भक्ति थी, प्रगटे दर्शनज्ञान, वाचंयम पाठक नमो, पूजो थरी एकतान ॥ ३ ॥ सिद्धचकनी सेवा कीजे. ए. राग. उपाध्यायनी सेवा कीजे, विद्यमान सुखकारीजी, विद्यमान पाठकनी जक्ति, करतां तरे नरनारी, नवि २९ For Private And Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ जन सेवोजी, त्यागी सर्वप्रमाद, ल्हावो लेवोजी. ॥ ॥ १ ॥ अंग उपांगना पाठकज्ञानी, भणे भणावे जावेजी, जैनधर्म फैलावे जगमां, पुण्ये दर्शन थावे. भवि० ॥ २ ॥ ज्ञानावरणीआदिकमों, अनंत क्षय झट थातांजी; पाठकप्रभुना वैयावच्चथी, आत्मस्वभावे सुहातां. जवि० ॥ ३ ॥ वर्तमानमां तरतमयोगे, वर्ते पाठकदेवाजी, गुणनी दृष्टि धारी घटमां, करीए जावे सेवा. भवि० ॥ ४ ॥ विनयने बहुमानथ सेवा, चारनिक्षेपे करीएजी. जीवंता वाचंयम सेवो, समकित चारित्र वरीए. भवि० ॥ ५ ॥ निश्चयथी निश्चयमां वर्ते, व्यवहारे व्यवहरताजी; उत्सर्गने अपवाद विचारी, क्षेत्रकाळ अनुसरता. भवि० ॥ ६ ॥ पंच समिति त्रण गुप्ति धारे, जैनधर्म विस्तारेजी; निज निज अधिकारे सहु वर्णने, राखे स्थिर आचारे, जवि० ||७|| सर्व संघनी द्रव्यभावथी - चढती हेतु प्ररूपेजी; कर्म करे सहु अक्रिय थैने, निष्कामी निजरूपे भवि० ॥ ८ ॥ शासन सेवा संवनी सेवा, करता पड़ जाताजी; वेपक्रियाक्षुल्लकमतनेदे, संघनेदे न रहाता जवि० ॥ ९ ॥ भव्य जीवोनी द्रव्यभावथी, आतमशुद्धि करताजी; ज्ञानक्रिया भक्तिने समाधि, अनेकयोगने धरता. भवि० ॥१०॥ For Private And Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरिजी राजाने मंत्री, पाठक संघना हेतेजी, पूजी वंदी स्तवीने ध्याइ, रहीए शिव संकेते. भवि० ॥११॥ तरतमयोगे द्रव्यभावयुत, उपाध्यायने भजीएजी; पंचमकालने देोत्रानुसारे, वर्तताने यजीए.नवि०॥१२॥ निज आतम निश्चय प्रनु, पाठक जाणी ध्यावोरे, उपाध्याय ते आतमा, अंतरमा लय लावोरे. निजः ॥१३ ॥ अनंतगुणी आतमप्रभु, अनंतपर्यवी पोतेरे, धारणा ध्यान समाधिथी, वर्ते आनंद ज्योतेरे. निजण ॥ १४ ॥ शुद्धातम उपयोगथी, सहजे आत्मस्वभावेरे, सर्व करे निर्बध जे, मोहनी वृत्ति हगवेरे. निज ॥१५॥ अशक्य कां न यात्मने, अनंतशक्ति स्फुरावोरे,बुद्धिसागर आतमा,श्रद्धाभक्तिथीनावोरे,नि०१६ जमिमौर्यविनेयगणेषु ये। प्रथितत्रुद्भिवलाश्च गतस्मयाः ॥ श्रुतसुपाठसुधारसवाहिनः । प्रतिदिनं प्रणमामि सुपाठकान् ॥ ॐ ही श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, श्रीमते वाचकाय, जलं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૦ पंचम साधुपदपू. दोहरा अप्रतिबद्ध जे विश्वमां, कर्मयोगी निष्कामः साधे आतम साधना, रमता आतमराम. ॥ १ ॥ मुनि तपसी अनगारी जे, साधु संयन नाम; यति ऋषि त्यागी श्रमण, आर्य भिक्षुक गुणधाम ॥ २ ॥ याश्रमत्यागी महंत जे अनेक जेनां नाम; बंदो " पूजो प्रेमी, संत प्रभु विश्राम ॥ ३ ॥ || ओधवजी संदेशो कहेजो श्यामने. ए राग ॥ प्रीतडीने सांधी साधु साथमां, साधु संगते प्रभुनां दर्शन थाय जो, पंचम आरे दुर्लभ साधु संगति, मुनि जजंतां जन्म जरा दुःख जाय जो, प्रीतलड़ी० ॥ १ ॥ साधुसंगतथी समकित प्रगटे खरं, ज्ञानाने चारित्र जलं प्रगटायजो, संतनी संगे रहीए श्रद्धाप्रेमथी, एकपलकमां धार्यु निश्चय थाय जो. प्रीतलडी ॥ २ ॥ पंचमारे मुनिनी श्रद्धा प्रीतडी, करतां आतम परमातम झट थाय जो, संस्कारी भव्योने भक्ति सांपडे, गुणरागे सवळी बुद्धि प्रदाय जो प्रीतलडी० ॥ ३ ॥ यम नियमने आसन प्राणायामयी, प्रत्याहारने धारणा ध्यातथी ' For Private And Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્ય जेहजो, आत्मसमाधि योगे घटमां वर्तता, निष्कामीने सम बे वनने गेहजो, प्रीतलडी० ॥ ४ ॥ धीरे धीरे मनने साधे साधुजी, सद्गुण साधे करता दुर्गुण त्यागजो, आसक्ति वण आचरोमां वर्तता, मुनिपर धारो स्वार्पण करीने रागजो, प्रीतलडी० ॥ ४ ॥ आत्मशुद्धिहेते सापेक्षे साधना, गौणने मुख्यपणे जाणे जे योगजो, उत्सर्गेने जे अपवादे वर्तता, निर्लेपी थे जोगवे सुख दुःखजोग जो, प्रीतलडी० ॥ ६ ॥ आपत्काले आपदधमें वर्तता, बाह्यसंगमां जे दिलमां निःसंगजो, ध्येयपणे निजदिलमां प्रभु प्रगटावता, प्रगटे मुनिनी संगे आतमरंगजो; प्रीतलडी० ॥ ७ ॥ अंतर बाह्यनी ग्रन्थिमां ममता नहीं, गुरु आज्ञाए सर्वे कर्ता कर्मजो. निर्भय खेदरहित अद्वेषी साधुजी, समताभावे अनुभवे शिव शर्मजो. प्रीतलडी० ॥८॥ समभावे मुक्ति छे सहु दर्शन विषे, क्रिया पंथ मत बाह्यथकी पण होयजो, तो पण मुनिभावे निश्चयसमकितवडे, समभावीने नमे न बाह्यनुं कोय जो. प्रीतलडी० ॥ १ ॥ गच्छनी निश्राए स्थविरो वर्ते सदा, गच्छोमां समभावे मुक्ति होयजो, सापेक्षाए हव कदाग्रह त्यागीने, मुख्यपणे आतम उपयोगी जोयजो. प्रीतली० ॥ १० ॥ जे For Private And Personal Use Only - Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३० काले जे क्षेत्रे जे करवुं घटे, स्वपरजीवोना धर्म हितार्थे जेहजो, तेह करावे करे अने अनुमोदता, अल्पदोषने धर्म घणो करे तेहजो, प्रीतलडी० ॥११॥ सूरि गुरुनी आज्ञाए वर्ते मुनि, यता कषायो रोधे साधे धर्मजो; आत्मराज्यनी स्वतंत्रता जे साधता, करे कर्म पण उपयोगे जे अकर्मजो. प्री० ॥ १२ ॥ पूर्णानंदी आतमज्ञाने अनुजवे, साधक बाधक कृत्याकृत्य विवेकजो; जैनधर्म उपदेशे जक्ताने भलो, रहे समाधि एवी धारे टेकजो. प्री० ॥ १३ ॥ पूजो वंदो गावो मुनिपदने जलुं निश्चयदृष्टिने धारी व्यवहारजो: बुद्धिसागरमुनिसेवानक्तिबळे, क्षणमां प्रभुपद पामे नरने नारजो प्री० ॥ १४ ॥ 7 " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधु ते निज आतमा; शुद्धतम उपयोगरे; शुं मुंगे शुं लोचथी, त्यागे शुं बाह्य भोगेरे. साधु० ॥ १४ ॥ शुद्धातमरमणी मुनि, मोहनी वृत्ति रोकेरे; हर्षे नहि जे बाह्यमां, रहे न बाह्यमां शोकेरे. साधु० ॥ १६ ॥ समभावी भवमुक्तिमां, सहजानंदता भो गीरे; रागने त्यागथी भिन्न जे, आतम देखे योगीरे. साधु० ॥ १८ ॥ निःसंगी निष्कामी जे, घटमां सिद्धि प्रकाशेरे; आनंदधी उभराइने, प्रसन्नताए For Private And Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३१ विकासेरे. साधु ॥ १९ ॥ आशा तृष्णा कामना, तेथी गणे निज न्यारोरे; बुद्धिसागर आतमा सिद्ध बुद्ध निर्धारोरे. साधु० ॥ २० ॥ स्वपरकार्यसुसाधनतत्परान् । शिवभवस्थिति साम्यसमन्वितान् ॥ यजामहे स्वाहा || विदितपञ्च महाव्रतधारिणः । प्रणिदधे प्रतिसाधुमतल्लिकान् ॐ ह्री श्री परमपुरुषाय, परमेष्ठिने साधवे जलं० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 षष्ठी दर्शनपदपूजा. शुद्धातम दर्शन यतुं, निश्चय दर्शन तेह; देव गुरुने धर्मनी, श्रद्धा दर्शन एह. ॥ १ ॥ दर्शन छे व्यवहारथी, निश्चयथी सुखकार; समसठ बोले अलंकर्यु, धारो नरने नार ॥ ३ ॥ दर्शन पाम्यो आतमा, निश्चय मुक्ति जाय; जडचेतन सम्यकूपणे, जाणी नहि मुंझाय ॥ ४ ॥ ए गुण वीरतणो न विसारं. ए राग. सम्यग् दर्शन जग जयकारी, सर्वजीव हितकारीरे; प्रभु श्री महावीर जिन उपदेशे, पामो नरने For Private And Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ नारीरे. सम्यग ॥ १ ॥ द्रव्यभाव बे जेदे दर्शन, निश्चयने व्यवहारेरे; देव गुरुने धर्मनी श्रद्धा, भेदे त्रण्यप्रकारेरे. सम्यग् ॥२॥ आतम ते निश्चयथी देव ज, आतम ते गुरु जाणोरे; आतममांही सत्यधर्म छे, निश्चयदर्शन मानोरे. सम्यग् ॥३॥ मुनिभावे छे निश्चयसमकित, रत्नत्रयी अभेदेरे; सापेक्षाए जाणी पामो, रहो न आतम खेदेरे, सम्य. ग् ॥ ४ ॥ मुनिनावे समकितपणुं बे, याचारांगे जाख्युरे; उत्कृष्टे दणमां छे मुक्ति, एबुं प्रभुए दाख्युरे. सम्यग् ॥ ५॥ दर्शनथी ज्ञान चारित्र प्रगटे, तेथी मुक्ति नकीरे; माटे दर्शन पामो भव्यो, राखो श्रद्धा पक्कीरे. सम्यग् ॥ ६ ॥ गुरुने सेवे दर्शन प्रगटे, जिनवाणी सांभळारे; साधुसंत गुरुसेवा करतां, दर्शन कारण फळतारे; सम्यग ॥ ॥ श्रद्धा प्रीतिथी गुरु सेवे, जिनप्रतिमा अवलंबेरे; समकित दर्शन पामे भक्तो, पमे न मिथ्या अचंभेरे. सम्यग० ॥८॥ आतमथी मिथ्यात्व टळे तेम, श्रद्धा साची प्रगटेरे; आत्मानुभव थातां पूर्वे, मिथ्यामोहनी विघटेरे, सम्यग ॥ ९॥ सर्वसंघनी सेवा भक्ति, करतां हर्षोल्लासेरे; आतम समकित पामे निश्चय, आविर्जावे विकासेरे. सम्यग ॥ १० ॥ सम्यग् For Private And Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३३ दर्शनीनो संग करशो, समकितीनी करो नतिरे; बुद्धिसागर आतम सम्यग् -, दर्शन प्रगटे शक्तिरे. सम्यग् ॥ १९ ॥ सांभळशो मुनि संयमरागे. ए राग. निश्चयथी दर्शन ते खातम, उपशमने दयोपशमेरे; क्षायिकदर्शनरूपी आतम, पमो न मिथ्या भर्मेरे. नि० ॥ १२ ॥ आत्मप्रतीति अनुभव आवे, जलपंकजवत् न्यारोरे; निर्लेपी आतमगुण खेले, आनंद अपरंपारोरे नि० ॥ १३ ॥ निकाचित जे कर्मना भोगो, त्यां नहीं शोकने प्रीतिरे; निर्जरतो कर्मोने भोगवे, आतमसुख प्रतीतिरे नि० ॥ १४ ॥ पंचवार उपशम घट प्रगटे, क्षायोपशमी असंख्य रे; एकवार कायिकसमकितनी, प्राप्ति यतां निःशंकरे: नि० ॥ १५ ॥ चारनिक्षेपे सातनयोथी, सम्यग्दर्शन समजोरे; बुद्धिसागरआत्मस्वभावे; श्रद्धा प्रेमेरमजोरे; नि० ॥ १६ ॥ सकृदपि प्रतिपत्तिरहो नृणां । भवति यस्य भवस्थितिमापिका ॥ ३० For Private And Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३४ शिवसुखं प्रतिकन्दलतां दधत् । नमत तद्गुरुदर्शन मादरात् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय, सम्यग् - दर्शनपूजार्थं जलं य० स्वाहा || सप्तमी ज्ञानपदपूजा. ज्ञान ते आत्मस्वरूप छे, चेतन गुण छे ज्ञान, ज्ञान विना नहीं मुक्तिछे, वीर कहे जगवान्. ॥ १ ॥ ज्ञानथी आनंद उपजे, ज्ञानथी विश्व प्रकाश; ज्ञान विना जगजीवडा, पग पग दुःखी दास ॥२॥ ज्ञानीने पूजो जवी, सेवो नरने नार; ज्ञानावरणना नाशथी; व्यक्त ज्ञान सुखकार ।। ३ ।। ध्यान क्रिया मनमां आणीजे. ए राग. ज्ञानने सेवो ज्ञानीने सेवो, ज्ञान जोने भणावोरे; ज्ञानाभ्यासीने सहाय करो भवी, शास्त्रो लखावो छपावोरे. ज्ञान० ॥ १| जैनधर्म जगमां फेलावो, ज्ञानीय प्रगटावीरे; ज्ञान विना नहि शासन चाले, ज्ञान छे मुक्तिनी चावीरे. ज्ञान० ॥ २ ॥ श्रुतकेवली For Private And Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३५ केवलीसम जाणो, ज्ञानथी धर्म प्रचारोरे: जीवंता तीथों ज्ञानीओ, जैनधर्म आधारोरे. ज्ञान० ॥ ३ ॥ ज्ञान विनानुं जीवन जड बे, आत्मजीवन छे ज्ञानेरे; ज्ञानी ध्यान समाधि पामे, वर्ते शुद्धतमतानेरे; ज्ञान० || || ज्ञानीनो जे विनय न सेवे, तेने छे अतिचाररे; ज्ञानीनी आशातना टाळो, सफळ करो अवताररे. ज्ञान० ॥ ५ ॥ भानु आगळ तम नाहे रहेतुं, ज्ञानी आगळ अज्ञानरे; ज्ञानीघटमां दोष रहे नहीं, ज्ञान स्वतंत्र प्रमाणरे. ज्ञान० ॥ ६ ॥ ज्ञानथी चारित्र प्रगटे साचं, ज्ञान छे श्रेष्ठ पवित्ररे; स्वपरप्रकाशक ज्ञान बे सुंदर, तेथी वशमां बे चित्तरे. ज्ञान० ॥७॥ ज्ञानीनी आज्ञाए हलाहल-, पीतां मुक्ति यातीरे; अज्ञानी वचने अमृतने, पीतां न शांति सुहातीरे. ज्ञान० ॥ ८ ॥ पिंडस्थादिकध्यानने ध्यावे, धर्म शुकल बे ध्यावेरे; ज्ञानी ध्याननी सूक्ष्मक्रियाथी, क्षणमां मुक्ति पावेरे. ज्ञान० ॥ एए ॥ ज्ञाननी दासी सर्वक्रिया बे, ज्ञानी पासे किरियारे; ज्ञाने जगमां अनंतजव्यो, भवसागरने तरियारे. ज्ञान० ॥ १० ॥ असंख्ययोग छे मुक्तिना हेतु, ज्ञानयोग सहु मोटोरे; ज्ञानीनी सेवा जक्तिथी, रहे न कोई नोटोरे. ज्ञान० ॥ ११ ॥ ज्ञानाने पूजो ज्ञानीने बंदो, ज्ञानी छे अप्रमादीरे; For Private And Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुष्कज्ञानी एकांतवादी, क्रियाजडी उन्मादीरे. ज्ञान० ॥१२॥ परोक्ष प्रत्यक्ष ज्ञान बे नेदे, श्रुत स्व. पर उपकारीरे; बुद्धिसागरसद्गुरुसंगे, रहेशो नरने नारीरे, ज्ञान० ॥ १३ ॥ वीरजिनेश्वर उपदिशे, ज्ञान सकल उपकारीरे; चारनिक्षेपे ज्ञानने, समजो नर अने नारीरे. वीर। ॥१४॥ मति अठ्ठावीश दे बे, श्रुत ने चउदश भेदेरे; अवधि असंख्यप्रकार , रूपी वस्तु वेदेरे. वीर० ॥१५॥ मनपर्यव बे जेदे , मननां पुद्गल जाणेरे; केवल रूपारूपीना, सहु पर्याय पिछानेरे. वीरः॥१६॥ अध्यातमज्ञाने जवी, केवलज्ञानने पामोरे; बुद्धि. सागर आतमा, परमप्रभु थै जामोरे. वीर ॥१७॥ सकलवस्तुसमूहविभासनं । प्रचितकर्मविनाशनकर्मठम् ॥ युगलनावगतं मतिमुख्यकं । विरतिदं रतिदं प्रणिदध्महे ॥१॥ ॐ ह्री श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्म. जरामृत्यु निवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय, ज्ञानार्थच ज्ञानपूजार्थे जसं य० स्वाहा । For Private And Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टमी चारित्रपदपूजा. सदाचार सद्गुणमयी, चारित्र छ सुखकार; गावो ध्यावो याचरो, भावे नरने नार. ॥१॥ द्रव्यभाव चारित्र बे, निश्चयने व्यवहार; स्वर्गने मुक्तिफल मळे, तजो दुर्गुण आचार. ॥ २॥ गाव सिद्धिय नमो सिद्ध अनंता. ए राग. चारित्र एवं मळो सुखकारी, जाउ चारित्रीनी बलिहारीरे; चारित्र० समभावे जग सघळु लागे, रागद्वेष न मनमा जागेरे. चारित्र ॥१॥ परभावेरस रीझ न आवे, रीक लागे आत्मस्वनावरे; चारित्र क्रोधना उपर क्रोध जागे ज्ञाने, मन रहेतुं नहीं अभिमानेरे. चारित्रण ॥२॥ निर्दभने निर्लोनभावे रहेg, सुख दुःख समनावे सहेवूरे; चारित्र देशविरति सर्वविरतिनेदे, आठ बार कषाय न वेदेरे. चारित्र० ॥ ३ ॥ रांक जीवो पण चारित्रने पाळी, पाम्या मुक्तिवधू लटकाळीरे; चारित्र शुक्ल शुक्ल परिणाम वधंता, एतो अनुभवे ज्ञानीसंतारे. चारित्र० ॥॥ मैत्री प्रमोदने माध्यस्थलावे, करुणाए हृदय शुद्ध थावरे; चारित्र निर्मम निरहंकारे प्रणामे, For Private And Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ सत्य प्रतिबद्धता जामेरे. चारित्र० ॥ ५ ॥ अस्तेय ब्रह्मचर्य संतोषे, तजी व्यसनने सद्गुण पाषेरे. चारित्र मित्र शत्रु पर राग न रोष, नहीं निन्दक दृष्टिनो दोषरे. चारित्र ॥ ६ ॥ तृणमणिपर समभावनी वृत्ति, रहे मनमां न विषयासक्तिरे; चारित्र० आवे अनुभवसुखनी घटमां खुमारी, थाय कर्मो सकल उपकारीरे. चारित्र ॥ ७ ॥ थाय परमार्थपदनी योगप्रवृत्ति, दोष अपने बहुधर्मनीतिरे. चारित्र बाह्यकर्म करे पण मोह न एमां, फल आशा रहे नहीं तेमारे. चारित्र ॥ ८ ॥ अतिचार दोष सहु प्रगट्या वारे, मळ्यो सानवभव नहीं हारेरे. चारित्र० शुद्धउपयोगथी निज आत्म प्रकाशे, शुभ अशुभ न मनमां भासेरे, चारित्र० ॥ ९ ॥ पूजो गावोने एह मनमां ध्यावो, लेवो चारित्रनो सत्य ल्हावोरे; चारित्र ॥ संयमीमुनिनां दर्शन दुःखहारी, सेवो चारित्रीने नरनारीरे, चारित्र० ॥ १० ॥ समकीवंताने चारित्रनी इच्छा, करी पुरुषार्थ ग्रहे दीक्षारे. चारित्र धर्म शुक्लध्याने श्रातमऋद्धि, बुद्धिसागर मंगलसिद्धिरे, चारित्र ॥ ११ ॥ For Private And Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३९ माया कारमीरे माया न करो चतुरसुजाण ए राग. आतमगुणो विनारे, होळी राजा सरखो वेषः भवोभव जीवडारे, पाम्या आधिव्याधि कलेश. ॥ गुणवण आडंबर शाखपनो, बाह्यक्रिया व्यवहारेरे; वेष क्रिया छे गुणनेमाटे, जाणे ते निज तारे. यातम०॥ ॥ १२ ॥ मोह वने नहि मनडुं भमतुं, ध्यान समाधि योगेरे; जडमां सुखनी रहे न इच्छा, आतमसुखना भोगे. आतम० ॥ १३ ॥ दुर्गुण दोषो टाळी सघळा, आत्मगुणो प्रगटावोरे, चिदानंद उपयोगरमणता, चारित्र ज ते चहावो. आतम० ॥ १४ ॥ मोहनों उपशम क्षयोपशमने, क्षायिकनाव जे करवोरे; निविकल्पसमाधियोगे, परमानंदने वरवो. आतम० ॥ १५ ॥ आत्मोपयोगे आत्मरमणता, निश्चयथी चारित्ररे; बुद्धिसागर पूर्णानन्दी, आतम पूर्ण पवित्र. आतम० ॥ १६ ॥ SC Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रमतात्मगुणेषु हि यत्रवै । विगतनूतनकर्मपथं च यत् ॥ जगति जीवसमूहसुवल्लभं । सुललितं चरणं हृदि धारये ॥ : ॥ For Private And Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० ॐ ह्री श्री परमपुरुषाय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय, चारित्रपदलाभार्थ पूजार्थचजलं. य० स्वाहा ॥ नवमी तपपदपूजा. द्रव्यनावथी तप तपे, सकलविघ्न दूर जाय; पञ्चाशलब्धि उपजे, जय जय तप महिमाय. ॥ १ ॥ तप तपतां कष्टो टळे, दुःखो दूरे जाय; सर्वकर्म दूरे टळे, पग पग मंगल थाय. ॥ २॥ तपना भेद अनेक डे, तपना बार प्रकार; पूजो वंदो तपखीने, तप तपशो नरनार. ॥ ३ ॥ नमोरे नमो श्री शत्रुजय गिरिवर. ए रागमां. पूजो वंदो तपगुण धारी, तप तपशो जयका. ररे; तप तपतां अट्ठावीश पञ्चाश-, लब्धि प्रगटे सा. ररे. पू० ॥१॥ सर्वशुनाशुभइच्छारोधक, तपथी शक्ति प्रकाशेरे; निष्कामी थै कार्यों करतां, तप ले जाणो पासेरे. पू० ॥ २ ॥ देव गुरुने संघनी सेवा, भक्ति तप ने बेशरे; धार्मिक कर्म करंतां संकट-सहवा दुःखो कलेशरे. पू॥३॥आत्मार्थे परमार्थे प्रवृत्ति, करतां जय नहि खेदरे, द्वेष न प्रगटे तप ए तपतां, नासे For Private And Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४१ मोहना जेदरे. पू० ॥ ४ ॥ मन वाणी कायानी शुद्धि, धरवी तप जयकाररे; सर्वशुभाशुभ फलनी इच्छा-, त्यागथी तप ठे उदाररे. पू० ॥ ५ ॥ तीर्थंकर त्रिज्ञानी पण जे, ते जव मुक्ति जाणरे; तप तपता जाणीने भव्यो, तप तपशो गुणखाणरे. पू० ॥ ६ ॥ मरण जीवनपर नहीं आसक्ति, सर्व समर्पण थायरे; परमार्थे जीवननी करणी, शुद्धोपयोगे सुहायरे. पू० ॥ ७ ॥ सर्वजीवोना हितनेमाटे, कायामननी प्रवृत्तिरे; जैनधर्मनी सेवा भक्ति, करवानी बे रीतिरे. पू० ॥ ८ ॥ सर्वलोकनां दुःखो हावा, सहेजे समर्पाइ जायरे; सुख दुःख आवे हर्षे न शोत्रे, साक्षी भाव सुहायरे, पू० ॥ ९ ॥ नामने रूपमा मोह रहे नहीं, कर्तव्यो ज करायरे; ज्ञानाग्निमां मोहकाष्ठने होमी, मुक्ति क्षणमां पायरे. पू० ॥ १० ॥ मान पूजानी होय न वृत्ति, धार्मिक होय प्रवृत्तिरे; बाह्याभ्यंतर तपन तपतां, प्रगटे अनंती शक्तिरे. पू० ॥ ११ ॥ तमने परमातम करवा, तप छे साधन सत्यरे; बुद्धिसागर मंगल पामो, तपथी करी शुभकृत्यरे. पूजो० ॥ १२ ॥ ३१ For Private And Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीरकुमरनी वातडी कोने करीए. ए राग. वासनारोधक तप तपो नरनारी, मनथी इच्छाओ निवारी; करो आत्मशुद्धि जयकारी, शुजाशुभ परिणति वारी, रहो आत्म मगन्न, वासना ॥१३॥ निश्चय तप क्षण मात्रमा शिर आपे, शुद्धकेवल ज्ञाने छापे; पूर्ण आनंद घटमां व्यापे, रहो तपथी प्रसन्न. वास० ॥ १४ ॥ कामादिक मोह वृत्तियो सह टाळो, शुद्ध आत्मस्वरूप निहाळो; नेदभावनी वृत्ति बाळो, राखो निर्मल मन. वास० ॥ १५॥ आत्मज्ञानने ध्यानथी समावि, टळे आधिव्याधि उपाधि; लहो मुक्ति तप आराधी, बनो जीवन्मुक्त. वास ॥ १६ ॥ निश्चयतप पुरुषार्थथी भवी पामे, बनी निर्विषयी दुःख वामे, परब्रह्म बनी ठरो गमे, बुद्धिसागर बेश. वास० ॥ १७ ॥ गीत. धन्याश्रीराग. गायां गायारे एम नवपद भावथी गायां; प्रभु महावीरदेवे प्रकाश्यां, ते में नावथी ध्यायारे. एम. चारनिक्षेपे सातनये जे, नवपदनुं करे ज्ञान; सिद्ध चक्र आराधी ध्याई, पोते बने जगवानरे, एम०॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४३ आंबिल ओळी आदितपथी, नवपदने आराधे. पद पद मंगल ऋद्धिसिद्धि, मुक्तिने ते सारे. एम० ॥२॥ गुरुगन यंत्रने मंत्र ग्रहीने, जप जपतां एकताने; जे जे जावे आराधे ते ते, भावे फळे छे ज्ञानेरे. एम० ॥ ३ ॥ संवत् ओगगिश सत्तोत्तरनी, साले आश्विन मासे, विजया दशमी चढता पहोरे, पूजा रची उल्ला सेरे. एन० ॥ ४ ॥ सानंद शहेरे आनंद ल्हेरे, चो मासुं क भावे, संघनी सेवा भक्ति सारी, नवपद पूजा जणारे. एम० ॥ ५ ॥ तपगच्छहीरविजय सूरिपाढे, सहजसागर उवझाय, पट्टपरंपरा योगी म हासिद्ध, नेमिसागर गुरुरावरे. एम० ॥ ६ ॥ सागर शाखामा रवि सरखा, रविसागर गुरुराज गुर्जर देशी संघ सुधायों, जेनां उत्तम काजरे. एम० ॥ 9 ॥ तेमनी पाटे वैयापच्ची, धर्मक्रियामां धोरी. श्री सुख सागर गुरुजी वंदु, ज्ञाननी हाथमां दोरीरे. एम० ॥ ८ ॥ गुरु सुखसागर पूर्ण कृपाथी, नवग्द महिमा गायो, बुद्धिसागरसूरिए भावे, सिद्धचक वधायोरे. एम० ॥ ९ ॥ दहति यत्किल कर्म निकाचितं, विविधसिद्धिविधायकमप्यहो; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૨૪૪ जिनवरैरपि सेवितमादरात्, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हृदि वहामि तपो बहुभेदकम् ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरा मृत्युनिवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय, चारित्रलानार्थ पूजार्थच जलं० य० स्वाहा ॥ || पंचाचारपूजा प्रारंभ. ॥ ॥ मङ्गलम्. प्रभु महावीर जिनवरा, तीर्थकर जयकार; सर्व विश्व शासन प्रभु, परब्रह्म सुखकार ॥ १ ॥ प्रणमी वंदी पूजीने, गावं पंचाचार, पंचाचारे वर्ततां, मुक्ति लहे नरनार ॥ २ ॥ द्रव्यभाव आचार छे, साधन साध्य प्रकार सापेक्षे साधन सकल, आत्मशुद्धि करनार. ॥ ३ ॥ प्रथम ज्ञानाचारपूजा. दुहा. मोहनजी मोकलोरे मोसाळु अथवा ओहि जिन पूजीए मनरंगे-ए राग. प्रभु महावीर जगहितकारी, प्रतिबोध्यां नरने नारी, धन्य महावीर जग उपकारी, मनो For Private And Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४५ रथ माह्यरा सहु फळीया- मनवंबित मेळा म. ळिया. । मनोरथ माह्यरा० ॥१॥ ज्ञानाचारने शुभ समजाव्यो, ते प्रेमे मनमांही लाव्यो. द्रव्यने भावथकी ए भाव्यो-. मनोरथ ॥२॥ काल विनय अने बहुमाने, गुरुगम पामी उपधाने, सत्य अनि हृवताना ताने. मनोरथ ॥३॥ शब्दअर्थ तदुभय धारो, श्रुत जणतां सुख निर्धारो, तजीए आठे अतिचारो. मनोरथ ॥ ४॥ आगमशास्त्रादि श्रवणयोगे, गुरुसेवा स्वार्पणभोगे, ज्ञान वधे मन आरोग्ये। मनोरथ० ॥५॥ गुरु श्रद्धा प्रीतिभक्ति, प्रगटे ज्ञान विज्ञान शक्ति, प्रगटे परमप्रभु व्यक्ति. मनोरथ ॥६॥ झानावरण सकल दूर नासे, आगम अनुभव अभ्यासे, भावथी आतम उल्लासे. मनोरथ ॥ ७ ॥ तुज आगम गुरुमुख सुणतां, कर्म सघळां वेगे टळतां, बुद्धिसागर गुरु अनुसरतां. मजोरथ ॥८॥ ॐ ही श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय, ज्ञानाचार पूजनाय, जलं यजामहे स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वितीयदर्शनाचारपूजा. दर्शनाचारने पाळीए, आठ तजी अतिचार; द्रव्यभाव बे भेदी, समजी दर्शन सार, ॥१॥ निश्चयने व्यवहारथी, दर्शनना बहुभेद; दर्शनना आचारने, पाळी टाळो खेद. ॥२॥ देवगुरुने धर्मनी, नक्ति करतां भव्य, आत्मिकदर्शन प्रगटतुं, करतां शुज कर्तव्य, ॥३॥ विनति धरजो ध्यान जगपति विनति धरजो ध्यान. ए राग. दर्शनना आचार, नवी जो दर्शनना आचार निःशंकित थै निःकांक्षित थै, रुमो धरो व्यवहार. जवी० ॥१॥ वितिगिच्छा दोष निवारी, साधीए धर्माचार. नवी मूढपणानी दृष्टि त्यागी, धरो प्रनु. पर प्यार. जवी० ॥२॥ उपबृंहणथी दर्शनपुष्टि, जिनशासन जयकार. नवी० सकल संघनी सेवा नक्ति, निष्कामि आचार. नवी० ॥३॥ जिनशाप्तनना आप्रनावक, सेवो नरने नार, नवीन उपयोगी थै दर्शनाचारे; रहेतां कर्मसंहार. भवी ॥४॥ लज्जा खेदने देष निवारी, निर्भय थैने उदार. भवी तनमन धन- अर्पण करवू, संघोन्नति हित. For Private And Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४७ कार. भवी० ॥ ५ ॥ र्पाइ जाओ सहु जैनो, त्यागी देवगुरुने जैनधर्मनी, तजो नहीं देहाव्यास, जवी विश्वास. जवी० ॥ ६ ॥ स्थिर करीए धर्मे सर्वने, यथाशक्ति नरनार, भवी० साधर्मिकनी उक्ति करीए, की प्रजावना सार. भवी० ||७|| निश्चय शुद्धातम अनुभवतां, रहे न दर्शन दोष, जवी० बुद्धिसागर दर्शन पामे, सहु रीते संतोष भवी० ॥ ८ ॥ ॐ श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरा मृत्युनिवारणाय, दर्शनाचारलाभार्थ जलं० य०स्वाहा॥ तृतीया चारित्राचारपूजा. दुहा. द्रव्यभाव चारित्र छे, निश्चयने व्यवहार, चारित्राचारे रमो, श्राव तजी अतिचार. ॥ १ ॥ पांच समिति त्रगुप्तिनो, उत्तम जगमां योग, जे योगे रमतां थकां, आतम होय अयोग. ॥ २ ॥ अपवादे समिति कही, उत्सर्गे त्रणगुप्ति; गुप्ते गुप्ता मुनिवरा, पामे क्षायिक शक्ति. ॥ ३ ॥ सांभळजो मुनि संयमरः गे-ए राग. जिनवर महावीर विभु उपदेशे, समिति गुप्ति For Private And Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ साचीरे, असंख्ययोगनी प्रवचन माता, रहेशो तमां राचीरे। जिनवर०॥१॥ ज्ञानने भक्ति कर्म उपासना, हठयोगादिक योगोरे, त्रणगुप्तिमां सर्व समाता, जेथी रहे नहीं भोगोरे॥ जिनवर०॥२॥ गृहस्थ त्यागी बेने हितकर, योगक्षेम प्रदातारे; सिद्धया सिद्धशे सिके तेओ, पाळी प्रवचन मातारे ॥ जिनपर० ॥३॥ नावथकी त्रण गुप्ति साधे, मुक्ति अनुभव आवरे, द्रव्यने भावथकी निजमुक्ति, सहजानंद सुहावरे; ॥ जिनवर ॥४॥ रागद्वेष संकल्प विकल्पो, दूर थतां मनगुप्तिरे, निर्विकल्प स्वभावे समाधि, केवल प्रगटे शक्तिरे ॥ जिनवर ॥५॥ आतम ज्ञानोपयोगे रहेतां, समिति गुप्ति पासेरे, ज्ञानी सर्वे कमों करतो, ज्ञाने गुप्ति उपासेरे ॥ जिनवर० ॥६॥ ज्ञानी समिति धारे ज्या त्यां, द्रव्यनावथी जाणीरे, उत्कृष्टभंगे क्षणमा मुक्ति, नाखे केवलज्ञानीरे॥ जिनवर० ॥७॥ समिति गुप्ति साधे सर्वे, योग सधाता जाणोरे, बुद्धिसागर आत्म उजागर, प्रगटे नाव प्रमाणोरे ॥ जिनवरा॥ ॐ ह्रीं श्रीपरमपुरुषाय, परतोश्वराय, जन्मजरा मृत्युनिवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय, चारित्राचार साभार्थ पूजार्थ च जलंण् य० ॥ स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४९ चतुर्थी तपआचारपूजा. दुहा. बारे भेदे तप भलो, बाह्य अभ्यंतर बेश; तप तपतां नासे घणा, कर्मनिकाचितक्लेश. ॥ १ ॥ अशुनशुनइच्छासकल, सर्वक्रियाफलत्याग; निश्चय तप ते जाणवू, तपता महासौजाग. ॥॥ बारे अतिचारो तजी, धारो तप आचार, पुःख सही बातम चहो, तप तपशो नरनार. ॥ ३ ॥ चोमासी पारणुं आवे. ए राग. प्रभुमहावीर जिनजयकारी, तप तपिया बनी अनगारी, बन्या केवली जगहितकारी, जाख्युं तप वर्तन सुखकारीरे, तप सेवो सकल नरनारी, जाउं तपियानी बलिहारीरे; तप० ॥१॥ द्रव्यभावथी तप आचरवू, जवसागर वेगे तर, निश्चय निजगुणमां भळवं, समन्नावे रही सहु करवुरे, तप० ॥२॥ परपुद्गलमोह न धरवो, निश्चयतप गुण ए वरवो, द्रव्य. भावकाम संहरवो, प्रभु पूजी तप दिल करवोरे. तप० ॥ ३ ॥ द्रव्यभावे तपस्वी सेवा, करवा प्रगटे दिल हेवा; एतो अनुजवअमृतमेवा; तपसीनी सहाये देवारे. तप० ॥ ४ ॥ जे जे कर्म उदयमां For Private And Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० श्रावे, सुखदुःखपणुं दर्शावे; शुभाशुलबुद्धि नहीं लावे, रहे ज्ञानी समतपभावेरे. तप० ॥ ५॥ नाम रूपमा मोह न धारे, करे कर्मने स्वाधिकारे; उपकारमां जीवन गाळे, संघ सेवा तप ते भारेरे. तप ॥६॥ करे सद्गुरु साधुभकि, कोइना नहीं धारे आसक्ति; राखे नहीं सातजातनी भीति, एवी ज्ञानी तपस्वी रीतिरे. तप० ॥ ७॥ शुद्ध उपयोग छे तपभारी, पामे ज्ञानीजन संस्कारी; ध्यान सहज समाधि सारी, रहे वृत्ति न कोई विकारीरे. तप० ॥८॥ पुरुषार्थथी तप आचरशो, यथाशक्ति लावथी करशो; लब्धिसिद्धिप्रकटता करशो, बुद्धिसागर मंगल वरशोरे. तप० ॥९॥ ॐ ह्री श्री परम तपआचार लाभार्थ जलंग य० स्वाहा ॥ पांचमी वीर्याचारपूजा. दुहाआतमशक्ति फोरवो, त्रण तजी अतिचार, सर्वप्रमादो परिहो, धर्म को नरनार. ॥१॥ देव गुरुने धर्मना, आगधनमा शक्ति, फोरवतां शक्ति For Private And Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५१ वधे, प्रगटे प्रभुपदव्यक्ति. ॥ २॥ टीटोडी उत्साहथी, अनंतगुणो, उत्साह, धारी आतमशुद्धिनो, राखो मनमां चाह. ॥ ३ ॥ (थान क्रिया मनमा आणी जे-ए राग.) जिनवर महावीर विनु उपदेशे, वीर्याचारने धारोरे.धर्ममां शक्ति फोरवोलोको, करशो पर उपकारोरे. जिन । १॥ दुःख पडतां नहिं मुंशाशो, परनी व्हारे धाशोरे, संकट पडतां भागी न जाशो, करवा धर्म उजाशोरे ॥ जिन ॥२॥ व्रत तप भक्तिमा ढीला न थाशो, उत्साहे सुख पाशोरे; कायर थै थाओ नहीं दासो, चूको न निजविश्वासोरे. जिन ॥३॥ अनंतशक्तिनो स्वामीआतम, कायरथी न पमातोरे; जीवंतां मरजीवा ज्ञानी, तेथी यात्म लहातोरे. जिन० ॥ ४ ॥ देहाध्यासथी मरतां मुक्ति, पडे न पाछा नीतिरे, शूराजननी एवी रीति, धरे न क्यांये भीतिरे. जिन ॥ ५॥ गोपवो नहीं बलवीर्यने धमें, उत्साही सत्कर्मेरे; थैने रहेशो आतमशमें, पडो न मिथ्याभ,रे. जिन ॥ ६॥ भावीभाव दशे ते थाशे, कमें लख्युं ते थाशेरे; एकांतमिथ्या एवी For Private And Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨ बुद्धि, टाळी रहो उल्ला सेरे; जिन० ॥७॥ आतमना पुरुषार्थे सर्वे, यातुं निश्चय राखोरे; प्राण पडे पण कार्य न मृको, यातमसुखने चाखोरे. जिन० ॥ ८ ॥ वीर्याचारे कर्म टळे सहु, तमशक्तियो प्रगटेरे; आतम ते परमातम यावे, मिथ्याकर्मो विघटेरे. जिन० ॥ ९ ॥ सर्वप्रकारे धर्मप्रवृत्ति, करतां धैर्यने धारोरे; बुद्धिसागर आनंदमंगल, सिद्ध प्रभु निर्धा रोरे. जिन० ॥ १० ॥ कलश. धन्याश्री राग. गायो गायोरे महावीर जिनेश्वर गायो ॥ पंचाचार सदाचार जगमां, ते गातां हरखायोः वीरप्रजुवचनामृत पीतां, तृति न मनमां पायांरे. महावीर || १ || पंचाचारना धारक पूजो, पंचमी गति सुखकारी; वीरप्रभुए समकित पामी, पाळ्या दुर्गति हारीरे. महावीर० ॥ ॥ दर्शन ज्ञानने चारित्रमांही, पंचाचार समाया; पंचाचारने पाळे मुक्ति, सहजानंद सुहायारे. महावीर० || ३ || अंतर यातम पंचाचारे, पूजी वीरने जावे; परमातम पोते घट थावे, ध्याता ध्येय सुहावेरें. महावीर ||४|| सानंद शहरे आनंद For Private And Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ल्हेर, पूजा रची गुणदावे; ओगणीश सितोत्तर आशी वदि-, बीजदिने बहुभावरे. महावीर ॥ ५ ॥ भणतां गणतां ने सांनळतां, पामो शिव नरनारी; संघ चतुर्विध मंगल पामो, समकिती व्रतीअवतारीर. महावीर० ॥६॥ चननिक्षेप सातनये में, पंचा चारने जाण्या; गुरुसुखसागरपूर्णकृपाथी; घटमां जावे आण्यारे. महावीर० ॥७॥ गावो जागो मनमां आणो, आचारने आचारो; बुद्धिसागर आनंदमंगल, ऋद्धि वृद्धि अपारोरे. महावीर ॥ ८॥ ॐ प0 वीर्याचारलाभार्थ जलं. य० स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ अथ विंशतिस्थानकपदलघुपूजा प्रारंभ. प्रथम अरिहंतपद पूजा. श्री महावीर जिनेश्वरा, चोवीशमा जिनराज; त्रिशलानंदन जयकरा; प्रणमुं जिनशिरताज ॥ १ ॥ बहुविधतप शास्त्रे भण्यां, कर्मदुरितहरनार, विंशति स्थानक तप व सहुतपमां शिरदार ॥ २ ॥ विशस्थानकपूजा रचुं पूज्यपणुं दातारः पूज्यनी पूजा भक्तिथी, तीर्थकरपद सार ॥ ३ ॥ प्रथम अरिहंतपदपूजा. परमेष्ठीमा प्रथम छे, अरिहंत भगवंत नय निक्षेपे ध्याइए, आविर्भावे संत ॥ १ ॥ ( संभव जिनवर विनति. ए राग. ) प्रभु रिहंत जिन पूजीए, बारगुणे जयकारीरे, चोत्रीश अतिशयवंत जे, केवलज्ञानना धारीरे ॥ प्रभु० ॥ १ ॥ पांत्रीशवाणीगुणोवडे, जग बोधे सुखकारीरे; त्रणकाल अर्हन विभु, सर्वजगत् उपकारीरे. प्रभु० ॥ २ ॥ क्षायिक नवलब्धि धणी, तारण For Private And Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५५ तरण झहाजरे. तीर्थ प्रवचन संघने, स्थापे भवी हितकाजरे, प्रभु० ॥ ३ ॥ इन्द्र असंख्य सुरासुरा, सेवे प्रभु हितकारीरे; घातीकर्म चउ क्षय करी, भावप्रभुता धारीरे. प्रभु० ॥ ४ ॥ दोषबढाररहित प्रभु, सर्वशुभोपम छाजेरे. बुद्धिसागरध्यावतां, बातम जगमां गाजेरे. प्रभु० ॥५॥ ॐ परम० अर्हत्पद पूजार्थ जलं० य स्वाहा. द्वितीया सिद्धपदपूजा. सकलकर्मनो क्षय करी, सिद्धया सिद्धशे जेहा त्रिकरणयोगे पूजीए, वंदीजे गुणगेह. ॥ १ ॥ (प्रभु निर्मल दर्शन कीजीए. ए राग.) ध्याइए ध्याइए ध्याइए, सिद्ध परमातम प्रभु ध्याइए. ॥ आवकर्मक्षये आठगुणोथी, सिद्ध थया दिल लावीए; व्यतिरेकीएकत्रीशगुणो जे, अस्ति नास्तिमय भावीए. सिद्ध० ॥ १॥ जन्म जरा नहीं मृत्यु न जेने, हृदय धरीने रीझीए; शुद्धगुणो पर्याया अनंता, आविर्नावे ते लीजीए. सिद्ध For Private And Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५६ ॥ २॥ पूर्णानंदमयी परमेश्वर, आदि न अंत न पाइए; आतम सत्ताए परमातम, सत्ताध्याने सुहा. इए. सिद्धम् ॥३॥ आतमगुणपर्यायथी अस्ति-, नास्ति परनी जाणीए; उत्पत्तिव्ययध्रुवतारामी, समय समये चित्त आणीए. सिद्ध ॥४॥ सिद्ध प्रभुओ गावो ध्यावो, प्रभु आज्ञा शिर धारीए; बुद्धिसागरसिद्ध प्रजु विन्नु-, थैने जन्म सुधारीए. सिद्ध० ॥ ५॥ ॐ प० सिद्धपदपूजार्थ जलं० य० स्वाहा ॥ तृतीया प्रवचनपदपूजा. प्रवचन पूजतां वंदतां, ध्यावतां मंगलमाल. प्रवचनपद दिलमां वस्युं, सर्वपापहणनार. ॥१॥ (विमला नव करशो उच्चाट ए राग.) प्रेमे प्रवचन पूजो गावो, मनमां धारशोरे; भावे तीर्थसंघसेवाथी, संकट टाळशोरे. प्रेमे ॥ संघ चतुर्विधसेवा भक्ति-, करतां प्रगटे सघळी शक्ति, करीने शाप्तनसेवा, आतमंने उद्धार जोरे ॥ प्रेमे० ॥ For Private And Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५७ ॥१॥ तीर्थकर पण तीर्थने नमता, तीर्थ नमें भव नहि भमता; भावे प्रवचनश्रुतने मनमांही अवधारशोरे प्रेमे ॥२॥ धर्मक्षेत्र साते शुन पोषो, टाळो संशय आदिदोषो; यातम उपयोगी थै कर्मकटकसंहारशोरे. प्रेमे ॥ ३ ॥ जैनधर्म फेलावो करशो, तीर्थकर गणधर पद बरशो; प्रभुनी वाणीने जगमा सर्वत्र प्रचारशार. प्रेमे ॥४॥ प्रवचन सेवा माटे सर्वे, मळ्युं गणो, नहि रहेशो गर्वे; भावे बुद्धिसागर आप तरो पर तारशोरे. प्रेमे ॥ ५॥ ॐ प० प्रवचनपदपूजार्थ जलंग य० स्वाहा ॥ अथ चतुर्थी आचार्यपदपूजा. नमो नमो श्रीसूरिवर, गणधरसंवप्रधान; तीर्थकर पाछळ प्रभु, अर्हन्सम भगवान्. ॥ १ ॥ ( जीवलडा घाट नवा शीद घडे, ए राग.) सूरिवर शासन वक्तिनर्या, हृदयमां ते में अंगीकर्या ॥ देशकाल अनुसारे शासन-, धर्म प्रचारक खरा. उत्रीशीछत्रीशीगुणेकरी, आतमगुणथी ३३ For Private And Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ भर्या. हृदयमां० ॥ १ ॥ देशकाल तरतम गुण किरिया, शोने जे जयकरा; वत्रीश उपमा जेने बाजे, गीतार्थ ज सुखकरा. हृदयमां० ॥२॥ धर्मशास्त्रना अर्थ प्रकाशे, शासनशोभावर्या, स्वतंत्रताएं वर्ते जगमां, अनंतज्योते भळ्या. हृदयमां० ॥ ३ ॥ सर्व शास्त्रनी एक वाक्यता - करता अनुभव भर्या; आतम उपयोगे सह करणी - करता ध्याने ठर्या. हृदयमां० ॥ ४ ॥ ध्यानसमाधियोगे योगी, कदि न जावे डर्या; बुद्धिसागर सुरिसेवा, भक्तिमगलधर्या. हृदयमां० ॥ ५ ॥ ॐ परम० सूरिपदपूजार्थ जलं० य० स्वाहा || " अथ पंचम उपाध्यायपदपूजा. पच्चीशगुणथी शोभता, उपाध्याय जयकार; भणे भणावे साधुने, युवराजा सुखकार ॥ १ ॥ ( आतमभक्ति मच्या केइ देवा. ए राग. ) वाचकपद पूजो नरनारी, स्वयं बनो जग तेवा, पुरुषार्थे वाचकपद प्रगटे, कर्मक्षये गुण लेवा. वा For Private And Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५९ चक० ॥ १॥ जीवंता वाचक सहु पूजो, द्रव्यथी जावथी नावे; गुणीनी संगे गुणीना ध्याने, गुण निज घटमां आवे. वाचक० ॥२॥ वाचक वैयावच्च करीने, मानवभव ल्यो ल्हावो; सर्वस्वार्पण करीने नक्ति, करतां गुण प्रगटावो. वाचक० ॥३॥ मिथ्या संशय तर्क वितर्को, तजीने वाचक सेवो; लोकविषय संज्ञाने त्यागो, वाचकसेवा मेवो. वाचक० ॥४॥ अनेकसद्गुणदरियावाचक, सेवो नरने नारी; बुद्धिसागरवाचकपदनी, जाउं हुं बलिहारी. वाचकः ॥ ५॥ ॐ प० वाचकपदपूजार्थ जलं० य० स्वाहा ॥ छठीस्थविरपदपूजा. स्थिर करता मुनि आदिने, जैनधर्ममा जेह; स्थविरोने सेवो सदा, स्थिरतादिक गुणगेह. ॥१॥ (श्रुतपद नमिये भावे भविया. ए राग.) स्थविरमुनि जगमा उपकारी, मुनिजन स्थिरताकारीजी; स्थविर साधुनी संगति करतां, चंच. For Private And Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लता टळनारी; स्थविरने नजीएजी, पशुने करता देव, स्थविरने यजीएजी. ॥ १॥ बीशवर्षदीदा पर्यायी, साठवर्षवयधारीजी; आपार आदि अंगना झाता, श्रुतस्थविरा सुखकारी. स्थविर ॥२॥ बालकग्लान संशयी चंचलने, धर्मविषे स्थिरकारीजी; परिणामिकबुद्धि अनुभवी जे, बालमुनि हितकारी. स्थविरण ॥ ३॥ प्रजमहावीरे मेघकुमरने, संयममां स्थिर कीधाजी; ठाणांग दश स्थविरा भा. ख्या, आतमरमणी प्रसिद्धा. स्थविर० ॥ ४ ॥ ज्ञानी ध्यानी मुनिवरा जे, स्वपरसमयना दरियाजी; बुद्धिसागर स्थविरमुनि शुभ, तारे ने जे तरिया. स्थविर ॥५॥ ॐ प० स्थविरपदपूजार्थ जलं. य० स्वाहा ॥ सतम साधुपदपूजा. आत्मस्वनावे जे रमे, परोपकारी महान् : सत्तावीशगुणधारका, प्रामो मुनि गुणखाण. १ ॥ For Private And Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६१ ( ए गुण वीरतणो न विसारं. ए राग. ) मुनिवर देखी प्रणमो बंदो, पूजो ध्यावो भावोरे; मुनिवरनी संगत करवामां श्रद्धा प्रीति लावोरे. मुनिवर० ॥ १ ॥ वर्तमानमां तरतमयोगे, वर्ते साधु जेहरे; तेनी सेवा भक्ति करतां, थाशो स्वयं गुणगेहरे. मुनिवर० ॥ २ ॥ मुनिआशातना हेलना त्यागो, वर्ततानी संगरे; करशो गुणरागी थै लोको, गुणनो धरो मन रंगरे. मुनिवर० ॥ ३ ॥ सर्व जीव उपकारी साधु, क्षांति आदि धरे धर्मरे; शुद्धातम उपयोगे वर्ती, करता धर्मनां कर्मरे. मुनिवरण ॥ ४ ॥ अप्रतिबद्धपणे जे वर्ते, गुरुनिश्रा बुद्धिसागर मुनिवरसेवा, अनंतपुण्ये मुनिवर० ॥ ५ ॥ संतरे; मळंतरे. ॐ० प० साधुपदपूजार्थ जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only अष्टम ज्ञानपदपूजा. ज्ञानने पूजो भविजना, सकलधर्म आधार; ज्ञानप्रकाशी आतमा, परमातम निर्धार ॥ १ ॥ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६५ (सिद्धचक्र पद सेवा कीजे. ए राग. ) सर्वगुणोमां ज्ञान छे मोटुं, ज्ञाने परमानंदोजी; आत्मज्ञान छे सर्वमां मोटुं, टाळे जे भवफंदो; ज्ञानने नजीएजी, ज्ञान छे आतमरूप; निजगुण सजीएजी. ॥ १ ॥ ज्ञानोपयोगे आत्मरमणता, स्वरूपक्रिया छे साचीजी; ज्ञानोपयोगे ध्यानक्रियाथी, रहेशो निजगुण राची. ज्ञान० ॥ २ ॥ ज्ञानो पयोगे सहजसमाधि, निर्लेपे सहुकरणीजी; नय. निक्षेपे ज्ञानने जाणो, जे छे भवमां तरणी. ज्ञान० ॥ ३ ॥ निजपरने उपकारी श्रुत बे, जाणे बे स्याद्वादीजी; अनेकान्तपणे सहु जाणो, थाओ नहीं उन्मादी. ज्ञान० ॥ ४ ॥ ज्ञाने सर्वकर्म क्षय क्षणमां, करे छतां नहि कर्ताजी; बुद्धिसागरसद्गुरु सेवो, ज्ञानी भवोदधि तरता. ज्ञानने० ॥ ५ ॥ ॐ प० ज्ञानपदपूजार्थ जलं० य० स्वाहा ॥ नवमी दर्शनपदपूजा. द्रव्यभावदर्शन नमु निश्चयने व्यवहार, सम्यग्दर्शन पामीने, मुक्ति लहे नरनार ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६३ ( तपपदने पूजीजे हो प्राणी. ए राग.) दर्शन दिल प्रगटावो हो सुखकर, दर्शन दिल प्रगटावो॥उपशम क्षयोपशमने क्षायिक, द्रव्यने भाव सुहावो; व्यवहार निश्चयसमकित पावो, अजरामर थर जावो हो. सुखकर दर्शन० ॥१॥ सम्यग् दर्शन योगे मिथ्या-, शास्त्रो पण होय सवळां. मिथ्यादर्शन योगे सम्यक्-, शास्त्रो पण होय अवळां हो. सुखकर दर्शन० ॥ २॥ सम्यपणे सघळु परिणम तुं, समकितीने भावे. अल्पबंधने निर्जरा झाझी, प्रवृत्तिमां थावे हो. सुखकर दर्शन० ॥ ३ ॥ सात आठ त्रण चारभवोमां, समकिती लहे मुक्ति. उत्कृष्टुं अंत मुहूर्तमां, पामे मुक्ति झटिति हो. सुखकर दर्शन ॥४॥ समकितीनी सेवा भक्ति, करवा स्वार्पण करवू, बुद्धिसागरआतमशुद्धि, मंगलपदने वर, हो. सुखकर दर्शन ॥ ५ ॥ ॐ प० दर्शनपदपूजार्थं जलंग या स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ दशमी विनयपदपूजा. बाह्याभ्यंतरविनयने, सेवो नरने नार, सर्व धर्मनुं मूळ छे, सद्गुणमां शिरदार ॥ १ ॥ ( जीवलडा घाट नवा शीद बडे. ए राग. ) विनयनी वाटे जे जन वळे, जगत्मां पाठो ते नहीं पडे. ॥ देव गुरुने संतविनयथी, मारग धर्मनो जडे: विनये विद्याज्ञानने पामे, संसारे नहि समे. विनयनी ॥ १ ॥ पांचने दशविध तेरने बावन, नेदे विनयने करे; शमदम आदिगुणने पामे, वांछित वेळा वळे. विनयनी० ॥ २ ॥ आहारी पण उपवासी छे, विनयी मुक्ति वरे; गुरुविनये ज्ञानादिक पामे, श्रद्धाप्रीतिवळे. विनयनी० ॥ ३ ॥ सर्वसंघ गुणीजनना विनये, मोहनी वृत्ति टळे; शुद्धातम उपयोगे करणी, थावे निजगुण जळे. विनयनी० ॥ ४ ॥ सर्व शक्तिनुं मूळ विनय बे, भक्तोने सांपडे; बुद्धिसागर मंगलमाला, अनंतसुखडां मळे. विनयनी० ॥ ५ ॥ ॐ० प० त्रिनयपदपूजार्थ जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६५ अग्यारमी चारित्रपदपूजा. सर्वगुणी चारित्रथी, मुक्ति लहो नरनार; थारित्रसम जग को नहीं, पूर्णमुक्ति दातार. ॥ १ ॥ ( कानुडो न जाणे मोरी प्रीत. ए राग.) चेतन धारी ले चारित्र, पुर्गुणदोष हरीनेरे, चेतन ॥ द्रव्यने भावथी धारे, कमों सघळां संहारे; एवं रुखें घर चारित्र, शाने मोह धरे छे रे. चेतन० ॥१॥ सर्वप्रमादो वारी, चेती ले आत्म सुधारी; गृही वा त्यागी, चारित्र, धरी ले स्वाधिकारेरे. चेतन० ॥॥ मोहकादवमां खूच्यो, मुंडनी पेठे मुं. इयो; गगद्वषे पडियो मूढ, शीदने निज विसरेछेरे. चेतन० ॥ ३ ॥ हजी ने हाथमां बाजी, हारे शुं थेने पाजी; जीवो मुक्ति पाम्या अनंत, शाने वार करेछेरे. चेतन ॥ ४ ॥ शुद्धस्वभावमा रमवू, एथी न नवमां भमकुं, बुद्धिसागरगुरुचारित्र, पामी भव्य तरेछेरे. चेतन ॥५॥ ॐ प0 चारित्रपदपूजार्थ जलं. य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ बारमी ब्रह्मचर्यपदपूजा. रत्न मणिमय मंदिरो, प्रतिमाओ करनार; तेथी अनंतु फल लहे, ब्रह्मचर्य धरनार. ॥ १ ॥ (धन्यधन्य जगमां नरनेनार, विमलाचल दर्शन करनार. ए राग.) धन्य धन्य जगमां ते नरनार, निर्मल ब्रह्मचर्य धरनार, पूजो ब्रह्मचारी नरनार, धारो ब्रह्मचर्य सुखकार ॥ रत्नमणि कंचननी प्रतिमा, चैत्य करावणहार; अनंतगणुं फल तेथी पामे, ब्रह्मचर्य धरनार. धन्य ॥ १॥ सहसचोराशीमुनिवरदाने, जे फल नकी थनार; ते फल विजयने विजयाभक्ते, ययुं धन्य अवतार. धन्यः ॥२॥ द्रव्यथी कायिकवीर्यनी रक्षा, आत्म रमणता सार-; नावथी ब्रह्मचर्य छे एवं, सह शक्ति दातार. धन्य० ॥ ३॥ सर्वप्रकारे विषयनी वांछा, त्यागी जे रहेनार; अनासक्तिए करे कृत्य सहु, ब्रह्मचारी शिरदार, धन्य० ॥ ४ ॥ देश थकी ने सर्वथकी जे, ब्रह्मचर्यधरनार; इन्द्रादिक तेना पद पूजे, देवो स्हाये थनार, धन्यः ॥ ५॥ दिव्यऔदारिकत्रिकरणयोगे,सर्वकाम हरनार, बुद्धिसागर ब्रह्मचर्यनी, अनंत शक्ति उदार, धन्य० ॥ ६॥ ॐ प० ब्रह्मचर्यपदपूजार्थ जलं० य स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६७ त्रयोदशमी क्रियापदपूजा. आतमज्ञानथी सतक्रिया करतां कर्मविनाश; साध्योपयोगे साधना, आपे सिद्धिविलास. ॥ १ ॥ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ध्यानक्रिया मनमां आणी जे. ए राग. ) धर्मक्रिया करीए उपयोगे, निजपरने हितकारी रे, आवश्यक जे धर्मनां कार्यों, करीए फर्ज विद्यारी रे. धर्म० ॥ १ ॥ निजपर उपकारकशुन कार्यों, सर्वसंघ उपकारी रे; करतां मरतां मोह न धरीए, फलनी इच्छा निवारी रे. धर्म० ॥ २ ॥ निजपर उपकारक छे प्रवृत्ति, व्यवहारे व्यवहरीएरे. क्रिया उत्थापे संघ रहे नहीं, समजी सर्वे करीएरे. धर्म० ॥ ३ ॥ शुजपरिणामे शुभफल यातुं, आत्मोपयोगे मुक्तिरे; व्यवहारिक धार्मिक कर्तव्यो, करवां व्यवहार रीतिरे. धर्म० ॥ ४ ॥ ध्यानक्रिया ध्यानी घट धारे, निज उपयोगे सुधारेरे; ज्ञानी बाह्याभ्यंतर किरिया, करतो धर्म वधारेरे. धर्म ॥ ५ ॥ अशुभक्रिया ध्यान वारी संतो, करता आतमशुद्धिरे; बुद्धिसागर सहजस्वनावे, रमतां आनंद ऋद्धिरे. धर्म० ॥ ६ ॥ ॐ० प० क्रियापदपूजार्थं जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६८ ॥ चौदमी तपपदपूजा. ॥ तपथी प्रगटे लब्धियो, अठ्ठावीश पञ्चाश; कर्म तपाचे चीकणां, तप ते तपशो खास. ॥ १॥ (फाग. रंग मन्यो जिन दरबाररे चालो खेलीए होरी. ए राग.) तप तपशो नरनाररे, तप छे सुखकारी; तपथी अनंती शक्तिरे, प्रगटे हितकारी ॥तपणा बाह्याभ्यंतर तप बहनेदे, जन्ममरणदुःखहारी; फल इच्छानो रोध कर्यार्थी, कर्म खरे बहुभारीरे. तप छे सुखकारी. तप॥१॥ कर्म निकाचित क्षय बहु थातां, करो कर्तव्य विचारी; धर्म करंतां दुःखसहन तप, परपरिणति संहारी रे. तप० ॥ २॥ परीषह उपसगोंने सहीने, कार्य करो उपकारी; मनवाणीकायानी प्रवृत्ति, परमार्थे जयकारीरे. तप० ॥ ३ ॥ भव मुक्तिमा सम परिणामी, थाशो मोहने मारी; उत्कृ तपर्नु फल ए बे, मुक्ति निश्चय धारी रे. तप० ॥ ४ ॥ तप तपिया शासनना प्रभावक, बंदु वार हजारी; बुद्धिसागर मंगलमाला, पद पद आनंदकारीरे, तप॥५॥ ॐ प० तपःपदपूजार्थ जलंग य० स्वाहा । For Private And Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६९ पन्नरमी गोयमपदपूजा. वर्तमान जे वर्तता, साधु श्रमणी जेह; दान दियंतां तेहने, पामो स्वर शिवगेह. ॥१॥ (ए व्रत जगमां दीवो मेरे प्यारे. ए राग.) नावथी दानने दीजे हो, नविजन ! नावी दानने दीजे॥ अभय सुपात्र बे दानप्रनावे, आतम उज्वल कीजे; हर्षोल्लासे तीर्थकरपद, बांधी मुक्ति वरीजे हो. भविजन ॥१॥ संघ चतुर्विध सेवाभक्ति, करतां निश्चय मुक्ति दानथी त्यागने त्यागथी शिवपद, आतमशुद्धि प्रयुक्तिहो. भविजन० ॥ २ ॥ आंखे अश्रु रोमांच विकसित, हृदये हर्ष न मावे; गदगदवाणी दानी एवो, सर्वोत्कृष्ट कहावे हो. भविजन ॥३॥ स्वार्पणनावे दानने देतां, शिवपद सहेजे थावे; सातक्षेत्रमा दान दियंतां, परमानंदपद पावे हो. भविजन ॥४॥ दान दाधुं तेणे सघळू दीg, दान करो नरनारी; बुद्धिसागर ऋद्धिवृद्धि, पामो शिववधू सारी हो. भविजन ॥५॥ ॐ प० गौयमपदपूजार्थ जलं य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૭૦ सोळमी जिनपदपूजा. नमो नमो जिनपदं भलं, पूजो ध्यावो चित्त; दोष अढाररहितप्रभु, परमातम जे पवित्र ॥१॥ ( श्री श्रेयांसजिन अंतर्यामी. ए राग . ) जिनपद गावो जिनपद ध्यावो, यतम तेवो जावोरे. सोळकषायो जीते जिन ते, जिनपद घट प्रगटावोरे. जिनपद० ॥ १ ॥ श्रुतज्ञानी अवधि मन नाणी, छद्मस्था वीतरागीरे; जिनपद आराधकने पूजो, आतमरंगी त्यागीरे जिनपद० ॥ २ ॥ विद्यमान आचार्यने वाचक, बालस्थविरने मांदारे; वैयावृत्य करो बहुभावे, होय न जक्तिमां वांधारे. जिनपद० ॥ ३ ॥ वैयावच्चफन नाश थतो नहीं, वैयावच्ची न पमतोरे, सकलसंघनी वैयावच्चे, कोइ न भवमां रखडतोरे. जिनपद० ॥ ४ ॥ चढता भावे जिनपदसाधक, सर्वजैननी सेवारे; करतां महापापी पण मुक्ति, पामे निश्चय देवारे. जिनपद० ॥ ५ ॥ जैनोमां जिनपदने जावो, आतमने जिन करशोरे; बुद्धिसागर आतम जिनवर, पोते थे शिव वरशोरे. जिनपद० ॥ ६ ॥ ॐ प० जिनपदपूजार्थ जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७१ सप्तदश संयमपदपूजा. शुझातमगुणरमणता, संयम छे सुखकार; धारणध्यानसमाधिमय, साधो नरने नार. ॥१॥ (त्रीजे भव वरथानक तय करी. ए राग. ) संयम आराधो नरनारी, आतमशुद्धिकारी; ध्यानसमाधिमयसंयम बे, निजपरने उपकारीरे. भविजन ! संयमने प्रगटावो, लेशो नरभव ल्हाबोरे. नविजन० ॥ १ ॥ द्रव्यसमाधियी नावसमाधि, अनंतगुणी हितकारी; सविकल्पक विकल्परहित जे. सेवो समाधि विचारीरे. भविजनम् ॥ २॥ हठ आदि अज्ञानसमाधि, वीशदोष परिहरीए; गृहस्थने त्यागीभेदे संयम, व्यवहारनिश्चय धरीएरे. भवि. जन० ॥३॥ चारनिक्षेपे सातनये नव-, तत्व सामायिक धारो; मनवश करतां आत्मसमाधि, शुद्ध थता आचारोरे. भविजन० ॥ ४॥ संयमीनी सेवा नक्तिथी, शक्तियो प्रगटावो; बुद्धिसागर आतम संयम, आविर्भावे लावोरे. भविजन ॥५॥ ॐ प० संयमपदपूजार्थ जलं० य स्वाहा ॥ - For Private And Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टादशमी अनिनवज्ञानपदपूजा. प्रतिदिन अनिनवज्ञानने, पामो नरने नार; आभिनवज्ञान विना कदा, रहीए नहि क्षणवार. १ (सिद्धचक्रपदसेवाकीजे. ए राग.) अनिनवज्ञान भणो भवी भावे, गुरुगम लही सुखकारीजी, स्वर्ग अने शिवसुख झट लहीए, स्वाध्याय पंचविध धारी; श्रुतने नणिएजी-, त्यागी सर्व प्रमाद, नवश्रुत गणीएजी. ॥ १ ॥ बुद्धिना गुण आठ वधारो, आउदोषने टाळोजी; सर्वथकी आराधक ज्ञानी, क्रिया रहित पण भाळो, श्रुतने त्यागी ॥२॥ देश आराधककिरिया नाखी, ज्ञाननी किरिया दासीजी; ज्ञानी ज्ञान आशातना टाळो, शुरू स्वरूप उल्लासी. श्रुतने-त्यागी ॥३॥ ज्ञानथी आतम शुद्धि अनंती, कार्य करंतां थावेजी; अज्ञानी संवरने आस्रव-रूपे मन प्रणमावे. श्रुतनेः ॥ त्यागी, ॥४॥ अनुनवज्ञानी सूरिवाचकमुनि, संगे निशदिन रहेशोजी; बुद्धिसागर आत्मप्रभुता, चिदानंदपद लेशो. श्रुतने० ॥ त्यागी० ॥ ५॥ ॐ प० अनिनवज्ञानपदपूजार्थ जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७३ ओगणिशमी श्रुतपदपूजा. पंच ज्ञानमां श्रुत छे, स्वपरोपकारक बेश, चल मुंगां श्रुत बोलतुं, टाळे सर्वे क्लेश. ॥१॥ (चंद्र प्रभुजीसे ध्यानरे मोंये लागी लगनवा. ए राग.) श्रुत स्वपर उपकारीरे, नवी भावथी सेवो भवी भावथी सेवो जगमा छे जयकारीरे.भवी॥ केवलज्ञा. नीना मुखनी वाणी, चउदने वीश प्रकाररे. भवी० ॥ नवतत्व ज षद्रव्य प्रकाश्यां, नयनिक्षेपे उदाररे. भवी० ॥ १॥ तत्व फरे नहीं त्रण्यकालमां, फरता रहे आचाररे. भवी० दुःषमकाले श्रुत छे भानु, भणो भणावो साररे. भवी० ||श्रतज्ञानी केवली सरखो, सेवो नरने नाररे. नवी० ॥ बत्रीशदोष रहित बागम छे, वर्ते जगदाधाररे. नवी० ॥३॥ वीरप्रभुए अर्थ प्र. काश्या, सूत्र रच्यां गणधाररे. भवी0 श्रुतकेवली आदि मुनियोए, शास्त्र रच्यां जयकाररे. भवी ॥४॥ श्रुतज्ञानीनो विनय करो बहु, प्रेमे करो सत्काररे. भवी बुद्धिसागर शुद्धातमपद-, हेते स्याद्वादधाररे. जवी० ॥ ५ ॥ ॐ प० श्रुतपदपूजार्थ जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ वीशमी तीर्थपदपूजा. संघ चतुर्विधतीर्थ छे, सर्वविश्वसुखकार; अरिहा जमता तीर्थने, तीर्थ नजो नरनार. ॥१॥ ( वीरकुमरनी दातडी कोने कहीए. ए राग. ) संघ चतुर्विध तीर्थ के जयकारी, पंच परमेष्ठी हितकारी; सर्वविश्वविष उपकारी, सेवो नरने नार. संघः ॥१॥ जंगमतीर्थ आराधना शिवकारी, श्रद्धाप्रीतिथी सेवा सारी; जाउ संघनी जग बलिहारी, सेवे नासे पाप. संघ ॥२॥ स्थावर तीर्थने रक्षतो संघ शक्त, रहो संघनी निशदिन जक्ते; संघथी जैनशासन वर्ते, जीवो संघना हेत. संघः ॥ ३ ॥ स्थावरजंगमतीर्थपर प्रेम लायो, मोति पुष्पे संघ वधावो; जावे तीर्थकरपद पायो, बनो संघना दास. संघ० ॥ ४ ॥ सूरि वाचक मुनि सेवजो सुखकारी, करी स्वार्पणने दोष वारी3B बुद्धिसागर तीर्थनी यारी, करे मंगलमाल. संघ० ५ For Private And Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७५ कलश. ( गायो गायोरे महावीर जिनेश्वर गायो. ए राग धन्याश्री. ) गायुं गायेंरे वीशस्थानकपद तप गायुं; गातां पूजतां ध्यातां दिलडुं, आनंदथी उभरायुंरे. वीश० ॥ आतममां वीश स्थानक जाण्यां अनुभवमां एम आव्युं; साधनयोगे साध्यनी सिद्धि, जाणतां मन जान्युरे वीश० ॥ १ ॥ एकमां वीशने बीशमां एकज, एक साधे वीश साध्यां साध्योपयोगे साधन सफळां, भावकी आराध्यांरे. वीश० ॥ २ ॥ आतममां वीश द्रव्यने भावे, निश्चयने व्यवहारे; शुद्धातम उपयोगे घटमां, गुणपर्याय प्रकारेरे. वीश० ॥ ३ ॥ वीशस्थानक पैकी एक स्थानक, आराधतां जावे; तीर्थकरपद पामे व्यो मुक्ति अनंता पावेरे. वीश० ॥ ४ ॥ सिद्धया सिद्धशे जीव अनंता, एकेकपद आराधे; गुण एक सेवे गुण अनंता, प्रगटे साधन साधेरे. वी० ॥ ५ ॥ ओगलिश सत्तोत्तर आश्विननी, चोथवदि गुरुवारे; सानंद शहरे चोमासुं करी, पूजा रची भवी तारेरे वीश० ॥ ६ ॥ पूर्णप्रतापीतपगच्छनायक, जगगुरु विरुद धराया; हीरविजयसूरि प्रणमुं पाया, अकबरे For Private And Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 绝酒度 गुणगण गायारे, वीश० ॥ ७ ॥ सहज सागरपाठक जयकारी, सागरशाखा धारी; पह परंपरा रविसागरगुरु, रविसम प्रगट्या जारीरे वीश० ॥ ८ ॥ पूर्णप्रतापी सुखसागरगुरु, करुणा आशी प्रजावो; बुद्धिसागर पूजा रची शुभ, संघमां थाओ वधावोरे, वीश० ॥ ९ ॥ ॐ ह्रीं श्री० पमर० तीर्थ पूजार्थ जलं० यजामहे स्वाहा. For Private And Personal Use Only · Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ दशविधयतिधर्मपूजाप्रारंभ. प्रणमुं श्री परमातमा, महावीर जगदाधार; चोवीशमा तीर्थकरा, शासनपति सुखकार. ॥ १ ॥ जेणे संघने स्थापियो, सर्वधर्म आधार; जिनवर महावीर जग जयो, अनंतगुणदातार. ॥ २॥ यति धर्म दशविध कह्यो, यात्मशुद्धि करनार, जगजय श्री महावीर जिन, वंदु वार हजार. ॥ ३॥ समवसरणमां बेसीने, कीधो तीर्थ प्रचार; जंगमतीर्थ ते मुनिवरा, तेना दशगुण धार. ॥ ४॥ दश गुणथी मुनि शोजता, पूजा दशविधधर्म; दश विध धर्म आत्मनु, प्रगटे ज्ञान ने शर्म. ॥ ५ ॥ ते माटे दशधर्मनी, रचुं पूजा सुखकार, अष्टप्रकारे पूजशो, वीर प्रभु जयकार. ॥ ६ ॥ प्रथम क्षमापूजा. जिनवर महावीर भाखता, धर्मदमा सुखकार; आराधो भवी भावथी, अनंत व दातार. ॥१॥ (सहियर सुणिएरे भगवती मूत्रनी वाणी. ए राग.) जिनवर महावीर विभु उपदेशे, सर्व जगत् हितकारी; धर्मक्षमा धारो नरनारी, क्रोधकषायने For Private And Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ वारी, आत्मस्वभावनेरे, समजी क्षमागुण धारो; क्षमावंत साधुरे, बाकी वेषाचारो. आत्म० ॥ १ ॥ अपकारे उपकारे क्षमाने, धारे बहुला लोको; धर्मक्षमा सहजे घट प्रगटे, झाने क्रोधने रोको. आत्म० ॥ २ ॥ कूरगडु खंधकना शिष्यो, धन्य मेतार्य मुनीन्द्रा; काने गोपे खीला मार्या, सहिया वीर जिनेन्द्रा. आत्म० ॥३॥ अच्चंकारी नट्टा मोटी, धन्य क्षमागुणदरिया; अहंवृत्ति ममता नहि जेने, क्षमागुणी मुनि तरिया. आत्म० ॥ ४ ॥ वेषक्रियातपजप सहुसाधन, धर्मक्षमाथी सफळां; शुजअशुभवृत्ति नहि रहेतां, साधन नहि छे खपनां. यात्म ॥ ५ ॥ देहादिक अध्यासो छंडी, आतमना उपयोगे; रहेतां धर्मक्षमा गुण प्रगटे, समताना संयोगे. आत्मण ॥ ६ ॥ चिदानंद आतम प्रगटावो, असंग आतम भावो; बुद्धिसागर प्रानंदे, रमता मुनिवर ध्यावो. आत्मण ॥७॥ ॐ ह्री श्री अर्ह परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय, क्षमा लानार्थ जलं, चंदनं, पुष्पं, धूप, दीप, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, यजामह स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७९ द्वितीया मार्दवधर्मपूजा. द्रव्यभाव अहंकारना, त्यागथकी छे त्याग; मुनि श्रमणी लघुता धगे, थावो प्रभु वडभाग. ॥ १ ॥ आठजातिना मद तजी, थावो निरहंकार; अगुरु लघु निज आतमा, समजीने सुखकार. ॥२॥ मानमां अने अपमानमां, वर्ततां समनाव; अनंत गुण प्रगटे खरा, साधो मार्दवदाव. ॥३॥ (श्रावक व्रत सुरतरु फलियो, ए राग.) परमेश्वर वीर उपदेशे, रहो न मुनि रागद्वेषे; मान तजे ते सुख लेशरे, मुनिवर मान परिहरशो. क्षण क्षण बातमगुण स्मरशोरे, मुनि॥ भवसागर वेगे तरशोरे. मुनिवर० ॥१॥ आठजातिमद परि हरता, आतमशुद्धि ते करता; परमब्रह्म वेगे वरतारे. मुनिवर० ॥ २॥ रावण मानथकी हार्यों, भीमे दुर्योधन मार्यो; मन पेसे मद अणधार्योरे. मुनिवर० ॥ ३ ॥ ज्ञानने ध्यानना अहंकारे, तरे नहीं पर नहि तारे; गारवे जीव करे भारेरे. मुनिवर ॥४॥ उंच नीच जेदे आवे, अज्ञानी मनमां फावे; मदकेफे निज भूलावेरे. मुनिवर० ॥५॥ हुं मारे For Private And Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० ज्यां नही जागे, त्यांथी मद दूरे जागे; जयमको घटमां वागेरे. मुनिवर ॥ ६ ॥ हुं त्यांयी प्रभु छे आघा, बाहुबली समजी जाग्या; केवलज्ञानी वीतरागारे. मुनिवर ॥ ७ ॥ मद वण मन९ रहे ज्यारे. आत्मप्रभु प्रगटे त्यारे; आप तरे मुनि पर तारेरे. मुनिवर ॥ ८ ॥ प्रभु महावीर कथे ए. समजी लक्ष्यविषे देवु बुद्धिसागरसुख लेबुरे. मुनिवर० ॥ ९॥ ॐ ह्री श्री परम० मार्दवगुण लाभार्थ जलं०-यजामहे स्वाहा ॥ तृतीया आर्जवर्धमपूजा. द्रव्य नाव आर्जवगुणे. रमतां केवलज्ञान; मु. निवर आर्जव गुण रमो, स्वयं थशो नगवान् ॥१॥ जनमनरंजनस्वार्थथी, कपटक्रियाओ थाय; मानादिकना त्यागथी, आर्जव गुण प्रगटाय ॥ २॥ मल्लिनाथ पूरवनवे, कपटे स्त्री अवतार, पाम्या जाणी मुनिवरो, धरो सरलता सार ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८१ ( जीरण शेठ भावना भावेरे, महावीर प्रभु घेर आवे. ए राग. ) प्रभु महावीरने दिल धारो, प्रभुने दण दण संभारो; उपयोगे आत्म सुधारो, धरी आर्जव गुण निज तारोरे; एवो वीरप्रभु उपदेशो, माया त्यागी मुनि शिव शोरे. एवो० ॥ १ ॥ निष्कपटे कहेतुं ने रहे, दुनियानुं कह्युं सहु स्हेदुं; मान पूजामां लक्ष्य न दे, जेवुं अंतर बाहिर तेर्बुरे. एवो० ॥ २ ॥ माया त्यागे प्रभु दिल आवे, अन्य दोषो वेगे जावे; शोभे आतम आविर्भावे, शुद्धसरलता आत्म स्वभावेरे. एवो० ॥ ३ ॥ दुनिया भले वंदे निंदे, करे हेलना रागी बंके, वध बंधन मारवा मंडे, व्होयें पडशो नहीं मुनि फंदेरे. एवो० ॥ ४ ॥ मर्या पहेला माया मारो, निर्मायी वनी निज तारो मल्यो मानव भव नहि हारो, मन कपटवृत्ति संहारे. एवो० ॥ ५ ॥ मायासंगे क्षण क्षण मरखं, कदि दंभथी होय न तरखुं; मायामारी जीवन धरयुं, पबी मं नहीं अवतरखंरे. एवो० ॥ ६ ॥ त्यागो सर्वप्रकारे माया, बूरा तेना छे पडछाया; मायात्यागथी प्रभु घटछाया, समजी संतो सुख पायारे. एवो० ॥ ७ ॥ वसे कपट त्यां दुःखना दरिया, माया त्यागी मुनि ३६ For Private And Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८२ गुण जरिया, बुद्धिसागर मुनि केशरिया, निष्कपटी केवल वरियारे. एवो० ॥ ८ ॥ ॐ ह्रीं श्री - आर्जप्राप्त्यर्थं जलं यजामहे स्वाहा || चतुर्थी मुक्तिधर्मपूजा. लोन तजे सर्वे तज्युं, लोज टळतां मुक्ति; जड लोभे नहीं मुंझता, तेने नहीं छे भीति. ॥ ॥ लोभ तज्याथी जीवतां, मुक्ति अनुजव थाय; जीवंतां मुक्ति नहीं, देह तजे शुं ? पाय. ॥ २ ॥ सर्वप्रकारे लोभनो, कीधो जेणे त्याग; जीवंता ते मुक्त बे, सिद्ध बुद्ध वडभाग ॥ ३ ॥ ( वीरकुमरनी बातडी कोने कहीए. ए राग.) वीरप्रभु परमातमा जयकारी, जे वे विश्वविषे उपकारी; प्रतिबोध्यां नरने नारी, भजो मुक्ति हेत; लोभ तजीदो साधुओ सुखकारी ॥ १ ॥ लोनथी मुक्त ते मुक्त छे नरनारी, तजो लोभने महादुःखकारी; रहो निःसंग मनमुं धारी, रही जग समजाव. लोभ० ॥ २ ॥ मूर्च्छा परिग्रह जाएशो वीर बोले, For Private And Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नहीं संतोषना कोई तोले; चमशा नहीं लोभहिंचोळे, मुनि मुक्त स्वतंत्र. लोभ० ॥ ३ ॥ सर्व जग. त्ना संगथी नहि संगी, अनासक्तिए आत्म सुरंगी; होय धनी पण चित्त निःसंगी, जममां नहीं मोह. लोभ० ॥ ४ ॥ जडवस्तुनी लालचे जीव भटक्यो, लाख चोराशीमां लटक्यो; संत पास जतां पण अ. टक्यो, धयों नहि प्रभु प्रेम. लोभ० ॥ ५॥ लोने लक्षण जाय डे सत्य नासे, दुर्बुद्धि रहे दिल पासे; हिंसादिक पाप प्रकाशे, लोभे सर्व विनाश. लोभन ॥ ६ ॥ लोभी पापो सह करे एम जाणो, अनासक्तिने मनमां आणों; धरो संतोष दिल मझानो, करो उपयोगी काज. लोभ० ॥ ७॥ देवगुरुसंघ भक्तिनो लोभ करशो, निज फर्ज अदा करी फरशो; धर्म्य लोभने पहेलां धरशो, पछी निर्लोभनाव. लोभ ॥ ८॥ मुक्तिने नवमां समपणुं दिल धारो, सर्व संग छतां लोभ वारो; शुद्ध आतमपरिणति धारो, बुद्धिसागर गाय. लोज० ॥ ९ ॥ ___ ॐ ह्री श्री परम० मुक्ति गुण प्राप्त्यर्थ जलंगयजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ पंचमी तपोधर्मपूजा. मोह टळे शुद्धि वधे, तप ते धर्मने मान; दुर्गुण दोषो सहु टळे, तप कर गुणखाण. ॥ १ ॥ परोकारी साधुनां, तप रूपी सहु काज; सर्व दुःख सहेवां शमे, तप ते गुण शिरताज ॥ २ ॥ बाह्याभ्यंतर तपथकी, शक्ति प्रगटे अनंत; तपने पूजो आदरो. ध्यावो मुनिवर संत ॥ ३ ॥ ( कर्म परीक्षा करण कुमर चल्यो, ए राग. ) निष्कामे तप तपशो मुनिवरा, भाखे वीर जिनेश; कर्म निकाचित क्षणमां दाय थतांरे, नासे सघळा क्लेश. निष्कामे० ॥ १ ॥ परोपकारी कर्मों तप कह्यांरे, विश्वजीवोनी सेव; सर्वशुभाशुभ अभिलाषा विनारे, बर्ते थाओ देव. निष्कामे० ॥२॥ संघनी सेवा भक्ति तप जलुरे, वैयावच्चने ध्यान; प्रायश्चित्तने विनये राचशोरे, करो स्वाध्यायथी ज्ञान. निष्कामे० ॥ ३ ॥ देहाभ्यासविना आतमप्रभुरे, देखाता भगवंत; वाह्य तपो पण आत्मविशुद्धिनारे, हेते बे गुणवंत. निष्कामे० ॥ ४ ॥ ज्ञानी मुनिने तप सहु कार्यमारे, भोगविषे पण योग; जोगो पण सहुरोगसमा गणेरे, वर्ते योगे प्रयोग. For Private And Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८५ निष्कामे ॥ ४ ॥ कार्य करे पण अक्रिय जे रहेरे, धरी आतम उपयोग; सर्वविषयनी वांछावण रहेरे, शोचे न हर्षे भोग, निष्कामे ॥ ६ ॥ मुनिने मन दमतां तप डे सदारे, करतां सर्वप्रवृत्ति; अन्तर तप अज्ञो नहि जाणतारे, मनमां नहीं आसक्ति. निष्कामे ॥ ७॥ मुनिनी सर्वप्रवृत्ति तपमयीरे, क्षेत्रकाल अनुसार; बाह्यथी अंतर अनंतगणु नलंरे, टाळे कर्म विकार. निष्कामे ॥ ८॥ ज्ञानीने सह बंधन कारणोरे, निर्जरहेते थाय; बुद्धिसागर तपसी पूजतारे, ध्यातां तप प्रगटाय. ॥ निष्कामे ॥ ९ ॥ ____ ॐ ह्री श्री प० तपोगुणलाभार्थ जलं यजा. महे स्वाहा ॥ - - छठी संयमधर्मपूजा. संयम साधो संयमी, वश करी मनवचकाय: संयमथी झट सिद्धि , लब्धि सकल प्रगटाय. ॥१॥ आत्मिकबल संयम नलु, टाळे आठे कर्म; For Private And Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संयमी क्षणमा मुक्ति पद, पामे शाश्वत शर्म. ॥२॥ धारणा ध्यान समाधिमय, संयम छे सुखकार; संयम धर्मनी पूजना, करशो नरने नार. ॥३॥ ( गंगातट तपो वनमारे बनी रचना भारी. ए राग. ) साधो संयम साधुरे, के तम उपयोगे; पडो नहि मोह वनमारे, रहो मन वैराग्ये. साधो ॥१॥ (साखी)लीन बनोनिज आत्ममां,गुण पर्यायने ध्याश्; मोहपरिणति वारतां, प्रगटे मुक्तिवधाइ; ॥ आतम श्रद्धा प्रेमेरे, के मस्तदशा प्रगटे; निजशक्ति अनंतीरे, प्रकटे तम विघटे. साधो० ॥२॥ (साखी) क्षण पण संयमी संगवण, जीवो नहि नरनार; संयम साधन साध्य छे, आत्मशुद्धता सार.पंच समतिने गुप्तिरे, के साधन जेह वरे; पूर्णानन्दी आतमरे, अनुभव तेह करे. साधो० ॥३॥ (साखी) व्रत तप जपदम साधनो, सापेक्षे छे सत्य; मुनिवरनां संयममयी, सघळां जाणो कृत्य। भक्ति कर्मने ज्ञानेरे, संयम शक्ति वधे; शुद्ध आत्मो पयोगेरे, साधन सत्य सधे. साधो ॥४॥ (साखी) उपचारिक धर्मज भलो, संयमरूपी सर्व; तेमां पण संयमीजनो, करो न क्यारे गर्व ॥ हग्धर्म निवारीरे, संयम सहेजे सजो; बुद्धिसागरप्रेमेरे, महावीरदेव For Private And Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८७ भजो. साधो० ॥ ४ ॥ ॐ ह्रीं श्री० परम० संयम लाभार्थ जलं० यजामहे स्वाहा ॥ सप्तमी सत्यधर्मपूजा. द्रव्यभावसापेक्षथी, सत्य असंख्य प्रकार सत्य समो नहीं धर्म बे, सत्य ग्रहो नर नार ॥ १ ॥ सत्य दोने आचरो, जैनधर्म छे सत्यः प्राणांते नहि बंडशो, सत्यधर्मनां कृत्य ॥ २ ॥ ज्ञानथकी साधुं ग्रहो, करो असत्यनो त्याग; पक्षपात बंदी करी, धरो सत्यनो राग ॥ ३ ॥ ( तेजे तरणिधी वडोरे, ए राग. ) वीर प्रभुए जाखियोरे, सत्यधर्म जयकार, मिथ्या जूठने परिहरोरे, सत्य धरो व्याचार हो जत्रिजन !!! सत्य धर्मने धारजोरे, मानवभव नहि हारजोरे, समजो सत्य प्रकार. ॥ १ ॥ सत्य वसे त्यां शक्तियोरे, देवो करता सहाय देशने सर्वथी सत्यनेरे, स्वाधिकारे ग्रहाय हो. जविजन !!! सत्य० For Private And Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८८ ॥ २॥ क्रोध मान माय लोभीरे, कामथी जूठ वदाय; प्रभु वीतरागी आतमारे, बोले सत्य सदा. यहो. भविजन!!! सत्य० ॥३॥ सत्य ते सेवा भक्ति डेरे, सत्यसमी नहीं शक्ति; सत्यसमुं बळ नहि कश्युरे, सत्यसमी नहि नीति हो. नविजन!! सत्य ॥ ४ ॥ भयने हास्यथी जूठनेरे, बोलंतांछे अधर्म; स्वार्थे अज्ञाने जनारे, बांधे अशाताकर्म हो. नविजन सत्य० ॥५॥ दुःख पडे प्राण जो पडेरे, तोपण बंडो न सत्यः उपसों थातां घणारे, बंमो न साचां कृत्य हो. भविजन सत्य० ॥ ६ ॥ ज्ञान अने माध्यस्थी रे, सत्य तत्व समजाय. बलिहारी सत्यवादीनी रे, जूनाथी दूर जाय हो. भविजन ॥ ७ ॥ सत्य ग्रही मुछियोगीओ रे, पाम्या पामशे मुक्ति; अनंत महिमा सत्यनोरे, रविथी अनंतीद्युति हो. भविजन ॥ ८॥ सत्य वदो सत्य आदशेरे, दुःख सहीने अनंत; सुवर्णपेठे कसोटीएरे, चढीने थावो भदंत हो. भविजन ॥९॥ रवि पहेला ते उगतारे, सत्यवादी नरनार; बुद्धिसागर आतमारे, पूर्णानन्द अपार हो. नविजन ॥ १० ॥ ॐ सत्य लानार्थ जलं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८९ अष्टमी शौचधर्मपूजा. द्रव्यजावव्यवहारने, निश्चयशौच छे धर्म, जावशौच सेव्याथकी, विघंटे सर्वे कर्म. ॥ १ ॥ द्रव्यथी जाव अनंतगुण, आत्मशुद्धिकरनार; उपादाननिमित्तथी, समजी ग्रहां नरनार ॥ २ ॥ आत्मशुद्धिकर शौच छे, लक्ष्य न भूलो लेश; साध्योपयोगे शौचने, धरतां टळता क्लेश. ॥ ४ ॥ ( श्रुतपद नमिये भावे भविया, श्रुत छे जगत आधारजी. ए राग. ) ३७ For Private And Personal Use Only · समवसरणमा बेसी वीरजिन, केवलज्ञाने प्रकाशेजी; भावशौचथी निश्चय मुक्ति, परमानंद विलासे; शौवने धारोजी, तजी परपरिणतिटेव, आत्म सुधारोजी० ॥ १ ॥ सातनयोने चउनिक्षेपे, शौचधर्मने जाणोजी; देहनी शुद्धि बाह्यशौच बे, अंतर शुद्धता आणो. शौच० ॥ २ ॥ द्रव्यथकी पण नावशौच बे, अनंतगुणां हितकारीजी; काय थकी मननी ज अनंतगुण- शुचिता वे सुखकारी. शौच० ॥ ३ ॥ भावशौच ज्यांने त्यां दर्शन, ज्ञानचरण जयकारीजी; जावशौच धरता मुनि वंदो, पूजो जग उपकारी. शौच० ॥ ४ ॥ आतमशौच विना कायाना, - शौथी याय न मुक्तिजी, हिंसादिक Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० क्रोधादिकदोषो, टळतां शौचनी रीति शौच० ॥५॥ आंतरमळमनमोहने टाळो, पवित्र करी मन म्हालोजी; बाहिरशौचकदाग्रह ठालो, अंतरने अजवाळो शौच० ॥ ६ ॥ मननो मेल टळूयाथी मुक्ति, जेनी तेनी थातीजी; एकली पंकिताइ न खपनी, निर्मल करशो बाती. शौच० ॥ ७ ॥ रागद्वेषमलीनता टाळो, दोष प्रगटता खाळोजी, कामवासनाबीजने वाळो, प्रभु जिन खतम भाळो. शौच० ॥ ८ ॥ जावशौचत्रण वेपाचारे, मुंझो नहीं नरनारीजी, आत्मशुद्धि करे ते शौच बे, समजो चांति निवारी. शौच० ॥ ९ ॥ शौचधर्मथी साधु अनंता, मुक्त थयाने थाशेजी; बुद्धिसागर आत्मरमणता, करतां शौच के पासे. शौच० ॥ १० ॥ ॐ०- परम० शोचधर्मलाभार्थ जलं० यजा महे स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवमी अकिंचनधर्मपूजा. मूछीपरिग्रहग्रहथी, मुक्त थतां छे मुक्ति; अकिंचन ते धर्म छे, त्यागीनी ए रीति. ॥१॥ द्रव्यनावपरिग्रहथकी, न्यारा व संत; आत्मानंदरस अनुभवे, नमो नमो गुणवंत. ॥ २ ॥ मूर्छावण न परिग्रही, उपयोगी मुनिराज; उपधि देहादिक बतां, निःसंगी शिरताज. ॥३॥ ( दान सुपात्रे दिजेहो भवियां, दान सुपात्रे दीजे. ए राग.) परिग्रहमूर्होत्यागी हो मुनिवर, परिग्रह मूी त्यागी; अंतर बाहिर ममता रहित थे, वर्ते डे वडभागी हो. मुनिवर ॥ परिग्रहः ॥१॥ नवविध परिग्रहमां नहि ममता, वर्ते सकलपर समता; देहादिकगच्छसंगी उतां पण; निःसंगज्ञाने रमता हो. मुनिवर ॥ २ ॥ साधन उपयोगी उपधि सहु, ज्ञानी न त्यां बंधाता; तारु तरे जेम सरवरमांही, संवर भावे सुहाता हो. मुनिवर ॥ ३ ॥ मूर्छा ए ले सर्वे उपाधि, भूविण निरुपाधि; ज्ञानीने आस्रव पण संवर, उपयोगे नहि आधि हो, मुनिवर० ॥४॥ जदयां शुजाशुभभाव रहित जे, ते नहि जग For Private And Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बंधातो; बाह्य परिग्रह तेने करे शु? जे नहीं पुद्गले रातो हो. मुनिवर० ॥ ५॥ ममतावण नहीं कर्मबंध बे, ममतात्यागे त्यागी; जडनी ममतात्यागी सु. ज्ञाने, थाशो आतमरागी हो. मुनिवर ॥ ६ ॥ यावत् मूर्छा अंतर तावत् , कोइ न मुक्ति पामे; मूळवण मणि पर्वत उपर, बेठो उरे शिव ठामे हो. मुनिवरण ॥७॥ परिग्रहत्यागी मुनिवरसेवा, नक्ति करो बहुभाव; क्षण एक साधुनी संगत करता, निश्चय मुक्ति थाव हो. मुनिवर ॥८॥ अणुसम गृहीने मेरु सरीखा, मुनिवर मोटा जाणो; संतोष नहीं कोनी परवा, आनंद जोगी मानो हो. मुनिवरण ॥९॥ निश्चयने व्यवहारथी त्यागी, सेवो पूजो घ्यावो; बुद्धिसागर शुद्धातमपद, पूर्णानंदी पावो हो. मुनिवर० ॥ १० ॥ ॐ0-परमा अकिंचनधर्म साभाय जलं० यजामहे स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९३ दशमी ब्रह्मचर्य धर्मपूजा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मचर्य सम को नहीं, सर्वधर्ममां जावब्रह्म आगळे, अन्य सकल छे हेठ सुदर्शन जंबुने, स्थूलिनद्र ज अनगार; गावो पूजो भावथी, घ्यावो नरने नार ॥ २ ॥ ब्रह्म मळे ब्रह्मचर्यथी, भाखे वीरजिनेश; द्रव्यभावथी धारतां, नासे सघळा क्लेश. ॥ ३ ॥ ( ए व्रत जगमां दीवो मेरे प्यारे, ए व्रत जगमां दीवो. ए राग. ) ब्रह्मचर्य सुखकारी हो जगमां, आतम आनंदकारी; ॥ द्रव्यथकी देहवीर्यनी रक्षा, स्त्रीमैथुन परिहारी; भावथकी परपरिणतित्यागे, ब्रह्मवती जयकारी हो. जगमां ब्रह्मचर्य सुखकारी ॥ १ ॥ पांचे इन्द्रिय त्रेवीश विषयो, शुभ अशुभ नहीं लागे; स्वप्ने पण नहीं कामनी वृत्ति, ब्रह्मभाव घट जागे हो. जगमां० ॥ २ ॥ मैथुनजोगे सुख नहीं शांति, अधि व्याधि उपाधि. जाणी मुनिवर ब्रह्मस्वरूपे, तें वे निरुपाधि हो. जगमां० ॥३॥ कामी व्यभिचारी महादुःखी, रूप राग जरमाया; हडकाया कूतरनी पेठे, क्यांये सुख नहीं पाया हो, जगमां० ॥४॥ कामभोगथी याय न शांति, उलटी कामनी वृद्धि; जाणी कामनी For Private And Personal Use Only श्रेष्ठ, द्रव्य ॥ १ ॥ नेमि Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृत्ति शमावो, पामो यात्मिक ऋद्धिहो. जगमा० ॥५॥ चाममीरागी जन चाममिया, आतमना नहि प्रेमी; आतमरागी जग वैरागी, वर्ते योगी देमी हो. जगमांग ॥ ६ ॥ आतमरागी प्रेमी ज्ञानी, भक्त संत मुनिराया; शुद्धब्रह्ममा निशदिन रमता, प्रणमो सेना पाया हो. जगमा० ॥७॥ निराकार शुद्धातम ब्रह्ममां, रम, ब्रह्म भावे, पूर्णानंदनी मोंझे रमतां, पोते प्रभुजी सुहावे हो. जगमांग ॥८॥ ब्रह्मरसे रसिया मुनिवरजी, बाह्यरसे दूर खसिया; एकवार आतम आनंदरस, पाम्या ब्रह्म उबसिया हो. जगमांग ॥ ९॥ ब्रह्मचर्यथी शक्ति अनंती, नासे दूरे रोगो, ब्रह्मचर्य छ सर्वनुं जीवन, एथी सबळा योगो हो. जगमांग ॥ ११ ॥ द्रव्यथी भाव अनंतगुण उत्तम, कारणे कार्यनी सिद्धि, अष्ट सिद्धि नवनिधियो प्रगटे, यात्मिक क्षायिक लब्धि हो. जगमां ॥११॥ इन्द्रा. दिक सहु देवो पूजे, ब्रह्मचारीने रागे; मुनिवरसेवा भक्ति करतां, ब्रह्मवत दिल जागे हो. जगमांग ॥ १२ ॥ भावब्रह्मधारी उपकारी, भोगी जेह अभोगी; बुद्धिसागर ब्रह्म अलखने, पूर्ण जगावे योगी हो. जगमां ॥ १३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९५ कलश गीत. धन्याश्री राग. गायो गायोरे महावीर जिनेश्वर गायो ॥ दश विधसाधुधर्मनी पूजा-पुष्पे प्रभुजी वधायो. त्रिशला नंदन वंदन करतां, सहजानंदने पायोरे. महावीरण ॥ १ ॥ ओगणिशसत्योत्तरआश्विनवदि, छठ शनिवार शुहायोः दशविधमुनिवरधर्मनी पूजा, रचतां हर्षे उमाह्योरे. महावीर ॥२॥ सानंदमां आनंदनी ल्हेरे, दशविधधर्मने ध्यायो; संघनी भक्तिए चोमासामां, मंगल जय वर्तायोरे. महावीर० ॥३॥ सदसदभूत ज यातमधर्मनो, अनुभव निश्चय आयो; आपोआप स्वरूपे खेली, जन्मी जगमां फाव्योरे. महावीर ॥ ४ ॥ तपगच्छहीरविजय सूरि जग गुरु, धर्मना तेजे सवायो; पट्टपरंपरा रविसागरगुरु, झळहळज्योति सुहायोरे. महावीर० ॥५॥ दर्शन ज्ञानने चारित्रमयश्री, सुखसागर गुरुरायो; तेना चरणकमळमां नमरसम, थातां ब्रह्म जगायोरे. महावीर० ॥ ॥ ६॥ गुरुकृपाने आशीर्वादे, जगमा धर्म फेलायो; बुद्धिसागर आनंदमंगल, जंगमसंघ वधायोरे, जहावीर० ॥ ७ ॥ ॐ परम ब्रह्मचर्यलाभाय जलं० य स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ चारभावनानी पूजा. परमब्रह्म परमातमा, जिनवर महावीर देव, सर्व सुरासुरनतविभु, इन्द्रो करता सेव ॥ १ ॥ जिनवर महावीरे कह्यो, चारभावना बोध; भावे चारे भावना, थातो मोहनिरोध. ॥ २ ॥ चारभावना जावतां प्रगटे आत्मशुद्धि; ते कारण चर भावना - पूजानी सिद्धि ॥ ३ ॥ मैत्री मुदिताजावना, भाव मध्यस्थ विचार करुणा चोथी भावना, जावंतां भवपार. ||४|| अष्टप्रकारी पूजना, प्रत्येक पूजा दीव; जिनवर महावीर पूजतां, प्रगटे सम्यग्दृष्टि ॥ ५ ॥ चार भावना जावतां, त्यागी गृही नर नार; क्षणमां केवल ज्ञानने, पामंतां निर्धार ॥ ६ ॥ प्रथम मैत्रीभावनापूजा. ( अरणिक मुनिवर चाल्या गोवरी. ए राग. ) चरम जिनेश्वर महावीर पूजीए, जेणे तार्थी नरनाररे, भावना चारेरे जेणे उपदिशी, जावे शिव निर्धाररे; मैत्रीभावना जावो जविजना ||१|| सर्वजीवोनेरे मित्रसमा गयो, बंडो वैर विरोधरे; शत्रुदृष्टिरे दिली For Private And Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिहरो, एवो प्रभुनोरे बोधरे. मैत्री० ॥२॥ आतम सरखारे सर्वे जीव छे, कर्मवमे परतंत्ररे; अज्ञाने ते रे सत्य न जाणता, जपता मोहनो मंत्ररे. मैत्री० ॥३॥ कर्मप्रमाणेरे सुख दुःख संपजे, जीवो निमित्त होयरे; कर्मविना कोइ निमित्त नहीं थतुं, शत्रु न मानो कोयरे. मैत्री० ॥ ४॥ सम्यग्दृष्टिने सवळीबुद्धिथी, सर्वजीवो होय मित्ररे; आत्मोन्नतिमारे हेतु परिणमे, कोइ न होय अमित्ररे. मैत्री ॥५॥ सातनयो. थीरे मत्रीभावना, चउनिक्षेपरे जाणर; द्रव्यने भावेरे निश्चय व्यवहर, प्रगटे केवलज्ञानरें. मैत्री० ॥ ६ ॥ जेना मनमारे मित्र जगत् बन्युं, ते छे जगनोरे मित्ररे; भव बंधनथीरे मुक्त प्रभु थयो, ज्ञानी संत पवित्ररे. मैत्रीण ॥७॥ खमो खमावोरे सर्वे जीवने, टाळी रागने रोषर; जैनधर्मनारे ए व्यवहार छे, करवो आतमपोषरे. मैत्री० ॥ ८॥ मैत्रीनावना वर्तन आदरो, टाळी मोहनी वृत्तिरे; दुःख सहीनरे सघळाजीवनी, करशो प्रेमेरे भक्तिरे. मैत्री० ॥ ९ ॥ परमातम सत्ताए सहुजीवो, आतममां एम भावरे; बुद्धिसागर मैत्रीभावना, भवसागरमांही नावरे. मैत्री ॥ १० ॥ ॐo-मैत्रीभावलानाय ज य स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ द्वितीया प्रमोदभावनापूजा. प्रमोदभावना पुष्पथी, पूजो वीरजिनेन्द्र; प्रमोदनावे जे रहे, थाता तेह महेन्द्र. ॥ १ ॥ दोष दृष्टिने टाळवा, प्रमोदनावना बेश; निंदादिक दूरे टळे, नासे मिथ्याकलेश. ॥ २॥ गुणने गुणीने देखतां, मन हर्षित थाय; ए वे मुदिताभावना, आचरतां दुःव जाय. ॥ ३ ॥ ( ते जे तरगिथी वडोरे. प राग. ) वंदु प्रभु महावीरनेरे, जेणे ओळग्वाव्यो धर्म; उपकारी नहीं तुज समोरे, टाळ्यो मिथ्या भर्म हो. दिलमां. मुदिता भावना जावी एरे, आत्मप्रभु प्रगटावीएरे; टाळी दोषनी दृष्टि ॥ १॥ कर्मवशे सहु प्राणियारे, दोषी काल अनादि: अचरिज शुं त्यां मानवुरे, गुण देखो निरूपाधिहो. दिलमां मुदिता ॥२॥ सर्वसंसारीजीवमारे, दोषने गुण वे साथ; गुण देखी चित्त रीझीएरे, रीझे त्रिभुवननाथ हो. दिलमां मुदिता० ॥ ३ ॥ परगुण परमाणु समारे, जाणी गिरिसम चित्त; खुशी थता जग सजनारे, करता आतम पवित्र हो. दिलमां मुदिता ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्णे श्वानना दंतनेरे, प्रशंस्या धरी राग; गुणरागे प्रगटे गुणोरे, जीव बने महाभाग हो. दिलमां मुदिता० ॥ ५ ॥ नयनिक्षेपे जाणीनेरे, आदरशो नरनार: समकितवंता जीवनोरे, एवो छ आचारहो. दिलमा मुदिता ॥६॥ मिथ्यादृष्टिपणुं टळेरे, टळती दोपनी दृष्टि; सर्वगुणो प्रगटाववारे, पुष्करा वर्तनी वृष्टि हो. दिलमा मुदिता ॥ ७॥ निन्दा थती नहीं कोइनारे, सद्गुण लेश जणाय; सर्व जीवोनी साथमारे, तमभाव सुहायहो. दिलमा मुदिता० ॥ ८॥ सर्वकषायो उपशमेरे; क्षयोपश क्षय थाय; आत्मस्वभावे आतमारे, प्रणमे सुख प्रगटाय हो. दिलमां मुदिता० ॥ ९ ॥ क्षपकश्रेणि चढे आतमारे, समनावे वर्तमान; क्षीणमोही अंत. रातमारे, पामे केवलज्ञान हो. दिलमां मुदिता० ॥१०॥ कोटि दोष छतां गुणोरे, देखंता संत धार; दोष त्यजी गुणहर्षथीरे, राचो नरने नार हो. दिलमां मुदिता० ॥ ११ ॥ शत्रुना पण गुण जुवोरे, करो न नामथी निंद; प्रभुमहावीरना बोधथीरे, गुण गुणी मानो वंद्य हो, दिलमा मुदिता ॥१२॥ जैनधर्मनी नावनारे, गुणरागे प्रगटाय; बुद्धिसा For Private And Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गर आतमार, ज्योतिज्योते सुहाय हो. दिलमा मुदिता० ॥ १३ ॥ ॐ0-प्रमोदभावलालाय. ज० य स्वाहा. तृतीया माध्यस्थभावनापूजा. दुहा. माध्यस्थ त्रीजीभावना, आदरे जे नरनार; सर्वप्रकारे सत्यने, पासे शांति अपार, ॥१॥ मिथ्या दुर्बुद्धि टळे, पक्षपात दूर जाय; दुराग्रहो सर्वे टळे, रागने रोष पलाय. ॥ २ ॥ ज्यां त्यां सत्य प्रकाशतुं, रहे नहीं अज्ञान; नयनिक्षेप धर्मने, जाणंतां छे ज्ञान. ॥ ३ ॥ ( धन धन संप्रति माचो राजा. ए राग.) जेम जेम राग अने द्वेष विघटे, तेम प्रगटे समनावरे; दृष्टिरागनो त्याग थतां दिल, प्रगटे मध्यस्थभावरे. वीरप्रभुए ए गुण भाख्यो, आदरो नरने नाररे; मध्यस्थभावे सत्य प्रकाश, आनंद अपरंपाररे. वीर० ॥ १ ॥ पक्षपात श्राय रागने द्वेषे, For Private And Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानव स्वार्थे अन्धरे; मिथ्याबुद्धियोगे लोको, अवळीदृष्टिए बन्धरे. वीर० ॥ २ ॥ सर्व कदाग्रह दूरे नासे, प्रगटे सत्य प्रकाशरे; सत्यनेमाटे सर्व समर्पण, शुद्धातमविश्वासरे. वीरण ॥३॥ द्रव्य क्षेत्रने कालने जावी, सत्यासत्य जणायरे; सत्यनां सर्वे दृष्टि बिंदुओ, प्रगटे सत्य ग्रहायरे. वीर० ॥४॥ सत्यने न्याय ग्रहे मध्यस्थी, पकमे न गद्धापुच्छरे; जूतुं ते साचुं नहीं माने, सत्य आगळ सहु तुच्छरे. वीर ॥५॥ नयनिक्षेपने भंगप्रमाणे, जैनधर्म डे सत्यरे; सर्वनयोनी सापेक्षाए, समजो दर्शन कृत्यरे. वीर०॥ ६ ॥ ज्ञानी संतनी सेवा नक्ति, करतां मध्यस्थभावरे; प्रगटे सर्वकर्म व्यवहारे, समजाता सत्यदावरे. वीर ॥७॥ काल स्वभावने नियति कमें, उद्यमे थातुं काजरे; पंचना समवाये डे कार्यनीसिद्धिन साम्राज्यरे. वीर ॥८॥ माध्यस्थभावे वतों लोको, करशो धार्मिककर्मरे; सुणशो वांचशो जोशो चिंतशो, दिलमां प्रगटशे शर्मरे, वीर० ॥९॥ सर्वबाजुथी सत्य तपासो, करो मध्यस्थे काजरे; दर्शन ज्ञान चरणनी प्राप्ति, प्रगटे शिव साम्राज्यरे. वीर० ॥ १०॥ मध्यस्थभावे वीरप्रभुने, पूजो ध्यावो हमेशरे; बुद्धिसागरशुद्धातमपद, पामो अलख For Private And Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०३ प्रदेशरे. वीर० ॥ ११ ॥ ॐ० - माध्यस्थ जावलाभाय ज० य० स्वाहा. चोथी करुणाभावनापूजा. दुहा. . चोथी करुणाभावना, सर्वधर्मनुं मूल, करुणा वण समकित नहीं, सर्वधर्म अनुकूल ॥ १ ॥ दया धर्ममां सत्यने, दान शीयल तप भाव; सर्वे धर्म समाय ठे, करुणामां सुखदाय ॥ २ ॥ प्रभु महावीर प्रकाशियो, दयाधर्म दिलभाव, भवोदधि तरवा खरुं, करुणा उत्तमनाव. ॥ ३ ॥ ( सांभळशो मुनि संयमरागे उपशम श्रेणि चढियारे, ए - राग . ) जिनवर महावीर जग जयकारी, तीर्थंकर उपकारीरे, करुणाभावने उपदेश्यो शुभ, आदरशो नरनारीरे, जिनवर० ||१|| द्रव्य करुणा सर्वजीवोनां, दुःखो दूरे करवांरे; सर्वजीवोना प्राणनुं रक्षण, करवुं कर्म आचरवांरे जिनवर० ॥ २ ॥ यथाशक्ति उपकारो करवा, रोगादिकने हरवारे; द्रव्यकरुणा एवी पहेली, भावी गुण अनुसरवारे जिनवर० ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐावकरुणा निज आतमपर, कर्मशत्रु संहरवारे; सर्वलोकने आतमज्ञाने, प्रतिबोधी उद्धरबारे.जिनवरत ॥ ४ ॥ जैनधर्म जगमां फेलावे, नावकरुगा थातीरे; निजपर आतमशुद्धिमाटे, नावदया प्रगटातीरे. जिनवर० ॥ ५॥ सातनये करुणाने जाणी, कहेणी रहेणीए रहेवुरे, शत्रु उपर पण करुगाबुद्धि, राखी दुःखने सहेवुरे. जिनवरण ॥ ६ ॥ ज्ञानथकी करुणा घट प्रगटे, हिंसाबुद्धि विघटेरे; ज्यां करुणा त्यां प्रभु छे निकटे, आतम भवमा न नटफेरे. जिनवर० ॥ ७॥ नेमिप्रभुए परणवा जातां, मृगनी करुणा कीधीरे; वीरप्रभुए चंडकौशिकपर, करुणा कीधी प्रसिद्धिरे. जिनवर० ॥८॥ द्रव्यदयाथी नाव दया छ, अनंतगुणी हितकारीरे; जे जे भावे करवी घटे ते, नावे करशो विचारे. जिनवरण ॥९॥ दया विनानो धर्म नहीं छे, धर्म न हिंसा कमरे; रागने द्वेष विना निष्कामी, रहे आवश्यक धर्मेरे. जिनवर ॥१०॥ अल्प दोषने धर्ममहालान, दयाकर्म आचरवारे; स्वाधिकारे तरतमयोगे, कर्म विवेके करवा रे. जिनवर ॥११॥ जिनवरमहावीर श्रद्धाभक्ति, पामी करुणा करशोरे, बुद्धिसागरपरमब्रह्मने, शुद्ध बनीने वरशोरे, जिनवर० ॥ १२ ॥ For Private And Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .३०४ कलश गीत. गाया गायारे प्रभुमहावीर प्रेमे ध्याया ॥ चारे नावनापुष्पथी पूज्या, वीरजिनेश्वर राया; आतम ते महावीरप्रभुजी, घटमां व्यक्त सुहायारे. प्रभु० ॥१॥ चार नावना द्रव्यने भावे, नावंतां प्रभु पाया; आत्मसरीखं जग सह नास्यु, अनुभवरंग वधायारे. प्रनु० ॥ २॥ संवत् ओगणिश सत्योतरमां, साणंद रही चोमासुं; आश्विनवादसातम रविवारे, पूजा रची सुख नास्युरे. प्रजु० ॥ ३ ॥ चारे नावना भावता घटमां, आनंद अनुभव आयो; जिनवर महावीरदेवने नावे, भावना भावी वधायोरे. प्रभु० ॥४॥ महावीरपट्टपरंपरातपगच्च, हीरविजयमूरिराया; जगगुरुपदवी पाम्या साची, अकबरशाहे वधाव्यारे. प्रभु० ॥ ५ ॥ वाचक सहज सागरगुरुपट्टनी, परंपराए आव्या; श्रीरविसागर गुरुमहंता, जगमां प्रसिद्धि पायारे. प्रभु० ॥ ६ ॥ तस शिष्यवैयावच्चीशिरोमणि, चारित्रीशिर राजा; श्रीसुखसागर शांतसुधाकर, क्रियावंत शिर For Private And Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०५ ताजारे. प्रभु० ॥ ७ ॥ गुरुसुखसागरपूर्ण कृपाथी, पूजा रची सुखकारी; भणे गुणे जे सांभळे ते सुख. पामो मंगल नारीरे. प्रभु० ॥ ८॥ आत्मोपयोगी नावना भावी, आतम शुद्धिकारी; बुद्धिसागर ऋद्धि वृद्धि, शांति लहो नरनारीरे. प्रभु० ॥ ९॥ ॐ करुणालाभाय ज० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०६ दानशीयलतपभावनी पूजा. प्रथम दानपूजा. जय जगमां महावीर जिन, सर्वविश्व आधार; परमब्रह्म तीर्थकरा, परमेश्वर जयकार. ॥१॥ केवलज्ञानी जिनपति, सुरतर पूजे पाय; वीतराग परमा. तमा, सेवंतां सुख थाय. ॥॥ समवसरणमां बेसीने, सत्य जणाव्यो धर्म; दान शीयल तप भावनां, सत्य जणाव्यां मर्म. ॥३॥ दान शीयल तप लावथी, मुक्ति लहे नरनार; एमां शंसय नहि जरा, समजाव्यु निर्धार. ॥ ४ ॥ ते माटे पूजा रचुं, दान शीयलतपन्नाव; द्रव्य भावथी पूजता, प्रगटे गुण सदभाव. ॥ ५॥ प्रथम दानपूजा. दान समो नहि धर्म जग, दान दियो नरनार; दानथी नावे त्याग , दानथी जग उपकार. ॥१॥ दीक्षा ग्रहतां पूरवे, तीर्थकर दे दान; दानथी निश्चय मुक्तिपद, भाखे छे नगवान्. ॥ २ ॥ दान सुपात्रे For Private And Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०७ वापरो, धारी सत्य विवेक दान विना नहीं सिद्धि बे, दाने समकितटेक. ॥ ३ ॥ ( सांभळशो मुनि संयमरागे. ए राग. ) J नमो नमो महावीर उपकारी, जगमांही जयकारी रे. दानस्वरूप प्रकाश्यं साचुं, द्रव्यभाव सुखकारी रे. नमो ॥ १ ॥ अभय सुपात्र उचित अनुकंपा, कीर्ति पांच ए भाख्यांरे; यथायोग्य सेवे नरनारी, उत्तम फल तस दाख्यांरे नमो० ॥ २ ॥ अन्न वस्त्र औषधदाने, परोपकार करातोरे; ज्ञानदान सहुदानमां मोढुं, महिमा न वर्णव्यो जातो. नमो० ॥ ३ ॥ जावथी समकितदान अजय बे, चारित्रादिक जाणोरे; जन्ममरणथी बूटे आतम, दान ते भावप्रमाणोरे, नमो० ||४|| ममता टळतां दान ज थातुं, अगियारमो प्राण आपेरे; सर्वप्राणार्पण ज्यां दाने, त्यां प्रभु प्रगटी व्यापेरे. नमो० ॥ ४ ॥ राचे माचे दान करीने, ते उत्तमपद पामेरे; आतमगुण आतमने आपे, ते ठरतो शिवठामेरे, नमो० ॥६॥ दानथकी गुण सर्वे प्रगटे, दुर्गुण दोषो टळतारे; वैरीजन पण व्हाला थाता, वांछित मेळा मळतारे, नमो० ॥ ७ ॥ सातनयेने चउनिक्षेपे, दानस्वरूप For Private And Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारोरे; सर्वधर्ममा दान ले पहेलं, त्रिकयोगे ते धारोरे. नमो० ॥ ८॥ दानने देतां सर्वे दीg, धन धन जगमा दानीरे; दाने तीर्थकरपद वांध, समजे धर्मी ज्ञानीर. नमो० ॥९॥ संघचतुर्विध शासन भक्ति, दानने देतां थातीरे; देवगुरुने संतनी सेवा, तरतमयोगे सुहातीरे. नमो० ॥ १० ॥ अरस्परस उपकारकहितकर, दान समुं नहीं कोरे; प्रनु महावीरदेवे प्रकाइयु, आदरशो शुभ जोइरे. नमो० ॥ ११ ॥ द्रव्यने भावथी धर्मदानथी, दानीनी बलिहारीरे; बुद्धिसागर दानने आपो, धर्मी नरने नारीरे. नमो० ॥१२॥ ॐ ह्री श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरा मृत्यु निवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय, दानलाभाय जलं चंदनं पुष्पं धूपं दीपं अक्षतं नैवेद्यं फलं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वितीया शीयल तपपूजा शीयलसम नहीं धर्म कोइ, सकलकर्महरनार. शीयल सागरसम भलं, अन्यनदीसम धार. ॥१॥ शीयल पाळे पाळ्युं सहु, पाळ्या व्रत आचार, शीय. लवंताने नमो, पूजो नरने नार. ॥ २ ॥ शीयलनतथी मुक्ति छे, स्वर्ग तो सहेजे होय; दुष्ट उपद्रव झट टळे, नडे न निजने कोय ॥३॥ (श्री मिनभापित वचन विचारीए-ए राग.) आत्मप्रभुमहावीरने पूजीए, ध्याइ जे बहु नाव-भविकजन; प्रभु गुण लेतां प्रभुसम शोभिए, लक्ष्य न चूको एह दाव. भविकजन !!! शीयलने पाळी साचो भावथी. ॥१॥ सीतादिकसतीयो संभारीए, ध्याइए तीर्थकर आदि, भविक ॥शेठ सुदशन जंबुने स्मरो, कामनी वारोरोव्याधि, भविकजन!!! शीयल ॥ १ ॥ धन्य धन्य स्थूलीनद्र महंत जे, शीयलधारीमांही श्रेष्ठ, नविकजन!!॥ कामना घरमां पेसी कामने, पाड्यो पटकीरे हेठ. नविकजन !! शीयल॥३॥ विजयने विजयाने धन्य धन्य छे, टाळ्यु कामनुं मूळ; भविक० ॥ शीयलवंतां नरने नारीओ, टाळो कामनुं शूळ. नविकजन !!! शीयल ॥४॥शीय. For Private And Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० लधारी जनने पूजीए, बंदीए करीने संग; भविकजन !; संगे रंग प्रगटतो दिल विषे, प्रभुवचने दृढरंग. भविकजन !! शीयल० ॥५॥ सातनयोने चउनिक्षेपथी, जाणी शीयलनुं रूप; जविकजन !!; द्रव्यभावथी सेवे शिव मळे, नासे भवभय धूप, जविकजन !! शीयल० ॥ ६ ॥ द्रव्य ते भावनुं कारण जाणवुं, कारणे कार्यनी सिद्धि; जविक० ॥ कायिक वीर्यनी रक्षा धारतां, प्रगटे बाह्यनी ऋद्धि. जविकजन !! शीयल० ॥ ७ ॥ पतिव्रता पत्नीव्रत शीयल छे, गृही आश्रमहितकारः भविकजन !! द्रव्यभावधी शीयल छे त्यागीने, दुर्गुणनो परिहार. भविकजन !! शीयल० ॥८॥ सदूवर्तन चारित्र ते शीयल बे, उत्तमगुणना खाचार; भविकजन !! दोष व्यसनदुर्गुपना त्यागथी, शीयल छे सुखकार. भविकजन !! शीयल० ||९|| द्रव्यने जावशीयल पूजावडे, पूजा महावीर देव; भविकजन !! आत्ममहावीर प्रगटे आत्ममां, निजगुणपर्यायसेव भविकजन !! शीयल० ॥ १० ॥ आतम शुद्ध उपयोगे वर्तीए, भावशीयल छे ए बेश. जविकजन ! बुद्धिसागर परमानंदनी, प्राप्ति होय हमेश. भविक० शीयल० ॥ ११ ॥ ॐ शीयललाजाय जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तृतीया तपपूजा. तप पूजो भवी नावथी, सेवो ध्यावो बेश; तपी प्रगटे सिद्वियो, नासे सघळा क्लेश. ॥ १ ॥ अनेकजातनां तप भलां, द्रव्य नाव व्यवहार; कार्यसिद्धिपुरुषार्थता, दुःखसहनतपसार. ॥ २ ॥ तनमनधनना भोगथी, करतां शुभपुरुषार्थ; संकट दुःखोने सहे, तप प्रगटे परमार्थ. ॥३॥ (ओधवजी संदेशो कहेजो श्यामने. ए राग) द्रव्यजावथी तप तपशो नरनारीओ, कार्यनी सिद्धि तप वण कोइ न होय जो; मोहपरिणति रोधक निश्चयतप भलु, कर्तव्यो करतां सहेजे तप जोयजो. द्रव्य ॥ १ ॥ बाहिर तप षड्भेदे सुखकर ने सदा, नव्यजीवो तेनो धरता व्यवहारजो; अभ्यं. तर तप षड्भेदे छे निर्मलु, शुद्धातम कारक ते डे सुखकारजो. द्रव्य० ॥२॥ देवगुरुने संघनी सेवा भक्तिमां, सर्व समर्पण कर, तप ए बेशजो निष्कामे निज अधिकारे फों अदा,-करतां तप ते पडता सहेवा कलेशजो. द्रव्य० ॥ ३ ॥ प्राण पमे पण धर्म कर्म नहीं मूकवां, निर्नय निश्चल भावे रहे चित्तजोः सर्वशुनाशुननावविषेसमभावना, धरवी For Private And Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१२ तप जाणो श्रेष्ठ पवित्रजो द्रव्य० ॥ ४ ॥ दुर्गुण दोषने सर्व व्यसनने टाळवां उपकारी कर्मों करवां सही दुःख जो; लाभालाभमां मान अने अपमानमां, समताप रहीए ने सहीए भूखजो द्रव्य० ॥ ५ ॥ रोगी आदि जीवोनां दुःख टाळवा, तनमन धनशक्तिनो देवो भोगजो परमार्थों करवामां स्वार्थी होमवा, एवो साचो दुष्करतपनो योगजो. द्रव्य० ॥ ६ ॥ फलनी इच्छा राख्या वण परमार्थनां करवां कृत्यों त्यागी जयने द्वेषजो, खेद विना शु धर्मप्रवृत्ति धारी, साध्योपयोगे मुक्तिनो उद्देशजो द्रव्य० ॥ ७ ॥ नामरूपमां निर्मोही वनी वर्त, सर्वशुजाशुन इच्छानो करी रोधजो; अर्पाइ जावुं गुरु आदिभक्तिमां, योग्यजनोने देवो घटतो बोधजो द्रव्य० ॥ ८ ॥ प्रायश्चित्तने विनये वैयावृत्यथी, स्वाध्याय ध्यानयी प्रकटे आत्मशुद्धिजो; देहादिकमां निर्मोही थे वर्ततां प्रगटे आतमनी नवक्षायिकलब्धिजो. द्रव्य० ॥ ९ ॥ मनवाणीने कायाथी तपयोग बे, तपथी शुद्ध करो आचार विचारजो: बुद्धिसागरप्रभुमहावीरदेवनो, जाख्यो तप एवो छे जगसुखकारजो द्रव्य० ॥ १० ॥ ॐ तपोलाभाय जलं य० स्वाहा || " · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१३ चोथी भावपूजा. भावकी क्षणवारमां प्रगटे केवलज्ञान; क्षणमां जावी मुक्ति वे, वीर कये जगवान् ॥ १ ॥ वीरो शाळवी भाव वण, पाम्पो कायाक्लेश; भाव रुचिरप्रेमथी. विघटे रागने द्वेष. ॥ २ ॥ जाव विना किरिया सकल, निष्फळता देनार, हर्षोल्लासे जावना, भावो नरने नार. ॥ ६ ॥ ( जीरण शेठ भावना भावेरे. महावीरप्रभु घेर आवे - ए राग . ) महावीर प्रभु जयकारी, जात्रे उपदेशे सुखकारी; जावथी सर्वसिद्धि यनारी, जाव दिलमां धरो नरनारीरे; जावनी जगमां बलिहारी, भाव अमृत आनंदकारीरे जाव० ॥ १ ॥ चक्री भरते जावना जावी, क्षणमां घातिकर्म हावी थे केवली मुक्तिने पावी, जात्र नक्तिनी छे चावीरे. जाव० ॥ १ ॥ जावे भावना जावतां ज्ञानी, थया याषाढामुनि ध्यानी; थया क्षणमां केवलज्ञानी, रही खप नहीं बीजा कशानीरे. भाव० ॥ २ ॥ वांस उपर नाटक करता, इलापुत्रजी ध्यान धरंता; भावी श्रेणिए संचरंता, एकक्षणमां केवल वरतारे. भाव० ॥ ३ ॥ प्रभुमहावीर पारणं आवे, जीरण ४० For Private And Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ शेठ भावना भावे; पूरणघेर दानने पावे, जीरण शेठ स्वर्ग सिधावेरे. जाव० ॥ ४ ॥ भावथी धर्म कोइ न मोटो, भावरसवण सर्वमां तोटो; थाय व्रततपमांही गोटो, भाववण आडंबर खोटोरे. भाव० ॥ ५ ॥ भाव आनंद रस रुचि प्रीति, जेमां द्वेष नहीं खेद नीति; हर्षोल्लासनी उत्तमरीति, उज्वल परिणाम प्रवृत्तिरे. जाव० ॥ ६ ॥ भाववण कोइ मुक्ति न पामे, भाववण नहीं शक्तिथी झामे; कोइ किरीया न आवे कामे, भावषण वळतुं नहि दामेरे. भाव० ॥ ७ ॥ जाव चढतीरसनी धारा, सेवा भक्तिथी सुखकारा; वहे आनंद अपरंपारा, रसवेधकसिद्धि उदारारे, जाव० ॥ ८ ॥ श्रद्ध( प्रीतिवडे जाव आवे, शुष्कज्ञानीने जम शुं ? पावे; सत्य त्र्यनंदरस उपजावे, तेनी घेंन खुमारी न जावेरे. जाव० ॥ ९ ॥ जेथी जाव वधे ते करशो, एवं सांभळी व्रत आचरशो; जावस ज्यां त्यां मन धरशो, तेथी यातम 'जीवन वरशोरे. भाव० ॥ १० ॥ शुद्धभाव आनंद रस व्यापे, क्षणमां मुक्तिरस छापे; कर्म अनंत भवन कापे, बुद्धिसागरआनंद आपेरे. भाव० ॥ ११ ॥ ॐ जावलाभाय जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१५ गीतकलश. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राग. धन्याश्री. गायो गायोरे महावीर जिनेश्वर गायो । दान शीयलतपभावपूजाए, अतिशय आनंद पायो; द्रव्यपूजाने भावपूजानो, ए अधिकार रचायेोरे. महावीर० ॥ १ ॥ ॥ १ ॥ द्रव्यपूजाने भाव पूजानो, गृहस्थ छे अधिकारी; भावपूजाना अधिकारी मुनि, शुद्धात्तम सुखकारीरे. महावीर० ॥ २ ॥ दानशीयलतपभावना योगे, मुक्ति लहे नरनारी; सर्वसाधारण धर्म से जगमां, सर्वजीवहितकारी रे. महावीर० ॥ ३ ॥ एकदिवसमां पूजा रची शुभ; सर्वभवी उपकारी; आश्विनवदि यग्म सोमवारे, वर्ते जग जयकारी रे. महावीर० ॥४॥ ओग. णिशसत्तोत्तरमां साणंद, चोमासुं कर्यु जावे; संघनी भक्तिए उपदेशे, रहेतां आनंददावेरे. महावीर० ॥ ५ ॥ प्रभु महावीर पट्टपरंपरा, तपगच्छसंघना राजा; जगगुरुहीरविजयसूरि शोने, सर्वगच्छ शिरताआरे. महावीर० ॥ ६ ॥ तपगच्छ सागरपट्टपरंपरा, रविसम पूर्णप्रतापी; रविसागर गुरु प्रेमे प्रणमुं, जगमां कीर्ति व्यापीरे. महावीर० For Private And Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥७॥ तश शिष्य चारित्रीशिरशेखर, सुखसागर गुरु धीरा; शांतने दांत महंत मुनीश्वर, सर्वमुनिमा वीरारे. महावीर० ॥८॥ गुरुसुखसागरपूर्णकृपाथी, आत्मामृतरस पीधो; बुद्धिसागर आनंदमंगल, पामी पूर्ण प्रसिद्धोरे. महावीर ॥ ९ ॥ For Private And Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MANAUR अष्टागयोगनीपूजा. प्रणमुं तीर्थकरविभु, चोवीशमाजिनराज परमेश्वरमहावीरदेव, योगेश्वरसम्राट. ॥१॥ योगनां अंगो आठ बे, तेह प्रकाश्यां बेश; समवसरणमां बेसीने, दीधो शुभ उपदेश. ॥ २॥ हठनां अंगो चार छे, राजनां अंगो चार; निश्चय ने व्यवहारथी, समजी ग्रहो नरनार. ॥३॥ दर्शनज्ञानने चरणमा, अंगो आठ समाय; पंचाचारने समितिमां, गुप्तिमाही सुहाय. ॥ ४॥ स्याद्वादी समकितीने-, सम्यकपणे प्रणमाय; साधननी उपयोगिता, स्वाधिकारे जणाय. ॥५॥ त्यागी गृहस्थने योगर्नु, आराधन सुखकार; असंख्ययोग वीरे कह्या, मुक्तिहेतु निर्धार. ॥६॥ ज्ञानीगुरुगमने लही, जैनशास्त्र अनुसार; योगाष्टक पूजा रचुं, स्वर्गने शिवदातार.॥७॥ प्रथम यमयोगपूजा. अहिंसा सत्य यम कथ्या, अस्तेय छे जयकार; ब्रह्मचर्य संतोषने, आदरतां शिवसार. ॥१॥ पाप कर्मने रोधतो, यम ते संवर जाण; आदरतां आस्तव For Private And Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir टळे, प्रगटे अनुजवज्ञान.॥२॥ सर्वयोगर्नु मूल छे, सर्वयोग आधार; प्रथम पगथियुं मुक्तिनु, पाळो नरने नार. ॥३॥ ( देखो गति दैवनीरे. ए राग.) प्रणमो पूजो वीरनेरे, जेने जणाव्यो योग, पंच महाव्रतयमथकीरे, नाले कर्मनी रोग. भवी यम आदरोरे; टाळी दुःखकर नोग. नवी यम आदरोरे. ॥१॥ हिंसा दुःखनी वेलडीरे, अहिंसा सुखखाण; वैर विरोध रहे नहींरे, मुक्तिनुं छे प्रमाण. नवी० ॥२॥ सत्य समो नही धर्म छ रे, सत्य जगत् आधार; सत्यथी धर्मों प्रगटतारे, सत्य ग्रहो धरी प्यार. भवी० ॥३॥ सर्वप्रकारनी चोरीथीरे, विरमे शांति सुहाय; चोरी करतां प्राणियारे, सुख शांति नहि पाय. भवी० ॥ ४ ॥ द्रव्यथी मैथुन त्यागीएरे, नववामो धरी बेश; आधि व्याधि उपाधिनेरे, नासे रोगने क्लेश. नवी० ॥ ५॥ नावथकी ब्रह्मचर्य छेरे, मोहपरिणतित्याग; शुद्धब्रह्ममा म्हालबुंरे, सर्वयागशिरयाग. नवी० ॥ ६॥ मूछोपरिग्रह त्यागधीरे, मनचंचलता जाय; द्रव्यपरिग्रह पण टळेरे, आत्मानुभव थाय, भवी ॥७॥ भोगोप For Private And Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१९ जोगथी विरमतांरे, पापकर्मनो अंत; यमत्रडे प्रभु पूजीनेरे, मुक्तिवर्या बहुसंत भवी० ॥ ८ ॥ देहनी शुद्धि यमथकीरे, मनवचकायनी शुद्धि, बुद्धिसागर आत्मनीरे, प्रगटे चिदानंदऋद्धि भवी० ॥ ९ ॥ ॐ० प० यमयोगलाभाय जलं० य० स्वाहा ॥ द्वितीया नियमपूजा. बीजी नियमनी पूजना, करतां दुःखनो नाश; मन इन्द्रिय वशमां रहे, नियम ते जाणो खास. ॥ १ ॥ जे जे उपाये मन तनु, आतमवश वर्ताय; नियम ते जाणो सही, पाळंतां सुख थाय. ॥ २ ॥ नियमयोगने आदरी, पाम्या मुक्ति अनंत; नियम सिद्धि a यमथकी, भाखे वीर जदंत. ॥ ३॥ ( सुत सिद्धारथ भूपनोरे, सिद्धारथ भगवान्-ए राग . ) शुभनियम बहुजातनारे, द्रव्यने भावयी जाण; मोहपशुबळ झट टळेरे, आदरतां गुण खापरे, नियमने पाळशो, टाळी विषयकषायरे, दोषो टाळशी. ॥ १ ॥ बाह्याभ्यंतरतप तपेरे, षड् आव For Private And Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० श्यककर्म, सहजकर्मसदोषीनेरे, करतो साधे ध. मरे. नियम ॥ २ ॥ घोर अभिग्रह धारतोरे, गुर्वादिकनीरे भक्ति, परोपकारी कार्य मारे, फोरवतो निज शक्तिरे. नियम ॥३॥ देवगुरुने साधुनारे, दर्शननी शुभ टेक; आवश्यक सहु फर्जनेरे, धारे धरीने विवेकरे. नियम० ॥ ४ ॥ सकल साधन नियमनांरे, द्रव्यने जावथी जेह, साध्योपयोगे धारतोरे, देह बतां वैदे हरे. नियम ॥५॥ द्रव्यभावथी शौचनेरे, धारे मनसंतोष; निन्दादिकदुर्गुण त्यजेरे, धरी गुण दृष्टिपोषरे. नियम ॥ ६ ॥ धर्मकर्म करवां घटेरे, ते ते करतोरे सर्व; दुष्ट जे कामनी वासनारे, टाळे प्रगट्यो गर्वरे. नियम ॥७॥ सूरिवाचकमुनि सेवतारे, करतो हर्षोल्हास; जिनप्रतिमा अवलंब. तोरे, प्रभुवचने विश्वासरे. नियम ॥८॥ समकितवण हठयोगथीरे, पामे नहि कोश् मुक्ति; सम्यग्ज्ञाने नियमनीरे, पाळे जे शुनरीतिरे. नियम ॥९॥ हठयोगी अज्ञानथीरे, निष्कामी नहीं थाय; सम्यग्ज्ञानी नियमनेरे, पाळंतो शिव जा. यरे. नियम ॥ १० ॥ द्रव्यक्षेत्रने नावथीरे, सातनयोथीरे जेह; जाणी नियमने आदरेरे, सिद्ध For Private And Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२१ बने छे तेहरे. नियमः ॥ ११ ॥ पाळो नियमना योगनेरे, जेथी आस्रव जाय; बुद्धिसागरआतमारे, परमेश्वरपद पायरे. नियम ॥१२॥ ॐ प० नियम योगलाजाय जलं य० स्वाहा ॥ तृतीया आसनयोगपूजा. यासनथी आरोग्यता, देहनी पुष्टि थाय; रोगादिक दूरे टळे, देहथी धर्म सधाय. ॥१॥ ते माटे आसन घणां, जेने घटे जे तेह; करतां देहर्नु बळ वधे, निमित्तसाधन एह. ॥२॥ आसनजय करीने जनो, सेवाभक्तियोग; साधे पंचाचारने, टाळे कर्मना रोग. ॥३॥ ( इडर आंवा आंबलीरे. ए राग.) आसनजयथी योगनीरे, भूमिशुद्धि थाय; देह आरोग्यता संपजेरे, वायुरोगो जायरे; भविजन !!! आसनजयने साध्य, तेवडे प्रभु आराध्यरे. जवि० ॥१॥ गोदुहिकासनथी प्रभुरे, वीरजिने कर्यु ध्यान; ४१ For Private And Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्यकासन बेसीनेरे, वीर लह्या निर्वाणरे. भवि० ॥२॥ कासग्गना आसनेरे, कीधां अनेके ध्यान; पद्मासनथी साधुओरे,लह्या घणा निर्वाणरे. नवि॥३॥ योगवहन देववंदनेरे, आसननो उपयोग; प्रतिकमणने मंत्रनीरे, साधनामांहि योग्यरे. जवि ॥४॥ कायिकआसन जय करेरे, वायुरोगो जाय; अनेक रोगो न उपजेरे, धर्मसाधनमा सहायरे. भवि० ॥ ५ ॥ भाव थी आसन जाणवुरे, आतमस्थिर परीणाम; आशावण मन ध्येयमारे, वर्ततां स्थिर धामरे. भवि० ॥ ६ ॥ मननी चंचलता मटेरे, तरी रहे स्थिरगाम, भाव आप्तन ते जाणवुरे, निश्चलता निष्कामरे. भवि० ॥ ७ ॥ पद्मासन बेग प्रभुरे, वंदो पूजो नव्य; बुद्धिसागरयोग-रे, साधो झट कर्तव्यरे. भवि० ॥८॥ ॐ प० आसनयोगलानाय जलंग य० स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्थी प्राणायामपूजा. प्राणायामथी प्राणनी, मनतनुशुद्धि थाय; अष्टधा प्राणायामना, भेद कह्या गुणदाय. ॥१॥ जैनशास्त्रमा नाखिया, ते रीते नरनार, प्राणायामने साधीने, मनोजयने वरनार. ॥२॥ द्रव्य नावथी जाणतां, करतां प्राणायाम; सहजयोगनी पुष्टिर्नु, साधन डे परिणाम. ॥ ३॥ ( झुबखडानी देशी.) प्राणायामनी साधनारे, करशो नरने नार; प्रभु पद पूजीए. ॥ रेचकपूरक कुंभकेरे, प्राणनी शुद्धि थनार. प्रभु पद पूजीए, पूजीए जिनवर पूजीएरे, आनंद प्रगटे अपार. प्रभुपद ॥१॥ प्राणायामना ज्ञानथीरे, शुन अशुभ जणाय, प्रभु०॥ इडा पिंगला नाडीयोरे, सुषमणा बोध थाय. प्रभु० ॥२॥ अष्टधाप्राणायामथी रे, टळता रोगअनेक, प्रभु॥ वायु अने पित्तकफतणारे, टळता महाउद्रेक. प्रभु० ॥ ३॥ प्राणायामना जयथकी रे, प्रगटे बाहिर सिद्धि; प्रनु० ॥ वीर्यादिकरक्षण थतुंरे; आयुध्य बलनी ऋद्धि. प्रभु० ॥४॥ मनतनुवाणी शक्तियोरे, विकसे सात्विकबुद्धि, प्रभु०॥ बाह्यशक्ति For Private And Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ३२६ कारणपणेरे, श्रातमशक्तिनी वृद्धि प्रभुः ॥ ५ ॥ नाव प्राणायामसाधनारे, सम्यग् ज्ञानीने होय, प्रभु॥ दुष्टसंकल्प विकल्पनारे; रेच करे सुख जोय. प्रभु० ॥ ६ ॥ धर्म शुकलध्याने पुरतोरे, पूरक प्राणायाम, प्रभु० ॥ शुद्धस्वभावे स्थिरतारे. कुंभकना परीणाम. प्रभु० ॥ ७ ॥ अशुद्धनुं रेचन करेरे, शुद्धपूरण पुरुषार्थ, प्रभु० ॥ निज गुथी पूरण थरे, पूरकनुं परमार्थ प्रभु ॥ ८ ॥ अष्टकर्मने आत्मथीरे, कर्षवां रेचक भाव, प्रभु० ॥ उपशम क्षयोपशम क्षयेरे, पूरा पूरक दाव. प्रजु० ॥ ९ ॥ क्षायिकभावे आत्ममारे, स्थिरता रमणता जेह, प्रभु०॥ कुंभकभावथी जाणीनेरे, आदरशो धरी स्नेह प्रभु० ॥ १० ॥ भावप्रापायाम योगथीरे, क्षणमां केवल सिद्धि, प्रभु०॥ द्रव्यथकी भाव जाणवोरे, अनंतगुणप्रद् ऋद्धि, प्रभु० ॥ ११ ॥ द्रव्य ते जावनो हेतुछेरे, कारणे कारज थाय, प्रभु० ॥ बुद्धिसागर आत्मनीरे, शुद्धता हेते उपाय. प्रभु० ॥ १२ ॥ ॐ प० प्राणायामयोगलाभाय जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ पंचमी प्रत्याहारयोगपूजा. बाहिर जाती वृत्तियो, रोधवी प्रत्याहार; अना. सक्ति, विषयोविषे, रागरीसपरिहार. ॥ १ ॥ त्रेवीशविषयोमा थतो, रागरीसपरिणाम; तेथी विमुख थq नलु, निर्विषयी मन ठाम. ॥ २ ॥ सकलशुभाशुनवृत्तियो, रोकवी प्रत्याहार; धारी समकितीजनो, पामे भवोदधिपार. ॥ ३ ॥ (तेजे तरणीथी वडोरे, ए राग.) जिनवरमहावीर पूजीएरे, वंदीए धरी भाव. प्रत्याहार प्रकाशियोरे, जेथी वधे गुणदावहो. जविका !! प्रत्याहारने धारशोरे, मननी मलीनता टाळशोरे, शुद्ध थशो नरनार, ॥१॥ मोहनी वृत्तियो बाह्यमारे, जातां रोकवी योग; बाहिरवृत्ति जीवमारे, पामे शोकने रोगहो. ॥ भविका० ॥२॥ बाह्यपरिणतिवृत्तिएरे, गुणश्रेणि न चढाय; अंत. रंगपरिणामथीरे, क्षायिकगुणमा जवाय हो. भविका० ॥ ३ ॥ उत्तरोत्तरउज्ज्वलपणेरे, ज्ञानादिकपरिणाम; उत्तरोत्तर गुणस्थानकोरे, पामे मन विश्राम हो. भविका० ॥४॥ शुभ अशुनता नहीं रहेरे, दृश्य अदृश्य मझार; प्रत्याहारनी सिद्धतारे, निज For Private And Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण निजमा धार हो. भविका० ॥ ५॥ दुर्गुण दोषो सहु टळेरे, नासे व्यसनो दुष्ट; प्रत्याहारनी सिद्धिएरे, आतम निर्मल पुष्ट हो. भविका ॥६॥ रात्री दिवस क्षणक्षणविषेरे, करतां धर्माचार; मन वाणी कायप्रवृत्तिमारे, धरशो प्रत्याहार हो. भविका० ॥७॥ सम्यग्ज्ञानीने सहजीरे, थातो प्रत्याहार; योगपणे घट परिणमेरे, प्रारब्धनो व्यवहार हो. जविका० ॥ ७॥ सम्यग्ज्ञानोपयोगीरे, सुख पुःखमा समन्नाव; निजगुण निजमा खेचतोरे, एवो आविर्भाव हो. भविका० ॥ ९॥ प्रत्याहारे जे परिणमेरे, ग्रहे न छंडे जेह; बुद्धिसागर आत्मनीरे, पूर्णता पामे तेह हो. भविका० ॥ १० ॥ ॐ० प० प्रत्याहार योगलाभाय जलं० य० स्वाहा ॥ छट्टी धारणायोगपूजा. - दुहा. अरिहंत महावीरधारणा, धारो नरने नार; शब्दथी अर्थनी धारणा, धरतां शक्ति अपार. ॥१॥ श्रद्धा प्रेमथी धारणा, धरता जे निष्काम; शुद्धि करी For Private And Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२७ निज हृदयनी, पामे शिवपुर ठाम ॥२॥ नवपदनी दिल धारणा, धरतां केवलज्ञान; बायांतरत्राटक नळे, धारणामां गुण खाण. ॥ ३ ॥ (सनेही संत ए गिरि सेवो. ए राग.) द्रव्यनावथी धारणा धरीए, प्रभु महावीर दिलमा स्मरीए; अन्यपरिणतिने परिहरिए, निज आतम शुद्धता करीए; प्रभु महावीरने दिल धरीए, एवी धारणाए प्रभु वरीएरे. प्रभु० ॥ १ ॥ प्रभु ध्येयनी धारणा धारो, षट्चक्रोमां निर्धारो; प्रभु धारणामां मन वाळो, तेथी घटमां थतो उजियारोरे. प्रजु० ॥ २ ॥ वाह्यांतरत्राटक करीए, दुा. नने झट परिहरीए; उपयोगे रहीए फरीए, प्रभुमय थै प्रभुने वरीएरे. प्रभु० ॥ ३ ॥ प्रभुमहावीरमा मन राखो, मुखे महावीर नामने नाखो; मोह शत्रुने मारी नाखो, आतमआनंदरस चाखोरे. प्रभु० ॥ ४ ॥ प्रभु महावीरमय थै जाशो, बीजुं सघळू भूली जाशो; सिद्धियोमां नहीं लोभाशो, सत्यधर्म कमाणी कमाशोरे. प्रभु ॥ ५॥ खातां पीतां हरतां फरतां, उपयोगे कर्मों करता; प्रभुनी घट धारणा धरतां, नरनारी संयम वरतारे. प्रभु० ॥६॥ पहेली साकार For Private And Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ धारणा आवे, पडी निराकारे सुहावे; प्रभु नवधा भक्तिप्रभाव, नक्त योगी शिवपद पावरे. प्रभु ॥७॥ सर्व जापो धारणामाटे, वळो वहेला 'शिवपुरवाटे; मुक्ति मळे छे शिरनेसाटे, मळे धारणा ज्ञानीना हाटेरे. प्रभु० ॥ ८॥ मनथी मोह दूर हठावो, शुद्ध आतन महावीर भावो; धारणाए वीर वधावो, भाव अनहदतान बजावोरे. प्रभु ॥९॥ गुणस्थानक चढवा निसरणी, धारणा भवसागरतरणी; बुद्धिसागर अमृतसरणी, धरो मनमां धारण करणारे. ॥ प्रभु० ॥१॥ ॐ प० धारणायोगलाभाय. जलं. या स्वाहा ॥ सप्तमी ध्यानयोगपूजा. धर्मध्यानने शुक्लश्री, मुक्ति सहेजे थाय; निरा. कार साकार बे, ध्यानथी कर्मो जाय. ॥ १ ॥ अरिहंतआदिध्येयमां, मनएकाग्रप्रधान, थातां क्षा. यिकभावथी, प्रगटे केवलज्ञान. ॥ २ ॥ चार प्रकारे ध्यान छे, आत्मशुद्धि करनार; ध्यानथी प्रभुमय थै जतां, प्रगटे प्रभु निर्धार. ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२९ ( सांभळशो मुनि संगम रागे उपशम श्रेणि चहिवारे. ए राग. ) धन्य महावीर जिन जयकारी जगमांही उपकारीरे; ध्यान धरीने केवल पामी, मुक्तिवर्या सुखकारीरे. धन्य० ॥ १ ॥ सर्वप्रकारनां ध्यान प्रकाश्यां, उपदेश्यां नरनारीरे; आर्त रौद्रने धर्म शुकल चउ, समजो गुरुगम धारीरे. धन्य ॥ २ ॥ पिंस्थने पदस्थ ने ध्यावो, रूपस्थथी लय लावोरे; रूपातीतना ध्याने केवल - ज्ञानने क्षणमां पावोरे. धन्य० ॥ ३ ॥ ध्येयमां अंतर्मुहूर्त ध्यान ज, थातां जीवन्मुक्तिरे; आत्मानंदरसोदधि प्रगटे, विषयोमां न आसक्तिरे. धन्य० ॥ ४ ॥ अंतर्मुहूरतध्यानप्रतीते, आत्म समाधि प्रगटेरे; खातां पीनां कार्य करंतां, शुद्ध स्वरूप न विघंटेरे. धन्य० ॥ ५ ॥ श्रुतज्ञानी ध्याने अधिकारी, नार्थी अविकारीरे; आतमरंगी ध्यानी संगी, निःसंगी नरनारीरे, धन्य० ॥ ६ ॥ गुरुकुलवासी गुरुना भक्तो, सर्वस्वार्पणकारीर; लोकादिसंज्ञापरिहारी, ध्यानी बने गुणधारीरे. धन्य० ॥ ७ ॥ धर्म शुकल बे भावना भावो, अशुभ ध्यान हठावोरे; शुद्धातम उपयोग जमावो, परमातम प्रगटावोरे. धन्य० ॥ ८ ॥ श्रशुध्यानठाण त्रेसठ वारो, शुद्धस्वरूप विचारोरे; मानवभवनी क्षय ४२ For Private And Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नहि हारो, आतमगुणने सुधारोरे. धन्य० ॥ ९ ॥ साकारध्याननिराकारध्यान बे, अनुक्रमथी भवी ध्यावारे; बुद्धिसागर आतमशुद्धि, करवा लगनी लगावोरे. धन्य० ॥१०॥ ॐ प० ध्यानयोगलाभाय जल य स्वाहा ॥ अष्टमी समाधियोगपूजा. ध्यानतणा अभ्यासथी, प्रगटे आत्मसमाधि; रागद्वेषने कामनी, होय नहीं मनाधि ॥१॥ आतममा मन स्थिर थतां, शुद्धसमाधि थाय; मोहात्मकसंकल्पने. विकल्प उपशमी जाय ॥२॥ ज्ञानोपयोगेसहज छे, आत्मसमाधि व्यक्त. परमानंदरसस्वादथी, बाहिर नहि आसक्ति ॥ ३ ॥ ( चौद लोकके पार कहावे ए राग-वा. जिनपद जगमा जाचं जाणो-ए राग.) सहजसमाधियोगे महावीर, केवलज्ञानने पा. म्याजी. अप्रमत्तदशा प्रगटावी, घातीकर्मने वाम्या; जिनवर नमीएजी, त्यागी मोहस्वनाव, For Private And Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३१ निजगुण रमीएजी. ॥ १ ॥ उपशमने क्षय क्षयोपशमथी, चात्मसमाधि प्रकाशजी; मोहअभावे सहज समाधि, आतमआनंद भासे. जिनवर० ॥ २ ॥ ब्रह्मरन्ध्रमां प्राण चढतां हठसमाधि कथातीजी; तेनी किंमत कोडी सरखी, शुद्धोपयोगे जाती. जिनवर० ॥ ३ ॥ द्रव्यसमाधि, ज्ञान विनानी, शाता वेदनी जोगेजी; जावसमाधि सहजानंदे, आतमना उपयोगे जिनवर० ॥ ४ ॥ द्रव्यसमाधिकर्मने करवां, भावसमाधि पामीजी; शुद्धोपयोग बे सहजसमाधि, तमगुणविश्रामी. जिनवर० ॥ ५ ॥ शुभ उपयोग बे द्रव्यसमाधि, शुभकषाय प्रणामेजी; शुभथी शुद्ध उपयोगमां रमतां, आतम मुक्ति पामे. जिनवर० ॥ ६ ॥ यावत् रागने द्वेष विना मन, आतम निजउपयोगीजी; तावत् शुद्ध समाधि वर्ते, यातमयानंद जोगी. जिनवर० ||७|| उदये आव्यां कर्मशुभाशुभ, ज्ञानी त्यां समजावीजी: आतमनो उपयोग न चूके, देतो मोह हठावी. जिनवर० ॥ ८ ॥ निर्विकल्पसमाधि मांही, मोहविचार न आवेजी; मोहविकल्पो प्रगटे त्यारे, सविकल्प कहावे. जिनवर० ॥ ९ ॥ शुद्धतम महा For Private And Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीर प्रभु एक, स्थिर उपयोगे प्रकाशेजी; एकता ली. नता समता प्रगटे, मोहर्नु द्वैत प्रणाशे. जिनवरण ॥ १० ॥ मिथ्याज्ञानीने जे समाधि, मिथ्याभावे ते कहीएजी; नवमुक्तिमा समपरिणामे, केवल ज्ञानने लहीए. जिनवर० ॥ ११ ॥ कर्मयोगीने भक्तने ज्ञानी, शुद्धसमाधि पामेजी; असंख्ययोग थता अहीं जेळा, घातीकर्मविरामे. जिनवर० ॥ १२ ॥ ज्ञानानंदे शुद्धसमाधि, पामे केवल प्रगटेजी; बुद्धिसागरआनंदमंगल, पामे माया विघटे. जिनवर ॥ १३ ॥ कलश गीत. राग धन्याश्री. गायो गायोरे महावीरजिनेश्वर गायो, ॥ अष्टांगयोगनी पूजा रचीने, वीरजिनेश्वर भ्यायो; अष्टांगयोगना भावपूजनथी, आतमशुद्धि पायोरे. महावीर ॥ १ ॥ सम्यग्ज्ञानीने आठे अंगो, प्रणमे सम्यग्नावे; मिथ्यात्वीने मिथ्यास्वरूपे, निजदृष्टिना स्वभावरे. प्रहावीरत ॥ २ ॥ जैना गमअनुसारे अंगो, हेमसूरिए प्रकाश्यां; ज्ञानी For Private And Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुगमथी ग्रहता ए, सम्यग्भावे विकास्योरे. महांवीर ॥ ३॥ देशथकी गृही छे अधिकारी, सर्वथकी मुनि त्यागी; गुरुगमथी अधिकार लहीने, थाशो योगना रागीरे. महावीर ॥ ४ ॥ पाशवआसुरी बलने हणवा, योगांगो हितकारी; सत्ताए आतम परमातम, व्यक्त करे निर्धारीरे. महावीर ॥४॥ तिरोनावीय ज्ञानादिगुण, आविर्भावने माटे; योजे निजगुणमां ते योगो, धूर ले तेमां आवेरे. महावीर ॥ ६ ॥ तम गुणने आतममां जे, योजे ते योग कहेवो; ज्ञानादि शक्तियो योग ज, सम्यग् अथने लेवोरे. महावीर ॥ ७ ॥ अनंतज्ञानानंदनी प्राप्ति, कारक योग ते जाणो; सातनयोथी योगने जाणी, निश्चय अनुभव आणोरे. महावीर० ॥ ८॥ निमित्त उपादान व दे, द्रव्यने नावथी जाणी; शुद्धातम प्रगटावो संतो, एवी वीरनी वाणीरे. महा. वीर ॥ ९॥ म्हारेतो गुरुसेवापसाये, सम्यग् अ. नुभव याव्यो; नयनिदेपादिकथी तत्वो, जाणी स्याद्धाद नाव्योरे. महावीर० ॥ १० ॥ प्रभु महावीर पट्टपरंपरा, श्वेतांबरमुनिराया, तपगच्छजगगुरु हीरविजयसूरि, अकबरे पूज्या पायारे. महावीर० For Private And Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ११ ॥ तसपसागरशाखापरंपरा, रविसागर गुरुराया; तस शिष्यसंतशिरोमणिगुरुवर, सुख सागर नमु पायारे. महावीर ॥ १२ ॥ ओगणिश सत्तोत्तर आश्विननी, वदिदशमी बुधवारे; पूजा रचीने पूरण कीधी, लानघटिका सवारेरे. महावीर० ॥ १३ ॥ संघनी श्रद्धाप्रीति नक्ति, आग्रहथी चोमासुं; सानंद शहेरे की, भावे, योगस्वरूप प्रकाश्युरे. महावीर० ॥ १४ ॥ योगनी पूजा भणे ने गणे ते, पामो उत्तमशक्ति; बुद्धिसागरसंघमां मंगल, प्रगटो ऋद्धि भक्तिरे. महावीर० ॥ १५ ॥ ॐ प० समाधियोगलाभाय जलं या स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ नवधाक्रियाभक्तिपूजा. परम प्रभु परमातमा, चोवीशमा जिनराज; वर्धमान महावीर नम, विश्वपति शिरताज. ॥१॥ नवधाभक्ति पूजना, पूज्यनी करतां सार, पूजक पूज्यपणुं वरे, पूज्य बनी निर्धार. ॥२॥ नवधा जक्तिनी भली, पूजा शिवदातार; आतम ते परमातमा, व्यक्त बने नरनार. ॥३॥ भक्तिनी पूजा रचु, हृदयशुद्धि करनार; शुद्धहृदयी झाननी, प्राप्ति ले जयकार. ॥ ४ ॥ देवगुरुने धर्मनी, संघनी भक्ति बेश; करतां मुक्ति थाय छे, नासे सघळा क्लेश. ॥ ५॥ प्रथम श्रवणक्रियापूजा. जिनवरमहावीरदेवनां, वचन सुणो नरनार; गुरु संत उपदेशने, सुणतां ज्ञान थनार. ॥१॥ श्रवणथकी श्रुतज्ञान डे, श्रुति तेहेत कथाय; प्रभुवचनामृत सांनळे, सम्यग्ज्ञान सुहाय. ॥२॥ ब्राह्मीसुंदरीमुखथकी, सुणी वचनामृत सार; बाहु For Private And Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बली जिनकेवली, वन्या धन्य अवतार. ॥ ३ ॥ श्रवण करे जे शास्त्रने, ते पामे श्रुतज्ञान. माटे श्रवणक्रियावडे, पूजो प्रभु लगवान्. ॥४॥ (राग केदारो.) प्रभुमहावीरनां वचन सुणी भवी, जेथी प्रगटे ज्ञानरे, रोहिणीयों जेम स्वर्गने पाम्यो, सफल करो निजकामरे. प्रभु० ॥ १ ॥ प्रभुगुरुवचनामृत सुणतां जे, धारे मन बहुरागर; समकिती ते मि. थ्यात्वने छंडे, पामे साचो त्यागरे. प्रभु० ॥२॥ इन्द्रभूति आदिगणधरमुनिवर, सांनळी प्रनु उपदेशरे, प्रतिबुध्या चारित्र धरी शुभ, टाळ्या कर्मना कलेशरे. प्रभु० ॥३॥ चंझकोशियो स्वर्गने पाम्यो, श्रवण करी प्रभुबोधरे; श्रवणक्रियावण मुक्ति नहीं छे, श्रवणे कर्मनो रोधरे. प्रभु ॥४॥ विनय अने बहुमानसुरागे, सांभळो प्रनुनी वाणीरे; सर्वप्रमादो दूर करीने, सांनळो थाशो ज्ञानीरे. प्रभु० ॥ ५ ॥ गुरुसंतमुखथी प्रभुवाणीने, सांभळतां छे ज्ञानरे; वांचन करतां अनंतगणुं फळ, श्रवण करे श्रुति मानरे. प्रभु० ॥६॥ मिथ्या कषायी निंदा न सुणशो, सुणशो धर्मनो बोधरे; तन For Private And Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनधनने तुच्छ गणीने, सुणतां मोहना रोधरे. प्रभु० ॥७॥ जांगुली आदि मंत्रश्रवणथी, सर्पा दिकविष जायरे; गुर्वादिकनो बोध सुणंतां, मोहन विष पलायरे. ॥८॥ मोरली सुणतां नाग हरण जेम, नूले तनु- भानरे; अर्पा जाइ तेम भव्यो, श्रवण करो जिनवाणरे. प्रभु० ॥९॥ प्रतिदिन क्षण क्षण गुर्वादिकनी, सेवा करी सुणो धर्मरे; बुद्धिसागरआत्ममहोदय, पामो ज्ञानने शर्मरे. प्रभु० ॥ १० ॥ ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय, श्रवण पूजार्थ जलं, चंदनं, पुष्प, धूप, दीपं, अक्षतं, नैवद्यं, फलं, यजामहे स्वाहा ॥ अथ द्वितीया कीर्तनक्रियापूजा. दुहा. अर्हत् सिद्धने सूरिनी, कीर्ति करो नरनार; वाचक साधु आदि नव, पद स्तवतां सुखसार. ॥१॥ गुर्वादिक गुणगावतां, खरे अनंतां कर्म; For Private And Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ अनंत गुण प्रगटे दिखे, अनंत प्रगटे शर्म. ॥ २ ॥ देव गुरुने धर्मनी, कीर्ति करी नरनार; पूज्यपणुं पामे सही, विघटे दुःख अपार ॥ ३ ॥ कीर्तन पूजाथी प्रभु, पूजो धरी मनप्यार; द्रव्यथी भावथी सिद्धि बे, आत्मशुद्धिनिर्धार ॥ ४ ॥ ( न्हवणनी पूजारे निर्मल आतमारे. ए राग . ) कीर्तन पूजारे करो जिनराजनीरे, भाव घरी नरनार; अरिहंतमहावीरकीर्ति गावतारे, पामो भवोदधिपार कीर्तन० ॥ १ ॥ सिद्धने सूरिवाचक साधुनुंरे, कीर्तन गुणनुं बेश; गुरु गुणीजननुं कीर्तन मनथकीरे, करतां राग न द्वेष. कीर्तन० ॥२॥ तपसी पन्नरसेत्रणने बोधियारे, गौतम लब्धिप्रयोग; अनुमोदनकीर्तनथी ते वर्यारे, केवलज्ञाननो योग; कीर्तन० ॥ ३ ॥ कीर्तन करतां रावणे बांधियुंरे, श्री तीर्थकर नाम नामने रूपनो मोह त्यजी घणारे, पाम्या शिवपुरधाम. कीर्तन० ॥ ४ ॥ अपकीर्ति अपयश अवगुण टळेरे, दोषनी दृष्टि पलाय, गुणने गुणीनी एकता झट थतीरें, कर्मनो भेद हणाय. कीर्तन० ॥ ५ ॥ गुणनी स्तवनायी समकित मळेरे, प्रगटे सम्यग्ज्ञान, क्षपकश्रेणिए चारित्री चढेरे, For Private And Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थाय न मान अमान. कीर्तन० ॥६॥ कीर्तन करता क्षणमां केवलारे, असंख्य थयां नरनार, गुणनी स्तुति अवगुण ढांकवारे, कीर्तनपूजा सार. कीर्तन ॥ ७ ॥ सत्यादिकगुणवृन्दनीकीर्तनारे, प्रभुनी पूजा एह; शुद्धातम करवा प्रभुप्रार्थनारे, स्तवना छे गुणगेह. कीर्तन ॥ ८॥ द्रव्यने भावथी प्रभु कीर्तन करोरे, प्रभुने गावो भव्य; बुद्धिसागरशुद्धातमप्रभुरे, भक्तिनुं कर्तव्य. कीर्तनः ॥ ९ ॥ ॐ 40 कीर्तनपजाथै जलंग य स्वाहा ॥ तृतीया सेवनक्रियापूजा. अरिहंत आदिनी करो, द्रव्यमावथी सेव; सेवक बनी उपयोगथी, सेव्य बनो स्वयमेव. ॥ १ ॥ सात नयोथी सेवना, आत्मशुद्धिनेहेत; गुर्वादिकनी सेवना, आत्ममुक्तिसंकेत, ॥२॥ श्रवण अने कीर्तनथकी, सेवाभाव सुहाय; सेवाथी सहु सिद्धि. यो, प्रगटती घटमांय. ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( पुरुखलवइविजयेजयोरे. ए राग.) शुद्ध महावीर सेवीएरे, श्रद्धाप्रीति धरी मान; विनये वैयावृत्यथोरे, पामो केवलज्ञानरे; भविजन !!! सेवा करो धरी भाव, लेजो नरभवल्हावरे. भविजन ॥ १॥ स्वार्पण करी गुरु सेवीएरे, रही अंतर निष्काम; सेवाफल नहीं इच्छीएरे, अधिकारे करो कामरे. नविजन ॥२॥ तमोरजोगुणसेवनारे,त्यागी सात्विक सेव; करतां शुद्ध उपयोगथीरे, वनो प्रभु जिनदेवरे. नविजन ॥३॥ संघचतुर्विध सेवनारे, आतमसेव ते जाण; गुणीजनदशसेवा थकीरे, प्रगटे आतमज्ञानरे. नविजन० ॥ ४ ॥ सेवायोग छे आद्यमांरे, सकलधर्मनुं बीज; खेद रहित निर्जयदशारे, अद्वेष सात्विकरीझरे. भविजन० ॥ ५॥ संशयने निंदा त्यजीरे, त्यागी सर्व आसक्ति; उपकारी जीवन धरीरे, पामो प्रभुपद व्यक्तरे, भविजन ॥६॥ प्रभुमयथइ प्रभु सेवीएरे, दया सत्य धरी टेक; संकटमा धीरज धरोरे, चूको न धर्म विवेकरे. भविजन ॥ ७॥ दुःख पडे नहीं शोचीएरे, सुख थतां नहीं हर्ष; मानामानमां समपणुंरे, त्यागो चित्त अमर्षरे, नविजन ॥८॥ सताए सहुजीवनेरे, सिद्धसमागणो चित्त; चारे For Private And Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जावनी जावानरे, सेवा करतां पवित्ररे. भविजन ॥ ९॥ दीन दरिद्री दुःखीनोरे, धर्महीणानी सेव; फर्ज अदा करो सर्वदारे, त्यागी दुर्गुणटेवरे. भविजन ॥ १० ॥ चढते भावे सेवनारे, करतां आतम शुद्धि, बुद्धिसागर मंगलोरे, पगले पगले समृद्धिरे. नविजन० ॥ ११ ॥ ॐ प० सेवनक्रियालाभार्थ जलं या स्वाहा. चतुर्थी वचनक्रियापूजा. वाचिकशक्तिए पूजीए, प्रभु महावीर जिणंद%3; वीरे वाचिकशक्तिथी, टाळ्या भवना फंद. ॥१॥ प्रभुवाणीने पूजीए. सेवीए सुखकार; प्रभुवचन समज्याथकी, पामो जवनो पार. ॥ २॥ सत्य अ. सत्य जे वचन छे, समजो तेना भेद; निश्चयने व्यवहारथी, समजे नासे खेद. ॥३॥ (सुमतिनाथ गुगशु मलीजी. ए राग.) सत्यवचनने आदरोजी, भावधरी नरनार, धर्म संघ परमार्थमांजी, करवो वचनव्यापार; महावीरप्रभुए सत्यवचन कथ्यां सार. ॥१॥ निज For Private And Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर उन्नतिकाजमांजी, देवा धर्मोपदेश; सदुपयोगे वचननेजी, वापरशो सही क्लेश. महावीर ॥२॥ जूठां वचनो नहीं वदोजी, सत्यवचननो प्रकाश; सत्य असत्यना भेदनेजी, जाणीने करशो विकाश. महावीर० ॥ ३ ॥ मृत्युआदिनय त्यजीजी, क्रोधादिक त्यजी दोष; हिंसादिकावत तजीजी, सत्य वचन करो पोष. महावीर ॥४॥ स्वाधिकारे सत्यवचनने, वदतां धर्म अपार; सापेक्षाए जाणशोजी, सत्यासत्यप्रकार. महावीर० ॥५॥ सत्य असत्यवचन सकळजी, देशकालादिसापेक्षा अधिकार समज्या विनाजी, वचन सकल निरपेक्ष. महावीर ॥ ६ ॥ अनेकनयनी दृष्टिएजी, वदो सापेक्षवचन, वचन नलामां वापरोजी, आशय शुभ धरी मन्न. महावीर ॥७॥ परमार्थे उपयोगथीजी, सर्वदा वचनव्यापार; करशो निर्भयता धरीजी, करशो जगउपकार. महावीर० ॥ ८॥ द्रव्यनावथी देवगुरुनी-, धर्मनी सेवा काज; बुद्धिसागरसत्यवचनने, वदतां सुख साम्राज्य, महावीर ॥ ९॥ ॐ प० वचनक्रियालाभाय जलं यः स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४३ पंचमी वन्दनक्रियापूजा. अरिहंतादिकवंदतां, नावथी मुक्ति थाय; नवपदने वंदन करे, अपकीर्ति दुःख जाय. ॥१॥ द्रव्यने नावथी वांदीए, गुरुने धरी बहुप्रेम; ज्ञानचरणआनंदगुण, प्रगटे योगने क्षेम. ॥ २ ॥ सात्विकवंदन श्रेष्ठ , मोहनी करे चकचूर, वंदक वंद्यपणुं वरे, सुख पामे भरपूर ॥३॥ (संभव जिनवर वीनति. अवधारो गुण ज्ञातारे-ए राग.) जिनवर महावीर वंदना, द्रव्यने नावथी होशोरे; मारे एक तुं शरण छे, त्हारो एक जरोंलोरे. जिन ॥१॥ वन्दन आवश्यकक्रिया, केवलज्ञाने प्रकाशीरे; देवगुरुने वंदतां, नासे सकल उदासीरे. जिन ॥२॥ सातनये छ वंदना, चारनिक्षेपे धारोरे, शुद्धोपयोगे घटविषे, प्रगटे ले उजियारोरे. जिन ॥३॥ श्रद्धाप्रोतिउल्हासथी, विनयने बहुमानेरे; गुर्वादिकने वंदता; भक्तो शोभे ज्ञानेरे. जिन ॥४॥ एकवार जो भावी, प्रभुने वंदन थावरे; तो क्षणमां घाती हणी, केवलघट प्रगटारे. जिन ॥५॥ प्रभु महावीरमय बनी, आतम महावीर जागीरे, शुद्धोपयोगे वंदतां, आतम केवलज्ञानीरे. For Private And Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४ जिन ॥६॥ आरितादिक वंदना, आतम प्रति ते होवेरे; आपोआपने वंदना, आपोआपने जोवेरे. जिन० ॥७॥ व्यवहार निश्चयपूज्यने, पूर्णप्रेमे वधाबोरे; गीतार्थादिकतंतने, वंदन करी ल्यो ल्हा. वोरे. जिनः ॥८॥ रोमराजी विकसे घणी, हैडे हर्ष न मावेरे; आनंद अश्रु आंखमां, गदगद वाणी सुहावेरे जिन ॥९॥ पूज्यथी एक स्वरूपता, आनंदोदधि प्रगटेरे; ध्येय ध्यातानी एकता, थातां को विघटेरे. जिन ॥ १० ॥ एकवार महावीरने, अमृत वंदन थावेरे, बुद्धिसागरआतमा, सहजानंदने पावरे. जिन ॥ ११ ॥ ॐ प० वन्दनक्रियालाभाय जलं य० स्वाहा. षष्टी ध्यानक्रिया पूजा. आत्मशुद्धि जेथी थती, ते छे उज्ज्वल ध्यान; धर्म शुक्ल बेध्यानथी, प्रगटे केवलज्ञान. ॥१॥ मनथी ध्यानक्रिया थती, ध्यानथी कर्म विनाश; कर्मविनाशथी मुक्ति छे, मुक्ति अनंत For Private And Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४५ सुखवास ॥२॥ पिंडस्थादिकध्यानथी, अक्रिय थावो जव्यः रागद्वेषादिक विना, अक्रियता कर्तव्य. ॥ ३ ॥ (ध्यान क्रिया मनमा आणीजे. ए राग.) ध्यान करो भवी नाव धरीने, प्रभु महावीर प्रकाशेरे; अरिहंतआदिध्यान धरतां, गुणपर्याय विकासरे. ध्यान ॥१॥ ध्याता ध्येयने ध्याननी एकता, योगे पूर्णसमाधिरे; नामने रूपनो मोह रहे नहीं, विघटे उपाधि आधिरे. ध्यान ॥२॥ शुद्धोपयोगे जिनवरमहावीर, रंगरले जे रसियारे, क्षण क्षण प्रभुरसरंगे रीझे, चढताभावे उल्लसि. यारे. ध्यान० ॥ ३ ॥ कर्म करे पण अक्रिय आतम, शुद्धोपयोगे रसियोरे; परपरिणतिने दूर करीने, निज आतममा वसियोरे, ध्यान ॥ ४ ॥ पिमस्थादिक चारप्रकारे, ध्याने आत्मखुमारीरे; घटमां प्रगटे स्वाद न उतरे, ध्यानीनी बलिहारीरे. ध्यान ॥४॥ क्षण क्षण ध्यानीने छे महोत्सव, आनंदनी वहे हेलीरे; जीवन्मुक्ति प्रभुमयजीवन, करतो निजगुण केलिरे. ध्यान ॥६॥ बाहिरअंतरसर्वमयी ते, सर्वथकी ते न्यारोरे; कर्ता अकर्ता योगी For Private And Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अयोगी, जोगी अभोगी धारोरे. ध्यान ॥७॥ जलपंकजवत् निर्लेपज्ञानी, आतममां मस्तानीरे; रहे दशा नहीं प्रगटी बानी, अनुजवज्ञाननी वा. णीरे. ध्यान ॥ ॥ अंतरमा मन राखी वर्ते, होय न लेश उदासीरे; कर्मविपाके सुखदुःख वेदे, आत्मानंद विलासीरे, ध्यान० ॥ ६ ॥ श्रुत ज्ञाने ध्यानने ध्यातां, आतमझान प्रकाशेरे; कर्म विपाकोदधिपर तरतो, आपोआप विलासेरे. ध्यान ॥ १०॥ आतमलय लागी छे जेने, ते ध्यानी जयकारीरे; बुद्धिसागरध्यानानुभव, प्रगट्यो आनंदकारीरे. ध्यानम् ॥ १० ॥ ॐ ध्यानक्रियालाभाय जलंग य स्वाहा ॥ सप्तमी लघुताक्रियापूजा. दुहा. लघुताथी प्रभुता मळे, टळे दोष अभिमान; बाहुबलि लघुता धरी, पाम्या केवलज्ञान. ॥१॥ लघुता गुणनी वेलडी, लघुता मुक्तिद्वार; भवोदधि For Private And Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर तुंबीवत्, तरतां नरने नार. ॥२॥ कर्मभार हलको थतो, बातम नहीं लेपाय; लघुतापूजाथी प्रभु, पूजंतां सुख थाय. ॥३॥ ( उत्तम फल पूजा कीजे, मुनिने दान सदा दीजे. ए राग.) वीरप्रभु पूजो ध्यावो, सेवक बनी लेवो ल्हावो; लघुताए प्रभुने भावोरे, प्रभु उपदेशे मनलावो । लघुताए प्रनुता पावोरे. लघु० ॥ १॥ आठ प्रकारे मद त्यागो, देहाध्यास तजी जागो; शुझातमभावे लागोरे, लघुता ॥ २ ॥ सेवक ते स्वामी थावे, ए अनुक्रम ज्ञानी पावे; मानदशा मन नहीं लावेरे. लघुता० ॥३॥ जडपुद्गलमदमा मुंझे, तेने प्रनु दिल नहीं सूजे, आत्मप्रभुने शु? पूजेरे. लघुता० ॥ ४ ॥ रसऋद्धि गारव पडिया, शातागारवे लडथडिया, जीवोने प्रजु नहीं जडियारे. लघुता० ॥५॥ इन्द्रादिकपदवी सर्वे, रहेवू नहीं तेहना गर्वे; प्रभु मळता नहि मन भर्मेरे. लघुता० ॥६॥ गुरुता लघुता जडमाया, मोहदशाना पडबाया, अगुरुलघु आतमरायारे. ॥ लघुता० ॥७॥ अगुरुलघुगुण उपयोगी, षट्कारक आतमयोगी, थातां न मोहे संयोगीरे. लघुता ।। ८॥ यावत् जमगुरुता यावे, तावत् For Private And Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ लघुताना भावे, रहेशो अगुरुलघुदावेरे. लघुता० ॥ ९॥ दीनभाव लघुता छंडो, आत्मप्रभुता रढ मंमो, छंडो मानतणो झंडोरे. लघुता ॥ १० ॥ सापेक्षे लघुता समजो, मान अहंवृत्ति दमशो, बुद्धिसागर दिल रमशोरे. लघुता ॥ ११ ॥ ॐ लघुता लाभार्थ जलंग य स्वाहा ॥ अष्टमी एकता क्रियापूजा. वीरप्रभुथी एकता, भावो नरने नार; जैक्य करी प्रभु साथमां, लहो भवोदधिपार. ॥१॥ संग्रह नयसत्तावडे, सर्वजीवो छे एक; आतमसत्ता ध्यावतां, प्रगटे व्यक्तिविवेक. ॥ २ ॥ जडथी न्यारो आतमा, गुणपर्यायाधार; एकताभावे भावतां, कर्म रहे न लगार. ( मेरुशिखर न्हवरावे हो सुरपति मेरुशिखर न्हवरावे. ए राग.) आतम एकता ध्यावो हो, भविजन !!! आतम एकता ध्यावो ॥प्रभुमालयलीन थावो हो, भविजन! यातम एकता ध्यावो ॥ एकताभावना जावो विवेके, For Private And Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नयसापेक्षप्रमाणे; द्रव्यार्थिकथी एकता ध्याता, निर्विकल्पता जाणे हो. भविजन ॥ १॥ गुणपर्याये अनेकता आतम,-मांही समावे ध्याने; रागरीस रूप मनहुँ मरेने, शोने केवलज्ञाने हो. भविजन ॥२॥ ज्ञाताज्ञेयने ध्याताध्येयनी, एकता अनुलव थातां; पूरण आत्मप्रतीति प्रगटे. कर्मों सकल दूर जातां हो. नविजन० ॥ ३॥ सत्ताए महावीर प्रभुनी-, साथे एकता ताने; रहेतां आतम आनंद स्वादो, अनुभव अनुभवी जाणे हो. भविजन ॥४॥ रागद्वेषनुं द्वैत टळ्याथी, निज गुणपर्याय योगे; बातम एकता थावे नकी, रहे न भिन्नता जोगे हो. भविजन ॥ ५॥ जडद्रव्योना गुण पर्यायो, तेथी आतम न्यारो; आपोआप स्वजावे खेले, एकता एह विचारो हो. भविजन० ॥६॥ अनंतज्ञानानन्दथी बातम, एकस्वरूप सुहायो; गुणगुणीनी एकता एवी, लीनता आनंद थायो हो. नविजन ॥७॥ आदि अंत न आतम एवो, नावो ध्यावो गावो; परमातममहावीरप्रभुथी, एकमेक थइ जावो हो. नविजन ॥ ८॥ एकलो आव्यो एकलो जाशे, कोइ न साथे जाशे; प्रभु For Private And Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीर जिन उपदेशे, चेते ते सुख पाशेहो. भविजनः ॥ ९॥ तत्वमसिसोऽहं पदध्याने, एकता अनुनव आवे; बुद्धिसागरआत्ममहावीर, आपोआप सुहावे हो. भविजन ॥ १० ॥ ॐ एकतालाभार्थ जलं य० स्वाहा ॥ नवमी समताक्रियापूजा. समताथी पूजो प्रभु, विभुमहावीर जिनेश; ज्यां समता प्रगटी खरी, त्यां नहि रागने द्वेष. ॥१॥ सकलसाधना सिद्धता, समता प्रगटे थाय; दायिक समता प्रगटतां, बाकी न कार्य रहाय.॥२॥ आतम ते परमातमा, समभावे प्रगटाय; आपो आपनी पूजना, अकता अनुभव पाय. ॥३॥ ( मेतारज मुनिवर धन्य धन्य तुम अवतार. ए राग.) समतारससागर प्रभुजी, वीरजिनेश्वर देव; समभावे प्रभु सेवतांजी, नासे कर्म कुटेव. महावीर जिनेश्वर, धन्य धन्य तुम उपदेश, ॥१॥ जडचेतनमयविश्वमांजी, समभावे उपयोग, विषमपणुं For Private And Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रगटे नहींजी, समता आनंदभोग. महावीर० ॥२॥ खंधकशिष्यो पांचशेजी, प्राणांते समनाव, मोहने मार्यों बेवटेजी, धन्य ए समतादाव. महावीर ॥३॥ मुनिमेतार्य समपणुंजी, धायु छंडयो देह, शुभाशुभ बुद्धि विनाजी, पाम्या मुक्तिगेह. महावीर ॥४॥ समताभावने आदयोंजी, गजसुकुमाल मुनीश, देहनी ममता परिहरीजी, सोमिलपर नहि रीस, महावीर० ॥ ५॥ अन्यतीर्थियो पण लहेजी, समताभावेरे मुक्ति, समता ते पाम्या पछीजी, नहीं तपकिरिया रीति. महावीर० ॥ ६ ॥ दर्शन ज्ञानचरण सकलजी, समतामांही सुहाय, समता प्रगटे सिद्धताजी, एकपलकमां थाय. महावीर ॥ ७॥ काने खीला मारियाजी, पगपर रांधीरे खीर; तो पण समभावे रह्याजी, परमेश्वर महावीर. महावीर॥ ८॥ पार्श्वप्रन्नु समता धरीजी, कमरे की. धोरे रोष; नासापर जल आवियुंजी, तोपण रोष न तोष. महावीर ॥९॥ वृत्ति शुभाशुभ नहीं रहेजी, प्रगटे केवलज्ञान; आपोआप प्रभु विजुजी, चिदानन्द नगवान्. महावीर ॥१०॥ ग्रहणत्यागइच्छा न. हीजी, वर्ते पूर्वप्रयोग, समभावे शुद्धातमाजी, चि. दानंद गुणभोग. महावीर० ॥ ११ ॥ शुभाशुभवृत्ति For Private And Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ विनाजी, कर्मनिकाचितनोग; जोगवतां तनु वर्त. तांजी, केवलज्ञाननो योग. महावीर० ॥१२॥ हर्षशोकसुखदुःखमांनी समतानावरे वर्त, बुद्धिसागरयात्ममांजी, अनंत आनंद शर्त. महावीर ॥ १३ ॥ कलश-गीत. ॥ राग धन्याश्री ॥ गायो गायोरे महावीरजिनेश्वर गायो. नवविध किरिया नक्तिश्री पूज्यो, आतम अनु. भव पायो; एकता लीनतासमतायोगे, सहजस्वभावे सुहायोरे. महावीर० ॥१॥ श्रद्धाप्रीतिपूजन अर्चन, स्पर्शननाव लहायो; दास्यने सख्यने आतमक्ये, अमृतकिरियाए छायोरे. महावीर ॥२॥ नवधानक्ति सापेक्षाए, अनेकनेदे ध्यायो; अभेदनावे अद्वैतनक्ति, करतां सुख प्रगटायोरे. महावीर ॥३॥ सम्यग्दृष्टिए नक्तिनां अंगो, ग्रहीने सापेक्षभाव; आतमशुद्धि करीए रंगे, सहेजे आत्मस्वभावरे. महावीर ॥ ४॥ भक्तिना तानमां भेद न नासे, आतमज्ञाने प्रकाशे; नवविधकिरिया अक्रियपदने, For Private And Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५३ श्राप परमोल्लासेरे. महावीर ॥ ५॥ अन्योअन्यने विषगरलथी, विश्वभ्रमणता यावे; तद्धेतु अमृत किरियायोगे, परमानंद सुहावरे. महाधारण ॥ ६ ॥ म्हारे तो गुरुकृपा पसाये, अमृत आनंद आयो; आपोआप स्वरूप सुहायो, अक्रिय अनुनय पायोरे. महावीर ॥७॥ ओगणिश अठ्योत्तरनी साले, ज्ञान पंचमी शुक्रवारे; नवधाकिरियापूजा रची शुन्न, भव्यजीवोने तारेरे. महावीर ॥८॥ सानंद सं. घनी शुभभक्तिए, कर्यु चोमासु भावे; पूजा रचंतां अनुभव थानंद, प्रगटयो भक्ति प्रभावरे. महावीर ॥ ९ ॥ शासननायकवीरजिनेश्वर, श्वेतांबरमुनि राजा; तपगच्छजगगुरुहीरविजयसूरि, संयमीगुण शिरताजारे. महावीर ॥ १०॥ पट्टपरंपराश्रीनमिसागर, रविसागरगुरुराया; श्रीसुखसागरसमता दारया, संवेगीशिर उहाबारे. महावीर० ॥ ११ ॥ गुरुकृपाए पूजा रची शुभ, संघ सकलहितकारी; बुद्धिसागरमंगलमाला, आनंदघन अवतारीरे. महा. वी (७ ॥१२॥ ॐ ततालाभा ज य स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ अष्टकर्मसूदनार्थ अष्टप्रकारीपूजा. परमेश्वर महावीरजिन, तीर्थकर जगदेव; परमप्रभु परमातमा, नावे करीरे सेव. ॥१॥ अष्ट कर्मना नाशहेत, पूजा अष्टप्रकार; रचतां गुण अठ संपजे, प्रगटे शांति अपार. ॥२॥ तेमाटे पूजा रचुं, संदेपे हितकार, प्रभुमहावीरदेशना, अनु. सारे सुखकार. ॥३॥ प्रथम ज्ञानावरणीयकर्मसूदनार्थ जलपूजा. ( न्हवण नी पूजारे निर्मल आतमारे. ए राग ) न्हवणनी पूजारे भवि नावे करोरे, प्रभुमहावीरनी सत्य; छानविना अज्ञाने प्राणियारे, करता आस्रव कृत्य. न्हवण ॥१॥ ज्ञानावरणे ज्ञान न संपजेरे, भवमा भम थाय; ज्ञानावरणनी पांच प्रकृ. तिछेरे, ज्ञानाच्छादनन्याय, न्हवण ॥२॥क्षयोपशमने क्षायिक नावथीरे, ज्ञानावरण विनाश; मति श्रत अवधि मनपर्यवअनेर, अगटे केवल खास. For Private And Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३५५ · न्हवण० ॥ ३ ॥ मतेि अट्टावीशनेदेवे तथारे, त्रणशेचालीश भेद, श्रुतछे चउद ने वीशभेदधीरे, प्रगटे नासे खेद न्हव० ॥ ४ ॥ असंख्य प्रकारे अवधिज्ञानछेरे, मनपर्यव बे भेदः केवलज्ञान ते एक प्रकारखेरे, प्रगटेछे निर्वेद. न्हवण० ॥ ५ ॥ ज्ञानावरणी ज्ञानने रोधतुरे, तेनो नाश जो थाय; तो प्रगटेछे ज्ञानप्रकाशतारे, नहि अज्ञान रहाय न्हवण० ॥ ६ ॥ ज्ञानने ज्ञानी सेवाभक्तिथीरे, वसतां गुरुकुलवास; ज्ञानावरणीकर्मविनाश बेरे, टळतां मोहविलास. न्हवण० ॥ ७ ॥ ज्ञानीनी निंदा यशातनारे; तजजो नरने नार; श्रुतज्ञानी गुरुना भक्तोनोरे, प्रगटे, ज्ञान उदार न्हवण० ॥ ८ ॥ भणो जावो श्रुतने भविजनारे, अनुमोदो यो दान; बुद्धिसागर आत्मशुद्धतारे, प्रगटे केवल ज्ञान. न्हवण० ॥ ९॥ स्वाहा ॥ ॐ ह्रीं श्री प० ज्ञानवरणसूदनार्थं ज० य० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 105 For Private And Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वितीया दर्शनावरणीयकर्मसूदनार्थ चन्दनपूजा. दर्शनावरण हठाववा, चंदनपूजा सार; दर्शनावरणनी प्रकृति, नव कीजे परिहार. ॥ १ ॥ चक्षुयादि चारनां, आवरणो डे चार; पांचे निद्रा त्यागतां, दर्शनगुण जयकार. ॥२॥ देवगुरुने धर्मनी, डा. शातनथी कर्म, बंधातां ते जाणीने; सेवो जिनवर धर्म. ॥३॥ (सांभळशो मुनि संयमरागे-ए राग.) चंदनपूजाए प्रभु चों, निजआतमने अचोरे; दूर करो झट कर्मनो फडचो; राखो न नेदनो कों रे. चंदन ॥१॥ दर्शनावरणना क्षयोपशमथी, दायिकथी गुण प्रगटेरे चकु अचकु अवधि केवल, दर्शनी दुःख विघटेरे. चंदन ||२|| दर्शननु आवर्ण करे ते, दर्शनावरणी जाणोरे, दर्शनावरणने हणवा माटे, सेवाभक्तिप्रमाणोरे. चंदन० ॥ ३॥ गुरुनी श्रद्धाप्रीतियोगे; आशातनने वियोगेरे; सदगुण गणना पूर्णप्रयोगे, वर्ते न हर्षे शोकेरे. चंदन ॥४॥ दर्शनावरण टळे के क्षणमा, ज्ञानने ध्यानाभ्यासरे; समताभावे कर्म करंतां, दर्शनशक्ति प्रकाशेरे. चंदन ॥ ५॥ पांचप्रकारनी निद्राक्षयथी, दर्शनगुण झट For Private And Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५७ प्रगटेरे; आतमदर्शनअनुभव आवे, मिथ्याबुद्धि विघटेरे. चंदन ॥ ६ ॥ चंदनसमदर्शनशीतलता, भावे आतम पूजोरे; निंदाविकथापरपरिणतिथी, मनमां लेश न मुंझोरे. चंदन० ॥ ७॥ जिनवरपूजा ते निजपूजा, शुद्धातम उपयोगेरे; केवलज्ञानने के. वलदर्शन, प्रगटे निजगुणभोगेरे. चंदन ॥ ८॥ दर्शनावरणीयकर्मने हणवा, स्थिर उपयोगे रहेशोरे: बुद्धिसागरआनंदमंगल, परमप्रभुता लेशोरे. चंदन ॥ ९॥ ॐ ५० दर्शनावरणीयकर्मसूदनार्थ चंदनं य स्वाहा ॥ तृतीयावेदनीयकर्मसूदनार्थ पुष्पपूजा, शाताअशाता वेदनी, सुखदुःखफलदातार; सुखदुःख वेदे सर्वजीव, लक्षचोराशी मझार. ॥१॥ सुखदुःख मोहथी वेदतां, थातो कर्मनो बंध; सुख दुःखमा समभावथी, आतमछे निर्बन्ध. ॥२॥ आतम सुखने वेदवा, पुष्पे पूजो राज; आत्ममहावीर प्रगटतां, सफलां सर्वे काज, ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ ( इडर आंबा आंवली. ए राग. ) पूजो प्रभु महावीरनेरे, जेणे जणाव्यो धर्मः पुष्पमाल प्रभु कंठमारे, स्थापतां शिवशमेरे. नविजन !! पूजो महावीरदेव, फळती प्रभुनी सेवरे, भवि जन !!! पूजो० ॥ १ ॥ शाताअशाता वेदतारे, समभाव पुष्पनी माळ, धारंतां प्रभु कंठमार, रहे न मोहनी जाळरे. भविजन !! पूजो० ॥२॥ छाया ताप पर आ वतुंरे; सुखदुःख वाराफेर; पुण्यपापकर्मों फळेरे, करो न राग न वैररे. जविजन ! पूजो महावीर देव. ॥३॥ सुखदुःख वेदे समपणेरे, अधिकारे करे काज; सहज समाधि ते योगछेरे, प्रगटे शिवसाम्राज्यरे. भविजन !! पूजो० ॥ ४ ॥ शुद्धोपयोगे वर्ततांरे, वर्णादिक करे कर्म; बाहिरव्यवहार साधतारे, वर्ते आतमधर्मरे. भवि० पूजो० ॥ ५ ॥ बाहिर वर्ते बाह्यमांरे, अंतरमां उपयोग, निर्बंध यात वर्ततोरे, भोगवतो सहु भोगरे, भवि० पूजो० ॥ ८ ॥ सुखदुःख वंदनी भोगमारे, घरे न सुखदुःखबुद्धि; यातसमां सुख अनुजवेरे, प्रगटे सिद्धनी ऋद्धिरे, भवि० पूजी० ॥ ७ ॥ सुख आवे हर्षे नहीं, दुःख गटे नहीं शोक; सुख दुःख बुद्धि न भोगमारे, तेने पुरणयोगरे भविजन ! For Private And Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजो० ॥ ८॥ कर्म निकाचित प्राट तारे, सुखःव भोगवे जोग; भोगी अनोगी अंतरविषेरे, योगे वर्ते अयोगरे. भविजन! पूजो० ॥ २॥ चक्री इन्द्रादिक भोगमारे, रहे न सुखनी वृत्ति; आतमसुखअनुभव थतारे, जीवंतां निलिरे, भविजन! पूजो० ॥ १० ॥ प्रज, महावीर देवनारे, एवो ने उपदेश; बुद्धिसागर आतमारे, आनंदरूप हमेशर. नविजन! पूजो० ॥ ११ ॥ ॐ प0 वेदनीयकर्ममूदनार्थ पुष्पं य० स्वाहा ॥ चतुर्थी मोहनीयकर्मसूदनार्थ धूपजा. दर्शनचारित्रमोहनी, सर्वकर्मशिरदार; मोह टळ कर्मो सकत, विगसंता निर्धार. ॥ १॥ मोह तणा परिणामी, आठकर्म बंधाय; निर्मोही आतम पण, शुद्धातम प्रगट य. ॥२॥ ध्यानप प्रभु आगळे, करतां नहि दुगेध; आतम आत्मपणे रमे, यातम वर्ने अबंध. ॥ ३॥ For Private And Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( दशमे देशावगाशिकरे, चउद नियम संखेव-ए राग. ) धन्य महावीर जगधणीरे, केवलज्ञानी देव; आतमध्यानना भूपथीरे, साधु ताह्यरी सेव हो. जिनवर !!! आतमसुखने आपशोरे, रोमेरोमे व्यापशोरे; ताह्यरो रहो उपयोग. ॥१॥ दर्शनमोहनी नाशथीरे, प्रगटे समकितधर्म: चारित्रमोहनी ना. शथीरे, प्रगटे आतमशर्म हो. जिनवर !!! आतम॥२॥ अहावीश मोहप्रकृतिरे, क्षयोपशम तस होय; उपशमदायिकभावथीरे, शुद्धपरिणति जोय हो. जिनवर !! आतमः ॥ ३ ॥ लकलकर्ममा मोहनरे, अनंतगणुं ठे जोर; मोइ टळे बीजां टळेरे, नासे छे जेम चोर हो. जिनवर !!! बातम०॥2॥ निर्मोहनावे वर्तवूरे, आतमधर्म छे एह; आतमशुद्धोपयोगीरे, रहे न मोहनीरेह हो. जिनवर !! आतम० ॥५॥ अव. ततजी व्रत आदरोरे, धारो संवरनाव, निर्जरातु आदरोर, आतमशहिदावहो. जिनवर !! आत न ॥६॥ आतमज्ञानने पामतारे, प्रगटेछे वैराग्य, आतम्ना उपयोगीरे, वर्ते सहेजे त्यागहो. जिनवर !!! आतम० ॥ ॥ जिन आगमगुरूसंगतिरे, करतां संतनो संग; निर्मोहनावे आतमारे, परिणमतो जिनरंगहो. जिनवर !! यातमम् ॥८॥ देवगुरुने For Private And Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मनेरे, आराधे मोह जाय; रवि उगे परभातमारे, तम तो दूर पलायहो. जिनवर !! आतम ॥ ९ ॥ गृहीत्यागीदशाविषेरे, करतां व्यवहारकर्म; निमोहे नहीं कर्मछेरे, प्रगटे मुक्तिशर्महो. जिनवर !! आतम ॥१०॥ ज्ञानक्रियाथी मोहनोरे, क्षय क्षणमांहे थाय; नामरूपनिर्मोहथीरे, केवलज्ञान सुहा. यहो. जिनवर !! आतम ॥ ११ ॥ आतम आतमने दियेरे, प्रभुनक्ते निजमुक्ति, बुद्धिसागर आत्म. नारे, उपयोगे नहि नीतिहो. जिनवर !! आ० ॥१२॥ ॐ प० मोहनीयकर्मसूदनार्थ धूपं य स्वाहा ॥ पंचमी आयुःकर्मसूदनार्थ दीपपूजा. सुरनर तिर्यच नरकनु, आयुः चार प्रकार; चार गतिमां आयुथी, तनुस्थिति छ निर्धार. ॥१॥ चारगतिमा आयुथी, बंधावानुं थाय; अनंतजीवन पामतां, आयुबंधन जाय. ॥॥ ज्ञानदीप प्रगटावीने, पूजो प्रभु जिनराज; अनंतशाश्वतजीवनने, पामो सिद्धे काज. ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (मल्लिजिननायजी व्रतलीजेरे. ए राग.) प्रभु महावीरपर धरो प्रीतिरे, टाळो दुष्टाचार अनीति. प्रभु० ॥ द्रव्यदीपक धरी भावदीवारे, प्रगटावी अनंतुं जीवोरे; प्रनुवचनामृतने पीवो प्रभु ॥१॥ पुण्ययोगे सुरनर आयरे, प्रायः तिर्यंचआयु बंधायरे, पापे नरकतिरिआयु थाय. प्रभु० ॥२॥ आयुः कर्मतणी ए मायारे, जेवा पाणीमां पडछायारे; ज्ञानी भक्तो नहीं मुंझाया. प्रभु० ॥ ३ ॥ स्थिति अनंत पामीने ठरवुरे, पछी जन्ममरण नहि करबुरे; एवं शुद्धातमपद वरवं. प्रभु० ॥ ४ ॥ मोह योगेछे आयुष्यबंधरे, निर्मोहे वर्ते अबंधरे; परभा. वनी होय न गंध. प्रभु० ॥ ५॥ पूर्वकर्मनिका. चितभोगोरे, तेवा मळता सर्वसंयोगोरे; वर्ते अंतरमां योगो. प्रनु० ॥६॥ ज्ञानीने जे आस्रवकर्मोरे, परीणमे ते संवरधर्मोरे; टळे ज्ञाने मिथ्यानो. प्रभु० ॥ ७ ॥ श्रुतदीपकथी प्रभु पूजेरे, शुद्धआत्म स्वरूप झट सूजेरे; पामी आतम मन नहीं मुंझे.प्रभु ॥८॥ शुद्धआत्मस्वरूपना रसियारे, गति उतां न गतिमांहि वसियारे; कर्मयोगी अकर्म उल्लसिया. प्रमु० ॥ ९॥ गति आयु बंदिखानुरे, तनु हेम For Private And Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६३ समुं न मझानुंरे; त्यांतो ज्ञानीने रुचे शानुं ? प्रभु० ॥ १० ॥ मनुजवमां थायछे मुक्तिरे, ज्ञानवैराग्य व्रत धरो नीतिरे; टळे सर्वप्रकारनी जीति प्रभु० ॥ ११ ॥ एवी प्रभु महावीरनी वाणीरे, ज्ञानवैराग्यथी दिल आणीरे; प्रभुपूजा करो गुणखाणी. प्रभु० ॥१२॥ ज्ञानानन्द अनंतपद वरवारे, भवपाथोध वेगे तरवारे; बुद्धिसागरगुरु अनुसरवा. प्रभु० ॥ २३ ॥ ॐ० प० आयुः कर्मसूदनार्थ दीपं य० स्वाहा || षष्ठीनामकर्मसूदनार्थ अक्षतपूजा. · नामकर्मनी प्रकृति, एकसोत्रण छे सर्व देहादिकमां मोह वा, करवो नहि कंइ गर्व ॥ १ ॥ नाम कर्मना यथकी, अरूपपद प्रगटाय; रूपीपणु नहि आत्मनुं, रूपादिक जडमांद्य ॥ २ ॥ अक्षयरूप बे आतमा, अक्षत करवाहेत; व्यवहारे अक्षतथकी, प्रभुपूजासंकेत. ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ ( सनेही संत एगिरि सेवो. घउदभुवनमां तीर्थं न एवो. स० - एराग . ) प्रभु महावीरजिन जयकारी, पूजो अक्षतथी सुखकारी. प्रभु ॥ प्रकृति रस स्थिति प्रदेश, चारेभेदे बंध न लेश; सत्ता उदीरणा नहीं कुलेश, टाळ्या राग अने मनद्वेष प्रभु० ॥ १ ॥ टाळ्या कर्मविपाको सर्वे, रही शुक्लध्याने अगर्वे; रह्या नहीं परपुद्गल जर्मे, मुंइया नहि मिथ्याजरुशर्मे प्रभु० ॥ २ ॥ नामरूपमां निर्मोहजावे, रहे जे कोइ साक्षीना भावे, नामकर्मथी छूटो थावे, शुद्ध अरूपपद निज पावे. प्रभु० ॥ ३ ॥ नामकर्मप्रारब्धना जोगो, अनासक्ति वर्ते योगो; थाय नहीं कंइ हर्ष न शोको, थाय विषम न प्रकटे रोगो. प्रभु० ॥ ४॥ थतां केवल नाम रहेछे, आयुपर्यंत तेह बहे; समभावे ज्ञानी सहेबे, शुद्ध आत्मरमणता चह. प्रभु० ॥ ५ ॥ प्रभु सरखा थावामाटे, वो केवल ज्ञानीनी वाटे; माल वेचायछे गुरुहाटे, लेजो स्वार्पण करी शिरसाटे. प्रभु० ॥ ६ ॥ नामरूपअध्यासने त्यागो, शुद्ध आत्मभावे जागो; त्याग ग्रहमां मनथी न लागो, मोहभावथी दूरे जागो. प्रभु० ॥ ७ ॥ नामकर्म अघातीछे जाणो, ज्ञान प्रगटे अबंध प्रमाणो; निमोंही आतमराणो, निजगुणश्री For Private And Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६५ खेले मझानो प्रभु ॥ ८ ॥ नामकर्मने परोपकारे, वापरो जैनधर्म प्रचारे; वापरे ते धर्म न हारे, करो कर्तव्य निज अधिकारे प्रभु० ॥ ९ ॥ एवी वीर प्रजुनी वाणी, सर्वनयथी यथातथ्य जाणी; श्रद्धा प्रीतिए मनमां खाणी, कर्मतलने पीलवा घाणी. प्रजु० ॥ १० ॥ नामरूपमां नहीं मुंझाशो, शुद्ध उपयोगथी सुख पाशो; बुद्धिसागरदिल दरखाशो, चिदानंदस्वरूप प्रकाशों. प्रभु ॥ ११ ॥ ॐ प० नामकर्मनाशार्थ अक्षतं य० स्वाहा ॥ सप्तमी गोत्रकर्मसूदनार्थ नैवेद्यपूजा. उच्च नीच व्यवहारथी, निश्चयथी नहीं कोय; उच्चनीच जडमोहथी, आत्मस्वरूपे न जोय. ॥ १ ॥ उच्च नीच वे गोत्रछे, यश अपयश करनार, मान अने अपमानना, हेतुबे व्यवहार ॥२॥ जिनवरमहावीरबोधथी, उच्च नीच वे भेद; बेमां समभात्रे रहे, ज्ञानीने निर्वेद ॥ ३ ॥ उच्च नीच वे प्रकृति, तेमां निर्मोहहेत; नैवेद्यपूजानो भलो, द्रव्यजावसंकेत. ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (प्रभु प्रतिमा पूजीने पोसह करीए रे.-ए राग.) महावीर जिनवर पूजीने गुण लीजेरे; उच्चने नीचनो भेद विसारीए, निज आतमनुं शुद्धस्वरूप विचारोरे, पुद्गलनी माया जूठी धारीए, आतमछे सरखा मन अवधारीए, कुलादिकमदने प्रगट्यो वारीए. ॥१॥ उच्चपणाना माने हर्ष न धरीएरे, जातिना अनिमानेरे धर्म न हारीए; सत्ता विद्या लक्ष्मी आदि मोहेरे, भूलंतां भानरे निज नहि तारीए. आतम ॥ २॥ कर्मनी माया पापीना पडगयारे, उंचने नीचना भेद नहीं खरा; समज्या ते मुंझाया नहि नरमायारे, पाम्यारे आनंद अमृतना झरा. आतम० ॥ ३ ॥ चडती पडती उच्च नीच अवतारोरे, संसारे एह अवस्था सर्वनी; परने पोतार्नु मानी शुं ? फूलोरे, छाजे नहि कोइ अवस्था गर्वनी. आतम० ॥ ४॥ आठमदे नरिया जीव दुःखने वरियारे, स्वन्नानी बाजीर जूठी जागतां; उच्चने नीच पणुं स्वप्नानी बाजीरे; आतमरे अगुरुलघु घट लागतो. आतम० ॥५॥ कुल विद्या लक्ष्मी सत्ता हिणाइरे, पामंतां हर्ष न उद्वेगे रहो; उच्चनीचनी माया स्वप्ना जेवीरे, जाणीरे समभावे जीवन वहो. For Private And Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तमः ॥६॥ मान अने अपमानने लानाला. भेरे, समताने धारी कर्तव्यो करो; योगी भक्तजीवन एवं आतमनुरे, परमातम प्रगटावी मुक्ति वरो. आतम ॥ ७ ॥ उच्चने नीचना भेदे नहि मुंझाशोरे, खत्तारे खाशो पडती पामशो; आतमने कदि नीच न मानो भव्योरे, बाहिरनी वृत्तिथकी विरामशो. आतम० ॥८॥ उच्चने नीचनी भ्रांति, कर्मनी दृष्टेरे, आतमनी दृष्टिए क°छे नहीं; आतमदृष्टि जीवनथी संचरशोरे, परमानंद पामोरे अधिकारे वही. आतम० ॥ ९ ॥ उच्चनीचना भेदे सुखदुःखवृत्तिरे, स्वप्नामां ए जागतां नहीं; कर्म अभ्रथी उंचा ज्ञानी जाग्यारे, स्वप्नामां नेद खेद प्रगटे सही. आतमम् ॥ १० ॥ अगुरु लघुछे आतम निज अनुजवतोरे, तेनीरे आगळ कर्म ते शुं को; बुद्धिसागरातमरविझळहळतोरे, केवलज्ञानज्योतेरे प्रनुपदने वरे. आतमण ॥ ११ ॥ ॐ प० गोत्रकर्मविनाशाय, नैवेद्यं या स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ अष्टमी अंतरायकर्मसूदनार्थे फलपूजा. दान लाभने जोगने, वीर्य ने उपभोग; पांच तां आवर्णने, हणतां निजगुणयोग. ॥ १ ॥ अंतराय हणवा भवी, फलथी पूजो देव द्रव्यजावथी शक्तिने, पामो करी जिनसेव ॥ २ ॥ दानादिक आवर्णनो, क्षयोपशम क्षय थाय, दानादिक निज शक्तियो, प्रगटे धर्म सुहाय ॥ ३ ॥ (वाजां वाग्यांरे प्रभु दरवाररे, मोहन वाजां वागियां ए राग. ) मुक्तिफलने पात्रा हेतेरे, फले प्रभु पूजीए; सर्व इच्छाओ करीने निरोधरे, निजातम रीजीए;गुणपर्यायदान निज दीजीए, चिदानंदनो लाभज निजरे, फले॥ गुणपर्याय भोगोपभोगमां, परपुद्गलनी नहीं खीजरे. फले ||१|| शुद्ध आतमबन प्रगटावीए, दुष्ट टाळीए पशुवळ वेगरे. फले ॥ मन इन्द्रि योमा पशुबल वसे, तेथी करीए नहिं अविवेकरे. फले || २ || लब्धि शक्तियो ने प्रगटावीए, नही रीजीए स्वीजीए वाझरे. फले० ॥ परमार्थमां तनमन वापरो, करो विश्वमां सारां काजरे. फले ॥ ३ ॥ जैनधर्मने संघनी उन्नति करवामां होमशो सर्वरे, फले० अणशक्तिए खेद न कीजीए, होय शक्ति , For Private And Personal Use Only 4 Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३६९ बतां नहि गर्वरे. फले० ॥ ४ ॥ देवगुरुने धर्मनी भ क्तिमां, मृत्यु यातां न हठीए लगाररे, फले॥ खेद भय ने द्वेषने त्यागीए, करो परमार्थों नरनाररे. फले० ॥ ५ ॥ समजावथी कर्मातरायनो, क्षयोपशम क्षय झट थायरे, फले ॥ दानवानादि वापरो जावथी, थतां निष्काम मुक्ति सुहायरे. फले० ॥ ६ ॥ जीव अजीव उपकार सहजछे, एतो थाय परस्पर जाणारे. फले० || दानादिकप्रवृत्तिनिवृत्तिमां, शुद्ध उपयोग दृष्टि प्रमाणरे फजे० ॥ ७ ॥ देशो तेवुंज नक्की पामशो, वावो तेवुं फले निर्धाररे, फले० ॥ बाह्यफल मिषशिवफल पामवा, लहो सहजसमाधिसाररे. फले० ॥ ८ ॥ ज्ञानपरमानंदफल जीवतां, बही मुक्तिअनुभव थायरे. फले० ॥ सर्वकर्तव्य कर्मों कर्या करो, तेथी शक्तियो प्रगटी सुहायरे. फले० ॥ ९ ॥ शुद्ध आतमप्रभुमहावीरछे, एवा निश्चयथी जाय दुःखरे, फले० ॥ बुद्धिसागरशुद्धप्रभु विभु, आपोआप अनंतुसुखरे. फले० ॥ १० ॥ ४७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७० कलश ॥ गायो गायोरे महावीरजिनेश्वर गायो, अष्टकर्मनिषूदनहेते, अष्टधापूजा गायोरे. महावीर बातम साथे काल अनादि, कर्मबंध व्यवहारे; कर्मः नो कर्ता भोक्ता आतम, रागद्वेषविकारेरे. महावीर० ॥ १ ॥ बंध उदय उदीरणा सत्ता, कर्मभेद व्यवहारे, प्रारब्ध संचितने क्रियमाण ज, अशुद्धनय उपचाररे. महावीर० ॥२॥ सम्यगज्ञान वैराग्य ने त्यागे, वर्ते साक्षीनावे; कर्मशुनाशुभसुखदुःख फळने, वेदो समतादावरे. महावीर० ॥३॥ ज्ञान ध्यानथी क्षणमा मुक्ति, निर्मोह कर्म करंतां, गृहीने त्यागी निज अधिकारे, गुणकमें विचरंतारे. महावीर० ॥ ४ ॥ द्रव्यार्थिकशुद्धनयदृष्टिए, कर्मनो कर्ता न हर्ता, आतम सत्ताए निर्लेपी, बे नय समजे संतारे. महावीर० ॥ ५॥ व्यवहारने निश्चय बेनयथी, सापेक्षाए जाणो; निश्चयष्टिना उपयोगे, रहीने अनुभव म्हाणोरे. महावीर० ॥६॥ पुण्य पाप बे भेदमां साठे,-कर्मो समा जातां, आस्रवमांही पुण्य पाप बे, अंतर्नावी थातारे. महावीर ॥ ७ ॥ तमोरजोगुणसत्वनीवृत्ति, मोहनी नाही समाती; मोहनी जीते जीत्यां बाकी, सम्यगहष्टि For Private And Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७१ सुहातीरे. महावीर० ॥ ८ ॥ रागरीस अरि जीत्या अरिहंत, महावीरकेवलज्ञानी; प्रभुए कर्मस्वरूप प्रकाश्यं, समजे समकीती ज्ञानिरे. महावीर० ॥ ९ ॥ पुनर्वेधक नहींबे ज्ञानी, नहीं पुद्गल अभिमानी; अल्पबंध महानिर्जरा करतो, निर्मोहनावे ध्यानीरे. महावीर० ॥ १० ॥ सम्यग्ज्ञाने बळियो आतम, अज्ञाने बळियुंबे कर्मः कर्मनिकाचितप्रारब्ध भोगमां, उपयोगे आतमशर्मरे. महावीर० ॥ ११ ॥ ओगणित अठयोत्तरकार्तिकसुदि, आठम मंगलवारे; पूजी रचीने आनंद पाम्यो, प्रभुवाणीना प्यारेरे. महावीर० ॥ १२ ॥ सानंद शहरमां चोमासुं कर्यु, संघनी भक्ति सारी; जिनवर महावीरपट्टपरंपरा, तरगच्छ जगजयकारीरे. महावीर० ॥ १३ ॥ जगगुरुहीर विजयसूरिराजा, पट्टपरंपरा छाजे, श्री नेमिसागर रविसागरजी, सुखसागरगुरुगाजेरे. महावीर० ॥ १४ ॥ गुरुकृपाए पूजा रची शुभ, संघमां श्रानंदकारी, बुद्धिसागरसूरिमंगल, जिनशासन जयकारीरे. महावीर० ॥ १५ ॥ ॐ प० अंतरायकर्मनाशार्थ फलं य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ षडावश्यकपूजा. श्रीपरमेश्वरवीरजिन, चोवीशमा जिनराज; त्रिशलानंद जगधणी, सर्वदेवशिरताज. ॥ १ ॥ समवसरणमां बेसीने, भाख्यो साचो धर्म; षट् थावश्यक भाखियां, गृही साधुनां कर्म. ॥२॥ षट् आवश्यककर्मथी, चित्तनी शुद्धि थाय. मनशुद्धिथी पातमा, केवलज्ञानने पाय. ॥३॥ सामायिक चउविशजिन-, स्तव गुरुवंदन बेश; प्रतिक्रमण आवश्यके, नासे कर्मना कलेश. ॥४॥ कार्योत्सगने आदरे, करतां प्रत्याख्यान; आत्मशुद्धिथी प्रगटतुं, सहेजे केवलज्ञान. ॥ ५॥ षडावश्यकनी रचुं, पूजा द्रव्यने भाव; नेदे उपयोगे भली, भवोदधिमां नाव. ॥ ६ ॥ अष्टप्रकारे पूजना, प्रत्येक पूजा दीप, आत्मानुन्नव पामवा, ज्ञानक्रियाथी मिष्ट. ॥७॥ प्रथमा सामायिकआवश्यकपूजा. सामायिक करतां थकां, रागद्वेषविनाश; क्षमां केवल उदभवे, नासे भाव उदास ॥ १ ॥ अनंतजीवो पामिया, समतायोगे मुक्ति; समतावण For Private And Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७३ मुक्ति नहीं, साधे कोटि युक्ति, ॥ २ ॥ सर्वधर्म मतपंथमा, समत्वथी बे मोक्ष; समत्वपणुं सहु धमां, मुक्तिभाव परोक्ष. ॥ ३ ॥ सर्वव्रतादिक सार छे, समता धारो भव्य; समत्व सामायिक भलुं, आवश्यक कर्तव्य. ॥ ४ ॥ नयव्यवहारथी बेघमी, आराधो नरनार, निश्चयसमता हेतुछे, सेवो भवि सुखकार. ॥ ५ ॥ चउनिक्षेप धारीए, सातनये ते जाण; द्रव्यजावथी सेवतां, प्रगटे सम्यग्ज्ञान. ॥ ६ ॥ समताभावछे सर्वदा, त्यागीनिश्चयभाव; समता ते चारित्रछे, उपयोगे दिल लाव. ॥ ७ ॥ ( प्रभुपडिमा पूजीने पोसह करीएरे - ए राग. ) समताभावे सामायिकमां रहीएरे, सामायिक योगे शिवसुख थाय छे; समजावे रहेवाथी अनुभव जागेरे, स्थिरताना योगे तत्त्व जणायडे, अंतरना उपयोगे धर्म ग्रहाय छे, चंचळता मननी दूरे जाय छे; वैराग्ये जाव भलो परखाय छे, धन्य धन्नरे समताजा सुहाय छे. अंतर० ॥१॥ गुरुमुखथी सामायिक उच्चरे श्रावकरे, लाखचोराशी जीवयोनिने खमावतो; दश मनना दश वचनना द्वादश कायारे, बत्रीशदोषो टाळी आतम भावतो. अंतर० ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३७४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिंडस्थादिक चारध्यानने धरीएरे. वरीएरे धर्म शुक्ल वे ध्यानने; आर्त रौद्र वे ध्यान बूरां परिहरीएरे, तजीएरे माया ममता मानने अंतर० ॥ ३ ॥ धर्मग्रंथने जणीए गणीए जावेरे, विकथानी वातो लेश न कीजीए, द्रव्यने गुणपर्यायी वस्तु विचारीरे, वस्तुस्वभाव धर्म ग्रहीने रीझीए अंतर० ॥ ५ ॥ स्थिरउपयोगे ध्यानसमाधि वरीएरे, झळकेरे ज्योति आतमरामनी; श्वासोश्वासे अजपाजापे स्मएरे, वाटेने चालो अविचळ धामनी. अंतर० ||५|| आत्मज्ञानथी सत्यसमाधि पामोरे, वामोरे रागद्वेष वे दोषने मैत्री प्रमोद करुणामाध्यस्थ विचारोरे; धारीरे निरुपाधिसुखपोषने अंतर ॥ ६ ॥ नय निक्षेपे सामायिकने समजीरे, कीजीये सामायिक शिववेल की; समतामृतभोजनथी प्रगटे शान्तिरे, समतानी यागेरे शुं छे ? शेलडी. अंतर० ॥ ७ ॥ सिद्धसमा समताथी सर्वे जीवोरे, भटकेरे कर्मथकी संसारमा कर्मदोष त्यां जाणी जीव खमावोरे, समतानो ल्हावारे मनु अवतारमां अंतर० ॥८॥ जाग ! जाग ! चेतन तुं सामायिकमांरे, मुंझीश नहि मुसाफर मायाजाळ मां; बुद्धिसागर सामायिक उपयोगेरे, गाळोने जीवन सहु कल्याणमां. अंतर० ॥ ९ ॥ For Private And Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७५ सामायिक निज आतमा, समता परिणतियोगेरे; परमानंदना भोगमां, वर्ते निज उपयोगेरे; वीर जिनेश्वर नाखता, आत्मस्वभावे रहेशोरे; विषमस्वभावे नहीं रहो, शुद्धपरिणति वदेशोर. वीर ॥ १ ॥ ___ ॐ ह्री श्री परम सामायिकाथ जलं, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, यजामहे स्वाहा. द्वितीया चतुर्विंशतिस्तवपूजा. चोवीशजिनवरने नमो, वंदो पूजो जव्य, स्तवो भक्ति बहुमानथी, ए बीजुं कर्तव्य. ॥१॥ चोवीशतीर्थकर प्रभु, वीतरागभगवंत; स्तवतां ध्यातां आतमा, पामे भवनो अंत. ॥२॥ चंद्रसमा निर्मल सदा, रविथी अनंतप्रकाश, एवा चोवीश विभु, ध्यातां आत्मविलास. ॥३॥ सागरवत् गं. नीर जे, सिद्धगति दातार; प्रभुमय थै प्रभुने स्तवे, स्वयं प्रभु निर्धार. ॥ ४ ॥ ( हे सुखकारी आ संसारथ कीजो मुनने उद्धरे. ए राग.) जग उपकारी चोवीश तीर्थकर मुज मनमांही वस्या, प्रभु जयकारी शुद्धातम उपयोगे अंतर उ For Private And Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ ल्लस्या, चोविश जिनस्तव भावे करतां, अंतरमा उप. योगे वरना, घातीको वेगे खरतां, नरनारी केवल पद वरतां. जग० ॥ १ ॥ एकतान प्रजुसाथे जागे, मनडुं वर्ते प्रभुना रागे; श्रद्धाप्रीतिलय जो लागे, मनडुं वर्ते नववैराग्ये. जगः ॥२॥ प्रभु ज्ञेय स्वनावे घट आवे, कर्तव्य सकलयोगे थावे; बातम निर्लेपपणुं भावे, आतम परमातम थे जावे. जग ॥ ३ ॥ परमातमने दिलमां धारो, आविर्भावे घट उजियारो; नहीं नामरूपनो अहंकारो, कर्तव्य करे आवे पारो. जग० ॥४॥ चावीश जिनवर साथे प्रीति, तेथी नासे सघळी नीति; प्रगटे जगमा साची नीति, प्रामाणिकता साचीरीति. जग ॥५॥ मुजध्याने ध्येयपणे आवो, मुज ज्योते हो आविर्भावो; एकमेकस्वरूपछे ल्हावो, परमानंदे प्रगटे दावो. जग ॥ ६॥ सर्वे जिनवरपूजा गावो, वंदो प्रणमो प्रेमे ध्यावो; ध्येयाकारे घट प्रणमावो; प्रभुसम निज आतम प्रकटावो. जग० ॥७॥ प्रभु स्तवतां केवलने मुक्ति, भक्ति आवश्यकनी रीति प्रभु स्तवतां प्रगटे गुणनीति, आचारे रहे नहि दुर्नीति. जग० ॥ ७ ॥ प्रनुरूपे औकय बनी भळवू, प्रभुज्योते ज्योतथकी मळवू; पछी जगमां नहिछे For Private And Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७७ अवतरवू, प्रनु प्रार्थी निश्चयपद वरवं. जग ॥९॥ प्रभु वीरबोध मनमां वसियो, चोविशजिन स्तवनानो रसियो; बुद्धिसागरप्रभु उल्लसियो, शुद्धातम जावे विकसियो, जग ॥ १० ॥ प० चतुर्विंशतिस्तव आराधनार्थ जलंग य० स्वाहा ॥ तृतीया गुरुवन्दन आवश्यकपूजा, दुहा, आवश्यक गुरुवन्दना, प्रतिदिन त्रएये काल, करतां ज्ञानादिक गुणो, प्रगटे मंगलमाल. ॥१॥ श्रद्धा प्रीति नावथी, गुरु वंदंतां ज्ञान; गुरुवण ज्ञान न थाय छे, गुरुवण होय न सान. ॥२॥ विधिपूर्वक गुरुवन्दना, करतां नासे कर्म; शुद्धातम घट उल्लते, प्रगटे साचो धर्म. ॥३॥ गुरुदीवो गुरुदेव के गुरुनो सत्याधार, गुरुवण मुक्ति न कोइनी, समजो नरनेनार. ॥४॥ वंदो पूजो सद्गुरू, प्रणमो वारंवार; सूरिवाचक यतिसंघनी, भक्ति सदा फळनार. ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ गुरुवंदन आवश्यके, पाम्या मुक्ति अनंत; चनिक्षेपे नये भला, सेवो सद्गुरुसंत. ॥ ६ ॥ दणपण सद्गुरु संगति, टाळे रागने रीस; समकितप्रद गुरु भक्तिथी, मुक्ति विश्वावीस. ॥७॥ ( ध्यानक्रिया मनमा आणीजे. ए राग.) जगगुरु महावीर जिन जयकारी, वंदु वार हजारीरे; गुरु वंदन आवश्यक जाख्युं, जेथी तरे नरनारीरे. जग ॥१॥ गुरुवंदनमां मुज मन राचे,गाजेज्यु घन मोर नाचेरे; रीझे नहि मन कुगुरुकाचे, स्वार्पपता डे साचेरे. जग ॥२॥ गुरूवंदनथी केवल वरिया, अनंतजीवो तरियारे; लघुता विनयवडे संचरिया, गुरुनक्ते जे भरियारे. जग ॥ ३ ॥ सद्गुरूरागे गुण सहु यावे, दुर्गुण सघळा जावेरे; गुरूपदेशे श्रद्धाभावे, शक्ति सकल प्रकटावेरे. जग ॥४॥ सर्व खमा कृत अपराधो, सद्गुरु जगमां लाध्योरे; तुज कृपाए अनुजव वाध्यों, साधनी प्रभु साध्योरे. जग० ॥ ५॥ विधिपूर्वकगुरुवंदन होशो; दुर्गुण स्हामुं न जोशोरे; माफ करो गुरु म्हारा दोषो, मुज आतमने पोषोरे. जग० ॥ ६॥ एवी रीते गुरु वंदन करता, गुरु सदा अनुसरतारे; समकिती गृही For Private And Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्यागी गुण वरता, नवपाथोधि तरतारे. जग० ॥७॥ दोषदृष्टि त्यागी गुरुरागी, शिष्य जक्त वडभागीरे; बुद्धिसागरसद्गुरुवंदन, करतां लगनी लागीरे. जग ॥ ८॥ॐ प० गुरुवन्दनावश्यक आराधनार्थ ज० य०.स्वाहा ॥ चतुर्थी प्रतिक्रमणावश्यकपूजा. दुहा. प्रतिक्रमण करवाथकी, आतमशुद्धि थाय. यात्माभिमुख भावथी, प्रतिक्रमण कहेवाय. ॥१॥ अतिचारादिक दोषथी, पाछा फरवू जेह; पापत' करवू नहीं, प्रतिक्रमण छे तेह. ॥ २॥ पंच प्रतिक. मणां कथ्यां, आतमशुद्धिहेत; द्रव्यत्नाव करतां थकां, मुक्तिनो संकेत. ॥३॥ प्रतिक्रमणने जाणता, सातनयोथी जेह; च उनिक्षेपे आदरे, दोष रहे नहि रेह. ॥ ४ ॥ निंदो गहों दोषने, खमो खनावो जीव, कमजेद दूरे टळे, पामो आतमशिव. ॥ ५॥ For Private And Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० ( ए व्रत जगमां दीवा मेरे प्यारे, ए व्रत जगमां दीवो. ए राग . ) महावीर प्रभु जयकारीहो, जगपति ! महावीर प्रभु जयकारी, प्रतिक्रमण आवश्यक नाख्युं, सर्व जीव हितकारी, दुर्गुण दोषथी पाछा फरयुं, प्रतिक्रमण जयकारी हो. जगपति महावीर० ॥ १ ॥ गृही त्यागी व्रत समतिमांही, अतिचारादिकलाग्या; निंदे गढ़ें फरी करे नहीं, प्रतिक्रमणे तेह जाग्याहो. जगपति० ॥ २ ॥ क्षयोपशमसमकित चारित्रे, वारंवार छे दोषो; तेमाटे प्रतिक्रमणावश्यक, करी आतमगुण पोषोहो. जगपति० ॥ ३ ॥ दोषने गुण निरीक्षण करतां प्रायश्चित्तने धरतां, निंदी गह निजगुण वरतां, जवि नरनारी तरतां हो. जगपति० ॥ ४ ॥ मोहीना मन मीठी कहेणी, पण कडवी बे रहेणी; कणी प्रमाणे थातां रहेणी, चढशो मुक्ति निसरणी हो. जगपति० ॥ ५॥ मनवचनकायाप्रतिक्रमाथी, मनवचनकायाशुद्धि; क्षण क्षण उपयोगे पडिक्कम, करतां चिदानंदऋद्धिहो. जगपति० ॥ ६ ॥ आतमना उपयोगे ध्याने, नहि आवश्यक करणी; शुभाशुभपरीणामनिवृत्ति, भवपायोधितरणीहो. जगपति० ॥ ७ ॥ चउनिक्षेपे सातनयोथी, For Private And Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८१ प्रतिक्रमण अवधारो, निज निज अधिकारे प्रतिक्रमतां, शुद्ध थता आचारोहो. जगपति ॥८॥ अप्रशस्य कषायप्रवृत्ति, प्रतिक्रमता संसारी; प्रतिक्रमणथी क्षणमां मुक्ति, पाम्या घणा नरनारीहो. जगपतिः ॥ ९॥ पंच पडिकमणां व्यवहारे, निश्चय निज उपयोगे; जाणीने वर्ते जे भावे, रहे न भवजय रोगेहो. जगपतिः ॥ १० ॥ पश्चात्तापी भूलो खमावो, खमो ऽर्गुणने हठावो; बुद्धिसागरसद्गुरु संगे, आनंदमंगल पावोहो. जगपतिः ॥ ११ ॥ ॐ प० प्रतिक्रमणाराधनार्थ ज० य० स्वाहा॥ पंचमी कायोत्सर्गावश्यकपूजा. देह छतां जेने जरा, रहे न देहाध्यास; कायोत्सर्ग ज जाणवो, आतमध्यानाभ्यास. ॥१॥ द्रव्य भावथी जाणवू, कायोत्सर्ग स्वरूप; आवश्यकविधि योगथी, नासे भवनयधूप. ॥२॥ शुद्धातम जपयोग छे, कायोत्सर्ग प्रमाण; निश्चयनयथी आदरे, प्रगटे केवलज्ञान. ॥३॥ व्यवहारे विधिथी करो, For Private And Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८२ टाळो मनना दोष; दर्शनज्ञानने चरणनी, शुद्धि प्रगटे पोष, ॥४॥ ( हम मगन भये प्रभु ध्यानमां. ए राग. ) प्रनु महावीर जिनवर ध्याइए, ध्याश्ए ध्याइए ध्याइए, प्रभु०। कायोत्सर्ग करो गुण हेते, यावश्यकदिल धारिये; देहादिकजमवस्तुथी न्यारो, आतम शुद्ध विचारिये. प्रजु० ॥१॥ देहछतां नहि देहनी ममता, धर्मे तनु व्यापारीए; शुद्धातम उपयोगे रहीने, परमानंदा म्हालीए. प्रभु० ॥२॥ दर्शन ज्ञान चरणनी शुद्धि, काउसग्गयोगे कीजीए; देहादिकमोहसागर उपर, झाने तरंतां रीझीए. प्रभु० ॥ ३॥ काउसग्गयोगे क्षणमां केवल, मुक्ति अनंता पामिया; शुभअशुभपरिणाम त्यजीने, शुद्धस्वरूपे जामिया. प्रभु० ॥४॥ शुद्धातम उपयोगे रहेतां, सर्व प्रभुने ध्याइया; निश्चयनयथी एकातममा, सर्व जिनेश्वर आविया. प्रभु० ॥ ५॥ व्यवहारथी विधि काउसग्ग करवो, एम सापेक्ष विचारीये, आतमशुद्धिहेते साधन, हठकदाग्रह वारिये. प्रभु ॥ ६॥ द्रव्यभाव व्यवहारने निश्चय, नयसापेक्षे जाणीए; सांज सवारे आवश्यकने, रहेणीमांही For Private And Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८३ आणीए प्रभु० ॥ ७ ॥ मोहादिककर्मो झट विण से, मानवजव नहिं हारिए; प्रभुनी साथे तन्मय थैने, मोही मनमुं मारीए. प्रभु० ॥ ८ ॥ गृही त्यागीने आवश्यक छे, नित्यनी करणी कीजीए, बुद्धिसागर मंगलमाला, परमानंदपद लीजीए. प्रभु० ॥ ९ ॥ ॐ० प० कायोत्सर्गाराधनार्थ ज० य० स्वाहा ॥ छट्टी प्रत्याख्यानावश्यक पूजा. बहु आवश्यक करो, भावे प्रत्याख्यान: द्रव्यभाव वे कर्मनो नाश यतो जवी जाण ॥ १ ॥ सर्व शुभाशुभवांबना, त्याग ज प्रत्याख्यान; निश्चयथी ए आदरे, प्रगटे केवलज्ञान ॥ २ ॥ आसक्तिनो त्याग ते निश्चय प्रत्याख्यान; रागद्वेषने परिहरे, प्रत्याख्यान प्रमाण ॥ ३ ॥ द्रव्यथी प्रत्याख्यानना, अनेकनेदो जोय; साध्यतणा उपयोगथी, साधन सफळां होय. ॥ ४ ॥ आतम ताबे मन थतां वर्ते प्रत्याख्यान; ग्रहणत्यागबुद्धिविना, सहजयोगथी मान. ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८४ श्री पालना रासनी देशी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( जिमतरु फुले भ्रमरो बेसे. ए राग. ) प्रभु महावीरने वंदो पूजो, गावो प्रणमो ध्यावो, प्रत्याख्यान तिणे उपदेश्यं, जावयी मनमां लावोरे, भविका, प्रत्याख्यानने धारो, थाय सफळ अवतारोरे. भविका० ॥ १ ॥ व्यवहारथी पच्चखाणने क रिये, मनपर काबू धरिये; गुरु पासे पच्चखाण उच्चरिये, कर्म निकाचित हरियेरे जविका० ॥ २ ॥ अशनादिक इच्छा संवरये, सुखदुःखसमता वरिये, कर्म अनंतां क्षण निर्जरीए, आतमने उद्धरिएरे. जविका० ॥ ३ ॥ पापकर्म इच्छाओ त्यागो, आतम भावे जागो; परपरिणामथी दूरे भागो, परपुद्गल नहीं मागोरे, भविका० ॥ ४ ॥ भोगादिक इलाओ छंमो, निज आतमरढ मंडो; काढो मोहतणो पग दंडो, छंको मिथ्याघमंडोरे, भविका० ॥ ५ ॥ दुष्टेच्छाखो दूर निवारो, कामेच्छाओ वारो; हिंसादिक वृत्ति संहारो, आतममां प्रेम धारोरे भविका० || ६ || कायिकसुखमाटे जे जोगो, निश्चय तेह के रोगो; तेना जे प्रगटे संयोगो, वेदो निर्वेद योगोरे, भविका० ॥ ७ ॥ श्रातमवण अन्य शहा सर्वे, ते त्यागे पच्च For Private And Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खाणो, निकाचितभोगो भोगवतां, विषमभाव न आणोरे. भविका० ॥८॥ जीवो अनंता मुक्ति पाम्या, प्रत्याख्यानना योगे; बुद्धिसागर आनंदमंगल, वो निजगुणनोगे हो. नविका० ॥ ९ ॥ कलश. गायो गायोरे महावीर जिनेश्वर गायो.॥ त्रिशलानंदन आनंदवर्धन, वर्धमान जिनरायो, चोवी शमा तीर्थकर ईश्वर, परमब्रह्म सुहायोरे. महावीरण ॥ १ ॥ षमावश्यकपूजा रचीने, पूज्याप्रभु हरखायो; आनंदमंगल घटमां पायो, शुद्धोपयोगे रमायोरे. महावीर० ॥२॥ ओगणिश अठयोत्तर कार्तिक सुदि, नवमी बुध सुहायो; सानंदशहरमा आनंद ल्हेरे, पूजा रची गुण पायोरे. महावीर० ॥३॥ वीरजिनेश्वरपट्टपरंपरा, तपगच्छीगुरुराजा; हीरविजयसूरिशासनधोरी, नारतमुनिशिरताजारे. महावीर० ॥ ४ ॥ वाचकसहजसागरगुरु मोटा, पट्टपरंपरा राजे, श्रीनेमिसागर रविसागरगुरु, मेघपरे जग गाजेरे. महावीर० ॥ ५॥ श्रीरविसागर शिष्यसनूरा, पट्टधर गच्छना राजा; श्री सुखसागर सद्गुरु प्रणमुं, सागरपेठे माझारे. महावीर० ॥६॥ For Private And Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ गुरुकृपाथी पूजा रची शुभ, सर्वजीवसुखकारी, बुद्धिसागर आनंदमंगल, शांति तुष्टि करनारीरे. महावीर० ॥ ७ ॥ षडावश्यकपूजा सुणे जे, नणे भणावे भावे; सकल संघमां आनंद मंगल, घर घर शांति थावेरे. महावीर० ॥ ८ ॥ ॐ० प० प्रत्याख्यानाराधनार्थ ज० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टप्रकारी पूजा. श्री संखेश्वर पार्श्वजिन, पुरीसादाणी जेह; पद पंकज नमी तेहना, रचना रचुं गुणगेह. ॥१॥ पूजा अष्टप्रकार छ, आय न्हवण जयकार; चंदन कुसुमने धूपनी, पंचमी दीप मनोहार. ॥२॥ अक्षत नैवेद्य फलतणी, पूजा अष्टप्रकार; करतां शिवसुख संपजे, पामीजे भवपार. ॥३॥ द्रव्य नाव भेदेकरी, पूजे जे जिनराय; पूजा करतां प्राणिया, पूजक पदवी पाय. ॥ ४ ॥शुन सिंहासनमा प्रभु, पमिमा स्थापी सार; समयविधि अनुसारथी, पूजीजे सुखकार. ॥५॥ १ प्रथमा जलपूजा. ( अनिहारे जिनमंदिर रलियामणुरे-ए देशी.) बहुभावे सुरवरकोडाकोडी मिलीरे, प्रभुने सुरगिरि लइ जाय; आठजाति कलशा भरीरे, प्रचन्हवण करे सुरराय. सुरवरकोमा ॥ १ ॥ बहुलावे नाचे राचे जिनप्रेमथीरे, अभिषेक करी हरखाय; तिम प्रभुपूजा करतां थकारे, जव्यातम निर्मल थाय. सुरवरकोमा० ॥२॥ बहुभावे विप्रवधू जल रेडतीरे; For Private And Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनपकिमापर सुखकार; स्वर्गादिकसुख पामतीरे, तिम भविजन वर्ती सार. सुरवरकोमा० ॥ ३॥ ( धन धन संप्रति साचो राजा - ए देशी. ) " शमजलथी निज चेतन निर्मल, थाय कहे जिनवाणीरे; शमजलथी शुद्ध चेतन अर्चन करतां भवजय हाणीरे. शमजलपूजा चेतन करीए. ॥ १ ॥ मिथ्यात्वाविरति कषायने योग, तेथी कर्म बंधायरे; चारगतिमां भटके चेतन, विविधदुःखने पायरे. शम० ॥ २ ॥ गजसुकुमालजी शमजल पूजा करतां बहुसुख पाम्यारे; स्कंधकसूरिना शिष्यो तेमज, कर्मपंक झट वाम्यारे. शम० ॥ ३ ॥ मुनिमेतायें शमजल पूजा, चेतननी जिम कीधीरे; जाव न्हवणशम चेतन अर्चन करतां शिवफलसिद्धिरे. शम० || ४ || जावपूजा साधु अधिकारी, द्रव्य भाव दोय श्राद्धरे; बुद्धि शिवसुख पामे शाश्वत, होवे निराबाघरे. शम० ॥ ५ ॥ ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते, जिनेंद्राय, जलं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८९ २ द्वितीया चंदनपूजा. दुहा. बीजी चंदन पूजना, करतां पाप पलाय; मिथ्यादोष अनादिनो, टळतां शिवसुख थाय. ॥१॥ पुद्गलसंगे आतमा, दुगंधियुत जाण; सुगंधे जिन पूजतां, सुवासित मन आण. ॥ २॥ (सुण बहेनी पियुडो परदेशी-प देशी.) चंदन पूजा करो शुजन्नावे, जिनवरनी सुख काजेरे; चंदनसम चेतन शीतलता, थातां शिवसुख छाजेरे. चंदन० ॥ १॥ केसर-चंदन घसी जयणाये, माहे घनसार मिलावोरे, रजतकचोलीमांहे ठवीने, प्रभु पूजा विरचावोरे. चंदनः ॥॥ चंदनपूजा योगे जयसुर,-शुनमति शिवसुख पामेरे; तिम भविजन चंदनपूजाथी, ठरता अविचल ठामेरे. चंदन०३ (वीर जिनेश्वर उपदिशे.-ए देशी.) चंदनसमकित नावथी, पूजन चेतन कीजेरे; मिथ्यामल दूरे करी, अविचल पदवी लीजेरे. चंदन दोषअढाररहितप्रभु, देवतच्च मन आणोरे; सुसाधु मुरुतत्व बे, द्रव्य क्षेत्र काल जाणोरे. चंदना ॥ २॥ जिनवर नाषित सत्य छे, धर्मतत्व चित्त For Private And Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लावोरे; द्रव्य समकित अवलंबता, जावसमकित गुण पावोरे. चंदनः ॥ ३ ॥ क्षायिक समकित चंदने, जे नवि चेतन वासरे; मिथ्यामत दूर वासना, तेहथकी दूर नासेरे. चंदन ॥४॥ द्रव्यथी समकित छमीने, नावसम्यक्त्व जे थापरे; ते तस खप करतां थकां, किम करी भवभय कापरे. चंदन ॥ ५॥ समकित गुणवडे पूजना, चेतननी जे करशेरे, बुद्धिसागर सुख लही, मुक्तिवधू झट वरशेरे. चंदन० ॥ ६ ॥ ॐ ही श्री परम पुरुषाय चंदनं यजामहे स्वाहा. ३ तृतीया कुसुमपूजा. दुहा. पूजा त्रीजी पुष्पनी, करीए आणी भाव; पूजाथी पूजकपणुं, लहीए आपस्वभाव. ॥ १॥ सुवासित सुक्षेत्री, उपन्यां पुष्प रसाल; लावी अर्चा जिन करो, होवे मंगलमाल. ॥ २॥ ( साहेलडियांनी देशी.) कुसुम पूजा जिननी करो, सुखकारिका । जिम नवनय दूर थाय; दुःखवारिका ॥ चंपक-मालती For Private And Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९१ केतकी, सुख- सुगंधी फुल लाय. दुःख॥ कुसुम०॥१॥ कीटक खाधुं न खीजीए, सुख० । भूमि पड्युं निरधार; दुःख० ॥ विविधजाति फुलथी, सुख० ॥ पूजा पुण्य प्रकार, दुःख | कुसुम ॥२॥ मोगगे- जासुलपुष्पथी, सुख० । षड्रूतुनां फुल; दुःख० ॥ प्रशस्य आगमे जे कह्यां, सुख० ॥ ते लहिये अनुकुल; दुःख० । कुसुम० ॥ ३ ॥ वणिकसुता लीलावती, सुख० ॥ पामी जिम शिवस्थान, दुःख । तिम जवि भावे कीजीए, सुख० । पूजा श्री भगवान् दुःख० ॥ कुसुम० ॥ ४ ॥ (वीरजिनेश्वर उपदिशे - ए देशी. ) सत्य शौच कुसुमेकरी, जे निज चेतन पूजेरे: कर्म कलंक अनादिनुं, तेहथकी झट धूजेरे. सत्य० ॥ १ ॥ सत्य जे आत्मस्वरूपनी, श्रद्धा मनमां कीजेरे; उपनीतादिक भेदने, जाणी सत्य वदीजेरे. सत्य० ॥ २ ॥ कूडकपट त्यागी करी, आपस्वभावे रहीएरे; त्याग करी परभावनो, शिवसुख सहेजे लही एरे. सत्य० ॥ ३ ॥ मनव्यापारनिवृत्तिथी, शान्ति चेतन पामेरे; आत्म अनुभव जागतां, कर्मरोग झट वामेरे. सत्य० ॥ ४ ॥ परपुद्गल संयोगथी, चेतन चउगति भटकेरे; तेहतणा त्यागेकरी, भमतो चेतन For Private And Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९२ अटकेरे. सत्य० ॥ ५॥ स्वगुणे करी सत्यछे, आत्मराज नवि जाणारे; बुद्धिसागरसुख लही, थावे शिवपुर राणोरे. सत्य० ॥ ६ ॥ ॐ ह्री श्री परम पुण् कुसुमं यजामहे स्वाहा. ४ चतुर्थी धूपपूजा. दुहा. चोथी पूजा धूपनी, दशांगादिक जाण; कमें न्धनने बाळवा, करता भविक सुजाण. ॥१॥ धूप करो प्रभु आगळे, शास्त्रवचन अनुसार; करतां सुख बहु लीजीए, तरीए नवजलपार. ॥॥ ( अनिहारे जिनमंदिर रळियामणुरे-ए राग.) भवि भावे धूपपूजा जिननी करोरे, जिम जावे भवभयरोग; चूरण शुद्धदशांगथीरे, धूप करता नासे शोग. धूपपूजा. ॥ १॥ नवि भावे धूपधाएं वामांगे ग्योरे, अगरतुरुक्कघनसार; कुंदरुचंदन उखेवतारे, पामीजे नवजलपार. धूपपूजा० ॥२॥ तवि For Private And Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९३ भावे शास्त्रविधि अनुसारथीरे, करिये धूपपूजा शुद्ध, स्वर्गतणां सुख पामियेरे, वळी लहीए शिवपद बुद्ध. धूपपूजा ॥ ३ ॥ नवि भावे विनयंधर सुख पामतोरे, धूपपूजाथी विस्तार; तिम भवि भावे करतां थकारे, बुद्धिशिवसुख निर्धार. धूपपूजाण ॥४॥ ( गिरुमारे गुण तुमतणा-ए देशी. ) __ ध्यानधूपनी पूजना, करीए भविजन भावेरे, परपुद्गलदुर्गधता, तेहथकी दूर जावेरे.ध्यानधूप प्रगटावीए. ॥१॥ आर्त रौद्र दुर्ध्यान छे, धरतां दुःख बहु लहीएरे, तेनो त्याग करी नवि, आपस्वभावे रहीएरे. ध्यानम् ॥ २ ॥ धर्मध्यान शुजगति दीए, शुक्ल ध्यान शिव आपेरे; गुण ठाणे गुण नीपजे, भवो भवनां दुःख कापेरे. ध्यान० ॥ ३ ॥ आत्मध्यान धरतां थकां, सुगंधी दूर नासेरे; योगसमाधि स्थिर थावतां, चढीए मोक्ष आवासेरे. ध्यान० ॥४॥ अ. स्थिर आ संसारमा, जीवे बहु दुःख सहियारे; नरकतणांदुःख नोगव्यां, ते नवि जाए कहियारे. ध्यान ॥५॥ चेतन नरक-निगोदमां, वार अनंती भमियोरे, चारगतिसंसारमां, अज्ञाने जीव रमियोरे. ध्यान ॥६॥ पुद्गल जामा पहेरीने, चेतन नाटक ५० For Private And Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ करतोरे; राजा कबहु रंक थइ, पुद्गलसंगे फरतोरे. ध्यान० ॥ ७ ॥ रुवे नाचे खेलतो, हसतो खातो रोगीरे; कबहु चेतन जोगी ने कबहु वियोगी शोगीरे. ध्यान० ॥ ८ ॥ कमेंकरी ए सब हुवे, कर्म दूर जब थावेरे, बुद्धिसागरसुख लही, चिदानंद पदपावेरे. ध्यान० ॥ ९ ॥ ॐ ह्रीं श्री परम० धूपं यजामहे स्वाहा. ५ पंचमी दीपपूजा. दुद्दा. दीपकपूजा जिननी, करीए आणी भाव; आतमगुणहितकारिका, जवोदधिमांदी नाव. ॥ १ ॥ प्रभु गळ दीपक धरो, दक्षिण पास सुसाल; द्रव्य दीपकनी पूजना, करतां मंगळमाल ॥ २॥ ( सुतारीना बेटा तने विनवुंरे लोल - ए देशी. ) जवि जावे दीपकनी पूजनारे लोल, जिन आगळ करीए नित्यजो; मिथ्यात्व अनादि निवारीएरे लोल, प्रभु पूजीए चोखे चित्तजो. प्रभु दीप For Private And Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजा रळियामणीरे लोल, जेम पूजा करे सुर-इंद्रजो, तेम पूजो भवि जिनचंदजो, लहो शाश्वतशिव सुखकंदजो. प्रभु० ॥१॥ धूमअज्ञान नासे वेग. लुरे लोल,शुद्ध आतमरूप प्रगटायजो; रजत-कनक -ताम्रनां कोडियारे लोल, तेमां घृत धरो हित ला. यजो. प्रभु० ॥॥ जिनमंदिर वासण मांजियेरे लोल, घृतकोडियां मांजिये खासजो; दीपा उघाडा नवि मूकीएरे लोल, चित्त होय जो शिवसुखआ. शजो. प्रभु० ॥ ३ ॥ दीपपूजाथी जिनमति धनसिरिरे लोल, जेम पामी शाश्वतसुखायजो; तेम भक्तिभावे जिनपूजीएरे लोल, एम बुद्धिसागर गुण गायजो. प्रभु० ॥४॥ (कोइलो पर्वत धुंधलोरे लोल-ए देशी.) जावदीपक ते ज्ञान बेरे लाल, भविजन अति सुखकाररे, हुं वारीलाल.॥मति अठ्ठावीश नेदछेरे लाल, त्रणसे चालीश तेम धाररे. हुं वारी नाव०॥१॥ चौद वीश भेद श्रुतनारे लाल, पामंतां सुख थायरे; हुं० श्रुतज्ञानी केवलीसमोरे लाल, प्रेमे प्रणमो पाय रे. हुं० जाव० ॥ २ ॥ अवधि असंख्यप्रकारछेरे लाल, मुख्यनेद पद धाररे, हुं० मनःपर्यव भेद दो For Private And Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कारे लोल, केवल एक उदाररे. हुं० भाव० ॥ ३ ॥ केवलज्ञान प्रत्यक्ष बेरे लाल, तेहथी सर्व जणायरे; हूं तीर्थंकर ते गुण वरीरे लाल, उपदेश दे सुखदाहुँ० यरे हुं० [भाव० ॥ ४ ॥ ज्ञानसहित किरिया कहीरे लाल, साचो मोक्ष उपायरे हुं० वस्तु एकांते जे ग्रहे रेलाल, जवमां ते भटकायरे. हुं० जाव० ||५|| वि नय करो ज्ञानीतणोरे लाल, ज्ञानीतणुं बहुमानरे; हुं० भणो भणावो ज्ञाननेरे लाल, लखो लखावो ज्ञानरे, हुं० जाव० ॥ ६ ॥ शासन चाले ज्ञानथी रे लाल, उपदेश ज्ञानथी थायरे; हुं० समकित प्रगटे ज्ञानथीरे लाल, मिथ्यात्व दूरे जायरे. हुं० जाव० ॥ ७॥ पंचमकाले आधार छेरे लाल, ज्ञान श्रुत निरधाररे हुं० छंडो आशातना श्रुततणीरे लाल, पामो जेम भव पाररे. हुं० [भाव० ॥ ८ ॥ ज्ञान क्रिया अंतर सु. गोरे लाल, खजुया भानु समानरे; हुं० भाव० देशाराधक किरिया कधीरे लाल; सर्वाराधक ज्ञानरे. हुं० जाव० ॥ ९ ॥ महिमा ज्ञाननो अतिघणोरे लाल, भाख्यो ते नवि जायरे; हुँ० आत्मस्वरूप समजो भवीरे लाल, पामो शिवपुरठायरे. हुं० [भाव० ॥ १०॥ किरियारहित ज्ञान पांगळुरे लाल, आंधळी किरिया तेमरे; हुं० ज्ञानने किरिया बेवडेरे लाल, घावे शिवसुख क्षेमरे. For Private And Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९७ हुं० नव० ॥ ११ ॥ आलंबन प्रभुन ग्रहीरे लाल, पूजो चेतन द्रव्यरे; हुं. बुद्धिसागर सुख लहीरे लाल, पामो शिवपुर भव्यरे. हुं नाव० ॥ १२ ॥ ॐ ह्री श्री परम दीपं यजामहे स्वाहा. ६ षष्ठी अक्षतपूजा. __दुहा. समकित निर्मलकारिका, अक्षतपूजा एह; भविजन भावे कीजीए, लदीए शिवपुरगेह. ॥ १॥ उ. त्तमक्षेत्रे नीपन्या, अखंम नयनानंद; उज्ज्वल तंडुल पूजना, करीए श्रीजिनचंद. ॥२॥ ( मेरुशिखर न्हवरावे हो सुरपति, मेरु०-ए देशी.) अक्षतपूजा कीजेहो नविका, अक्षतपूजा कीजे,शुभतंडुल उज्ज्वल शुनदेत्रे, नीपन्या तेही जलहीए; गोधूमथी तेम पूजा कीजे, शुभभावे गहगहीए हो. नविका० अ० ॥१॥ चारगतिचूरक स्वस्तिक प्रभु,-आगे कीजे नावे;त्रणपुंज रत्नत्रयीवरवा, करतां भवपुःख जावे हो. भविका अ० ॥२॥ सि. द्धशिलाउपर एक योजन, चोवीसमा तसनागे; For Private And Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ मोक्षशिवसिद्धपदनेहेते, सिद्धशिला करो यागे हो. भविका० अ० ॥३॥ भवनवनां पुनरावर्त हरवा, वरवा शिवपटराणी; नंदावर्त्त करो नवि भावे, होवे जवनयहाणी हो. भविका० अ० ॥ ४ ॥ कीरयुगले जेम अक्षतपूजा, करतां सुख बहु लीधुं; बुद्धिसा. गरशिवसुखसंपदा, पामवा मनडुं कीg हो. ज. विका. अ० ॥५॥ ( कयुं जाण्यु कयुं बनी आवही.-ए देशी ) शुजपरिणाम ते जावथी, अक्षत पूजा सारहो नविक; नावरोग दूर टाळवा, औषधसम चित्त धारहो नविक !! भावपूजा अतिसुख दीए. ॥१॥ हिंसा जूठ चोरीतजो, परनारी निरधारहो नविक; तनुधनममतापरिहरो, रजनीभोजन अंधकारहो भविक!! नाव० ॥२॥ दिसिगमननो नियम करो, चौदनियम नित्य धारहो नविक !! बत्रीश अनंतकाय तेम, अन्नक्ष्य बावीस निवारहो नविक! नाव ॥३॥ कषायमदविकथा वळी, विषय निद्रा त्यागहो नविक; चित्तसंतापना हेतु जे, तेथी न धरीए रा. गहो नविक! नाव० ॥ ४॥ अहंमममोहमंत्रनो, त्याग करो गुणवंतहो नविक; विपरीतमंत्रमननथकी, थाओ शाश्वतसुखवंतहो नविक! नाव० ॥ ५॥ For Private And Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९९ अनंतरत्नत्रयीगुणे, चेतनद्रव्य विचारहो नविक ! कर्मविनाशी संपजे, स्थिति सादि अपारहो नविक. जाव० ॥६॥ अक्षतअक्षयसुखजणी, जावपूजा सुरसालहो नविक; बुद्धिशिवसुखसंपदा, पाभो मंगल. मालहो नविक !! नाव० ॥ ७ ॥ ॐ ही श्री-परम अदतं यजामहे स्वाहा. ७ सप्तमी नैवेद्यपूजा. दुहा. नैवेद्यप्रजा सातमी, दःखदोहगहरनार: सुरनर शिवसुख पामवा, कल्पवृक्षसमसार. ॥१॥ विविध दुःखमृगसिंहसम, शान्ति तुष्टि करनार; प्रभुपूजाथी रोग शोग, ए सहु दूर थनार. ॥ २ ॥ __(तेजे तरणीथी वडोरे-ए देशी.) नैवेद्यपूजा सातमीरे, करीए आणी प्रेम; नवोदधि तरवा नाविकारे, आपे शिवसुखक्षेमहो भविका. नैवेद्यपूजा कीजीएरे. जिनआणा शिर दीजीयेरे, For Private And Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जन्ममरण दूर जाय. ॥१॥ मोदक लापसी थरारे, घरफी पेमा कलेर: घेवर घारी सांकलीरे, विधिये करी निजघेरहो. ना नै० ॥२॥ पापड पूरी रेवडीरे, खुरमा खाजां सार; फेणी जलेबी खीरथीरे, पूजा करो मनोहारहो भ० नै० ॥३॥ गुंदवडां ने रेवडीरे, शाल दाल घृत गोळ; प्रभुभक्तिथी पूजीएरे, होवे जेम रंग चोलहो भv नै० ॥४॥ हलीयपुरुषपेरे पूज नारे, जे करशे नरनार; बुद्धिशिवसुखसंपदारे, पामी लहो जवपारहो भ० नै० ॥ ५॥ (वीर जिनेश्वर उपदिशे-ए देशी. ) भावनापजा भावथी, नैवेद्यनी जे करशेरे, प्रव. हणसम छे भावना, नावे ते शिव वरशेरे. ना० ॥१॥ आ संसार अनित्य छे, संध्यारंगसम देखोरे, तेमा जन्ममरण कयो, आवे नहि तस लेखोरे. ना ॥२॥ शरण नहीं संसारमां, मरता जीवने कांइरे; मृत्युवश थया जीवने, नहि कोइ जगमा सखाइरे. भा० ॥३॥ त्रणभुवनमा प्राणियो, नटक्यो अनंतिवाररे; माता ललनापणे थयो, पिता पुत्र विचाररे. भा० ॥ ४ ॥ पुरुष स्त्रीपणे थावतो, ए संसारस्वरूपरे; संसारमा जे राचशे, ते पमशे भवकूपरे. भा० ॥ ५॥ पुत्र स्त्री परिवारने, मारु मारु मानेरे; सत्यवचन जिनवरतणां, For Private And Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०१ सांभळतो नहि कानेरे भा० ॥ ६ ॥ शरीरपंजरमा रह्यो, चेतन एक मन आणरे; एकलो आव्यो एकलो, जाइश परभव जाणरे भा० ॥ ७ ॥ तन धन मंदिर माली, पुत्र कलत्रने भारे, आतमथी ए भिन्न बे, जूठी तास सगारे. भा० ॥ ८ ॥ सातधातुथी नीपनी, अशुचिमय के कायारे; अशुचिमय आ शरीर छे; करवी शी ? तस मायारे. आ० ॥ ९ ॥ जीव माताना पेटमां, मलमूतरमां रहियोरे; दुःख अनंतु त्यां सयुं, पवित्र शुं ? हवे थइयोरे भा० ॥९०॥ समये समये कर्मने, रागादिकथी बांधेरे; शिवसुखकारणधर्मने, केम मनथी नवि साधेरे. जा० ॥ ११ ॥ जेथी कर्म रोकाय छे, तेहीज संवर जाणोरे, करवो आदर तेहनो, एहीज धर्म वखाणोरे भा० ॥ १२ ॥ तप द्वादश चित्त धारीए, लोकस्वभावने समजोरे; आपस्वभावे स्थिर थशो, परपुद्गलमां न रमजोरे. भा० || १३ || बोधिदुर्लन जाणीने, जिनयाणा शिर वहीएरे; अरिहंतनापितधर्म छे, सत्यधर्म जिन कहीएरे भा० ॥ १४ ॥ जडपुद्गलथी भिन्न बे, अरूपी आत्मस्वरूपरे; बुद्धिसागर घ्यावतां, थावे शिवपुरभूपरे भा० ॥ १५ ॥ ॐ ह्रीं श्री - परम० नैवेयं यजामहे स्वाहा. ५९ For Private And Personal Use Only · Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४०२ ८ फलपूजा दुहा. आठमी फलनी पूजना, करिए भवि हित लाय; फलपूजाथी पामीए, शिवफल अतिसुखदाय. ॥ १ ॥ उत्तमवृतणां ग्रही, फळ रमणिक मनोहार; प्रेमे पूजो भविजना होवे जयजय कार. ॥ २ ॥ · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ऋषभ जिणंशुं प्रीतलडी - ए देशी. ) फळपूजा जिनराजनी, शिवकाजे हो भावे सुखकार; शास्त्रविधि अनुसारथी, लहो शुभफळ हो पामो जवपार फळ० ॥ १ ॥ श्रीफळ आम्र बदामने, सीताफळ हो दाडीम श्रीकार; केळां पिसतां नीमजां, रायणफळ हो मेवो मनोहार. फळ० ॥२॥ काळ अनादि जीवने, नहीं तृप्ति हो मनमांही लगार; विविधफळ भक्षण करी, जीव रझळ्यो हो चउगतिमकार. फळ० ॥ ३ ॥ जीव लालचीयो लंपटी, फळभक्षणथी हो नहि विरम्यो लगार; पापभय नहीं चित्त गण्यो, भक्ष्याभक्ष्यनो हो नवि करियो विश्वार. फळ० ॥ ४ ॥ जिनशासन अंगी - करी, प्रभु आगळ हो करूं विनति एम फळमू For Private And Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०३ उतारतो, प्रभु आगळ हो ठवू आणी प्रेम. फळ० ॥ ५॥ आपो शिवफळ जिनवरा, जे पामी हो भवनां मुःख जाय; बुद्धिसागरसुख लही, पामे शिवफळ हो जे अतिसुखदाय. फळ० ॥ ६ ॥ ( सांभळजो मुनि संयम रागे-ए देशी. ) शाश्वत शिवपद स्वाद लहो नवि, जैनधर्म चित्तधारीरे; द्रव्यनावथी धर्म जे जाणे, जाऊं तेनी बलिहारीरे शा० ॥ १॥ सातनयो उत्तर तस भेदो, आगमथी जे जाणेरे; सप्तभंगी जे शुद्धि जाणे, ते मुक्तिसुख माणेरे. शा० ॥२॥ षड्द्रव्योगुणपर्याय जाणे, जाणे आत्मस्वरूपरे, उपादेय आतमने जाणे, ते न पडे लवकूपरे. शा० ॥३॥ नवतत्वो जिनेश्वर जाखे, बोध तास जे करशेरे; हेय ज्ञेय उपादेय समजी, समकित-श्रद्धा वरशेरे. शा० ॥४॥ श्र. द्धाथी समकित शुभ प्रगटे, तेथी विरति लहियेरे; विरतिथी क्षय कर्मनो करतां, शिवपुरमारग वहि. येरे. शाम् ॥ ५॥ बाहिर अंतर परम ए त्रण्य छे, श्रातमपरिणति समजोरे; परमातमपद खक्ष्य वि. चारी, अंतर आतम रमजोरे. शा० ॥ ६॥ शरीर वाणी मनथी जूदो, आत्मद्रव्य चित्त धरतोरे; अ. For Private And Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ रूपी निःसंग आतम निर्मल, तास ध्यान मन करतारे. शा० ॥ ७ ॥ राग द्वेष मोहरायना योद्धा, तेहनी साथे वढतोरे, आतमा आपस्वरूपे खेली. क्षपकश्रेणीए चढतोरे. शा० ॥ ८॥ वीर्योल्लास वधे गुण प्रगटे, कर्मकलंक खपावरे; शुक्लध्यानपायाए चढतो, केवलज्ञानगुण पावरे. शा० ॥ ९ ॥ आयुष्यस्थिति पूर्ण करीने, शरीरसंग दूर कर तोरे; जन्ममरणना फेरा टाळी, सादिअनंत स्थिति वरतोरे. शा० ॥१०॥ दुःखाभावरूपमुक्ति माने, नैयायिकमतवादीरे; सर्वव्यापकमुक्ति माने, ते पण छे उन्मादीरे. शा० ॥ ११ ॥ स्वामीसेवकनाव स्वीकारे, मुक्तिमां ते खोटोरे; कर्म खप्याथी सर्वे सरखा, माने ते जीव मोटोरे. शा० ॥ १२ ॥ गमनागमन मुक्तिमां माने, मतवादी अज्ञानीरे; गमनागमन रहित छे मुक्ति, जाणे स्यादवादज्ञानीर. शा० ॥१३॥ अनंतसुखमयमुक्तिफलने, पामो भवि नरनारीरे; बुद्धिसागर शिवसुख पामे, चिदानंदपद धारीरे. शा ॥१४॥ For Private And Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०५ सर्वोपरी गीतं.. ( नमो नमोभविजन भावशुं ए - ए देशी. ) अष्टप्रकारी पूजना ए, द्रव्य जाव मनोहार; भविजन पूजीए ए. जिनप्रतिमा जिनसारिखी ए. भाखी शास्त्रमजार. जवि० ||१|| दर्शन दीठे देवनुं ए, पापक दूर थाय; भवि० जवगवतीमांही मुनिवरा ए, प्रतिमावंदन जाय. भवि० ॥२॥ नामनिक्षेपो उच्चरे ए, स्थापना केम न मनाय; जवि० शुद्धभावथी पूजतां ए, जन्ममरण दूर जाय. भवि० ॥३॥ सांकळचंदसुत जाणीएए, चुनीलाल उदार; भवि० नथुभाइसुत जाणीएए, जेठाभाइ हितकार. भवि० ॥ ४ ॥ जेठालाल नरोत्तम कारणेए, मूळचंदभाइना काज; जवि० जव्यजीव हितकारणे ए. आपे शिवसाम्राज्य. वि० ॥ ५ ॥ शासनवीरजिनेश्वराए, हीरविजय सूरिराय; भवि० सहेजसागर उपाध्यायजीए, तास शिष्य वखणाय. भवि० ||६|| तास शिष्य उपाध्यायजी ए, जयसागर जयकार, भवि० पाटपरंपरा शोज - ताए, ने मिसागर सुखकार जवि० ॥ ७ ॥ तस शिष्य रविसागर गुरु ए, संवेगी अनगार; भवि० तस शिष्य सुखसागर गुरु ए, गामोगाम विहार. भवि० ॥ ८ ॥ वसोनगर पधारिया ए, संघ सकल हरखाय; जवि० For Private And Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ ऋषभदेवतीर्थकराए, निरखी आनंद याय. भवि०॥९॥ तास पसाये एरवी ए, पूजा अष्टप्रकार: भवि० भणो भणावो सांभळो ए, भावथकी नरनार जवि० | १० | मेरुपरे नित्य स्थिर थर ए, करजो भविमन वास; भवि० चंद्र सूर्य ज्यां लगी रहे ए, जगमां करता प्रकाश. वि० ||११|| त्यां लगी पूजा विस्तरो ए, शांति तुष्टि करनार; भवि० ऋद्धि वृद्धि सुखसंपदा ए, पूजाथी थानार. भवि०॥१२॥ संवत योगणीस उपरे ए, ओगसाठनी साल; भवि० फागणवदिएकादशी ए, पूजा पूर्ण विशाल, भवि० ॥१३॥ कलश. एम सकलसुखकर द्रव्य भावे, पूजा अष्टप्रका री ए; जणे भणावे सुणे जे जवी, ते शिवसुख लहे जारी ए. तपगच्छशाखागगन मंडळ - दिवाकरपेरे बाजता, वैराग्यरंगे व्याप्युं जस मन, महिमा जग जस गाजता. ॥१॥ रविसागर गुरु प्रेमे प्रणमुं, संवेगी सिरदार ए; जस नाम देतां सकलमंगल, पामे भवी - नरनार ए. तस पदपंकज भृंगसम श्री - सुखसागरगुरुबाल ए एम बुद्धिसागर शिवसनातन, पामे मंगलमाल ए. ॥२॥ ॐ० प० फलं यजामहे स्वाहा ॥ इति ष्टप्रकारी पूजा संपूर्णा. For Private And Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४०७ वास्तुकपूजा. दुहा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री संखेश्वरपार्श्वनाथ, त्रेवीसमा जिनराय; घरपेंद्र पद्मावती, पूजे जेहना पाय. ॥ १ ॥ पार्श्वयक्ष जस शोभतो, सेवा करे चित्तलाय, पुरिसादाणी पार्श्वनाथ, ध्यातां शिवसुख थाय ॥२॥ वास्तुकपूजा घरतणी, करतां शर्म विशाल; ऋद्धि वृद्धि जय संपजे, कीर्ति मंगलमाल. ॥३॥ पंच पंच वस्तुथकी, संखेश्वरप्रभुपास, पूजो जवी जावेकरी, सफळ होवे मन आश ॥ ४ ॥ चिंतामणिसम पार्श्वनाथ, पार्श्वमणि समनाम; ध्यातां गातां प्राणीनां, सिद्धे सघळां काम. ॥ ५ ॥ प्रथमपूजा. (मल्लिजिन बंदीए भवी भावेरे - ए राग. ) संखेश्वरपासप्रभु नित्य गावोरे, शाश्वत शिवकमळा पावो, सं०॥ काशीदेश वणारसीगामरे, विश्वसेन. राजा अभिरामरे; वामामाता सुखविश्राम. संखेश्वर० For Private And Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०८ ॥१॥ प्रभुमाताकुखे जब आयारे, इंद्र चोसठ सुरगिरि लायारे; सुरासुर मनमा हरखाया. संखेश्वर ॥ २ ॥ एकलाखने साठ हजाररे, आठजाति कळश मनोहाररे; प्रभु न्हवण करे जयकार. संखेश्वर ॥ ३ ॥ इंद्राणीयो हसती गातीरे, प्रभुदर्शन करी हरखातीरे; नाटक करी मनमा माती. संखेश्वर० ॥ ॥ एग पार्श्वनाथ घर लावोरे, शुन सिंहासन पधरावोरे प्रभु न्हवण करी सुख पावो. संखेश्वर ॥५॥ रोगशोग सहु दूर नासेरे, प्रभुश्रद्धा मनमा वासरे; शाश्वतपद बुद्धि नासे. संखेश्वर० ॥ ६ ॥ मंत्र-ॐ नमो भगवते श्रीसंखेश्वरपार्श्वना. थाय ही धरणे द्रपद्मावतीसहिताय अहेमद्दे क्षुद्र विघट्टे क्षुद्रान् स्तंभय २ पुष्टान् निग्रह २ भारते अ. मुकदेशे अमुकनगरे अमुकगृहे शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं कुरु २ सर्वोपद्रवान् निवारय २ जलं, चंदनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, यजमाहे स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०९ द्वितीयापूजा. दुहा. स्नात्र भणावी पार्श्वनुं, पूजा कीजे सार; पूजक पूज्यनी पूजना, समजीजे सुखकार. ॥१॥ बेउ पासे वीजीए, चामर चारु उमंग; दर्पण प्रभु आगळ धरो, होवे जयजयरंग. ॥ २ ॥ __ (सुतारीना बेटा तुने विनर्बुरे लोल-ए देशी.) प्रभु पार्श्वजिनेश्वर गावीऐरे लोल, श्री संखे. श्वरप्रभुनामजो, तुजनामथी नवनिधि संपजेरे लोल, मनवांडित सिद्धे कामजो; नाम रुडं संखेश्वर पास-रे लोल. मिथ्यात्वदशा दूर थायजो; शुद्ध श्रद्धा हृदय प्रगटायजो. नाम रुपुं० ॥१॥ पूजा वास्तुक दोय प्रकारनीरे लोल, शुभ अशुभ भेद कहायजो; द्रव्यवास्तुकपूजाना ए कह्यारे लोल, तेह हरखे कहुँ चित्त लायजो. नाम रुहुं० ॥ २ ॥ मिथ्यात्वहिंसादिक दोषथीरे लोल, अशुन वास्तुक कार्य कथायजो, घरमहेलमां महीपनी बुद्धिएरे लोल, काळु कापंतां हिंसा गणायजो. नाम रुडुं० ॥३॥ अन्यायवित्तादिकपापथीरे लोल, घर महेल प्रासाद करायजो, अशुभवास्तुकपूजन कर्मथीरे लोल, For Private And Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० दुःख अशांति विघ्न ज थायजो. नाम रुडं ॥ ४ ॥ न्याय संपन्न धन अने नीतियरे लोल, घर महेल प्रासाद चणायजो, शास्त्रविधिए देवगुरुभक्तिएरे लोल, शुभवास्तुकपूजा भणायजो. नाम रुडुंग ॥५॥ शुभवास्तुकपूजा जाणीएरे लोल, जेनुं रुहुँ विशाल स्वरूपजो, बुद्धि शाश्वत संपदा पामीएरे लोल, पास नाम ते मंगलरूपजो. नाम रुडुंग ॥६॥ ___ मंत्रम्-ॐ नमो भगवते जलं, चंदनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, यजामहे स्वाहा. तृतीयपूजा. शुजवास्तुकपूजा कहूं, आणी अतिशयभाव, स्वर्गादिकसुख पामीए, होवे शिवसुखदाव. ॥१॥ देव अरिहंत जाणीए, दोषरहीत अढार; गुरु सुसाधु महाव्रती, पाळे पंचाचार. ॥ २॥ जिनवरभाषित सत्य बे, जैनधर्म जगजोय; सुख दुःव होवे कर्मथी, अवर न कर्ता कोय, ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४११ ( अनिहारे न्हवण करो जिनराजनेरे-ए देशी.) अनिहारे वास्तुकपूजा शुभ कीजीएरे, तजी अवरदेवनी आश; सत्पात्रे दानने दीजीएरे, सूत्रश्रवणरुचिअनिलाष, श्रीसंखेश्वरप्रभुपासजीरे. ॥१॥ भवी भावे - द्रव्याथिकनये करीरे, शाश्वत ले लोकालोक; कर्ता तेहनो को नहिरे, केम कर्ता मानीए फोक. श्रीसंखे ॥२॥ उर्ध्व अधो अने तीरा लोकनीरे, स्थिति छे अनादिअनंत; कर्ता तेहनो को नहींरे, एम भाखे श्रीभगवंत. श्रीसंखे० ॥३॥ नवतत्त्व षड्द्रव्य छे नित्य शाश्वतारे, द्रव्य गुणप यस्वरूप; बे भेदे जीव दाखियारे, तस लक्षण ठे चिद्रप. श्री संखे ॥४॥ परिणामी पुद्गल जीव बे जाणीएरे, अनादिसंबंध विचार; कर्ता कर्मनो आतमारे, तेम नोक्ता हृदये धार. श्री संखे ॥५॥ शुनाशुभकर्म ग्रही भोगी आतमारे, वेदे शाता आशाता दोय; देव मनुष्य नारक तिरिरे, चउगतिमां नटके जोय, श्रीसंखे ॥६॥ जीवे कीधां पुण्य पाप ते भोगवेरे, परपुद्गलसंगे खास; राच्यो माच्यो पुद्गलमां वस्योरे, बन्यो पुद्गलनो जीव दास; श्री संखे० ॥ ७ ॥ प्रभुपूजा करतां प्राणिया सुख लहेरे, नासे कर्माष्टकपाश; स्वामीवच्छल नवकारशीरे, हेतु For Private And Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ सुखनां दीसे खास. श्री संखे० ॥८॥ शुजनावे नैवेद्य थाळमां मूकीनेरे, प्रभु आगळ धरीए चंग; रत्नत्रयी कमळा वरेरे, बुद्धिशाश्वतपदरंग. श्री संख० ॥९॥ मंत्रः-ॐ नमो भगवते जलं, चंदनं, पुष्प, धूप, दीप, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, यजमाहे स्वाहा. चतुर्थी पूजा. दुहा. शरीरपुद्गलमां वस्यो, पुद्गल मानी गेह; परनव साथ न आवतुं, क्षणमा नाशी तेह. ॥१॥ देह अनंतां छंडियां, भटकी आ संसार, लाख चोराशी हुँ जम्यो, तार तार प्रभु ! तार. ॥२॥ (सांभळजो मुनि संयम रागे, उपशमश्रेणि चढीआरे-ए राग) श्रीसंखेश्वरपार्श्वप्रभु नित्य, मनमंदिरमा धरीएरे;ध्यावी गावी पाप गमावी;श्रद्धा समकित वरीएरे. श्रीसंखे० ॥१॥यादवलोकनी जरा निवारी, षड्दर्शन विख्यातरे; वामानंदन जगजनरंजन, नमतां पावन गारे,श्रीसंखे ॥२॥ परपरिणतिथी अष्टकर्म ग्रही, For Private And Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परजोगीपरकीरे अतुलबली पण कर्मपिंजरमा,वसियो निजगुणधरतारे. श्रीसंखे ॥३॥ औदारिक वैक्रिय आहारक, तैजस कार्मण पंचरे; पंचशरीर घर मानी वसियो, करतो कर्मनो संचरे. श्रीसंखे ॥४॥ सुरापानी बकतो फरे वळी, धत्तुरभक्षक जेमरे, मोह परिणतिथी अहो आतम, स्वरूप भूल्यो तेमरे. श्री संखे० ॥ ५॥ नवमां भमतां पुण्योदयथी, सद्गुरु सहजे मळियारे, बुद्धि सिवसुख पामे अविचल, सकळमनोरथ फळियारे. श्रीसंखे ॥६॥ ____ मंत्रः-ॐ नमो जगवते० जलं, चंदनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, यजामहे स्वाहा. पंचमी पूजा. दुहा. सद्गुरु पंचमहाव्रती, पंपाचारगुणधार, भावथी वास्तुकपूजना, कहेवे अतिसुखकार. ॥१॥ पुद्गलद्रव्यथी भिन्न छे. अचल अमल गुणवान्; शुद्ध बुद्ध परमातमा, चिदानंद भगवान् . ॥२॥ घर यातमनुं For Private And Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ खोळख्युं, जेनो रुडो महेल; वास खरो मुज एहमां, वसतां शिवसुख सहेल. ॥ ३ ॥ ( नमोरे नमो श्री शत्रुंजय गिरिवर - ए राग. ) वास्तुकनावपूजा निजभावे, आतमनी शुद्ध दाखी रे; वास वासे चेतन जे मध्ये, तेहनी पूजा नाखीरे. श्रीसंखेश्वरपासजी गावो ॥ १ ॥ असंख्य प्रदेश आतमना जाणो, शुद्धवास जीव होयरे; गुणपर्याय स्वभाव अनंता, एकेकप्रदेशे जोयरे. श्री संखे० ॥ २ ॥ ज्ञाता ज्ञेय ने ज्ञान त्रिभंगी, आतममांही समाय; स्ति नास्ति समकाले लाधे, एवो आतमरायरे. श्रीसंखे० ॥ ३ ॥ धर्माधर्मने पुद्गलाकाश, तेहतणा प्रदेशरे; गुणपर्यायधर्म तसकेरा, नहि जीवप्रदेश लेशरे. श्रीसंखे० ॥ ४ ॥ शुद्ध बुद्ध परमात्मस्वरूपी, अव्याबाध अभंगरे; अविनाशी अकलंक अजोगी, जोगी अयोगी असंगरे. श्री संखे० ॥ ५ ॥ नित्यानित्यने अकानेक, सदसत्भाव विचाररे; वक्तव्यावक्तव्य ए आठ, -पक्षतणो आधाररे. श्री संखे० ॥६॥ शुद्धस्वरूपी ज्ञानानंदी, चेतनवास कहायरे; सुख अनंतु चेतनघरमां, वचनअगोचर थायरे. श्रीसंखे० ॥७॥ आत्मथकी लूटे जब कर्म, तब पामे शिवस्थान रे; शाश्वत अमल अचलपद जावे, वास्तुक For Private And Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१५ पूजा मानरे. श्री संदे० ॥८॥ एणीपेरे वास्तुकपूजा करशे, ते तरशे संसाररे; बुद्धिसागर क्षायिक समकित; चारित्रे लहे भवपाररे. श्रीसंखे० ॥९॥ कलश. गाइ गाइरे ए वास्तुकपूजा गाइ. अचल अमल अनंग महोदय, शुद्धसत्ता निज ध्यायी; समकितदाय कहेते पूजा, करतां हर्ष वधारे, ए वास्तुकपूजा गाइ. ॥१॥ मिथ्यापरिणतिनाशक तारक-आ. स्मस्वनावे सुहाइ; परमातमपदप्राप्तिकारक, सुख. कर समकितदारे. ए वास्तुक० ॥२॥ धरणेंद्र पद्मावती देवी, जेहनी सारे सेव; सुरपतियतितति भूपतिपूजित, श्रीसंखेश्वर देवरे. ए वास्तुक० ॥३॥ तासपसाये पूजा रची ए, हर्ष अति दिल लायी; जयजय मंगळमाळाकमळा, आतममां प्रगटाइरे. ए वास्तुक० ॥ ४ ॥ जन्मभूमिविजापुरगामे, मासकल्प करी सार; ओगणिशसाठमाघसुदि बारस; रचतां जयजयकाररे. ए वास्तुक० ॥५॥ विद्यादायक धर्मसहायक, गंभीर श्रद्धावंत; दोशी नथुना मंडा. रामना, हेते एह रचंतरे. ए वास्तुक० ॥ ६ ॥ शेष बगनलाल बेचरकाजे, कीधी रचना जावे; संघ सका For Private And Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ मां आनंदमंगल, ऋद्धि वृद्धि सुख थावेरे. ए वास्तुक० ॥ ७ ॥ तपगच्छजगगुरु हीरविजयसूरि, जस गुण सुरनर गाया; तास शिष्य श्री सहेजसागरजी, उपाध्याय सुहायारे. ए वास्तुकः ॥ ८ ॥ पट्टपरंपरा नेमिसागरजी, क्रियावंत महंत; तास शिष्य श्री रविसागरजी, वैरागी गुणवंतरे. ए वास्तुक० ॥ २ ॥ संवेगी यातमगुणरंगी, सुखसागरगुरुराया; गामोगाम विहार करंता, विद्यापुरमां आयारे. ए वास्तुक० ॥ १० ॥ चढते भावे हर्ष उल्लासे, कीधी रचना एह; भव्य जीवने अमृतसम ए, चातकने जेम मेहरे. ए वास्तुक० ॥ ११ ॥ शांति तुष्टि सुखसंपदा थावे, रोगशोग दूर जावे; बुद्धिसागर शाश्वतपद लही, मुक्तिवधूसुख पावेरे ए वास्तुक० ॥ १२ ॥ श्रीसंखेश्वरपास प्रभुजी, गातां सुखडां विशाल; श्रीविद्यापुर सकलसंघम, होवे मंगलमालरे. ए वास्तुक० ॥१३॥ मंत्रः - ॐ नमो भगवते० जलं, चंदनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं यजामहे स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . पा करवा. ४१७ वास्तुकपूजाविधि. दरेक वस्तु पांच पांच लेवी, अष्टप्रकारी पू. जानो सामान लेवो, आठ स्नात्रीया करवा. ___एककळश ग्रहण करे, बीजो केशरनी वाट की ग्रहण करे, त्रीजो फुलनो हार वा छटां फुल ग्रहण करे, चोथो धूप, पांचमो दीपक, छठो रकेवीमां अ. क्षतनो स्वस्तिक लइने उन्नो रहे, सातमो नैवेद्य लइ उभो रहे, आठमो फळ लइ उभी रहे. दरेक पूजाए अनिषेक करी पूजा करवी. ५ कलश, ५ केशरनी वाटकी, ५ फुलना हार, धूपधाणूं, ५ दीपक, ५ चोखाना साथीआ, ५ नैवेद्य, ५ फळ. __ वास्तुकपूजा जेनुं घर करे, अने तेमा प्रवेश करे ते जणावे. तेने घेर आ पूजा भणावतां आनंद मंगळ थाय. रोग, शोक, वहेम सर्वे नाश पामे. नवस्मरण, कुंभनी स्थापना करी अने दीवो करी भणवां. शक्ति होय तो स्नात्रीयाने जमाडवा. इंद्राणीओ छोकरीओने करवानो भाव शक्ति होयतो करवी. इति वास्तुकपूजा संपूर्णा ॥ For Private And Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ अष्टप्रकारी पूजा. परमेश्वरमहावीर जिन, तीर्थकर गुणधाम; चोवीशमा श्रीजिनपति, सर्वजीवविश्राम. ॥ १ ॥ अनंतगुण उपकारी जे, शासननायक देव; द्रव्यजावथी पूजतां, प्रगटे आनंदमेव ॥२॥ द्रव्यजावथी पूजना, अष्टप्रकारी बेश; करतां नरने नारीओ, दूर करे सहु क्लेश. ॥ ३ ॥ महावीरदेवे पूजना, भाखी नवीदितकार, तेकारण पूजा रचुं मनशुद्धिकरनार ॥ ४ ॥ कारणे कार्यनी सिद्धि छे, द्रव्यथी जाव सधाय; भक्तिवंतधर्मीजना, पूजाथी शिव पाय. ॥ ५ ॥ प्रथम जलपूजा. ( सांभरे सहियां हमारी. ए देशीनी चोपाया चाल . ) प्रभु महावीर जग जयकारी, परमेश्वर जिन उपकारी ॥ द्रव्यभावथी स्नात्र करीजे, प्रभु उपर प्रेम परीज तेथी निजी पूजा वरीजेरे, द्रव्यभावथी पूजा साठी; मोदवृत्तिन हरनारी. प्रभु० ॥ १ ॥ मेरु उपर प्रजुने लाव्या, जलथी इन्द्रे न्हवराध्या; For Private And Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१९ पंचरूप धरी गुण गायारे, तेम स्नात्र करी नरनारी, करे समकितशुद्धि अपारी. प्रभु० ॥ २ ॥ भाव समकितजल अभिषेके; मिथ्यामेल रहे न विवेके; पूजो महावीरजिनने टेकेरे, त्यजी जूठी दुनियादारी; प्रभुशरण ग्रही हितकारी प्रभु ॥ ३॥ मोंघाकाले नयने दीठा, लाग्या आतमरूपे मीठा; थया कुदेव मोही अनीठारे, लागी तुजथकी एकतारी; लागी ताहारी मूर्ति प्यारी, प्रभुः ॥ ४ ॥ तुज उपर जडं सहु वारी, प्रभु ताह्यरी साधी यारी; मरुं मर्या पहेलां मोह मारीरे, एवी पूजा बनो हितकारी; करो करुणा एहवी सारी. प्रभु० ॥ ५ ॥ प्रभुपूजा करूं प्रभुरंगे, निजआतमशुद्धउमंगे; कदि पहुं न मिथ्याढंगेरे, बुद्धिसागर प्रभु अवधारी; लही यातमसुखनी खुमारी. प्रभु० ॥ ६ ॥ ॐ ह्रीं श्री प० जलं यजामहे स्वाहा ॥ द्वितीया चंदनपूजा. चंदनथी प्रभु पूजतां - आतम शीतल थाय, भावी समता चंदने, पूजे ते शिवपाय ||१|| हर्षनाव For Private And Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० केशर भळे, लाली प्रगटे अंग. श्रद्धाप्रेमसुवास थी, प्रगटे यानंद रंग ॥२॥ (रहो गुरुजी फागण चोमासुरे. ए राग.) प्रभु महावीर जिनवर मळियारे, म्हारा मनना मनोरथ फळियारे. प्रभु॥१॥ समताचंदन घसी रंगेरे, अर्चु महावीरप्रभुअंगेरे दिल चढता नाव ऊमंगेरे. प्रभु० ॥२॥शुद्धअमृतरसनी क्यारीरे, रह्या मोही जगत नरनारीरे; सत्यसद्भूतमूर्तिप्यारीरे. प्रभु ॥ ३॥ प्रभु दीठे चमणा नागीरे, सम्यक्त्वदशा घट जागीरे, रोमरोमे थयो तुजरागीरे. प्रजु० ॥४॥ प्रजु मळिया आविर्भावेरे-निजसद्भूतआत्मस्वभावेरे, शमचंदने पूज्या सुहावरे. प्रभु० ॥५॥ प्रभु दिलमां धरी प्रभु थाईरे, प्रभुचंदनपूजाजावुरे; बुद्धिसागर जिनवर गावुरे, प्रभु० ॥६॥ ॐ ही श्री परम चंदनं० या स्वाहा ॥ तृतीया पुष्पपूजा. द्रव्यभावथी पुष्पनी, पूजा प्रभुनी बेश; कर दुर्गुण दुःखडा, नासे सघळा क्लेश. ॥१॥ नावथी For Private And Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२१ पंचाचार . गुणकरपुष्पप्रधान; तेथी जिनवर पूजतां, बनो स्वयंभगवान्. ॥ २॥ काल अनादि न ओळख्यो, ओळख्यो ज्ञाने आज; पंचाचारना पुष्पथी, पूजुद्धं जिनराज. ॥ ३॥ (सांभळजो मुनि संयमरागे-उपशमश्रेणि चढियारे. ए राग.) पूजु महावीर जिन जयकारी, चिदानंदरूप. धारीरे, तुज उपयोगे क्षगक्षण जीवं, नक्तिनाव व. धारीरे. पूजु० ॥१॥ ज्ञानने दर्शन चरणाचारे, तपने वीर्याचारेरे; रहेतां द्रव्यने नावथी आतम, धर्मसुगंधी प्रसारेरे. पूजंग ॥२॥ क्षयोपशमने उपशम क्षायिक, नावनी शुद्धि वधारेरे; पंचाचारसुपुष्पे पूजा, करतां शिवपद धारेरे. पूजुंग ॥ ३ ॥ मैत्रीप्रमोदमध्यस्थ करुणा, साविकपुष्पनी माळारे; प्रभुना कंठे प्रेमे चढावी, पीयूँ प्रभुरसप्यालारे. पूजुंग ॥ ४ ॥ प्रभु गुण गावे समरे ध्यावे, आतम प्रजुरूप थावेरे; जेवी जावना तेवी सिद्धि, अंतरमा सुख पावेरे. पूजुंग ॥ ५॥ हाथे चढियो आंखे देखायो, हवे न छोडं क्यारेरे; बुद्धिसागर आत्मउजागर, उपयोगे निज. ताररे. पूजें ॥६॥ ॐ ह्री श्री प० पुष्पं या स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्थी धूपपूजा. द्रव्य नाव बे नेदी, धूपनी पूजा श्रेष्ठ; क. रतां आतमबळ वधे, पडतुं पशुबलहेत. ॥१॥ चारे ध्यानना धूपथी, पूजंतां जिनराज; मोहनी दुर्गधी टळे, सिद्धे शिवपदकाज. ॥२॥ भावथी प्रभुनी पूजना, आतमपूजा जाण; सम्यग्दृष्टिजी. वनी, करणी सर्व प्रमाण. ॥ ३ ॥ झुंमखडानी देशी. धन्य प्रभु महावीरनेरे, सत्य जणाव्यो धर्म; म. हावीर पूजीए; बारवर्षना ध्यानथीरे, टाळ्यां घा. तीकर्म. महावीर ॥१॥ पिंडस्थने पदस्थथीरे, रूपस्य रूपातीत; महावीर चारध्यानरूपधूपथीरे, आतम शुद्धप्रतीत. महावीर० ॥२॥ आर्तरौद्रदुर्गधनेरे, टाळो वेगे दूर, महावीर एकतालीनतायोगथीरे, प्रनुजी हजराहजूर. महावीर० ॥ ३ ॥ धर्म शुक्ल बे भ्यानथीरे. आपोआपप्रकाश; महावीर० ध्यानधूपे प्रभु पूजतारे, व्यक्तानंदविलास. महावीर ॥४॥ इयल भ्रमरी संगथीरे, चमरीरूप सुहाय. महावीर० For Private And Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२३ बुद्धिसागरआतमारे, प्रभुध्याने प्रजु थाय. महावीर० ॥ ५॥ ॐ ह्री श्री प० धूपं, यजामहे स्वाहा. पंचमी दीपकपूजा. पंचमी दीपकपूजना, करतां आत्मप्रकाश; मतिश्रुतज्ञानना दीपके, मिथ्यातमनो नाश ॥१॥ सम्यगज्ञानी जीवने, सघनु सहु प्रणमाय; आस्त्रव ते परिश्रवपणे, थावे आतममांह्य. ॥२॥ दीपक मीसे ज्ञाननो, दीपक जो प्रगटाय; आतम पोते वि. श्वनो, ज्ञानी निश्चय थाय. ॥३॥ (जिनपद जगमां याचं जाणो, स्वरूप रमण मुश्लिासी. ए राग) धन्य प्रभु महावीरजिनेश्वर. अनंतगुणा उपकारीजी; जेनुं संप्रति शासन वतें, भावदयानंडारी, जिनवर भजीएजी; पामी सम्यग्ज्ञान, दीपके यजीएजी. ॥ १ ॥ दर्शनमोह टळ्याथी सम्यग्,-नावे ज्ञान प्रकाशेजी, मतिश्रुतअवधिने मनपर्यव, केवलज्ञान विकासे. जिन ॥२॥ मति अद्यावीश त्रण लो For Private And Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ · चालीश, जेदे वीरे प्रकाश्युंजी; चउद वीश श्रुतभेद प्रकाश्या, समकितीने विकाइयं. जिन० ॥ ३ ॥ अवधि असंख्य प्रकारे प्रगटे, मनपर्यव बे नेदेजी; क्षयोपशमभावे ए चारे, ज्ञान तिमिरने छेदे जिन० ||४|| लोकालोकप्रकाशक केवल -ज्ञान ते व्यापक एकजी; मतिश्रुतदीपकथी प्रभु पूजे, प्रगटे धर्म विवेक. जिन० ॥ ५ ॥ द्रव्यभावथी दीपकपूजा, गृही यतिने अधिकारेजी; बुद्धिसागर आत्मशुद्धि, निश्चयने व्यवहारे, जिन० ॥ ६ ॥ ॐ ह्रीं श्री० परम० दीपं यजामहे स्वाहा. षष्ठी स्वस्तिकपूजा. स्वस्तिक प्रभुनी आगळे, करतां स्वस्ति थायः द्रव्याव स्वस्तिक करे, जव्यो शिवपद पाय ॥१॥ चतुर्गतिरूप साथीयो, करीने मागो एम सिद्ध शिलानी उपरे, शिवस्थानक सुखक्षेम. ॥२॥ चारकषायथी चउगति, कीधां भ्रमण अनंत स्वस्तिक करी प्रभु वागळे, पामो शिवपद संत ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२५ (विमला लवासी मारा व्हाला सेवकने विसारो नहीं विसारो नहीं. ए राग. ) महावीर जिनेश्वर पाये पहुं, तुजरूप बनुं रूपबनुंः समजावे रही एकरूप बनी उपयोगे भणुं; योगे भं ॥ चतुर्गतिरूपस्वस्तिक आगळ, दर्शन ज्ञानचा. भणुं रित्र; त्रण्यपुंजने सिद्धशिलापर, मुक्तिनुं चिह्न पवित्र प्रभुतुजरूप० म० ॥ १ ॥ चारे सामायिक स्वस्तिकथी, रत्नत्रयी ज पमाय; तेथी सिद्धशिलापर मुक्ति, जक्तयोगी झट पाय॥ प्रभु तुज० म० ॥२॥ चारेप्रकारे संघनो स्वस्तिक, मंगलरूप सदाय. पा मी त्रिपदीज्ञान करीने, जक्तयोगी शिवपाय. प्रभु० म० ॥ ३ ॥ चारमहायमस्वस्तिकरूपी, त्रणगुप्ति जे पाय; पूरण आत्मसमाधि पामी, पुर्ण सुखी झट याय, प्रभु० म० ॥ ४ ॥ आध्यात्मिक संकेते ज्ञानी, प्रभुने पूजी एम बुद्धिसागरक्षायिकभावे, पामे योगने क्षेम. प्रभुतुज० म० ॥ ५ ॥ ॐ ह्रीं श्री परम० स्वस्तिकं यजामहे स्वाहा॥ ५४ For Private And Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२६ सप्तमी नैवेद्यपूजा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुहा. द्रव्यभावनैवेद्यथी, प्रभुने पूजे जेह, प्रभु स्वरूपे थै रहे, देहछतां वैदेह ॥ १ ॥ अनुजवनैत्रेये भली, आतमपुष्टि थाय; आत्मरसी आतम बनी, बाह्यरति नहि थाय. ॥ २ ॥ जडरसनैवेद्य मूकीने, यातमरसनैवेद्य पामत्रं ते प्रभुपूजना, करे रहे नहि वेद ॥ ३ ॥ · ( व्हाला वीर जिनेश्वर जन्मजरानिवारजोरे, ए राग . ) व्हाला यातम वीर जिनेश्वर पूजुं जावथीरे; सहेजे आनंदनैवेद्ये पूजुं गुणदावथीरे ॥ आतम रस प्रगटात ज्यारे, बाह्यमां रसनी ब्रांति न त्यारे; जडतां बंधन मुक्ति सहजभाव उपयोगथीरे. व्हाला० सहेजे० ॥ १ ॥ तुजरसमां रंगाया जेओ, पछीथी नहि जडरसिया तेओ; एत्री नैवेद्यपूजाए पूजूं उमंगधीरे व्हाला०स०॥२॥ तुज मुज अंतर्वेद ज जागे, आतम आपस्वरूपे जागे; पठीथी शांति तुष्टि पुष्टि सहजस्वभावथीरे. व्हाला० ॥ ३ ॥ एवी पूजा थातां सारी, प्रगटे आनंद पूर्णखुमारी; पछीथी दुःख रहे नहि जडवस्तुना अभावधीरे व्हाला For Private And Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२७ ॥ ४ ॥ जीवन्ती प्रभुपूजा एवी, उपयोगे अंतर्मा लेवी; पामे बुद्धिसागर आनंद आत्मस्वनावधीरे. व्हाला० ॥ ५॥ ॐ ह्री श्री प0 नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ अष्टमी फलपूजा, मुक्तिफलने पामवा, फलथी पूजु देव; फलथी फल निश्चय मळे, नासे मोहनी टेव. ॥१॥ द्रव्य भाव बेभेदथी, निश्चयने व्यवहार, सापेक्षे फल पूजना, उपयोगे सुखकार. ॥२॥ विनय अने बहुमानथी, श्रद्धाप्रीतियोग; फलपूजा जिनराजनी, क. रतां शिवसंयोग. ॥३॥ (उत्तम फलपूजा कीजे, ए राग.) धन्य महावीर उपकारी, त्रिशलानंदन जयकारी; सिद्धारथकुलमनोहारीरे, लगनी तुज साथे लागी. भाग्यदशा पूरण जागीरे ॥ लगनी० ॥ तुजरूपे थइयो रागीरे. लगनी ॥१॥ पूरणरागे घट धार्यो, नागो मोह घणुं हायों; मसं न हवे कोथी मार्योरे. For Private And Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ लगनी० ॥ २ ॥ फलपूजा करतां भावे, उपयोगे शिवफल पावे; भक्ति नकामी नहि जावेरे. लगनी० ॥ ३ ॥ समकितीनी सहुकरणी, मोक्षमहेलनी निःसरणी; पूजादिक निर्जर वरणीरे लगनी० ॥ ४ ॥ तुज श्रद्धा प्रीति साची, जडनी माया सहु काची; माची रह्यो तुजमां राचीरे, लगनी० ॥ ४ ॥ निष्कामे सेवाभक्ति, करतां प्रभु प्रगटे शक्ति; बुद्धिसागर प्रभुव्यक्तिरे. लगनी० ॥ ६ ॥ कलश धन्याश्री. गायो गायोरे महावीर जिनेश्वर गायो ॥ त्रिशलानंदन शासननायक; परमेश्वर जगरायो; अष्टप्रकारी पूजा रचीने, भावथी गायो ध्यायोरे. महावीर० ॥ १ ॥ चउनिक्षेपे सातनयोथी, पूजा पूज्यने जाणी; द्रव्यने जावथी पूजा करंतां, पामो मुक्ति निशानीरे ॥ महावीर० ॥ २ ॥ सम्यग्दृष्टिने द्रव्यने जावथी, पूजा शिवसुखकारी; चढतेजावे निर्जराकारी, मुक्ति अनुभवधारीरे. महावीर० ॥ ३ ॥ जक्क जनो जक्तिरस पावे, जावे ते चित्तलावे, नक्तिथी चित्त शुद्धिने ज्ञाने, क्षणमां मुक्ति सुहावेरे. महावीर० ॥ ४ ॥ श्रद्धाप्रीति सेवाजक्ति, करनारां नरमारी; For Private And Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२९ निश्चयमुक्तिपदने पामे, उपयोगे गुणधारीरे. महावीर० ॥ ५ ॥ वीरजिनेश्वरपट्टपरंपरा, तपगच्छी सूरिराया; जगगुरुहीरविजयसूरिमोटा, नरपतिसुरपति गायारे. म० ॥ ६ ॥ पट्टपरंपरासागरसाखे, रविसरखा गुरुराया. रविसागरगुरु पूर्णप्रतापी, भारतसंत सुहायारे. म० ॥ ७ ॥ तस शिष्य संवेगी मुनिशेखर, सुखसागरगुरुराया; तास कृपाए पूजा रचीने, आनंद अतिशय पायारे. म० ॥ ८ ॥ ओगणिश अट्योत्तेर चैत्रीसुदि, -नवमीने गुरुवारे; विजापुरमां चढता पहोरे, पूजा रची प्रभुप्यारेरे. महावीर० ॥ ९ ॥ प्रभुमयमनवचकाया थाशो, भक्तिगुण प्रगटाशो; शुद्धातममहावीरोपयोगे, आयु एम व हाशोरे म० ॥ १० ॥ अनुभव आनंद प्रगट्यो न छूपे, तूपे न भानु छुपायो; बुद्धिसागर आनंदमंगल, आतमतेजे सुहायोरे. म० ॥ ११ ॥ ॐ प० महावीरजिनेन्द्राय फलं, य० स्वा० For Private And Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४३० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महागुरुश्रीरविसागरजी गुरुपूजा. प्रथम सद्गुरुसंगतिरूप जलपूजा. परमश्वर महावीर जिन, चोवीशमा जिनदेव; परमब्रह्म परमातमा, तीर्थंकर करूं सेव ॥१॥ गएधर गुणवंता गुरु, श्री सुधर्म प्रधान; गणधर पट्टपरं परा, श्वेतांबर गुणवान् ॥२॥ वरुगन्थी तपगहनी, परंपरा वर्ताय; जगगुरु हीरविजयसूरि, थया महागुरुराय. ॥ ३ ॥ विद्यासागर मुनिवरा, सहज सागर मुनिराज पट्टपरंपरा शोभता, संवेगी शिरताज. ॥ ४ ॥ नेमिसागर मुनिवरा, व्रताचार गुणवंत; तास शिष्य गुण गणधरा, रविसागरजी संत ॥ ५ ॥ गुरु पूजा रचुं जावथी, मुनिपरमेष्ठी जेह; गुणी गुण गातां जातां, पवित्र मनवचदेह || ६ || ( मेतारज मुनिवर धन्य धन्य तुम अवतार. ) धन्य धन्य साधुसंगति करनाएं नरनार ॥ मरुदेशे शुभ पालीनगरे, श्रावककुलमांही चंद- श्रेष्ठी राघवजी गुणवंता, पत्नी माणिक गुणवंत; तस कुखे जन्म्या रवचंद पुत्र उदार० धन्य० ॥ १ ॥ अनंत पुण्ये श्रावककुलमां, जन्म भवीनो थाय; अनंत पुण्ये संत समागम, धर्मरुचि प्रगदाय; श्री जैन For Private And Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मनो जगमां के आधार. धन्य० ॥२॥ मात पितानी साथे आव्या, आजीविकाहेत; नेमिलागरगुरुजी मळिया, पूरवपुण्यसंकेत; शुन साधु संगति भवी जीवने हितकारण धन्य० ॥ ३ ॥ साधुसंगे देवगुरुने, धर्मनी श्रद्धा थाय; मिथ्याबुद्धि झट विणशेने, सत्यबुद्धि प्रगटाय. शुभ० धन्य० ॥ ४॥ गुरुनी सेवा भक्ति करेजी, विनय धरी बहुमान; बुद्धिसागरसद्गुरुसंगे, प्रगटे कोटि कल्याण. शुभ धन्य० ॥५॥ ॐ ह्री श्री गुरुपदपूजार्थं जलंग यः स्वाहा । द्वितीया गुरुमुखआगमश्रवणरूपाचन्दनपूजा. गुरुपासे नित्य सांभळे, आगम शास्त्र प्रमाण; जिनवर वाणी सांभळे, प्रगटे मतिश्रुतज्ञान. ॥१॥ ( पुखलवइ विजये जयोरे, ए राग.) __विनय अने बहुमानथीरे, करी सुगुरुनी सेव; जे गुरुवाणी सांनळेरे, ते पामे शिवमेवरे भविका; सुणजो गुरुगमशास्त्र. ॥ १॥ गुरुमुखे आगम सां For Private And Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ भळेरे, ते धन्य धन्य नरनार; धर्मशास्त्रना बोधथीरे, सफल मनु अवताररे. भ० ॥२॥ गुरुसेवा नक्ति वळेरे, प्रगटे सम्यग्ज्ञान; नगुरा नास्तिक प्राणियारे, धारे दिल अज्ञानरे. न० ॥३॥ गीतार्थ सद्गुरुगमवडेरे, विघटे मिथ्याबुद्धि, वैयावचीप्रेमथीरे, करतो हृदयनी शुद्धिरे. जण ॥ ३ ॥ गुरुमुखे तत्त्वने सांजळेरे, ज्ञाननी वृद्धि थाय; गुरुश्रद्धाप्रीतिबळेरे, सवळं सहु प्रणमायरे. भ० ॥ ५ ॥ गुरुमुखथी शास्त्रो सुणीरे, पाम्या रवचंद ज्ञान; देवगुरुने धर्मनीरे, श्रद्धा प्रगटी प्रमाणरे. भ० ॥६॥ नयगमभंगप्रमाणथीरे, आतमज्ञान सुहाय; बुद्धिसागरगुरुमुखेरे, धर्म सुणे शिव थायरे. भ० ॥ ७ ॥ ॐ ह्री श्री आगमश्रवणार्थ गुरुपदलक्तये चंदनं, यजामहे स्वाहा ॥ तृतीया सम्यक्त्वग्रहणरूपा पुष्पपूजा. गुरु आगम आलंबने, समकितश्रद्धा थाय: उपशम क्षयोपशम तथा, क्षायिकगुण प्रगटाय. ॥१॥ व्यवहारे समकिततणां, कारण जेह गणाय; For Private And Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३.३ ते अवलंब्यां भविजना, समकित भावे सुहाय ॥२॥ समति पायो आतमा, कर्मोदये भटकाय; उच्च नीच भव पामतो, अंते मुक्ति पाय. ॥ ३ ॥ ( कानुडो न जाणे मारी प्रीत. ए राग. ) समकित पामो नरने नार, गुरुमुख बोध ग्रहीनेरे. समकित० ॥ देवगुरुपर रुचि, समकित प्रगट्यां थावे; प्रगटे संयममुक्तिप्रेम, ब्रह्मनो बोध वहीनेरे. समकित० ॥ १ ॥ द्रव्यथी भावने पावे, व्यवहारे निश्चय थावे कारणयोगे कार्य सधाय, आतमधर्म स्वावे. समकित० ॥ २ ॥ सम्यग्भावने जाणे, समकिती आतमज्ञाने; यास्त्रवहेतुथोपण थाय, संवरभावे सुज्ञानेरे. समकित० ॥३॥ मिथ्याशास्त्री पण सवळां, कोइ न थातां अवळां; सम्यग्दृष्टियोगे हेतु - सर्वे थाता सवळारे. समकित० ॥ ४ ॥ समकितीमहे वे शक्ति, प्रगटावे केवलव्यक्ति; जडमां प्रगट्यो मोहविभाव टाळे झट आसक्तिरे. समकित० ॥ ५ ॥ सद्गुरुसंगे प्रगटे, मिथ्याबुद्धि झट विघटे; नगुरा नास्तिक मूढाञ्चोक, मिथ्याज्ञाने भटकेरे समकित ॥ ६ ॥ नेमिसागरजी बोधे, रवचंद तत्त्वो शोधे; पाम्या द्रव्यभाव समांकेत, मोहनी ५५ For Private And Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ वृत्ति रोधेरे. समकित० ॥ ७ ॥ व्यवहारे समकित ग्रहियुं, आंतर जावे वहियुं; सम्यग्दृष्टिए अध्यात्म-, रूपज अंतर लहियुंरे. समकित० ॥ ८ ॥ देवगुरुपर भक्ति, धर्मनी साची प्रीति; बुद्धिसागरगुणसम्यक्त्व, प्रगटे धर्मनी रीतिरे. समकित० ॥ ९॥ देशविरतिव्रतग्रहणरूपाचतुर्थी धूप पूजा. समकित परिणतिबलवडे, विरति प्रगटे खास; विरतिथी होय निर्जरा, कर्मक्षये शिववास. ॥ १ ॥ समकितवण व्रततपवडे, मळे न साचीमुक्ति; सम्यगूहष्टिजीवनी, सफळी सर्वप्रवृत्ति ॥ २ ॥ समकित योगे उपजे, मनमां विरतिभाव; भावविरति, समकितीने प्रगटे निमित्तदाव ॥ ३ ॥ ( सांभळशो मुनि संयारागे ए राग. ) श्रावकत्रतनी छे बलिहारी, धर्मीने हितकारीरे; गुरुपासे उच्चरी नरनारी, पामे जवोदधि पारीरे. श्रावक ॥ १ ॥ पंचमगुणस्थानक देशविरति, देश उपाधि हावेरे; जे जे अंशे निरुपाधिकता, ते अंशे For Private And Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३५ सुख यावे. श्रावक० ॥ २ ॥ सम्यग्दृष्टिने व्रतकि - रिया, मुक्तिहेते थावेरे; समकितदायक गुरुनक्तिए, मुक्ति अनुभव यावेरे. श्रावक० ॥ ३ ॥ नेमिसागर गुरुनी पासे, रवचंद जावे रहियारे; श्रावकनां व्रत बारे ग्रहियां, शुभजावे गहगहियारे. श्रावक० ॥ ४ ॥ षडावश्यक जावे साधे, गुरुने मुनि आराधेरे; चढता जावे निशदिन वाधे, प्रगट्या गुण न विराधेरे. श्रावक० ॥ ५ ॥ देवगुरुने धर्मनी सेवा, करता मुनि व्रत इच्छारे; गुरुने विनवे आपो मुजने, सर्वविर - तिनी दीक्षारे. श्रावक० ॥ ६ ॥ सर्वविरति लेवानी इच्छा, श्रावकने होय नक्कीरे; बुद्धिसागर आतमवळथी, पामे दीक्षा पक्कीरे. ॐ श्री सद्गुरुभक्तये, धूपं य० स्वाहा ॥ पंचमहाव्रत सर्वविरतिग्रहणरूपा पंचमीदीपपूजा. देशथी सर्वविरतिविषे, अनंती आतमशुद्धि, प्रगटे आत्मानंदता, क्षयोपशमगुणऋद्धि. ॥ १ ॥ छागुणस्थानकतणी, क्रिया द्रव्यचारित्र; भावथी For Private And Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ विरतिपरिणति, प्रगटे आत्मपवित्र. ॥२॥ गृहस्थथकी त्यागी मुनि, अनंतगुण छे महान; क्या सर्षपने सुरगिरि, चारित्रगुण बलवान् ॥ ३ ॥ व्यवहारे मुनिसद्गुरु, जैनागमथी प्रमाण; सर्वविरति चारित्रथी, प्रगटे केवलज्ञान, ॥ ४ ॥ द्रव्यभावचारित्रनी, इच्छा जेने होय; समकितीने देशविरति, भावथकी ते जोय. ॥ ५॥ गृहस्थभावे भावना, मुनि पद लेवा काज; अवसरबल प्रगटे तदा, दीक्षा ले शिवसाज. ॥ ६॥ ( सिद्धिएनमो सिद्ध अनंता, ए राग. धन्य धन्य मुनि अनगारी, सर्वविरतिचारित्र धारी; जेह सर्वजीव उपकारीरे, संयमी गुरुजी नमो गुणकारी. नमो आतमउपयोग धारीरे, संयमी. ॥१॥ द्रव्यने जावथी हिंसाटाळे जेह उत्सर्गने अपवादे चाले, सत्य वदता अस्तेयने पाळेरे. संयमीण ॥२॥ द्रव्यनाव ब्रह्मचर्यनाधारी, नवविधपरिग्रहना जे निवारी, रात्रीभोजनना परिहारीरे. सं० ॥३॥ चारित्र एवं धरे व्यवहारे, निश्चयथी निज उपयोग म्हाले, नेमिसागरगुरु कलिकालेरे, संयमी० ॥ ४ ॥ संवतओगणिसेंसातनी साले, मौन एकादशी For Private And Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुभवारे, गुरुपासे दीक्षा ग्रही म्हालेरे. सं० ॥५॥ नाम थापियुं रविसागर मुनिराया, गुरुराजना निश. दिन सेवे पाया, बुद्धिसागरगुरुगुण गायारे. संयमी० ॥ ६॥ ॐ ह्री श्री अर्हगुरुपूजार्थ दीपं. य० स्वाहा.॥ गुरुकुलवासवैयावृत्यविनयकरणरूपा छट्टी अक्षतपूजा ॥ . गुरुकुलवासी मुनिवरा, पामे जगमां मान; ए. कलविहारीने नहि, तप संयम जप ध्यान. ॥१॥ गुरुपासां जे सेवता, रही गुरुनी पास; शिष्यधर्म जे पालता, बनी गुरुना दास. ॥ २॥ गुरुकुलवास रह्या मुनि, संयममां स्थिर थाय; बहुश्रुतअनुनव पा. मता, व्रष्टपणुं नहिं पाय. ॥ ३ ॥ (भवि तुम वंदोरे सातमु पद भलैरे. ए राग.) __ गुरुकुल वासीरे मुनि गुरुवंदतारे, आतमशुद्धि थाय; गुरुने स्वार्पणभावे जे सेवतारे, स्वर्ग अने शिव पाय. गुरु० ॥१॥ आचारांगने दश वैकालिकेरे, गरु For Private And Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३८ कुलवास वखाण; उत्तराध्ययने वैयावच्चीनीरे, पडती थाय न जाण. गुरु० ॥ २ ॥ गुरुवैयावच्चयोगे गुण वधेरे, गुण प्रगट्या नहिं जाय; गुरुना विनय अने बहुमानथीरे, मतिश्रुतवृद्धि थाय. गुरु० ॥३॥ गुरुनी आपी शिक्षाओ ग्रहेरे, गुरुयाशय सहु जाण; अवळामांथी पण सवलु ग्रहेरे, समतादिक गुण खाण. गुरु० ॥ ४ ॥ आतम उपयोगे करणी करेरे, चढता भावे सदाय, गुरुआज्ञामां अर्पाइ जतोरे, गुरुपरश्रद्धाप्यार. गुरु० ॥५॥ द्रव्यने गुणपर्यायथी यातमारे, नयथी जाणे तत्व; आतम शुद्ध स्वरूपे परिणमेरे, पामे उत्तमसत्व. गुरु० ॥६॥ गुरुनी श्रद्धाप्रीतियोगथीरे, प्रगटे यातमज्ञान; स्वाभाविक ए जगमां कायदोरे, पाळे ते गुणवान् . गुरु० ॥ ७॥ नेमिसागरगुरुनी पासमारे, रविसागर मुनिराज; रहीने गुरुनी सेवाभक्तिथीरे, साभ्यां था. तमकाज. गुरु० ॥ ८॥ गुरु आज्ञामां धर्मने जाणी नेरे, साधे आतमधर्म; बुद्धिसागरगुरुनी महेरथीरे, प्रगटे मुक्तिशर्म. गुरु० ॥ ९॥ ॐ गुरुपदपूजार्थ अक्षतं य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३९ सप्तमीचारित्राराधनरूपा नैवेद्यपूजा. दोहरा. गुरु आज्ञाए वर्ततां, संयमयोग सधाय; आस्रवना पण हेतुओ, संवर हेतु थाय ॥ १ ॥ आतमना उपयोगथी, कर्मोंदयमां धर्म; यातो निश्चयभावथी, करतां बाहिरकर्म. ॥ २ ॥ आतमगुणमां रमणता, ते चारित्र सुहाय; आत्मरमणताकारणो, ज्ञानीने सहु थाय. ॥ ३ ॥ ( तेजे तरणिथी वडोरे. ए राग. ) ग्राम नगर पुर विचरतारे, पाळे पंचाचार; चारित्र लहीने पाळवुरे, शूरानो व्यवहार हो. जगमां, चारित्र पाळवं दोहिबुंरे. ॥ १ ॥ गुर्जर सोरठ देशमारे, विचरे दे उपदेश; तप तपता भणे आगमोरे, सहे परिषह ने क्लेश हो. जगमां चा० ॥ २ ॥ नेभि सागर गुरुवरेरे, निजपट्टे गुणी जाण; थाप्या रविसागर गुरुरे, सर्वसमय सावधान हो जगमां चा० ॥ ३ ॥ धर्मक्रिया योगी मुनिवरारे, सागरवरगंजीरः सिंहनी पेठे पराक्रमीरे, मेरुपेठे धीर हो. जगमां चा० ॥ ४ ॥ मूळ उत्तर चारित्रनोरे, धरता शुभ For Private And Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४० व्यवहार; धर्मप्रनावना बहु करेरे, सुधरावें आचार हो. जगतां चा० ॥५॥ कहेणी रहेणी जेहनीरे. सरखी मुनि शिरदार; ते कालना मुनिवन्दमारे; उस्कृष्टा अनगार हो. ज० चा ॥ ६॥ नावसागरजी नामनारे, शिष्य कर्या अनगार; बीजा सुखसागर कीरे, समता गुणभंडार हो. जण चा० ॥ ७ ॥ जाणे गुरुर्नु सहु गुरुरे, गुरुथी जेह अभिन्न; बुद्धिसागर सदगुरुरे, समभावे लयलीन हो. ज० चा ॥८॥ ॐ गुरुपदपूजार्थ नैवेद्यं य स्वाहा ॥ अष्टमी ध्यानसमाधेिरूपा फलपूजा. ध्यानसमाधियोगथी, प्रगटे सहजानन्द; स. हजानन्दने पामवा, धर्मप्रवृत्तियन्द. ॥ ॥ दर्शन ज्ञानने चरणमां, वर्ते सहजसमाधि, आतम आनन्दफलतणा, स्वादे रहे नहि आधि. ॥२॥ आतम यानन्द पामवा, ध्यानसमाधियाग; उपादान कारण का, निमित्त गुरुसंयोग, ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४१ ( जिनपद जगमां जाचं जाणो - ए राग. ) सर्वविरतिधरगुरु जयकारी, नमुं पूजुं उपकारीजी, समकितचारित्रदायकगुरुनी, जगमां बे बलिहारी; गुरुजी भजीए जी, पामी गुरु उपदेश; मोहने तजीए जी० ॥ १॥ आर्त रौद्रने प्रगट्यां त्यागे, धर्मध्यानमां जागेजी; वर्ते आतमगुणना रागे, रहेता जे वैराग्ये. गुरु० ॥ २ ॥ वर्ते आतमगुण उपयोगे, आतमआनंद भोगेजी; दिलमां रहे नहि हर्षे शोके, क्षण न रहे जे ढोंगे. गुरु० ॥ ३ ॥ आतमना उपयोगे म्हाले, आतमगुण अजुवाळेजी; मोहासक्तिनां वी वाळे, चारित्र एवं पाळे. गुरु० ॥ ४ ॥ ध्यानसमाधियोगे रमता, मोहवने नहि भमताजी; सर्वकार्य करतां समता, ज्ञाने मोहने दमता गुरु० ॥ ५ ॥ क्षयोपशम आनंदने पामे, अंतरमां विश्रामे जी; निश्चय वरता अनुभवठामे, पडे न मिथ्या नामे; गुरु ॥ ६ ॥ आतमसुखफलपूजाए जे, परम प्रभुने पूजेजी; गुरु रविसागर गुरु सुखसागर, पूजंतां मोह जे. गुरु० ॥ ७॥ मेसाणामां वृद्धपणामां, रहीने आतमध्यावेजी; सुडतालीशवर्षतक संयम, पाळी मोह हठावे. गुरु० ॥८॥ संवत् ओगणिशचोपनसाले, ५६ For Private And Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ वदि एकादशी आवेजी; जेठमासमां चढता प्रहरे, गुरुजी वर्ग सिधावे. गुरु० ॥ ९॥ आत्मोपयोगे जड चेतनमां, समनावे परिणामीजी; बुद्धिसागरसदगुरु वंदु, अतिभावे शिरनामी. गुरु० ॥ १० ॥ कलश. राग धन्याश्री. गाया गायारे एम गुरुगुण भावथी गाया. नेमिसागरजी रविसागरजी, सुख सागरगुरु गाया; द्रव्य. भावथी गुरुपदपूजा, करतां नाव चढायारे. एम. ॥१॥तपगच्छजगगुरुहीरविजयसूरि,-पट्टपरंपराआया; समकितचारित्रगुण प्रगटाया, बातमअनुभव पायारे. एम० ॥२॥ गुरुने गातां गुरुगम प्रगटे, निश्चय एह जणाया; ओगणिश अव्योतर चैतरनी, पूर्णिमा पूजा रचायारे. एम० ॥३॥ गुर्जरदेशविजापुरमाही, पूजा रची सुखकारी; संघचतुर्विधमंगलकारी, शांति पुष्टि करनारीरे. एम ॥ ४ ॥ गुरुने गातां प्रगटीखुमारी, उतरे ते न उतारी; बुद्धिसागरगुरु जयकारी, पूजो भावे नरनारीरे. एम० ॥ ५॥ For Private And Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४३ श्रीसद्गुरुसुखसागरगुरुपूजा. प्रथम सेवारूपजलपूजा. दोहरा. प्रणमुं श्रीपरमातमा, तीर्थकरमहावीर, गौतमआदिसूरिवरा, अनेकगुणगंभीर. ॥ १ ॥ श्वेतांबरतपगच्छमां, अनेक मुनि गुणवंत; संप्रति जे जग विचरता, तेमां उत्तम संत. ॥२॥ श्री सुखसागरमुनिगुरु, थया जगविख्यात; सर्वगच्छ मुनिवृन्दथी, वखणाया जगत्रात ॥ ३ ॥ गुरु गातां स्तवतां थकां, पूजंतां सुख थाय; ते कारण गुरुपू. जना, रचतां मुक्ति सुहाय. ॥४॥ गुरचरण स्थापी करी, पूजा अष्टप्रकार; द्रव्यभावथी जे करे, ते तरतां नरनार. ॥ ५॥ __(मेरु शिखर न्हवरावे हो सुरपति, ए राग.) सद्गुरु जग उपकारी हो, सद्गुणी; सद्गुरु जग उपकारी; समकित चारित्रदायकसद्गुरु, जगमा तुज बलिहारी; सर्वनावे तुजमां अर्पावं, सद्गुरु सेवा ए सारी हो सद्गुणी. स० ॥ १॥ नामरूपनो मोह निवारी, बातमभाव समारी; व्हालुं सहु तुज For Private And Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ उपरे वारी, सेवा करूं सुखकारी हो. स० ॥ २॥पवित्र सेवाजलथी पूजुं, तुज चरण उपकारी; पुष्ट निमित्त गुरुजी कलिकाले, आतमशुद्धिकारी हो. स० ॥ ३ ॥ कुंभे बांध्यं वारि रहे पण, आधारथी रहे पाणी. ज्ञाने मनवश पण गुरु मळतां, ज्ञान प्रगट गुणखाणी हो. स० ॥ ४ ॥ गुरुजी मळिया फेरा टळिया, गुरुसेवामां हळिया; सुखसागरगुरुपूजा करतां, बुद्धिवंछित फलियां हो. स० ॥ ५ ॥ ॐ अर्ह श्री सद्गुरुचरणपूजार्थ जलं य० स्वाहा ॥ · द्वितीया गुरुसमतारूपा चंदनपूजा. आतमने शीतल करे, समताचंदन मान; समताचंदन पामीने, पूजुं गुरु गुणखाण. ॥ १ ॥ भवदवताप शमाववा, समताचंदन बेश; गुरु हृदयमां जो वसे, तो प्रगटे नहि क्लेश. ( ध्रुवपद गोडी राग. ) लगनी श्री सद्गुरुथी लागी, जाति भ्रमणा भागीरे; रंगायो रागी थे रंगे, जोयुं हवे घट जागीरे. For Private And Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४५ लगनी० ॥ १॥ मुखथी महावीर जाप जपंता, आतमना उपयोगीरे. सरलहृदयने समतागुणमय, भासक निजगुणनोगीरे. लगनी० ॥२॥ प्रेमी थैने परख्या पूरा, निश्चय निर्मलनूरारे; सत्ताए परमातम सद्गुरु, संयमपालन शूरारे. लगनी ॥३॥ आतमअसंख्यप्रदेशे समता, चंदनपूजा करतारे, बुद्धिसागरआतमसद्गुरु, पामी भवी शिव वरतारे. लगनी ॥४॥ ____ ॐ ह्री श्री अर्ह सद्गुरुचरणपूजार्थ चंदनं, यजामहे स्वाहा ॥ तृतीया गुरुगुणरागग्रहणरूपापुष्पपूजा. सदगुरुगुणरागी बनी, गुरुगुणनो फेलाव; करी ए विनयने मानथी, एडे पूजनल्हाव. ॥१॥ गुरूंरागे गुण संपजे, गुरु निंदे गुण जायः गुरुनी श्रद्धा प्रीतिथी, गुरुना गुण ग्रहवाय. ॥२॥ गुरुनी श्रद्धा प्रीतिथी, गुरुनो बोध ग्रहाय; सेवा नक्ति संपजे, सगुराने समजाय. ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (निशानी कहा बतावुरे-राग. गोडी.) गुरुनी करुणा सारीरे, जेथी थतो रंक राय. गुरुनी॥गुरु करुणा गुरु रागधीरे, तनमन अर्ये प्राण; जेओ प्रनुपद पामियारे, गुरु कृपात्यां जाण. गुरु॥१॥ गुरुनी रीझमां विश्वनीरे, खीज न गणवी लगार; गुरुरागे रंगाइयारे, ते धन्य धन्य नरनार. गुरु० ॥१॥ नगुरा नास्तिक लोकथीरे, जेह नहीं भरमाय; शिरसाटे गुरुलेवनारे, पामे करुणासहाय. गुरु० ॥३॥ गुरुकृपा ते जन लहेरे, गुरुरूप थै जाय; निष्कामी थै गुरुभजेरे, गुरुथी अलगो न थाय. गुरु ॥४॥ गुरुरागी गुरुगुण ग्रहीरे, सुखसागरमहाराज, गुरुगुणप्रेमसु पुष्पथीरे, पूजे शिव साम्राज्य. गुरु० ॥५॥ द्रव्यभाव गुरुरागियारे, करता आतमशुद्धि; बुद्धिसागर आत. मारे, आविर्भावे ऋद्धि. गुरु० ॥ ६ ॥ ____ॐ ह्री अहँ सद्गुरुपदपूजार्थ पुष्पं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४७ चतुर्थी गुरुजाप गुरुस्मरण भक्तिरूपा धूपपूजा, सद्गुरुनामने स्थापना, द्रव्यनाव निक्षेप; साचा ते अवलंबतां, रहे न कर्मनी रेख. ॥१॥ सद्गुरु नामना जापथी, मोह न आवे पास, प्रभुमहावीर नामना, जापे सदगुणवास. ॥ २॥ सद्गुरुनामना जापी, आतमशुद्धि थाय; द्रव्यनावथी धूपनी, पूजा छ शिवदाय. ॥३॥ ___ सारंगराग. रीझीए रीझीए रीझीए, गुरुनाम जपी दिल रीझीए; गुरुसंगी रसिया थे रागे,आतमरसने पीजीए, गुरु० ॥ १॥ गुरुना द्वेषी नास्तिकजननी, संगति क्यारे न कीजीए; गुरुना रागी भक्तनी संगे, आत. मरसने लीजीए. गुरु० ॥२॥ समकिती चारित्री गुरु. पर, शंकादि न धरीजीए; कडवी शिक्षा अमृतसरखी, मानी क्यारे न खीजीए. गुरु० ॥ ३॥ आतम सर्व गुरुने निवेदी, गुरुनक्तिरस पीजीए; गुरुनिन्दक प्रतिपक्षी वचनार, विश्वास क्यारे न दीजीए. गुरु० ॥४॥ गुरुनाम जापनी धूपपूजाथी, दुर्गधमोह हरीजीए; बुद्धिसागरसद्गुरुजापे, प्रभुपद सहेजे वरीजीए, गुरु० ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ ___ ॐ ही श्री अर्ह गुरुपदपूजार्थ धूपं यजामहे स्वाहा.॥ पंचमी गुरुगमज्ञानरूपदीपकपूजा. गुरुथी ज्ञान प्रकाश छे, गुरुवण छे अज्ञान, गुरुगम वण शास्त्रो भणे, थाय न सम्यग्ज्ञान. ॥१॥ जैनागम शास्त्रो सकल, गुरुगमथी समजाय; गुरुनी सेवा जक्तिथी, सवढं सहु प्रणमाय. ॥२॥ नयगम भंगनिक्षेपथी, षद्रव्यादिकज्ञान; गुरुगमथी श्र. वणे सुणी, करीए प्रगटे ज्ञान. ॥३॥ (ध्यानक्रिया मनमा आणीजे, ए राग.) गुरुनी सेवा नक्ति करंतां, सम्यगज्ञान लही. जेरे, सम्यगमतिश्रुतज्ञान प्रगटतां, आतमरूपे वहीजेरे; गुरुगम ज्ञान करो नरनारी ॥१॥ गुरुविनये ने गुरुबहुमाने, गुरु आणाने पाळेरे; गुरुमाटे स्वार्पणभक्तिए, प्रगटे ज्ञान सुचालेरे. गुरु० ॥ २॥ गुरुकृपाथी सम्यग्दृष्टि, प्रगटे सर्व छे सवढंरे; गुरु कृपा वण आपमतिने, मिथ्याष्टिए अवलुरे. गुरू० ॥३॥ गुरुकृपा प्रगटे एम वर्ते, विनयी जे नर For Private And Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४९ नारीरे; परमातमपद वेगे पामी, मुक्ति लहे अवि. कारीरे. गुरु० ॥ ४॥ मतिश्रुतथी अवधि मनपर्यव, केवलज्ञान प्रकाशेरे; गुरुसुखसागर पूर्णकृपाथी, बुद्धि प्रभुपद पासेरे. गुरु० ॥ ५॥ ॐ अहं गुरुपदपूजार्थ दीपं यजामहे स्वाहा । षष्टी पंचाचारपालनरूपा अक्षतपूजा. पंचाचारना अक्षते, अक्षत बातमरूप; पूजी जे बहुप्रेमथी, नासे भवभयधूप. ॥१॥ गुरुचरणने अक्षते, पूजंतां शिव थाय; स्वस्तिक गुरुनी आगले, करतां पाप पलाय.॥२॥पंचाचारने पाळवा, अक्षतपूजा एह; भावथी पूजा पूज्यनी, प्रगटावे शिवगेह. ॥३॥ कान्हरो. अक्षतपूजा आनंदकारी, द्रव्यने लावथी छे जयकारी; दर्शन ज्ञानने चरणाचारी, तप वीयें गुरु जग उपकारी. अक्षत० ॥१॥ स्वस्तिक करतां स्व. स्तिभारी, जयजयगुरु तुज जगबलिहारी; द्रव्यनावथी पंचाचारी, उपयोगी गुरुजी हितकारी. अक्षत For Private And Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० ॥ २॥ पंचमहाव्रतपालनकारी, प्रतिबोध्यां बहुलां नरनारी; एकांते गुरुजी सुखकारी, अंतर यात्मप्रदेश विहारी. अक्षता ॥३॥ आतम सुखसागर गुरुयागी, रोमेरोमे लागी प्यारी; बुद्धिसागरगुरु अनगारी, यानंद मंगलप्रद अविकारी. अक्षत. ॥ ४ ॥ ॐ अहं महावीरजिनेश्वरपट्टपरंपराप्रवर्तित श्री गुरुपूजार्थ अक्षतं यजामहे स्वाहा ॥ सप्तमी ध्यानरूपा नैवेद्यपूजा. ध्यानरूप नैवेद्यथी, गुरुपूजाकरनार; उपशम क्षयोपशम अने, क्षायिकगुण वरनार. ॥१॥ असंख्य प्रदेशी आतमा, प्रतिप्रदेशे अनंत; गुणपर्यायनाध्या नथी, प्रगटे शिवपदकंत. ॥ २ ॥ बाह्यनैवेद्यना रसवडे, नित्यतृप्ति नहि थाय; आतमरसनैवेद्यथी, जडरसरुचि विणशाय. ॥ ३ ॥ (जिनदर्शन मोहनगारा, ए रागनी चाल.) गुरुदर्शन हे सुखकारी, गुरुसंतनी ले बलिहारीरेगुरु द्रव्यगुणपर्यायविचारी, ध्यानसमाधिधारी; आतमरसियाने अविकारी, गुरुनी गति ने न्यारीरे. For Private And Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५१ गुरुण ॥१॥ आतमअसंख्यप्रदेशविहारी, द्रव्य. जावव्यवहारी; पडावश्यकधर्माचारी, उत्कृष्टा अन गारीरे; गुरु० ॥२॥ अंतरथी नहीं जडनीयारी, यातम परिणति प्यारी; क्रियायोगी साचा उपकारी, संत सदा जयकारीरे. गुरु० ॥ ३॥ गुरुमूर्ति द्रव्यभावथी प्यारी, शुद्धप्रदेशी सारी; कर्म करे पण निबंध भारी, सर्वजीव आधारी रे. गुरु० ॥ ४॥ गुरुनी अकलकला सहु न्यारी, समजे नहि अविचारी; बुद्धिसागर ध्याननुं नैवेद्य-धरतां सुख निर्धारीरे. गुरु० ॥ ५॥ ___ॐ ह्री श्री अहं महावीरपरमेश्वरपट्टपरंपरा शोजितगुरुपदध्यानार्थ नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ अष्टमी ज्ञानानन्दानुनवरूपा फलपूजा. आतम आनंद पामीने, जडरसपेलीपार; आस्मदशाना अनुजवी, जय जय गुरु सुखकार. ॥१॥ आतमअनुभवफलतणो, आनंदरस छे अनंत; आतमरसी ज्ञानी गुरु, पामे भवनो अंत. ॥२॥ द्रव्यभाव फल पामवा, फलथी पूजे जेह; भक्त शिष्य सुखरस लहे, पडे न पाछो तेह ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२ (निशदिन जोउ हारी वाटडी, घेर आवोने ढोला. ए. राग. ) श्रतमअनुजवफलवडे, गुरु पूजीए भावे; द्रव्यथकी भाव संपजे, निजगुणरस आवे. आतम० ॥ १ ॥ संत गुरुनी पूजना, नहीं निष्फल जाती; कारणे कार्यनी सिद्धि बे, प्रभुता परखाती. श्रातम ॥ २ ॥ गुरु हृदयमां छे प्रभु, तेम गुरु प्रभु जाणो; गुरु पूजे प्रभु पूजिया, श्रद्धा प्रेमे प्रमाणो. आतम० ॥ ३ ॥ गुरुथी सिद्धता संपजे, गुरु प्रभुने जणावे; निमित्तगुरुथी आत्मनी, गुरुता भवी पावे. आतम० ॥ ४ ॥ गुरुसेवाभक्तिवडे, थाती हृदयनी शुद्धि; आतमज्ञान ज संपजे, नवक्षायिक ऋद्धि. आतम० ॥ ५ ॥ गुरुथी त्र्यातमरस मळे, जडरस टळे चांति; गुरुथी आतमरस लह्यो, मळी आतमशांति. तम० ॥ ६ ॥ अनुभवफलथी पूजिया, गुरुजी जयकारी; बुद्धिसागर सद्गुरु, प्रभुविश्वोपकारी. आतम० ॥ ७ ॥ ॐ ह्रीं श्री हे परमप्रभु परब्रह्म परमात्ममहावीर तीर्थंकरदेवपट्टपरंपरावर्त्तिसद्गुरुचरणानुभवफल पू जार्थ फलं, य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५३ कलश. राग कान्हरो. गुरु पूजा गाइ गुणकारी, मंगलदायी शिवसुख कारी. गुरु० आधिव्याधिउपाधिहारी, गुरुपूजाथी तरे नरनारी. गुरु० ॥१॥ ओगणिशअठ्योत्तरनी साले, चैत्र वदि बीजने गुरुवारे. गुरुण मधुपुरी (महुडी) मां नक्ति विचारे, पूजा रची शुनभावविशाले. गुरु० ॥२॥ गुरुपूजा जे जणे नरनारी, पामो मंगल ऋद्धि अपारी; घर घर आनंद प्रगटो भारी, गुरुपूजाथी शांति थनारी, गुरु० ॥३॥ गुरुभक्तोनी चढती थाशो, धर्मकमाणी सत्य कमाशो; गुरुभक्ते दुःखो दूर जाशो, गुरुनामे ए आशी सुहाशो, गुरु० ॥४॥ द्रव्यथी भावथी महाउपकारी, श्रीसुखसागरजी हितकारी; बुद्धिसागरगुरुबलिहारी, व्हारे आवी बेमली तारी. गुरु० ॥ ५॥ बीजो कलश. गाइ गाइरे गुरुपूजा भावी गाइ. द्रव्य नावथी मुनि गुरुपूजा, आनंद मंगलदायी; श्रोता वक्ता घरघर मंगल, संघमां शांति वधाइरे. गुरुप ॥१॥ ओगणिश अठयोत्तर चैत्रनी, वदि बीजने रूवारे, मधुपुरी (महुमी) मांही गुरुत्नक्तिी , For Private And Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ पूजा रची भवी तारेरे. गुरु० ॥ २ ॥ गुरुभक्तिथी पातिक शापो, आधिव्याधि प्रणाशो, गुरुभक्तिथी संघर्मा घर घर, मंगल सुखां प्रकाशोरे. गुरु० ॥३॥ गुरुभक्तिथी भक्तजनोनी, वळशो सुखनी वेळा, गुरु भक्तिथी प्रभुपद पामो, मळशो वांबितमेळा रे. गुरु० ॥ ४ ॥ गुरुभक्तिरसियां नरनारी, सुखसागरगुरु धारी; बुद्धिसागर ऋद्धि वृद्धि-कीर्ति जयपदकारीरे. गुरु० ॥ ५ ॥ गुरुपूजा भणाववानी विधि. उपाश्रयमां अगर बीजी जग्याए गुरुनां पगलां स्थापवां; केशरचंदननी वेपाडुका करवी, अगर चोखानी पण बे पाडुका करवी. गुरुनी नवी होयतो ते स्थापवी. स्नात्र भणाववानी जरूर नथी; जलपूजानो कलश, जलपूजा भणावीने आगल स्थापन करवो. पाषाणधातु आदिनी गुरुमूर्ति होयतो तेनापर जलनो अभिषेक करवो, तथा चंदननी पूजा वगेरे जिनप्रतिमानी माफक करवी, पगलां पाषाणनां होयतो ते पर जल अभिषेक तथा चंदन पुष्प वगेरे प्रतिमानी पेठे चढाववां, धूपदीप आगल करवो. पगलां अगर मूर्तिनी आगळ, स्वस्तिक नैवेद्यफलने ढोंकवां; For Private And Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५५ केशरचंदननी पादुका करी होयतो तेनी आगळ जल कलशादिक मूकवा. जिनमन्दिरमा गोखलामा गुरु भूर्ति अगर पाका होयतो श्रीजिनप्रतिमानो मूळ गभारो बंध करीने गुरुपादुका अगर मूर्ति आगळ पूजानणावधी, अरिहंत जेम परमेठी छे तेम आचार्य उपाध्याय अने मुनि ए त्रण पंचपरमेष्ठीमां छे तेथी तेमनी मूर्ति पाका छे ते जिनमूर्ति तथा जिन पाउकानी पेठे पूजवा योग्य ते. जे दिवसे सूरिवाचक साधुए देहोत्सर्ग कयों होय ते दिवसे गुरुपूजा जणावी. स्नात्रियाओने जमाडवा. तेमने लाडु आदिनी प्र. भावना करवी. पूजामां आवनार सर्व साधर्मिकनी प्रभावनाथी भक्ति करवी. शक्ति होयतो जमण पण करवू, पादुका अगर मूर्ति आगळ उत्सव करवो. सां. जरे टोळी बेसाडी गुरुभक्तिनां गायनो स्तवनो गावां. गुरुनी भक्तिना निमित्ते वर्तमान साधु साध्वीनी सेवा भक्ति करवी. गुरुचरित्रनुं व्याख्यान सांभळवं, ते निमित्ते धार्मिक पुस्तको छपाववां. गुरुनो महिमा वधारवो. गुरुना उपदेशोनुसारे वर्तवू गुरुपादुकानी वा मूर्तिनी सुगंधी पुष्पथी पूजा करवी. For Private And Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ अथ सत्तरभेदीपूजा. प्रभु महावीर जिनपति, तीर्थकर जगदेव; श्री जिनवाणी सद्गुरु, प्रणमी करु शुजसेव. ॥१॥ सत्तरभेदी पूजा नली, द्रव्य नाव सुखकार; श्राव. कने बदथी, यतिने भावथी सार. ॥२॥यागम शास्त्राधारथी, पूजा भवि हितकार; श्रद्धाप्रीतिन. क्तिथी, आत्मशुद्धि करनार. ॥ ३ ॥ प्रथम न्हवणपूजा. (ध्रुवपदं, गोडीरागण गीयते ) जिनपतिने न्हवरावेहो सुरपति, मेरुशिखर न्हवरावेरे उज्वलशुभआतमपरिणामे, जिनगुण भावना भावेरे. जिन० ॥१॥ प्रत्तु तुज उपरे श्रद्धा प्रीति, न्हवण पूजा में धारीरे; दुनियानी खीज दूर निवारी, तुजपर जउ सहु वारीरे. जिन० ॥२॥ तुजनक्तिमां मुज मन प्रगम्यु, तुजरागे रंगायोरे; तुजरागे समकितगुण निश्चय, तन्मयनावे सुहायोरे. जिन ॥ ३॥ गंगादिकनिर्मल जलस्नाने, भावी नक्तिकामेरे, बुद्धिसागर पूजा करतां, आतम निज गुण पामेरे. जिन० ॥ ४ ॥ - For Private And Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५७ द्वितीया चंदनविलेग्नपूजा. द्रव्यनावथी कीजीए, चंदनपूजा बेश; नावथी समचंदनवमे, पूजे विघटे क्लेश. ॥ १ ॥ ( धन्याश्री रागेण गीयते.) द्रव्यने नावथी चंदनपूजा, जिनवरनी जयकाररे; सत्यसुगंधी चूर्ण विलेपन, समता चंदन सा. ररे. द्रव्य० ॥१॥ प्रभुनवअंगे चंदन चर्चे, नाव धरी नरनाररे, श्रद्धा प्रीति प्रभुपर वधता, परपरि. णतिपरिहाररे. द्रव्य० ॥२॥ तुजमां राचुं तुजपर माचुं, भूली दुनियाभालरे. बुद्धिसागरप्रभुमयजीवन; रंगे थयो गुल्तानरे. द्रव्य० ॥ ३ ॥ ॐ चन्दनविलेपनं य० स्वाहा ॥ तृतीया चक्षुर्युगलपूजा. द्रव्यभावथी चकुनी, युगलपूजा सुखकार; चढताप्रीतिभावथी, करतां शिवसुख सार, ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ दीपचंदी ताल सोरठ. जिनदर्शन मोहनगारा, ए राग. तुज मूरति प्रभु !!! मुज व्हाली, आंखे देखी देखी धारीरे. तुज० सम्यग् मतिश्रुतचनुयुगलथी, प्रभुपूजा जयकारी; केवलदर्शन ज्ञान प्रगटतां, पूजा पूर्ण प्रकारीरे. तुज ॥१॥शब्दनये तुज मूरति प्यारी, देखे तस बलिहारी; नयव्यवहारे स्थापना सारी, भविजीवने हितकारीरे. तुज० ॥ २ ॥ तुज भक्ति शिवपुरनी बारी, मिथ्यामतसंहारी, सम्यग् दृष्टिनी करनारी, अनंतकर्मसंहारीरे. तुज० ॥३॥ नावथी पूजंतां नरनारी, आनंदनी लहे क्यारी; बुद्धिसागरजिनगुण धारी, पूजा छे सुखकारीरे. तुज ॥४॥ ॐ चक्षुर्युगलं या स्वाहा ॥ चतुर्थी वासपूजा ॥ चंदन घसी घनसारने, मेळवी पुष्पसुवास; वासथकी प्रभु पूजीए, भावथकी विश्वास. ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५९ गीत राग-मालवी गोडी. वासथकी प्रभु पूजासारी, नक्तजनोने प्यारीरे; गुणीनी सेवा प्रगट करे गुण, प्रभुगुणनी बलिहा. रीरे, वास ॥ १ ॥ समकितवासे प्रभुपजंतां, गुणगण प्रगटे जारीरे; प्रभुगुणवासे वासित बातम, शुद्धातम निर्धारीरे. वास ॥ २ ॥ सर्वविरति संयमगुण वासे, मोहनी दुर्गध नासेरे; समकितवासे प्रभु निज पासे, आपोआप प्रकाशेरे. वास० ॥३॥ निमित्त शुद्ध उपादानवासे, चढतां नाव वधारीरे; बुद्धिसागरआत्मविकासो, प्रभुपूजी नरनारीरे. वास० ॥४॥ ॐ वासंय० स्वाहा ॥ पंचमी पुष्पपूजा. द्रव्यभावसुपुष्पथी, पूर्जतां जिनराज; अंतर आतम उल्लसे, प्रगटे प्रभुसाम्राज्य. ॥१॥ प्रभु निर्मल दर्शन कीजीए ए-राग. सारंगरागण गीयते. पूजीए पूजीए पूजीए, जिनराजने प्रेमे पूजीए.॥ प्रभुगुणअमृत पीजीए, जिनराजने प्रेमे पूजीए;॥ For Private And Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यथकी शुनगंधीपुष्पे, प्रभुनी पूजा कीजीए, भावथकी व्रतपंचाचारना,-पुष्पे पूजीने रीझीए. जिनराज ॥१॥ क्षयोपशम उपशमने क्षायिक, आतमगुणे प्रकटीजीए; बातमगुणअनुयायीचे. तना, प्रगटावी सुख लीजीए. जिनराज ॥२॥ प्रभु तजथी मुज लगनी लागी, मुज पर करुणा कीजीए; बुद्धिसागर आतमआनंद, रसजर प्याला पीजीए. जिनराज ॥३॥ ॐ पुष्पं या स्वाहा ॥ षष्ठी पुष्पमाला पूजा. पुष्पमालथी पूजता, प्रभु गुण प्रकटे अंग; ईयल भमरीध्यानथी, ब्रमरीपद लहे चंग. ॥१॥ (चेतन अब मोहे दरिशन दीजे. ए राग.) प्रजुजी महावीर तुज रढ लागी, थयो तुज गुण अंतर रागी. प्रभुजी० ॥ तुजगुण गणतां पार न आवे, कोटी वर्ष वही जावे; तुज अनुजव झांखी घट प्रगटे, आनंद जगमा न मावे. प्रभु० ॥१॥ आतमगुण पंचपुष्पनी माला, भावथी पूजा प्यारी; निजपूजा ते आतमपूजा, विश्वयथी सुखकारी. For Private And Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६१ प्रजुजी० ॥ २ ॥ आतमद्रव्यना गुणपर्याये, ओत्मोपयोगे समारी; बुद्धिसागर आविर्भावे, प्रभु प्रगटे जयकारी. प्रभुजी० ॥ ३ ॥ ॐ पुष्पमालां य० स्वाहा ॥ सप्तमी कुसुम आंगी रचनारूपपूजा. देव गुरुने धर्मनी, श्रद्धा भक्तिप्रकार; कुसुम आंगी पूजाभली, करतां जवी नरनार. १ ( राग बिरुओ अथवा पीलु !! सोवे सोवे सारी रेंन गुमाइ ए राग. ) 3 कुसुमआंगीनी पूजा सारी द्रव्य भावथी भवि हितकारी, कु० ॥ समकित सडसम्बोल वि. चारी, कुसुमनी यांगी मलपरिहारी. कु० ॥ १॥ देव गुरुने धर्मनी जक्ति, करतां प्रगटे आत्मशक्ति. कुल समकित वण व्रत तप जप रीति, तेथी टळे नहि भवनी जीति. कु० ॥ २ ॥ तुज आगमनी श्रद्धा धारी, तुजपर तन मन जाउ वारी; कु० ॥ तुज संतोनी साची यारी, बाकी जूठी दुनियादारी. कु० ॥ ३ ॥ श्रावक साधु गुणगण भारी, भावधी पूजा For Private And Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ ए निर्धारी; कु० ॥ बुद्धिसागर भक्ति प्यारी, जाव थकी शिवसुख देनारी. कु० ॥ ४ ॥ ॐ कुसुमागीं य० स्वाहा ॥ अष्टमी चूर्ण पूजा. घनसारादिक चूर्णथी, जिनपति पूजा एह; जावथी उपशम चूर्णथी, पूजे जिनवर तेह. ॥ १ ॥ ( ध्रुवपद काफी रागेण गीयते. ) प्रभु तुज दर्शननी बलिहारी, दर्शननी बलिहारी. प्रभु० द्रव्यने भावधी दर्शन पामे, धन्य ते नरने नारी; द्रव्यभाव चूरणथी पूजा करता तस बलिहारी. प्रभु० ॥ १ ॥ क्रोध मान मायाने लोजनो, उपशम जेटलो थावे; तेटला प्रभुगुण अनुजव आवे, समकितीने ए सुहावे. प्रभु० ॥ २ ॥ आनंद ज्ञाननी प्रगट प्रभुता, प्रभुभक्ति तेह जावे; क्षयो पशम उपशमना जावे, प्रगटे अनुभव आवे. प्रभु० ॥ ३ ॥ सातनयोथी दर्शनपूजा, सेवा साधी जाणी; बुद्धिसागर प्रजुनी पूजा, आपोआप प्रमाणी, प्रजु०॥४॥ ॐ चूर्ण य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६३ नवमी ध्वजपूजा. द्रव्यभाव बे नेदथी, ध्वजपूजा सुखकार; ध्वजथी जिनवर पूजतां, भक्ति वधे जयकार. ॥१॥ ( नमुं रविसागर गुरु राया, जिन शासन जय वर्ताया, ए राग. घन घटा भुवन रंग छाया, ए राग.) ध्वजपूजा छे जयकारी, जिनशासन शोभा कारी. ध्वजण ॥ प्रभुधर्मने जग फेलावे, ध्वजपूजा लावना दावे; जाणे तेनी बलिहारी. ध्वज० जिन ॥१॥ जे थया प्रभावक सारा, तेणे प्रभु पूज्या प्यारा; ध्वज पूजा एहवी धारी, ध्वज जि ॥२॥ जिनशासन जे शोभावे, ते भावथी पूजा पावे; प्रभु भक्तनी छे बलिहारी. ध्वज जि० ॥३॥ प्रनुपूजाथी प्रभु प्रगटे, चढताभावे मल विघटे; बुद्धिसागर सुखकारी. ध्वजण जि ॥४॥ ॐ ध्वजंग य स्वाहा॥ दशमी आभूषणपूजा. द्रौपदीने सूर्याभनी, पेठे पूजे जेह; द्रव्यथी जावना पूजना, निश्चय पामे तेह. For Private And Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ ( श्री श्रेयांसजिन अंतरयामी. ए राग.) श्री जिनवरनी पूजा प्यारी, सुख आपे निर्धा. रे; द्रव्यभावथी पूजा सारी, करतां तरे नर नारीरे. श्री ॥१॥ नयनिक्षेपे पूजा विचारी, सम्यगदृष्टि धारीरे. द्रव्यत्नावपूजा आचारी, हठकदाग्रह वारीरे. श्री० ॥ २॥ बारने चार छ भावनाभूषण, निश्चयने व्यवहारीरे; बुद्धिसागरभावनापूजा, प्रगटी घट सुखकारीरे. श्री० ॥३॥ * आभूषणं य० स्वाहा ॥ - एकादशमी कुसुमगृहपूजा. कुसुमगृहे प्रभु थापीने, जे पूजे नरनार; ते मुक्तिवेगे वरे, सम्यगदृष्टि उदार ॥१॥ (आज सखी मोंये वाल्हमा, मुज मंदिर आये. ए राग. मारु वा. ॥ अथवा उत्सव रंग वधामणां. ए राग. वेलावल. ॥) परमप्रभु परमातमा, मुज दिल दर्शाया; बा. ह्यांतरस्वरूपथी, पूरण परखायो. परम० ॥ १॥ सम्यग्दृष्टि जीवनी, सहु करणी लेखे; अल्पबंध बहु निर्जरा, करे सम्यग पेखे. परम ॥२॥ बाह्याच्यं तर अतिशय,-पुष्पघरमा बिराजो; असंख्यप्रदेशी For Private And Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६५ पुष्पना, घरमांही छाजो. परम ॥३॥ द्रव्यने भावथी पुष्पमुं, घर करी जिन थापे, बुद्धिसागर आतमा, प्रभु बगपे व्यापे, परम० ॥४॥ ॐ कुसुमगृहं य स्वाहा । बारमी कुसुममेघपूजा. अव्यथी कुसमना मेघथी, प्रभुपूजा सुखकार; भावथी प्रभु उपदेशना, मेघथी पूजा सार. ॥१॥ (राग फाग-सिद्ध भजो भगवंत, प्राणी पूर्णानन्दी. ए राग) जिनवर छे जयकार, नवी नावथी पूजो. ॥ द्रव्य. ने भावथकी जिनपूजा, अमृतरस धरनार. भवी० आतमगुणपर्यायस्वजावे, धर्म प्रगट करनार. भवी० ॥१॥ जिनवरवाणीपुष्पनामेघे, आतम शांति थनार. भवी0 अनुभवपुष्पना मेहुला वरसे, सुगंधनी बहुम्हार. नवी ॥२॥ मोहनी दुर्गध दूरे नासे, समताशीतलता सार. नवी मुजमन तुज उपदेश स्वरूपी-मेघे मोडं अपार. भवी० ॥३॥ पुष्पना मेघो तुज शिर उपर, वर्षा धरी व्हाल. जवी बुद्धिसागर मुजपर वर्षों, जिनवाणी मेघ अपार. नवी० ॥ ४॥ ॐ कुसुममेवं य० स्वाहा । For Private And Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ त्रयोदशमी अष्टमाङ्गलिक पूजा. स्वस्तिक ने श्रीवत्त छे, घट जद्रासन चार; नंदावर्तने वर्धमान, मीनयुग दर्पण सार ॥ १ ॥ अष्ट ए मंगलथी प्रभु, पूजे पाप पलाय; पद पद मंगल संपजे, लब्धि सिद्धि प्रगटाय ॥ २ ॥ ( ध्रुवपद गोडी रागेण गीयते ) · प्रभुनी आगळ आठे मंगल, पुण्यातिशये चालेरे; द्रव्यथी मंगल आलेखे जे, जावमङ्गल ते जाळेरे. प्रभु० ॥ १॥ सहज गुण जे चार ते स्वस्तिक, दर्पण ज्ञानने धारोरे; सम्यग्दृष्टि कुंभ विचारो, विरति श्रीवच्छ प्यारोरे प्रभु ॥ २ ॥ संयम मद्रासन नंदावर्त, अनुभव आनंद पामोरे; यांत्म समाधि वर्धमान बे, भावमंगलथी जामोरे. प्रभु० ॥ ३ ॥ मीन युगलते ज्ञानने दर्शन-उपयोगे जयकारीरे; बुद्धिसागरप्रभुनी पूजा, द्रव्यजावहितकारीरे. प्रभु० ॥ ४ ॥ ॐ - अष्टमङ्गलानि य० स्वाहा || चतुर्दशमी धूपदीपकपूजा. द्रव्यभावधी धूपने, दीपक पूजा सार; जिनवरनी जे जन करे, पामे शर्म अपार, For Private And Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૪૬૭ पिया ( पिया निज महेले पधारोरे, करी करुणा महाराज, ए राग. मारु. ) · प्रभु तुजप्रीतडी लागीरे, प्रगट्युं रुचिरसपूर प्रभु० ॥ १ ॥ ध्याता ध्येयने ध्याननीरे, एकतामांहि न भेद; निर्विकल्प समाधिमारे, भीति न द्वेष न खेद प्रभु ॥ २ ॥ तमना उपयोगमांरे, प्रभु तुं छे मुजपास; ध्यान धूपने ज्ञाननारे, दीपकनो छे प्रकाश. प्रभु० ॥ ३ ॥ कोटिवर्षसम ताह्यरोरे, क्षणविरहो न खमाय; बुद्धिसागरप्रेमधीरे, पूजा करे ज जीवाय. प्रभु० ॥ ४ ॥ ॐ धूपदीपं य० स्वाहा ॥ पन्नरमी गीत पूजा. प्रभुगुणपर्यायगीतथी, प्रभुने पूजे जेह; चढता भावलासी, प्रभुपद पाने तेह. ( नाथ कैसे गजको बंध छुडायो - ए राग सारंग ) प्रभु तुज गान घएं गुणकारी, आतम आनंदकारी. प्रभु० वीणादिक तालमानने ताने, प्रभु 'गुणगान उमाद्यो; नरघां मरदंगतानसुभाने, For Private And Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ आनंदरस रंगायो. प्रभु० ॥१॥ प्रभु तुज सन्मुख चेतना करवा, उपयोगथी हर्षायो; प्रभु तुजगाने भान न जगहुँ, आतम झांखी पायो. प्रनु० ॥२॥ प्रभुने गातां सुखनी खुमारी, प्रगटती जयकारी; पूर्णानंदी प्रभुने पूजो, गीतवडे नरनारी. प्रभु० ॥ ३॥ परापश्यंतीमध्यमागाने, अनहदगीतसु. ताने; बुद्धिसागरप्रभुरसपाने, भक्त प्रभु घट माने. प्रभु० ॥४॥ ॐ गीतं यः स्वाहा ॥ सोळमी नृत्यपूजा. प्रभु आगळ भावे करे, नृत्यनी पूजा जेह; यातमशुद्धि ते करे, पामे शिवपुर गेह. ॥१॥ ( अवसर धेरबेर नहि आवे. ए राग-आशावरी.) शुभंकर जिनपूजा जयकारी. ॥ द्रव्यभावथी नृत्यनी पूजा, आतम आनंदकारी. शुकरण ।। एक शत याठे देवकुमरने, सुरकुमरी शुभ नाचे, सुरनर नृत्य करीने माचे, आत्मरसी थै राचे. शुभंकर० ॥१॥ चढते भावे धर्मरसीला, प्रभुप्रेमे उलसिया; सुर नरनारी हर्षे नाचे, श्रद्धालक्तिमां For Private And Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसिया. शुभंकर० ॥२॥ भक्तिए रोम रोम जस विकसे, दिलमां हर्ष न मावे, भावथी नवरसना शृंगारे, अंतरनाचे सुहावे. शुभंकर० ॥३॥ भक्तिरसे गुल्तान बनीने, गुणपर्याये नाचु बुद्धिसागर आत्ममहावीर, सहजस्वभावे राचुं. शुभंकरण ॥४॥ ॐ नृत्यं यः स्वाहा ॥ सत्तरमी सर्ववाद्यपूजा. सर्वजातिवाजिंत्रथी, चढता नावोबास; नर नारी प्रभु पूजतां, पामे शिवसुख खास. ॥१॥ (राग. प्रभात.) समवसरणमां वाजां वाजे, अंबरतलमां गा. जेरे; देवहुंदुभि वाजी बाजे, जिनपति महिमाए रा. जेरे. सम ॥१॥ सारंगी शरणाइ भुंगळ, भेरी न फेरी वीणारे; जल्लरी ढोल ने वंशळी वाजे, सुरकुमरीनी स्वर झीणारे. सम० ॥२॥ मुरज कंसालांने, मृदंगने, पणवादिक वाजीरे; जिनवर पूजा भवि जन करता, मोहशत्रुने जीतेरे. सम० ॥ ३ ॥ सुरनर वाजिंत्रे जिनपूजा, नावथी करी नर नारीरे; ती. र्थकर आदिपद पावे, निजपरिणतिने समारीरे. For Private And Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्० ॥४॥ योगाभ्यासे अंतरवाजां, वाजे अनहद तानेरे; शुक्ल शुक्ल उज्वलपरिणामे, धर्मध्यान निज मानेरे, सम० ॥५॥ आत्मोल्लासक रस वाजिंत्रे, प्रभु पूजतां थक्ष रसियोरे, बुद्धिसागर आत्मस्वभावे, आनंदल्हेरे उल्लसियोरे. सम ॥ ६॥ कलश-धन्याश्री. गाया गायारे प्रभु महावीर गुणगणध्याया, सत्तरभेदीपूजाथी प्रच, गातां प्रेमे वधायारे. प्रभु महावीर० ॥ १॥ द्रव्य भावप्रभुपूजा रचीने, आतमयानंद पायो; ओगणिशअव्योतर चैतर वदि, दशमी जय वर्तायोरे. प्रभु० ॥२॥ जिनवर महावीरपट्टपरंपरा, तपगच्छसागरशाखे, रवि. सागर गुरु सुखसागर गुरु, जिन आणा दिल रा. खरे. प्रभु० ॥३॥ मधुपुरीमां पद्मप्रभु जिन, गुरुनी पूर्ण कृपाए; आनंद मंगल ऋद्धि सिद्धि, पूजा करंतां थाएरे. प्रभु० ॥ ४ ॥ घर घर संघमां आनंद मंगल, पूजाथी सुख नारी. बुद्धिसागरसूरि ऋद्धि, वृद्धि कीर्ति जयकारीरे. प्रभु० ॥५॥ ॐ सर्ववाद्यं य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७१ अथ नवपद लघुपूजा. प्रथम अरिहंत पद पूजा. परम प्रभु परमातमा, परब्रह्म महावीर, शास. नपति अरिहंत जिन, सर्वधीर महाधीर. ॥१॥ वंदी पूजी ध्याइने, नव पद पूजा सार; रचुं स्वपरहितकारणे, आत्मशुद्धि करनार. ॥ २॥ तीर्थकर सर्वे प्रभु, अर्हत्पदमा समाय; चारनिक्षेपे जाणतां, पूजे शिव सुख थाय. ॥३॥ राग. सोरठ. अरिहंत द्रव्यभाव सुखकारी. ॥ साची लागी अरिहंत यारी. अरिा शुद्धातम उपकारी. अरिहंत॥ चोत्रीश अतिशय धारी जिनेश्वर-बारगुणे जयकारी; पांत्रीशवाणीगुणना धारक, तीर्थकर हितकारी. अ. रिहंत ॥ १॥ संघ चतुर्विध तीरथ स्थापक, केवल ज्ञानी विहारी; विश्वोद्धारक कर्मसंहारक, शुद्धानं. दना धारी. अरिहंत० ॥२॥ तुजपर पूरण प्रीति प्रगटी, कोथी न उतरे उतारी; निश्चयथी अरिहंत निजातम, जाण्युं उपयोगे धारी; अरिहंत ॥३॥ सत्ताव्यक्तिभावे अरिहंत, निश्चयनय व्यवहारी; For Private And Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२ बुद्धिसागर अरिहंत बातम-शुद्ध बुद्ध अविकारी. अरिहंत. ॥४॥ ॐ ह्री परम० अर्हत्पदपूजार्थ जलं०-य० स्वाहा. द्वितीया सिद्धपद पूजा. पूजुंप्रभु गुण भावथी,सिद्ध सदा जयकार; अष्ट. गुणी परमातमा, एकत्रिंश गुणआधार. ॥१॥ अनंत ज्योते झळहळे, अनंतवानंदधाम; निराकार परब्रह्मने, हो उपयोगे प्रणाम. ॥२॥ ( नाथ कैंसे गजको बंध छुडायो. सारंग वा राग-आशावरी.) निरंजन सिद्धप्रभु सुखकारी, कर्मरहित जय. कारी. निरंजन क्षायिकनवलब्धिगुणधारी, निराकार निर्धारी; अनंतज्योते झळहळता विभु, पूर्णानंदी अपारी. निरंजन ॥१॥ अलख अरूपी जन्म मरण नहीं, गुणपर्यायाधारी; शुद्धातम परब्रह्म अखंडित, अविनाशी अविकारी. निरंजन ॥ २ ॥ सकल सिद्धने वंदु पूजें, शुद्धोपयोग समारी, सत्ताए निज आतम सिद्ध ; समरंतां सुख जारी, For Private And Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निरंजन० ॥ ३ ॥ सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रना, शुद्धोपयोगे विहारी, बुद्धिसागरसिद्धस्वयं थे, पामे शित्र नरनारी. निरंजन० ॥ ४ ॥ ॐ ॥ सिद्धपदपूजार्थं जलं य० स्वाहा ॥ तृतीया आचार्यपदपूजा. द्रव्यजावव्यवहारथी, निश्चयथी सूरिराज वंदतां पूजतां ध्यावतां, प्रगटे शिवसाम्राज्य. ॥ १ ॥ ( सोवे सोवे सारी रेनगुमाइ. राग बिरुओ अथवा पीलु. ) बंदु पूजुं सूविर रागे, ज्ञानादिकगुण अंतर जागे - वंदु० ॥ छत्रीशीछत्रीशी गुणगणमंडित-समभावे वर्ते वैराग्ये. वंदु ॥ १ ॥ धर्मनारक्षक धर्म प्रवर्तक, जेहथी मोहनी दूरे भागे. वंदु० ॥ द्रव्य क्षेत्र काल भावने जाणे - विषयोमां नहि वर्ते रागे. वंदु० ॥ २ ॥ जिनवाणीनो अर्थ जणावे. द्रव्यने नावथी वर्ते त्यागे. बंदु० ॥ ज्ञानी ध्यानी योगी सनूरा-म्हाले आतमगुणना बागे. वंदु० ॥ ३ ॥ निश्वयथी सु ६० For Private And Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४ रिवर निजआतम-शुद्धपरिणति भावमा लागे; बुद्धिसागरब्रह्मसूरिघट-प्रगटतां जयडंको वागे. वंदु० ॥ ४॥ ॐo-आचार्यपदपूजार्थं जलंग यण स्वाहा ॥ चतुर्थी उपाध्यायपदपूजा. द्रव्यभाववाचक नमुं, पूनुं जगहितकार; ज्ञानी पंचमहाव्रती, सेवंतां सुखकार. ॥ १ ॥ ( आज सखी मुज व्हालमा, मन मंदिर आये. ए राग वेलावल.) वाचकपदने वंदीए, पूजीए जयकारी; वाचक सेवानक्तिथी, निजशुद्धि थनारी. वाचक० ॥१॥ द्रव्यक्षेत्रकालनावथी, वर्ते जयकारी; निश्चय दृष्टि दिल धरी, वर्ते व्यवहारी. वाचक० ॥२॥ धर्म शास्त्रपाठक प्रजु, विश्वजीवोपकारी; आतम उपयोगे रहे, ब्रह्म वाचक धारी. वाचक ॥३॥ निश्चय वाचक यातमा, पञ्चीशगुणधारी; बुद्धिसागरधर्मना-वाहक हितकारी. वाचक० ॥४॥ ॐ ह्री-प० वाचकपदपूजार्थ जलं या स्वाहा ॥ - - For Private And Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७५ पंचमी साधुपदपूजा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निक्षेपे साधुपद, क्षेत्रकाल अनुसार; वंदत्तां सेवतां पूजतां, ध्यातां शर्म अपार. मेरुशिखर हरावेहो सुरपति ए राग साधु सदा उपकारी हो जगमां, साधु सदा उपकारी. ॥ व्यवहारथी जे पंचाचारी, पंचमहाव्रतधारी; साधुसंगतनी बलिहारी, तेथी तरे नरनारी हो. जगमां० साधु० ॥ १ ॥ द्रव्यादिकप्रतिबंधनिवारी, रागने रोष संहारी; व्यवहारथी व्यवहारे वर्ते, नि. श्चय उपयोग धारी हो. जगमां० ॥ २ ॥ साधुसंतनी सेवा करीए, दोषनी दृष्टि निवारी; वेषाचारथी अनंत उत्तम, गुण लेजो नरनारी हो. जगमां० ॥ ३ ॥ आतम ते साधु परमातम, उपयोगे ल्यो धारी; बुद्धिसागरसाधुसेवा, अनंतगुणी गुणकारी हो. जगमां० ॥ ४ ॥ ॐ ह्री० - प० - साधुपदपूजार्थ जलं० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only · Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७६ षष्ठी दर्शनपदपूजा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यग्दर्शनपद नमुं, पूजुं ध्यावुं सत्य, सम्यग्दर्शन पामतां, सफलां धर्मनां कृत्य. ( राग गोडी. निशानी कहा बतार्बुरे. एल. ) अनुजवदर्शन पामोरे, गुरुगमथी नरनार. अनु. भव० ॥ देवगुरुने धर्मनीरे, श्रद्धा प्रीति याय; सडसठ बोले अलंकर्युरे, प्रगटे दिलमां जणाय अनुभव० ॥ १ ॥ द्रव्यभावव्यवहारथीरे, निश्चयसमकित जाण; सातनयोथी जाणतांरे, रहे नहीं अज्ञान. अनुभव || २ || दर्शनज्ञानचारित्रनीरे, एकपरिणति थाय; निश्चयदर्शन आतमारे. शुद्धोपयोगे सुहाय. अनुजव० || ३ || सम्यग्दर्शन पामतारे, निश्चय मुक्ति थाय; बुद्धिसागर आतमारे, परमातमपद पाय. अनुभव ॥ ४ ॥ ॐ ह्री० प० दर्शनार्थ जलं० य० स्वाहा || For Private And Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स ४७७ सप्तमी ज्ञानपूजा. द्रव्यभावथी ज्ञानने, वंदु पूजें बेश, सम्यग् ज्ञानने पामतां, नासे सघळा क्लेश, ॥ १॥ राग मालवी गोडी. सम्यग्ज्ञान लहो नर नारी, नहि कोइ ज्ञान समानरे; ज्ञानी श्वासोच्छासमां कर्मने, टाळी लहे निर्वाणरे. सम्यग ॥१॥ मतिश्रुत अवधि ने मन पर्यव, केवल पांचमुं ज्ञानरे; दर्शन पामे मतिश्रुत, जावथी, सम्यग्ज्ञान प्रमाण रे. सम्यग् ॥ २॥ आतम अनुभव ज्ञानोपयोगे, क्षणमा मुक्ति सुहाय रे; ज्ञानविना कोई ध्यान न पावे, ज्ञाने आनंद थाय रे. सम्यग् ॥ ३॥ स्वपरप्रकाशक ज्ञान ते आत. म, गुणगुणीरूप प्रमाण रे; बुद्धिसागर बातम ज्ञाने, प्रगटे केवलज्ञान रे. सम्यग ॥४॥ ॐ ह्री० प०-ज्ञानार्थ जलंग या स्वाहा. अष्टमी चारित्रपदपजा. द्रव्य नावचारित्रथी, बातमशुद्धि थाय, प्रगटे परमानन्दता, आतम सिद्ध सुहाय, ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७८ (कीजीए कीजीए कीजीए प्रभु निर्मल दर्शन कीजीए. रागः सारंग.) पामीए पामीए पामीए, शुद्धचारित्रपदने पामीए, वामीए वामीए वामीए; मोहभावने दूरे वामीए. ॥ पामीए ॥ व्रतवषतपजप त्यागाचारथी, द्रव्यचारित्रमा झामीए; समपरिणामे यात्मोपयोगे, नावचरण विश्रामीए. शुद्ध ॥ १॥ द्रव्य ते भावनुं कारण जाणो, जाख्युं महावीरस्वामीए, जमविषयोमां रागने द्वेषनी, परिणतिथकी विरामीए. शुद्ध ॥ २॥ आत्मस्वभावे रमवू चरण छे, चारित्रीने शिर नामीए; चारित्रमा अर्पाइ जाता, पूर्णानन्दे यारामीए. शुद्ध० ॥३॥व्यवहार निश्चय चारित्र वरवा, गुरुगमज्ञानने पामीए; बुद्धिसागर आतम आनंद, प्रगट चारित्र प्रणामीए. शुद्ध०॥॥ ॐ ह्री० प० चारित्रपूजार्थ जलं-य स्वाहा ॥ नवमी तपपदपूजा. द्रव्यभावथी तप तपे, आठेकर्म विनाश; ज्ञान अने निष्कामथी, थावे शिवपुरवास. ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७९ ( ध्रुवपद काफी रागेण गीयते ) महावीर !!! तपगुणनी बलिहारी, तपगुणनी बलिहारी. महावीर० ॥ तपयी लब्धियों प्रगटे जारी, मनडुं बने अविकारी; सुखदुःखमां समभावता धारी, अहंपणं न लगारी महावीर० ॥ १ ॥ बाह्य अभ्यंतर तप जयकारी, पुद्गलनी नहि यारी; राग द्वेषनी वृत्तिसंहारी, परपरिणतिपरिहारी, महावीर० ॥ २ ॥ धन्य धन्य वीर जगजयकारी, सह्या परिषह भारी; प्रगटाव्यं घटमांही केवल, बंदु वार हजारी. महावीर० ॥ ३ ॥ तप ते आतम निश्चय धारी, तपशो नरने नारी; बुद्धिसागरशुद्धातमरस, - स्वाद लह्यो तपधारी. महावीर० ॥ ४ ॥ कलश. गाइ गाइरे नवपदनी पूजा गाइ ॥ ओगणिश ट्योत्तर आश्विन बीज, मेसाणामां रचाइरे, नवपदनी पूजा गाइ ॥ वीरप्रभुनी पट्टपरंपरा, श्वेतांबर सुखदायी; तपगच्छहीर विजय सूरिजगगुरु, पट्टपरंपरा आइरे. नव० ॥ १ ॥ नेमिसागर रविसागरगुरु, सुखसागरगुरु ध्यायी, नवपदपूजा रचतां For Private And Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० ऋद्धि, वृद्धि कीर्ति सुहारे, नव० ॥ २॥ घट घट नवपद ऋद्धि सिद्धि, सत्ताए रही डे सुहाशबुद्धिसागर पूर्णानन्दनी, प्रगटी घटमां वधाइरे. नव०॥३॥ ॐ प० तपःपदपूजार्थ जसं० या स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८१ अथ पंचधायोग पूजा परमप्रभु परमातमा, प्रभु महावीर जिनेश; परमब्रह्म परमेश्वरा, प्रणमुं विभु विश्वेश. ॥ १ ॥ पंचयोगपूजा रचुं आतमशुद्धिकाज अष्टप्रकारे पूजना, करतां शिवसाम्राज्य. ॥ २ ॥ अध्यातमने भावना, ध्यानने समता चार; वृत्तिसंक्षययोगथी, पूर्णशुद्धि सुखकार ॥ ३ ॥ योगनी भूमिका प्रथम, अनुक्रमे पांचे योग, सुणतां ध्यावतां संपजे; यातम शिव सुखभोग. ॥४॥ आतमसुख निश्चय थतां योग रुचि प्रगटाय, पंचयोगनी साधना; कर्मविनाशक थाय ॥ ५ ॥ महावरिदेवे प्रकाशिया, असंख्पयोग प्रकाश सर्वमुख्य दर्शन अने, ज्ञानचरण छे उदार. ॥ ६ ॥ तेमां सहु योगो शमे, तोपग भविहितकार; पंचयोग दर्शाविया, तस पूजा सुखकार ॥७॥ प्रथम योगभूमिका पूजा. ( सिद्धचक्रपद सेवाकीजे. ए राग. ) प्रभुमहावीर जिनेश्वर भाखे, योगभूमिका सारजी; योगभूमिकाशुद्धि करतां, मनशुद्धि नि. ६४ For Private And Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ र्धार. योगने धारोजी; प्रथम गुरुदेवसेव, धरीए आचारोजी. ॥ १ ॥ योघे देवगुरु वृद्धसेवा, पूजन थाय सुरागजी, सदाचारप्रवृत्ति प्रगटे, तपनी वृत्ति त्याग. योगने० ॥ २ ॥ उपकारीनी सेवा थावे, प्रभु दर्शन गुणरागजी; चारिसंजीवनदृष्टांते, धर्मकर्म वैराग्य. योगने० ॥ ३ ॥ देवगुरुनी निन्दा न थाती, थाय सुपात्रे दानजी, परोपकारप्रवृत्ति थावे. गुण ग्रहणतातान. योग० ॥ ४ ॥ प्रभुता पामे गर्व न थातो, सत्य पथ्यहित बोलजी; सत्यतत्त्वनी इहा प्रगटे, सत्यासत्यनो तोल. योग० ॥ ५ ॥ साधु सं तनी सेवा भक्ति, रुचे धर्मोपदेशजी, मार्गानुसारी नीतिरीत, गुतिपर नहि द्वेष. योग० ॥ ६ ॥ प्रमाणिकव्यवहारप्रवृत्ति, सत्यप्रतिज्ञा पळायजी; चोरी व्यजिचारव्यसननिवृत्ति, कुलाचार वर्ताय. योग० ॥ ७ ॥ मांसमदिरात्यागने सज्जन, - रीतिनो व्यवहारजी; मातपितागुरुवर्गनी आज्ञा, ऐवो सदाचार धार. योगने० ॥ ८ ॥ नास्तिक दुष्टनी संग न रुचे, रुडा प्रगटे विचारजी; योगनी दृढभूमिका एत्री, दंभतणो परिहार. योगने० ॥ ९ ॥ अनन्य विषगरलनी निवृत्ति, तद्धेतु शुभ थायजी; समकित For Private And Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८३ पूर्वकज्ञानथी अमृत, शुभ अनुष्ठान सुहाय ॥ १० ॥ योगनी पूर्व सेवा योगभूमि, चरमात्र पायजी; बुद्धिसागर योगना योग्यज, नरनारी ते गजाय. योग० ॥ ११ ॥ ॐ ह्रीं श्री परम पुरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरामृत्युनिवारणाय, योगभूमिका सेवार्थ जलं, चं दनं, पुष्पं, धूप, दीप, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, यजा महे स्वाहा ॥ ॥ प्रथम अध्यात्मयोगपूजा ॥ प्रभुवचनानुसारथी, तत्त्वनी चिंता थाय; गृहीत्यागीव्रतयुक्तने, मैत्र्यादिभाव सुहाय. ॥ १ ॥ यातमज्ञानने आत्मनी, शुद्धिनुं अनुष्ठान, द्रव्यभाव अध्यात्मनो, योग भलो गुणखाण. ॥ २ ॥ ( सिद्धचक्रपद सेवाकीजे. ए राग . ) द्रव्यक्षेत्रकालभावथी जाणी, अध्यातमयोग धारोजी; श्रातमज्ञानीने योगथी सिद्धि, रागरोष परिहारो. योगने धरीएजी. टाळी मोहनी टेव; शिवसुख वरीएजी. ॥ १ ॥ देवमंत्रने जपीए विधिये, For Private And Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ अशुजवृत्ति निवारीजी; आसन जय प्राणायामाज्यासथी, देहशुद्धिहितकारी. योगम् ॥ २॥ अध्यास्मयोगनी आगळ हरानी,-किंमत जाणो कोडीजी: आतमज्ञानीओए दिल्मां, शुद्धातमप्रीत जोमी. योग० ॥ ३ ॥ आत्मस्वरूपविचारणा करवी, मनवच तनु वशराखीजी; गृहस्थत्यागीव्रतगुणपालन, प्रारब्धे ५वं साक्षी. योग० ॥४॥ मनवचकाया अशुभ प्रवृत्ति, त्यागी शुभने नजीएजी, शुन थ. की शुद्धभावमा प्रणमी, प्रकटपणे गुण सजीए. योग० ॥ ५॥ सुख दुःख आवे हर्ष न शोकज, देव गुरुने वंदोजी, प्रत्याख्यानथी इच्छाओ रोधो, प्रगटे ते दोषने निंदो. योग० ॥ ६॥ देहममत्व निवारी आतम,-उपयोगी थै रहेकुंजी, आवश्यकधर्मकर्मने करवां, अंतरमा चित्त देवू. योग० ॥ ७ ॥ मैत्री प्र. मोद मध्यस्थ करुणा, भावना भावीए चारजी, सा. धनथी साधंतां साध्य ज, नासे मोहविकार, योग ॥ ८॥ अध्यात्मयोगथी बातमशुद्धि, क्षणमां थावे मुक्तिजी, बुद्धिसागरयातमयानंद, प्रगटे अनुनवयुक्ति. योग० ॥९॥ ॐ ही० अध्यात्मयोगपूजार्थ जलं० य० स्वाहा ॥ - For Private And Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ द्वितीया भावनायोगपूजा ॥ आतमस्वरूप विचारणा, वारंवार जे थायः मन समाधि सहित ते, जावनायोग भणाय ॥ १ ॥ तमना उपयोगनो, पुनः पुनः अभ्यास; भावना योगे संपजे, तमशुद्धप्रकाश ॥ २ ॥ ( दशमे देशवासी रे. ए राग. ) धन्य प्रभु महावीरनेरे, साध्यो पूरण योग; आतन परमातम कर्योरे, पाम्या अनंत सुख जोग हो. घटमां, महावीरप्रभुने लावीएरे, भावना योगने जावीएरे; कर्मरिपुने हरावीएरे, प्रगटे परमानन्द ॥ ॥ १ ॥ पहेली श्रुतनी जावनारे, सुणीए धर्मसिद्धांत; वांची श्रुतशास्त्रो भलारे, गुरुगमथी निर्भ्रान्त हो. घटमां भावना० ॥ २ ॥ आतम जड वे तत्त्वनोरे, निश्चय करीए सत्य, आतमज्ञानथी आत्मनारे, क रीए धर्मनां कृत्य हो. घटमां०॥ भावना० ॥३॥ श्रुत• ज्ञाने संशय टळेरे, आतमअनुभव थाय; आतम ते परमातमारे, निश्चय दिल प्रगटाय हो. घटमां० ॥ ४ ॥ बीजी तपनी जावनारे, जावीए थै निष्काम; सर्वेच्छाओ रोधवीरे, तप ते आतमराम हो. घटमां० ॥ ५ ॥ सर्वविषयनी कामनारे, टाळे ते तप बेश; For Private And Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८६ सर्वशुभाशुभवृत्तियोरे, तेना शमता क्लेश हो. घटमां० ॥ ६ ॥ त्रीजी सत्त्वनी जावनारे, आतम शक्ति अनंत; यातमसत्त्वे मोहनोरे, आवे क्षणमां अंत हो. घटमां० ॥७॥ परिषह संकट वेठतारे, रहेवुं आतममां स्थिर; सुख दुःखमां चलवुं नहींरे, मेरुपेठे थवं धीर हो. घटमां० ॥८॥ आतमना उपयोगथीरे, प्रतिबद्ध विहार; निःसंग वनवास निर्ममेरे, ध्यान समाधिधार हो. घटमां० ॥ ९ ॥ इन्द्रादिकसुख प्रांति छेरे, आतमसुखनी पास; आत्मस्वतंत्रता धारवीरे, कर्म हणीने खास हो. घटमां० ॥१०॥ चोथी एकत्व ठे जावनारे, भावीए घरी उल्लासः जड जगमां नहीं जीवनुंरे, कोइ पोतानुं खास हो. घटमां० ॥ ११ ॥ पांचमी तत्त्वनी जावनारे, जीवादिक नवतत्त्व; षड् द्रव्योने विचारतारे, प्रगटे निज एकत्व हो. घटमां० ॥ १२ ॥ आत्मतत्त्वने जाणतांरे, जाण्या सर्व पदार्थ; बुद्धिसागरनावनारे, भावे शिवपरमार्थ हो. घटमां० ॥ १३ ॥ य० स्वाहा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ हाँ० श्री परम० जावनायोगपूजार्थ जलं › For Private And Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८७ (३) तृतीया ध्यानपूजा ॥ ज्ञानप्रमाणे ध्यान , गुरुगमथी छे ध्यान, संयमस्थिरता संपजे, ध्यानथी केवलज्ञान. ॥१॥ ध्याननो नेद समाधि छे, मतिश्रुतज्ञाने ध्यान; साकारी उपयोगथी, अंतर्मुहूर्त प्रमाण. ॥ २ ॥ आ. तम आदितत्वमां, उपयोगे एकतान; ध्यान छे, ध्यानप्रवाहबहु मान. ॥ ४ ॥ आर्तरौद्र बे परिहरी, धर्म शुक्ल बे ध्यान; ध्याए उपयोगथी, जीव बने नगवान् ॥ ४ ॥ (हे सुखकारी आ संसारथकी जो मुनने उद्धरे. ए राग.) ___ महावीर प्रभु !!! तुजध्याने लय लागी बीजु नहीं गमे; हें ध्यान धयु बारवर्ष लगी तेमां मुज आतम रमे.॥ त्हें ध्याने केवल प्रगटाव्यु; मुज मनमा ध्यान ते शुभ भाव्यु, ध्याने प्रगटे सुख समजायुं. महावीर० ॥ १॥ वायुवण दीप शिखापरे, आतम ध्याने आनंदल्हेरे; रहेधुं शुद्धातम निज व्हेरे. म. हावीर ॥ २ ॥ मेरुपरे स्थिर, ध्याने थावं, अंतरमां साक्षी थै जावू, ध्याने यातम पोते ध्यावं. महावीर ॥३॥ पिंडस्थ पदस्थ वे ध्याइजे, रूपस्थने दिलमां पाइजे; रूपातीतथी शिव पाइजे. महावीर ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८८ आतमध्याने लगनी लागे, ऋद्धि सिद्धि लब्धि जागे, घातीको वेगे भागे महावीर० ॥ ५॥ शु. द्धातम उपयोगे रहीए, आनन्दोल्लासे गहगहीए; जीवंतां मुक्तिसुख लहीए. महावीर ॥ ६ ॥ खेद उद्वेगभ्रमने परिहरीए, उत्थानने क्षेपने झट ह. रीए; आसंग त्यजी ध्यान ज धरीए. महावीर० ॥७॥ अन्यत्र प्रेमने नहीं करीए, रोगोदयमां स्थिरता ध. रीए; संकल्पविकल्पने परिहरीए. महावीर० ॥८॥ शुभध्याननी भावना भावीए, बातम लाली प्रगटा. वीए, आतमगुणपर्याय ध्यावीए. महावीर० ॥९॥ म. नवचतनुनी स्थिरता करीए, कदि मोहना मार्या नहीं मरीए; आतममहावीरदशा वरीए. महावीर ॥ १० ॥ ध्याने ज्ञानादिकगुणसिद्धि, क्षायिक नव प्रगटे घट लब्धि; बुद्धिसागर आनंदऋद्धि. महावीर० ॥ ११ ॥ ॐ ही श्री परम ध्यानयोगपूजार्थ. जलंग य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८९ चतुर्थी समतायोगपूजा. समताथी शिव संपजे, आठकर्म दूर जाय; समता प्रगट्या वण कदि, कोइ न मुक्ति पाय. ॥१॥ सर्वयोगशिरोमणि, समतायोग महान, रागरोष बे विषमता, त्यजे स्वयं जगवान्. ॥ २ ॥ सर्वधर्म दर्शनविषे, समभावे वे मुक्ति; समता दिलमां धाए, सर्वयोगवरीति. ॥ ३ ॥ ( वगडानो वाशीरे मोर शिद मारियो ए राग. ) प्रभु महावीर समतागुणना दरियारे, रागने रोषविषमता परिहरी समतागुणथी भरिया जीवो तरियारे, ममताने त्यागेरे समता ने खरी. समताने धारेरे शिवसुख थाय छे, ममता ने अहंता दूरे जाय बे; आतम ते परमातमपद पाय छे, आतम एक आपोआप सुहाय छे. ॥ १ ॥ जडविषयोमां शुभअशु नहीं वृत्तिरे, सुख दुःखमां हर्ष न शोक जरा रहे, लाभालाजमां मरण जीवनमां समतारे, आतमना उपयोगे साक्षीपणुं वहे. समताने० ॥२॥ शुभाशुभपशुं जगमां नहीं कल्पातुरे, आतम जम निज निज जावे जणाय बे, जडमां सुख दुःख विषमपणानी त्रांतिरे, थाती नहीं आतम निःसंग थाय छे. ६२ For Private And Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० समताने० ॥३॥ कमठ अने धरणेंद्रउपर समभावीरे, धन्य धन्यरे पार्श्वप्रो !! त्हारी दशा; चंमकोशिया संगम इन्द्रनी उपरेरे, समताना योगीरे महावीर दिल वस्या. समता० ॥ ४ ॥ समताभावे स्कंधकसूरिना शिष्योरे, रहियारे क्षणमां मुक्तिपद वर्या; अच्चंकारी जहा अन्निकापुरे, सद्गतिने साधीरे जवसागर तर्या. समताने० ॥ ५ ॥ दमदंतने नामराजर्षि शिव पाम्यारे, मेतारज समताए मुक्ति लह्या; गज सुकुमाले समता घटमां धारीरे, एम अनेक समताए शिवपद वद्या. समताने० ॥ ६ ॥ नामरूपशास्त्रादिकवासना टाळीरे, लोकादिकसंज्ञारे टाळे सम पणुं पंचेन्द्रियविषयोनी कामना टळतांरे, मनमांरे प्रगटे नहीं विषमीपणुं. समताने० ॥ ७ ॥ समताए आतमनुं सुख अनंतुरे, तेनीरे आगळ जमसुख नहीं कश्युं; अहंपणुं ममता टाळतां ज्ञानेरे, ज्ञानीना दिमां अनुभवसुख वस्युं. समताने० ॥ ७ ॥ जडवेतनमां समभावी उपयोगीरे, एवोरे आतम हुं साक्षी रह्यो; कर्मविपाकमां मुंकुं नहीं समजावेरे, उपयोगे एवो निश्चय में लह्यो. समताने० ॥ ९ ॥ प्रभुमहावीर !!! हुं तुज समता अनुसरतोरे, शुद्धतम महावीर For Private And Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९१ पदने पामशुं; आतमज्ञाने शिवपुर दीतुं मीठुरे, पामीशुं योगथकी त्यां झामशुं. समताने० ॥ १० ॥ समतायोगने उपयोगे दिल घरीएरे, वरीएरे मुक्ति दशा जीव्याबते. बुद्धिसागरसमतासंगीरंगीरे, मुक्तिरे सर्वधर्मसमताछते. समताने० ॥ ११ ॥ ॐ ह्रीं श्री परम० समतायोगपूजार्थ जलं० य० स्वाहा ॥ पंचमी वृत्तिसंक्षययोगपूजा. मोहादिनी चित्तमां, प्रमटी वृत्तिनिरोध; चि. तनी वृत्तिनिरोधथी, प्रगटे केवलबोध ॥ १ ॥ सर्वसंकल्पविकल्प जे, मोहनी वृत्ति गणाय; तेना पूरणनाशथी, नवलब्धि प्रगटाय ॥ २ ॥ तिरोभाव निज ऋद्धिनो, आविर्भाव जे थाय; पूर्णयोग ते जाणवो, साध्यस्वरूप सुहाय ॥ ३ ॥ ज्ञानध्यान समताथकी, मोहनी वृत्तिविनाश; ज्ञानावरणादिक टळे, निज गुणे शोभे खास ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( चउमासी पारणुं आवे.) धन्य महावीर प्रभु जयकारी, पूनुं ध्यावं शिव सुखकारी; चित्तवृत्ति हली जयकारी, वृत्तिसंक्षय योगना धारीरे; महावीरप्रभु जयकारी. मोहवृत्ति हणो नरनारीरे. महावीर ॥ १॥ सर्व अशुभवृत्तिना त्यागे, देवगुरुधर्म उपरे रागे; शुभवृत्तिव्यापार ना लागे, योग प्रथमदशामां ए जागेरे. महावीर ॥२॥ धर्मार्थे शुनपरिणामे, काया वाणी धर्ममा झामे; प्रशस्यकषायना गमे, शुभदर्शनचारित्रगमेरे. महावीर ॥ ३॥ सेवाभक्ति शुभप्रवृत्ति, शुभयोगे आतमव्यक्ति; सात्त्विकपरिणामनी शक्ति, शुभयोगमां शुन्न आसक्तिरे. महावीर ॥ ४ ॥ शुभवृत्ति टळे शुद्धनावे, शुद्धउपयोग ध्यानप्रभाव; सवि कल्पपणुं दूर जावे, मनोवृत्तिव्यापार न थावरे. महावीर ॥ ५॥ टळे सर्वकषायो ज्यारे, प्रगटे केवल ज्ञान त्यारे; मनोवृत्ति रहे न लगारे, घातीकर्मो रहे नहीं चारेरे. महावीर० ॥ ६॥ शुभाशुभचित्तवृत्ति विनाशे, शुद्धउपयोगवीर्योल्लासे; श्रुत उपयोगना अन्यासे, शद्धआतमज्ञान विकासेरे. महा ॥७॥ सयोगीगुणस्थान सुहावे, पछे अयोगी थे शिव जावे; For Private And Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९३ साधनयोग अभाव ज थावे, सिद्ध बुद्ध परमप्रभुं थावेरे. महावीर ॥ ८ ॥ एक एकज योगे अनंता, जीवो मुक्तिपदने वरंता; श्रातमशुद्धिमां सर्वे म ळंता, जाणे सापेक्षज्ञाने संतारे. महावीर० ॥ ९ ॥ क्षयोपशमे उपशमनावे, भावक्षायिके चेतन आवे, शुद्धपरिणामे प्रणमे स्वजावे, निवृत्तिपणुं झट थावेरे. महावीर० ॥ १० ॥ पंचसमिति त्रिगुप्ति पाळी, मनमोहनी वृत्तियो टाळी, देजो आतममां मन वाळी; बुद्धिसागर नंदलालीरे. महावीर० ||११|| कलश. धन्याश्री राग. गायो गायोरे महावीर जिनेश्वर गायो ॥ पंच प्रकारी योगनी पूजा, रचीने प्रभुगुण गायो, योगनी पूजा ते प्रभुभक्ति, करतां आनंद पायोरे. महावीर० ||१|| दर्शन ज्ञानने चारित्रयोगमां, सर्वे योग समाया; पांचयोग पंचसमिति त्रिगुप्ति, असंख्य योग कथायारे. महावीर० ॥ २ ॥ चनदगुणस्थान अष्टांगयोग ज, तममांही समाया; शुद्धातम उपयोगमा सर्वे, अंतर्भावने पायारे. महावीर० ॥३॥ यातममांही भेदानेदे, सर्वे योग समाता; पातंजल For Private And Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ आदियोगभेदो, पंचथी न्यारा न थातारे. महावीर ॥ ४॥ गुरुगमथी योग साधता नव्यो, अनंत शक्ति सुहाता; चिदानंद अनुनवने पाता, सिद्ध बुद्ध थै जातारे. महावीर ॥५॥ प्रभु महावीरपट्टपरंपरा,-श्वेतांबर साम्राज्ये; तपगच्छ जगगुरु हीरविजय सूरि, सूर्यनी पेठे छाजेरे. महावीर० ॥ ६॥ तसपट्ट सागरपट्टपरंपरा, नेमिसागरगुरुराया; तस शिष्य रविसागर गुरु रविसम, नारत सुजश छवायारे. महा वीर० ॥७॥ तस शिष्य सुखसागर समतावंत, मुनि गणमांहि सवाया; तस शिष्य बुद्धिसागरसूरिए, योगथकी प्रभु ध्यायारे. महावीर ॥ ८॥ संवत् ओगणिश अठयोत्तरना-आश्विनमां जयकारी; वदि पांचम बुधवार सवारे, पूजा रची सुखकारीरे, महावीर ॥ ९॥ जणशे गुणशेने सांजळशे, भावथकी आचरशे; नरनारी ते शिवपद वरशे, भवपाथोधि तरशेरे, महावीर० ॥ १० ॥ मेसाणासंघभक्तिथी कीg, चोमासु सुखकारी; बुद्धिसागरऋद्धिवृद्धि, कीर्ति लही नरनारीरे. महावीर ॥ ११ ॥ ॐ वृत्तिसंक्षययोगपूजार्थ जलंग य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९५ पंचपरमेष्ठी पूजा. प्रणमुं प्रभु महावीर जिन, चोवीसमा अरिहंत, वर्तमान शासनपति, परमेश्वर शिवकंत. ॥ १ ॥ परमेष्ठीपूजा रचुं द्रव्यने भावथी बेश; भणतां सुएतां आचरे, नासे सर्वे क्लेश ॥ २ ॥ अर्हन् सिद्धने सूरिजी वाचक मुनि जयकार; परमेष्ठी मंगलकरा, सुखशांतिदातार ॥ ३॥ प्रथम अरिहंतपदपूजा. चउनिक्षेपे ध्यावतां, स्तवतां पूजतां सार; अरिहंत प्रभु वदतां कर्म टळे निर्धार ॥ १ ॥ अरिहंत बे आतमा, गुणपर्याये शुद्ध प्रभु भजतां निज आतमा, यात्रे प्रभु जिन बुद्ध. ॥ २ ॥ दोष अढार रहित विभु, अरिहंत जिनराज; पूजंतां प्रगटे प्रभु, त्रण्यभुवनशिरताज ॥ ३ ॥ ( राग वेलावल मेरुशिखर न्हवरावे हो जिनपति, ए राग. ) अरिहंत जिनपति भजीए हो जावे, अरिहंत जिनपति भजीए ॥ द्रव्यने जावथी वीशस्थानक पद, हर्षोल्लासे आराधे; अनंत पुण्यमयीजिननामने, बांधी प्रभुपद साधे हो. अरिहंत जिनपति भजीए For Private And Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ भावे. ॥१॥ समवसरणमां भाव अरिहंत, भविजनने उपदेशे; त्रण्यकाल जिनवर पूजंतां; मनडु न रहे भवक्वेशे हो. अरिहंत० ॥ २ ॥ द्रव्यगुणपर्याये अरिहंत, आतम आपस्वरूपी; बुद्धिसागरप्रेमप्रतीते; चिदानंदफलरूपी हो. अरिहंतः ॥ ३॥ ॐ ह्री श्री प० अर्हत्पदपूजार्थ जलंग य० स्वाहा. द्वितीया सिद्धपूजा. चरनिक्षेपे सिद्धपद, सेवंतां नरनार; अष्ट कर्मक्षय झट करी, सिद्ध बने निर्धार. ॥१॥ शु. द्ध बुद्ध परमातमा, सिद्ध प्रभु भगवंत; परब्रह्म पर मेश्वरा, पूजंता नविसंत. ॥२॥ आतमगुणपर्यायनी, पूर्णशुद्धि जे थाय; ते निजपर्यव सिद्धता, आतममांहि समाय.॥३॥ ___ (प्रभुदर्शन मोहनगारा. ए राग.) प्रभु परमातम रढ लागी, प्रभु सिद्धनी प्रीत. डी जागीरे. प्रभु० ॥ आरेकर्म रहित शुद्ध आतम, आवगुणे वमजागी; गुण एकत्रिंश अनंतगुणी जे, For Private And Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९७ यो प्रभुपदरागीरे. प्रभु० ॥ १ ॥ चउनिक्षेदे सातनये सिद्ध, जाणतां लय लागी ; आतम ते सिद्ध बुद्ध प्रभु बे, सत्ताए सौनागीरे. प्रभु० ॥ २॥ श्रातम पूरणशुद्धि सिद्ध ते, पूजंतां वैरागी बुद्धिसागर निर्भयदेशी, निर्मोही महात्यागीरे. प्रभु० ॥ ३ ॥ ॐ प० सिद्धपदपूजार्थ जलं० य० स्वाहा. तृतीया आचार्यपदपूजा. बत्रीशी छत्रीशी गुणवडे, गुणी जे ज्ञानी महंत; पंचाचारने पाळता, पूजु सुरिसंत ॥ १ ॥ द्रव्यादिक अनुसारथी, धर्मीसूरि गुणवंत जावथी आतम सूरि जे, पूजो प्रणमो संत ॥ २ ॥ नयनिक्षेपथ सूरिपद, निजपरने दितकार; निश्चयने व्यव हारथी; पूजो नरने नार. ॥ ३ ॥ ( राग देशाख. ) जगत्मां सूरीश्वर जयकारी जिनशासननी शोभाकारी प्रभुपेठे उपकारी. जगत्० ॥ १॥ छत्रीशी छत्रीशी गुणगणशोजित, पंचाचारी विहारी; कलि For Private And Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ काले प्रभुपाटे प्रभुसम, संघ सकल आधारी. ज० ॥ २ ॥ जैनधर्म वर्तावे जगमां, निश्चयी जे व्यव हारी; शुद्धातमगुणध्यानसमाधि, राता आनंदकारी. ज० ॥ ३ ॥ आतमज्ञानी जे मस्तानी, यातम आनंदधारी; बुद्धिसागर सद्गुरुसूरि, पूजंतां भवपारी. जगत् ॥ ४ ॥ ॐ सूरिपदपूजार्थं जलं० य० स्वाहा. 30 चतुर्थी उपाध्यायपदपूजा. पच्चीशगुणथी शोभता, वाचक धर्माधार; भ जणावे साधुने, सम्यकुश्रुतदातार ॥ १ ॥ अनेक गुणथी शोभता, साधे धर्माचार; संयममां वर्ते सदा, साधुधर्म घरे सार ॥ २ ॥ श्रुतने चारित्रधर्मथी, आतमधर्मप्रकाश; - करता वाचक पूजतां यावे कर्मविनाश. ॥ ३ ॥ ( सोवे सोवे सारी रेंन गुमाइ ए राग. पीलु. ) वाचकपद आतम गुणधारी, ज्ञानने दशर्न चरण विहारी. २० ॥ आतमशुनपरिणति जयकारी For Private And Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९९ वाचकपूजानी बलिहारी. वाचकम् ॥१॥ ज्ञानानुभवसुखनी क्यारी, पंचमहाव्रत पंचाचारी. वा० मुनिगणपाठक जगहितकारी, श्रुतरसिया संयम गुणधारी. वाचकम् ॥ २॥ पूजी वंदी वाचकपदने, आनंद पामो नरनेनारी; बुद्धिसागरगुरुअवतारी, वाचक जगमा छे सुखकारी. वा० ॥ ३॥ ॐ वाचकपदपूजार्थ जलंग या स्वा० ॥ पंचमी साधुपदपूजा ॥ इन्द्रचन्द्रनागेन्द्रनी, पदवी न इच्छं लेश; क्षण पण साधुसंगति, इच्छं रहे न क्लेश. ॥१॥ पूजु मुनिपद प्रेमथी, इच्छं मुनिवरसंग; क्षण पण साधुसंगतें, प्रगटे ज्ञानतरंग. ॥ २॥ संतथी प्रभु परखाय डे, विणसे मोहविलास, प्रभुदर्शन प्रभु प्राप्तिमां, साधु दलाल ज खास. ॥ ३ ॥ (राग वसंत. तुंतो पाठक पद मन धर हो. रंगीले जिउरा. ए राग.) जीव !!! मुनिवर संगत कररे, प्रभु रसिया प्यारा; जड़ चेतनमां जे समजावी, गुणीना गुण दिलमा For Private And Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० धररे. प्रत्नु० ॥१॥ श्रुतज्ञानी निजपर उपकारी, खेद द्वेष नहि जरी डररे. प्रभु संतनां दर्शन ते प्रभु दर्शन, जेने नहीं धन नारी घररे. प्रभु० संतहृदय माहि प्रभुजी डे परगट, संतवचनामृत पान कररे. प्रभु० ॥२॥ आधिव्याधिसर्व उपाधि, नासे मन न रहे चंचळरे. प्रजु० श्रद्धाप्रीतिथी स्वार्पण करी सहु, तुं तो साधुनी सेवा कररे. प्रभु० ॥३॥ शांति पमाडे संत ते साधु, बहुविनय करी मन धररे. प्रभु साधुकृपाथकी प्रभु परगट दिल, मोहनावे न पाडो फरर. प्रभु० ॥४॥ आतमगुणपर्यायनी शुद्धि, पंचपरमेष्ठीपद स्मररे. प्रभु०॥ बुद्धिसागर पू. नन्दी, उपयोगे घटमां विचररे. प्रभु ॥५॥ कलश. गाइ गारे पंच परमेष्ठी पूजा गाइ, ओगणिश अट्योत्तरअक्षयत्रीज, चढते प्रहरे रचाइ; शांति तुष्टि पुष्टि सिद्धि,-देनारी सुखदारे. पंच० ॥ १॥ प्रभुमहावीरपट्टपरंपरा, तपगच्छ जगसुखदायी; जगगुरु हीरविजय सूरिराजा, सहुगच्छमाही सवाइरे. पंच० ॥ २॥ सागरशाखा पट्टपरंपरा, रविसा. For Private And Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०१ गर गुरुराजा; सर्वमुनिगणना शिरताजा, मुनि गुणगणनी माझारे. पंच० ॥ ३ ॥ रविसागर शिष्य. गुरु सुखसागर, शांत दांत सुखदायी; गुरुकृपाने आशीर्वादे, आतमस्थिरता पाइरे. पंच० ॥ ४ ॥ पंच परमेष्ठी पूजा रची शुभ, आनंदमंगलदायी; बुद्धिसागर ऋद्धि वृद्धि, कीर्ति जयगुणछायीरे. पंच० ॥५॥ ॐ मुनिपदपूजार्थ० ज० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०२ अथ श्रीमहावीरजन्मकल्याणक जयंतीमहोत्सवपूजा. ॥ दुहा ॥ परमेश्वर परमातमा, महावीर जिनराज; वी. तराग अरिहंतजी, सर्वदेव शिरताज. ॥१॥ चोवी. शमा तीर्थकरा, सर्वविश्वआधार; केवलज्ञाने बोधीने, तार्या नरने नार. ॥२॥ नारत आदि दे. शनो, कीधो धर्मोद्धार; वर्तमान शासनप्रभु, तीर्थकर अवतार. ॥ ३ ॥ जेना कल्याणक दिने, नरक विषे उद्योत; शातापामे विश्वजीव, अनंत निर्मल ज्योत. ॥ ४॥ कल्याणक पांचे भलां, च्यवन जन्म कल्याण, प्रभुमहावीरदेवनां, गातां आनंद लहाण. ॥५॥ जन्मोत्सवने उजवे, जन्मादिक नहि थाय; प्रभुभक्तिथी भक्तनां,-दुःखो दूरे जाय. ॥६॥ द्रव्य भावभक्तियकी, आतमशुद्धि थाय; च्यवनजन्मने गावतां, पुण्योदय प्रगटाय. ॥ ७॥ प्रनुजन्मकल्याणनी, पूजा विविधप्रकार; गातां स्तवतां भक्तजन, सुखशांति लहे सार. ॥८॥ ते कारण पूजा रचुं, आनंदमंगलकाज; घर घर पूजा गा. वतां, स्तवतां सुखसाम्राज्य. ॥१॥ शुजकार्यों For Private And Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करता थका, समकिती नरनार; वर्धमानपूजाबले, शांति लहे नरनार. ॥ १० ॥ प्रभुमहावीरदेवना, जन्मगुणो गानार; शांति तुष्टि पुष्टिने, जय लक्ष्मी वरनार. ॥ ११ ॥ महावीर जन्मजयंती दिन, उत्सव जे करनार; पूजा जेह भणावशे, सुख लहेशे जयकार. ॥ १२ ॥ अनंतगुणा उपकारीजे, विश्वोद्वारक देव; जन्मजयंतीमहोत्सवे, रसिया पामे सेव. ॥ प्रथमभवे समकितप्राप्तिपूजा ॥ ( पुखलवइ विजये जयोरे. ए राग.) पश्चिममहाविदेहमारे, ग्रामपति नयसार; गुणरागी विनयी भलोरे, ग्रामतणो आधाररे. चे. तन ! समकित डे जयकार, जेथी लहो जवपाररे. चेतन. स० ॥१॥ एक दिवस वनमा गयोरे, काष्टादिकनेकाज; नूल्या पड्या एकसाधुनेरे, दीधी प्रेमे साजरे. चेतन ॥२॥ साधुनी सेवा करीरे, वहोराव्यो आहार; राच्यो माच्यो हर्षियोरे, धन्य गण्यो अवताररे. चेतन. स० ॥३॥ योग्य जाणीने For Private And Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुएरे, दीधो धर्मोपदेश; देवगुरुने धर्मनीरे, श्रद्धा प्रगटी, बेशरे. चेतन ॥ ४ ॥ त्रय करण करी फर. शियुरे, समकित मोक्षनुं द्वार; समकित पामे नत्र तणीरे, गणतरी छे निर्धाररे. चेतन ॥ ५॥ नयसारे बहुनावथीरे, मुनिना वंद्या पाय; संतनी सेवा चाकरीरे, निष्फल क्यारे न जायरे. चेतन ॥ ६ ॥ मिथ्यादृष्टि टळ्या पबीरे, देवगुरुपरप्रेम; धर्मप्रेम वाधे घणोरे, प्रगटे योगने केमरे. चेतन ॥ ७॥ समकितवंता जीवडारे, कमोदये करे काज; अंतरथी न्यारा रहेरे, इच्छे शिवपुरराजरे. चेनन ॥८॥ अंतर्मुहर्त लगी रहेरे, उपशम समकित बेश; पण ते नियमा भव करेरे, टाळे कमेना क्लंशरे. चेतना ॥ ए॥ क्षयोपशमसमकित नढुंरे, प्रगटे वार अ. संख्य; क्षायिक एकज वारथीरे, आतम करे निःशंकरे. चेतनः ॥ १० ॥ यदा समकित प्रगटे तदारे, देवगुरुपरराग; धर्मरागश्रद्धा घणीरे, मिथ्याचा. रनो त्यागरे. चेतन० ॥११॥ साधु संतना योगथीरे, भद्रक गुणी नयसार: समकित पाम्यो अंशथीरे, बन्यो प्रभु अवताररे. चेतना ॥१॥ तीर्थंकर महा. वीरनोरे, आतम चढ्यो गुणथान; ऋषभदेव पौत्रज थयोरे, पाम्यो बहुश्रुत ज्ञानरे. चेतन० ॥ १३ ॥. म. For Private And Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिचिनामे मुनि थयोरे, बीजा खह्या अवतार; एक वार समकित लहेरे, पडे त्होंये चढे साररे. चेतन ॥ १४ ॥ समकित चारित्रकरणीएरे, भवनो निश्चय अंत; बुद्धिसागरवीरनारे, गुणग्रहो मतिमंतरे. चेतनः ॥ १५॥ __ ॐ ह्री श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते महावीरजिनेन्द्राय, जलं, चंदनं, पुष्प, धूप, दीप, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, यजामहे स्वाहा ॥ द्वितीयातीर्थकरनामकर्मबंधकपूजा. धन्य धन्य महावीरनो, पच्चीशमो अवतार; भरत छत्रिकानगरीमां, जन्म्या जगहितकार.॥१॥ जितशत्रुराजातणी, भद्राराणी कूख; नन्दन न. न्दन नामथी, जन्म्या जस बहुसुख. ॥२॥ पो. टिलसूरि उपदेशथी, ग्रां चारित्र उदार; समकितने चारित्रथी, निश्चय मुक्तिथनार. ॥ ३॥ समकितने पाम्या पछी, समकित जो टळी जाय; ते ६४ For Private And Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ ते लही, चारित्री शिवपाय. ॥४॥ सर्वनयोनुं सार , द्रव्यभावचारित्र; चारित्री निश्चय करे, सर्वकर्मने रिक्त. ॥ ५॥ ( सांभळजो सखियां हमारी, ए चाल. ) नमुं नंदनमुनि जयकारी, धन्य मुनिवरनी बलिहारी ॥ करे मासखमण तप भारी, वीसस्थानकसेवना सारी; थया उत्कृष्टा अनगारीरे, भावे भावना शुद्ध विचारी; दउ विश्वजीवो उझारी, नमुं० ॥१॥ करुं शासनरसी नरनारी, दुःखदृष्टि टळे दुःखकारी; सर्वजीवविषे उजियारी, करुं भावना एवी सारीरे; प्रगटी शुभपरिणतिक्यारी, बांध्यु तीर्थकरपद भारी. नमुं० ॥२॥ प्रत्याख्यानीकषाय विरामे, दुष्टसंज्वलपरिणति वामे; धर्मध्यानावलंबनठामे, वधता उज्ज्वलपरिणामेरे; छठा गुणस्थानकना धारी, धन्य धन्य मुनि अनगारी. नमुं ॥ ३ ॥ रागद्वेषनी परिणति टाळे, समता सुखमांहि म्हाले; शुभअशुभबुद्धिने खाळे, निज आतममां मन वाळेरे; जेणे कंचन कामिनी टाळी, जडथी मूर्छा उतारी, नमुं० ॥ ४॥ क्षयोपशमी चारित्र पाळे, प्रगटया दोषो झट टाळे; षडावश्यके For Private And Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०७ गुण अजवाळे, करे मोहथी युद्ध ज भारेरे; नहीं दि लमां अरिनी यारी, उपयोगे रहे हितकारी. नमुं० ॥ ५ ॥ चारभावना दिलमां भावे, शुद्धआतम रूपनेध्यावे; सहे उपसर्गो समभावे, एवा संत मळे शिव यावेरे; एवा सराग संयमधारी, धन्य नंदनमुनि सुखकारी नमुं० ॥ ६ ॥ धन्य चारित्री गुणधारी, द्रव्यगुणपर्यायविचारी; बन्या द्रव्य क्रियाव्यवहारी, जे निश्चयउपयोगधारीरे; बुद्धिसागरमुनिमहाराजा, नमुं० ॥ ७ ॥ सुरपतिनरपतिशिरताजा. ॐ ह्रीं श्रीं प० श्रीमते महावीर जिनेन्द्राय, जलं, चंदनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं च संयतगुणलाभाय य० स्वाहा ॥ तृतीया प्राणांतस्वर्गगमनदशावर्णन पूजा. आयुक्षये नंदनमुनि, दशमा स्वर्गमझार, उपज्या वीशसागर उपम, - आयुथी जयकार. ॥ १ ॥ मति श्रुत अवधिज्ञानना, - धारक सुर सुखकार; पूर्व For Private And Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ भवोने जाणता, शुभपरिणामी उदार; ॥ २ ॥ भोगवे मनथी भोगने, पण नहि भोगी जेह; सम्यग्दृष्टि देवने, वर्ते नहि संदेह ॥ ३ ॥ ( सांभळशो मुनि संयमरागे - ए राग. ) सांभळशो महावीर प्रभुनो, बद्दीशमो भव सारोरे; मतिश्रुत अवधिना उपयोगे, जातो सुर जन्मारोरे. साभळशो० ॥ १ ॥ सरागसंयम तप जप कर्मे, स्वर्गगतिने पामेरे; सम्यग्दृष्टि, मुक्तिमाटे, विचरे रहे विश्रामेरे. सांभळशो० ॥ २ ॥ वैकियदेही पुद्गलशक्ति, - धारक भक्तिधारीरे; धर्मी जीवोने सहाय करंता, कर्मयोगी उपकारीरे. सां० ॥ २ ॥ शुक्ल शुक्लपरिणामना धारी, कामी छतां जे अकामीरे; सम्यग्दृष्टियोगे सबळु, जाणे न धारे खामीरे. सां० ॥ ४ ॥ पुण्यभोग भोगवता विचरे, मुक्ति सुख अभिलाषीरे; सघलुं आयुष्य पूरण करता, शुद्धातम विश्वासीरे सां० ॥ ५ ॥ अनंतनिर्जरे अल्पकर्मबंध, सम्यग्दृष्टियोगेरे; बाह्यथकी देवभवना सुखने, भोगवे उदयप्रयोगेरे. सां० ॥ ६ ॥ तीर्थकरपद बांग्यु जाणे, भावीजन्मने जाणेरे; एकसमये चवतां नहि जाणे, उपयोग मुहूर्तप्रमाणेरे. सां० ॥ ७ ॥ शिव For Private And Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०९ मारग विसामो सुरभव, वीरप्रभुनो जाणोरे; बुद्धिसागरप्रमुगुणभक्ते, जन्म सफल थयो मानोरे. सां० ॥८॥ ॐ ह्री श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते महावीरजिनेन्द्राय, भक्तिलाभार्थ ज य स्वाहा ॥ चतुर्थी च्यवनकल्याणपूजा. भारत माहनकुंडमां, ब्राह्मण ऋषभदास; देवा. नंदा ब्राह्मणी, पतिव्रता जे खास. ॥१॥ प्राणत स्वर्गथकी प्रभु, भोगवी सुरनुं आय; देवानंदा कुख विषे, प्रगट्या पुण्यपसाय. ॥२॥ चौदस्वप्नने देखती, देवानंदा मात; ऋषभदासना बोधथी, जाणी थे रळियात. ॥३॥ ( मेतारज मुनिवर धन्य धन्य तुम अवतार. ए राग.) कमोदयथी देवानंदा, कुखमां चवी प्रभु आय; व्यासी रात्री दिवस त्यां रहिया, कर्मथकी न छ For Private And Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१० टाय; त्रिज्ञानी प्रभुजी भोगवे कर्मना भोग. ॥ १ ॥ क्षत्रियकुंडनगरीमांही, सिद्धारथ गुणी राय; त्रिशला राणी तेनी कुखमां, आव्या प्रभु सुखदाय. त्रि० ॥ २ ॥ त्रिशला माता चौद स्वप्नने, देखी ह र्षित थाय; जोषीओ वोले तीर्थकर, - प्रगट्या छे जगराय त्रि० ॥ ३ ॥ राजा जोषीगण संतोषे, दाने अने सन्माने; त्रिशला माता प्रभुगुणभक्ते, आयु वहे ते न जाणे. त्रि० ॥ ४ ॥ गर्भे रहिया त्रिज्ञानी प्रभु, उपयोगे जिनराय; शातावेदनी वेदे गर्भमां, गर्भकाल वीती जाय. त्रि० ॥ ५ ॥ नव मासने उपर साडा, - सात दिवस वही जाय; बुद्धिसागर प्रभुमहावीर, गर्भगुफामां सुहाय. त्रि० ॥ ६ ॥ ॐ ह्रीं श्री० प० महावीरच्यवनकल्याणक पूजार्थ ज० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५११ ॥ पंचमी श्री महावीर जन्म कल्याणकपूजा ॥ त्रिशलामाता विधिधी, गर्भवहे सुखकार; शांति तुष्टि पुष्टिथी, आरोग्य ज धरनार. ॥१॥ चैत्री सुदि त्रयोदशी, मध्यरात्रीना योग; सर्वदिशा निर्मल छते, जन्म्या प्रभु गुणभोग. ॥ २ ॥ अजवाळु नरके थयुं, चौदभुवन उद्योत; सर्वजीव शा. ता थर, जेनी निर्मल ज्योत. ॥३॥ छप्पनदिशि कुमारी तुरत, आवी प्रभुने पास; सूतिकर्म भावे कयु, माता हर्ष उल्लास. ॥ ४ ॥ ( मेरु शिखर न्हवरावे हो सुरपति. ए राग.) प्रभु जन्म्या ते काले हो सुरपति, सघळा मकी झट आवे; प्रभुनी माता पासे आवी, प्रभु प्र. णमीने वधावे हो; सुरपति सघळा मळी तिहां आवे. ॥१॥ प्रभुबिंब मूकी प्रभुमातपासे, प्रभुने मेरु ले जावे; आठ जातिना कलश भरीने, स्नात्र करी गुण गावे हो; सुरपति प्रेमे प्रभु न्हवरावे. ॥२॥ चोसठ इन्द्रो प्रभुगुण गावे, हैडे हर्ष न मावे; त्र. ण्यजगत्ना नाथने ध्यावे, भक्ते उल्लसित थावे हो; सुरपति प्रेमे प्रभु न्हवरावे. ॥ ३ ॥ चारनिकायना देव देवीओ, इन्द्रो असंख्य त्यां आवे; विधिए पूजी For Private And Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ • प्रभुने मातनी, -पासे मूकी जावे हो. सुरपति० ॥ ४ ॥ प्रातःकाले जन्मने जाणी, सिद्धारथ नृप भावे; प्रभु जन्मोत्सव देश नगरने, घर घरमां विरचावे हो; प्रभुजी जन्म्या जग जयकारी ॥ ५ ॥ शांति तुष्टि पुष्टि मंगल, - वायु भारत वायो; भारतमांही सोना सूरज, उग्यो प्रगट सुहायो हो. प्रभुजी० ॥ ६ ॥ भारतमां सुख शांति वर्तो, रोग उपद्रव शामो प्रभु कल्याणकयोगे जगत्मां, सर्वजीवो सुख पामो हो. प्रभुजी० ॥ ७ ॥ ओगणीश अठयोत्तर चैत्रसुदि, त्रयोदशी रविवारे; प्रभुमहावीरजन्म महोत्सव, गायो हर्ष विचारे हो. प्रभुजी० ॥ ८ ॥ प्रभु महावीर गावो भावो, रत्नादिकथी वधावो, सकलसंघमां आनंदमंगल, शांति पुष्टि था वो हो. प्रभुजी महावीर देव वधावो ॥ ९ ॥ जन्म कल्याणकपूजा गाई, विजापूरमां सारी, बुद्धिसागर आनंद मंगल, पामो नरने नारी हो. प्रभुजी महावीर देव वधावो ॥१०॥ ॐ प० श्री महावीरजिनेश्वरजन्मकल्याणक पूजार्थ ज० य० स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ प्रभुमहावीरतीर्थकरदेवनी अष्ट प्रकारीपूजा ॥ परब्रह्म परमातमा, चोवीशमा जिनराज; वि. श्वपति जिनपति विभु, सारो वंडित काज. ॥१॥ प्रणमुं महावीर जगपति, जिनशासनसुल्तान अष्टप्रकारे द्रव्यथी, पूजु तुज भगवान् ॥ २॥ म. नवचकायाथी कयु, प्रभु तुज शरणुं बेश; अर्यायो तुजमां प्रभु, जाग्यो असंख्यप्रदेश. ॥३॥ जडथी प्रीति टाळीने, धारी तुजपर प्रीत; तुजपर श्रद्धा धारतां, रही न भीति अनीति. ॥ ४ ॥ परोक्ष मति श्रुत ज्ञानथी, परोक्ष तुं परखाय; केवलज्ञाने तुं प्रभु, प्रत्यक्ष घट पेखाय. ॥५॥ तुज आगमना अनुभवे, अनुभव्यो जिनदेव; द्रव्यभावपूजा रची, करुं तुजरूपनी सेव. ॥ ६॥ अनंतगुणपर्यायनी, शुद्धि करवाकाज; निज आतम तुज साथमां, योज्यो करो सनाथ. ॥७॥ तुज गुण गातां ध्यावतां, स्तवतां सर्व प्रकार; निज आतमनी शुद्धता, पूज्यपणुं निर्धार. ॥८॥ ६५ For Private And Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१४ प्रथमा जलपूजा. श्रद्धाप्रीतिजलवडे, पूजो महावीरदेव; सम्यग्दृष्टियोगथी, नासे मिथ्या देव ॥ १ ॥ श्रद्धा प्रेमने सत्यनी, - जलपूजा सुखकार; सम्यग्दृष्टि भक्तने, भक्ति शिवदेनार ॥ २ ॥ द्रव्यभाव सम्यकृत्वथी, तुज सेवक नरनार; निश्चय मुक्तिपद वरे, भमे नहीं संसार ॥ ३ ॥ · ( सबजन धरम धरम मुख बोले, ए राग. ) प्रभुमहावीर जगत् जयकारी, तीर्थकर उपकारीरे प्रभु० ॥ तुजपर श्रद्धाप्रीति धारी, कीधुं शरण तुज भारी; ॐ अहँ महावीर प्रभुजी, जाप लगनी धारीरे प्रभु महावीर० ॥ १ ॥ शुद्धगुणपर्यायना योगे, निज उपयोगे सुधारी; प्रभु तुज साथे माळयो हळियो, लेजो झट उद्धारीरे प्रभु महावीर० ॥२॥ तत्वमसि सोऽहं ने ओऽहं, एकता लीनता धारी; भूल्यो जडमाया तुज भाने, तुजपर जउ सहु वारीरे. प्रभु महावीर० ॥३॥ प्रभु तुज रीझनी आगळ जगनी, खीज गणुं न लगारी; ज्यां देखु त्यां तुंहि तुहि तुहि, प्रगटंती धून भारीरे प्रभु महावीर ॥ ४ ॥ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१५ लक्ष्मी सत्ताथी न पमातो, निराकार निर्धारी: श्रद्धा प्रीति उपयोगे प्रभु, मळतो तुं सुग्वकारीरे. प्रभु महावीर० ॥ ५॥ श्रद्धाप्रीतिजलपूजाथी, पूनुं जगहितकारी; ज्ञानानन्द जे अंशे प्रगटे, पूजाफल निर्धारीरे. प्रभु महावीर०॥६॥ जगनी माया मन पडछाया, मुंऊं नहीं त्यां लगारी; बुद्धिसागरप्रभुमहावीर, लेजो हवेतो उगारीरे. प्रभु महावीर० ॥ ७ ॥ ____ ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते महावीर जिनेन्द्राय, जलं यजामहे स्वाहा ॥ द्वितीया चंदनपूजा. जिनवर महावीर गुण घणा, वैखरीथी न कथाय; परा पश्यंती भासता, अनंत तुज महिमाय. ॥१॥ धर्मक्षमाचंदनथकी, पूर्जु प्रभु तुज अंग; जाणंतां तुज धर्मने, लाग्यो अविहडरंग. ॥२॥ एकवार तुज आगमे, जो प्रभु जाण्यो जाय; तो भवताप रहे नहीं, निश्चय ए निर्माय. ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१६ (प्रभु सुमतिरे सुमति आपो प्यारा, मुज प्राणतणा आधारा. ए राग.) प्रभु महावीररे तुज साथे रंग लाग्यो, म्हारो अंतर महावीर जाग्यो. ॥ प्रभु गुरुगमथी तुं जणायोरे, पूरा प्रेमथकी परखायोरे, धातोधातेरे मलियो आ. नंद पायो, रोमेरोमें प्रभु रंगायो. प्रभु० ॥१॥ लागे नहि तुजवण को प्यारुरे, नहीं तुजवण कोइ जग म्हारे; मोह मारेरे तुजथी मेळ सुहातो, भेद भागे जाण्यो जातो. प्रभु० ॥२॥ गुण अनंतपर्याय दरियोरे, बीजा सात्विकगुणगण भरियोरे, उपदेशेरे तार्या जीव करोमो, जडे नहीं तुज जगमा जोडो. प्रभु० ॥ ३ ॥ प्रभु देहछतां साकारारे, देहातीत थतां निराकारारे; थया सिद्धज रे पूर्ण असंख्यप्र. देशी, अरिहंत अलख ब्रह्मदेशी. प्रजु० ॥ ४ ॥ जे आतम नहि ते शुं ? मागुरे, मेंतो मागणपणुं हवे त्याग्युरे प्रभु परखीरे निष्कामी थे जाग्या, तुज लगनीए घट जाग्यो. प्रजु० ॥५॥ पूर्ण प्रभुथी पूर्ण रंगायोरे, पूर्ण आनंद घटमां बायोरे; बुद्धिसागररे पूर्णनी पूरणपूजा, उपयोगे महावीर पूज्या. प्रभु० ॥६॥ ॐ प० महावीरजिनेन्द्राय, चंदनं. या स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ तृतीया पुष्पपूजा. ॥ जिनवरमहावीरभक्तिथी, मुक्ति लहे नरनार; प्रभुगुणपुष्पनी मालथी, पूजो प्रजु जयकार. ॥ १ ॥ जैनधर्मश्रद्धा धरो, सर्वसंघनी सेव; जिनवर महावीर देवनी, पूजानी ए टेव ॥ २ ॥ प्रभु महावीर उपदिश्यां षड्द्रव्यो नवतत्त्व; सत्य गणीने वर्तयुं, ए प्रभुपूजा सत्व ॥ ३ ॥ ( निशानी कहा बतार्बुरे. ए राग राग गोडी. > जिनेश्वर महावीर ! प्यारोरे, सर्वविश्व आधार. जिनेश्वर० ॥ १ ॥ तुज हृदयथी प्रगटियोरे, जैनधर्म छे सत्यः सकलसंघनी सेवनारे, तुज पूजानुं कृत्य. जि० ॥ २॥ केवलज्ञानी तुं प्रभुरे, तुज वचनानुसार; वर्तवं पुष्पनी पूजनारे, धरवा धर्माचार, जिने० ॥२॥ सुज मन मन्दिरमां वसोरे, क्षण पण थाओ न दूर; तुज विरहो न खमी दाकुरे, रहेशो हजराहजूर. जिने० ॥ ३ ॥ नयनिक्षेपप्रमाणथीरे, जैनागम अ नुसार प्रभु तुज ध्यानसमाधिथीरे, प्रगट्यो रस जयकार. जिने० ॥ ४ ॥ अनेकांतसत्तामयीरे, अनंत गुण आधार; एक आधार प्रभु तुहिरे, आनंदमय निर्धार. जि० ॥ ५ ॥ सेवा आदि गुणमयीरे, सा For Private And Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१८ त्त्विक पुष्पनी माल; प्रभुमहावीर कंठमारे, स्था. पंतां कल्याण. जि० ॥६॥ तुजस्वरूप थइ तुज नजुरे, चढता नावोल्लास; बुद्धिसागरआतमारे, आनंद अनुन्नव खास. जि० ॥ ७॥ ॐ प० महावीरजिनेन्द्राय पुष्पं० यण स्वाहा ॥ चतुर्थी धूपपूजा. देव गुरुने धर्मनी, श्रद्धा समकित खास; गुरु पासे समकित ग्रही, टाळो मिथ्यावास. ॥१॥ खेद नीति ने द्वेष वण, प्रभुने पूजे जक्त; देहादि जडसंगी पण, मन नहि जडयासक्त. ॥ २ ॥ प्रभु नामना जापनो-धूप करी नरनार; प्रभुने पूजे प्रेमथी, कर्म टळे निर्धार. ॥३॥ ( ए गुण वीरतणो न विसारु, संभारु दिन रातरे. ए राग.) ॐ अँह महावीर जिनेश्वर, जाप जपुं दिन रातरे; प्रभु वण बीजं कांइ न इच्छु, मात पिता तुं जातरे. ॐ अर्ह ॥१॥ परापश्यंती मध्यमा वैखरी, For Private And Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जापे टळे सहुपापरे; राग द्वेष न पासे आवे, जाप जपंतां अमापरे. ॐ अर्ह ॥२॥ ज्या त्या अंतर बाहिर धारणा, त्राटक तुज उपयोगरे; जीन न हाले मानस जापे, प्रगटे आनंद जोगरे. ॐ अर्हः ॥३॥ जड चेतन सहु विश्वमा प्रभुनी,-सत्ता धारणायोगरे, आत्ममहावीरसत्ता प्रगटे, थातो कर्मवियोगरे. ॐ अर्ह० ॥ ४॥ प्रभु तुज जापना धूपथी नासे, दुर्बुद्धि दुर्गधरे; क्षण क्षण आतम शुद्धि वृद्धि, आतम थाय अबंधरे. ॐ अर्ह ॥ ५ ॥ प्रभुजापे प्रभु घटमां प्रकाश्या, प्रगटी सुखनी खुमारीरे; बुद्धिसागर महावीर लगनी, प्रगटी न उतरे उतारीरे. ॐ अहँ ॥६॥ ॐ प० महावीर जिनेन्द्राय-धूपं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ पंचमीदीपकपूजा ॥ मतिश्रुतज्ञानना दीपके, पूजा महावीर देव, करतां दुर्गुण दोष सहु, नासे ने ततखेव. ॥१॥ मिथ्यातम दूरेटळे, दीपक पूजायोग; केवल ज्ञानने दर्शने, मुक्तिपुरीसंयोग. ॥२॥ तिरोभाव निज ऋद्धिनो, आविर्भाव जे थाय; आत्ममहावीरसि. द्धता, देहछतां सोहाय. ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० ( आशा ओरनकी क्या कीजे. ए राग. आशावरी. ) घटमां महावीर जिनवर भास्या, आपो आप प्रकाश्या. घटमां० चौदलोक आकारे मनुष्यनुं, तनु मन्दिर जयकारी; असंख्य प्रदेशीयात्ममहावीर, शोभंतुं सुखकारी घटमां० ॥ १ ॥ गुरुगमज्ञाननी कुंचीयोगे, समकित द्वार उघाडयुं मतिश्रुत आंखे अनंत ज्योति, प्रभुनुं रूप निहाळ्युं. घटमां० ॥ २ ॥ अनहदनादनो घंट गाडयो, लळी लळी नम्यो प्रभु पाये; आनन्द प्रगट्यो अतिशय भारी, त्रण्य भुवन न समाये. घटमां० || ३ || दिल फानस मन कोडियामां, प्रीतिघृत पूर्यु सारुं; सद्विचार दीवेट करी शुभ, ज्ञानाग्नि उजियारुं घटमां० ॥ ४ ॥ धर्म बुद्धिनो दीपक एवो, झळहळतो प्रभुज्योते; प्रभु महावीर पासे शोभे, क्षयोपशमउद्योते. घटमां० ॥ ५ ॥ क्षयोपशमना ज्ञानदीपकथी, महावीर जिनवर पूज्या; बुद्धिसागर गुरुकृपाए, सत्यप्रकाशे सूज्या घटमां० ॥ ६॥ ॐ० प० महावीर जिनेन्द्राय - दीपं य० स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२१ . षष्ठी अक्षतपूजा. अक्षतमहावीररूपनी, अनंत झळहळ ज्योत; अक्षतथी प्रभुपूजतां, त्रण्यभुवनउद्योत. ॥१॥ दया दान दमशीलने, संतोष महावीर; पूजंतां निज आतमा, शुद्ध बने महावीर, ॥ २ ॥ सात्विकने जे सहज छे, जाणी गुणगण बेश; प्रभु महावीर पूजतां, रहे न मिथ्याक्लेश. ॥ ३ ॥ (राग. आशावरी. ) महावीर !! अकलकला प्रभु हार्ग. सर्वविश्वना परमेश्वर छो. सकलजगत् उपकारी. महावीर ॥ पृथ्वी थाळी जानु शशी बे, आरती मंगल भारी; महामेघनां वाजां वागे, विजळी महिमा जारी. महावीर ॥१॥ वेदो बागमो महिमा गावे, ऋषियो ध्याइ गयारी; व्याप्यने व्यापक सदसद्रूपी, गुणपर्यायमयारी. महावीर० ॥ ॥२॥ सद्गुणरूपके पंचमहाभूत, ज्ञाने शोभी रह्यारी; अनंतगुणगणना तमे दरिया, आविर्नावे रह्यारी. महावीर ॥ ३ ॥ चारगतिचूरकस्वस्ति कने, रत्नत्रयीपुंज धारी; सिद्धशिलासिद्धचिह करीने, पूजुं नाव वधारी. महा० ॥ ४ ॥ नयनिक्षेपा ६६ For Private And Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२२ भंगविकल्पे, भ्यानदशा छे विचारी; बुद्धिसागर शुरु उपयोगे, महावीर जगजयकारी. महावीर ॥ ५॥ ॐ प० अक्षतं, य० स्वाहा ॥ सप्तमी नैवेद्यपूजा. बाह्यांतर तुजरूपने, जाणे भक्त गणाय; तुज पर श्रद्धा धारतां, मुज मन निर्मल थाय. ॥१॥ चौद जुवनमा आथड्यो, पडडुं न क्यांये चेन; पण तुजमा मन धारता, प्रगटी सुखनी घेन. ॥२॥ वर्धमान महावीर तुं, एक खरो आधार; तुजपर स्वार्पण सहु कयुः तुज शरणुं सुखकार. ॥ ३॥ (नाथ कैंसे गनको बंध छुडायो. ए राग.) प्रजु !!! तुज आनंदरस बलिहारी, तीर्थकर अवतारी. प्रभु० अनंत भवमा ठाम न ठरियो, दुःख खो बहुभारी; बाहिरजडरसथी रंगायो, तृप्ति थई न लगारी. प्रभु० ॥१॥ परमातम तुज आनंद रसियो, यातां प्रगटी खुमारी; कोटि प्रयत्नो कोइ करे पण, उतरे नहिं ते उतारी. प्रभु तुज आनंद For Private And Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२३ रस बलिहारी ॥ २ ॥ तुजरस पामे विषयरस छूटे, मनडुं वरे निर्धारी; सेवाभक्तिआतमज्ञाने, तुज रस मळतो भारी. प्रभु० ॥ ३ ॥ कोटि उपाय करे जन कोइ, सत्यानन्दनेमाटे; पण जडजगथी नानंद पाने, आनंद ठे तुजहाटे, प्रभु० ॥ ४ ॥ अमृत आस्वाद्या पछी त्रिषना, - पाननो प्रेम न जागे, एकवार तुज रसने पामे, मन न रहे जमरागे. प्रभु० ॥ ५ ॥ क्षयोपशमआतमरस पामी, क्षायिक आ नंदमाटे; सहेजे तुजमां मन रंगायुं, माल छे शिरने साटे. प्रभु० ॥ ६ ॥ आनंदरसनैवेद्ये पूर्जु, बाह्य नैवेद्यथी पूजुं; बुद्धिसागरमहावीर पामी, बीजे क्यांये न मुंझु. प्रभु० ॥ ७ ॥ ॐ० प० महावीर जिनेन्द्राय - नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ काष्टमी फलपूजा. प्रभु महावीरमां मन घरी, चालतां व्यवहार, आसक्ति व आतमा, प्रभुपद पामे सार ॥ १ ॥ बाह्यांतर अतिशयी प्रभु, महावीर जिन परखाय; श्रद्धा प्रीति स्वार्पणे, मुक्ति अंते थाय ॥ २ ॥ जिनवर For Private And Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ महावीर तुं धणी, सर्वविश्वनो देव; निष्कामे दिलमां धरी, करुं ताह्यरी सेव. ॥ ३ ॥ __ (राग सारंग. प्रभु निर्मल दर्शन कीजीए. ए राग. ) प्रभु वीर!!! थयो तुज रागियो, आतमज्ञाने जागियो. प्रभु० इन्द्रादिकपद सुख नहीं इच्ढुं, तुज स्वरूपे लागियो; जवमुक्तिमां समवृत्ति थै, नहि त्यागी वैरागियो. प्रभु० ॥१॥ जडजगमा त्याग ग्रहणनी वृत्ति, टळतां थयो सौभागियो; बुद्धिसागर प्रभु महावीर, परमानंदफल चाखियो. प्रभु० ॥२॥ (विनतिपणे हुं विनवू, घेर आवोने ढोला. ए राग.) क्षयोपशम उपशम फले, प्रभु पूज्या स्वभावे; निमित्त साधन साधना, साधुं प्रीतिभावे. क्षयोपशम० ॥ ३ ॥ प्रभुपूजन फल ज्ञानने, यानंदरस लीg; प्रभुरीझे जगवीजमां, लेश चित्त न दीधुं. क्षयोपशम० ॥४॥ बाकी क्षायिकभावथी, पूजन फल रहियु; शुद्धातम तुज रंगमां, मुज मन गहगहियु. क्षयोपशम० ॥५॥ उत्पत्तिव्ययधौव्यथी, सर्व द्रव्य प्रमाण्यां; सम्यग्दृष्टियोगथी, तुज व. चनो जाण्यां. क्षयोपशम ॥६॥ देव गुरुने धर्मनी, For Private And Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२५ भक्ति, - व्यवहारे; रहियो प्रभु तुज आणथी, उपयोग विचारे, क्षयोपशम० ॥ ७ ॥ सात्विकआदि मोहना, पडदामा रहेलो; बुद्धिसागर आतमा, देखी मळियो मेळो. क्षयोपशम० ॥ ८ ॥ कलश धन्याश्री. कीघी कीधीरे प्रभुमहावीरपूजा कीधी. आनंद मंगललीला प्रगटी, भोगवी आतमऋद्धिरे. प्रभु ॥ १ ॥ द्रव्यने भावथी गृहीने पूजा, त्यागीने भावथी सिद्धि; प्रभु गातां ध्यातां स्तवतां सुख, अष्टसिद्धिनी समृद्धिरे. प्रभु० ॥ २ ॥ ओगणिश अठयोत्तर वैशाखी, वदि चोथने सोमवारे; विद्या पुरमां पूजा रची शुभ, भवीजननां दुःखवारेरे. प्रभु ॥ ३ ॥ प्रभुमहावीर पूजायोगे, जैन संघोन्नति थाशो; जैनधर्मआराधी भव्यो, परमानंदने पाशोरे प्रभु ॥ ४ ॥ जिनवरपूजा भणतां ने गातां, थाशो संघसमृद्धि, बुद्धिसागर ऋद्धिवृद्धि -, कीर्ति जय शिवसिद्धिरे. प्रभु० ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ श्री घंटाकर्ण महावीर पूजनविधि. श्री शांति स्नात्र अष्टोत्तरी स्नात्र तथा प्रतिष्ठा प्रसंगे पूर्वाचार्य मुनियोए घंटाकर्ण महावीर मंत्रयंत्रनी थाळी थापवानुं जणाव्णुं छे अने ते प्रमाणे वर्तमानमां प्रवृत्ति थाय छे. तथा देवप्रतिष्ठा शांति स्नात्र काले घंटाकर्ण महावीरना मंत्रनो १०८ बार जाप करीने सु. खडी सहित मंत्री स्थाळी वांधी स्थापवामां आवे छे. घंटाकर्ण महावीरनी श्री महुडी (मधुपुरी) गाममां श्री पद्मप्रभु जिन मंदिरनी बहार देरी वे, तेमां घंटाकर्ण महावीरनी मूर्ति स्थापवामां आवी वे घणा भक्तोना आग्रहथी धीरनी पूजा रचवामां आवी छे, तथा आरती रचवामां यात्री बे. गुरुगमपूर्वक पूजा न णाववी ने करवी. शासन रक्षक वीरतरीके पूर्वाचाय घंटाकर्ण महावीरने स्थाप्या छे. घंटाकर्ण महावीर मंत्र कल्प बे ऋण जातिना हे. कलिकालमां शासन प्रजावक वीरना अनेक चमत्कारो थाय ठे. सम्यग्दृष्टि वीर ते सम्यग् दृष्टियोने स्वधर्मी तरीके भक्ति करवा योग्य बे. परमात्म महावीर देवना भक्त रागी वीरने स्वधर्मी तरीके मानवामां पूजवामां अतिचार नथी. स्वधर्मी तरीके श्री घंटाकर्ण महावीर For Private And Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नी सहाय इच्छवानी जेओनी इच्छा होय तेश्रोए घंटाकर्ण महावीरनी पूजा आदिथी आराधना करवी. मिथ्यात्वी देव देवीनी सहाय इच्छवा करतां सम्यग् दृष्टि स्वधर्मी देव वीरनी सहाय इच्छवी ते विशेष उत्तम . गीतार्थ आचार्यमुनिमंत्रज्ञाताओनी पासे रही मंत्र, विद्या, देवोपासना वगेरेनुं रहस्य समजवु. जेओने चारनिकायना स्वधर्मी देवादिनी सहायादिनी इच्छा न होय, तेओने माटे तो वीरादिनुं प्रजन नथी. इत्यादि सर्व बाबत गुरु गमथी जाणवी. जैनशासनजक्तश्री घंटाकर्णमहावीरपूजा. परब्रह्म परमातमा, महाबीर जिनराज; इन्द्रा. दिक पूजे सदा, सर्वदेव शिरताज ॥१॥ चोवीशमा तीर्थकरा, विश्वोद्धारक देव; सर्वदेवने देवीओ, करती प्रेमे सेव. ॥ २॥ यक्षयक्षिणी योगिनी, प्रभु पदध्यावे बेश; बावनवीरो सेवता, टाळे नविना क्लेश. ॥ ३॥ सर्ववीरमां श्रेष्ठ जे, महावीर शिर. दार, घंटाकर्ण विराजता, प्रभुनक्त अवतार ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८ परमातममहावीरना, परमभक्त बलवंत; घंटाकर्ण प्रसिद्ध , साझ करे गुणवंत ॥५॥ जिनवर महावीर देवना, भक्तो नरनेनार; तेओनां संकट टळे, समरे स्हाय थनार ॥६॥ सम्यगदृष्टिनक्त छ, घंटाकर्णजी वीर, साधर्मिकभक्ति करे, प्रगटे आतम धीर. ॥ ७ ॥ साधर्मिक महावीरनी, पूजा गृही नरनार; करतां समकित निर्मलं, करतां धरी दिलप्यार. ॥ ८॥ त्यागीमुनिवर कारणे, धर्मप्रभावनहेत; मंत्र स्मरे गुण बोलीने, धर्मवृद्धिसंकेत. ॥ ९ ॥ धर्मी रागी समकिती, वीर करंतो स्हाय; सम्यग्दृष्टि धर्मीने, संकट आव्यां जाय. ॥ १० ॥ धूपने दीपक पुष्पनी, सुखडीपूजा सार, सुवर्णआदि वरखथी, पूजा छे श्रीकार, ॥ ११ ॥ प्रथमा धूपपूजा. ( कानुडो न जाणे मोरी प्रीत. ए राग.) घंटाकर्ण महावीर देव, अद्भुत महिमा धारीरे. घंटाकर्ण समरंतां चढता व्हारे, संकट पडियां टाळे, त्हारो महिमा अपरंपार, भक्तना रोग निवारेरे, For Private And Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२९ घंटाकर्ण० ॥ १ ॥ घंटाकर्णना मंत्रे, श्रद्धाथी विधि यंत्रे साधे सिद्धे सघळां काज, गुरुगमभाषित तंत्रेरे. घंटाकर्ण० ॥२॥ प्रत्यक्ष दर्शन आपे, भक्तोना मनमां व्यापे; व्यापे धर्मकरणमां साज, कष्टनी कोटि कापरे. घंटाकर्ण० ॥ ३ ॥ व्हारा मंत्रोना जापे, शक्तियो दिलमां छापे; हारारागी नरनेनार, धर्मने जगमां स्थापेरे, घंटाकर्ण० ॥ ४ ॥ महिमा व्हारो जग गाजे, ज्यां त्यां जयडंको वाजे, समरे रहेशो हजरा हजूर, त्हा बिरुद न लाजेरे. घंटाकर्ण ० ॥ ५ ॥ वनमां रणमां सागरमां, पृथ्वीतलमां अंबर मां; करोने धर्मकर्ममा साज, दरबारे ने घरमारे, घंटाकर्ण० ॥६॥ धूपे पूजी गुण गावं, सम्यग्दृष्टि दिल लावुं; बुद्धिसागर शासनदेव, जगमां स्थापी भावुंरे. घंटाकर्ण० ॥ ७ ॥ ६७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्र - ॐ घंटाकर्ण महावीराय, सर्वरोगोपद्रव शमनाय इष्टलाजाय, शांतितुष्टिपुष्ट्यर्थे धूपं यजामहे स्वाहा. For Private And Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३० द्वितीया दीपकपूजा. (सेवक अरज करे छे राज, अमने शिवसुख आपो. ए राग.) शुं कहुं करणी मारी हो राज. ए राग. घंटाकर्ण महावीर बळिया धीर, शांति जगमा पसारो; त्हारो महिमा अपरंपार हो वीर !!! संघमां शांति प्रचारो. ॥ मागुं न मागणपेठे स्वार्थे, बाधा मान्यता सर्वे; राखे ते नहीं जैनो भक्तो, तुज प्रेमे रहियो अगवे हो वीर ! संघमांग ॥१॥ स्वार्थथी मान्यता बाधा वण हुं, धर्मनुं सगपण धारी; दीपक करीने प्रेम प्रजु, निष्कामभाव वधारी, वीर ! संघ. मां ॥२॥ याचक थइ तुज पासे न याचुं, आतम प्रेमे राचुं; शुद्धप्रेमथी सगपण साचुं, परमार्थे नित्य माचुं हो वीर ! संघमांग ॥ ३ ॥ लाज न जावा देजे वीरा, सहायक वडधीरा; महिमा न जूगे पमवा देजे, समकिती गुणहीरा हो वीर !!! संघमां० ॥ ४॥ धर्मी वीरा साथे रहेशो, धर्म स्हायने देशो; परमार्थे पूजनने वहेशो, कीधुं ध्यानमां लेशो हो वीर ! संघमां० ॥ ५॥ सर्वजगत्मां महिमा छवायो, उग्यो रवि न छुपायो; साधर्मिकप्रीतिए सुहा. यो, कलिमा जागतो गायो हो वीर ! संघमांग ॥६॥ जेम घटे तेम मित्रनी पेठे, धर्ममा साथी रहेशो; For Private And Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३१ बुद्धिसागर प्रत्यक्ष अनुभव, महावीरनो संदेशो हो वीर ! ! ! संघमां० ॥ ७ ॥ यजामहे स्वाहा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ घंटाकर्णमहावीराय, शांतितुष्टिपुष्ट्यर्थ दीपं, तृतीया पुष्पपूजा. (दशमे देशावगाशिकेरे. ए राग . ) जिनवर महावीरशासनेरे, घंटाकर्ण सुवीर; शासनरसिया देव बोरे, टाळो भक्तनी पीन हो; जगमां. जैनधर्म प्रसरावजोरे, संघनी व्हारे आवशोरे; करशो समरे सहाय. ॥ १ ॥ पुष्पनी माळा कंठमांरे, स्थापी हरखुं चित्त; साधर्मिकदेवप्रीतिथीरे, दिलडुं धातुं पवित्र हो जगमां० ॥ २ ॥ साधर्मिकदेवरीति बेरे, प्रार्थ्या वण करे काज; धर्मकष्ट पकतां थकांरे, राखे स्वधर्मी लाज हो जगमां० ॥३॥ दिव्यौषधिथी महाबलीरे, देवकृपासुखकार; मुक्तिपंथमां भक्तनेरे, साज घणी करनार हो जगमां० ॥ ४ ॥ नरनारी जे जे भावथीरे, भावे ते ते भाव; फल पामे For Private And Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३२ भावे खरे, देख्या ते ते बनाव हो. जगमांग ॥५॥ जिनवर महावीरदेवनारे, तुं वडभक्त छे वीर; विश्वमा सर्वत्र जागतोरे, सागरसम गंभीर हो. जगमांग ॥६॥ जिनवर महावीरना संघनीरे, सेवामां लयलीन; बुद्धिसागरनक्तिमारे, जलमां ज्युं वर्ते मीन हो. जगमां० ॥७॥ ॐ घंटाकर्णमहावीराय, जैनशासनरक्षकाय पुष्पं च पुष्पमालां, यजामहे स्वाहा ॥ चतुर्थी सुखडी नैवेद्यपूजा. विमला नवकरशो उच्चाट. ए राग. घंटाकर्णमहावीर स्हाये व्हेला आवशोरे प्रेमे धीओने स्हाय करीने सुहावशोरे॥ परमब्रह्म महावीर नामे. शरण करी जे ठरतो गमे; तेवा भक्तोनी भक्तिमांधून लगावशोरे. घंटाकर्णः ॥१॥श्रद्धा प्रीति प्रेर्या आवो, भक्तिविना नथी कोइनो दावो; जयकर मंगलमाला, कीर्तिध्वज फरकावशोरे. घंटाकर्णः॥२॥ क्षणमां पृथ्वीने डोलावो, क्षणमां मेरुने कंपावो: एवो For Private And Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३३ महिमा व्हारो, शापने ताप शमावशोरे. घंटाकर्ण ० ॥ ३ ॥ दुर्जनदुष्टोनेज हावो, जैनधर्म जगमां फेलावो; प्रभुश्रीमहावीरनामना जपने, जग प्रसरावशोरे. घंटाकर्ण० ॥ ४ ॥ तुज प्रेमी घरमंगलमाला, पुत्रादिकधनऋद्धिविशाला; आपी वांछित सहने चितप्रसन्न सुहावशोरे. घंटाकर्ण० ॥ ५ ॥ पुण्योदये तुज साधन मळतुं, श्रद्धाप्रीतियोगे फळतु; प्रगटी शासनसेवामांही चित्त लगावशोरे. घंटाकर्ण० ॥ ६ ॥ प्रत्यक्षप्रेमे महावीरदीग, शासन देवा लाग्या मीठा; बुद्धिसागरांदेलमां प्रभुसंदेश जणावशोरे, घंटाकर्ण० ॥ ७ ॥ ॐ घंटाकर्ण महावीरजैनशासनरक्षकाय, शांतिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु नैवेद्यं, यजामहे स्वाहा ॥ पंचमी श्रीफलपूजा. आवशो आवशो आवशोरे मुज पासे महावीर आवशो ॥ श्रद्धाप्रेमना जोरे पधारो, धर्ममां बुद्धि For Private And Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ करावशोरे. मुज० ॥१॥ जैनधर्ममा स्वार्पण कारक,भक्तने प्रत्यक्ष थावशोरे. मुज० उपरउपरनां लटक सलामियां, नास्तिकपासे न आवशोरे, मुज ॥२॥ नाम ने रूपना मोहे मरेला, भक्तोनी आंखे सुहा. वशोरे. मुज संतमां भक्ति पूर्ण धरीने, आतमभावे लयलावशोरे. मुज० ॥३॥ शासनरागे धर्मप्रभावक-बनीने प्रभुने भावशोरे. मुजा सकलसंघनी सेवा सारी, परमब्रह्मपद पावशोरे. मुज ॥४॥ तुजपूजाथी धर्मीजनोनी, धर्मबुद्धि स्थिर थावशोरे. मुज० बुद्धिसागरऋद्धिवृद्धि, कीर्तिजय जग पावशोरे. मुजम् ॥ ५॥ कलश गीत. गायो गायोरे एम शासन वीरने गायो ॥ पंच प्रकारे पूजा रचीने, सनकितशुद्धिए छायोरे. एम ॥१॥ घंटाकर्णमहावीरपूजा, कीर्तनथी गुण पायो; सम्यगदृष्टिदेवनी स्तुति, करतां हर्षे उमाह्योरे, एम० ॥२॥ तपगच्छसागरशाखामांहि, नेमि सा. For Private And Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३५ गर गुरुरायो; रविसागरगुरुसुखसागरगुरु, जैनधर्म फेलायोरे. एम० ॥ ३॥ मुनिवरआदि सर्वसंघनी, वृद्धि थाशो पसायो; सर्वप्रकारे उन्नति थाशो, आशीर्वाद सुहायोरे. एम० ॥४॥ ओगणिश अठयोत्तर अक्षयत्रीज, विजापुर जयकारी; बुद्धिसागर चढते पहोरे, सुखपामो नरनारीरे. एम० ॥ ५॥ ___ॐ ही घंटाकर्णमहावीराय, सर्वक्षुद्रोपद्रव रोगनिवारणाय, इष्टफललाभाय, फलं यजामहे स्वाहा ॥ ॐ अर्हमहावीर शांतिः३ For Private And Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३६ श्री घंटाकर्णमहावीरनी आरती. ___घंटाकर्णमहावीर गाजे, जडचेतनजगमहिमा छाजे; मनवांडित पूरण करनारा, भक्तजनोना भयहरनारा. घंछ आधिव्याधिउपाधिहरता, रोग उपद्रवदुःखसंहरता. घं० ॥१॥ ऋषि सिद्धि मंगल करता, सत्वर सहाये पगलां भरता. घं तुज स्मरणथी वांछितमेळा, भक्तोनी थाती शुभवेळा. धं ॥ २ ॥ घंटाकर्णमहावीर त्हारी, आरती करतां जे नरनारी; आरत चिंता शोक निवारी, धर्मी थातां दोषने टाळी. घं० ॥ ३ ॥ गाजी रह्यो जगमांही सघळे; घरमां सागरमा रणवगडे; स्हाय करतो वादे झघडे, दुष्टोथी कंइ शुभ न बगडे. घं० ॥४॥ देशनगरसंघ वो शांति, भक्तजनोनी वधशो कांति; महामारी भय संकट नासो, आरोग्यानंदे जगवासो. घं० ॥ ५ ॥ मंगलमाला घर घर प्रगटो, ईति उपद्रवविघ्नो विघटो; शांति आनंदने प्रगटावो, समरंतां झट व्हारे आवो. घं० ॥६॥ आत्ममहावीरशासनराज्ये, सेवाकारक जगमां गाजे, बुद्धिसागर आतमकाजे, क्षण क्षण व्हेलो सहाये थाजे. घं० ॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३७ ॥ अथ श्रीसिदाचलनवाणुप्रकारी पूजाप्रारंभ ॥ अथ प्रथमा पूजा. आदीश्वर अरिहंत जिन, ऋपभप्रभु धरी ध्यान; अजितादिक तीर्थकरा--वंदु विभु वर्धमान. ॥१॥ अर्हन सिद्धने सूरिगण, वाचकमुनि धरी ध्यान: विमलाचल पूजा रचुं, प्रगटे शिव कल्याण. ॥२॥ द्रव्यभाव व्यवहारने, निश्चयथी गिरिराज; सातनयोथी पूजतां, प्रगटे शिवसाम्राज्य ॥३॥ अढीद्वीपमा तीर्थ नहि, सिद्धाचलसम कोय; सिद्धाचलयात्रा करे, निश्चयथी शिव होय. ॥४॥ चउनिक्षेपे वंदीए, पूजीए सुखकार; भावथी निश्चय आतमा, स्थिरपद पामे सार. ॥५॥ यात्रा नवाणुं भावथी, पूजा नवाणुंप्रकार; वार एकादश कीजीए, अभिषेक नववार, एकादश पूजा नली, नव नव वस्तु सार; श्रीफलादिकथी पूजीए, पूजादिठ सुखकार. ॥७॥ (राग पीलु त्रिताल. ) विमलाचल गिरिसार-जगत्मां विमलाचल गिरिसार, वंदु स्तबुं सुखकार. जगत्मां विमलाचल For Private And Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३८ ज्ञानश्रद्धा वण जग, गर्भे रह्यां नरनार, विमलाचल दर्शन स्पर्शनथी, गर्भबाहिर नरनार जगत्मां० ॥ १ ॥ लाखवार नवकारने गणवा, स्नात्र करीए पंच, सात छठ बे अट्टम करतां, - रहे न कर्मनो रंच. जगत्मां० || २ || सिद्ध अचल आतम सिद्धाचल, असंख्य प्रदेशी उदार; शत्रुंजय आदि अंत रहित जे, भावतीर्थ आधार जगत्मां० ॥ ३ ॥ एकशत आठे टुंक भलेरी, मोटी एकवीश खास; । शत्रुंजय बाहुबली मरुदेवी, पुण्डरीक नमीए उल्लास. जगत्मां० ॥ ४ ॥ रैवतगिरि टुंक पांचमी वन्दु, सिद्धक्षेत्र शिवराज; छहरी पाळी यात्रा कर्याथी, प्रगटे शिवसाम्राज्य जगत्मां० ॥ ५ ॥ निमित्तने उपादान जे तीर्थबे, शत्रुंजय सुखकार: द्रव्यभावथी पूजंतां प्रभुप्राप्ति बे निर्धार. जगत्मां० ॥ ६ ॥ द्रव्य ते भावनो हेतु बेरे, कारणे कार्य सधाय; बुद्धिसागर तीर्थनोरे, अनन्तगुणो महिमाय जगत्मां० ॥ ७ ॥ काव्यम् · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरसशान्तिसुधामृतकारकं, जननमृत्यु महोदधितारकम् । सकलकर्मविपाकनिवारकं, गिरिवरंविमलाचलकं स्तुवे ॥ ए काव्य प्रत्येक पूजा दीठ कहेवुं. For Private And Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३९ मंत्रम्. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ ह्री श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरा मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय, सिद्धाचलपूजार्थ जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥ ए मंत्र प्रत्येक पूजा दीठ कहेवो. द्वितीया पूजा. सिद्धाचलगिरि भेटवा, एकेक डगलुं भरंत; भव्यो कोटिजव कर्या, कर्मों क्षणमां हरंत. 11311 असंख्यप्रदेशी यातमा, सिद्धाचल गिरिराज; वन्दतां पूजतां ध्यावतां, पामे भवी शिवराज्य. ॥२॥ ( अवसर बेर बेर नहीं आवे, राग सोरठ. > विमलगिरि दर्शन विरला पावे, पावे ते सिद्ध थावे. विमल० ॥ नवनव नामे गिरिवर अर्थो, आतममांहि समावे; आतमगुणपर्यायनी शुद्धि, करी गिरिवत् स्थिर थावे. विमल० ॥ १ ॥ सहश्रकमल मुक्ति निलय गिरिवर, सिद्धाचल दिल ध्यावे; शतकूट ढंक कदंबने लोहित, कोटिनिवास सुहावे. विमल० ॥ २ ॥ तालध्वज पंचकूट सजविन, ज्ञाने For Private And Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुभव आवे; रत्नखाण जडीबूटीनुं स्थान जे, ध्यान गुफा भली जावे. विमल० ॥ ३ ॥ दशकोटि श्रावकने जमाडे, सर्वतीर्थ करी आवे; तेथी अहीं एक मुनिदान देतां, लाज अनंतो पावे. विमल० ॥ ४ ॥ चारहत्यारा दुष्ट अधर्मी, वेश्यादिक पण जावे; जगिनीनोगी चन्द्रशेखरसम, पापो सघळां हठावे. विमल० ॥ ५ ॥ देवगुरुद्रव्यचोरो नास्तिक, श्रद्धा भक्तिप्रभावे; पश्चात्तापने तपजपसमथी, पलमां मुक्तिने पावे. विमल० ॥ ६ ॥ चेत्रीपुनमदिन यात्रा करंतां, उपयोगे थिर थावे; बुद्धिसागरमंगल पावे, सिद्धबुद्ध थे जावे. विमल० ॥ ७ ॥ काव्यं, सरसशान्ति ॥ १ ॥ ॐॐ ह्रीं श्री परम० जलादिकं य० स्वाहा || ॥ अथ तृतीया पूजा ॥ उत्सर्पिणी अवसर्पिणीमां, काल अनादि अनंत; अरिहंतादिक आविया, आवशे प्रणमो संत. ॥ १ ॥ अरिष्टनेमि प्रभुविना, आव्या प्रभु त्रेवीश; सोरठदेश सोहामणो, शत्रुंजय छे गिरीश ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४१ ( चन्द्रप्रभुजी ध्यानरे मोंये लागी लगनवा. ए राग ) विमला लपर प्रेमरे, म्हने पूरण लाग्यो; म्हने पूरण लाग्यो; ॥ प्रगटे योगने क्षेमरे, एवो अनुभव जाग्यो; एवो अनुभव जाग्यो, वि० ॥ १ ॥ कांकरे कांकरे असंख्ययोगे, सिद्धया अनंता संतरे, म्हने ॥ अढीद्वीपमां तीर्थ न ए सम, जिनेश्वर भाखंतरे. म्हने० वि० ॥२॥ पुण्यराशि महाबलगिरि ए, भवोदधिमा झाझरे; म्हने० ॥ दृढशक्ति शतपत्र शुभंकर, विजयानन्द सुराजरे. म्हने० वि० ॥३॥ भद्रंकर महापीठ महोदय, सुरगिरि महागिरि नामरे; म्हने० ॥ अनुभवज्ञाने प्रेमसुताने, भक्तो बने गुणधामरे, म्हने० ॥ ४ ॥ पापी अभवी दुर्भवीजीवो, समकितदृष्टि विहीन रे. म्हने० वि० ॥ तुजरूपे तुजने नहि देखे, समकिती तुजमां लीनरे. म्हने० वि० ॥ ५ ॥ पंचम काले दर्शन दीवे, प्रगटथुं आनन्दपूररे. म्हने० वि०॥ बुद्धिसागरशुद्धोपयोगे, रहेशो हजराहजूररे. म्हने० वि० ॥ ६ ॥ काव्यं० सरसशान्ति० ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री० परम जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ ॥ अथ चतुर्थी पूजा ॥ महानन्द कर्मसूदन गिरि, पुष्पदन्त कैलास; जयन्त आनन्द वन्दीए, श्रीपद छे विश्वास्य. ॥१॥ हस्तगिरि छे शाश्वतो, सेवे शिवसुख थाय; कारणे कारज नीपजे, शुद्धातम प्रगटाय. ॥२॥ शुभाशुभ तजी कल्पना, बातममां स्थिर थाय%; शुद्धोपयोगी आतमा, शत्रुजयथी सुहाय. ॥३॥ ( खूने जिगरको पीते हे हम-ए राग.) विमलाचलथी मन मोह्युरे, म्हने गमे न बीजे क्यांय; ॥ मनमोहनमां सुख जोडेरे, मुज बातम सुखनी छांय.॥विमला॥समरंसिद्धाचलस्वामी,लळी लळी वन्दु गुणरामी; मुज जीवन अन्तर्यामीरे, अनुभवथी अनुभवाय. विमला ॥१॥ मनमोहन लाग्या मीठा, आदीश्वर नयने दीग; हवे रह्या न लखवा चीटारे, मन मस्तीथी मकलाय. विमला ॥२॥ सिध्या तुज प्रेमे अनंता, वळी सिद्धशे भविजन संता; थया सिद्ध बुद्ध भगवंतारे, ज्ञानीयो तुजने गाय. वि० ॥३॥ तुजसाथे लगनी लागी, मुजभवनी भावट भागी; मुज अंतर चेतना जागीरे, मुज मनडुं तुजने च्हाय. वि० ॥ ४॥ आनन्द ज्ञाने For Private And Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४३ उल्लसियो, मुज हृदय कमलमा वसियो; श्रद्धा प्रीतिए विकसियोरे, घट सुखसागर उभराय, वि० ॥ ५॥ तुज शरणे निर्नय थइयो, आतमजीवन गह गहियो; मरजीवो थे तुज लहियोरे, तुं आपोआप सुहाय. वि० ॥६॥ विमलाचलवासी व्हाला, मुज सुणशो कालावाला; बुद्धिसागर घट नाळ्यारे, नित्य रहेशो हैडामाह्य. वि० ॥ ७॥ काव्यं सरस शान्ति ॥१॥ ॐ परम० जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ अथ पंचमी पूजा ॥ सूर्यकुंड शत्रुजयी, आदि जलथी पवित्र, थैने यादीश्वर प्रभु-पूजीए एकचित्त ॥ १॥ अनन्त उद्धारो थया-थाशे वळी अनन्त; सिद्धाचल सेवा करी, थावो सिद्ध भदन्त ॥२॥ ( धन धन जगमां ते नरनार, विमलाचलके जानेवाले. ए राग) धन्य धन्य जगमां ते नरनार, सिद्धाचल दर्शन करनारा; ॥ जाणी द्रव्यभावथी तीर्थ, आतम For Private And Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ शुद्धरूप वरनारां. ॥ द्रव्यथी स्थावरतीर्थ विमलगिरि, नावथी आतम पोते; असंख्यप्रदेशी बातम गिरिवर, थापोआपने गोते. धन्य० ॥ १ ॥ निमित्त विमलाचलतीरथथी, आत्म विमलांगेरिशुद्धि; का. रणथी छे कार्यनी सिद्धि, लमकितीनी बुद्धि. धन्य ॥ २ ॥ ऐंशीयोजन पहेला आरे, सित्तेर साठ पचास; बारयोजनने सातहाथनो, अनुक्रमे आरे खास. धन्य० ॥ ३ ॥ भरते प्रथमोद्धार को शुभ, दंडवीर्ये कों बीजो; शानेन्द्रे त्रीजो चोथो, माहेन्द्रे मन रीझो. धन्यम् ॥ ४ ॥ पांचमो पांचमा इन्द्रे चमरे, सातमो सगरे कीधो; आठमो व्यंतरश्न्द्रे कीधो, निजभव सफलो कीधो. धन्य० ॥ ५॥ नवमो चन्द्र यशाए कराव्यो, चन्द्रप्रभुना काले; दशमो चक्रायुधे कीधो, सिद्धाचलगिरिप्यारे. धन्य० ॥ ६ ॥ एकादशमो रामचन्द्रनो, पांडवे वारमो कीधो; चोथे आरे उझारो करी, आतमल्हावो लीधो; धन्य० ॥७॥ संवत् एकसोआठमां जावडे, वज्रस्वामीसहाये; सि. द्धाचल उद्धार कराव्यो, तेरमो पुण्य पसाये. धन्य। ॥८॥ बारसें तेरोत्तरमा मंत्री, बाहडे चौदमो भावे; तीर्थोद्धार कों जग जाणे, अनन्तधर्मना दावे. For Private And Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५.४५ धन्य० ॥ ९ ॥ समराशा ओशवाले संवत्-तेर एको तरसाले; तीर्थोद्धार कयों पन्नरमो, निज आतम अजूवाळे. धन्य० ॥ १० ॥ सोळमो पन्नरसें सत्याशिए, कर्माशाहे कराव्यो; विमलवाहननृप करशे बेल्लो, शत्रुंजय मन भाव्यो. धन्य० ॥ ११ ॥ सूक्ष्मोद्धारो थया घणेरा, थाशे घणा शुभ भावे; बुद्धिसागर तीर्थ निजातम, उपयोगे प्रगटाशे; धन्य० ॥ १२ ॥ काव्यं - सरस शान्तिः ॥ १ ॥ ॐ परम० जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ छडी पूजा ॥ शत्रुंजयसमगिरि नहिं, योग न समता समान; सिद्धाचल आदीश्वरा, नमो नमो भगवान् ॥ ( केसरीया थाशुं प्रीत कीनीरे साचा भावसुं ए राग. ) विमलाचल स्वामी, ऋषभजिनेश्वर नमुं नेहथी । तुज साची प्रीति, जूठी लागीरे हवे देहथी ॥ भव्य गरिने दुःखहर गिरि छे, सिद्धशेखर मणिकन्त; माल्यवंतने महाजस उज्ज्वल, पृथ्वीपीठ नमे ६९ For Private And Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४६ सन्तरे. विमला० ॥१॥ मुक्तिराजने मेरुमहीधर, समुद्रपर्वतराजा; अनन्तशक्ति पुरुषोत्तमगिरि, अ. कर्मक गुणराजारे. विमला० ॥ २॥ ज्योतिरूपने महातीर्थ गिरि, हेमगिरि दिल धरीए; विलासभद्र सुभद्र नमीने, उपयोगे शिव वरीएरे. विमला ॥३॥ कंचनगिरिपर सुरवर सुरीओ, दर्शन करवा यावे; नाटक करती राचे माचे, प्रभुगुण भावना भावरे. विमला० ॥४॥ सिद्धाचल यात्राभक्तिथी, त्रीजा भवमा मुक्ति; थाती भक्तोनी शुभभावे, सर्वज्ञ जिनवर उक्तिरे. विमला ॥ ५॥ गृही मुनि लिंगे सिध्या अनन्ता, पशु पक्षी स्वर पाम्या; बुद्धिसागर सिद्धाचलगिरि, पूजंतां शिवठामारे. विमला ॥६॥ काव्यम्. सरस शान्ति ॥ ॐ ही परम० जलादिकं यजामहे स्वाहा. ॥ ॥ सप्तमी पूजा ॥ शिद्धाचलगिरि शाश्वतो, महिमानो नहीं पार; सि. द्धाचलमा समाय छे, सर्वतीर्थ निर्धार ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४७ ( गंगातट तपोवनमारे, बनी रचना भारी. ए राग. ) विमलाचल व्हालारे, नमुं गुणभंडारी; वीतराग जिनेश्वररे, स्तवं विभु गुणधारी. साखी. श्रानन्दघर पुण्यकंदने, जयानन्द सुविशाल; जगतारण पाताल मूल, विभास मंगलमाल. अकलंक अनादिरे, अनन्तने अविकारी; अजरामर नामेरे, क्षेमंकर अघहारी. साखी. सहस पत्र गुणकंदने, अमरकेतु गिरिराज; तमकंद कर्मक्षय ने - शिवंकर गुणराज, राज राजेश्वर सदारे-नमुं गुण निर्धारी; मोहपरिणति वारीरे - रहुं नहिं संसारी. साखी. For Private And Personal Use Only वि० १ वि० २ सुमति श्रेष्ठाय कंदने, महोदयहेतु सुजाण; गजचन्द्र अचल सुरकांत छो, तीर्थरूपी भगवान्. एम नाम घणेरांरे, स्मरण करुं सुखकारी: बुद्धिसागर तीरथरे, सकलनये जयकारी. विमला० ३ काव्यं ॥ सरस शान्ति० ॥ ॥ ॐ परम० जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥ Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४९ अष्टमी पूजा. विमलाचल वन सदा, धरूं उपयोगे ध्यान; विश्वलोकने तारवा, भवोदधिमा वहाण ॥ १ ॥ (त्रिशलाना जाया महावीररे वन्दु वीर वाणी. ए राग.) विमलाचल व्हाला देवरे, वन्दु सुखकारी; परब्रह्म ऋषभ जिनदेवरे, समरु सुखधारी ॥ साखी. पुण्डरीकादिक गणधरा, आव्या गिरिवर पास; शुद्धातम उपयोगथी, तोड्या कर्मना पास. समोसर्या महावीर देवरे-बन्दो नरनारी; आव्या नेमिविना सहु देवरे, आतम हितकारी.वि०१ साखी. पूर्व नवाणं आविया, स्वामि ऋषन जिणंद; सागरमुनि एककोटि सह, टाळ्या नवनयफंद. बे कोडी मुनिनी साथरे-अनसन निर्धारी; नमि विनमि मुक्ति लहंतरे-अनंतसुख क्यारी.वि०२ साखी. पंचकोटी सहजरतजी, पाम्या मक्तिवास: सत्तरकोटी सह मुनि, अजितसेनजी खास. चोमासु अजितप्रभु देवरे, रहिया अविकारी. वि०३ For Private And Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४९ साखी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शान्ति जिनेश्वर साहिबे, चोमासुं कर्यु बेश; धर्मध्यानने ज्ञानथी, टाळ्या भविजनक्लेश. पाछल भरतनी पाटे भूपरे, पाम्या शिवनारी. वि०४ साखी. एकलाख अनगारथी, आदित्ययशा थया मुक्त; द्राविडने वारिखिलजी, दशकोडिथी प्रमुक्त. साखी. तेरकोटि सह सोमयश-नारद मुनिवर लक्ष; राम भरत त्रण्यकोटि सह, पाम्या मुक्ति सुदक्ष. सांब प्रद्युम्न साडी आठकोटिरे, मुक्ति लही प्यारी. वि०५ साखी. पात्रीस सहस अहीं नारीयो, वसुदेवनी सिद्ध; थावच्चा मुनिसहसथी, शुक परिव्राजक सिद्ध. साखी. चौदसहसथी सिद्धिया, दमितारि मुनिराय; चौआलीससयथी जली, वैदर्भी सिद्ध थाय. प्रद्युन्न प्रिया थइ सिद्धरे - शेलक शिवधारी विमला०६ For Private And Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५० साखी. थावच्चा मुनि सहसथी, कदंब गणधर कोड; बुद्धिसागर तीर्थनी, जडे न जगमा जोड. सिद्धाचलगिरि करूं सेवरे-महोदय मनोहारी.वि०७ काव्यं-सरस शान्ति मंत्रम् ॐ जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥ - - अथ नवमी पूजा. पालीताणा नगरमां-नव जिनमंदिर सार; देरिओमां पादुका, वंदीए धरी प्यार. ( विमलाचलवासी मारा व्हाला, सेवकने विसारो नहि विसारो नहि. ए राग.) विमलाचलवासी व्हाला वन्दु विभु,तुज प्रेमधरी प्रेमधरी, क्षणेक्षणे स्मरूंप्रभुपूजाकरूंनमुं,लळीलळीलळीलळी. प्रथम तलाटीए गिरि वन्दी, धरीए हर्ष अपार, मार्गानुसारी समकित गुण,सत्य तलाटी विचार,विभु०१ बाब धनपति टुंक मनोहर, जिनप्रतिमा जयकार: वंदी पूजी आगळ चढतां, सूरिंगण देरी सार.विभु०२ For Private And Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५१ चौमुखजीनी टुंकमां देरां - जुहारीए धरी प्यार; नरसिंह केशवजीकृत मन्दिर, वंदीए वारंवार विभु०३ साकरचंद कर्मचंदनुं देरु - बन्दीए जिनराज; छीपावशीमां प्रतिमा पूजे, प्रगटे शिवसाम्राज्य. विजु०४ उजमबाइनी टुंक जलेरी, नंदीश्वरसुखकार; हेमाजाइनी टुंक मनोहर, पूजीए प्रभु धरी प्यार. विभुन्य प्रेमचंद मोदी टुंक जलेरी, जिनप्रतिमाओ अनेक; बालाजाइ टुंकनां दर्शन, करीये हृदय धरी टेक. विभु०६ मोतीशानी टुंक मझानी, जिनमन्दिर जयकार; आदीश्वरनी टुंक बे मोटी, सर्व टुंक शिरदार. विभु०७ हीराचंद रायकर्णनुं मन्दिर, शान्तिनाथनुं बेश; कपर्दि चकेश्वरी रखवाळी, सहायकरी हरे क्लेश. विभु०८ जुलभुलामणी मन्दिर मनहर, अन्य भलां मन्दिर; कुमारपालराजानुं देरु, वन्दीए धरी दिल धीर. विभु०९ हायपोळमां आदश्विरनुं - मन्दिर जगजयकार; बुद्धिसागर जिनवर दर्शन-पूजन शिवसुखसार. विभु१० काव्यम् सरस शान्ति० ॐ० प० जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२ ॥ अथ दशमी पूजा. ॥ जैनतीर्थगिरि मंडपो, आदीश्वर भगवान्; वंदतां पूजतां ध्यावतां, - प्रगटे केवलज्ञान. ( व्हाला पेगे आवारे. एराग ) आदीश्वर देवारे, करुं भावे सेवारे, प्रभु म्हने तारशो होजी; प्रभु छे त्हारो महिमा अपरंपार, यादी वर० साखी. त्रणप्रदक्षिणा देइने, वन्दु प्रतिमा अनेक; पुण्डरीक गणधर नमुं, रायण पगलां विवेक. तुज आणावे भक्तिरे, भक्तिमां सहु शक्तिरे; सेवामां देव वास बे, होजी. यदीश्वर हारुं दर्शन छे शिवकार, अर्पाइ गयो तुज उपर निर्धार. साखी. For Private And Personal Use Only आदीश्वर : मनवचकायाशुद्धिथी, शास्त्रविधि अनुसार; श्रद्धाप्रीतिभक्तिथी, गाउ तुज गुण सार; दुर्गुण दोष टाळेरे, प्रभु घट नाळेरे; भक्तोने मुक्ति हाथ मां होजी, जक्तोनुं सहु प्रभु उपर कुर्बान; तुजपर वारी जाउ, तन मन प्राण. आदीश्वर० २ Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५५३ साखी. तुजमुज ऐक्य अनुभवे, - आनन्द घट उभराय; मरे मोह निज आत्ममां, आत्मजीवन प्रगटाय. दुर्गुण त्यागेरे, तुज गुणरागेरे, सत्य सेवा तारीरे होजी; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुज भक्तिए मुक्ति छे मुज निर्धार, व्हाला प्रभु त्हारो छे म्हने आधार. आदीश्वर० ३ साखी. दर्शन ज्ञान चारित्रमां, प्रभु तुज भक्ति सत्य; तुज उपदेशप्रवर्तने, सफलां सेवाकृत्य. शुद्धतम प्यारारे, आतमना आधारारे; ॥ १ ॥ बुद्धिसागर तारजो होजी, तुज सम थाशुं तुज भक्तें निर्धार. आदीश्वर० ॥ ४ ॥ काव्यं सरस शान्ति० ॥ ॐ ही जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥ ७० ॥ अथ एकादशमी पूजा. ॥ सोरठसिद्धाचलगिरि, समरु वारंवार; वंदु पूजूं भावथी, शाश्वतसुख दातार. ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५४ ( घनघटा भुवन रंग छाया. ए राग. ) नमुं विमलाचल सुखकारी, आदीश्वर जिन उपकारी | यात्राछु नरने नारी, बरी पाळे समकित धारी; मुक्ति पामे हितकारी, आतम समभाव ल्यो धारी. नसुं० ॥ १ ॥ जे यात्रा करे जे भावे, तेवुं फल निश्चय पावे; मुक्त्यर्थे यात्रा थावे, निष्कामे तरे नरनारी, नमुं० ॥ २ ॥ साची सिद्धाचल यारी, आतम आनन्दरसक्यारी; मुक्तिसुख मळे अहिं भारी, निज उपयोगे निर्धारी. नमुं० ॥ ३ ॥ विक्रमभूप संघथी आव्यो, शुभपवित्र पुद्गलछायो, सिद्धाचल पूजी वधायो, आम सम्प्रति यात्रा धारी. नमुं० ॥ ४ ॥ करी यात्रा कुमारपाळे बरी पाळी गुण अजुवाळे; प्रभु पूजी दोषो टाळे - धन्य संघपति बलिहारी. नमुं० ॥ ५ ॥ संघपतियो आव्या हजारो, यात्राळुनो नहिं पारो; करी यात्रा जन्म सुधारो, यो दोषो सहु संहारी. नमुं० ॥ ६ ॥ शुभ मंत्री वस्तुपाळे, तेजपाळे पंचम आरे; संघसाथे आतमतारे, द्यो यात्राथी मोह मारी. नमुं० ॥ ७ ॥ पंचमआरे अघहारी, सिद्धाचल यात्रा सारी; करी पूज्या प्रभु उपकारी, बुद्धिसागर जयकारी नमुं० ॥ ८ ॥ For Private And Personal Use Only Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५५५ कलश. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( श्री तीरथ पद पूजो गुणीजन ए राग. ) श्री सिद्धाचल तीर्थ वधायो, आदीश्वरगुण गायोरे, सेवा भक्ति ल्हावो लीधो, आतमअनुजव आव्योरे. श्री० ॥ १ ॥ स्थावरजंगमतीर्थनी सेवा, जकिए प्रभु पायोरे; गुण गुणी एकनी लगनी लागी, आनन्द दिल उभरायोरे, श्री० ॥ २ ॥ भाव नक्तिए दिलमां ध्यायो, मोहविभाव हठायोरे; प्रभु पूजतां चित्त हर्षायो, परमप्रभु परखायोरे. श्री० ॥ ३ ॥ तद्धेतु अमृतकिरियाथी, प्रभु पूजी सुख पायोरे; आतम सन्मुख आतम वळीओ, मोह महीपति हायरे. श्री० ॥ ४ ॥ भावना पुष्पे तीर्थ वधायो, प्रभुमांही अर्पयोरे; जक्तिमोतीए वधाइ उमाह्यो, मरजीवो थे जायोरे. श्री० ॥ ५ ॥ बाहिर अंतर तीर्थ तीर्थपति, पूजा रची गुण गायेोरे; आपोआप स्वरूपे तीर्थ ज, जीवंतां अनुभवायोरे, श्री० ॥ ६ ॥ भशेगुणशे पूजा भावे, पामो सुख विशालारे; संघ चतुर्विध मंगलमाला, पामो जगजयकारारे. श्री० ॥ ७ ॥ संवत् ओगणिश ऐसीसाले, चैत्री पुनम सोमवारेरे; प्रांतिजनगरे पूजा रवी शुन, नक्तिभाव For Private And Personal Use Only Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ विचारेरे. श्री० ॥८॥ प्रभु महावीरजिनेश्वरपाटे, श्वेतांबरसूरि राज्येरे; तपगच्छ हीरविजयसुरि जगगुरु, नभमां धनवत् गाजेरे. श्री० ॥ ९॥ बादशाह अकबर प्रतिबोधी, पांचे तीर्थों वाळ्यांरे, तीर्थ प्रना. वक शासनरक्षक-संघनां मुख अजवाळ्यारे, श्री ॥ १० ॥ सागरसाखे रविसागरगुरु, सुखसागर गुरु रायोरे, बुद्धिसागरतीर्थनी पूजा, विरची प्रमुगुण गायोरे. श्री. ॥११॥ गुरुनी आरती. जय जय गुरुवर जगजयकारी, आरती करतां आनंद भारी. जय० महीथाळीमां शशी सूरजनी, आरती कुद्रते प्रेमे उतारी. जय० ॥ १॥ पिंड अने ब्रह्मांडमा मति श्रुत,-आरती थाती जग उपकारी. जय० केवलज्ञाननो मंगल दीवो, थातो गुरुगम ज्ञान विचारी. जय० ॥ २ ॥ जडचेतनसौन्दर्यप्रसारी, सहेजे आरती करे हितकारी. जय० आरत टाळे आरती सारी, युगोयुग जीवो गुरु गुणकारी. जय० For Private And Personal Use Only Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५७ ॥३॥आरती करनारा नरनारी, आनंद पामो मोह निवारी; समकितदाता गुरु सुखकारी, जगचिंतामणि जग उपकारी. जय० ॥ ४॥ सेवा नक्ति घृत भयु भारी, कर्मयोग दीवेट डे सारी; बुद्धिसागर गुरु व्यवहारी, ताह्यरी जाउं सदा बलिहारी. जय० ॥५॥ ॥ मंगल दीपक ॥ जगगुरु जगजय मंगल दीवो, चतुर गुरु जग चिरंजीवो. जग चन्द्र सूरज ग्रह फरता फेरा, गुरुना प्रकाशे रहे न अंधेरा. जग ॥१॥ वेदागम तुज महिमा गावे, गुरुकृपावडे मुक्ति थावे. जग० निश्चय भावथी मंगलरूपी, सदसदरूपी रूपारूपी. जग० ॥२॥ पंचभूत उपमा नहीं पावे, अलख कळा नहीं समजी जावे; बुद्धिसागरमंगलमाला, पामो ऋद्धिवृद्धिविशाला, जग ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५५८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनेश्वरदेवनी आरती. अप्सरा करती आरती जिन आगे. ए राग. जय जिनवर जिनराजजी जयकारी, परमेश्वर जग उपकारी; जगजीवोने हितकारी, तार्या नरने नार, जय० ॥ १ ॥ चन्द्र सूरज तुज आरतीरूप शोभे, तुज महिमाए जग थोभे; तुज महिमा अपार. जय० ॥ २ ॥ तुज आणाए विश्वमां द्रव्य वर्ते, ज्ञान आज्ञाए ज प्रवर्ते; कोइ लोपे न आण. जय० ॥ ३ ॥ देव देवी नर नारीओ मळी नाचे, तुजरूप गुण देखी माचे; बनी जक्ति मगन्न. जय० ॥ ४ ॥ कोटि वर्ष कोटि जीभथी न गवाये, कोटि दिलमां न ध्यातां समाये; परा पश्यंतीपार जय० ॥ ५ ॥ घनगर्जे मोर टहुकतो मन हर्षे, खुशी चातक घन जव वर्षे; तुज दर्शने मुज मन तरसे, देखी दिलडुं प्रसन्न. जय० ॥ ६ ॥ मही जलवायु अग्निने नभ पंच, तेनी उपमा न तुजने रंच; तुं तो निरुपम देव. जय० ॥७॥ सर्वमाही ने सर्वथी प्रभो न्यारा, सदसद्गुण प ययाधारा; वीतरागने सर्वज्ञ प्यारा, सर्वदेवना देव, जय० ॥ ८ ॥ परमब्रह्म महावीरजी जगत्राता, For Private And Personal Use Only Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५९ तुहि माता पिता ने भ्राताः बुद्धिसागर यो सुख शाता, संघ मंडल मान. जय० ॥ ९ ॥ मंगल दीपक. जय जिनवर तुज जग बलिहारी, विश्वोद्धारक जग उपकारी. जय० मंगलदीवो मंगलकारी, तेथी पूजुं जिन जयकारी. जय० ॥ १ ॥ द्रव्यभाव मंगल अवतारी, तुज जक्त मंगल निर्धारी. जय० जगर्मा मोटो मंगल दीवो, विश्व जीवन तुं चिरंजीवो. जय० ॥ २ ॥ शक्ति अनंती अगम अपारा, सर्व जीव दिल्मां छो प्यारा; जय० नय निक्षेपथी निश्चय न्यारा, सर्वविश्वना छो आधारा. जय० ॥ ३ ॥ गुणपर्याय अनंता दरिया, अनंत शक्ति स्वभावे भरिया. जय० नवग्रह इन्द्रादिक तुज बंदा, निशदिन सेव करे सूरचंदा. जय० ॥ ४ ॥ परब्रह्म महावीर गवाया, अरिहंत परमेश्वर जिनराया; जय० बुद्धिसागर मंगल राया, पूजी प्रेमे तुज गुण गाया. जय० ॥ ५॥ For Private And Personal Use Only Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only