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१७
॥ पूजासंग्रह उपोद्घात ॥
अनादिथी परमेश्वर छे अने तेनी पूजा पण अनादिकाळथी छे. दरेक तीर्थकरनी अपेक्षाए आदि छे एम अपेक्षाए ज्ञानीओ जाणे छे. जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, फल वगेरे पूजानी साधन वस्तुओं छे. अंगपूजा, अग्रपूजामां साधनवस्तुओ छे ते उपकारे पूजा कहेवामां आवे छे. द्रव्य पूजामां जलादि साधन पूजानो समावेश थाय छे. भावना, श्रद्धा, प्रीति, प्रभुगुणोनी स्तवना, तथा व्रतादिगुणोवडे प्रभुनी स्तवना करवी, प्रभुनी प्रभुना गुणो गाइ श्रद्धा पूर्वक भक्ति करवी, प्रभुना द्रव्य अने भाव अतिशयोनी स्तुति करवी, इत्यादि मानसिक सेवाभक्तिशुभपरिणामनो अने स्तुति पूजामयशब्दोनो भावपूजामां समावेश थाय छे. द्रव्यपूजा अने भावपूजा ए वे भेद पण प्रभुनी सेवा भक्तिरूप के अने एवी सेवा भ तिमां मतिश्रुतज्ञान पण अंतर जाग्रत् होय छे, तेनी साथे चरिवनी भावनाओ पण उल्लसे के ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, जगत्मां अनादिकालथी सर्वदेशमां अनेकरूपे होय छे. साधनभक्तिनी अपेक्षाए भावभक्तिना पण अनेकभेद पडे छे. दरेक धर्ममां भक्तिने प्रभुनी प्राप्तिनुं साधन मानत्रामां आव्युं छे. केटलाक मतवा - oाओ प्रभु परमात्माने साकार मानीने तेमनी भक्ति करे छे. मुसमानो अल्ला खुदाने अनंतनूरनो दरियो मानीने प्रभुनी भक्ति करे छे. वेदांतीओमां केटलाकमतवादीओ - रामानुज, रामानंद, मध्य, निंबार्क, वल्लभाचार्य, स्वामीनारायण वगेरे परमेश्वरने साकार माने छे अने भक्तोना उद्धारमाटे परमेश्वर वारंवार जन्म अवतार ले छे एम माने छे. रामानुज वल्लभाचार्यमतवावादीओ परमेश्वर सदा साकाररूपी रहे छे एम माने छे. शंकराचार्यवाळा वस्तुतः परमात्माने
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