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१९२ रति अरतिमा समपणे, वर्ततां नरनार; करे कर्मनो निर्जरा, शुफ बने निर्धार ॥ २ ॥ (आज सखी मोंये वालमा, मुन मंदिर आये. ए राग.) रति अरति आवे मनविषे, हर्ष शोक न करीए: शुद्धातम महावीरने, पूजी पापने हरीए.
रति १ शुभ अशुभ कर्मोदये, रति अरति थावे; कर्मनी बाजी जाणीने, ज्ञानी रहे समभावे.
रति २ जेवां गगनमां वादळां, आवे ने लय थावे; नभनिलेप तथा दशा, ज्ञानी निर्लेपभावे.
रति०३ रतिथी प्रभुता न मानीए, अहंकारी न थावं; अरतिथी दीनता धरी, मोहे मरी नहीं जावं.
रति०४
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