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बाजीगर बाजी समा,
जेवा जलपडछाया; रति ने रतिनी कल्पना,
इन्द्रजालनी माया.
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रति० ५
नामजिन्न शुरुआतमा, रति अरति न्यारी; बुद्धिसागरसमरसी, पूर्ण ब्रह्माधारो.
ॐ परम० दर्पणं यजामहे स्वाहा ॥
प्रभु महावीर जिनवर पूजीए, निन्दा करतां धूजीए.
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रति० ६
सोळमी परपरिवादपरिहारकवस्त्र पूजानिन्दा दुर्गति वेलडो, निन्दा अधर्मनी खाण, परपरिवादनी टेवथी, प्रगटे न निर्मलज्ञान ॥१॥ समिति गुप्ति में बने, सद्वर्तनमां हान; निंदात्यागतां आतमा, बने शुद्ध जगवान्. ॥२॥
( प्रभु निर्मल दर्शन कीजीए. ए राग. )
प्रजु०