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थाय न मान अमान. कीर्तन० ॥६॥ कीर्तन करता क्षणमां केवलारे, असंख्य थयां नरनार, गुणनी स्तुति अवगुण ढांकवारे, कीर्तनपूजा सार. कीर्तन ॥ ७ ॥ सत्यादिकगुणवृन्दनीकीर्तनारे, प्रभुनी पूजा एह; शुद्धातम करवा प्रभुप्रार्थनारे, स्तवना छे गुणगेह. कीर्तन ॥ ८॥ द्रव्यने भावथी प्रभु कीर्तन करोरे, प्रभुने गावो भव्य; बुद्धिसागरशुद्धातमप्रभुरे, भक्तिनुं कर्तव्य. कीर्तनः ॥ ९ ॥
ॐ 40 कीर्तनपजाथै जलंग य स्वाहा ॥
तृतीया सेवनक्रियापूजा. अरिहंत आदिनी करो, द्रव्यमावथी सेव; सेवक बनी उपयोगथी, सेव्य बनो स्वयमेव. ॥ १ ॥ सात नयोथी सेवना, आत्मशुद्धिनेहेत; गुर्वादिकनी सेवना, आत्ममुक्तिसंकेत, ॥२॥ श्रवण अने कीर्तनथकी, सेवाभाव सुहाय; सेवाथी सहु सिद्धि. यो, प्रगटती घटमांय. ॥३॥
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