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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१ फळ निमिते रचेली मंगलपूजा खास मंगलस्वरूप रजु करे छे. आ संसार विघ्नोथीज भरेलो के अने पदे पदे संसारी जीवोने विघ्नोनो अनुभव सामान्य छे. एटले मंगलेच्छुजीवोनो विघ्नभय दूर थइ आश्वासन प्राप्त थवामां तथा अनेक मंगलमय नामोनुं स्मरण-मनन थइ भक्ति नम्रतायुक्त चित्तवृत्ति थवामां तेमज दुःखी पण सुखेच्छुओने 'कहीं लाखो निराशामां' लंबायेला आशातंतुनुं दर्शन थवामां आ पूजानी उपयोगिताथी मनुष्यहृदयनुं सहेजे आकर्षण थशे ए निःसंशय छे, खरेखर आ पूजा " लोगस्स " अने “ संतिकर " उपरांत अनेक मंगलपाठोना खजानारूप होय तेवी खूबीथी भरपूर छे. आ उपरांत अठार पापस्थानक निवारक पूजा स्वविषय परत्वे तेमज जीवोनी अनिवार्य रुचिभेद परत्वे उपयोगी के एम प्रथम भागना उपोद्घात तथा प्रस्तावनामां दिग्दर्शित सिद्धांतप्रमाणे जणाय तेबुं छे, तेथी तेनी पुनरुक्तिनी आवश्यकता नथीज, शत्रुंजय विषयक कथा वृत्तांतनो उद्बोध करनारी, द्रव्यभावमय तीर्थनो तथा द्रव्यभावमय शबुंजय तीर्थनो ख्याल आपनारी, तीर्थभक्ति उपर प्रेम जगाडनारी, तीर्थ उपर रहेला स्थानकोनी नोंध लेती, तीर्थमहिमानो विस्तार करती, तेना उद्धार अने नामोनुं गणशुं गणती अनेकप्रकारनी व्याख्यायुक्त नवाणु प्रकारी पूजाथी तीर्थभक्तोना आत्मानी शुद्धि अने आनंदरसमां वृद्धि थाय ए स्वाभाविक छे. पूजानुभवी जनोने आ पूजाओ वांचता-भणावतां सूरिश्रीना हृदयमंदिरमांथी नीकळेला ज्ञाननां झरणांनो अने तेमनी मधुर- सरस अने एकधारी लेखिनीनो साक्षात्कार थइ भक्तिरसनो अमूल्य रहावो महशे, एटलुंज नहि पण गुणग्राही सज्जनोने तो आ रचना खास दीपक समान नीवडशे. आत्मगुण प्राप्त करवामां अनेक साधनो अस्तित्व धरावे छे, तेमां पूजाओनुं पण अग्रस्थान छे, एटले सर्व प्रवृत्तिओमां साध्यदृष्टिए आत्मगुणनी माप्ति के कयुं छे के “आतमगुण विना रे होळी राजा For Private And Personal Use Only
SR No.008634
Book TitlePooja Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages620
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size24 MB
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