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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ सरखो वेष. " खरेखर वेषक्रिया ए आत्माना गुणो प्राप्त करवाने माटे होय छे ते बिना तो जेम होळीराजा ते खरेखर राजा होतो नथी ते आत्मगुण दृष्टिबिंदु विनानी वेषक्रिया लाभकारक नीवडती नथी, माटे दरेक इवानुष्ठानयां आत्मगुण प्राप्तिनुं छेल्लं साध्य सदोदित नजर समक्ष राखवामांज इष्टानुष्ठाननी सार्थकता छे, रुचि - भेद परत्वे उपयोगी गणातां (साध्यनां) साधनोनी- अनुष्ठानोनी मात्रा रुचिभेद परत्वे लागु पाडवानुं लक्ष्य अनेक सांसारिक-धार्मिक झघडाओनुं निराकरण थवामां अने तेओनी जड पेसती अटकाववामां लाखेणा मूल्यनुं छे. खास तकेदारी इष्टानुष्ठानमां भूलाइ गयेला साध्यरूपी आत्मानुं संचारण करवामां मौखिक मात्र नहि पण हार्दिक पलटारूपे भाग जवशे त्यारेज मार्ग निष्कंटक, सरळ, सर्व साध्य अने मुमुक्षुप्रिय थशे. " अनेक कर्ताओनी आवी भक्तिप्रधान रचनाओमां अनेक विषयो अनेक रीते समावेश पामीने हाल सुवीमां प्रचरित थया छे तेम छतां बीजां स्थळोए मळी आवता भावोना समान भावोनुं मात्र व्यक्तिगत विरोधना कारणे एम “ अपने बोर पीछे, दूसरेके खट्टे " ए कहेबत साची पाडवाना आशयथीज ज्यारे दिग्दर्शन करी सामानी कृति उतारी पाडवानो प्रयत्न करवामां आवे त्यारे आ उद्योग जनसमाजने केटलो रोचक थइ शके ? अने एमांथी जनसमुदायने कल्याणकर धारणा केटले अंशे फळ निष्पन्न थाय ? ते विचारवा जेवुं छे. आवोज एक प्रयत्न पन्यास गंभीरविजयजी गणिनी केटलीएक प्रसादीओनो संग्रह करी " भक्तिमार्ग प्रकाश " ना नामे एक लघु पुस्तक प्रगट थयेलुं छे तेमां प्रास्ताविक लखाणमां तेमना शिष्य आनंद विजयगणिए करेलो दृश्यमान थाय छे. तेओ लखे छे के- केटलाक प्राकृत लोको निरसनाय अर्थशून्य तेगज कविताना ढंगबगरना " त्रिशलाना जायारे महावीर सहाये For Private And Personal Use Only
SR No.008634
Book TitlePooja Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages620
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size24 MB
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