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बे घमी सामायिकनी तोलेइन्द्रनी पदवी न आवे; समतायोग छे सौमां मोटो, क्षणमा मुक्ति थावे हो............. ....बेघडी० ४ समताथी रागरोष निवारं, आतममा मन वाळु समभावे प्रभुरूप बनीने, आप प्रभुरूप भालु हो................बेघडो० ५ मानवभव मळियो नहिं हालं, मोह अरिने मारूं; परपुद्गलमां म्हारु न हारुं,शुभाशुभनाव टाळु हो..........बेघडो० ६ शुद्धातम उपयोगने धारु, आपोआपने ता; बुद्धिसागर ब्रह्म संभालं,घटमां प्रजुने निहाळु हो............बेघडो० ७
ॐ परमा दर्पणं यजामहे स्वाहा ॥
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