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绝酒度
गुणगण गायारे, वीश० ॥ ७ ॥ सहज सागरपाठक जयकारी, सागरशाखा धारी; पह परंपरा रविसागरगुरु, रविसम प्रगट्या जारीरे वीश० ॥ ८ ॥ पूर्णप्रतापी सुखसागरगुरु, करुणा आशी प्रजावो; बुद्धिसागर पूजा रची शुभ, संघमां थाओ वधावोरे, वीश० ॥ ९ ॥ ॐ ह्रीं श्री० पमर० तीर्थ पूजार्थ जलं० यजामहे स्वाहा.
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