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दुर्लन नरभव दश दृष्टांते,पामी न पडो मिथ्यानान्तें; समकित लही रहो निभ्रान्तेरे. (जनवर० २ आर्यदेशमा जन्म भलो-, श्रावककुलमा जन्म खरो; धर्मसामग्रीयोग धरोरे. जिनवर०३ मिथ्याबुद्धिने परिहरोए-, सत्संगत क्षण क्षण करोए; मोहना मार्या नहि मरीएरे. जिनवर-४ शुद्धातमनां मन दीजे-, प्रभुनु स्मरण क्षण क्षण कीजे;
आनन्दरस अमृत पीजेरे. जिनवर ५ वीर बनी वीर समरीजे-, जन्म धर्यों नहीं हारीजे; वारंवार न जन्मीजेरे. जिनवर०६ बोधि पामीने रीझीजे-, आतमने प्रकट प्रभु कीजे; जयडको जग वगडावीजेरे. जिनवर० ७ विजतेजे मोति परोवीजे,
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