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भावनाभावी मन वश कीजे; बुद्धिसागर सद्गुण लीजेरे.
जिनवर ८
ॐ प० ज० य० स्वाहा ॥
बारमी धर्मकथकभावनापूजा. अरिहंत सर्वज्ञ छे,-धर्मकथक जिनराज; अर्हन् आज्ञाधारको,-सद्गुरुमुनिवरराज. ॥१॥ षद्रव्यो ज प्रकाशियां,-नवतत्वो जैनधर्म; मुनि श्रावक बे धर्मने-उपदेश्या शिवशर्म. ॥२॥ जैनधर्मने उपदिश्यो, सर्वविश्व हितकार, केवलीभाषित नान्यथा,-निश्चय ए निर्धार. ॥३॥
(आनन्द क्यां वेचाय चतुरनर. ए राग.) अरिहंत छे सुखकार-,सर्वे अरिहंत छे सुखकारः केवलीजाषित जैनधर्म सत्य, सर्वविश्व हितकार; दानशीयलतपभावनानेदे, श्राद्धयतिधर्म धार.
सर्वे०१
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