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૨૦ पंचम साधुपदपू. दोहरा
अप्रतिबद्ध जे विश्वमां, कर्मयोगी निष्कामः साधे आतम साधना, रमता आतमराम. ॥ १ ॥ मुनि तपसी अनगारी जे, साधु संयन नाम; यति ऋषि त्यागी श्रमण, आर्य भिक्षुक गुणधाम ॥ २ ॥ याश्रमत्यागी महंत जे अनेक जेनां नाम; बंदो
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पूजो प्रेमी, संत प्रभु विश्राम ॥ ३ ॥
|| ओधवजी संदेशो कहेजो श्यामने. ए राग ॥
प्रीतडीने सांधी साधु साथमां, साधु संगते प्रभुनां दर्शन थाय जो, पंचम आरे दुर्लभ साधु संगति, मुनि जजंतां जन्म जरा दुःख जाय जो, प्रीतलड़ी० ॥ १ ॥ साधुसंगतथी समकित प्रगटे खरं, ज्ञानाने चारित्र जलं प्रगटायजो, संतनी संगे रहीए श्रद्धाप्रेमथी, एकपलकमां धार्यु निश्चय थाय जो. प्रीतलडी ॥ २ ॥ पंचमारे मुनिनी श्रद्धा प्रीतडी, करतां आतम परमातम झट थाय जो, संस्कारी भव्योने भक्ति सांपडे, गुणरागे सवळी बुद्धि प्रदाय जो प्रीतलडी० ॥ ३ ॥ यम नियमने आसन प्राणायामयी, प्रत्याहारने धारणा ध्यातथी
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