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सुपक्ष तेने भय नहींजी, अंतराय, मन धार; श्रावक सुपक्षी थावे करी उपकार. १ अनुकुल संबंधीओने-, करतो रहे धरे धर्म; संकटविघ्नादिक हणीजी, करतो धर्मनां कर्म.
श्रावक. २ अनेक उपाये संबंधीओने, अनुकुल करी वहे दक्ष; बुद्धिसागर सुखी सदाजी,
जेने छे धर्मो सुपक्ष. श्रावक.३ ॐ परम सुपक्षयुक्तगुण लाभाय जलंग यण् स्वाहा॥
॥ पन्नरमी दीर्घदर्शित्वगुणपूजा. ॥ परिणामे सुन्दर करे, दीर्घदर्शी सहुकाज; अधर्म दुःखथी दूर रहे, पामे सुखसाम्राज्य. ॥१॥
सुमतिनाथ गुणशुं मलीजी. ए राग. दीघदर्शी परिणामनेजी, देखी करे सहुकाज; अल्पक्लेश बहुलाननेजी, समजे खरो परमार्थ, श्रावक छे एवो दीर्घदर्शी जयकार.
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