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त्यागथी केवलज्ञाननो, आविर्भाव ज थाय; सर्वकर्मना क्षय की, आतम मुक्ति पाय. द्वादशभावनाए प्रभु --, पूजी जे हितकार; आत्मशुद्धि झट यती, ज्ञानानन्दपद सार. बारजावना जावतां, ममता अहंता जाय; आतम ते परमातमा, शांतरसे प्रगटाय.
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( समकितनुं मूल जाणीएजी. ए राग. )
अनित्य तनधन कारमुंजी--, पुत्रादिक परिवार; विजळी चमकारा समुजी --, यौवन निश्चय धाररे. --
॥ प्रथमअनित्यभावनापूजा ||
दुहा.
अनित्य जग सहुवस्तु छे, तनधनने घरबार; लक्ष्मी विद्युत्सम क्षणिक, स्वप्ननी लीला धार. १ तनु यौवन प्रभुता क्षणिक, - नदीना पूर समान; जलना परपोटा समो, कुटुम्बनो परिवार. बाहिर सुखनां साधनो, क्षणमां विणशी जाय; एवं जाणी तीने, प्रभु पूजे सुख थाय.
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