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७५ चेतन!!! अनित्य सघळु जाण-- कर नहीं मोहने मानरे. चेतन!! अ०१ देखाती सहु वस्तुयोजी-, राज्यादिक घरबार; पाणीपरपोटा समुंजी, इन्द्रजालसम धाररे.
चेतन०-२ जन्मनी साथे मरण छेजी, प्रगटे तेनोरे नाश; अमर न को जगमा रह्याजी.. जडमां न सुखनी आशरे... चेतन !o-३ बाजीगर बाजीसमाजी, जडविषयोना संबन्ध; मोहथी अज्ञानीजनोजी, कर्मबन्धथी अन्धरे...
चेतन!०४ सर्वसंयोग वियोग छेजी, ममता अहंता शी? जोय; आसक्ति करवी नहींजी, जाणे निर्लेप होयरे.--
चेतन० ५ जिनवरमहावीरे उपदिशीजी, अनित्यनावना बेश;
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