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३७५ सामायिक निज आतमा, समता परिणतियोगेरे; परमानंदना भोगमां, वर्ते निज उपयोगेरे; वीर जिनेश्वर नाखता, आत्मस्वभावे रहेशोरे; विषमस्वभावे नहीं रहो, शुद्धपरिणति वदेशोर. वीर ॥ १ ॥ ___ ॐ ह्री श्री परम सामायिकाथ जलं, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, यजामहे स्वाहा.
द्वितीया चतुर्विंशतिस्तवपूजा. चोवीशजिनवरने नमो, वंदो पूजो जव्य, स्तवो भक्ति बहुमानथी, ए बीजुं कर्तव्य. ॥१॥ चोवीशतीर्थकर प्रभु, वीतरागभगवंत; स्तवतां ध्यातां आतमा, पामे भवनो अंत. ॥२॥ चंद्रसमा निर्मल सदा, रविथी अनंतप्रकाश, एवा चोवीश विभु, ध्यातां आत्मविलास. ॥३॥ सागरवत् गं. नीर जे, सिद्धगति दातार; प्रभुमय थै प्रभुने स्तवे, स्वयं प्रभु निर्धार. ॥ ४ ॥ ( हे सुखकारी आ संसारथ कीजो मुनने उद्धरे. ए राग.)
जग उपकारी चोवीश तीर्थकर मुज मनमांही वस्या, प्रभु जयकारी शुद्धातम उपयोगे अंतर उ
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