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वृषभने केशर सिंह, लक्ष्मी पुष्पनी माला, चन्द्र रवि ध्वज कलश मनोहर, सरोवर पूर्ण विशाला, सागर रत्ननो राशी अग्नि-, निर्धूम चौद निहाळे, चौदे स्वप्ननो अर्थ सुणीने, आनंदजीवन गाळे, ॥ ४ ॥ सिद्धारथराजाना हुकमे, जोषीओ त्यां आव्या, पुर बाहिर सुरम्य सभामां, अर्थविचारे फाव्या, ज्योतिषिओ भेगा थइने, बोले साची वाणी; तीर्थकर वा चक्रवर्ती तुज, पुत्र यशे गुणखाणी ॥५॥ राजा राणी अति हरखायां, ज्योतिषी संतोष्या; दानादिकथी धर्मिलोको, याचकने संतोष्या; भारतमां सहु घरघर लोको, जाणी आनन्द पाया, त्रिशलामाता गर्भने पोषे, धरे निरोगी काया ॥ ६ ॥ चैत्रशुदि तेरशना दिवसे, मध्यरात्री थइ जातां; सर्व दिशाओ उज्वलशान्ति, आनन्दवाळी सुहातां; नवमहिनाने साडासात ज, दिवस पूरा थातां; त्रिशलामाताए प्रभु जनम्या, त्रिलोके थ शाता. ॥ ७ ॥ भारतदेशे घरघर मंगल, घरघर हर्ष वधाइ, सिद्धारथराजा मन आनन्द, प्रगट्यो विश्व न माय ॥ ८ ॥ शुन लग्ने जनम्या प्रभु, त्रणभुवन उद्योत; नारकी पण आनन्दीया, जेनी अनंत ज्योत ॥ ९ ॥
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