________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हवे चैत्यवन्दन करवु तेनि विधि.
वोर आसने बेसी के हाथ जोडी प्रभुजी सामी दृष्टि राखी ‘इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवन्दन करूं' इच्छं एम कही 'सकळ कुशळवल्लि' कही जगचिन्तामणि कहेवू. पढ़ी जं किंचि, ननश्शुणं-, जावन्ति चेइयाई, जावन्त केविसाहु, नमोऽईत् कही उवसग्गहरं कहे, पछी आनवमखंडा सुधी अर्धा जयवीयराय कहेवा. अहिं सुधि कही पछी उभा थइ स्नात्रीआए कलश हाथमां लइ प्रभु ..ीना डाबा अंग तरफ उभा रहे पछी विधि करनार विधि भगे.
राग उपरनो. बप्पन दिक्कुमरी तीहां आवे, प्रनु जन्मोत्सव हेते; प्रभु माताने प्रणमे प्रेमे, सूतिकर्म संकेते. आठे दिकुमरी वायुथ); कवरो करतो दूरे, आवे कुमरो गंधोदकथी, सुगंधी जलने पूरे. ॥ १ ॥ आठ कुमा। कलशा धारे, दर्पण आवे धारे; आठकुमारी चामर वींजे, भाव भक्ति अनुसारे. आठ कुमारी पंखा क
For Private And Personal Use Only