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१६९ [ राग आशावरी.] ( अवसर बेर बेर नहीं आवे. एा राग.) प्रभु महावीरजिनेश्वर तारो, नवोदधि पार उतारो.
प्रभु॥ भवसागरमां नौका डुबंती, पेलीपार उतारो; हिंसासागरपार उतारी, करशो मुज उद्धारो.
प्रभु १ प्राणीओनी हिंसा न करवी, मांसलक्षण परिहारो सर्वजीवो आतमसम गणवा, धर्म प्रकाश्यो त्हें सारो.
प्रभु०२ प्राणीओना प्राण हणोने-, लह्यो न नवोदधि पारो; हवे तुज शरणे आव्यो नको, हिंसाबुद्धि निवारो.
प्रभु०३ प्राणातिपात करूं न करावं, संशु न मुजने उगारो; दयाथकी प्रभुद्वार खूले छे, मळता प्रभु निर्धारो.
प्रभु
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