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२८ मना लेखोने ग्रन्थोने प्रेमभावथी वांचे छे. गुरु महाराजना रचेला अनेक ग्रन्थो छे. ग्रन्थमाळाना मणकामां आ ग्रन्थथी वधारो थयो छे. तेमना हाथे विश्व लोकोनुं कल्याण थाय एवा ग्रन्थो हजी घणा लखाशे एवी इच्छा राखीएछीए. पूजाओमां ज्ञानदर्शन चारित्रादि गुणोनी भक्ति स्तुति अने ज्ञानीआदि गुणीओनी भक्ति करवामां आवे छे अने व्रत गुणोनी रुचि प्रगट थाय एवी भावना होय छे. आत्मानी शुद्धि करी आत्माने परमाला बनाववो अने अनंत जन्म जरा मरणना दुःखथी मुक्त थर्बु एज सर्व प्रकारनी पूजाओनो मूळ उद्देश अने उद्देशगामी पूजाओनो भावार्थ होय छे. वाचकोए पूजामो गाइने बेसी न रहेवू पण तेनो भावार्थ ग्रहयो, सांभळी सांभळी फूटया कान-वाची वाची फूटी आंख, गाइ गाइ थाक्युं मुख, एम गाडरिया प्रवाहे चालतां पूजानुं अने तेमां कहेला भावनुं रहस्य समज्याविना आत्मानो आनंदरस प्रगटतो नथी. ज्ञानपूर्वक अने भावपूर्वक पूजाओ भणाववामां आवे छे तो वक्ताओने तथा श्रोताओने अत्यंत आल्हादभाव भक्तिरस प्रगटे छे अने ज्ञानावरणीयादि कर्मोनी निर्जरा थाय छे. आत्मामां प्रभु भक्तिनो समाधिभाव प्रगटे छे तेथी प्रभुनो हृदयमां प्रगट भाव थाय छे. पूजाओ भणाववामां, श्रवण करवामां एकांत भक्तिनुं फल छे तेनो भावार्थ विचारी आत्मोल्लास प्रगटावतां उत्कृष्टभावे क्षणमा मुक्ति थाय छे. भक्त जैनो आवी उत्तम पूजाओ भणावीने तथा श्रवण करीने प्रभु भक्तिना रसिया बनी आनंद रस पामो. एम इच्छु छु. सं. १९७९ का. सु ११ एकादशी. ॥
गुरुभक्त. लेखक. गांधी आत्माराम खेमचंद, महेता हरिलाल मंगळदास,
मु. साणंद.
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