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जाओ एकेक दिवसमां चार चार पांच पांच कलाकमां रची पूरी करी हती. गुरुमहाराज ज्यारे पूजा रचवा बेसे छे त्यारे गद्यना ल. खाणनी पेठे सपाटाबंध पूजाओ रची दे छे. शीघ्रकवि तरीके तेओ जाहेर छे. तेओए भजन पद्यसंग्रहना आठ भाग रची बाहेर पाडया छे. तेमनी रचेली सत्तर भेदी पूजानो भावार्थ, आध्यात्मिकदृष्टिए उत्तम छे. वीश स्थानकनी पूजामां थोडी गाथाओमां घणो भाव समाव्यो छे. पहेलांनी अनेक पूजाओ छे. हाल पण केटलाक पंडित मुनिवरोए पूजाओ रचेली छे. भिन्न रुचिवाळा लोको छे तेथी आ पूजाओना सचिवाळा जे लोको छे तेने आ पूजाओ भणावतां घणो भक्तिरस प्रगटशे तथा भविष्यमा जेओ आवी पूजाओनी रुचिवाळा जीवो प्रगटशे तेओने आ पूजाओ घणी उपयोगी थै पडशे. आचार्य महाराजजी भविष्यमां बीजी पूजाओ प्रसंगोपात्त रचे एवो संभव छे. आ पूजासंग्रहनी आत्ति खपी जतां वीजी आत्ति छपावतां भविष्यमां रचाशे ते पूजाओने पण आ पूजाओना सुधारा वधारा साथे दाखल करवामां आवशे.
सज्जनो गुणानुरागी होय छे. दुर्जनो काकना जेवा दोष दृष्टिवाळा छे. दुर्जन इाळुओ तो छता गुणने पण अवगुण तरीके देखाडवानो प्रयत्न करे छे अने पयमांथी पूरा काढवा जेवी चेष्टा करे छे, एवा इालुओ उत्तम पूजाओ अने तेना रहस्यने दोषरूप देखाडवा प्रयत्न करे तेथी सज्जन गुणानुरागी समजुजनोने खराब असर थती नथी. जेओने सम्यग्दृष्टि प्रगटी होय छे तेओ तो श्री कृष्णनी पेठे ज्यां त्यां सारूं देखे छे तेनी प्रसंशा करे छे अने गुणनारागी बने छे. जैन कोममा आचार्य महाराज साहेब जेवी प्रभावशाळी अल्प व्यक्तियो छे. तेमणे जैनकोमपर घणो उपकार कयों छे. जैनो अने हिंदुओ वगेरे सर्व कोमोमां, राजा रजवाडाओमां जैनाचार्य गुरु महाराजनी प्रतिष्ठा भारी छे, सर्वदर्शनवाळाओ ते
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