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( सहियर सुणिएरे भगवती मूत्रनी वाणी. ए राग.) केवलज्ञानीरे महावीर पूजीए भावे, जिनरूपे आतमरे प्रणमावे प्रभु थावे; मिथ्या निंददशाने निवारी, स्वप्नदशाने टाळी; शुद्धातम उपयोगे जाग्रत् , ध्यानसमाधि धारी.
कवलर : शुक्लध्यानथी चोथी उजागर, लही मोह शत्रु हठायो; केवलज्ञानने केवलदर्शन, परमानन्द प्रगटाव्यो.
केवल०२ क्षायिकनवलब्धिना धारी, अनंतशक्तिदरिया; परमेश्वर महाविष्णु परब्रह्म, अनंतगुणगण भरिया.
केवल०३ चार अघातीयोगे जवस्थ , अभवस्थ डे सिद्धा; पश पश्यंती पामी झांखी-, पामे प्रगट प्रसिद्धा.
केवल०४
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