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साकारप्रभुनी द्रव्य पजाना अधिकारी गृहस्थो छे अने प्रभुनी भाव पूजाना अधिकारी मुनियो छे. जेवा प्रभुमां शुद्ध ज्ञानादि गुणो छे तेवा पोताना आत्मामा सत्ताथी गुणो छे. प्रभुनी श्रद्धा प्रीतिथी पभुना गुणो प्राप्त करवामाटे प्रभुपूजानी आवश्यकता छे. प्रभुनी पूजा भक्ति करतां आत्मामा रहेला सद्गुणो प्रगटे छे अने आवरणो टळे छे. प्रभुना जे जे गुणोनुं बहु मान स्तवन करवामां आवे छे ते ते गुणो पोताना आत्मामां तिरोभावे-सत्ताए रहेला होय छे ते प्रगट थाय छे. प्रभुना गुणोनुं बहुमान पूजा ते वस्तुतः पोताना आत्मानी पूजा छे. कारण के तेथी पोताना आत्मानी शुद्धि थाय छे अने गुणो प्रगटे छे.
ज्यारथी मनुष्यो छे त्यारथी गमे ते भाषामां अनेकरीते प्रभुनी स्तुतिद्वारा पूजा करवानो रीवाज प्रवां करे छे. श्री ऋषभदेव प्रभुथी ते श्रीमहावीर प्रभुनी पूनाओ ते ते कालमां ते ते देशमां प्रचलित भाषाद्वारा थती हती. प्रभुनी पूजामां मुख्यभाव प्रेम होय छे अने ते गमे ते भाषाद्वारा बहार आवे छे. प्रभुना गुणोनी श्रद्धा प्रीति भावनाने भक्तो गमेतेभाषाद्वारा वहार प्रगट करे छे. पूर्वे संस्कृत भाषा अने प्राकृत भाषाद्वारा जैनो प्रभुनी पूजानां गानो गाता हता. संस्कृत प्राकृतभाषादिद्वारा प्रभुनी पूजा अने वतादि गुणोद्वारा थती प्रभुण्जाद्वारा जैनो प्रभुनी भक्ति करता हता. सोळमा वा सत्तरमा सैकाथी गुजराती भाषामां प्रभुनी पूजाओ रचावा लागी, श्रीसकलचंद्र उपाध्याये श्रीसत्तरभेदी पूना रची ते पहेलांनी पूजाओ रचेली न जाणवामां आवे त्यां सुधी गुजराती भाषामा प्रथम पूजाना रचयिता श्रीसकलचंद्र उपाध्यायजी गणावाना. श्रीसकल. चंद्रजी उपाध्यायजी पश्चात् श्रीयशोविजयजी उपाध्याय, श्रीज्ञानविमलमूरि, श्री विजयलक्ष्मीसूरि, श्री पद्मविजयजी पंन्यास, श्रीरूप.
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