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तप जाणो श्रेष्ठ पवित्रजो द्रव्य० ॥ ४ ॥ दुर्गुण दोषने सर्व व्यसनने टाळवां उपकारी कर्मों करवां सही दुःख जो; लाभालाभमां मान अने अपमानमां, समताप रहीए ने सहीए भूखजो द्रव्य० ॥ ५ ॥ रोगी आदि जीवोनां दुःख टाळवा, तनमन धनशक्तिनो देवो भोगजो परमार्थों करवामां स्वार्थी होमवा, एवो साचो दुष्करतपनो योगजो. द्रव्य० ॥ ६ ॥ फलनी इच्छा राख्या वण परमार्थनां करवां कृत्यों त्यागी जयने द्वेषजो, खेद विना शु धर्मप्रवृत्ति धारी, साध्योपयोगे मुक्तिनो उद्देशजो द्रव्य० ॥ ७ ॥ नामरूपमां निर्मोही वनी वर्त, सर्वशुजाशुन इच्छानो करी रोधजो; अर्पाइ जावुं गुरु आदिभक्तिमां, योग्यजनोने देवो घटतो बोधजो द्रव्य० ॥ ८ ॥ प्रायश्चित्तने विनये वैयावृत्यथी, स्वाध्याय ध्यानयी प्रकटे आत्मशुद्धिजो; देहादिकमां निर्मोही थे वर्ततां प्रगटे आतमनी नवक्षायिकलब्धिजो. द्रव्य० ॥ ९ ॥ मनवाणीने कायाथी तपयोग बे, तपथी शुद्ध करो आचार विचारजो: बुद्धिसागरप्रभुमहावीरदेवनो, जाख्यो तप एवो छे जगसुखकारजो द्रव्य० ॥ १० ॥ ॐ तपोलाभाय जलं य० स्वाहा ||
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