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चिंतव्यु सिद्ध थतुं निर्धारी, जोशो शास्त्रो विचारी; जवू नहीं जन्मने हारी.
ब्रह्म०४ शेठ सुदर्शन वर्या शिवनारी, मैथुन इच्छा वारी; जंबू स्थूलनद्र धन्य अवतारी; नेमिजिन सुखकारी; मैथुन छे बलहारी.
ब्रह्म० ५ मनवचकाया धरो अविकारी, आतममां सुखधारी; बुद्धिसागर ब्रह्मचारी सिद्ध, थातो जग उपकारी; महावीर आणाधारी.
ब्रह्म०६ ॐ परम दीपकं यजामहे स्वाहा ॥
पंचमी परिग्रहनिवारकधूपपूजा. जावथी मूर्छा परिग्रह, द्रव्यथी नवविध जाण; परिग्रहत्यागथी मुक्ति छ, निर्ममता सुख मान. ॥१॥ परिग्रहमोह त्यां प्रभु नहीं, परिग्रह पाप- मूल; आत्मप्रभु प्रीतिविना, मूढ करे महाभूल. ॥२॥
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