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अपध्यानाचरितने परिहरीए--, चउविकथा पाप नहीं करीए; प्रमादाचरित दूषण हरीएरे. महावीर० २ हिंसाप्रदान न आचरीए, पाप उपदेशथी पाछा फरीए; एम अनरथदंडने परिहरीएरे. महावीर०-३ निजस्वार्थविना अनरथकारी, शस्त्रादिब्रूटी परिहारी; तजीए को उपद्रवकारी रे. महावीर०-४ वेश्यादिक नाटक त्यागीजे, यूतादिकथी दूर भागीजे; गुण व्रत आदरमा लागीजेरे. महावीर० ५ कंदर्प कौकुच्य वे अतिचारो, मुखरी अधिकरणने झट वारो; भोग अतिरिक्त अतिचारने वारोरे. महावीर० ६ निंदी गीं सह अतिचारो, मानवभव फोगट नहीं हारो; बुद्धिसागर आतम तारोरे. महावारण ७
ॐ प० अक्षतं यजामहे स्वाहा ॥
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