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ज्ञानश्रद्धा वण जग, गर्भे रह्यां नरनार, विमलाचल दर्शन स्पर्शनथी, गर्भबाहिर नरनार जगत्मां० ॥ १ ॥ लाखवार नवकारने गणवा, स्नात्र करीए पंच, सात छठ बे अट्टम करतां, - रहे न कर्मनो रंच. जगत्मां० || २ || सिद्ध अचल आतम सिद्धाचल, असंख्य प्रदेशी उदार; शत्रुंजय आदि अंत रहित जे, भावतीर्थ आधार जगत्मां० ॥ ३ ॥ एकशत आठे टुंक भलेरी, मोटी एकवीश खास; । शत्रुंजय बाहुबली मरुदेवी, पुण्डरीक नमीए उल्लास. जगत्मां० ॥ ४ ॥ रैवतगिरि टुंक पांचमी वन्दु, सिद्धक्षेत्र शिवराज; छहरी पाळी यात्रा कर्याथी, प्रगटे शिवसाम्राज्य जगत्मां० ॥ ५ ॥ निमित्तने उपादान जे तीर्थबे, शत्रुंजय सुखकार: द्रव्यभावथी पूजंतां प्रभुप्राप्ति बे निर्धार. जगत्मां० ॥ ६ ॥ द्रव्य ते भावनो हेतु बेरे, कारणे कार्य सधाय; बुद्धिसागर तीर्थनोरे, अनन्तगुणो महिमाय जगत्मां० ॥ ७ ॥
काव्यम्
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सरसशान्तिसुधामृतकारकं, जननमृत्यु महोदधितारकम् । सकलकर्मविपाकनिवारकं, गिरिवरंविमलाचलकं स्तुवे ॥ ए काव्य प्रत्येक पूजा दीठ कहेवुं.
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