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१८० बुद्धिसागर ब्रह्ममां, चिदानन्द शिवशान्ति. परम ५ ॥ॐ ह्री श्री परम० सुगन्धचूर्ण यजामहे स्वाहा ॥
अष्टमी मायानिवारकस्वस्तिकपूजा. माया पापनो वेलडी, सर्वकर्मनी खाण; तप जप संयम फोक सहु, दंभ छतां दिलजाण.१ कपट करीने मल्लिजिन, पाम्या स्त्री अवतार; दंभथी दिलनी न शुद्धि छे, कपट तजो नरनार.२
(मुखडा क्या देखे दर्पणमें. ए राग.) जिनवर महावीर छो जयकारी, मारी नौका ब्रूडतां तारी. जिन ॥ कपटकलानी क्रिया निवारी, शुद्ध थया सुखकारी; तेथी तुजपर लगनी लगाडी, माया जाणी नगरी.
जिनवर? मायाथी नहीं बुद्धि सारी,
र्गुण दोषनी क्यारी; माया महाधूतारी नारी, दुनियानी खानारी.
जिनवर०२
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