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आणीए प्रभु० ॥ ७ ॥ मोहादिककर्मो झट विण से, मानवजव नहिं हारिए; प्रभुनी साथे तन्मय थैने, मोही मनमुं मारीए. प्रभु० ॥ ८ ॥ गृही त्यागीने आवश्यक छे, नित्यनी करणी कीजीए, बुद्धिसागर मंगलमाला, परमानंदपद लीजीए. प्रभु० ॥ ९ ॥ ॐ० प० कायोत्सर्गाराधनार्थ ज० य० स्वाहा ॥
छट्टी प्रत्याख्यानावश्यक पूजा.
बहु आवश्यक करो, भावे प्रत्याख्यान: द्रव्यभाव वे कर्मनो नाश यतो जवी जाण ॥ १ ॥ सर्व शुभाशुभवांबना, त्याग ज प्रत्याख्यान; निश्चयथी ए आदरे, प्रगटे केवलज्ञान ॥ २ ॥ आसक्तिनो त्याग ते निश्चय प्रत्याख्यान; रागद्वेषने परिहरे, प्रत्याख्यान प्रमाण ॥ ३ ॥ द्रव्यथी प्रत्याख्यानना, अनेकनेदो जोय; साध्यतणा उपयोगथी, साधन सफळां होय. ॥ ४ ॥ आतम ताबे मन थतां वर्ते प्रत्याख्यान; ग्रहणत्यागबुद्धिविना, सहजयोगथी
मान. ॥ ५ ॥
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