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नवमी अकिंचनधर्मपूजा. मूछीपरिग्रहग्रहथी, मुक्त थतां छे मुक्ति; अकिंचन ते धर्म छे, त्यागीनी ए रीति. ॥१॥ द्रव्यनावपरिग्रहथकी, न्यारा व संत; आत्मानंदरस अनुभवे, नमो नमो गुणवंत. ॥ २ ॥ मूर्छावण न परिग्रही, उपयोगी मुनिराज; उपधि देहादिक बतां, निःसंगी शिरताज. ॥३॥
( दान सुपात्रे दिजेहो भवियां, दान सुपात्रे दीजे. ए राग.)
परिग्रहमूर्होत्यागी हो मुनिवर, परिग्रह मूी त्यागी; अंतर बाहिर ममता रहित थे, वर्ते डे वडभागी हो. मुनिवर ॥ परिग्रहः ॥१॥ नवविध परिग्रहमां नहि ममता, वर्ते सकलपर समता; देहादिकगच्छसंगी उतां पण; निःसंगज्ञाने रमता हो. मुनिवर ॥ २ ॥ साधन उपयोगी उपधि सहु, ज्ञानी न त्यां बंधाता; तारु तरे जेम सरवरमांही, संवर भावे सुहाता हो. मुनिवर ॥ ३ ॥ मूर्छा ए ले सर्वे उपाधि, भूविण निरुपाधि; ज्ञानीने आस्रव पण संवर, उपयोगे नहि आधि हो, मुनिवर० ॥४॥ जदयां शुजाशुभभाव रहित जे, ते नहि जग
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