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वीतरागभावे परिणमीने-, निःकर्मा थै जावो हो.
आतम० ५ मेतारज बाहुबलि सुकोशल-, पेठे मन स्थिर लावो; स्कंधकसूरिना पांचसे शिष्यो-, पेठे समता पावो हो,
आतम०६ शुद्धातम उपयोगे निर्लेप-, आपोआपने नावो; स्वाधिकारे कार्य करतां, निष्क्रिय अंतर थावो हो.
आतम०७ संवरभावे आतमशुछि,करवामां लय लावो, बुद्धिसागरब्रह्मस्वरूपे,आतमने प्रणमावो हो.
आतमा ८ ॐ प० ज० य० स्वाहा ॥
॥ नवमीनिर्जराभावनापूजा। द्वादशधा तप निर्जरा-,तत्त्व कर्मक्षयकार; कर्मनिकाचित झट टळे, मुक्ति लहे नरनार. ॥१॥ सर्वकर्म क्षय जे करे-,तप ते तपो नरनार;
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