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वोरप्रभु जिन तप तप्या-,धन्नादिक अनगार.॥२॥ ज्ञान- फल छ निर्जरा-,निर्जराथी छे मुक्ति; पञ्चाशलब्धि उपजे-निर्जरा भावना युक्ति.॥३॥ (प्रभु सुप्रतिरे सुमति आपो प्यारा. मुज पाणतणा
आधारा. ए राग.) प्रभु महावीररे मुज मन मन्दिर स्वामी, पूजु वंदु बातमरामी-॥ इच्छारोधकतप तप्या भारोरे,बारवर्ष अधिक हितकारी रे शुक्लध्यानेरे केवल लही उपकारी-, थया सर्व जगत् हितकारो. प्रभु०१ बहिरन्तर षड् षड् भेदरे, नावो भावना धारी उमेदरे; राग रोषने टाळो खेदरे, तप तपशोरे अंतर बनो निष्काम); मुक्तिवरवाना थै कामो.
प्रभु०२ सेवाजक्तिज्ञानना योगेरे, अशुजवृत्तिकर्मवियोगेरे; मोक्ष बुद्धेरे सकामतप जयकारी,धर्मकमें मुक्ति थनारी.
মুম্বই
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