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१०८ क्रीडा करतारे आनंदथीज विचरता, त्रएयज्ञानी प्रभु शुभ करता. प्र०४ प्रभु शाळामां लीलाए जावेरे, गृहगुरुने त्यां समजावेरे; शब्दशास्त्रनो रचना थावरेत्यां इन्द्रेरे आवी प्रभुने वखाण्या, सर्वलोकोए सर्वज्ञ जाण्या. प्रजु० ५ प्रभु यौवनवयने पावेरे, यशोदासाथ लग्न ज थावरे; त्रिज्ञानीरे महावीर प्रभु गृहवसिया-, बुद्धिसागर शिवसुखरसिया. प्रभु० ६
ॐ ह्री श्री परम पूरुषाय, परमेश्वराय जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जन्म कल्याणके जलं० या स्वाहा
॥त्रीजी महावीरदीक्षाकल्याणकपूजा ॥
दुहा. नंदिवर्धन मोटका,-भाइ सद्गुण खाण; बेन सुदर्शना सदगुणी, सुपार्श्व काका जाण. ॥१॥
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