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સર
विषयो मांही शुभाशुजवृत्ति, थाती न उपयोगकाळे; शुभाशुभ परिणाम विना तो, विषयो न जीवने मारे हो. दिलथी ज्ञानी० ३
शुभाशुनपं जड विषयोमां-,
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ज्ञानी न माने क्यारे; तीव्रनिकाचित पुण्यपापफल, जोगवे उपयोग धारे हो. दिलथी ज्ञानी० ४ रागशेष वण बाह्यमां छे नहीं, प्रतिबन्ध, ज्ञानीने क्यारे; कर्म न बांधे निर्जरे बहुलां, मोहने जीती मारे हो. आकाशपेठे निर्लेप भाळे,
दिलथी ज्ञानी० ५
आतमजावने धारे; बुद्धिसागर अप्रतिबन्धी-, मौन हे छे भारे हो.
दिलथी ज्ञानी० ६
॥ सोळमी अनासक्तिगुणपूजा ॥ भोगादिकमां तृप्ति नहि, जाणी मनमां विरक्त, परानुरोधप्रवृत्ति पण, यांतर नहि खासक्त. ॥१॥
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