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गुण जरिया, बुद्धिसागर मुनि केशरिया, निष्कपटी केवल वरियारे. एवो० ॥ ८ ॥ ॐ ह्रीं श्री - आर्जप्राप्त्यर्थं जलं यजामहे स्वाहा ||
चतुर्थी मुक्तिधर्मपूजा.
लोन तजे सर्वे तज्युं, लोज टळतां मुक्ति; जड लोभे नहीं मुंझता, तेने नहीं छे भीति. ॥ ॥ लोभ तज्याथी जीवतां, मुक्ति अनुजव थाय; जीवंतां मुक्ति नहीं, देह तजे शुं ? पाय. ॥ २ ॥ सर्वप्रकारे लोभनो, कीधो जेणे त्याग; जीवंता ते मुक्त बे, सिद्ध बुद्ध वडभाग ॥ ३ ॥
( वीरकुमरनी बातडी कोने कहीए. ए राग.)
वीरप्रभु परमातमा जयकारी, जे वे विश्वविषे उपकारी; प्रतिबोध्यां नरने नारी, भजो मुक्ति हेत; लोभ तजीदो साधुओ सुखकारी ॥ १ ॥ लोनथी मुक्त ते मुक्त छे नरनारी, तजो लोभने महादुःखकारी; रहो निःसंग मनमुं धारी, रही जग समजाव. लोभ० ॥ २ ॥ मूर्च्छा परिग्रह जाएशो वीर बोले,
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