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२४८ साचीरे, असंख्ययोगनी प्रवचन माता, रहेशो तमां राचीरे। जिनवर०॥१॥ ज्ञानने भक्ति कर्म उपासना, हठयोगादिक योगोरे, त्रणगुप्तिमां सर्व समाता, जेथी रहे नहीं भोगोरे॥ जिनवर०॥२॥ गृहस्थ त्यागी बेने हितकर, योगक्षेम प्रदातारे; सिद्धया सिद्धशे सिके तेओ, पाळी प्रवचन मातारे ॥ जिनपर० ॥३॥ नावथकी त्रण गुप्ति साधे, मुक्ति अनुभव आवरे, द्रव्यने भावथकी निजमुक्ति, सहजानंद सुहावरे; ॥ जिनवर ॥४॥ रागद्वेष संकल्प विकल्पो, दूर थतां मनगुप्तिरे, निर्विकल्प स्वभावे समाधि, केवल प्रगटे शक्तिरे ॥ जिनवर ॥५॥ आतम ज्ञानोपयोगे रहेतां, समिति गुप्ति पासेरे, ज्ञानी सर्वे कमों करतो, ज्ञाने गुप्ति उपासेरे ॥ जिनवर० ॥६॥ ज्ञानी समिति धारे ज्या त्यां, द्रव्यनावथी जाणीरे, उत्कृष्टभंगे क्षणमा मुक्ति, नाखे केवलज्ञानीरे॥ जिनवर० ॥७॥ समिति गुप्ति साधे सर्वे, योग सधाता जाणोरे, बुद्धिसागर आत्म उजागर, प्रगटे नाव प्रमाणोरे ॥ जिनवरा॥
ॐ ह्रीं श्रीपरमपुरुषाय, परतोश्वराय, जन्मजरा मृत्युनिवारणाय, श्रीमते जिनेन्द्राय, चारित्राचार साभार्थ पूजार्थ च जलंण् य० ॥ स्वाहा ॥
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