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अप्रमार्जित आदि उच्चारपासवण भूमि विचारोरे.
प्रभु० ७ नोभणाजोए पांचमो जाणो, पंचने झट परिहरीएरे; बुद्धिसागर आत्मरमणता--, पुष्टि पौषध वरीएरे.
प्रभु० ८ ॐ प० ध्वजय० स्वाहा.
बारमा अतिथिसविभागवते त्रयोदश
मीफलपूजा.
दुहा. अतिथि संविभागवत-, बार, छे सुखकार; स्वर्गने शिवफल आपतुं, उच्चरीए हितकार. १ हर्षाश्रु गदगद वचन, रोमांच विकसित थाय; मुनिवरने वहोवरावतां, श्रावक मुक्ति पाय. २ सञ्चित्त निक्षेपने पिधान, व्यपदेश मत्सर चार, कालातिक्रम पांचमो, पांच तजो अतिचार. ३ पौषधपारणे व्रततणो,-आचरवो आचार; वहोराचीने जमे पछी-,श्रावकव्रतव्यवहार. ४
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