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अढारमी विनयगुणपूजा.
दुहा. विनय धर्मनुं मूल छे, विनये ज्ञान पमाय; विनय सहु गुणमां वडो, विनये सिद्धि थाय॥१॥
श्री दर्शन पद पामे प्राणो. ॥ राग. विनये सेवा भक्ति प्रगटे, प्रगटे केवलज्ञानरे; वैरादिकदोषो सहु शमता, धर्मी बने भगवानरे; विनयी बनो जगमा नरनारी. दर्शनझानचरणतपविनये, गुरुविनये गुण थायरे;
औपचारिकविनये, दुर्गुण दोष पलायरे. विनयो. २ अच्युत्थान प्रणाम ने आसनदेवं वंदन गुरु बोलेरे; सांभळवो अनुगमने साधन, गुरु सेवे गण अमोलरे. विनयी०३ मातपितावृद्धधर्मगुरुनी, सेवानक्ति करंतरे;
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