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४११ ( अनिहारे न्हवण करो जिनराजनेरे-ए देशी.)
अनिहारे वास्तुकपूजा शुभ कीजीएरे, तजी अवरदेवनी आश; सत्पात्रे दानने दीजीएरे, सूत्रश्रवणरुचिअनिलाष, श्रीसंखेश्वरप्रभुपासजीरे. ॥१॥ भवी भावे - द्रव्याथिकनये करीरे, शाश्वत ले लोकालोक; कर्ता तेहनो को नहिरे, केम कर्ता मानीए फोक. श्रीसंखे ॥२॥ उर्ध्व अधो अने तीरा लोकनीरे, स्थिति छे अनादिअनंत; कर्ता तेहनो को नहींरे, एम भाखे श्रीभगवंत. श्रीसंखे० ॥३॥ नवतत्त्व षड्द्रव्य छे नित्य शाश्वतारे, द्रव्य गुणप
यस्वरूप; बे भेदे जीव दाखियारे, तस लक्षण ठे चिद्रप. श्री संखे ॥४॥ परिणामी पुद्गल जीव बे जाणीएरे, अनादिसंबंध विचार; कर्ता कर्मनो आतमारे, तेम नोक्ता हृदये धार. श्री संखे ॥५॥ शुनाशुभकर्म ग्रही भोगी आतमारे, वेदे शाता आशाता दोय; देव मनुष्य नारक तिरिरे, चउगतिमां नटके जोय, श्रीसंखे ॥६॥ जीवे कीधां पुण्य पाप ते भोगवेरे, परपुद्गलसंगे खास; राच्यो माच्यो पुद्गलमां वस्योरे, बन्यो पुद्गलनो जीव दास; श्री संखे० ॥ ७ ॥ प्रभुपूजा करतां प्राणिया सुख लहेरे, नासे कर्माष्टकपाश; स्वामीवच्छल नवकारशीरे, हेतु
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