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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७३ मुक्ति नहीं, साधे कोटि युक्ति, ॥ २ ॥ सर्वधर्म मतपंथमा, समत्वथी बे मोक्ष; समत्वपणुं सहु धमां, मुक्तिभाव परोक्ष. ॥ ३ ॥ सर्वव्रतादिक सार छे, समता धारो भव्य; समत्व सामायिक भलुं, आवश्यक कर्तव्य. ॥ ४ ॥ नयव्यवहारथी बेघमी, आराधो नरनार, निश्चयसमता हेतुछे, सेवो भवि सुखकार. ॥ ५ ॥ चउनिक्षेप धारीए, सातनये ते जाण; द्रव्यजावथी सेवतां, प्रगटे सम्यग्ज्ञान. ॥ ६ ॥ समताभावछे सर्वदा, त्यागीनिश्चयभाव; समता ते चारित्रछे, उपयोगे दिल लाव. ॥ ७ ॥ ( प्रभुपडिमा पूजीने पोसह करीएरे - ए राग. ) समताभावे सामायिकमां रहीएरे, सामायिक योगे शिवसुख थाय छे; समजावे रहेवाथी अनुभव जागेरे, स्थिरताना योगे तत्त्व जणायडे, अंतरना उपयोगे धर्म ग्रहाय छे, चंचळता मननी दूरे जाय छे; वैराग्ये जाव भलो परखाय छे, धन्य धन्नरे समताजा सुहाय छे. अंतर० ॥१॥ गुरुमुखथी सामायिक उच्चरे श्रावकरे, लाखचोराशी जीवयोनिने खमावतो; दश मनना दश वचनना द्वादश कायारे, बत्रीशदोषो टाळी आतम भावतो. अंतर० ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008634
Book TitlePooja Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages620
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size24 MB
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