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॥ छट्ठी अशुचिभावनापूजा ॥ अशुचिथी तनुनयु-,त्यां शुं ? करवो राग; तनुरूपमा शुं राचकुं-ज्ञानी धरे वैराग्य. ॥१॥ नरनारी नवबार छे, अशुद्धिद्वार विचार; तनुनो मोह निवारीने; धर परमेश्वर प्यार. ॥२॥ चिदानंद आतमसमो,-पवित्र नहि जग कोय; जोगादिक अशुचिभर्या-,समजे मोह न होय॥३॥ (॥ भावना मालती चुसीए ॥ ए राग. विरतिए सुमति धरी
आदरो. ए राग.) वीरजिनेश्वर पूजीए-, मुंझोए नहीं देहमांह्यरे; चामडोरागे न राचीए-, माचीए नहीं जडमांडरे. वीर०१ देहना रूपे न रोझीए,भीजीए वैराग्यमांडरे, देह पवित्र न कोइन, देह अशुचि जिहां त्यांयरे, वोरण २ कायागारव नहीं कीजीए, सीझीए धरी गुणरागरे,
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