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३७७ अवतरवू, प्रनु प्रार्थी निश्चयपद वरवं. जग ॥९॥ प्रभु वीरबोध मनमां वसियो, चोविशजिन स्तवनानो रसियो; बुद्धिसागरप्रभु उल्लसियो, शुद्धातम जावे विकसियो, जग ॥ १० ॥
प० चतुर्विंशतिस्तव आराधनार्थ जलंग य० स्वाहा ॥
तृतीया गुरुवन्दन आवश्यकपूजा,
दुहा, आवश्यक गुरुवन्दना, प्रतिदिन त्रएये काल, करतां ज्ञानादिक गुणो, प्रगटे मंगलमाल. ॥१॥ श्रद्धा प्रीति नावथी, गुरु वंदंतां ज्ञान; गुरुवण ज्ञान न थाय छे, गुरुवण होय न सान. ॥२॥ विधिपूर्वक गुरुवन्दना, करतां नासे कर्म; शुद्धातम घट उल्लते, प्रगटे साचो धर्म. ॥३॥ गुरुदीवो गुरुदेव के गुरुनो सत्याधार, गुरुवण मुक्ति न कोइनी, समजो नरनेनार. ॥४॥ वंदो पूजो सद्गुरू, प्रणमो वारंवार; सूरिवाचक यतिसंघनी, भक्ति सदा फळनार. ॥५॥
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