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१२२ ज्ञानसेवा नक्ति सत्कर्मने-, असंख्ययोग पसारी.
महावीर ४ असंख्यश्रुतदृष्टिसापेक्षा, समजावी हितकारी; मिथ्यादृष्टिनो मोह टाळ्यो, देशना देइ सुखकारी. महावीर ५ तुजमां लगनी लागी भारी-, प्रगटी प्रेम खुमारी; कोटि उपाय करे को कुतर्के,उतरे न होये उतारी. महावीर० ६ आत्ममहावीर शुद्धि करवा, तुजमां लगनी लगाडी; चारनिक्षपे भक्तिथी तुजमां, अंतत्ति जगाडी. महावीर ७ पंचकल्याणक प्रेमे गायां, पूजा रची जयकारी; गाम गोधावी महावीरमन्दिर-, वांद्या प्रभु हितकारी. महावीर०८ वीरजिनेश्वरपट्ट परंपरा-, तपगच्छ गगनविहारी;
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