________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रगटे नहींजी, समता आनंदभोग. महावीर० ॥२॥ खंधकशिष्यो पांचशेजी, प्राणांते समनाव, मोहने मार्यों बेवटेजी, धन्य ए समतादाव. महावीर ॥३॥ मुनिमेतार्य समपणुंजी, धायु छंडयो देह, शुभाशुभ बुद्धि विनाजी, पाम्या मुक्तिगेह. महावीर ॥४॥ समताभावने आदयोंजी, गजसुकुमाल मुनीश, देहनी ममता परिहरीजी, सोमिलपर नहि रीस, महावीर० ॥ ५॥ अन्यतीर्थियो पण लहेजी, समताभावेरे मुक्ति, समता ते पाम्या पछीजी, नहीं तपकिरिया रीति. महावीर० ॥ ६ ॥ दर्शन ज्ञानचरण सकलजी, समतामांही सुहाय, समता प्रगटे सिद्धताजी, एकपलकमां थाय. महावीर ॥ ७॥ काने खीला मारियाजी, पगपर रांधीरे खीर; तो पण समभावे रह्याजी, परमेश्वर महावीर. महावीर॥ ८॥ पार्श्वप्रन्नु समता धरीजी, कमरे की. धोरे रोष; नासापर जल आवियुंजी, तोपण रोष न तोष. महावीर ॥९॥ वृत्ति शुभाशुभ नहीं रहेजी, प्रगटे केवलज्ञान; आपोआप प्रभु विजुजी, चिदानन्द नगवान्. महावीर ॥१०॥ ग्रहणत्यागइच्छा न. हीजी, वर्ते पूर्वप्रयोग, समभावे शुद्धातमाजी, चि. दानंद गुणभोग. महावीर० ॥ ११ ॥ शुभाशुभवृत्ति
For Private And Personal Use Only