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वृत्ति शमावो, पामो यात्मिक ऋद्धिहो. जगमा० ॥५॥ चाममीरागी जन चाममिया, आतमना नहि प्रेमी; आतमरागी जग वैरागी, वर्ते योगी देमी हो. जगमांग ॥ ६ ॥ आतमरागी प्रेमी ज्ञानी, भक्त संत मुनिराया; शुद्धब्रह्ममा निशदिन रमता, प्रणमो सेना पाया हो. जगमा० ॥७॥ निराकार शुद्धातम ब्रह्ममां, रम, ब्रह्म भावे, पूर्णानंदनी मोंझे रमतां, पोते प्रभुजी सुहावे हो. जगमांग ॥८॥ ब्रह्मरसे रसिया मुनिवरजी, बाह्यरसे दूर खसिया; एकवार आतम आनंदरस, पाम्या ब्रह्म उबसिया हो. जगमांग ॥ ९॥ ब्रह्मचर्यथी शक्ति अनंती, नासे दूरे रोगो, ब्रह्मचर्य छ सर्वनुं जीवन, एथी सबळा योगो हो. जगमांग ॥ ११ ॥ द्रव्यथी भाव अनंतगुण उत्तम, कारणे कार्यनी सिद्धि, अष्ट सिद्धि नवनिधियो प्रगटे, यात्मिक क्षायिक लब्धि हो. जगमां ॥११॥ इन्द्रा. दिक सहु देवो पूजे, ब्रह्मचारीने रागे; मुनिवरसेवा भक्ति करतां, ब्रह्मवत दिल जागे हो. जगमांग ॥ १२ ॥ भावब्रह्मधारी उपकारी, भोगी जेह अभोगी; बुद्धिसागर ब्रह्म अलखने, पूर्ण जगावे योगी हो. जगमां ॥ १३ ॥
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