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नगर पुरदेशमां शांति, वर्तो प्रभुप्रतापे; आधि व्याधि संकट टळतां, प्रभु महावोरजापे ॥ १५ ॥ सर्व जमां शान्ति वत, धर्मी वनो नरनारी, दोषो क्षय पामो भक्तिथो, जनो बनो उपकारो; झघडा युद्धो उपशम थाओ, वृष्टि थशो मनमानी; पुण्यकर्म वधशो जगमांहि, वधशो शक्ति मझानो. ॥ ४६ ॥ तपगच्छदार विजयसूरिजगगुरु, - पट्टपरंपराधारो; पूज्यगुरुर विसागर प्रगट्या, सर्वोपमजयकारी; शान्तिदायक सुखसागरगुरु, घरघरमंगलकारी; बुद्धिसागरसूरि आशो, शान्ति लहो नरनारी ॥ १७ ॥
फूल तथा केशरवाळा चोखाथ प्रभुने वधाववा.
पठी सिंहासनमांथी प्रभुजी तथा सिद्धचक्रजीने लइ चोखा पाणीथी पखाळ करी त्रण अंगलुहणां करी केशर (चंदन) श्री पूजा करी फूल चढाववां अने सिंहासन मध्येनी केवीमांथी पाणी काढी नांखी धोइ साफ करी फरी केशरना स्वस्तिक करी पंधराववा. आरती मंगळदोवो प्रगटावी बन्ने नामाछडी
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