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॥ द्वितीया स्थावरतीर्थपूजा॥
चोपाइ. शत्रुजय बीजु गिरनार, समेतशिखर अष्टापद चार, आबु पंचतीर्थ डे सार, वन्दु पूजु वारंवार. ॥१॥ (सिद्धचक्रपद सेवा कीजे नरभव लाहो लीजेजी. ए राग. ) स्थावरतीर्थमां सर्वथी मोटुं, शत्रुजय जयकारीजी; रैवत सम्मेत अष्टापदने, आबु छे सुखकारी-यात्राकरीएजी; वारी सर्व प्रमाद, भक्ति धरीएजी. पंचतीर्थयात्रापूजाथी, आतमशुद्धि करीएजी; निरुपाधिकता अनुभव आवे, गुरुसाथे संचरीए. यात्राणवारो॥२ तारंगा श्रीअजितजिनेश्वर, श्रीसंखेश्वरपासजी; पाटणमां पंचासराप्रभुजी, पूजे होय गुणवास. यात्राणवारो०३
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