Book Title: Jain Sahitya ma Gujarat
Author(s): Bhogilal J Sandesara
Publisher: Gujarat Vidyasabha
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन आगम साहित्य मां गुजरात Jan Education गुजरात विद्यासभा : अमदावाद Menelibrary ord Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संशोधन प्रन्थमाळा - ग्रन्थांक ८ मो शेठ पूनमचंद करमचंद कोटाबाळा - ग्रंथमाला ग्रं. १ शेठ भोळाभाई जेशिंगभाई अध्ययन - संशोधन विद्याभवन जैन आगम साहित्यमां गुजरात लेखक डॉ. भोगीलाल ज. सांडेसरा, एम. ए., पीएच. डी. अध्यक्ष, गुजराती विभाग, महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा; गुजराती अने अर्धमागधीना भूतपूर्व अध्यापक, भो. जे. विद्याभवन, गुजरात विद्यासभा, अमदावाद गुजरात विद्यासभा : अमदावाद Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक: रसिकलाल छो. परीख, अध्यक्ष-भो. जे. अध्ययनसंशोधन विद्याभवन, गुजरात विद्यासभा, भद्र, अमदावाद आवृत्ति पहेली वि. सं. २००८ प्रत ५०० की. रू. पांच मुद्रक : जयन्ती घेलाभाई दलाल, वसंत प्रिन्टिंग प्रेस, घीकांटा रोड, सिबिल हास्पिटल सामे, घेलाभाईनी वाडी, अमदावाद Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवेदन गुजरात विद्यासभाना भो. जे. अध्ययन-संशोधन विद्याभवनमा जे संशोधन-ग्रंथो तैयार करी प्रकट करवामां आवे छे तेनुं एक अंग जुदा जुदा धर्मो अने संप्रदायोनुं साहित्य संशोधननी शास्त्रीय दृष्टिए तैयार कराववानु छे. आ कार्यमां शेठ पूनमचंद करमचंद कोटावाळा टूस्टना वहीवटदारो शेठश्री प्रेमचंद क. कोटावाळा अने शेठश्री भोळाभाई जेशिंगभाई एमणे आ संस्थाने नीचे जणावेली शरते जैन साहित्यना ग्रंथो तैयार करी प्रकट करवा दान कयु छे. ए माटे भो. जे. विद्याभवन ट्रस्ट एमर्नु आभारी छे. शरत " जैन संस्कृतिनां तमाम अंगो--जेमके द्रव्यानुयोग आदि " चार अनुयोगोनुं, तेमज काव्य शिल्प कळा इतिहास आदिनु " साहित्य तैयार करावी प्रकट कर. आमां मूळ संस्कृत "प्राकृतादि ग्रंथोनां शिल्प आदिना सचित्र इतिहास वगेरेनो " समावेश करवो." उच्च अभ्यास अने संशोधन विभाग अंगे संशोधननी योजना विचाराती हती त्यारे गुजरातना इतिहासने महत्त्वचें स्थान आपवामां आव्यु हतुं. उपलब्ध साधनोने आधारे इतिहासने फलित करवानुं काम अने नवां साधनोने उपलब्ध करवानुं काम-ए बे कार्यदिशाओ स्पष्ट हती. पहेली दिशामां थयेला कामनी नोंध लेतां जणायुं के ई. स. १८५६ मा प्रकट थयेल रासमाळा अने ई. स. १८९६ मा प्रकट थयेला बॉम्बे गेझेटियर ग्रंथ १-खंड ए १ बे अंग्रेजीमां लखायेला ग्रंथोनुं हजी पण महत्त्व छे. रासमाळानो गुजराती अनुवाद गुजरात विद्यासभाए १८६९-७० मा प्रकट कर्यो हतो. गेझेटियर उपरथी गुजरातनो Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतिहास रेखा रूपे आ ज संस्थाए १८९८ मां प्रकट कर्यो हतो. आ अरसामा जे नवी सामग्री एकठी थती हती तेनो उपयोग करी अने पहेला संगृहीत थयेली सामग्रीनो नवेसरथी विचार करी इतिहास लखवाने अवकाश हतो; अने तेथी आ संस्थाए १९३७ - ३८ मां गुजरातनो मध्यकालीन राजपूत इतिहास' बे भागमां प्रकट कर्यो; अने १९४५ मां ' गुजरातनो सांस्कृतिक इतिहास ' - इस्लामयुग - पहेलो भाग प्रकट कर्यो. ए पछी १९४९ मां प्रो. अबुझफर नवीना उर्दूमा लखेला गुजरातना इतिहासना १ ला खंडनो अद्यतन अनुवाद २ भागमां प्रसिद्ध कर्यो. < प्रो. कोमिसेरियेटे अंग्रेजीमां गुजरातनां मुस्लिम राज्योनो इतिहास १९३८ मां स्वतंत्र रीते प्रकट कर्यो गुजरातनां साधनाने शोधी अने एना उपरथी मुस्लिम राज्य पहेलांना इतिहासनो पहेलो खरडो तैयार करवानो यश स्व. डॉ. भगवानलाल इंद्रजीने छे अने मुस्लिम राज्योनो इतिहास लखवामां सुरतवासी खा. सा. फझलुल्लाह लुत्फुल्लाह फरीदीनी मोटी मदद हतो, एम गेझेटियर उपरथी जगाय छे. स्व. रणछोड़भाई उदयरामे 'रासमाळा ' नो अनुवाद करतां अनेक सुधारावधारा अने पूर्तिओ मूळ ग्रंथमां उमेय हतां प्रो. होडीवाळा अने प्रो. कोमिसेरियटे मुस्लिम राज्योना समयना इतिहास माटे घणी सामग्री संशोधित करी छे. श्री. दुर्गाशंकर शास्त्रीए गुजरातनो राजपूत युगनो इतिहास लखतां तमाम सामग्रीनो लगभग उपयोग कर्यो छे; अने हमणां ज नवी आवृत्तिनी तैयारी करी अत्यार सुधीनां नवां संशोधनोनो पण समावेश करी आप्यो छे, जे हवे पछी थोडा ज समयमां प्रसिद्ध थशे. “काव्यानुशासन " नो उपोद्घात लखती वेळा पुराणकाळथी लई सोलंकी ओना समय सुधीनां यावदुपलब्ध साधनोना बळ उपर मारा तरफथी पण Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशेष स्वरूपे विचारणा करवामां आवी हती. श्री. रत्नमणिराव भीमराव गुजरातनो सांस्कृतिक इतिहास लखतां कांईपण ज्ञानसाधन रही न जाय एनी तकेदारी राखे छे. प्रो. अबुझफर नदवीए पण मुस्लिम बधा साधनोनो उपयोग करी सांस्कृतिक इतिहास लखी राख्यो छे. सामग्री उपरथी इतिहासने फलित करवानी दिशामां पिष्टपेषण करतां विशेष प्रगति करवी होय तो हवे नवां साधनोनी शोध करवानो अने एने उपलब्ध करवानो प्रयत्न थवो जोईए एम लागवाथी संशो. धन विभागे प्रारंभमां आ बीजी दिशामा कार्यक्रम योज्यो. १९३३ मां आचार्यश्री मुनि जिनविजयजीए गुजरात साहित्य सभाना मानार्ह सभ्य तरीके प्राचीन गुजरातना सांस्कृतिक इतिहासनी साधनसामग्री उपर विचारप्रेरक अने वृत्तिप्रेरक व्याख्यान आप्युं हतुं. ए मार्गे पोते असाधारण श्रम उठावी कार्य करे छे अने सिंघी जैन ग्रंथमाळामां अने ए पूर्वेनां एमनां प्रकाशनोमां पोते संशोधित संगृहीत सामग्री प्रकट कर्ये जाय छे. संशोधन विभागनी योजनामां बे खाणोमांथी साधनो बहार काढवानो अमारो कार्यक्रम ए ज दिशामां वीजो फांटो छे. एक खाण ते पुराणो अने बीजी जैन आगमो-नियुक्तिओ-भाष्यो-चूर्णिओ. आ बने आकरोमां इतिहासनां साधनो माटे जे 'खोदकाम' थर्बु जोईए ते थयेलं नहि; एथी आ दिशामां भो. जे. विद्याभवन तरफथी आदरवामां आवेली प्रवृत्तिना प्रथम फळ तरीके अध्यापक उमाशंकर जोषीए तैयार करेल पुराणोमां गुजरात ए ग्रंथ १९४६ मां प्रसिद्ध करवामां आव्यो, त्यारे बीजुं फळ ते आ जैन आगमसाहित्यमां गुजरात प्रसिद्ध थाय छे. ____ जैन आगम साहित्यमान लगभग पांच लाख श्लोक पूर संस्कृत प्राकृत साहित्य जोई वळी स्थळप्रतीको तारववान भिन्न भिन्न आगमो-अने ए उपरना साहित्यमांना उल्लेखोने एकत्रित करवान, Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक स्थळनां अने एक ज व्यक्तिनां जुदां जुदां नामोने एक स्थाने समाववान, अने एक ज नाम धरावतां जुदां जुदां स्थळो अने व्यक्ति ओने अलग अलग पाडवानुं इत्यादि काम घणो धीरज चीवट अने झीणवट मागी ले छे. आ दरेकने अवतरण प्रमाणोथी पुष्ट करी प्रत्येक विगतने एना प्राप्य प्रामाणिक स्वरूपमा नोंधवानुं विपुल-श्रमसाध्य कार्य प्रो. डॉ. भोगीलाल सांडेसराए साध्युं छे. आम करती वेळाए भिन्न भिन्न विद्वानोए रजू करेला मतो अने प्रमाणोनी विवेचनपूर्वक समालोचना करी शक्य होय त्यां पोतानो मत आ विद्वान संशोधके प्रमाणपुरःसर रजू को छे. आ कीमती ग्रन्थ पूनमचंद क. कोटावाळा ट्रस्टनी सहायथी प्रसिद्ध थाय छे, तेथी अहीं एनी सविशेष साभार नोंध घटे छे ता. १-'.-'५२ ) रसिकलाल छो. रीख अध्यक्ष, भो. जे. विद्याभवन, गुजरात विद्यासभा भद्र, अमदावाद Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रास्ताविक गुजरातना इतिहासने लगती सामग्रीना साधनग्रन्थो तैयार कराववानी गुजरात विद्यासभानी योजना अनुसार, 'पुराणोमां गुजरात'ना अनुसंधानमां आ 'जैन आगमसाहित्यमां गुजरात ' तैयार थयेल छे. जैन साहित्य अने तेमां ये जैन आगमसाहित्यनुं शास्त्रीय दृष्टिकोणथी अध्ययन अने संशोधन हजी बाल्यावस्थामां छे; ए साहित्यनी तथा एनी साथै संबंध धरावती परंपराओ तथा अनुश्रुतिओनी अनेक ते तपास ही हवे करवानी छे, अने ते कारणे, प्राचीन भारतीय संस्कृतिना अभ्यास माटे विविध दृष्टिए नवीन लागती माहिती तथा संशोधनना अनेक कोयडाओना उकेल माटे प्रयत्न करवा मेरे एवा रसप्रद मुद्दाओ एमांथी प्राप्त थाय छे. आ ग्रन्थमां आगमसाहित्यमाथी मळती प्राचीन गुर्जर देशना राजकीय अने सांस्कृतिक इतिहासना अभ्यासमा उपयोगी थाय एवी, भौगोलिक स्थळो, व्यक्तिविशेषो तथा अन्य विषयो - ' नेम्स अॅन्ड सब्जेक्ट्स ' -ने लगती सामग्री सूचिना रूपमा संकलित करी छे. I प्रारंभमां आपणे ए जोवुं जोईए के 'जैन आगमसाहित्य ' एटले शुं. साहित्यरसिकोमा पण केटलीक वार जैन साहित्य' अने 'जैन आगम साहित्य' ए बन्नेनी भेदरेखा पर वे एक प्रकारनो संभ्रम प्रवर्ते छेएम जोवामां आव्युं छे. 'जैन साहित्य ' एटले जैनो द्वारा रचायेलुं साहित्य, जेमां जैन धार्मिक विषयो उपरांत विविध बिनधार्मिक विषयो उपर पण जैनोए संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा प्रादेशिक भाषाओमां रचेला साहित्यनो समावेश थाय छे प्राचीन भारतीय वाङ्मयना ललित तेमज शास्त्रीय तमाम प्रकारोना नमूनाओ आपणने जैन साहित्यमां प्राप्त थाय छे. ' जैन आगमसाहित्य ' एटले जैनोना मूल धार्मिक ग्रन्थो - 'स्क्रिप्चर्स' अथवा 'कॅनन ' - तथा ते उपरनुं भाष्यात्मक अने Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टीकात्मक साहित्य. अर्थात् 'जैन आगमसाहित्य 'नो समावेश 'जैन साहित्य 'मां थई जाय छे. ११ अंग ( मूळ १२ अंग, पण एमांनु बारमुं अंग 'दृष्टिवाद' लुप्त थई गयेलं होवाथी ११ अंग ), १२ उपांग, ६ छेदसूत्र, ४ मूलसूत्र, १० प्रकीर्णक, तथा 'अनुयोगद्वार सूत्र' अने 'नंदिसूत्र' ए २ छूटा सूत्रो मळी कुल ४५ आगमग्रन्थो गणाववामां आवे छे. बीजी एक गणतरी अनुसार ८४ आगमो पण छे. अहीं ४५ आगमवाळी गणतरी अनुसारना ग्रन्थो लीधा छे. उपर कडं ते प्रमाणे, 'आगमसाहित्य 'मां मूल आगमग्रन्थो उपरांत ते उपरना तमाम टीकात्मक साहित्यनो समावेश थाय छे. टीकात्मक साहित्य चार प्रकारर्नु छ : नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि अने वृत्ति. मूल ग्रन्थो तथा ते उपरनां आ चतुर्विध विवरणोनो अर्थ एकसामटो व्यक्त करवा माटे केटलीक वार 'पंचांगी' शब्दनो प्रयोग करवामां आवे छे. मूल आगमग्रन्थो आर्ष प्राकृत भाषामां छे, जे सामान्य व्यवहारमा 'अर्धमागधी' कहेवाय छे. आगमोने वीतराग-तीर्थकरनी वाणी गणवामां आवे छे अने परंपरा प्रमाणे, ते गणधरभाषित अर्थात् सुधर्मास्वामी जेवा महावीरना गणधर अथवा पट्टशिष्य वडे व्याकृत छे. छतां भाषा, निरूपणरीति, शैली, गद्यपद्यना भेदो वगेरे अनेक रीते आगमोमां अनेक थरो मालूम पडे छे. 'नंदिसूत्र', 'दशवकालिक सूत्र', 'अनुयोगद्वार सूत्र' अने 'प्रज्ञापना सूत्र' जेवां आगमो तो जैन परंपरा प्रमाणे ज अनुक्रमे देवर्धिगणि क्षमाश्रमण, शय्यभवसूरि, आर्य रक्षितसूरि अने आर्य श्याम जेवा व्यक्तिविशेषोनी रचनाओ गणाय छे. भाषाकाय पृथक्करणना धोरणे · उत्तराध्ययन सूत्र' 'आचारांग सूत्र ' 'दशवैकालिक सूत्र' जेवा आगमग्रन्थोने सौथी प्राचीन गणवानुं विद्वानोनुं वलण छे अने एवा ग्रन्थोनो संकलनासमय भगवान महावीरना निर्वाणथी Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झाझो अर्वाचीन नहि होय एवं अनुमान थाय छे. पण एकंदरे जोतां, कोई निश्चित प्रमाण न होय तो आगमग्रन्थोने अमुक चोक्कस शताब्दीमां ज मूकवानुं मुश्केल छे. वळी मगधमां, मथुरामां अने वलमीमां एम ऋण वार आगमोनी संकलना थई हती अने छेवटे ई. स. ४५४ मां बलभीमां बधां आगमो लेखाधिरूढ थयां हतां - ए बधा समय दरमियान थयेला भाषाकीय अने बीजां परिवर्तनो ध्यानमा राखवानां छे (जुओ आ ग्रन्थमां देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण, नागार्जुन, वलभी, स्कन्दिल आर्य, इत्यादि ). आगमो अत्यार सुधीमां अनेक बार छपायां छे, पण तेओनी शास्त्रीय, समीक्षित वाचनाओ हजी तैयार थई नथी, ए पण एक मुश्केली छे. आगमसाहित्य अने प्राचीन ग्रन्थभंडारोना आजीवन अभ्यासी पू. मुनिश्री पुण्यविजयजीए ए माटेना महाभारत कार्यनो प्रारंभ थोडांक वर्ष पहेलां कर्यो छे अने आपणे आशा राखीए के आपणने नजदीकना भविष्यमां आगमोनी तथा ते उपरना तमाम टीकात्मक साहित्यनी समीक्षित वाचनाओ मळशे. नियुक्ति अने भाष्य ए मूल आगमग्रन्थो उपर प्राकृत गाथामां थयेला संक्षिप्त विवरण छे. मुद्रित वाचनाओमां तेमज हस्तलिखित प्रतोमां पण घणी वार नियुक्ति अने भाष्यनी गाथाओ एटली भेळसेळ थयेली होय छे के तेमने नियुक्ति अने भाष्य तरीके अलग करवानुं काम घणुं मुश्केल छे. चूर्णि ए प्राकृत गद्यमां- कोई बार संस्कृत अने प्राकृतना मिश्रण जेवा गद्यमा - मूल ग्रन्थोनुं विवरण छे. वृत्ति अथवा टीका ए संस्कृत गद्यमा थयेलां विवरणो छे. जूनामां जूनी उपलब्ध संस्कृत टीकाओ आठमा सैकामां थयेला आचार्य हरिभद्रसूरिनी छे. त्यारपछी शीलांकदेव, शान्तिसूरि, अभयदेवसूरि, द्रोणाचार्य, मलधारी हेमचंद्र अने मलयगिरि जेवा महान आचार्योंए प्रमाणभूत संस्कृत १. अत्यारे केटलाक शिक्षितो वातचीतमां अर्ध देशी भाषामां अने अर्ध अंग्रेजीमा बोले छे, एना जेवु आ नथी ? Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टीकाओनी आ पंरपरा चालु राखी हती. आ परंपरा ओछामां ओछु अराढमा सैका सुधी चालु रहेली छे, अने कोई कोई दाखलामा ठेठ अर्वाचीन काळमां पण जैन आचार्योए आगमग्रन्थो उपर संस्कृत टीकाओ रचेली छे. संस्कृत टीकाओमां पण दृष्टान्तो, कथानको अने बीजां अवतरणो घणुंखरुं प्राकृतमां आवे छे, जे प्राचीनतर रचनाओमांथी शब्दशः लेवायां हशे एवं अनुमान थाय छे. मुकाबले अर्वाचीन काळमां रचायेली संस्कृत टीकाओ पण. आ तेमज बीजी अनेक रीते प्राचीनतर परंपराओनी ऋणी छे अने ए कारणे एमर्नु मूल्य ते ते समयमां रचायेला बीजा सामान्य ग्रन्थोनी तुलनाए घणुं वधारे छे. बत्रीस अक्षरनो एक श्लोक ए गणतरी प्रमाणे तमाम उपलब्ध जैन आगमसाहित्य आशरे साडाछ लाख श्लोकप्रमाण छे. सने १९४३ ना जुलाईमां गुजरात विद्यासभाना अनुस्नातक अने संशोधन विभागमां (हवे शेठ भो. जे. विद्याभवनमां ) अध्यापक तरीके हुँ जोडायो त्यारथी आगमसाहित्यमांथी प्राचीन भारतना सांस्कृतिक अभ्यास माटेनी सामग्री संकलित करवानुं कार्य आरंभ्यु हतुं. लगभग तमाम मुद्रित आगमसाहित्य-जेनुं प्रमाण आशरे सवापांच लाख श्लोकप्रमाण करतां कईक वधारे थाय छे–सने १९५० सुधीमां जोवाई गयु. एमाथी प्राचीन गुर्जर देश तथा ते साथे संबंध धरावता विषयोनी माहिती अलग तारवीने आ ग्रन्थ तैयार कर्यो छे. आशरे सवा लाख श्लोकप्रमाण जेटलं आगमसाहित्य हजी अप्रसिद्ध छे. एमां केटलीक महत्त्व नी चूर्णिओ, टीकाओ अने थोडाक मौलिक ग्रन्थोनो पण समावेश थाय छे. एमाथी मळती सामग्रीनुं प्रकाशन आ पुस्तकनी पूर्तिरूपे करी शकाय. . भगवान महावीरनुं जन्मस्थान तेमज प्रवृत्तिक्षेत्र मगध हतुं; जैन श्रुतनी संकलना माटे सौ पहेली परिषद पण मगधना पाटनगर पाटलि Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ 'पुत्रमां वीरनिर्वाण पछी बीजी शताब्दीमां मळी हती. जैन आगमना मूल ग्रन्थो पण स्वाभाविक रोते ज मगधमां रचायेला छे. मुख्यत्वे आ कारणे आगमना मूल ग्रन्थोमां गुजरात विशे थोडा अछडता उल्लेखो मळे छे, अने ते पण मुख्यत्वे बावीसमा तीर्थकर नेमिनाथना जीवन अने यादवोना इतिहास साथै संबंध धरावे छे. प्राचीन गुर्जर देशमां रचायेली टीकाचूर्णिओमांथी ज आपणने विशेष माहिती प्राप्त थाय छे. -- वी आ पुस्तकमा संकलित थयेली सामग्री जेम प्राचीनतम मूल ग्रन्थोमाथी छे तेम १७ मा - १८ मा सैकामां रचायेली टीकाओमांथी पण छे. अमुक वस्तु जे रचनामांथी मळे छे ते रचना ( मात्र मूल आगमोना अपवादने बाजुए राखतां ) कया समयनी छे तेनी नोंध संदर्भसूचिमां करी छे, जेथी वाचकने कालानुक्रमनो ख्याल आवे. ज्यां चोकस साल नथी मळती, पण अनुमाने समय नक्की थई शके छे त्यां ए प्रकारनो उल्लेख कर्यो छे. 66 जैन आगम साहित्यमा गुजरात. पण गुजरात एटले ? गुजरातनी सीमाओ तो समये समये बदलाती रही छे. वळी एक चोकस प्रदेशने आपणे अभ्यासविषय बनावीए तोपण तेने पूरी ते समजवा माटे आजूबाजूना प्रदेशोनो पण परिचय आपणने होवो जोईए. एटले, आ पुस्तकमां, आजे आपणे जेने गुजरात ना मे ओळखीए छीए ते प्रदेशनी सीमा उपर ध्यान केन्द्रित करवानी साथे साथै, आसपासना प्रदेशोना उल्लेखोनो पण समावेश कर्यो छे. 17 • कामां सूचवी शकाय के गिरनारना, ई. स. क्षत्रप राजा रुद्रदामाना, शिलालेखमां जे प्रदेशो ते बधा ज प्रदेशोने आवरी लेवानो ख्याल राख्यो छे. टाळवा माटे प्रधानगौणविवेक जाळववो पड्यो छे. आजना गुजरातमां परिसीमित थता प्रदेशोने अपायुं छे तेटलं महत्त्व पडोशना ने दूरना १५० नां, गणावाया छे अलबत्त, लंबाण Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रदेशोने हमेशां आपी शकायुं नथी.'' प्रत्येक अगत्यना विधान माटे मूळ साहित्यनो आधार आप्यो छे, जेथी अभ्यासीने ते ते स्थान जोवानुं सरळ पडे. ग्रन्थनुं शीर्षक सूचवे छे ते प्रमाणे निरूपण मुख्यत्वे जैन आगमसाहित्यमाथी प्राप्त थती सामग्रीने अनुलक्षीने कयु छे, छतां ए ज विषयोने लगती सामग्री अन्य साधनोमाथी अनायासे प्राप्त थई छे त्यां तेनो पण तुलनात्मक विनियोग कर्यों छे. ___ आ संकलनामां प्राचीन भारत तेमज प्राचीन गुर्जर देशना इतिहास परत्वे जे ज्ञातव्य वस्तुओ छे ते माटे जिज्ञासु वाचकने प्रस्तुत विषयोनां शीर्षको जोवा भलामण छे. पण एमांथी प्रधानपणे ऊपसी आवता केटलाक मुद्दाओ प्रत्ये आ प्रस्तावनामा ध्यान खंचवानुं घटित जणाय छे. सौ पहेलो जातिओ देशनाम अने स्थळनाम लईए: जातिओनां नाम उपरथी देशनाम पडेलां छे ए दृष्टिए बन्नेने साथे लेवामां एक प्रकारर्नु औचित्य पण छे. आभीर जातिनी वसाहतो, उत्तरोत्तर दक्षिण दिशामां खसती जती हती एवा 'पुराणोमां गुजरात ' (पृ. ४५) ना अनुमानने जैन आगमसाहित्यमांथी स्पष्ट अनुमोदन मळे छे. आभीर देश दक्षिणापथमा हतो एवं विधान अहीं छे, एटलं ज नहि, पण आभीर देशनां जे नगरो अचलपुर, वेणातट, तगरा इत्यादि गणाव्यां छे ए पण दक्षिणापथनां छे (पृ. २०). आम छतां अन्यत्र पण आभीरो हता; जेमके कच्छमां आमीरो जैन-धर्मानुयायी होवार्नु कयुं छे (पृ. ५). 'सूत्रकृतांग सूत्र'नी शीलांकदेवनी टीका प्रमाणे, शूद्रने खीजमां 'आभीर,' वणिकने 'किराट' अने ब्राह्मणने 'डोड' कहेता. ए सूचवे छे के शीलांक: - १. उमाशंकर जोषी : 'पुराणोमां गुजरात ', प्रास्ताविक, पृ. ११ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवना समय सुधीमां 'आभीर' शब्दनो अर्थ हलको बनी गयो हतो (पृ. २१). मालव जाति प्राचीनतर अवंति जनपदने 'मालव' नाम आपवामां कारणभूत छे. ए. जातिना लोको त्यां लूंटफाट माटे आक्रमण करता, मनुष्योनुं अपहरण करता, अने तेमने गुलाम तरीके वेची देता (पृ. १३८-४० ). आगमसाहित्यमां कवचित् — मालव ' अने 'बोधिक ' जातिने अभिन्न गणी छे (पृ. १३८). एमने विशेनी प्रकीर्ण माहिती टोकाओमाथी सारा प्रमाणमां मळे छे (पृ. १२०-२१). यादवो अने एमनी गणसत्ताक राज्यपद्धति विशे पण केटलुक जाणवा मळे छे (पृ. ८७ ). कुशावर्त अने शौरिपुर बे हतां : एक उत्तरमा अने बीजं पश्चिममां (पृ. ४९). नवां स्थानोने जूनां नामो आपवान स्थळान्तर करती जातिओनुं वलण एमां जणाय छे. आ नामोनो संबंध यादवोना स्थळान्तर साथे छे. 'बृहत्कल्पसूत्र' ( उद्देशक १, सूत्र ५० ) अने 'निशीथसूत्र' जेवां छेदसूत्रोमांथी जाणवा मळे छे के भगवान महावीर ज्यारे साकेत नगरना सुभूमिभाग उद्यानमां निवास करता हता त्यारे तेमणे उपदेश को हतो के “ निर्ग्रन्थो अने निर्ग्रन्थीओने पूर्वमां अंग-मगध सुधी, दक्षिणमां कौशांबी सुधी, पश्चिममा स्थूणा सुधी अने उत्तरमा कुणाला ( उत्तर कोसल) सुधी विहार करवो कल्पे छे. एटलं ज आर्यक्षेत्र छे. एनी बहार विहरवं कल्पतुं नथी, पण एनी बहार ज्या ज्ञान दर्शन अने चारित्र्यनी वृद्वि थाय त्यां विहरी शकाय." ए पछी केटलीक १ आ सूत्रनां अंतिम बे वाक्यो आ प्रमाणे छे : 'एताव ताव आरिए खेत्ते णो से कप्पइ एत्तो बाहिं। तेण परं जस्थ नाण-दसण-चरित्ताई उस्सप्पंति ति बेमि।' उपर में करेलो अर्थ 'बृहत्कल्पसूत्र 'ना टीकाकार आचार्य क्षेमकीर्तिने अनुसरीने छे. डॉ. जगदीशचन्द्र जैने एनो अर्थ जरा जुदी रीते कयों छे : ' इतने ही क्षेत्र आर्य क्षेत्र है, बाकी नहीं, क्योंकि Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शताब्दीओ बाद अशोकना पौत्र राजा संप्रतिना आश्रयथी जैन श्रमणो दूर दूरना प्रदेशोमां विचरवा लाग्या अने आन्ध्र, द्रविड, महाराष्ट्र अने कुडुक्क (कूर्ग) व्यां पूर्व साधुओ जता नहोता त्यां पण श्रमणोनो सुखविहार प्रबो. ए समयथो नीचे प्रमाणे साडीपचीस आर्यदेशो गणावा लाग्या, जेनो मोघम उल्लेख पण आगमसाहित्यमां वारंवार मळे छ : मगध (राजधानी राजगृह ), अंग ( चंपा), बंग (ताम्रलिप्ति ), कलिंग ( कांचनपुर ), काशी (वाराणसी), कोशल( साकेत ), कुरु (गजपुर-हस्तिनापुर ), कुशावर्त ( शौरिपुर ), पांचाल (काम्पिल्यपुर), जांगल (अहिच्छत्रा), सुराष्ट्र ( द्वारवती), विदेह (मिथिला), वत्स ( कौशांबी ), शांडिल्य नंदिपुर ), मलय ( भदिलपुर ), मत्स्य (वैराट ), वरणा ( अच्छा ), दशार्ण ( मृत्तिकावती), चेदि (शुक्तिमती), सिन्धु-सौवीर (वीतिमय ), शूरसेन (मथुरा), भंगि (पावा), वट्टा ( मासपुरो), कुणाला ( श्रावस्तो), लाढ (कोटिवर्ष), केकयीनो अर्धभाग (श्वेतिका). आ सूचिमां आन्ध्र महाराष्ट्रादि प्रदेशोनो उल्लेख नथी ए ध्यान खेंचे छे. कोंकण के ज्यां जैन साधुओ विचरता हता एनुं नाम पण एमां नथो. गुजरात अने राजस्थानना जे प्रदेशो पाछळथी जैन धर्मनां प्रमुख केन्द्रो बन्यां ए पण एमां नश्री. पण एकंदरे एम कही शकाय के संप्रतिना राज्यकाळ पछीना समयमा भारतमां जैन धर्मना प्रभावनो सर्वसामान्य नकशो ए रजू करे छे. इन्ही क्षेत्रोमें निर्ग्रन्थ भिक्षु और भिक्षुणियों के ज्ञान-दर्शन और चारित्र अक्षुण्ण रह सकते हैं।' ('भारत के प्राचीन जैन तीर्थ,' पृ. १४). ज्ञान दर्शन अने चारित्र्यनी वृद्धि थती होय तो 'आर्यक्षेत्र 'नी बहार विहार थई शके एवो प्राचीन टोकाकारोनो अर्थ मने संगत लागे छे. 'आर्यक्षेन'नी सामाजिक स्थिति जैन साधुओना कडक आचारपालनने अनुकूळ हती; पण जेम जेम अन्य प्रदेशोमां जैन धर्मनो प्रचार थयो तेम तेम विहारक्षेत्रनो विस्तार पण वध्यो. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ 1. हिन्दुस्तान माटे 'हिन्दुग देश एवं नाम ई. स. ना सातमा शतक आसपासनी 'निशीथ सूत्र 'नी चूर्णिमां मळे छे (पृ. २१८ ). अत्रत्य साहित्यमां आ नामना आटला प्राचीन उल्लेखो विरल छे. गृहस्थ रहेता होय एवां मकानोमा साधुओ रहे ए वस्तु कच्छ दोषरूप गणाती नहोती (पृ. ३२ ) ए बतावे छे के साधुओने रहेवा योग्य मकानो - उपाश्रयोनो त्यां अभाव हशे . मरु देशमां खनिज तेल होवानी निर्देश (पृ. १२६ ) ठेठ भाग्य जेटलो जूनो होई खूब अगव्य धरावे छे. ' पालि साहित्यमा निर्दिष्ट अरिष्टपुर उपरांत महाराष्ट्रमां बोजुं एक अरिष्टपुर हतुं (पृ. ५). अर्कस्थली अने कालनगर ए वे आनंदपुरनां पर्याय नामो हतां (१. १४, १९). आनंदपुर कोई काळे सूर्यपूजानुं केन्द्र हशे एवो तर्क करवाने 'अर्कस्थली' ए नाम प्रेरे छे. आनंदपुर नामे बीजुं एक नगर विन्ध्याटवी पासे हतुं (पृ. १९). ते उत्तर गुजरातना आनंदपुर- वडनगरथी भिन्न होतुं जोईए. शूरसेन जनपदना पाटनगर मथुरानुं बीजुं नाम इन्द्रपुर हतुं (पृ. २३), जो के मथुराथी भिन्न एवं इन्द्रपुर नामनुं अन्य नगर पण हतुं (पृ. २४ ). उत्तर मथुरा ने दक्षिण मथुरानो पृथक् निर्देश छे (पृ. १२२, १९२). उत्तर मथुरा ते शूरसेन जनपदनी अने दक्षिण मथुरा ते मदुरा. क्षेमपुरी ए सौराष्ट्रनुं नगर छे (पृ. ५८), पण ए क्युं ते नक्की थई शक्युं नथी. पादलिप्तपुर ( पालीताणा ) नी स्थापना ' तरंगवती' कथाना कर्ता आचार्य पादलितना स्मरणार्थे थई होवानी अनुश्रुति छे (पृ. ९९ ). श्रीकृष्णाना चरित्रवर्णन साथै संबंध धरावतुं शंखपुर ए उत्तर गुजरातनुं शंखेश्वर संभवे छे (पृ. १७३-७४) सूत्रकृतांग सूत्र 'नो शीलांक १ ए तरफ केन्द्रीय सरकारना ' जियोलोजिकल सर्व्हे 'नुं ध्यान वामां आव्युं छे अने ए खाताए आ माहितीनो साभार स्वीकार कर्यों छे ए नोंधवु अप्रस्तुत नहि गणाय, Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवनी वृत्तिमां उद्धृत थयेला एक प्राकृत हालरडामांनुं नगर सिंहपुर ए सौराष्ट्रनुं सिंहपुर-शीहोर हशे के बनारस पासेनू सिंहपुरी (पृ. २०१) ए विचारवा जेवो प्रश्न छे. ए ज हालरडामा निर्दिष्ट हस्तकल्प के हस्तिकल्प ए निःशंकपणे भावनगर पासेनुं हाथब छ (पृ. २१५), जे एक काळे विशेष राजकीय अगत्य धरावतुं होवू जोईए. कोसुंबारण्य ए दक्षिण गुजरातमां कोसंवा आसपासनो समृद्ध जंगलविस्तार छे (पृ. ५६-५७). जेनी आसपास धूळनो प्राकार होय एवा गामने 'खेट' (प्राकृत · खेड') कहेता (पृ. ६१-६२). समय जतां 'खेट' सामान्य नाममांथी विशेषनाम बनी गयु, जेम के खेडा. जो के गुजराती, मराठी अने हिन्दी-पंजाबीमा ‘खेडं', 'खेडे ' अने 'खेडा' शब्द — गाम 'ना सामान्य अर्थमां पण छे. 'खेट' अथवा तेनो तद्भव जेमां अंगभूत होय एवां स्थळनाम पण अनेक स्थळे छ (पृ. ६१-६२). जल अने स्थल एम बन्ने मार्गोए ज्यां जई शकाय एवा नगरने ' द्रोणमुख' कहे छे. एना उदाहरण तरीके भरुकच्छ, ताम्रलिप्ति अने स्थानक-थाणा आपवामां आवे छे (पृ. ७९, ११०, २११). कच्छमां ' दोण ' नामे एक गाम छे एनो व्युत्पत्तिगत संबंध द्रोणमुखमांना 'द्रोण' साथे हशे? माळवाना दशपुर (मंदसोर ) नगरनुं नाम सिन्धु-सौवीरना राजा उदायनना सहायक दश राजाओए ए स्थळे पडाव नाख्यो हतो तथा प्राकार बांध्यो हतो ए उपरथी पड्यु एवी अनुश्रुति नोंधाई छे (,. ८१-८२). धर्मों अने संप्रदायो : बौद्धो अने जैनो वच्चे घणां स्पर्धा अने वादविवाद चालतां (पृ. ५९-६१, ६८-६९, १९५-९६). गुजरात अने राजस्थानमां जैनो उपरांत बौद्धोनी वसती सारा प्रमाणमां हती एवं साधार अनुमान थई शके छे. भरुकच्छमां एक बौद्ध स्तूप हतो. ए नगरमां जैनोना सुप्रसिद्ध अश्वावबोध तीर्थनो कबजो बौद्धोए लीधो हतो, ते खपुटाचार्य छोडान्यो हतो. गोविन्दाचार्य नामे बौद्ध Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ भिक्षु जैन आचार्यने पराजित करवा माटे जैनोनी विद्या शील्या हता, पण पछी पोते ज जैन थई ‘गोविन्दनियुक्ति 'नो रचना करी हती (पृ. ६८-६९). मथुराना 'देवनिर्मित स्तूप' उपर बौद्धोए आधिपत्य जमाव्यु हतुं, एनो कबजो मथुराना राजाए जैनोने पाछो सोप्यो हतो ( पृ. १२०-२१). _ बौद्ध उपरांत अन्य मतोनी पण वात आवे छे. आर्य रक्षितना. मामा गोष्ठामाहिले मथुरामा एक अक्रियावादीने पराजित कर्यो हतो, पण पछी तेओ पोते ज अबद्धिक नामे निह्नव थया हता (पृ. ६९). ___ प्राचीन भारतना लोकधर्मोमां यक्षपुजा घणी लोकप्रिय हती. आनंदपुरमा यक्षनी अने नागवलिकामा नागनी पूजा थती (पृ. ९४). मथुरामां भूतगुहा नामे व्यंतरगृह-यक्षायतन हतुं (पृ. १२२ ) अने द्वारका पासे नंदन उद्यानमा सुरप्रिय नामे यक्ष- आयतन हतुं (पृ. २०३). सुराम्बर नामे यक्षनुं आयतन शौरिपुरमा हतुं (पृ. २०३). भरुकच्छ पासेना गुडशस्त्र नामे नगरमां यक्ष साधुओने उपद्रव करतो एने खपुटाचार्ये शान्त को हतो ( पृ. ५९). एक ब्राह्मणे 'भुल्लिस्सर' नामे व्यंतरनी उपासना करी होवानी कथा मळे छे (प. ११४ ). भरुकच्छथी उज्जयिनी जवाना मार्ग उपर आवेला नटपिटक गाममा नागगृह हतुं (पृ. ९१ ). अर्थात् त्यां पण नागपूजा थती. अनेक नगरोना परिसरमा आवेलां उद्यानोमा यक्षायतनो हतां अने त्यां लोको यात्राए जता. एनां थोडांक उदाहरणो आपणे आगळ नोंधीशु. ___भरुकच्छथी दक्षिणापथ जवाना मार्गमां 'भल्लीगृह ' नामर्नु भागवतो- एक मन्दिर हतुं अने एमां 'भल्ली'-बाणथी वोधायेली कृष्ण वासुदेवनी मूर्ति हती (पृ. ५७. ११३-१४ ). अग्निपूजकोनो उल्लेख पण क्वचित् आवे छे. गिरिनगरमा एक. अग्निपूजक वणिक दर वर्षे एक घरमा रत्नो भरीने पछी ए घर सळगावी Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्मिनु संतर्पण करतो हतो. एम करतां एक बार आलुं नगर बळी गयु हतुं (पृ. ६६). जैन आचारना इतिहासनी दृष्टिए अगत्यना पण एक बे उल्लेखो आ ग्रन्थमा छे. शय्यातर-वसति आपनार कोने गणवो ए संबंधमा लाटाचार्यनो मत नोंधायेलो छ (पृ. १६२-६३ ). लाटाचार्य, एमना नाम उपरथी, लाटना वतनी हशे एम अनुमान थाय छे. दशपुरनो राजा कदाच आर्य रक्षितने दीक्षा नहि लेवा दे ए भयथी तोसलिपुत्राचार्य रक्षितने लईने अन्यत्र चाल्या गया हता, ए जैन अनुश्रुति प्रमाणे पहेली शिष्यचोरी हती ( पृ. ८०). उद्यानो : जैन श्रमणो घणी वार नगरपरिसरमा आवेलां उद्यानोमां निवास करता, एटले हवे उद्यानो विशेना थोडाक उल्लेखो जोईए. इक्षुगृह उद्यान दशपुरमा आवेलं हतुं. त्यां रहीने आर्यरक्षिते चातुर्मास कयों हतो (पृ. २२). ए प्रदेशमा शेरडीनुं वावेतर थतुं हशे एवी अटकळ आ उद्यानना नाम उपरथी करी शकाय ? कोरंटक उद्यान भरुकच्छना ईशान खूणे हतुं (पृ. ५५). कोरंटक अथवा कांटासेरियाना कमनीय छोडवाओ उपरथी आ उद्याननुं नामकरण थयुं हशे. उज्जयिनीना स्नपन उद्यानमां पण साधुओ ऊतरता (पृ. २११ ). 'स्नपन' नाम, त्यां कोई स्नानागार हशे एवो, तर्क करवा प्रेरे छे. द्वारका पासे नंदन उद्यानमा सुरप्रिय यक्ष- आयतन हतुं ए आपणे उपर जोई गया. ए उद्यान द्वारकाने ईशान खूणे रैवतकनी पासे हतुं (पृ. ९१ ). केटलांक सूत्रोमां रैवतकनो उल्लेख पर्वत तरीके छे, ज्यारे पछीना समयनी केटलीक टीकाओमां एनो उल्लेख उद्यान तरीके छे (पृ. १५७ ). सिन्धु-सौवीर देशना पाटनगर वीतिभयनी पूर्वदिशामां मृगवन नामे उद्यान हतुं (पृ. १७०). सारनाथ पासेना उद्यानने पालि साहियमां ' मृगदाव' कहेल छे ते साथे आ नाम Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरस्वावी शकाय. जैन तेम ज बौद्ध साहित्यमां बीजां अनेक उद्यानोना उल्लेख छे. उत्सवो: उद्यानोनी साथे उत्सवो पण संकळायेला हता. 'संखडि' एटले उजाणी, आनंदपुरना लोको शरदऋतुमां प्राचीन वाहिनी सरस्वती ना किनारे जई संखडि करता ( पृ. १९) प्रभासतीर्थमां अने अर्बुद पर्वत उपर यात्रामां संखडि थती ( पू. १५, १०६ ). मथुरामां भंडीर यक्षनी यात्रामां लोको गाडां जोडीने जता ( पृ. ३३, ११९ ). कुंडलमेंठ नामे व्यंतरनी यात्रामा भरुकच्छना लोको संखडि करता (पृ. ४४, ११०-११ ). लाटदेशमां गिरियज्ञ अथवा मत्तवाल - संखडि नामे उत्सव थतो ( पृ. १६१ ) एनुं बीजुं नाम भूमिदाह हतुं. ए उत्सवनुं वर्णन मळतुं नथी, पण कोकणादि देशोमां गिरियज्ञ नामे उत्सव दररोज संध्याकाळे थतो होवानो उल्लेख अन्यत्र छे (पृ. ५३ ), ते ए ज हशे एवं अनुमान थाय छे. महाराष्ट्रमां भादवा सुद पडवाने दिवसे श्रमणपूजानो उत्सव थतो, एमां लोको साधुओने वहोरावीने अमना उपवासनुं पारणं करता ( पृ. १३५ ) : उज्जयिनी, माहेश्वरी, श्रीमाल वगैरे नगरोना लोको उत्सवप्रसंगोप एकत्र थईने मदिरापान करता. ए मदिरापान करनाराओमां ब्राह्मणोनो पण समावेश थतो ( पू. २० ). तरिवाजो : जैन साधुओ आखा देशमां पगे चालीने पर्यटन करता. चोमासाना चार महिना बाद करतां बाकीना आखा ये वर्षमा मोटा भागना साधुओ सतत परित्रजन करता. बृहत्कल्पसूत्र 'ना भाष्यमा ' जनपदपरीक्षा' प्रकरणमां कहां छे के जनपद विहार करवाथी साधुओनी दर्शनविशुद्धि थाय छे एमां साधुओने विविध देशोनी भाषाओमा कुशल बनवानुं कहीं छे, जेथी तेओ लोकोने एमनी पोतानी 6 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज भाषामां उपदेश आपी शके. वळी विविध प्रदेशोना रीतरिवाजो अने दैशिक परिस्थितिथी माहितगार थवानुं पण सूचन एमां करेलं छे. आ बधां कारणे भारतवर्षना विविध प्रदेशोना रीतरिवाजोने लगती प्रकीर्ण पण मूल्यवान सामग्री आगमसाहित्यमांथी प्राप्त थाय छे. ए प्रकारना थोडाक लाक्षणिक उल्लेखो अहीं जोईए: कोंकणवासीओ पुष्प अने फळनो प्रचुर प्रमाणमां उपयोग करता. उत्तरापथ अने बाल्हिकना लोको सक्तु खाय छे तेम कोंकणवासीओ ' पेज्जा' (सं. पेया ) अर्थात् चोखानी राब ले छे. त्यां भोजनना प्रारंभमां ज राब अपाय छे (पृ. ५२ ). अत्यारे पण कोंकणमां मुख्य खोराक चोखा छे ते आ साथे ध्यानमा राखवानुं छे. सोपारकना बे श्रावकोमा एक शाकटिक ( गाडं चलावनार ) अने बीजो वैकटिक ( दारू गाळनार ) हतो (प. १८५-८६ ). ए बतावे छे के वैकटिको बहिष्कृत नहोता. पडोशना महाराष्ट्रमां पण कलालो बहिष्कृत गणाता नहोता; एटलं ज नहि, पण एमनी साथे बीजाओ भोजन लई शकता (पृ. १३५). जो के दक्षिणापथमां कलाल अने लोहकार जायधम गणाता (पृ. १६० ). महाराष्ट्रमा मद्यनी दुकानमा मद्य होय के न होय, पण तेनी उपर ध्वज फरकाववामां आवतो, जे जोईने भिक्षाचर आदि त्यां जता नहि (पृ. १३४). जे प्रकारना स्त्रीओना पहेरवेशने लाटवासीओ 'कच्छ' कहेता एने महाराष्टोओ ‘भोयडा' कहेता. स्त्रीओ बालपणथी मांडी लग्न थया बाद सगर्भा थतां सुधी कच्छ बांधतो. सगर्भा थया पछी भोजन करवामां आवतुं, स्वजनोने बोलावी वस्त्र पाथरवामां आवतुं, अने ए समयथी कच्छ बांधवानुं बंध थतुं (पृ. १६० ). मरुस्थल आदि रेताळ प्रदेशोमा मार्ग मूलो न जवाय माटे मार्गमा कीलिकाओ ठोकवामां आवती एवा उल्लेखो छ (पृ. १२४ ). मरुस्थलना पहेरवेशने लगती पण केटलीक रसिक माहिती मळे छे (पृ. १२५ ). करोडपतिओ महोत्सव प्रसंगे पोताना मकान उपर Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્ कोटिपताका चडावता ( पृ. ६४ ) ' कोटिध्वज' तथा एमांथी व्युत्पन्न थयेला गुजराती शब्द 'कोटिधज' नो संबंध आ साथे जोडाय छे. सतीनो रिवाज कोई काळे चौलुक्योमा विशेष प्रचलित हशे एम एक सुभाषित उपरथी लागे छे ( 2. ७१-७२). आ उपरांत आमीर, मालव आदि जातिओ आनंदपुर, डिंभरेलक, ताम्रलिप्ति, द्वीप, मथुरा आदि नगरो तथा कोंकण, बन्नासा ( बनास नदी) आसपासनो भाग, महाराष्ट्र, लाट, सिन्ध, सुराष्ट्र आदि प्रदेशोनी विशिष्टताओ तथा लाक्षणिक रीतरिवाज माटे आ ग्रन्थनां ते ते शीर्षको जोवा विनंति छे. वाणिज्य : वाणिज्य विशे पण केटलीक अगत्यानी माहिती मळे छे. त्रिभुवननी सर्व वस्तुओं जेमां मळे एवा वस्तुभंडारो - ' कुत्रिकापण '- विशेना उल्लेखो खास ध्यान खेंचे छे. उज्जयिनी अने राजगृह जेवां प्राचीन भारतनां महान नगरोमां एवा भंडारो हता. एमां वस्तुनुं मूल्य खरीदनार व्यक्तिना सामाजिक दरज्जा प्रमाणे लेवामां आवतुं ए वात खूब रसप्रद छे (पृ. २६-२७, ४४-४५ ) कुत्रिकापण साथै संबंध धरावती केटलीक लोककथाओ नोंवायेली छे ( पृ. ११२, ११५-१६) ए बतावे छे के लोकमानसे एनी स्मृतिने केवी रीते संघरी हती. भरुकच्छ पासेनुं भूततडाग कुत्रिकापणमांथी खरीदायेला एक भूते बांक्युं हतुं एवी अनुश्रुति छे. वेपारना एक मथक तरीके 'द्रोणनुख 'नी व्याख्या उपर स्थळनामोनी चर्चा करतां आपी छे. वेपारनुं केन्द्र होय एवा नगरने ' पत्तन' पण कहेवामां आवतुं ' पत्तन' बे प्रकारनां होयः ज्यां जलमार्गे माल आवे ते जलपत्तन, जेमके द्वीप ( दीव) अने काननद्वीप; ज्यां स्थळमार्गे माल आवे ते स्थलपत्तन, जेमके मथुरा अने आनंदपुर. केटलाक टीकाकारोए प्राकृत 'पट्टण' शब्दनां ' पड्डन ' Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ अने 'पत्तन' एवां वे संस्कृत रूपो स्वीकारीने बेना जुदा अर्थ आप्या छे (पृ. ९७ ). मालव जातिना लुटारुओ मनुष्यनुं हरण करीने एमने गुलामो तरीके वेचता ए उपर कह्युं छे. गिरिनगरनी त्रण स्त्रीओ उज्जयंत उपर गई हती व्यारे चोरो एमनुं हरण करी गया हता अने पारसकूल - इरानी अखातना किनारा उपर तेमने वेची हतो ( पृ. ६६ ). भरुकच्छमां आवेला एक परदेशी वेपारीए कपटी श्रावकपणुं धारण करीने केटलीक रूपवती साध्वीओने वहाण उपर बोलावी एमनुं हरण क हतुं (पृ. ११२) मथुरामां ' देवनिर्मित स्तूप 'नो महिमा करवा माटे केटलीक श्राविकाओ साध्वीओनी साथे गई हती एमनुं हरण करवानो प्रयास बोधिक जातिना लुटारुओए कर्यो हतो, पण एक साधु जेओ पूर्वाश्रममां राजपुत्र हता, तेओए एमने छोडावी हती. (पृ. १२१ ). आ बधा उल्लेख गुलामोना वेपार उपर प्रकाश पाडे छे. जैन सूत्रोमां अन्यत्र ( दा. त. ' राजप्रश्नीय' सू. ८३, पृ. १४७) जुदा जुदा देशोमांथी आवेली दासीओनो यादी आपीछे एमांथी पण जगतभरमां व्यापला गुलामोना वेपारनुं सूचन थाय छे. वेपारीओनी प्राचीन 'श्रेणी'ओ ( guilds ) ने लगती एक महत्त्वनी अनुश्रुति मळे छे. सोपारक ए भारतना पश्चिम किनारे वेपारनुं मथक हतुं अने आ अनुश्रुति प्रमाणे, त्यां वेपारीओनां पांचसो कुटुंब हतां. ए वेपारीओनुं एक महाजन हतुं ए महाजन पासे पोतानी कचेरी अने एमां मोटुं सभागृह हतुं, जेमां पांचसो पूतळीओ हती. अर्थात् ए सभागृह शिल्पकलानी दृष्टिए पण नोंधपात्र हशे . एमनो माफ थयेलो कर राजाए लेवा धार्यो ए सामे विरोध करतां बधा वेपारीओ मरण पाम्या, ए वस्तु जूनां महाजनोना संगठनना प्रतीक जेवी छे (पृ. २०८ ). Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्जयिनीमा एक वार मोटी आग लागी हती अने नगरनो घणो भाग बळी गयो हतो त्यारे जे वेपारीओए नगरनी बहार वखारो राखी हतो तेमणे पोताना मालनां अनेकगणां नाणां उपजाव्यां हतां (पृ. २८) ए वात पण ध्यान खेंचे एवी छे. त्रण दिशाए समुद्रथी वाटायेल सौराष्ट्रमा बहोळो वेपार चालतो हतो. (पृ. २०४). प्राचीन सिकाओ विशे ठीक माहिती मळे छे. सिक्काओनुं नानु सर कोष्ठक आपेलु छ अने एक प्रदेशना सिक्कानी बीजा प्रदेशना सिकामां केटली कीमत थाय ए पण केटलाक दाखलामां जणावेलुं छे (पृ. ८९, १८०-८१). ' काकिणी' एक नानो सिक्को हतो अने एनुं मूल्य वीस कोडी बराबर थतुं. पण राजपुत्रोना संबंधमा प्रयोजाय त्यारे — काकिणी' शब्दनो अर्थ राज्य' थतो ए नोंधपात्र छ (पृ. ३४, ४३). चक्रवर्तीनां रत्नोमां काकिणीरत्ननो पण समावेश थतो ते उपरथी एम हशे? स्थापत्य अने कला : अर्धमागध ए स्थापत्यनो एक विशिष्टकदाच मिश्र-प्रकार हो एम लागे छ (पृ. १५). अर्धमागधी भाषानी जेम ! अभिनयने धंधा तरीके स्वीकारनार नटोनां जुदां गाम हतां एम रोहकनी वार्ता बतावे छे (प. २८). नटपिटक गाममां (पृ. ९१ ) नटोनी वस्ती हशे एम एना नाम उपरथी कल्पना थाय छे. कोकास अने एनां यंत्रकपोतोनु कथानक (पृ. ५०-५१ ) प्राचीन भारतमां यंत्रकलाना अभ्यास माटे जोवा जेधुं छे. 'राजप्रश्नीय सूत्र 'मां नृत्य अने संगीत विशे विस्तृत अने 'अनुयोगद्वार सूत्र 'मां संगीत विशे संक्षिप्त निर्देशो छे ते आ विषयना अभ्यास माटे घणा उपयोगी छे; जो के आ पुस्तकनी मर्यादामां एनो समावेश थई शक्यो नथी. Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ विद्याध्ययन: प्राचीन विद्याध्ययननी घणा अगत्यनी परंपराओ--- खास करीने जैनोने संयंत्र छे त्यांसुधी - आगमसाहित्यमां सचवायेली छे. वेदोना परंपरागत संक्रमणनी जेम आगमोनां संकलन अने संगोपननी पाछळ स्मृति अने बुद्धिना महान पुरुषार्थी रहेला छे. प्राचीन काळथी मांडी आगमवाचना (पृ. ८३, ८४, ९४ ) ए गंभीर अध्ययनने पात्र विषय छे. आगमोनी रचना पूर्व भारतमां थई, पंण ए लेखाधिरूढ पश्चिम भारतमां थयां ए पण जैन धर्मना इतिहास अने तेनां दशान्तरो माटे एक पात्र हकीकत छे. मध्यकाळमां गुजरातनी संस्कारितानुं तेमज गुजरातमां जैन धर्मनुं प्रमुख केन्द्र अणहिलवाड पाटण हतुं. आचार्य हरिभद्रनी टीकाओ सिवाय आगमो उपरनी बधी मुख्य टीकाओ अणहिलवाड के आसपासना प्रदेशमां रचायेली छे (पृ. ८-९ ). आगमोना विवेचनमां रोकायेला पंडितो परस्पर सहकारथी कार्य करता हता. नवांगी वृत्तिकार अभयदेवसूरिनी टीकाओनी सहाय विना पछीना काळमां गमे तेवा प्रकांड पंडित माटे पण आगमोना अर्थों समजवानुं मुश्केल थई पडत. एमनी ए टीकाओनुं शोधन द्रोणाचार्ये क हतुं ( १०-१२ ) द्रोणाचार्यनी सहायमां एक पंडितपरिषद हती. द्रोणाचार्य ए पाटणना चौलुक्य राजा भीमदेव पहेलाना मामा हता अने तेमणे पोते ' ओघनियुक्ति ' उपर टीका रची इती (पृ. ८३ ). ' आचारांग सूत्र' अने ' सूत्रकृतांग सूत्र' उपर टीकाओ लखनार शीलाचार्य अथवा शीलांक ते पाटणना स्थापक वनराजना गुरु शीलगुणसूरि एवी एक अनुश्रुति छे, एटले अणहिलवाडमां आगमोनुं अध्ययन ओछामां ओलुं ए नगरनी स्थापना जेटलं जूनुं छे, अने एनो वारसो हरिभद्राचार्य आदि राजस्थानमां थयेला टीकाकारो तरफथी मळेलो छे. पाटणमां थयेला आगमोना बीजा महान टीकाकारो मलधारी हेमचंद्र (कलिकालसर्वज्ञ हेमचंद्रथी भिन्न ) o आचार्य मलयगिरि छे. मलवारी हेमचंद्रने मळवा मादे राजा 7 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धराज जयसिंह वारंवार एमना उपाश्रये आवतो (प. २१९). एमना हस्ताक्षरवाळी एक ताडपत्रीय पोथी खंभातना भंडारमा मोजूद छे. आगमो उपर गुजरातमा प्रमाणभूत संस्कृत टीकाओ ठेठ अराढमा शतक सुधी रचाती रही छे अने आज सुधी आगमोना अध्ययननी प्राचीन परंपरा अहीं अविच्छिन्नपणे चालु रहेली छे. ___ विद्याध्ययनने लगता बीजा पण केटलाक अगत्यना उल्लेखो अहीं संघराया छे. भरुकच्छना वज्रमूति आचार्य विशेनुं कथानक गुजरातना एक प्राचीन कवि विशे थोडीक माहिती आपे छ (पृ. १६५-६६). कालकाचार्ये आजीवको पासे अष्टांग महानिमित्तनो अभ्यास कर्यो हतो (पृ. ४०). आजीवको नियतिवादी हता, एटले निमित्तशास्त्रना अभ्यास प्रत्ये एमणे खास ध्यान आप्यु हशे, भने एथी ज कालकाचार्य जेवा महान आचार्य ए माटे एमनी पासे जवाने आकर्षाया हशे. मूळ आगमोमां (दा. त. 'उत्तराध्ययन सूत्र'१५ मुं अध्ययन ) साधुओ माटे ज्योतिष तेमज वैद्यकनो अभ्यास वर्य गणेलो छे, पण मध्यकाळमां चैत्यवासीओए ए बन्ने शास्त्रोने लगभग पोतानां करी लीघां हतां ए पण समयनी बलिहारी छे. उज्जयिनीनो विद्यार्थी अस्त्रविद्या शीखवा माटे कौशांबी जाय छे अने शंखपुरनो विद्यार्थी वाराणसीना कलाचार्य पासे शीखे छ (पृ. १) ए उल्लेखो विद्याभ्यास माटे देशान्तरोमां जवानी प्रमागमा व्यापक प्रवृत्तिना सूचक छे. अट्टण मल्लनु कथानक प्राचीन भारतमा मल्लविद्याना इतिहास उपर सारो प्रकाश पाडे छ (पृ. ६-८). लुप्त ग्रन्थो : नष्ट थई गयेला अनेक प्राचीन ग्रन्थोमा उल्लेखो अने क्वचित् एमांथी अवतरणो आगमसाहित्यमां मळे छे. आ पुस्तक. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ मां नोघायला एवा ग्रन्थो विशे जोईए. चौद पूर्व दृष्टिवाद विशेना, उल्लेखो देर ठेर मळे छे. 'नन्दिसूत्र' मां तो एनो अनुक्रम पण आप्यो छे. पूर्वो घणा सैका पहेलां नाश पानी गयेलां होवा छतां - अथवा कदाच ए कारणथी पछीना काळमां तमाम जैन ग्रन्थकारो तथा सामान्य जैन प्रजाना मानस उपर पण एनो अद्भुत महिमा अंकित थयेलो रह्यो छे. -14 अन्य विलुप्त रचनाओमां कालकाचार्यकृत 'प्रथमानुयोग' (पृ. ४०), आचारांगसूत्र' ना ' शस्त्रपरिज्ञा' अध्ययनना विवरणरूपे ' लखायेली गोविन्दाचार्यनी ' गोविन्द निर्युक्ति' (पृ. ६८–६९), पादलिप्ताचार्यकृत महान प्राकृत कथाप्रन्थ ' तरंगवती ' अथवा 'तरंगलोला' (पृ. ९८ ) तथा एमनी ज बीजी एक रचना 'कालज्ञान ' (पृ. ९९), ' तत्वार्थसूत्र' उपरनी आचार्य मलयगिरिनी वृत्ति ( पू. १२८), 'निशीथसूत्र' उपर सिद्धसेननी टीका (पृ. १९७ ), 'योनिप्राभृत' शास्त्र (पृ. १९७), 'विशेषावश्यकभाष्य' उपर जिनभद्रगणिनी स्वोपज्ञ टीका (पृ. २२०), इत्यादिनो उल्लेख थई शके. शीलाचार्य, अभयदेवसूरि, मलयगिरि आदि आगमोना टीकाकारोए एवी पूर्वकालीन टीकाओना उल्लेख कर्या छे, जे आजे मळती नथी (१. ११, १२९, १७७, इत्यादि ) कदाचित् एमनी सुविशद अने विस्तृत टोकाओ ज पूर्वकालीन टीकाओनी विलुप्तिमां निमित्त नहि बनी होय ? सातवाहन हालना प्राकृत सुभाषितसंग्रह 'गाथा सप्तशती 'मां पादलिताचार्यनी गाथाओ उद्धृत थयेली छे ( १ ९९ ) ते कां तो ' तरंगवती 'मांथी होय अथवा एमनी बीजी कोई कृतिमांथी होय. 'ज्योतिष्करंडक' उपरनी पादलिप्ताचार्यनी वृत्ति नष्ट थयेली मनाती हती, पण ते जेसलमेरना ग्रन्थभंडारमाथी थोडा समय पहेलां पू. मुनिश्री पुण्यविजयजीने मळी छे ( पू. ९८ ) एज प्रमाणे 'जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति 'नी मलयगिरिनी वृत्ति नाश पामी होवानुं ए ग्रन्थना बीजा बे Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ टीकाकारोए नोंव्यु छ (पृ. १२८), परन्तु ए वृत्ति पण जेसलमेरना भंडारमाथी जडी छे. . भाषाशास्त्र : भारतीय आर्य भाषानी द्वतीयक भूमिकाना अभ्यास माटे विपुल सामग्री आगमोमांथो मळे एमां वशुं आश्चर्य नथी. बधा ज मूळ आगमग्रन्थो प्राकृतमा छे एटली हकीकत ए विषयमा एमनु महत्त्व बताववा माटे बस छे. आ प्रस्तावनाना प्रारंभमा ज कह्यु छे ते प्रमाणे, जुदा जुदा सूत्रग्रन्थोनी भाषाना स्वरूपमां केटलोक नोंधपात्र तफावत छे. वळी आगमसाहित्यनी पहेली संकलना मगधमां थई अने त्यार पछीनी संकलनाओ ईसवी सननी चोथी शताब्दीमा एटके के वीरनिर्वाण पंछी नवमी शताब्दीमां मथुरा अने वलभीमां थई अने सर्व आगमो एनी ये पछी एक सैका बाद देवर्धिगणिना अध्यक्षपणा नीचे वलभीमां एकसामटा लिपिबद्ध थया, ए बधा समय दरमियान तेमज त्यार पठी एनी नकलो अने नकलोनी पण नकलोनी जे अनेक शाखाप्रशाखाओ थई तेने परिणामे ए ग्रन्थोनी भाषामा अनेकविध फेरफारो थया हशे, तोपण भारतीय आर्य भाषानी प्राकृत भूमिकाना अध्ययन माटे एक तरफ जैन आगमसाहित्य अने बोजी तरफ पालि साहित्य ए बन्ने मळी परम महत्त्वनी सामग्री पूरी पाडे छे. मूळ आगमो तथा ते उपरनां नियुक्ति अने भाष्योनी आर्ष प्राकृत, चूर्णिओनी आ करतां भिन्न तो पण आर्षनी कोटिमा ज गणवी पडे तेवी प्राकृत-जेमा संस्कृतर्नु पण विलक्षण मिश्रण थयेलं घणी वार नजरे पडे छे, अने मध्यकाळनी संस्कृत वृत्तिओमांनां प्राकृत कथानको, जेमनी भाषा केटलीक वार चूर्णिओनी लगोलग आवी जाय छे तो केटलीक बार स्पष्ट रीते प्रकृष्ट महाराष्ट्री प्राकृत होय छे-आ सर्वनुं पूरुं अन्वेषण हजी थयु नथी. आगमसाहित्यनी समीक्षित वाचनाओ बहार पडे त्यारे ज ए कार्य थई शके. वळी आगमोनी संस्कृत वृत्तिओमा आवता शब्दो अने रूढि Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रयोगो जेने सामान्य रीते 'जैन संस्कृत' कहेवामां आवे छे--जे एक प्रकारनी 'मिश्र संस्कृत' होई बौद्धोनी — गाथा संस्कृत' साथे एनी तुलना थई शके-जूना गुजरातीनी असरथी जे परिप्लावित होई गुजरातीना सामान्य ज्ञान विना ए समजाय पण भाग्येज, ए कारणे हर्टल जेवा विद्वाने जेने 'प्रादेशिक संस्कृत' ( Vernacular Sanskrit) कही छे, एनो व्यवस्थित अभ्यास एक करतां वधु ग्रन्थो मागो ले एवो विशाळ विषय छे, अने जैन कथासाहित्य तेमज प्रबन्धसाहित्यमां पण ए ज प्रकारनी संस्कृतनो प्रयोग होई एनी अभ्यासमर्यादा आगरसाहित्यनी बहार पण विस्तरेली छे. संस्कृत उपर प्रादेशिक भाषाओए करेली असरना दृष्टिकोणथी ए सर्व साहित्यन अवलोकन फळदायी नीवडशे. संस्कृते लोकभाषाओ साथे केQ समाधान साध्यु ए जेम एमांथी जणाशे तेम लोकभाषानां पण अनेक भुलायेलां रूपो अने अर्थोनी तेमज ए रूपो तथा अर्थोनी पाछळ रहेला मानसिक बळोनी एमाथी भाळ मळशे. . पण आ पुस्तकनी मर्यादामां आ बधी वस्तुओनो समावेश करवानुं अशक्य हतुं. अहीं तो राजकीय अने सांस्कृतिक अगत्यनी वस्तुओनी साथोसाथ भाषाकीय अगत्यना. पण जे मुद्दा नोंधाया छे तेमांना केटलाक तरफ ध्यान दोय छे. ___ पंजाबचें मूल स्थान (मुलतान ), सौराष्ट्रनुं स्थान (थान ), अने मुंबई पासेनुं स्थानक (थाणा ), एमांना 'स्थान', 'स्थानक ' पदान्तोनो संबंध भाषा अने सामाजिक इतिहासनी दृष्टिए विचारवा अको छे. मुलतान अने थान तो सूर्यपूजानां प्राचीन केन्द्रो छे, थाणा विशे वधु संशोधन आवश्यक छ (पृ. २११). भारतनां प्राचीन नगरोने अंते आवतो संस्कृत 'कृत ' अने प्राकृत ‘कड' पदान्त तथा जावा जेवी भारतनी प्राचीन वसाहतोनां केटलांक नगरोनां नामोनो Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९ 'कर्त' पदान्त, ए सर्वनुं साम्य पण ए ज रीते ध्यान खेंचे छे (पृ. ४६-४७ ). ' गिरनार ' अर्वाचीन भाषामां पर्वतवाची विशेषनाम छे, पण एनुं मूळ संस्कृत 'गिरिनगर 'मां छे ( पर्वतनुं नाम तो उज्जयंत छे), अने 'कोडिनार', 'नार' वगेरे अन्य स्थळनामोमांनो 'नार " पण संस्कृत 'नगर 'मांथी प्राकृत ' नअर' द्वारा व्युत्पन्न थयेलो छे (पृ. ६६ ). आगम साहित्याना प्राचीनतर अंशोमां, पुराणोनी जेम, अर्वाचीन भरूचने माटे, ‘भरुकच्छ ' प्रयोगनी व्यापकता छे ए वस्तु सूचवे छे के ' भरूच 'नी व्युत्पत्ति, सामान्य रीते मनाय छे तेम, संस्कृत 'भृगुकच्छ 'मांथी नहि, पण ' भरुकच्छ 'मांथी ' भरुअच्च' द्वारा साधवानी छे (पृ. ११०-१२ ). ' खेट' अने तेनी साथै संबंध घरावतां नामोनी चर्चा अगाउ करेली छे. कुडुक्क (पृ. १५९ ), लाट (पृ. १५९-६० ), कोंकण (पृ. ५३ ), महाराष्ट्र (पृ. १३५ ) आदि प्रदेशोनो भाषाना लाक्षणिक शब्दप्रयोगोनी नोंध टीकाकारोए वारंवार करेली छे. एक प्रदेशनी भाषाना शब्दो वगर समज्ये बीजे बोलनार केवी रीते हास्यपात्र थाय छे ए पण बतायुं छे (पृ. १३५ ). लोकवार्ता अने पुराणकथा : जैन साहित्यनो एक मोटो भाग कथाप्रधान छे. आगमसाहित्यना चार अनुयोगो पैकी एक कथानुयोग छे. मूळ आगमो तथा ते उपरनी चूर्णिओ अने टीकाओमां अर्धऐतिहासिक कथाओ अने लोककथाओनो विपुल भंडार छे. जैनोना कथासाहित्यना उद्भव अने विकासनो तुलनात्मक अभ्यास ए एक स्वतंत्र विषय छे, अर्ही केवळ आ पुस्तकने अनुलक्षीने प्रस्तुत कथ वितव्य रजू कर्तुं छे. अगडदत्त (पृ. १-५ ), अड्डण (पृ. ६-८ ), इन्द्रदत्त (पृ. २३ ), कोक्कास (पृ. ५०-५२ ) आदिनी कथाओ लोकवार्ताओ छे; जो के एमां ऐतिहासिक अनुश्रुतिओना अंशो रहेला छे Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए चोक्कस. भरुकच्छनी उत्तरे आवेला भूततडागने लगती वार्ता (पृ. ११५) तथा बौद्धो अने जैनोनी स्पर्धाने लगती केटलीक वार्ताओ (दा. त. पृ. १७२-७३ ) ए पण लोककथाओ ज छे. पादलिप्ताचार्य (पृ. ९८ ) अने नटपुत्र रोहकनी (पृ. १५७-५८) हाजरजवाबीनी वातोमांनी केटलीक पछीना समयमा राजा भोज अने कवि कालिदास तथा अकबर अने बिरबलने नामे चढेली हाजरजवाबोनी वातो छे. चोरशास्त्रना प्रणेता गणायेला मूलदेवने लगती भिन्न भिन्न कथाओ (पृ. १४४-४८) पण लोकवार्ताओनी कोटिमां जशे; जोके मूलदेव पोते एक ऐतिहासिक व्यक्ति हशे एवं केटलाक विद्वानोनुं मंतव्य छे. अवंतिसुकुमाल, अशकटापिता, थावच्चापुत्र आदिनां कथानको जे खरेखर जैन पुराणकथा ( Mythology )ना अंश बनी गयां छे एमां पण लोकवार्तानां तत्त्वो मिश्रित थयां हशे एवं स्वाभाविक अनुमान थाय छे. जैन अने बौद्ध साहित्यमा लोककथाओ, ज धर्मकथाओमा रूपान्तर करवामां आव्युं छे ए सिद्ध हकीकत छे. आगळ वधीने एम पण कही शकाय के दुनियाभरनी पुराणकथाओ अने देवकथाओनो अनादिकाळथी लोककथाओ साथे संबंध रहेलो छे. यादवकुळमां थयेला, बावीसमा तीर्थंकर अरिष्टनेमि अथवा नेमिनाथ विशेना उल्लेखो आ पुस्तकमां अनेक स्थळे (पृ. २४, ४९५०, ८०-८१, ९६, इत्यादि ) जोवामां आवशे. तेओ श्रीकृष्णना काकाना दीकरा हता. जैन साहित्यमां सर्वत्र यादवकुळनो इतिहास नेमिनाथना चरित्रनी आसपास गंथायेलो छे; ब्राह्मण पुराणोमां यादवोनो इतिहास मुख्य अंशोमां जैन साहित्यमां अपायेला वृत्तान्त साथे साम्य धरावे छे. मात्र नेमिनाथनो वृत्तान्त, तेमनो नामोल्लेख पण, एमां मळतो नथो ! जैन धर्मनी स्थापना महावीरे करी नहोतो, महावीर तो नवीन धर्मना प्रवर्तक करतां प्राचीन धर्मना सुधारक अने समुद्धारक हता. तेमनी पूर्वेना त्रेवीसमा तीर्थकर पार्श्वनाथ निःशंकपणे ऐतिहासिक Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यक्ति पुरवार थया छे अने ए सिवायना बावीस तीर्थंकरो पैको केटलाकनी ऐतिहासिकतानां प्रमाणो मळे तो नवाई जेवू नथी. बौद्ध ग्रन्थ 'महावग्ग' (१. २२, १३) अनुसार बुद्धना समयमां राजगृहमां सातमा तीर्थकर सुपार्श्वनाथनु मन्दिर हतुं. ए जे ग्रन्थ जणावे छे के आजीवक संप्रदायनो उपक नामे तपस्वी अनंतनाथनो उपासक हतो. जैनो अने आजीवकोना गाढ ऐतिहासिक संपर्कनो विचार करतां आ अनंतनाथ ते चौरमा तीर्थकर संभवे छे. अलबत, आवां प्रमाणो तार्किक दृष्टिए सुपार्श्वनाथ के अनंतनाथनी ऐतिहासिकता पुरवार करे के केम ए विशे मतभेद रहेवानो, पण महावीरना समयमां तेमज ए पूर्वे प्राचीनतर तीर्थंकरो पूजाता हता ए हकीकत तो एमाथी निर्विवादपणे फलित थाय छे. नेमिनाथना विषयमा वात करीए तो, मात्र पछीना काळनां चरित्रोमां ज नहि, परन्तु भाषा छंद तेमज अन्य दृष्टिबिन्दुए सौथी प्राचीन पुरवार थयेला मूल आगमग्रन्थोमां नेमिनाथ विशे तेमज यादवोना इतिहास विशे पुष्कळ सामग्रो मळे छे. 'वसुदेव-हिंडी' जेवा प्राचीन कथाग्रन्थनो ठीक मोटो गणी शकाय एवो अंश ए वृत्तान्त वडे रोकायेलो छे, ज्यारे बीजी तरफ पुराणादिमां भागवत संप्रदायना कथयितव्यने रजू करवामां उपयोगी थाय एटले ज अंशे यादवकुळना वृत्तान्तनो विनियोग करवामां आव्यो छे. आ बधुं जोतां नेमिनाथनु इतिहासमां अस्तित्व नहि होय अने तेओ केवळ देवकथानी ज व्यक्ति हशे एवो तर्क भाग्येज साधार गणाशे. पुराणकारोए श्रीकृष्णना चरित्रनी आसपास यादवकुळनो इतिहास ग्रंथवा माटे नेमिनाथना जीवनवृत्तान्तने जाणी जोईने पडतो मूक्यो हशे एवी कल्पना थाय छे. ___ जैन कथाओमा आवतां सांबनां तोफानो श्रीकृष्णनां बालचरित्रोनी याद आपे छे. (पृ. १८९-९२ ).. गुजरातना मध्यकालीन इतिहासने लगती एक अनुश्रुति प्रमाण Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मां अर्वाचीन कही शकाय एवी एक टीकामां नोधायेली छे. अभीष्ट स्त्रीनी कामना करतां मनुष्य दुःखी थाय अने स्त्रीनी प्राप्ति थवा छतां पुत्रादिनी आशाथी दुःखी थाय, ए संबंधमां राजा सिद्धराज जयसिंहर्नु उदाहरण टीकाकारे आप्यु छ (पृ. १९५), ते सिद्धराज माटे आ प्रकारनी किंवदन्ती लोकप्रसिद्ध हशे एम सूचवे छे. ___ अंते, मर्यादित समयमा एकले हाथे बधु आगमसाहित्य तपासवानो प्रयत्न ए दरियो डहोळवा जेवू एक साहस हतुं. साथे शिक्षण अने संशोधननां बीजां कार्यों पण चालु राखवानां हतां. आ बधां कारणोए तेमज मारी अणसमज के सरतचूकने कारणे आ पुस्तकमां त्रूटीओ रहेवा पामी हशे ते विद्वानो बतावशे तो उपकृत थईश. आभारदर्शन __ आ पुस्तक तैयार करवानुं काम सौ पहेलां मारा विद्यागुरु पू. मुनिश्री पुण्यविजयजीने सोपायु हतुं, पण तेओए आगमवाचनानु भगीरथ काम हाथमां लोधुं तथा लगभग ए अरसामां गुजरात विधासभाना अनुस्नातक विभागमां मारी निमणूंक थई, एट्रले ए काम मने सोपायुं. आ कामने अंगे बधो समय तेमना तरफथी सूचनो तेमज जोईतां पुस्तकोनी सहाय मळती रही हती ए बदल तेमनो ऋणी छं. भो. जे. विद्याभवनना अध्यक्ष श्री. रसिकलाल छो. परीखने आ आखू पुस्तक, छापवा आपतां पहेलां, साधन्त बताव्यु हतुं. तेमनां सूचनोने परिणामे पुस्तकनुं मूल्य वध्यु छे एम कहेवामां हुं लेशमात्र अत्युक्ति करतो नथी. आचार्य श्री. जिनविजयजी अने पं. सुखलालजी संघवी साथे पण आ कार्य अंगे वखतोवखत चर्चा थई हती. श्री. उमाशंकर जोषीकृत 'पुरागोमां गुजरात' आ पहेलां प्रसिद्ध थयेलं छे, एनी योजनानो लाभ स्वाभाविक रीते अहीं मने मळ्यो हतो, अने एकत्रित सामग्रीनी व्यवस्थानो श्रम प्रमाणमां हळवो थयो हतो. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ पुस्तकनी तैयारीनां प्रारंभनां केटलांक वर्ष दरमियान अमे बन्ने भो. जे. विद्याभवनमां सहाध्यापको हता त्यारे एमनो साथे वारंवार उपयोगी विचारविनिमय, अन्य उपरांत, आ काम अंगे पण थयो हतो. प्रूफ जोवाना तेमज मुद्रणनी व्यवस्थाना कार्यमा विद्यासभाना क्युरेटर अने गुजरातीना अध्यापक श्री. केशवराम का. शास्त्रीनी सहाय घणी मूल्यवान हती तथा डॉ. हरिप्रसाद शास्त्री अने अन्य सहाध्यापको साथे पण केटलाक अगत्यना मुद्दाओ अंगे चर्चा-विचारणा थई हती. तपस्वी मुनिश्री कान्तिविजयजीए केटलाक ग्रन्थो पूरा पाडया हता तथा श्री. धीरुभाई ठाकरे 'निशीथ चूर्णि 'ना टाइप करेला पांच दुर्लभ ग्रन्थो उपयोग माटे मेळवी आप्या हता. श्री. अंबालाल आशाराम जेतलपुरियाए केटलुक आगमसाहित्य तपासवामां सहाय करी हती. वडोदरा युनिवर्सिटीमां मारा सहकार्यकर श्री. इन्द्रवदन अंबालाल दवेए आ पुस्तकनी सूचि काळजीपूर्वक तैयार करी आपी छे. ए सर्व सज्जनो प्रत्ये आ स्थळे हुं कृतज्ञभाव व्यक्त करूं छु. 'अध्यापक निवास' प्रतापगंज, घडोदरा भोगीलाल जयचंदभाई सांडेसरा ता. ११-४-१९५२ । Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संक्षेप-सूचि अनु : अनुयोगद्वार सूत्र - मलधारी हेमचन्द्रनी वृत्ति समेत : प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई, ई. स. १९२४ अनुचू : अनुयोगद्वार सूत्र - चूर्णि प्रकाशक ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम अनुहा: अनुयोगद्वार सूत्र - हारिभदीया वृत्ति (ई. स. नो ८ मो सैको ) : प्रकाशक ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम अनु : अनुयोगद्वार सूत्र - मलधारी हेमचन्द्रनी वृत्ति ( ई. स. नो १२ मो सैंको ) : प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई, ई. स. १९२४ ( उपर ' अनु ' वडे निर्दिष्ट संस्करण ) अरा : अभिधान राजेन्द्र : ग्रन्थ १ थी ७ : संपादक विजयराजेन्द्रसूरि, रतलाम, ई. स. १९१३ -३४ आचू : आवश्यक सूत्र - चूर्णि, पूर्वभाग अने उत्तरभाग : प्रकाशक ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम आनि : आवश्यक सूत्र-निर्युक्ति (नीचे 'आम' वडे निर्दिष्ट संस्करण ) आम : आवश्यक सूत्र-आचार्य मलयगिरिनी वृत्ति (ई. स. नो १२ मो सैको ), भाग १ थी ३: प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई, ई. स. १९२८-३२ आशी : आचारांग सूत्र - शीलांकदेवनी वृत्ति ( ८ मा सैका आसपास), भाग १ - २ : प्रकाशक आगमोदय समिति, सं. १९७२७३; एनुं पुनर्मुद्रण जैनानंद पुस्तकालय, सूरत तरफथी थयुं छे. आसूचू : आचारांग सूत्र - चूर्णि : कर्ता जिनदासगणि महत्तर ( ई. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स. नो ७ मो सैको) : प्रकाशक ऋषभदेवजी केसरीमलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम, सं. १९९८ आह : आवश्यक सूत्र-हरिभद्रसूरिनी वृत्ति ( ई. स. नो ८ मो सैक्रो): प्रकाशक दे. ला. जैन पुस्तकोद्वार फंड, मुंबई आहेहा : मलधारी हेमचन्द्र (ई. स. नो १२ मो सैको) सूत्रित हारिभद्रीय आवश्यकवृत्तिटिप्पण : प्रकाशक दे. ला. जैन पुस्तकोद्वार फंड, मुंबई, ई. स. १९२० ओनिद्रो : ओघनियुक्ति-द्रोणाचार्यनी वृत्ति (ई. स. नो ११ मो सैको) : प्रकाशक आगमोदय समिति, मेसाणा, सं. १९७५ ओनिभा : ओघनियुक्ति-भाष्य, (उपर 'ओनिद्रो' वडे निर्दिष्ट संस्करण ) औसूअ : औपपातिक सूत्र-अभयदेवसूरिनी वृत्ति (ई. स. नो ११ मो सैको ) : प्रकाशक आगमोदय समिति, मेसाणा, सं. १९७२ अंद : अंतकृत्दशा सूत्र : प्रकाशक आगमोदय समिति, सं. १९७६ अंदवृ : अंतकृत्दशा सूत्र-अभयदेवसूरिनो वृत्ति (ई. स. नो ११ मो सैको). ( उपर 'अंद' वडे निर्दिष्ट संस्करण ) उ : उत्तराध्ययन सूत्र (नीचे 'उशा' वडे निर्दिष्ट संस्करण उक : उत्तराध्ययन सूत्र-उपाध्याय कमलसंगमकृत टीका (सं. १५४४ ई. स. १४८८) : संपादक मुनि जयंतविजयजी उचू : उत्तराध्ययन सूत्र-चूर्णि : प्रकाशक ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम, सं. १९९८ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उनि : उत्तराध्ययन सूत्र-नियुक्ति. (नीचे 'उशा' वडे निर्दिष्ट संस्करण ) । उने : उत्तराध्ययन सूत्र-नेमिचन्द्रनी वृत्ति ( सं. ११२९ ई. स. १०७३ ) : संपादक विजयउमंगसूरि, सं. १९९३ उशा : उत्तराध्ययन सूत्र-शान्तिसूरिनी वृत्ति ( ई. स. नो ११ मो सैको ) : प्रकाशक दे. ला. जैन पुस्तकोद्धार फंड; भाग १ अने २, सं. १९७२; भाग ३, सं. १९७३ ककि : कल्पसूत्र-उपाध्याय धर्मसागरकृत किरणावली टीका (सं. १६२८ ई. स. १५७२ ) : संपादक पं. दानविजय, भावनगर, सं. १९७८ ककौ : कल्पसूत्र-उपाध्याय शान्तिसागरकृत कौमुदी टोका (सं. १७०७ ई. स. १६५१), प्रकाशक ऋषभदेवजी केशरी मलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम, सं. १९९२ कदी : कल्पसूत्र-जयविजयकृत दीपिका टीका (सं. १६७७ ई. . स. १६२१) : संपादक पं. मफतलाल झवेरचंद, प्रकाशक महोपाध्याय यशोविजय पुस्तकालय, राधनपुर, सं. १९९१ कसु : कल्पसूत्र-उपाध्याय विनयविजयकृत सुबोधिका टीका (सं. १६९६ ई. स. १६४०) : प्रकाशक दे. ला. जैन पुस्तकोद्धार फंड, सूरत, सं. १९६७ कसं : कल्पसूत्र-खरतरगच्छीय जिनप्रभसूरिकृत संदेहविषौषधि टीका (सं. १३६४ ई. स. १३०८) : संपादक पं. हीरालाल हंसराज, जामनगर, सं १९६९ चं : चंदाविज्झय प्रकीर्णक ('प्रकीर्णकदशक 'मां मुद्रित, प्रकाशक : Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमोदय समिति, मुंबई, सं. १९८३). अलग पण छपायु छे : संपादक विजयक्षमाभद्रसूरि, पाटण, सं. १९९७ जिरको : जिनरत्नकोश : हरि दामोदर वेलणकर, भाग १, पूना, ई. स. १९४४ जीकचू : जीतकरूपचूर्णि : संपादक मुनि जिनविजयजी, अमदावाद, सं. १९८३ जीकचून्या : जीतकल्पचूर्णि : विषमपद व्याख्या-कर्ता श्रीचन्द्रसूरि (सं. १२२७ ई. स. ११७१) . (उपर 'जीकचू' वडे निर्दिष्ट संस्करण ). जीकमा : जीतकल्पभाष्य : (नीचे 'जीकसू' वडे निर्दिष्ट संस्करण ) जीकसू : जीतकल्पसूत्र-कर्ता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण (ई. स. नो ७ मो सैको) : संपादक मुनिश्री पुण्यविजयजी, अमदावाद, सं. १९९४ जीम : जीवाभिगम सूत्र-आचार्य मलयगिरिनी वृत्ति ( ई. स. नो १२ मो सैको ) : प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई. जेसू : जेसलमेर भांडागारीय ग्रन्थसूचि : पं. लालचंद्र भगवानदास गांधी, वडोदरा, ई. स. १९२३ जैसाइ : जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास : श्री. मोहनलाल दलीचंद देसाई, मुंबई, ई. स. १९३३ जंग : जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति ( नीचे 'जशा' बड़े निर्दिष्ट संस्करण ) जंप्रशा : जंबुद्वीपप्रज्ञति-वाचक शान्तिचंद्रनी वृत्ति (सं. १६५० = ई. स. १५९४ ) : प्रकाशक दे, ला. जैन पुस्तकोद्धार फंड, मुंबई, सं. १९७६ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाध : ज्ञाताधर्मकथा सूत्र (नीचे 'ज्ञाधअ' वडे निर्दिष्ट संस्करण) ज्ञाधम : ज्ञाताधर्मकथा सूत्र-अभयदेवसूरिनी वृत्ति (सं. ११२० = ई. स. १०६४ ), प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई, ई.स. १९१६ ज्योकम : ज्योतिष्करंडक-मलयगिरिनी वृत्ति (ई. स. नो १२ मो सैको) : प्रकाशक ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम, सं. १९८४ ज्योडि : ज्योग्राफिकल डिक्शनेरी ऑफ अन्श्यन्ट अॅन्ड मिडीवल इन्डिया : नंदलाल दे, लंडन, ई. स. १९२७ दवै : दशवैकालिक सूत्र (नोचे 'दवहा' वडे निर्दिष्ट संस्करण ) दवैचू : दशवकालिक चूर्णि-जिनदासगणि महत्तरकृत (ई. स. नो ७ मो सैको) : प्रकाशक ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम, सं. १९८९ । दवस : दशवैकालिक सूत्र-समयसुन्दरकृत टीका (सं. १६९१ = ई. स. १६३५) : जिनयशःसूरि ग्रन्थमाळा, खंभात, सं. १९७५ दवहा : दशवकालिक सूत्र-हारिभद्रीया वृत्ति (ई. स. मो आठमो सैको): प्रकाशक दे. ला. जैन पुस्तकोद्धार फंड, सं. १९७४ निचू : निशीथ सूत्र-चूर्णि ( टाइप करेली नकल ) : संपादक आचार्य विजयप्रेमसूरि, भाग १ थी ५, सं. १९९५-९६ निभा : निशीथ सूत्र-भाष्य ( उपर 'निचू' बड़े निर्दिष्ट संस्करण) , Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंचू : नंदिसूत्र चूर्णि-जिनदासगणि महत्तरकृत (. स. नो ७ मो सैको) : प्रकाशक ऋषभदेवजी केशरोमलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम, ई. स. १९२८ नंम : नंदिसूत्र-आचार्य मलयगिरिनी वृत्ति ( ई. स. नो १२मो सैको ) : प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई, ई. स. १९२४ नंसू : नंदिसूत्र ( उपर 'नम' वडे निर्दिष्ट संस्करण ) नंहा : नंदिसूत्र-हारिभद्रीया वृत्ति (ई. स. नो ८ मो सैको) : - प्रकाशक ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम, ई. स. १९२८ पाय : पाक्षिकसूत्र-यशोदेवसूरिनी वृत्तिः ( सं. ११८८ ई. स. ११२४ ) : प्रकाशक दे. ला. जैन पुस्तकोद्धार फंड, मुंबई, सं. १९६७. पिनिम : पिंडनियुक्ति-भाष्य अने मलयगिरिनी टीका ( ई. स. नो १२ मो सैको ) सहित : प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई, सं. १९७४ पुगु : पुराणोमां गुजरात : उमाशंकर जोषी, अमदावाद, ई.स. १९४६ प्रच : प्रभावकचरित ( सं. १३३४ ई. स. १२७८ )-प्रभाचन्द्र सूरिकृत : संपादक मुनि जिनविजयजी, अमदावाद कलकत्ता, ई. स. १९४० प्रम : प्रज्ञापना सूत्र-मलयगिरिनी वृत्ति ( ई. स. नो १२मो सैको): प्रकाशक आगमोदय समिति, मेसाणा, पूर्वार्ध-उत्तरार्ध, सं. १९७४-७५ प्रव्या : प्रश्नव्याकरण सूत्र (नीचे 'प्रव्याअ' वडे निर्दिष्ट संस्करण) Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० प्रव्याअ : प्रश्नव्याकरण सूत्र-अभयदेवसूरिनी वृत्ति (ई. स.नो ११ मो सैको ) : प्रकाशक आगमोदय समिति, मेसाणा, सं. १९७५ प्रसू : प्रज्ञापना सूत्र : प्रकाशक आगमोदय समिति, मेसाणा, पूर्वार्ध ___ उतरार्ध, सं. १९७४-७५ बुक : बृहत्कल्पसूत्र : संपादक मुनिश्री चतुरविजयजी अने मुनिश्री पुण्यविजयजी, भाग १ थी ५, भावनगर, ई. स. १९३३-- ३८; ६हो ग्रन्थ हवे पछी प्रसिद्ध थशे. बकक्षे : बहत्कल्पसूत्र-आचार्य क्षेमकीर्तिनी वृत्ति (सं. १३३२ ई.स. १२७६) (उपर 'बुक' वडे निर्दिष्ट संस्करण ) बुकमा : बहत्कल्पसूत्र-संघदासगणि क्षमाश्रमणकृत भाष्य (ई. स. ना ६हा सैका आसपास) (उपर बृक वडे निर्दिष्ट संस्करण) बकम : बृहत्कल्पसूत्र-आचार्य मलयगिरिनी पीठिका वृत्ति (ई. स. नो १२मो सैको) ( उपर 'बुक' वडे निर्दिष्ट संस्करण) भप : भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक ('प्रकीर्णकदशक 'मां मुद्रित ): प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई, सं. १९८३ भसू : भगवती सूत्र : प्रकाशक आगमोदय समिति, भाग १-३, अमदावाद, सं. १९८२-८५ भसूअ : भगवतीसूत्र-अभयदेवसूरिनी वृत्ति (सं. ११२८ ई. स. १०७२) Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (उपर 'भसू' वडे निर्दिष्ट संस्करण ) मस : मरणसमाधि प्रकीर्णक ( 'प्रकीर्णकदशक 'मां मुद्रित ) : प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई, सं. १९८३ राप्रम : राजप्रश्नीय सूत्र-मलयगिरिनी वृत्ति (ई. स.नो १२ मो सैको) : प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई, सं. १९८१ विको : विशेषावश्यक भाष्य-कोट्याचार्यनी वृत्ति ( ई. स. ना ८मा सैका आसपास ) : प्रकाशक ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम विभा : विशेषावश्यक भाष्य-कर्ता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ( ई. स.ना ७ मा सैकानो प्रारंभ ) : प्रकाशक ऋषभदेवजी केशरी मलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम विसूअ : विपाक सूत्र-अभयदेवसूरिनी वृत्ति (ई. स. नो ११मो सैको) : प्रकाशक आगमोदय समिति, सं. १९७६ वृद : वृष्णिदशा (निर्यावलिका 'मां मुद्रित ) : प्रकाशक आगमोदय ___ समिति, सं. १९७८ ववृ : वन्दारुवृत्ति-श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र उपर देवेन्द्रसूरिनी वृत्ति ( इ. स. नो १३मो सैको) : प्रकाशक दे. ला. जैन पुस्तकोद्धार फंड, मुंबई, सं. १९६८ व्यभा : व्यवहार सूत्र-संघदासगणि समाश्रमणकृत भाष्य (ई. स.ना छठा सैका आसपास ) (नीचे 'व्यम' वडे निर्दिष्ट संस्करण ) व्यम : व्यवहार सूत्र-मलयगिरिनी वृत्ति ( ई. स.नो १२मो सैको): संपादक मुनि माणेक, अमदावाद श्रापर : श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र--रत्नशेखरसूरिनी वृत्ति (सं. १९४६= Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२. ई. स. १४४० ) : प्रकाशक दे. ला. जैन पुस्तकोद्धार फंड, मुंबई, सं. १९६८ ससूअ : समवायांग सूत्र- अभयदेवसूरिनी वृत्ति (सं. ११२० = ई. स. १०६४ ) : प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई, सं. १९७४ सुकृचू : सूत्रकृतांग सूत्र - जिनदासगणि महत्तरकृत चूर्णि ( ई. स. नो ७ मो सैको) : प्रकाशक ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेतांबर संस्था, रतलाम, सं १९९८ सुकृशी : सूत्रकृतांग सूत्र - शीलांकदेवनी वृत्ति ( ई. स. ना ८ मा सैका आसपास ) : प्रकाशक आगमोदय समिति, मेसाणा, सं. १९७३ सूप्रम : सूर्यप्रज्ञप्ति - मलयगिरिनी वृत्ति ( ई. स. नो १२ मो सैको ) : प्रकाशक आगमोदय समिति, सं. १९७५ संप्र : संस्तारक प्रकीर्णक ( 'प्रकीर्णकदशक 'मां मुद्रित) प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई, सं. १९८३ ११२० = ई स. स्थासूअ : स्थानांग सूत्र - अभयदेवसूरिनी वृत्ति (सं. १०६४ ) : प्रकाशक आगमोदय समिति, भाग १ - २, सं. १९७६ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्दर्भसूचि [आ पूर्व निर्देशायेला उपरांत उपयोगमा लेवायेला महत्त्वना प्रन्थोनी सूचि । आगमसाहित्य अनुत्तरोपपातिकदशा सूत्र-अभयदेवसरिनी वृत्ति (ई. स.नो ११मो सैको ) समेत : प्रकाशक आगमोदय समिति, सं. १९७६ उपासकदशा सूत्र-अभयदेवसूरिनी वृत्ति (इ. स. नो ११ मो सैको) समेत : प्रकाशक आगमोदय समिति, मेसाणा, सं. १९७६ ___ दशाश्रुतस्कन्ध -संपादक उपाध्याय आत्मारामजी पंजाबी, जैन शास्त्रमाला नं. १, लाहोर, सं. १९९७ निर्यावलिका (कप्पिया, कप्पवडंसिया, पुष्फिया, पुष्फचूलिया, वह्निदसा ए पांच सूत्रो)-श्रीचन्द्रसूरिनी वृत्ति ( सं. ११२८-ई स. १०७२ ) समेत : प्रकाशक आगमोदय समिति, सं. १९७८ प्रकीर्णकदशकम् ( चउसरण, आतुरप्रत्याख्यान, महापरिज्ञा, भक्तपरिज्ञा, तंदुलवेयालिय, संस्तारक, गच्छाचार, गणिविद्या, देवेन्द्रस्तव, मरणसमाधि ए दश प्रकीर्णको) : प्रकाशक आगमोदय समिति, मुंबई, सं. १९८३ श्रमणप्रतिक्रमण सूत्र वृत्ति-पूर्वाचार्यकृत : प्रकाशक दे. ला. जैन पुस्तकोद्धार फंड, मुंबई, सं. १९६७ इतर साहित्य अलो हिस्टरी ऑफ इन्डियाः विन्सेन्ट स्मिथ, ४ थी आवृत्ति, ऑक्स्फर्ड, ई. स. १९३२ ___ अलंकारसर्वस्व (रुय्यककृत) : संपादक पं. गिरिजाप्रसाद द्विवेदी, २ जी आवृत्ति, मुंबई, ई. स. १९३९ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आबु, भाग १ : मुनि जयंतविजयजी, उज्जैन, ई. स. १९३३ इतिहासनी केडी : भोगीलाल ज. सांडेसरा, वडोदरा, ई. स. १९४५ इन्डिया अझ डिस्क्राइब्ड इन धी अर्ली टेक्स्ट्स ऑफ बुद्धिझम अॅन्ड जैनिझम : बिमलाचरण लो, लंडन, ई. स. १९४१ इन्डो-आर्यन अॅन्ड हिन्दी : सुनीतिकुमार चेटरजी, अमदावाद, ई. स. १९४२ __ उज्जयिनी इन अॅन्श्यन्ट इन्डियाः बिमलाचरण लो, कलकत्ता, ई. स. १९४४ कम्पेरिटिव अॅन्ड इटिमोलोजिकल डिक्शनरी ऑफ धी नेपाली लेंग्वेज : राल्फ लीली टर्नर, लंडन, ई. स. १९३१ मे हिस्टरी ऑफ इन्डियन लिटरेचर : वॉल्यूम २ जूं : अम. विन्टरनित्स, कलकत्ता, ई. स. १९३३ अ हिस्टरी ऑफ इम्पोर्टेन्ट अन्श्यन्ट टाउन्स अन्ड सिटीझ इन गुजरात अॅन्ड काठियावाड : अनंत सदाशिव अळटेकर, मुंबई, ई. स. १९२६ तिहासिक संशोधन : दुर्गाशंकर केवळराम शास्त्री, मुंबई, ई. स. १९४१ कनिंगहेंग्स अन्श्यन्ट ज्योग्रफी ऑफ इन्डिया : संपादक सुरेन्द्रनाथ मजमूदार शास्त्री, कलकत्ता, ई. स. १९२४ करकंड चरिउ (कनकामरकृत) : संपादक हीरालाल जैन, कारंजा, ई. स. १९३४ ____ कादंबरी (बाणभट्टकृत ) : निर्णयसागर प्रेसनी सातमी आवृत्ति, मुंबई, ई. स. १९२८ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काव्यानुशासन (हेमचन्द्रकृत ), भाग २ जो, प्रस्तावनाः रसिकलाल छो. परीख, मुंबई, ई. स. १९३८ कुमार (मासिक) कैम्ब्रिज हिस्टरी ऑफ इन्डिया, वाल्युम १ ( अन्श्यन्ट इन्डिया): संपादक इ. जे. रेप्सन, कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी प्रेस, ई. स. १९२२ खंभोतनो इतिहास : रत्नमणिराव भीमराव जोटे : अमदावाद, ई. स. १९३५ गुजराती साहित्यसंमेलन : १२मुं अधिवेशन : अहेवाल अने निबंधसंग्रह, अमदावाद, ई. स. १९३७ गाथासप्तशती ( सातवाहन हालकृत ) : संपादक पं. मथुरानाथ शास्त्री, ३ जी आवृत्ति, मुंबई, ई. स. १९३३ गुजरातनो मध्यकालीन राजपूत इतिहास, भाग १-२ : दुर्गाशंकर केवळराम शास्त्री, अमदावाद, ई. स. १९३७-३९ गुजरातना जैतिहासिक लेखो, भाग १ : संपादक गिरिजाशंकर : वल्लभजी आचार्य, मुंबई, ई. स. १९३३ चतुर्भाणी : संपादक एम. रामकृष्ण कवि अने एस. रमानाथ शास्त्री, पटणा, ई. स. १९२२ चत्वारः कर्मग्रन्थाः (देवेन्द्रसूरिकृत ) : संपादक मुनि चतुरविजयजी, भावनगर, ई. स. १९४७ जर्नल ऑफ धी औरियेन्टल इन्स्टिट्यूट ( त्रैमासिक) जैन साहित्य और इतिहास : नाथुराम प्रेमी, मुंबई, ई. स. १९४२ जैन साहित्य संशोधक (त्रैमासिक ) जैनिझम इन नार्थ इन्डिया : सी. जे. शाह, मुंबई, ई. स. १९३२ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टाइस इन अॅन्दयन्ट इन्डिया : बिमलाचरण लो, पूना, ई. स. १९४३ डाइनेस्टिझ ऑफ धी कलि एज : अफ. इ. पार्जिटर, ऑक्स्फर्ड युनिवर्सिटी प्रेस, ई. स. १९१३ डिक्शनरी ऑफ पालि प्रोपर नेम्स, भाग १-२: जी. पी. मलालसेकर, लंडन, ई. स. १९३८ ___ तत्त्वार्थसत्र ( वाचक उमास्वातिकृत) : संपादक पं. सुखलालजी, २ जी आवृत्ति, अमदावाद, ई. स. १९४० तंत्रोपाख्यान : संपादक सांबशिव शास्त्री, त्रिवेन्द्रम्, ई. स. १९३८ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र ( आचार्य हेमचन्द्रकृत ) : भावनगर, ई. स. १९०६-१३ दशकुमारचरित (दंडीकृत ): संपादक नारायण बालकृष्ण गोडबोले अने टी. वेंकटराम शास्त्री, ८ मी आवृत्ति, मुंबई, ई. स. १९१७ देवतामूर्तिप्रकरण अने रूपमंडन : संपादक उपेन्द्रमोहन सांख्यतीर्थ, कलकत्ता, ई. स. १९३६ द्वयाश्रय महाकाव्य (आचार्य हेमचन्द्रकृत), ग्रन्थ १-२ : संपादक आबाजी बिष्णु काथवटे, मुंबई, १९१५-२१ .. धूर्ताख्यान (हरिभद्रसूरिकृत) : संपादक आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, मुंबई, ई. स. १९४४ निघंटु आदर्श, पूर्वार्ध-उत्तरार्ध : वैद्य बापालाल ग. शाह, हांसोट, ई. स. १९२७-२८ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ક निर्वाणकलिका ( पादलिप्साचार्यकृत ) संपादक मोहनलाल भगवानदास झवेरी, मुंबई, ई. स. १९२६ निववाद मुनि धुरंधर विजयजी, भावनगर, ई. स. १९४७ न्यायायतारबार्तिक वृत्ति (पूर्णतलगच्छीय शान्तिसूरिकृत ) : संपादक पं. दलसुख मालवणिया, मुंबई, ई. स. १९४९ न्यू इन्डियन एन्टिक्वेरो ( मासिक ) : पाइअ - सद- महण्णवो पं. हरगोविन्ददास त्रीकमचंद शेठ, कलकत्ता, ई. स. १९२३-२८ पुरातन प्रबन्ध संग्रह : संपादक जिनविजयजी मुनि, कलकत्ता, ई. स. १९३६ पोलिटिकल हिस्टरी ऑफ अॅन्श्यन्ट इन्डिया : हेमचन्द्र रायचौधरी, ३ जी आवृत्ति, कलकत्ता, ई. स. १९३२ पंचतंत्र : संपादक अने अनुवादक भोगीलाल ज. सांडेसरा, मुंबई, ई. स. १९४९ प्रतिज्ञायौगन्धरायण ( भासकृत ) संपादक टी. गणपतिशास्त्री, त्रिवेन्द्रम, ई. स. १९१२ प्रबन्धकोश ( राजशेखरसूरिकृत ) संपादक जिनविजय मुनि, शान्तिनिकेतन, ई. स. १९३५ प्रबन्धचिन्तामणि ( मेरुतुंगाचार्यकृत ) : संपादक जिनविजय मुनि, शान्तिनिकेतन, ई. स. १९३३ प्रमेयकमलमार्तंड ( प्रभाचन्द्राचार्यकृत ) : संपादक पं. महेन्द्रकुमार शास्त्री, २ जी आवृत्ति, मुंबई, ई. स. १९४१ प्रेमी अभिनंदन ग्रन्थ, टीकमगढ, ई. स. १९४६ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ बुद्धिस्ट इन्डिया : रहाइस डेविड्झ, न्यूयोर्क, ई. स. १९०३ बृहत् कथाकोश (हरिषेणाचार्य कृत ) : संपादक आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, मुंबई, ई. स. १९४३ भारत के प्राचीन जैन तीर्थ : डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, बनारस, ई. स. १९५२ भारतीय विद्या ( अंग्रेजी मासिक ) भारतीय विद्या ( हिन्दी - गुजराती त्रैमासिक) मराठी व्युत्पत्तिकोश : कृष्णाजी पांडुरंग कुलकर्णी, मुंबई, ई. स. १९४६ महावीर जैन विद्यालय रजत महोत्सव ग्रन्थ, मुंबई, ई. स. १९४१ मालविया कॉमेमोरेशन वॉल्यूम, बनारस हिन्दु युनिवर्सिटी, ई. स. १९३२ मेघदूत ( कालिदासकृत ) : संपादक वासुदेव लक्ष्मण शास्त्री पणशीकर, १४ मी आवृत्ति, मुंबई, ई. स. १९३५ मोढेरा : मणिलाल मूळचंद मिस्त्री, वडोदरा, ई. स. १९३५ लाइफ इन अॅन्श्यन्ट इन्डिया एझ डिपिक्टेड इन भी जैन कॅनन : जगदीशचन्द्र जैन, मुंबई, ई. स. १९४७ लाइफ ऑफ हेमचन्द्राचार्य : डॉ. ज्यॉर्ज व्यूलर, अनुवादक डॉ. मणिलाल पटेल, शान्तिनिकेतन, ई. स. १९३६ लीलाव कहा ( कोऊहलकृत ) : संपादक डॉ. ए. एन. उपाध्ये, मुबई, ई.स १९४९ लेखपद्धति : संपादक सी. डी. दलाल, वडोदरा, ई. स. १९३५ वडनगर : कनैयालाल भाईशंकर दवे, वडोदरा, ई. स. १९३७ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेव-हिंडी : प्रथम खंड (संघदासगणि वाचककृत ) : भाषान्तर : भोगीलाल ज. सांडेसरा, भावनगर, ई. स. १९४६ वसुदेव-हिंडी : प्रथम खंड (संघदासगणि वाचककृत) : मूल : संपादक मुनि चतुरविजयजी अने मुनि पुण्यविजयजी, भावनगर. ई. स. १९३०-३१ वसंत रजतमहोत्सव स्मारक ग्रन्थ, अमदावाद, ई. स. १९२७ विविध तीर्थकल्प (जिनप्रभसूरिकृत ) : संपादक जिनविजय मुनि, शान्तिनिकेतन, ई. स. १९३४ । वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना : मुनि कल्याणविजय, जालोर, सं. १९८७ शंखेश्वर महातीर्थ : मुनि जयंतविजयजी, उज्जैन, स. १९९८ श्रमण भगवान महावीर : मुनि कल्याणविजयजी, जालोर, सं. १९९८ श्रीकालककथासंग्रह : संपादक पं. अंबालाल प्रेमचंद शाह, अमदावाद, ई. स. १९४९ सन्मतिप्रकरण (अनुवाद अने प्रस्तावना) : पं. सुखलालजी संघवी अने पं. बेचरदास दोशी, अमदावाद, ई. स. १९३२ सरस्वतीपुराण : संपादक कनयालाल भाईशंकर दवे, मुंबई, ई. स. १९४० सिलेक्ट इन्स्क्रिप्शन्स बेरिंग आन इन्डियन हिस्टरी अॅन्ड सिविलाइझेशन, वो. १ : संपादक दिनेशचन्द्र सरकार, कलकत्ता, ई. स. १९४२ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्टोरी ऑफ कालक : नॉर्मन ब्राउन, वॉशिंग्टन, ई. स. १९३३ स्थविरावलिचरित अथवा परिशिष्ट पर्व ( आचार्य हेमचन्द्रकृत): संपादक हर्मन याकोबी, २जी आवृत्ति, कलकत्ता, ई. स. १९३२ स्याद्वादमंजरी ( मल्लिषेणकृत) : संपादक आनंदशंकर बापुभाई ध्रुव, मुंबई, ई. स. १९३३ हम्मीरमदमर्दन नाटक (जयसिंहसूरिकृत ) : संपादक चिमनलाल डाह्याभाई दलाल, वडोदरा, ई. स. १९२० हेमचन्द्राचार्य : धूमकेतु, मुंबई, ई. स. १९४० हैमसमीक्षा : मधुसूदन मोदी, अमदावाद, ई. स. १९४२ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्रक पंक्ति १ অহঃ मारी नाम पारसकुल मारो नाम. पारस कूल m m इर्ष्यालु ईर्ष्यालु om ० ० हती हतो टिकाकारोए टीकाकारोए 'जंबुद्वीपप्रज्ञाप्ति' 'जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति' तथा तथा तथा 'वसुदेव विंडी' 'वसुदेव-हिंडी' अर्वाचीत अर्वाचीन ताम्रलिप्त ताम्रलिप्ति ० । १९६ १९९ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन आगमसाहित्यमां गुजरात Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगडदत्त अगडदत्तनी कथा उत्तराध्ययन सूत्र (अध्य, ४) उपरनी शान्तिसूरिनी वृत्ति (पृ. २१३-१६)मां तथा ए ज सूत्र उपरनी नेमिचन्द्रनी वृत्ति (पृ. ८४-९४)मां आवे छे. शान्तिसूरिकृत वृत्त्यन्तर्गत कथा प्रमाणे, अगडदत्त उज्जयिनीना जितशत्रु राजाना रथिक अमोघरथनो पुत्र हतो (नेमिचन्द्र प्रमाणे, शंखपुरना राजा सुन्दरनो पुत्र हतो). पिताना मरण पछी अस्त्रविद्या शीखवा माटे ए पिताना एक मित्र पासे कौशांबीमा गयो (नेमिचन्द्र प्रमाणे, अगडदत्तना स्वच्छंदाचारथी कंटाळी गजाए एने देशवटो आप्यो; चाराणसीमां पवनचंड नामे एक कलाचार्य साथे परिचय थतां एने त्यां रही अगडदत्त अभ्यास करवा लाग्यो). त्यां विद्या शीख्या पछी गुरुनी आज्ञा लई पोतानी प्रवीणता दर्शाववा माटे ए राजकुलमा गयो; नगरमां अश्रुतपूर्व संधिच्छेद करता-खातर पाडता एक चोरने पकडी लाववानी राजाए सूचना करतां एणे युक्तिपूर्वक ए चोरने तेम ज एणे एकत्र करेलो भंडार साचवनारी एनी बहेनने-बन्नेने पकडी लीयां. ____ शान्तिसुरिनी वृत्तिमां अगडदत्तनी कथानो आटलो ज अंश आवे छे; पण नेमिचन्द्रवाळी कथामां प्रसंगविस्तार लांबो छे. चोर पकडवाना एना पराक्रमथी प्रसन्न थईने राजाए अगडदत्तने पोतानी पुत्री कमलसेना परणावी. कमलसेनाने तथा अगाउ कौशांबीमां अस्त्रविद्या शीखतां जेनी साथे पोताने प्रेम थयो हतो ते, श्रेष्ठी बंधुदत्तनी पुत्री मदनमंजरीने साथे लईने मार्गमा अनेक पराक्रम करतो अगडदत्त घेर जाय छे अने सुखपूर्वक रहे छे, पण एक बार पोतानी पत्नीनु दुश्चरित जाणवामां आवतां निर्वेद पामी दीक्षा ले छे. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ अगडदत्त स्पष्ट छ के बन्ने वृत्तिओमां आपेली अगडदत्तनो कथा बे विभिन्न परंपराओने अनुसरे छे. शान्तिसूरिनी वृत्तिमांनी कथा अति संक्षेपमां, सरल गद्यमां रजू थयेली छे, ज्यारे नेमिचन्द्रनी टीकामांनी कथा ३२९ पद्योमा विस्तरेली होई एक स्वतंत्र कृति बनी रहे छे. बन्नेय संस्कृत टीकाओमां आ कथाओ तो प्राकृतमा ज छे ए दावे छे के तुलनाए पछीना समयनी टीकाओमां बन्यु छे तेम, आ कथाओ वाचीनतर मूल ग्रन्थोमांथी यथावत् उद्धृत करेली छे. उत्तराध्ययन सूत्र उपरनी चूर्णि (पृ. ११६ )मां चारेक पंक्तिमा अगडदत्तनी कथानुं मात्र सूचन करवामां आवेलुं छे. बौद्ध अथवा ब्राह्मण साहित्यमा क्यांय अगडदत्तनी कथानुं स्पष्ट सारूपान्तर जोवामां आवतुं नथी. एवं स्वरूपान्तर प्राप्त थाय तो मूळ कथामुं स्वरूप तेमज समय मक्की करवामां ए अवश्य उपयोगी थाय, केम के ए सो स्पष्ट छे के जैन कर्ताए एक पराक्रमी क्षत्रिय युबकनां साहसोनु निरूपण करती लोककथाने धर्मकथानुं रूप आप्यु छे. जैम आगमेतर साहित्यमा अगडदत्तनी कथा एना सौथी प्राचीन स्वरूपे संघदासगणिकृत बृहत् प्राकृत कथाग्रन्थ 'वसुदेवहिंडी' (ई. स.ना पांचमा सैका आसपास) जे गुणाढचनी लुप्त 'बृहत्कथा'नू जैन रूपान्तर छे तेमां (पृ. ३७-३९) छे. शान्तिसूरिए जे कथानक उद्धृत कयु छे तेनी उपर 'वसुदेव-हिंडी' नी स्पष्ट असर छे अने केटलेक स्थाने तो देखीतुं शाब्दिक साम्य छे, ज्यारे नेमिचन्द्रे उद्धरेलु कथानक, पात्रो अने स्थानोनां भिन्न नामो तथा केटलाक भिन्न कथाप्नसंगो सूचवे छे ते प्रमाणे, कोई जुदी परंपराने अनुसरे छे.'. ___ अगडदलनी कथा एक लोकप्रिय जैन धर्मकथा गणाई छे. ए विशे संस्कृतमा एक 'अगडदत्त पुराण' रचायु छे, अने जैन गुर्जर साहित्यमा अगडदत्त विशे अनेक नानी मोटी कृतिओ प्राप्त थई छे... Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजमेर १ उत्तराध्ययननी उपर्युक्त बेट्रीकाओमां सचवायेली अगदत्तनी कथानी बे विभिन्न पाठपरंपराओनो समावेश डा. चाकोबीए Erzahlu. ngen in Maharastri ए ग्रन्थमां को छे, तथा ए बन्नेना केटलीक युरोपीय भाषाओमां अनुवाद पण थया छे. 'वसुदेव-हिंडी'- अंतर्गत कथाना अनुवाद माटे जुओ ए ग्रन्थन में करेलु गुजराती भावान्तर, पृ ४५-६०. उत्तराध्ययन-टीकाओमानी कथाओ साथे 'वसुदेव-हिंडी'मांना कथानकनी तुलना माटे जुओ 'न्यू इन्डियन अॅन्टीकचेरी, वो. १ (१२८१-९९) मां डा. आल्सडॉर्फनो लेख 'ए न्यू वर्झन आफ धी अगडदत्त स्टोरी. २ जिरको, पृ. १ ३ जुओ 'जैन गुर्जर कविओ,' भाग १-२-३ अचलग्राम अचलग्रामना भद्रिक कौटुम्बिकोए यशोधरमुनिनी पासे दीक्षा लीधी हती. आ अचलग्राम ए ज आभीरदेशमां आवेलुं अचलपुर के एथी भिन्न ए नक्की थई शक्यु नथी. १ मस, गा. ४४९-५१ अचलपुर आभीरदेशमां कृष्णा-वेणा नदीओना संगमस्थान पासे आवेढुं नगर. कृष्णा-वेणाना संगम आगळ आवेला ब्रह्मद्वीप नामे द्वीपमा वसता पांचसो तापसोने आर्य वजना मामा आर्य समितसूरिओ प्रतिबोध पमाड्यो हतो; ए प्रतिबोध पामेल तापसोथी जैन साधुओनी ब्रह्मद्वीपक नामे शाखानो आरंभ थयो हतो.' जुओ आभीर १ आचू, पूर्व भाग, पृ. ५४३; आम, पृ. ५१५, कसं, पृ. १३२; कसु, पृ. १३४; ककि, पृ. १७१; कदी, पृ. १४९-५९, नंसू, पृ. ५१; विनिम, पृ. १४४. अजमेरु अजमेर. अजमेर पासेना, राजा सुभटपाल-शासित गाम हर्षपुरमा ब्राह्मणा यज्ञमां बकराने मारता हला त्यारे प्रियग्रन्थसूरिए पोतानी Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ अनमेह मंत्रशक्तिथी बकराने वाचा अर्की, ब्राह्मणोने बोध आप्यो हतो.' १ कसु, पृ. ५०९-१०; ककि, पृ. १६९; कदी, पृ. १४८-४९. अट्टण ___अट्टण ए उज्जयिनीनो एक अजेय मल्ल हतो. सोपारकनो सिंहगिरि राजा मल्लोनी साठमारी करावतो अने जे जीते एने घणुं द्रव्य आपतो. अट्टण प्रतिवर्षे सोपारक जईने विजयचिह्न तरीके पताका लई आवतो. आथी सिंहगिरि राजाए एक माछीनुं बळ पारखीने एने पोष्यो; अने ए मात्स्यिक-माछी मल्ल तरीके ओळखायो. बीजे वर्षे अट्टण आव्यो त्यारे मात्स्यिक मल्ले एने हरावी दीघो. एक युवके पोताने हराव्यो तेथी मानभंग थयेलो अट्टण सुराष्ट्रमां एनी बराबरी करे एवो बीजो मल्ल छे एम सांभळीने एनी शोधमां सोपारकथी सुराष्ट्र तरफ जतो हतो त्या मार्गमां भरुकच्छ पासे एणे एक खेडूत जोयो. ए एक हाथे हल चलावतो हतो अने बीजे हाथे फलही-कपास चूंटतो हतो' (एगेणं हत्थेणं हलं वाहेति, एकेणं फलहीओ उप्पाडेइ). अट्टणे सुराष्ट्र जवानो विचार मांडी वाळ्यो अने ए खेडूतने धनवान बनाववानी लालच आपी पोतानी साथे उज्जयिनी लई गयो अने एने मल्लविद्या शीखवी. ए मल्ल फलहीमल्ल तरीके प्रसिद्ध थयो. पछी एओ बन्ने सोपारक आल्या. त्यां फलहीमल्ल साथे मात्स्यिक मल्लनु युद्ध थयु. पहेला दिवसे मल्लयुद्नो कई निर्णय थई शकयो नहि. ए सांजे अट्टणे पोताना शिष्य फलहीने पूछयं के 'तारां कयां अंग दुखे छे ?' अने पछी तेणे का त्यां एने खूब मर्दन करावीने ताजो को. बीजी बाजू , सिंहगिरि राजाए पोताना मारियक मल्लने एवो ज प्रश्न कयों; त्यारे एणे गर्वथी उत्तर आप्यो के ‘फलही बिचारो कोण छे ? हुं एना बापनो पण पराजय करी शकुं एम छं.' आथी बीजे दिवसे बन्ने मल्लोर्नु सम युद्ध थयुं अने त्रीजे दिवसे मात्स्यिक मल्ल हार्यो अने मरण Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टण ] [ ७ पाम्यो, तथा अड्डण सत्कार पामीने उज्जयिनी गयो ( आवश्यकसूत्र उपरनी चूर्णिमां अह सुधीनुं ज कथानक आप्युं छे. ) उज्जयिनी गया पछी एणे मल्लयुद्धनो त्याग करी दीधो. वळी वृद्ध थई गयो होवाथी संबंधीओ एनुं अपमान करवा लाग्या. आथी संबंधीओने समाचार आप्या विना ज ए कौशांबी चाल्यो गयो. त्यां एक वर्ष आराम लईने रसायणो खाधां तथा बलिष्ठ थयो. पछी एक बार एणे कौशांबीना राजाना मल निरंगणनो मल्लयुद्धमां पराजय करीने एने मारी नाख्यो. पोतानो मल्ल मरण पाम्यो एथी राजाए अट्टणनी प्रशंसा करी नहि, अने तेथी सभाजनाए पण न करी. आथी अट्टणे राजानी जाण माटेक के - साहह वण सणाणं, साहह भो सउणिगा सउणिगाणं । हितो णिरंगणो अट्टणेण णिक्खित्तसत्थेणं ॥ [ अर्थात् हे वन ! पक्षीओने कहे, अने हे पक्षीओ ! बीजां पक्षीओने कहो के जेणे शस्त्रो छोडी दीघां हृतां तेवा अट्टणे निरंगणने मारी नाख्यो छे. ] आ उक्ति उपरथी राजाए एने अट्टण तरीके ओळख्यो अने एनो सत्कार कर्यो, तथा जीवन पर्यंत चाले तेटलुं द्रव्य आप्युं. द्रव्यलोभथी संबंधोओ पण अट्टण पासे आव्यां. परन्तु 'आ लोको फरी पण मारी पराभव करशे' ए समजीने तथा पोतानी जातने जराग्रस्त जाणीने ' सचेष्ट कुं त्यांसुधी ज धर्म थई शकशे ' एवी समजपूर्वक अट्टणे दीक्षा लोधी. आ कथा, जेमां वास्तविक सामाजिक स्थिति लोकवार्ता रूपे निरूपण पामी होय एवो संभव छे ते प्राचीन भारतमां मल्लविद्याना इतिहास माटे घणी अगत्यनी छे, केम के हरिवंश भागवतादिमां कृष्णबलरामना तथा कंसना चरित्रप्रसंगमां तथा महाभारतादिमां दुर्योधन Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८] [ अट्टण भीम आदिना चरित्रप्रसंगमा आवता मल्ल अने मल्लयुद्धना निर्देश बाद करीए तो ए प्रकारना उल्लेखो के कथानको प्राचीन साहित्यमां विरल छे. मल्लविद्याविषयक स्वतंत्र रचनाओमां हमणां जाणवामां आवेलुं एक 'मल्लपुराण' तथा कल्याणोना चौलुक्य राजा सोमेश्वरकृत सर्वसंग्रहात्मक संस्कृत ग्रन्थ 'मानसोल्लास' (ई. स. नो बारमो सैको)मानु 'मल्लविनोद' नामे प्रकरण गणावी शकाय. प्राचीन गुर्जर देशमा मल्लविद्याना इतिहास माटे जुओ गुजरात विद्यासभा-प्रकाशित मारी पुस्तिका 'ज्येष्ठीमल्ल ज्ञाति अने मल्लपुराण.' उपर टांकेली कथामा मल्लोनां मात्स्यिक अने फलही ए नामो जेम विशेष नामो नथी, पण अनुक्रमे जातिवाचक अने क्रियासूचक छे तेम अट्टण पण विशेष नाम लागतुं नथी, केम के 'अट्ठण'नो अर्थ व्यायाम छे, अने ए उपरथी अहीं सतत व्यायाम करनार एक सुप्रसिद्ध मल्ल माटे 'अट्ठण' नाम प्रचलित थयुं हशे एवं अनुमान वधारे पडतुं नथो. १. उने, पृ. ७९; उशा, पृ. १९२ २. भाचू, उत्तर भाग, पृ. १५२-५३; उशा, पृ १९२-९३; उने; पृ. ७८-७९. वळी जुओ व्यम, पृ. ३, ज्यां आम ने अनुसरतो आ कथानकनो सार आप्यो छे. आचूमा आ कथानक मात्स्यिक मल्लमुं मरण थाय छे त्यांसुधी ज आप्यु छे. अणहिलपाटक अणहिलवाड पाटण. उत्तर गुजरातमां सरस्वतीने किनारे आवेला लाक्खाराम नामना प्राचीन गामने स्थाने चावडा वंशना वनराजे सं. ८०२ ई. स. ७४६मा पोताना मित्र अणहिल भरवाडना नाम उपरथी बसावेलं नगर, जे मध्यकालीन हिन्दु गुजरातनुं पाटनगर, तथा ईसवी सनमा दसमाथी तेरमा सैकाना अंत सुधी पश्चिम भारतनुं प्रमुख नगर अने संस्कृतिकेन्द्र हतुं. जैन आगमसाहित्यना Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्धकवृष्णि ] इतिहासमा पाटणनुं विशिष्ट स्थान छे. आगमनां मूळ प्राकृत सूत्रो मगधमां रचायां तो ए उपरनी सौथी प्रमाणभूत विद्यमान संस्कृत टीकाओ, एक मात्र हरिभद्रसूरिकृत टीकाओना अपवादने बाद करीए नो, अणहिलवाडमां अथवा आसपासना प्रदेशमा रचाई छे. आचारांग अने सूत्रकृतांग सूत्र उपरनी शीलांकाचार्यनी सुप्रसिद्ध टीकाओ पाटणथी थोडाक ज माइल दूर आवेला गंभूता (गांभू )मां लखाई हतो. विक्रमना बारमा शतकना प्रारंभमां अर्थात् ईसवी अगियारमी सदीना उत्तरार्धमां नवांगीवृत्तिकार तरीके जाणीता थयेला अभयदेवसूरिए जैन आगमनां नव अंग उपर प्रमाणभूत टीकाओ पाटणमां रची अने ए ज नगरमां वसता बीजा एक प्रकांड पंडित द्रोणाचार्ये त्यां ज ए टोकाओनुं संशोधन कयु. सं. ११२९ ई. स. १०७३मा दोहडि श्रेष्ठीनी वसतिमा रहीने रचायेली नेमिचन्द्रनी उत्तराध्ययन उपरनी वृत्ति, सं. ११८० ई. स. ११२४मां सौवर्णिक नेमिचन्द्रनी पौषधशाळामां रहीने रचायेली पाक्षिकसूत्र उपरनी यशोदेवसूरिनी वृत्ति, तथा सं. १२२७= ई. स. ११७१मां जीतकल्पसूत्र उपरनी श्रीचन्द्रसूरिनी व्याख्यानी रचना पाटणपां थई. शान्तिसूरिनी उत्तराध्ययन वृत्ति, आचार्य मलय गिरिनी सरल अने शास्त्रीय वृत्तिओ, द्रोणाचार्यकृत ओघनियुक्ति वृत्ति तथा मलधारी हेमचंद्रकृत टीकाओ पण पाटणमां रचाई होवी जोईए एम एकंदरे पुरावाओनो विचार करतां अनुमान थाय छे. आगमेतर विषयोमा पण गुजरातनी जे सर्वांगीण साहित्यप्रवृत्तिनुं पाटण सैकाओ सुधी केन्द्र हतुं तेनी चर्चा करवानुं आ स्थान नथी. . ___ वधु माटे जुओ अभयदेवमूरि, द्रोणाचार्य, नेमिचन्द्र, मलयगिरि, यशोदेवमूरि, शान्तिमरि, शीलाचार्य, श्रीचन्द्रसरि, हेमचन्द्र मलधारी इत्यादि. अन्धकष्णि यदुकुळना शौरि राजाना त्र. एओ शौरिपुरमा राज्य करता Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] [ अन्धक हता अने पाछळथी एमणे द्वारकामां आवीने राज्य स्थापयुं हतुं. एमने सुभद्रा राणीथी समुद्रविजय वगेरे दश पुत्रो थया हता, जेओ दश दशाई तरीके ओळखाया. एमणे पोताना मोटा पुत्रने राज्य सोपीने दीक्षा लीधी हती. १ जुओ दशा २ अद, वर्ग १ अभयदेवरि ર चंद्र (पालथी खरतर ) गच्छना आचार्य जिनेश्वरसूरि तथा एमना भाई बुद्धिसागरसूरिना शिष्य आचार्य अभयदेवसूरिए जैन आगमग्रन्थो पैकी नव अंग उपर संस्कृत टीकाओ रची अने तेथी तेओ नवांगीवृत्तिकार तरीके ओळखाया. नींचे प्रमाणे नव अंगो उपर एमनी टीकाओ छे. ज्ञाताधर्मकथा (सं. १९२० ई. स. १०६४), स्थानांग (सं. १९२०), समवायांग (सं. १९२०), भगवंती (सं. ११२८= ई. स. १०७२)*, उपासक दशा, अंतकृद्दशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, प्रश्नव्याकरण अने विपाक औपपातिक टीका अने प्रज्ञापना तृतीय पद संग्रहणी गाथा १३३ एमनी रचनाओं छे. आ उपरांत अभयदेवसूरिए जिनेश्वरसूरिकृत षट्स्थानक उपर भाष्य, हरिभद्रसूरिकृत पंचाशक उपर वृत्ति तथा आराधनाकुलक नामे स्वतंत्र ग्रन्थ पण रच्यो छे. वळी अभयदेवसूरिनी विनंतिथी एमना गुरुभाई जिनचंद्र सूरिए 'संवेग रंगशाला' (सं. १९२५ = ई. स. १०६९) नामे ग्रन्थ रच्यो हतो. . अभयदेवसूरिनी उपर्युक्त आगमग्रन्थो उपरनी वृत्तिओनी प्रशस्तिमां उल्लेख मळे छे ते प्रमाणे, ए वृत्तिआनुं संशोधन निर्वृति कुलना द्रोणाचार्ये कर्तुं हतुं. वळी प्रशस्तिओ उपरथी अनुमान थाय छे के द्रोणाचार्य जेमां मुख्य हता तेवी एक पंडितपरिषद आ वृत्तिओना Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभयदेवसूरि ] संशोधनमा रस लेती हती. भगवतीवृत्तिना लेखनमा जिनभद्रना शिष्य यशश्चंद्रे अभयदेवने सहाय करी हती." ___ स्थानांगवृत्तिनी प्रशस्तिमां अभयदेवसूरिए पोतानो वृत्तिरचनाना मार्गमा रहेली मुश्केलीओनो निर्देश करतां उत्तम संप्रदाय-अध्ययनपरंपरानो अभाव, उत्तम ऊहनो अभाव, वाचनाओनी अनेकता, पुस्तकोनी अशुद्धि आदिनो उल्लेख कर्यो छे. खास करीने भगवती सूत्र उपरनी वृत्तिमा एमणे पोताना पूर्वकालीन टीकाकारोना निर्देश कर्या छे, अने ए निर्देशोनुं स्वरूप जोतां ए स्पष्ट छे के ए पूर्वकालीन टीकाओ पैकी अमुक तो एमनी सामे हती, एटलुज नहि पण चूर्णिथी ते भिन्न हती. ___ आ संबंधमां बीजी एक अनुश्रुतिनी नोंध करवा जेबी छे. 'प्रभावकचरित' (सं. १३३४-ई. स. १२७८)ना अभयदेक्सरि-चरित'मां शासनदेवी अभयदेवसूरिने कहे छे के पूर्व निर्दोष एवा शीलांक अथवा कोट्याचार्य नामे आचार्ये अगियार अंगो उपर वृत्ति रची हती; तेमां काळे करीने बे सिवाय बधां अंगोनो विच्छेद थयो छे, माटे संघ उपर अनुग्रह करवा माटे ए अंगोनी वृत्ति रचवानो उद्यम करो.' आ उपरथी अभयदेवसूरिए नव अंगो उपर वृत्ति रची." ___ आ अनुश्रुतिमांना शोलांक आचार्य ते शीलाचार्य होवा जोईए. एने आधारे कहीए तो शीलाचार्यनी आचारांग अने सूत्रकृतांग सिवाय बीजां ११ अंगो उपरनी वृत्तिओ अभयदेवसूरिना समय पहेलां नाश पामी गई हती. आथी अभयदेवसुरिए सुचित करेली वृत्तिओ कोई बीजा विद्वाने रचेली होवी जोईए. आगमसाहित्यना सौथी प्रमाणभूत टीकाकारोमां अभयदेवसूरिनी गणतरी थाय छे. ए टीकाओनी सहाय विना अंगसाहित्यनां रहस्य समजवानुं पछीना समयमां गमे तेवा आरूढ विद्वानो माटे पण लगभग Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२] [ अभयदेवसरि अशक्य बन्यु होत. पछीना समयना टीकाकारो अने अभ्यासीओए निरंतर अभयदेवसूरिनो आधार लीधो छे.'' अभयदेवसूरिनु परंपरागत चरित्र प्रभावकचरित 'ना 'अभयदेवसुरि-चरित मां निरूपेलुं छे. ___ 'सन्मतितर्क' उपर 'तत्त्वबोधविधायिनी' अथवा 'वादमहार्णव' नामे टीका लखनार अभयदेवसूरि राजगच्छना होई नवांगीवृत्तिकारथी भन्न छे. एक काळे अभयदेव नाम जैन साधुओमां खूब प्रचलित हतुं, अने अभयदेवसूरि नामना दश आचार्यों अत्यार सुधी जाणवामां आव्या छे.१२ १ ज्ञाधअ, प्रशस्ति २ स्थासूअ, प्रशस्ति ३ ससूअ, प्रशस्ति ४ भसूअ, प्रशस्ति ५ जेसू , पृ. २१ ६ निर्वतककुलनमस्तलचन्द्रद्रोणाख्यसूरिमुख्येन । पण्डितगणेन गुणवत्प्रियेण संशोधिता चेयम् ॥ ज्ञाधअ, प्रशस्ति, श्लो. १०; प्रव्याअ, प्रशस्ति, श्लो. १० नमः प्रस्तुतानुयोगशोधिकायै श्रोद्रोणाचार्यप्रमुखपण्डितपर्षदे स्थासूअ, प्रशस्ति शास्त्रार्थनिर्णयसुसौरभलम्पटस्य विद्वन्मधुव्रतगणस्य सदैव सेव्यः । श्रीनिर्वृताख्यकुलसन्नदपद्मकल्पः श्रीद्रोणसूरिरनवद्ययशःपरागः ॥ शोधितवान् वृत्तिमिमां युक्तो विदुषां महासमुहेन । शास्त्रार्थनिष्कनिकषणकषपट्टककल्पबुद्धीनाम् ।। --भसूअ, प्रशस्ति, श्लो. ९-१० अणहिलपाटकनगरे श्रीमद्रोणाख्यसूरिमुख्येन । पण्डितगणेन गुणवत्प्रियेण संशोधिता चेयम् ॥ औसूअ, प्रशस्ति, श्लो.. ३ ७ भसूअ, प्रशस्ति, श्लो. ७-८ ८ सत्सम्प्रदायहीनत्वात् सहस्य वियोगतः । . सर्वस्वपरशास्त्राणामदृष्टेरस्मृतेश्च मे ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभीचि ] वाचनानामनेकत्वात् पुस्तकानामशुद्धितः । सूत्राणामतिगाम्भीर्यान्मतभेदाच्च कुत्रचित् ॥ क्षूणानि सम्भवन्तीह केवलं सुविवेकिभिः । सिद्धान्तानुगतो योऽर्थः सोऽस्माद् ग्राह्यो न चेतरः ॥ ९ 'आयंचणिओदएणं'ति इह कुम्भकारस्य यद्भाजने स्थितं तेमनाय (1) मृन्मिश्रं जलं तेन । पृ. ६८४ - भसूअ, प्रशस्ति, श्लो. १-३ [ १३ टीकाव्याख्या-आतन्यनिकोदकं taararti क्वचिदपि वचभ्चौर्णमनघं क्वचिच्छादी वृत्ति क्वचिदपि गमं वाच्यविषयम् । . क्वचिद्विद्वद्वाचं क्वचिदपि महाशास्त्रमपरं समाश्रित्य व्याख्या शत इह कृता दुर्गमगिराम् ॥ – ए ज, २५मा शतकनी वृत्तिने अंते यद्वाङ्महामन्दरमन्थनेन शास्त्रार्णवादुच्छलितान्यतुच्छम् । भावार्थरत्नानि ममापि दृष्टौ यातानि ते वृत्तिकृतो जयन्ति ॥ - एज, ३०मा शतकनी वृत्तिने अंते. ए ज, १० प्रच, १९ - श्लो. १०४-१३ ११ उदाहरण तरीके जओ कसु, पृ. २०-२१; ककि, पृ. १२; जंशा, पृ. २०१. १२ जुओ जैसाइ. अभीचि • सिन्धु - सौवीरना राजा उदायननो पुत्र उदायन राजाए महावीर पासे दीक्षा लेतां पोताना पुत्र प्रत्येनी श्रेयबुद्धिधी राज्य तेने नहि आपतां पोताना भाणेज केशीने आप्युं हतुं. आथी रिसाईने अभीचि पोताना अंतःपुर साधे सिन्धु-सौवीरनुं पाटनगर वीतभय छोडीने चंपामां कृणिक राजा पासे चाल्यो गयो हतो.' आमां आवतो कृणिक ते महावीरनो समकालीन मगधनो राजा, जेने बौद्धो अजातशत्रु कहे छे. एनुं जैतिहासिकत्व निःसंदिग्ध छे. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ अवधि आमां आवती बोजी व्यक्तिओ केशी, अभीचि वगेरे पण अतिहासिक होवा संभव छे. १ भसू, शतक १३, उद्देशक ६ अरिष्टपुर महाराष्ट्रनुं एक नगर.' पालि साहित्यमा शिविराजाना राज्यनी राजधानी तरीके एक अरिष्टपुरनो उल्लेख छे, पण ते मिथिलाथी पांचालना मार्ग उपर आवेलु होय एम जणाय छे. 'प्रश्नव्याकरणवृत्ति अने 'वसुदेवहिंडी'मा अनुक्रमे अरिष्टपुर अने रिष्टपुरनो उल्लेख छे, पण एनो स्थाननिर्णय ए उपरथी थई शकतो नथी. अरिष्टपुर ते ज रिष्टपुर, एम पण एटला उपरथी निश्चितपणे कही शकाय नहि. कदाच मथुरानी जेम अरिष्टपुर पण बे होय-एक उत्तरमा अने बीजु दक्षिणमां. जुओ रिष्टपुर , रम्यमस्ति महाराष्ट्रेष्वरिष्टपुरपत्तनम् । तत्र त्रिलोचनो राजा बभूव भुवि विश्रुतः ॥ -वं, पृ. ६७ २ मलालसेकर, 'पालि प्रोपर नेम्स' ३ प्रव्याअ, पृ ८८ ४ वसुदेव-हिंडी, पृ. ७८ अर्कस्थली आनंदपुरनुं बीजं नाम.' अर्कस्थली नामनु निर्वचन एक ज रीते शक्य छे अने ते ए के कोई काळे अर्कस्थली पण कोटयर्कनी जेम अर्क-सूर्यनी पूजा- केन्द्र होय. जिनप्रभसूरिना विविध तीर्थकल्प'मां वर्णवेलां मथुरानां नोचे प्रमाणे पांच स्थळोमा एक अर्कस्थल छे- अर्कस्थल, चीरस्थल, पन Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्ति ] स्थल, कुशस्थल अने महास्थलः जो के आमांनु अर्कस्थल ए आपणु अर्कस्थली नथी. १ खेत्तविवजासो दुणामे कए, जहा-आणंदपुरं अक्कत्यलीं, अक्कत्थलि आणंदपुरं, निच, उड़े. ११. जुओ आनन्दपुर. २ 'विविध तीर्थकल्प,' पृ. १८ अर्धमागध अर्धमागध-धी जेम प्राकृत भाषानुं एक मिश्र स्वरूप छे सेम स्थापत्यनी पण एक पद्धति होय एम जणाय छे.' अमुक प्रकारना मिश्र स्थापत्यने अर्धमागध नाम आपवामां आवतुं हशे. १ जंपनी वृत्तिमा उतारेंलो वर्णक-धवलहर अद्धमागहविन्भमसेलद्रसेलसंठिअ...तथा ए उपर शान्तिचन्दनी वृत्ति- धक्लगृहं सौध अर्धमागध. विभ्रमाणि-गृहविशेषाः शैलसंस्थितानि-पर्वताकाराणि गृहाणि, जंप्रशा, पत्र १०७ अर्बुद गुजरातनी उत्तर सम्हदे आवेलो आबुनो पहाड, जैनोनां मुख्य तीर्थो पैकी एक. प्रभास तीर्थमां अने अर्बुद पर्वत उपर यात्रामा संखडि (उजाणी) करवामां आवती हती.' १ कोंडलमेंढ पभासे, अब्बुय० ॥३१५०॥ प्रभासे वा तीर्थे अर्बुदे वा पर्वते यात्रायां संखडिः क्रियते । बृकक्षे, वि. ३, पृ. ८८४. “पभासे अब्बुए य पव्वए जत्ताए संखडी कीरति" इति चूर्णा विशेषचूर्णा च । - ए ज, पृ. ८८३ टि. अवन्ति उज्जयिनी जे जनपदनी राजधानी हतुं ते प्रदेशन-माळवार्नु प्राचीन नाम.' जो के जैनधर्मनु ए एक प्रमुख केन्द्र हतुं, पण जैन आगम साहित्यमा जे 'आर्यक्षेत्र' तथा एमांना साडीपचीस आर्यदेशोनो उल्लेख छे तेमां अवंति नथी. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ] [ अवन्ति जुओ उज्जयिनी, मालव १ उदाहरण तरीके-अयंतीजणवए उज्जेणीए नयरीए ण्हवणुज्जाणे साहुणो समोसरिया, उने, पृ. ४; अवंतीजणवए पज्जोयस्स रण्णो मंती खंडकणो नाम, व्यम, पृ. ९३; जनानां लोकानां पदानि अवस्थानानि येषु ते जनपदाः अवन्त्यादय..., आशी, पृ. २३१, इत्यादि. जुओ पुगु मां अवन्ति . २ जुओ बृकसू , उदे. १, सू. ५० तथा ए उपरनी क्षेमकीर्तिनी अवन्तिवर्धन ___उज्जयिनीना पालक राजानो पुत्र. राजाए दीक्षा लेतां अवन्तिवर्धनने राज्य सोप्यु हतुं अने बीजा पुत्र राष्ट्रवर्धन (राज्यवर्धन)ने युवराज बनाव्यो हतो. अवन्तिवर्धने पोताना भाईनी स्त्रीने वश करवा माटे भाईने मारी नाख्यो हतो; पण पाछळथी पश्चात्ताप थतां भाईना पुत्र अवन्तिसेनने राज्य सौंपीने एणे दीक्षा लीधी हती. महावीरना समकालीन, उज्जयिनीना राजा प्रद्योतने बे पुत्रो हतापालक अने गोपालक. पालक अने अवन्तिवर्धन राजाना उल्लेखो पुराणादिमां पण छे (जुओ केम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया, वो. १, पृ. ३११). _____ जुओ पालक, मणिप्रभ, राष्ट्रवधन ... १ आचू , उत्तर भाग, पृ. १८९-९०. वळी वत्र, पृ, ९०-९२ अवन्तिमुकुमाल उजयिनोनी भद्रा नामे शेठाणीनो पुत्र. आर्य सुहस्ती विहार करता एनी यानशाळामां आवीने वस्या हता. एक वार संध्याकाळे अवंतिसुकुमाल पोतानी बत्रीस पत्नीओ साथे रमण करतो हतो त्यारे नलिनीगुल्म अध्ययननु आवर्तन करता आचार्यने एणे सांभळ्या. आथी एने जातिस्मरण थयु अने ए आचार्यनो शिष्य थयो. पछी अवंतिसुकुमाले आचार्यी अनुज्ञा लई, स्मशानमां जई अनशनपूर्वक कायो Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशकटापिता] [१७ सर्ग कर्यो, एना सुकुमार पगमाथी लोही टपकतुं हतु तेनी वासथी पोतानां बच्चों सहित आवेली एक शियालणी अवंतिसुकुमालनु शरीर खाई गई अने ए कालधर्म पाम्या. एक सगर्भा पत्नी सिवाय एमनी एकत्रीस पत्नीओए तथा माताए दीक्षा लोधी. सगर्भा वधूथो जन्मेला पुत्रे पोताना पिताना मरणस्थान उपर एक देवमन्दिर कराव्यु, जे महाकाल तरीके ओळखाय छे.' १ आबू, उत्तर भाग, पृ १५७. आगमसाहित्यमा अन्यत्र अवंतिसुकुमालना उल्लेखो माटे जुओ व्यम, पृ. ८०, तथा मस (गा. ४३५३८), संप्र (गा. ६५-६६) अने भप (गा. १६.). हेमचन्द्रे आ प्रसंगर्नु वर्णन वधु विस्तारथी कयु छे; जुओ 'परिशिष्ट पर्व,' सर्ग ११, श्लो. १५१-७७. अवन्तिसुकुमालना मृत्यनुं स्थान आचूमा ‘स्मशाना कंथार. कुडंग' अने मसमा 'वंशकुडंग' बतावेलुं छे. आज पण ए स्थळे कुडंगेश्वरनुं स्थान छे एम मस (गा. ४३८) नोंधे छे. कुडंगेसर,' 'कुडंगेश्वर' अथवा 'कुडुंगेश्वर' एवा नामे आ स्थाननो निर्देश अनेक प्रबन्धात्मक प्रन्थोमां छे. 'विविधतीर्थकरुप' (१४मो सैको)नी कोई कोई प्रतोमां एनो 'कुटुंबेश्वर' एवो पाठ छे अरा, भाग ३, पृ. ५७८).आ 'कुटुंबेश्वर' नाम स्कन्दपुराणना आवन्त्यखंडमां पण छे ए सूचक "छे (पुगु, पृ. ३०). महाकाल अने कुडगेश्वरनी एकता संबंधमं जुओ 'विकमस्मृतिप्रन्थ'मा डा. शार्लोटे काउझेनो लेख 'जैन साहित्य और महाकाल मन्दिर.' अशकटापिता ___ आभीर जातिना एक साधु. एमर्नु नाम अशकटापिता पड्यु ए विशे आवी कथा आपवामां आवे छेः ज्यारे गृहस्थावस्थामा हता त्यारे एमने त्यां अत्यंत रूपवती पुत्री जन्मी हती. ए मोटो श्रया पछी एने गाडानी आगळ बेसाडीने एओ जता हता, ते समये ए तरुणीने जोबा माटे पाछळ आवता आभीर तरुणोए आगळ पहोंची जवानी स्पर्वामां पोतानां गाडां उत्पथ उपर लई जतां गाडां भांगी गया. आथी लोकोए ए तरुणीनुं नाम 'अशकटा' अने एना पितानु 'अशकटापिता' Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ ] [ अशकटापिता पाड्यु, आ प्रसंगथी निर्वेद पामी अशकटापिताए पोतानी पुत्रीने परणावीने दीक्षा लीधी.' १ उशा, पृ. १२९-३० (नियुक्ति गा १२१); निचू, उहे. १ अश्वसेन वाचक ___आ कोई दार्शनिक छे, अने 'वाचक' पदवी उपरथी जैन होय एम अनुमान थाय छे. विक्रमना अगियारमा शतकमां थयेला आचार्य शान्तिसूरिए पोतानी 'उत्तराध्ययन' टोकामां एपनो मत टांक्यो छे, एटले तेओ एथी प्राचीनतर छे. अश्वसेन वाचक विशे कई विशेष जाणवामां नथी. १ उक्तं चाश्वसेनवाचकेन-'आत्मप्रत्यक्ष आत्माय'-मित्यादि, अथाय न दृग्गोचर इति नास्तीत्युच्यते, नायमप्येकान्तो, यतस्तेनैवोकम्-“न च नास्तीह तत् सर्व चक्षुषा यन गृह्यते," इत्यादि, उशा, पृ. १३२ आनन्दपुर ___ उत्तर गुजरातमा आवेल वडनगर. एनुं बीजुं नाम अर्कस्थली हतुं (जुओ अर्कस्थली). जमीन मार्गे वेपारन ए मोटुं मथक होबाथी तेने स्थलपत्तन कर्तुं छे.' आ नगरनो किल्लो ईंटोनो बनेलो हतो.' आनंदपुर जैन धर्मनुं मोठं केन्द्रस्थान हो, जोईए. आनंदपुरथी मथुरा अने मथुराथी आनंदपुर जता तेम ज आनंदपुरमां वसता साधुओना अनेक उल्लेखो मळे छे ” बीरनिर्वाण सं. ९८०मा (अथवा ९९३मां) =ई. स. ४५४ (अथवा ४६७)मां ध्रुवसेन राजाने पुत्र वीरसेनना मरणथी थयेलो शोक शमाववा माटे आनंदपुरमा सभा समक्ष 'कल्पसूत्र' वाचवामां आव्यु हतुं एवा उल्लेख 'कल्पसूत्र'नी विविध टोकाओमां छे. पुष्पमय मुकुट आनंदपुरमा सारा बनता हता तथा 'वेढिम' (जे प्राकृत शब्दनु 'वेष्टिम' एवं संस्कृत रूप टीकाकारो आपे छे) एटले के वस्त्रादिना वेष्टनथी बनावेली पूतळीओ वगेरे माटे पण ए Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आनन्दपुर ] प्रख्यात हतुं. आनंदपुरमा थती यक्षपूजा जाणीती हती. आनंदपुरना लोका शरदऋतुमा प्राचीनवाहिनी सरस्वतीना किनारे जईने संखडि -उजाणी करता हता. प्राचीनवाहिनी सरस्वती उत्तरगुजरातमां सिद्धपुर पासे छे, ज्यां हजी पण कार्तिकी पूर्णिमानो मोटो मेळो भराय छे अने आसपासना प्रदेशना लोको एकत्र थाय छे. वळी उपर्युक्त उल्लेख बतावे छे के आनंदपुर ए प्राचीनवाहिनी सरस्वतीर्थी अदूरवर्ती हो, जोईए, जे हालना वडनगर साथे ठीक बंब वेसे छे. ___आनंदपुरमा प्रचलित केटलांक धाराधोरणोनो पण निर्देश मळे छे; जेम के कोईना उपर खड्गनो प्रहार थवाथी ए मरी जाय तो मारनारनो अंशी रूपक दंड थतो, प्रहार थाय पण मरे नहि तो पांच रूपक, अने मोटो कलह करवा माटे साडातेर रूपक दंड थतो." आनंदपुर संबंधमां केटलीक लोकवार्ताओ पण आगमसाहित्यनी टीकाचूर्णिओमां संघराई छ : ___ आनंदपुरमा एक ब्राह्मण पुत्रवधूनो सहवास करतो हतो अने पछी उपाध्यायने कहेतो के- आजे स्वप्नमां मने पुत्रवधूनो सहवास थयो हतो." आनंदपुरनो बोजो एक चतुर्वेदी ब्राह्मण कच्छमां गयानो उल्लेख छे. आनंदपुर ब्राह्मणोनु केन्द्रस्थान हतुं ए वस्तु आमांथो पण फलित थाय छे. आनंदपुर- 'कालनगर' एवं पर्याय नाम एक स्थळे आपेलं छे. सेंकडो अने. हजारो हाथीओथी संकुल विन्ध्य नामे अरण्य आनंदपुरनी पासे आवेलु हतुं एवो एक उल्लेख ‘पिंडनियुक्ति 'नी टीकामां छे." आ आनंदपुर ए उत्तरगुजरातनुं वडनगर नहि .पण विन्ध्याटवी पासेनुं बीजु काई आनंदपुर होवू जोईए. १ एना स्थान विषेनी साधारण चर्चा माटे जुओ पुगु मां आनन्दपुर. विविध साधनो उपरथी संकलेत करेला वडनगरना संक्षिप्त इतिहास माटे जुओ श्री. कनैयालाल दवेकृत पुस्तिका 'वडनगर.' Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ आगन्दपुर २ यत्र तु स्थलपथेन शकटादौ स्थापितं भाण्डमायति तत् स्थलपत्तनम् , यथा आनन्दपुरम् । - वृकक्षे, ग्रन्थ २, पृ. ३४२; वळी निचू , भाग २, पृ. ४११ ३ इष्टकामयः प्राकारो यथाऽऽनन्दपुरे, वृकक्षे, ग्रन्थ २, पृ. २५१ ४ निचू , भाग २, पृ. ४३४; व्यम, भाग ३, पृ. ८६; ए ज, (उ० उपरथी वृत्ति ) पृ. ४५; सूकृचू , पृ. २५३ ५ कसं, पृ. ११८-१९: ककि, पृ. १२९-१२; कदी, पृ. ११३-- १५; कसु, पृ. ३७५-७८. ६ दवेचू , पृ. ७६; अनुहे, पृ. १३; अनुहा, पृ. ७ ५ आचू ,, पृ. ३३१ ८ कक्षे, ग्रन्थ ३, पत्र ८८३-८४ ९ अशुद्धिशोथी भरेली व्यम नी मुद्रित प्रतिमां (भाग १, पृ. ५-६ ) 'रूपकाणामशीतिसहस्रदण्डो' पाठ छे, परन्तु पछीथी बीजा दंडोना जे आंकडा आप्या छे तेनी तुलनाए अही ८० 'सहस्र' न होय; आथी 'सहस्रदण्डो' पाठ सुधारीने 'साहसदण्डो' लीधो छे. १० व्यम, भाग १, पृ ५-६ ११ आम, पृ. ५८५, पाय, पृ. ११ १२ आचू उत्तर भाग, पृ. २९१ १३ कसंवि, पृ ११९, जुओ कालनगर १४ आनन्दं नाम पुरं तत्र रिपुमर्दनो नाम राजा, तस्य भार्या धारिणी, तस्य च पुरस्य प्रत्यासन्नं गजकुलशतसहस्रसंकुलं विन्ध्यमरण्यं । पिनिम, पृ ३१ आभीर [१] दक्षिणापथमां कृष्णा अने वेणा नदीनी आसपासनो प्रदेश, जेमां अचलपुर,' वेणातट, तगरा वगेरे नगरो आवेला हता. आभीर जाति उपरथी जेनुं नाम पडेलु छे तेवा आभीर प्रदेश माटे जुदां जुदा पुराणोमां जे स्थळनिर्देश छे ए जोतां लागे छे के आभीरोनी वसाहतो उत्तरोत्तर दक्षिण तरफ खसती हती. जैन आगमोमां आभीरदेश दक्षिणापथमा होवानो निर्देश छे. आयसमित अने आर्यवज्र आ प्रदेशमा गया हता. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आभार ] [ २९ 'कल्पसूत्र'नी विविध टीकाओमां जुदां जुदां राज्यो भने देशोनां नामोनी एक सूचि छे तेमां 'आभोर' पण छे. ' [२] वर्तमानकाळमां 'आभीर' प्रदेशनाम तरीके रह्यो नथी, 'आहीर' जातिमां टकी रह्यो छे. जुदा जुदा वर्णों माटे खीजमां वपराता शब्दोनो निर्देश करतां 'सूत्रकृतांग सूत्र' उपरनी शीलांकदेवनी वृत्तिमां कहां छे के— ब्राह्मणने 'डोह, ' वणिकने 'किराट' तथा शूद्रने 'आभीर' कहेवामां आवे छे. " : आभीर जातिमां प्रचलित दियखटाना रिवाजनुं सूचन पण एक कथानकमां करवामां आव्युं छे सुरग्राममां यशोधरा नामे कोई आभीरी हती, तेनो योगराज नामे पति अने वत्सराज नामे दियर हता. दियरनी पत्नीनुं नाम योधनी हतुं. एक वार दैवयोगे योधनी अने योगराज समकाळे मरण पाम्यां एटले यशोधराए पोताना दियर वत्सराज पासे याचना करी के 'हुं तमारी पत्नी थाउं.' पोतानी पत्नी मरण पामी हती ए विचारीने वत्सराजे पण एनो स्वीकार कर्यो. - कुलाचारनी वात करतां आभीगेनी मंथनिकाशुद्धिनो खास निर्देश करवामां आव्यो छे, ए वस्तु एमनी गोपालनप्रधान जीवनप्रथानी धोतक छे.. कच्छमां जैन धर्म पाळता आभीरो हता एम एक स्थळे कयुं छे. आनंदपुरनो एक दरिद्र चतुर्वेदी ब्राह्मण कच्छमां गयो हलो अने त्यांना आभीए एने प्रतिबोध पमाड्यो हतो. " १ आभीरदेशेऽचलपुरासन्ने कन्नान्नानयोर्मध्ये ब्रह्मद्वीपे पञ्चशती तापसानामभूत्, कसु, पृ. ५१३; सहेज जुदा शब्दोमां आज उल्लेख माटे जुओ ककि, पृ. १७१ तथा कदी, पृ. १४९. २ जुओ वेणातट. ३ जुओ तगरा. ४. जुओ पुगु मां आभीर. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२] [ आभीर .. ५ आचू, पृ. ३९७. वळी जुओ वन आर्य तथा समित आर्य. ६ कसु, पृ. ४५७; ककि पृ १५२; कको, पृ. १८१-८२. ___७ जगत्यर्था जगदा ये यथा व्यवस्थिताः पदार्थास्तानाभाषितुं शीलमस्थ जगदर्थभाषी, तद्यथा-ब्राह्मणं डोडमिति ब्रूयात्तथा वणिजं किराटमिति शूदमाभीर मिति श्वपाकं चाण्डालमित्यादि तथा काणं काणमिति तथा खज कुब्जं वडभमित्यादि तथा कुष्ठिनं क्षयिणं यो यस्य दोषस्तं तेन खरपरुषं ब्रयात् यः स जगदर्थभाषी । सूकृशी, पृ. २३४ जुओ 'भारतीय विद्या' मार्च-एप्रिल १९४७ मां मारो लेख 'ए नोट आन धी वर्ड किराट-ए डिसीटफुल मर्चन्ट,' वळी जुओ गुजराती साहित्य परिषद प्रकाशित मारा वडे अनूदित 'पंचतंत्र, पृ. ११-१२, टिप्पण; तथा एनो उपोद्घात, पृ. ४३-४४ टिप्पण. ८ पिनिम पृ. ६४. ९ कुलसमयः-कुलाचारो यथा शकानां पितृशुद्धिः, आभीरकाणां मन्थनिकाशुद्धिः, सूकृशी, पृ. ११. १. आचू, उत्तर भाग, पृ. २९१. जुओ कच्छ, आषाढभूति उज्जयिनीमां आषाढ अथवा आषाढभूति नामे आचार्य हता. कालधर्म पामता एक साधुने तेमणे का हतुं के 'तुं देवलोकमां जाय तो मने दर्शन आपजे.' आ पछी उन्मार्गे जता आचार्यने देवलोकमां गयेला पेला साधुए चमत्कारपूर्वक प्रतिबोध पमाड्यो हतो, एवं कथानक छे.' १ निचू , भाग १, पृ. १९-२०; श्रापर, पृ. ३० इक्षुगृह उद्यान आ उद्यान दशपुरमा आवेलुं हतुं. त्यां रहीने आर्य रक्षिते चातुमसि को हतो.' इक्षुगृह'नो शब्दार्थ 'शेरडीनु घर' एवो थाय. तो आ प्रदेशमा ए काळे शेरडीनुं वावेतर थतुं हशे एवी अटकळ करी शकाय ? जुओ दशपुर. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्द्रपुर ] १ व्यसूम, पृ. ४१-४२ इन्द्रदत्त चिरकाळ प्रतिष्ठित मथुरा नगरीमा इन्द्रदत्त पुरोहित हतो. प्रासादमां बेठेला एणे नीचे थईने जता जैन साधु उपर पग लटकतो राख्यो अने ए रीते एने माथे पग मूक्यानो संतोष मेळव्यो. एक श्रावक ए आ जोयुं, अने क्रोधायमान थईने एणे पुरोहितनो पग कापवानी प्रतिज्ञा करी. ए. माटे ए पुरोहितनां छिद्रो शोधवा लाग्यो, पग एमां सफळता नहि मळतां एणे साधुने वात करी. साधुए कह्युं के 'आमां पूछवानुं शुं छे ! सत्कार - पुरस्कार परीषह तो सहन करवो जोइए.' श्रेष्ठीए कं: 'पण में प्रतिज्ञा करी छे.' साधुए पूछयुंः 'पुरोहित ने घेर अत्यारे शुं चाले छे ?' श्रेष्ठीए उत्तर आप्योः ' प्रासाद कराव्यो छे; एना प्रवेशमहोत्सव वखते ए राजाने भोजन आपशे. ' आचार्य बोल्याः 'ज्यारे राजा प्रासादमां प्रवेश करतो होय त्यारे तमारे एने हाथ चीने आघो करवो अने कहेतुं के प्रासाद पडे छे. एटले ए समये हुं विद्यार्थी प्रासादने पाडी नाखीश' पछी श्रेष्ठीए ए प्रमाणे क अने राजाने कर्छु : 'आ पुरोहित तो तमने मारी नाखवा इच्छतो हतो. ' क्रुद्ध थयेला राजाए पुरोहित श्रेष्टीने सोपी दीधो. श्रेष्ठीए पुरोहितो पग इन्द्रकीलर्मा मूक्यो अने पछी कापी नाख्यो. ' - [ २३ विक्रमना तेरमा कामां गुजरातमां मंत्री वस्तुपाले एक जैन साधुनुं अपमान करनार, वीसलदेव राजाना मामानो हाथ कापी नाख्यो हती - एवी प्रबन्धोमां मळती अनुश्रुति आ कथानक साथे सरखाववा जेवी छे. १ उशा, पृ. १२५-२६; उने, पृ ४९ इन्द्रपुर मथुरानुं बीजुं नाम जो के मथुराथी भिन्न एवं इन्द्रपुर नामे Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४] [ इन्द्रपुर एक नगर हतुं एवो उल्लेख पण अन्यत्र छे.* आ बीजं इन्द्रपुर ते उत्तर प्रदेशमां बुलंदशहर जिल्लामा डिभाई पासे आवेलु इन्दोर होवू घटे, ज्यांथी स्कन्दगुप्तनुं गुप्त सं. १४६ (ई-. स. ४६६)नु ताम्रपत्र मळेलं छे. ए. ताम्रपत्रमा ज ए स्थान- इन्द्रपुर नाम आयु छे (जुओं दिनेशचन्द्र सरकार, 'सिलेक्ट इन्सक्रिप्शन्स', नं. २७), जेमांथी प्रा. 'इन्दउर' द्वारा 'इन्दोर व्युत्पन्न थाय. १ वृत्तं महुराए चेव बीयं नाम इंदपुरं ति । आचू , उत्तर भाग पृ. १९३ २ आचू , पूर्व भाग, पृ. ४४८-५०; आम, पृ. ४५३-५४ उग्रसेन ___ भोजवृष्णिना पुत्र अने कंसना पिता. एमनां बीजां संतानो अतिमुक्तक, राजीमती वगेरे हतां, जेमणे दीक्षा लीधी हती. जरासंधना भयथी नासीने ए कृष्णनी साथे द्वारकामां आव्या हता, उग्रसेननो वृत्तान्त अनेक जैन चरित्रग्रन्थोमां आवे छे, पण आगमसाहित्यमा तो एममे विशेना केवळ प्रकीर्ण प्रासंगिक उल्लेखो ज प्राप्त थाय छे.' १ उदाहरण तरीके वृद (पृ. ३८-४१) आदिमां द्वारवतीनो वर्णक; कसूनी विविध टोकाओमा नेमिनाथनो चरित्रप्रसंग, इत्यादि. उज्जयन्त गिरनार पर्वत. एना स्थान अने नाम विशेनी चर्चा माटे जुओ पुगुमां 'उजयन्त'. ___ जैन आगम साहित्य अनुसार, उज्जयंतनुं शिखर २२मा तीर्थंकर नेमिनाथनां दोक्षा, केवलज्ञान अने निर्वाणथी पवित्र थयेलं छे.' नेमिनाथना निर्वागना समाचार सांभळोने दक्षिणनी पांडुमथुरामांथी सुराष्ट्र बाजु आवेला पांडवो उज्जयत उपर आवी, घणुं तप करीने सिद्धिमां गया हता. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्जयिनी ] ___ उज्जयंत, वैभार वगेरे पर्वतोने क्रीडापर्वत कहेवामां आव्या छे. उज्जयंत उपर घणा प्रपात-जळधोध हता. हाल तो गिरनार घोध माटे जाणीतो नथी, पण गिरनारनी तळेटीमां अशोके बंधावेलू सुदर्शन तळाव पुष्कळ पाणी भरावाने कारणे वारंवार फाटी जतुं एमां जूना काळना आ धोधनो पण हिस्सो होय. उज्जयंतादि तीर्थोमां प्रतिवर्ष यात्राओ-उजाणीओ थती हती. जुओ गिरिनगर तथा रैवतक १ ज्ञाध, पृ. १२६-२७; व. पृ. ३०; आम, पृ. २१४; कसु, पृ. ३९९ थी आगळ; ककौ, पृ. १६९-७०, इत्यादि २ ज्ञाध, पृ. २२६-२७ ३ भसून, शतक ७, उदे. ६ ४ बृकक्षे, भाग ३, पृ. ८२५; भाग ४, पृ. ९५७ ५ उज्जेंत गायसंडे सिद्धसिलादीण चेव जत्तासु । समत्तभाविएसु ण हुंति मिरछत्तदोसा उ ॥३१९२॥ उज्जयन्ते ज्ञातखण्डे सिद्धशिलायामेवमादिषु तीर्थेषु थाः प्रतिवर्ष यात्रा:-सङ्खडयो भवन्ति तासु गच्छतो मिथ्यात्वस्थिरीकरणादयो दोषा न भवन्ति। एज, भाग ३, पृ. ८९३ उज्जयिनी अवन्ति जनपद- पाटनगर. सम्राट अशोके पोताना पुत्र कुणालने उज्जयिनी कुमारभुक्तिमा आप्यु हतुं,' अने कुणालना पुत्र संप्रतिए त्यां रहीने आखा दक्षिणापथ तेम ज सुराष्ट्र उपर आधिपत्य जमाव्यु हतुं. __उज्जयिनीमा जीवंतस्वामीनी प्रतिमा हती, तेने वंदन करवा माटे आर्य सुहस्ती उज्जयिनी आव्या हता. आ सिवाय आर्य महागिरि, चण्डरुद्राचार्य, आर्य रक्षित, भद्रगुप्ताचार्य, आर्य आषाढ वगेरे अनेक आचार्यो उज्जयिनीमा आवता हता. उज्जयिनोना Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६] [ उज्जयिनी गर्दभिल्ल राजाए कालकाचार्यनी बहेन सरस्वतीनुं हरण कर्यु हतुं, तेथी कालकाचार्य शक लोकोने तेडी लाव्या हता ए अतिहासिक अनुश्रुति पण जाणीती छे.' उज्जयिनीमां स्नपन नामे उद्यान आवेलु हतुं, ज्यां साधुओ आवास करता." उजयिनीमा एक काळे पांचसो उपाश्रयो हता." पण उज्जयिनी केवळ जैन धर्मनें केन्द्र हतुं एम नहि. भारतवर्षना हृदयभागमा आवेलु होइ ए जेम एक संस्कृतिकेन्द्र हतुं तेम वेपारनुं पण मोटुं मथक हतुं. दूर दूरना प्रदेशना लोको कार्यवशात् उज्जयिनो आवता. उज्जयिनीना प्रद्योत राजानो आण भरुकन्छ उपर पण हती, एटले लाट अने उज्जयिनीनो संबंध तो स्वाभाविक छे. भरुकच्छमांथी एक आचार्ये पोताना विजय नामे शिष्यने प्रयोजनवशात् उज्जयिनी मोकल्यो हतो. दुष्काळना समयमां सुराष्ट्रनो एक श्रावक उज्जयिनी जवा नीकळयो हतो अने मार्गमां एने रक्तपट (बौद्ध) भिक्षुओनो संगाथ थई गयो हतो. आभीर देशना अचलपुर अने उज्जयिनी वच्चे पण एवो ज संबंध हतो अने एक समुदायना साधुओ आभोर देशनां नगरोमां तेम ज उज्जयिनी आसपासना प्रदेशमा विहरता." उज्जयिनी अने कौशांबी वच्चे पण अवरजवरनो घणो संबंध हतो (जुओ उशा, पृ. १११). जो के मार्गमां गाढ अटवीमांथी पसार थवान होवाथी प्रवासनां विघ्न धणां हतां एम 'उतराध्ययन 'नी नेमिचन्द्रनी वृत्तिमां तथा 'वसुदेवहिंडी'मां आवता अगडदत्तना प्रवासवर्णन उपरथी जणाय छे. . 'कुत्रिक' अर्थात् त्रिभुवननी कोई पण वस्तु जेमा मळे एवा 'आपण' अर्थात् मोटा वस्तुभंडारो-'कुत्रिकापण' प्राचीन भारतनां बे महानगरो-उज्जयिनी तेम ज राजगृहमा हता." राजा प्रद्योतना राज्यकाळ दरमियान उज्जयिनीमां नव कुत्रिकापण हता. आ भंडारोमां वस्तुनी कीमत ते खरीदनारना सामाजिक दरजा प्रमाणे लेवामां Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्जयिनी [ ૨૭ आवती. जे माणस दीक्षा लेवानो होय ते पोतानां जरूरी उपकरण, पोते सामान्य माणस होय तो कुत्रिकापणमाथी पांच रूपियानी कीमते खरीदी शकतो, जो ते इभ्य (लक्षाधिपति) अथवा सार्थवाह होय तो तेने एक हजार आपवा पडता अने जो ते राजा होय तो तेने एक लाख रूपिया आपवा पडता. एवी कथा छे के तोसलि नगरवासी एक वणिके उज्जयिनीना कुत्रिकापणमांथी ऋषिपाल नामे एक व्यंतर खरीधो हतो अने पछी तेने प्रसन्न करीने एनी पासे ऋषितडाग नामे एक तळाव बंधाव्यु हतुं." एज प्रमाणे भरुकच्छवासी बीजा एक वणिके कुत्रिकापणमांथी एक मृत खरीयो हतो अने तेनी पासे भूततडाग नामे तळाव बंधाव्यु हतुं. त्रिभुवननी कोई पण सजीव के निर्जीव वस्तु-भूत सुद्धां-कुत्रिकापणमा अलभ्य नहोती एवं आ कथानको सूचवे छे अने लोकमानसमां उज्जयिनी अने राजगृह जेवां नगरोनी वाणिज्यसमृद्धिए केव॑ स्थान जमाव्यु हतुं ए बतावे छे. प्राचीन भारतना सार्थ मार्गो-'ट्रेड रूट्स'-ना एक महत्त्वना संगमस्थान उपर उज्जयिनी आवेलं हतुं. एक भोळा पतिने तेनी पुंश्चली पत्नी ऊंटनां लौडां वेचवा माटे उज्जयिनो मोकले छे अने पछी पोते विटसेवा करे छे एवं कथानक पण मळे छे.१८ अहिक समृद्धि साथे जोडायेला मोजशोख अने भोगविलास पण स्वाभाविक रीते ज उज्जयिनीमां प्रवर्तमान हता. 'बृहत्कल्पसूत्र'. वृत्तिमांना एक कथानक प्रमाणे-एक देवीए विधवा- रूप धारण कयु अने दासोओथी वीटायेली ते उपाश्रयमां आवी साधुने वंदन करीने बेठी. साधुए पूछ्यु के 'श्राविका ! तुं क्यांथी आवी छ ? ' त्यारे ते बोली के 'पाटलिपुत्रमा हुँ जन्मो छु अने साकेतना एक Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८] [ उज्जयिनी श्रेष्ठी साथे मारं लग्न थयु हतुं. पलिनु मरण थतां तीर्थयात्राना मिषथो वडीलोनी रजा लईने भोगनी आकांक्षा करती हुँ उज्जयिनी जाउं छु. में सांभळ्युं छे के उज्जयिनीमां परीषहथी पराजित थयेला घणा साधुओ छे. पण हवे तमने जोया पछी मारुं मन आगळ जवानो ना पाडे छे. ११ सर्वगणिकाप्रधान देवदत्ता उज्जयिनीनी गणिका हती अने विटोमां प्रधान मूलदेव पण उज्जयिनीमां वसतो हतो." ___ उज्जयिनी, माहेश्वरी, श्रीमाल वगेरे नगरीओमा लोको उत्सवप्रसंगोए एकत्र थईने मदिरापान करता हता.' अने एवा लोकोमा ब्राह्मणोनो पण समावेश थतो हतो.२२ उज्जयिनीमां अने तेनी आसपासमां राजाओ अने धनिकोर्नु समाराधन करनारा वर्गोनी पण वस्ती हती. उज्जयिनीनी पासे नटोन एक गाम हतुं.७ उज्जयिनीवासी अट्टणमल्लनु कथानक पण आ दृष्टिए रसप्रद छे.२४ उज्जयिनीमा एक वार मोटी आग लागी हती अने नगरनो घणो भाग बळी गयो हतो. आथी जे वेपारीओए नगरनी बहार पोतानो माल भर्यो हतो तेमणे अनेकगणां नाणां उपजाव्यां हता.२५ मालव जातिना आक्रमणकारो उज्जयिनी अने आसपासना प्रदेशो उपर घणी वार हुमला करता अने माणसोनु हरण करी जता तथा तेमने गुलाम तरीके वेची नाखता." समय जतां मालव जातिना लोको अवंतिजनपदमां वस्या हशे अने तेथी ए प्रदेश पण पाछळथी 'मालय लामथी ओळखायो हशे. सातमा-आठमा सैकाथी अवन्ति मालव तरीके ओळखाय छे, एवो केटलाक विद्वानोनो मत छे, पण 'अनुयोगद्वारसूत्र' मांना एक उल्लेखनो विचार करता आथी ये जूना समयथी अवन्ति माटे 'मालव' नाम प्रचारमा होवू जोईए.२८ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्जयिनी ] [ २९ < नोध: - जुदां जुदां साधनो उपरथी रचायेला उज्जयिनीना कालानुक्रमिक इतिहास माटे जुओ बिमलाचरण लो-कृत उज्जयिनी इन एन्श्यन्ट लिटरेचर' जो के ए इतिहास मुख्यत्वे बौद्ध अने बीजां साधनोने आधारे लखायो छे. जैन साधनप्रन्थो एमना ध्यानम तुलनाए ओछा आव्या जणाय छे. १ बृकक्षे, भाग ३, पृ. ९१७, अनुहा, पृ. १०. २ ए ज. वळी निचू, भाग २, पृ. ४३८ ३ बृकक्षे, भाग ३, पृ. ९१८ ४ जुओ महागिरि आर्य. ५ जुओ चण्डरुद्राचार्य. ६ जुभो रक्षित आर्य. ७ जुओ भद्रगुप्ताचार्य. ● जुओ आषाढभूति. ९ जुओ कालकाचार्य. १० उने, पृ. ४. ११ आचू, उत्तर भाग, पृ. १९६ १२ ए ज, पृ. २०९ १३ एज, पृ. २७८ १४ उशा, पृ. १०० १५ वृकभा, गा. ४२१९ बुकशे भाग ४, पृ. ११४५. आ विशे जुओ सातमी ओरियेन्टल कोन्फरन्समां मारो लेख 'ए नोट ओन धी कुत्रिकापण एना गुजराती सार माटे जुओ 'इतिहासनी बेडी'मां ' कुत्रिकापण प्राचीन भारतना जनरल स्टोर्स' ए लेख; वळी जुओ कुत्रिकापण. १६ बुकक्षे, भाग ४, पृ. १९४५-४६ १७ ए ज. १८ दवा, पृ. ५७; स्थालूअ, पृ. २६१ १९ बुकभा, गा. ५७०५ - ६ बुकक्षे, भाग ५, पृ. १५०९ २० उशा, पृ. २१८; जुओ मूलदेव. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ उज्जयिनी २१ आसूचू , पृ. ३३३. २२ उशा, पृ. १११. २३ नंम, पृ. १४५. उज्जयिनी पासेना एक गामना नटनी हाजर. जवाबी संबंधी धातो विशे जुओ 'प्रजाबंधु -गुजरात समाचार,' दीपोत्सवी अंक, सं. २००६ मां मारो लेख ‘नटपुत्र रोहक अने राजा.' २४ जुओ अट्टण. २५ बृकक्षे, भाग ५, पृ. १३६२-६३. २६ ओनिद्रो, पृ. १९; आचू. पृ. २८३; उशा, पृ. २९४, इत्यादि २७ 'बुद्धिस्ट इन्डिया,' पृ. २८; ज्योडि, पृ. १३ २८ जुओ मालव. उदयन वत्सदेशनी राजधानी कौशांबीनो राजा; सहस्रानीकनो पौत्र, शतानीक अने मृगावतीनो पुत्र, वैशालीना गणसत्ताक राज्यना नायक चेटकनो भाणेज, अने जयंती श्रमणोपासिकानो भत्रीजो.' वीणावादनमां निपुणताने कारणे ते 'वीणावत्सराज' तरीके ओळखातो हतो.' अवंतिना राजा प्रद्योत अथवा चंडप्रद्योते पोतानी पुत्री वासवदत्ताने वीणा शीखववा माटे उदयनने युक्तिथी केद को हतो, परंतु उदयन वासवदत्ताने साथे लई केदमांथी नासी छूटयो हतो. 'उत्तराध्ययन सूत्र' उपरनी शान्त्याचार्यनी वृत्तिमा एक अंगविलेपन बनावबार्नु प्रमाण आपलं छे, अने वासवदत्ताए उदयन- चित्त हरी लेवा माटे आ विलेपननो उपयोग कर्यो हतो एम कयुं छे.. वत्सराज उदयन अने वासवदत्ता अनेक संस्कृत काव्यनाटकोमां नायक-नायिका तरीके आवे छे ए सुप्रसिद्ध छे. पुराणोनी राजवंशावलीओमां शतानीक पछी उदयननुं नाम आवे छे (पार्जिटर, 'डाइने. स्टिझ ऑफ ध कलि. एज,' पृ. ७, ६६, ८२.). पालि साहित्यमां पण अनेक स्थळे उदयन-वासवदत्ता विशेनां कथानक मळे छे. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एलकच्छपुर ] उदयन ए बुद्ध अने महावीरनी समकालीन अतिहासिक व्यक्ति तरीके पुरवार थयेल छे. जुओ प्रद्योत १ भसू, शतक १२, उदे. २ २ उशा, पृ. १४२ ३ आचू , उत्तर भाग, पृ. १६१-६२ ४ उशा, पृ. १४२ ५ जुओ मलालसेकर, ‘पालि प्रोपर नेम्स' ६ जुओ ' केम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया, वो. १, पृ. ३०८.१० उदायन , सिन्धु-सौवीर देशनो बळवान राजा. ते वैशालीना राजा चेटकनी पुत्री प्रभावतीने परण्यो हतो. ते सिन्धु-सौवीर आदि सोळ जनपदोनो, वीतभय आदि प्रेसठ नगरोनो अने महासेन (चंडप्रयोत ) आदि दश मुकुटबद्ध. राजाओनो अधिपति हतो.' उदायने पोताना भाणेज केशीने राज्य आपीने महावीर पासे दीक्षा लीधी हती. केटलाक समय पछी महावीरनी अनुज्ञा लईने ते पाछो वीतभय आव्यो त्यारे आ पोतार्नु राज्य पाछु लेवा आयो हशे एम मानीने केशीए तेने विष खवरावीने मारी नाख्यो हतो. १ भसू , शतक १३ उद्दे• ६; उने, पृ. २५२-५५; कसु, २. पाचू, उत्तर भाग, पृ. ३६-३७ एलकच्छपुर दशाणपुरनुं बीजुं नाम. दशार्णपुर एलकच्छ तरीके ओळखायु एना कारणमां नीचे प्रमाणे कथानक आपवामां आवे छे-दशाणपुरमां एक श्राविकानो पति मिथ्यादृष्टि हतो. एना उपर कोषायमान थईने एक वार देवताए एनी आंखो फोडी नाखी, पण आथी श्राविकानो Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२] [एलकच्छपुर अपयश थशे एम जाणीने घेटानी आंखो ( 'एलगस्स अच्छीगि') लावीने बेसाडी दोधी, सवारे ए माणसने लोको कहेवा लाग्या के 'तारी आंखो एलक-घेटा जेवी छे.' लोकोमा आवो पण प्रवाद थयोः कोई पूछे 'क्यांथी आवो छो ?' तो एने जवाब मळतो 'ज्यां पेलो एलकच्छ ( 'घेटा जेवी आंखवाळो') छे त्यांथी.' आ प्रमाणे दशार्णपुरएलकच्छ नाम थयु.' आ नगर वत्थगा नदीना किनारे आवेलुं हतुं. गजाप्रपद तीर्थ पण एलकच्छनी पासे हतुं. आर्य महागिरि विदिशामां जिनप्रतिमाने वंदन करीने गजाप्रपद तीर्थनी यात्रा माटे एलकच्छ गया हता. ___झांसी जिल्लामां मोथ तहेसीलमां आवेलुं एरछ ते आ एलकच्छ हशे एवो केटलाकनो मत छे. जुओ गजाग्रपद, दशार्णपुर, रथावर्त १ आचू, उत्तर भाग, पृ. १५६-५७; आसूचू पृ. २२६ २ आचू, उत्तर भाग, पृ. १५६-१५७; आसूचू, पृ. २२६ . ३ दो वि जणा वइदिसिं गता, तत्थ जिणपडिमं वंदिऊण अजमहागिरि एलकच्छं गता गयग्गपद वंदका, आचू, उत्तर भाग, पृ. १५६-५७ ४ जगदीशचन्द्र जैन, ' लाइफ इन एन्श्यन्ट इन्डिया,' पृ. २८२ कच्छ भरत चक्रवर्तीना दिग्विजयवर्णनमा तेणे कच्छ देश उपर विजय कों होवानो उल्लेख छे.' कच्छमां आभीरो जैन धर्मानुयायी हता. आनंदपुरनो एक दरिद्र ब्राह्मण कच्छमां गयो हतो तेने ए आभीरोए प्रतिबोध पमाड्यो हतो.' देशाचारनी नांध करतां कयुं छे के कच्छमां गृहस्थो रहेता होय एवा आवासमा साधुओ रहे ए दोषरूप गणातुं नथी.' जुओ आभीर Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कम्बल - सम्बल ] १. जंत्र, पृ. २१८; जंप्रशा, पृ. २२० २ आचू, उत्तर भाग, पृ. २९१ ३ बुक ( विशेषचूर्णि ), भाग २, पत्र ३८० टि. कच्छ' नो मूळ अर्थ 'समुद्र अथवा नदीकिनारे आवेलो भीनाशवाळो प्रदेश ' एवो छे. प्राकृतमां पण एनो एवो अर्थ छे. सर० मालुयाकच्छ ( ज्ञाघ, श्रु. १, अध्य. १ ), भरुकच्छ आदि. कच्छ विशेना पौराणिक उल्लेखो माटे जुओ पुगु. कमलसंयम उपाध्याय खरतरगच्छना जिनभद्रसूरिना शिष्य कमलसंयम उपाध्याये सं. १५४४= ई. स. १४८८मां ' उत्तराध्ययन सूत्र' उपर ' सर्वार्थसिद्धि ' नामे वृत्ति रची छे.' कमलसंयमे सं. १५४९ = ई. स. १४९३ मां 'कर्मस्तव ' नाम कर्मग्रन्थ उपर विवरण रच्युं छे. आ सिवाय जूना गुजराती गद्यमा 'सिद्धांतसारोद्धार सम्यक्त्वोल्लास टिप्पन' ए तेमनी कृति छे. २ १ जुओ उक, प्रत्येक अध्ययनने अंते पुष्पिका २ जैसाइ, पृ. ५१७ [ ३३ कम्बल - सम्बल मथुराना जिनदास श्रावक पासे कंबल - संबल नामे बे उत्तम बळद हता. एक वार मथुरामां भंडीर यक्षनी यात्रा हती त्यारे जिनदासनो एक मित्र तेने पूछया सिवाय ए बळदोने गाडे जोडवा लई गयो, अने तेणे वळी बीजाने आप्या. ज्यारे पाछा लाववामां आव्या त्याये कंबल - संबल खूब थाकी गया हता अने थोडा समय पछी तेओ अनशन करीने मरण पाम्या, तेओ मरीने नागकुमार थया हता; सुरभिपुर जती वखते गंगा पार करतां महावीर जे नावमां बेठा हता तेने थयेलो उपद्रव ए नागकुमारोए टाळ्यो हतो एवं कथानक छे, ' जुओ जिनदास Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४] [कम्बल-सम्बल १ आचू, पूर्व भाग पृ २८१; मानि, गा. ४६९-७१; बृकक्षे, भाग ५. पृ. १४८९; कमु, पृ. ३०६-७; ककि, पृ. १०५; कदी पृ. ९०; निचू , भाग ४, पृ. ८२४ मां आ कथानक छे, पण त्यां 'कंबलसंबल'नो नामनिर्देश नथी. कसेरुमती ए नामनी नदी. ए घणी प्रसिद्ध हती. एने विशेना एक मात्र उपलब्ध उल्लेख उपरथी अनुमान थाय छे के कां तो एमां पाणी रहेतुं नहोतुं अथवा ए पाणी बेस्वाद हतुं.' . आ नदीनो उल्लेख भरुकच्छवासी वज्रभूति आचार्यना संबंधमां आवे छे. एथी लाटमा अथवा आसपासना प्रदेशमा ते आवेली हशे. _राजशेखरनी 'काव्यमीमांसा' (त्रीजी आवृत्ति, पृ. ९२ तथा परिशिष्ट पृ. २८४)मां तेम ज अन्यत्र पौराणिक भूगोळ वर्णवतां भारतवर्षना नव भागोमां एक 'कसेरुमान्' प्रदेशनो उल्लेख छे; पण एने आ कसेरुमती नदी साथे कई संबंध होय एम लागतुं नथी. दिहा सि कसेरुमती, पीयं ते पाणियं, वर तुह नाम न दंसणय । अत्र कसेरु नाम नदी। तस्याः प्रसिदिरतीव । नवरं न प्रसियनुरूपं तस्याः पानीयमिति क्षेपः । व्यम ( भा. गा. ५८-५९ उपरनी वृत्ति ). २ जुओ वनभूति आचार्य. काकिणी एक नानो सिक्को. वीस कपर्दक-कोडी बराबर एक काकिणी थती.' ए सिक्को तांबानो हतो अने दक्षिणापथमां पण तेनो व्यवहार चालतो हतो.' एक भिखारीए रूपक वटावीने काकिणीओ करी हती अने दररोज एक-एक काकिणी ते वापरतो हतो एवं कथानक 'उत्तराध्ययन सूत्र 'नी शान्तिसूरिनी वृत्तिमां छे. आम छतां राजपुत्रोनी बाबतमा 'काकिणी' शब्दनो अर्थ 'राज्य' एवो थतो हतो. जैन Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काननद्वीप ] मान्यता प्रमाणे चक्रवर्तीनां रत्नोमा - काकिणी' रत्ननो पण समावेश थाय छे. काकिणीनी कीमत रूपकना अंशीमा भाग बराबर हती एम डॉ. याकोबीए केटली टीकाओने आधारे कयुं छे.' 'काकिणी 'नुं बीजु नाम 'बोडी' हतुं एम सं. १४४९ ई. स. १३९३ मां पाटणमां लखायेला 'गणितसार'ना गुजराती अनुवादमां आपेलां तोल, माप अने नाणानां कोष्ठको उपरथी जणाय छे. हलकी कीमतना सिक्का तरीके आचार्य हेमचन्द्रनां अपभ्रंश अवतरणोमा 'बोड्डि 'नो प्रयोग छे." १ 'काकिणिः' विंशतिकपर्दकाः, उशा, पृ. २७२ २ ताम्रमयं वा नाणकं यद् व्यवहियते यथा दक्षिणापथे काकिणी। बृकशे, भाग २, पृ. ५७४ ३ उशा, पृ. २७६ ४ जुओ कुणाल. ५ उ. नो अंग्रेजी अनुवाद ( सेकेड बुक्स ऑफ ध इस्ट, ग्रन्थ ४५), पृ. २८ ६ . २० करडे कागिणी ते भणीइ बोडी'-चारमु गुण. साहित्य-संमेलन, अहेवाल, इतिहास विभाग, पृ. ४० ___'केसरि न लहइ बोडिअ वि गय लक्खेहि घेप्पति'-'प्राकृत व्याकरण,' ४. ३३५ काननद्वीप ___ ज्यां जुदी जुदी दिशाओमाथी जळमार्गे माल आवतो हतो एवा जलपत्तन तरीके काननद्वोपनो निर्देश छे.' एमां बहारथी नावद्वारा आवतुं धान्य खवातुं हतुं.' आ द्वोपर्नु कालणाद्रीप' एवं नाम पण पाठफेरथी मळे छे. आ द्वीपर्नु स्थान निर्णीत थई शक्यु नथी. १ आसूचू, पृ. २८१; उशा, पृ. ६०५. उशामां आ साये स्थलपत्तन तरीके मथुरानो उल्लेख छ । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ कामनद्वीप २ बृकक्षे, भाग ३, पृ. ३८३-८४ ३ आसूचू , पृ. २८१ कान्यकुब्ज कनोज शहेर. कान्यकुब्ज नगरना राजा साथे एक जैन सूरिनो गोष्ठिप्रबंध 'आवश्यक सूत्र' उपरनी मलयगिरिनी वृत्तिमां छे.' प्रस्तुत राजा ते कान्यकुब्जनो प्रतिहारवंशीय आम राजा अथवा नागभट्ट बीजो (सं. ८६४-८९०-ई. स. ८०८-८३४)२ अने ए सूरि ते बप्पभटिसूरि होवा घटे, मोढेराथी कान्यकुब्ज , अने कान्यकुब्जथी मोढेरानां बप्पभट्टिसूरिनां पर्यटनो तथा आम राजा साथेनी तेमनी गोष्ठि इत्यादिनु वर्णन 'प्रभावकचरित'-अंतर्गत 'बप्पभटिसूरिचरित 'मां प्राप्त थाय छे. कान्यकुब्ज ए निःशंक रीते मध्यकालीन भारतनां सौथी समृद्ध नगरो पैकी एक हतुं. 'सूत्रकृतांग सूत्र' उपरनी शीलाचार्यनी वृत्तिमां उद्धत करवामां आवेला एक हालरडामां नकपुर, हस्तकल्प, गिरिपत्तन, सिंहपुर, कुक्षिपुर, आयामुख अने शौरिपुरनी साथे कान्यकुब्जनो पण निर्देश छे. रडता बाळकने आ बधां नगरोना राजा तरीके वर्णवीने छानु राखवानो प्रयास एमां छे. , आम, पृ. ९२-९३ २ मुनशी, ‘ग्लोरी धेट वाझ गुर्जर देश,' वा. ३, पृ. ५९, ७५; ओझा, 'राजपूताने का इतिहास,' खंड १, पृ. १६७ ३ रात्रावप्युत्थिताः सन्तो रुदन्तं दारक धात्रीवत् संस्थापयन्त्यनेकप्रकारैरुल्लापनैः तद्यथा--" सामिओ सि नगरस्स य पकउरस्स य हत्थ(कप्पगिरिपट्टणसीहपुरस्स य उण्णयास निन्नस्स य कुच्छिपुरस्स य कण्णकुज्जआयामुहसोरियपुरस्से य,” सुकृशी, पृ. ११९ कार्तवीर्य __ हस्तिनापुरनो राजा, जे पुराणो प्रमाणे माहिष्मतीना सहस्रार्जुन तरीके प्रसिद्ध छे. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालकाचार्य-२] जमदग्नि ऋषिनी पत्नी रेणुकानें हरण कार्तवीर्यनो पिता अनंतवीर्य करी गयो हतो, एथी जमदग्निना पुत्र रामे-परशुरामे एने मार्यो. आधी कार्तवीर्ये जमदग्निनो वध कर्यो; परिणामे परशुरामे सात वार पृथ्वी नक्षत्री करी, जेना बदलामां कार्तवीर्यना पुत्र सुभूमे एकवीस वार ब्राह्मणोनो संहार कयों.' - सुभूमे एकवीस वार ब्राह्मणोनो संहार को ए वस्तु पुराणोमां क्यांय नथी ए नोधपात्र छे. १ सूकृशी, पृ. १७० कालकाचार्य-१ __तुरुमिणी नगरीमा रहेतो भद्रा नामे ब्राह्मणीना तेओ भाई हता. तेमनो भाणेज-भद्रानो पुत्र दत्त ए नगरना राजाने हांकीने गादी पचावी पड्यो हतो. एणे घणा यज्ञो कर्या हता. तेनी समक्ष कालकाचार्ये यज्ञोनी निन्दा करवाथी दत्ते आचार्यने केद कर्या हता. आचार्यनी भविष्यवाणी अनुसार, राजा पाछळथी मूंडे हाले मरण पाम्यो हतो.' आ कालकाचार्ये इन्द्र समक्ष निगोदना जीवो संबंधी व्याख्यान कयु होवानी पण कथा छे. आ कालकाचार्य गर्दभिल्लनो नाश करनार कालकाचार्यथी भिन्न तेम ज एमना पूर्ववर्ती होबानो मुनि कल्याणविजयजीनो मत छे. आ प्रथम कालकाचार्यनो समय तेमणे वीरनिर्वाण सं. ३०० थी ३७६ (=ई. स. पूर्वे २२६थी १५०)नो गण्यो छे.. १ आचू , पूर्व भाग, पृ. ४९५-९६; आम, पृ. ४७८-७९ २ 'प्रभावकचरित,' प्रस्तावना, पृ. २३-२४ कालकाचार्य-२ उज्जयिनीना विषयी राजा गर्दभिल्लनो नाश करावनार तथा पर्युषणपर्वने भादरवा सुद पांचमने बदले चोथना दिवसे करावनार Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ] [ कालकाचार्य - २ तरीके आ आचार्य जैन इतिहासमां प्रसिद्ध छे. प्रथम कालकाचार्य ब्राह्मणपुत्र हता, ज्यारे आ द्वितीय कालकाचार्य, ' प्रभावकचरित' अनुसार, धारावासनगरना क्षत्रिय राजा वीरसिंहना पुत्र हता. ' एमनो जीवनकाळ मुनिश्री कल्याणविजयजीना मत प्रमाणे, वीरनिर्वाणनी पांचमी शताब्दीमा अर्थात् ईसवी सन पूर्वे १ली सदीना अरसामा छे. उज्जयिनीना गर्दभिल्ल राजाए कालकाचार्यनी युवान बहेन सरस्वती जे पण साध्वी हती तेनुं हरण करीने एने अंतःपुरमा दाखल करी हती. आथी कालकाचार्य पारसकुल - ईरानने किनारे जईने शकोने हिन्दुकदेश - हिन्द (जुओ हिन्दुकदेश) उपर आक्रमण करवा माटे तेडी लाव्या हता. पहेलां तो तेओ बधा सुराष्ट्रमां आव्या वरसादनो समय होवाथी त्यां रोकाई जवुं पड्यं पछी चोमासुं पूरुं थतां कालकाचार्ये शकोने गर्दभिल्ल उपर आक्रमण करवा माटे प्रेर्या. लाटना राजाओ जेमनुं गर्दभिल्ले अपमान कर्तुं हतुं तेओ पण साधे भळ्या; अने बधाए मळी उज्जयिनीने घेरो घाल्यो. आ बाजू, गर्द भिल्ल राजा गर्दभीविद्यानी साधना करतो हतो. गर्दभीना स्वरूपमा ए विद्या अवीने मोटो अवाज करती, एटले शत्रुसैन्यमां जे कोई एनो अवाज सांभळे ते रुधिर ओकतो धरती उपर पडतो. कालकाचार्ये आ रहस्य जाणीने अनेक बाणावळी योद्धाओने तैयार रहेबा कहां के 'गर्दभी पोतानुं म पहोळु करीने शब्द करे व्यार पहेलां तमारे ते बाणवर्षाथी पूरी देवु.' तेभए तेम कर्यु, एटले गर्दभी क्रोधायमान थई गर्दभिल्ल उपर विष्टमूत्र करी, तेने लात मारीने चाली गई. अबळ बनेला गर्द भिल्लनो नाश करीने उज्जयिनी कबजे लेवामां आवी, तथा कालकाचार्ये पोतानी बनने पाछी संयममां स्थापित करी. ૩ पर्युषण पर्वना तिथिपरिवर्तन संबंधमां आगमोक्त कथानक आ प्रमाणे छेः भरुकच्छमां* बलमित्र राजा हतो, अने तेनो भाई भानुमित्र Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालकाचार्य-२] [१९ युवराज हतो. तेमनी बहेन भानुश्री नामे हती, जेनो पुत्र बलभानु हतो. कालकाचार्य एक वार विहार करता त्यां आव्या अने तेमनी देशना सांभळी बलभानुए दीक्षा लीधी. आथी रुष्ट थयेला बलमित्रभानुमित्रे कालकाचार्यने निर्वासित कर्या. वळी बीजी एक प्राचीन परंपरा प्रमाणे, बलमित्र-भानुमित्र कालकाचार्यता भाणेज हता. तेमणे पोताना पुरोहितनी शिखवणीथी तेमने निर्वासित कर्या हता. ज्यारे त्रीजा एक मत प्रमाणे, राजाए आखा शहेरमां अनेषणा करावी हतीएटले आचार्यने क्यायथी भिक्षा मळती नहोती. आथी तेमणे नगर छोडी दीधुं. वर्षाकाळमां ज आचार्य प्रतिष्ठान जवा नोकळ्या अने त्यांना संघने तथा श्रावक राजा सातवाहनने अगाउथी पोताना आगमननी खबर आपी. त्यां जईने आचार्ये भादरवा सुद पांचमने दिवसे पर्युषण करवानें कह्यु, त्यारे राजाए कह्यु, 'ते दिवसे तो मारे लोकरूहि अनुसार इन्द्रमहोत्सव करवानो होय छे, माटे पर्व आपणे छठने दिवसे करीए.' आचार्य बोल्या के 'पर्व- अतिक्रमण न थई शके.' आथी राजाए चोथनुं सूचन कयु अने ते आचार्ये स्वीकार्यु. त्यारथी चोथना दिवसे पर्युषणनी उजवणी शरू थई... - अविनीत शिष्यना परित्यागर्नु एक कथानक पण कालकाचार्यना संबंधमां छे. ए समये कालकाचार्य उज्जयिनीमा रहेता हता. तेमनो कोई शिष्य भणवा इच्छतो नहोतो; आथी नाराज थईने, एमना बहुश्रुत प्रशिष्य सागरश्रमण सुवर्णभूमिमां विहरता हता त्यां, कोईने खबर आप्या सिवाय तेओ चाल्या गया हता. सागरश्रमणे कालकाचार्यने ओळल्या विना गर्वथी व्याख्यान करवा मांड्यु. पाछळथी बीजा साधुओ आवी पहोंचतां रहत्यस्फोटन थयु अने कालकाचार्ये सागरश्रमणने प्रज्ञापरीषह सहन करवा-ज्ञाननो गर्व नहि करवा विशे उपदेश आप्या. कालकाचार्य आजीवको पासे अष्टांग महानिमित्तनो अभ्यास करवा माटे गया होवानो उल्लेख संधदासगगिना 'पंचकल्प' Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०] [ कालकाचार्य-२ भाष्यमा छे; एटले बीजा अनेक प्राचीन जैन आचार्योनी जेम तेओ नैमित्तिक-ज्योतिषी हता. वळी निमित्तशास्त्रमा जैन आचार्यों करतां पण ए काळे आजीवको चढियाता हता एम आ उल्लेख पुरवार करे छे. ___कालकाचार्य एक ग्रन्थकार पण हता एनो पुरावो मळे छे. सुप्रसिद्ध जैन कथाग्रन्थ 'वसुदेव-हिंडी'ना प्रारंभमां 'प्रथमानुयोग'नो आधार टोक्यो छे अने 'वसुदेव-हिंडी'नी कथानो सारांश 'प्रथमानुयोग' ग्रन्थमाथी उद्धृत थयो होवानुं सूचन त्यां करवामां आव्यु छे. संघदासगणिना 'पंचकल्प' भाष्य प्रमाणे 'प्रथमानुयोग'ना कर्ता आर्य कालक हता. बारमा अंग 'दृष्टिवाद'-अंतर्गत 'मूल प्रथमानुयोग' जेनो सविस्तर उल्लेख 'नंदिसूत्र 'मां श्रुतज्ञाननुं स्वरूप वर्णवतां करेलो छे ते सुसंबद्ध ग्रन्थरूपे नष्ट थतां तेनो पुनरुद्धार आर्य कालके कर्यो होय एम अनुमान थाय छे. पण आर्य कालकनो पुनरुद्धृत 'प्रथमानुयोग' पण आजे घणा सैका थयां नाश पामी गयेलो छे. कालकाचार्य विशेना प्रासंगिक उल्लेखो पण आगम साहित्यमां अनेक स्थळे छे. ___आगमोत्तर साहित्यमां पण कालकाचार्यनी कथा ए साहित्यरचना माटे एक खूब ज लोकप्रिय विषय रह्यो छे. संस्कृत, प्राकृत तेम ज जूनी गुजरातीमां-गद्यमां तेम ज पद्यमां मोटी संख्यामां जुदा जुदा ज्ञात तेम ज अज्ञात लेखकोने हस्ते कालकाचार्यनी कथाओ रचाई छे अने 'कल्पसूत्र' तेम ज 'उत्तराध्ययन' जेवा आगमसाहित्यना पवित्र ग्रन्थोनी जेम 'कालकाचार्य कथा'नी पण सचित्र हस्तप्रतो मळे छे." 'प्रज्ञापना सूत्र'ना कर्ता आर्य श्यामने केटलाक विद्वानो कालकाचार्यथी अभिन्न गणे छे." . उपर्युक्त बे कालकाचार्य.. उपरांत ए ज नामना - त्रीजा एक Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालणद्वीप ] [४१ आचार्य पण थया होवानुं अनुमान जैन शास्त्रो अने स्थविरोवलीओ उपरथी केटलाक विद्वानो करे छे.१२ १ प्रच, ४-*लो. ३-५. २ प्रच (अनुवाद), प्रस्तावना पृ. २३-२४ '३ निचू, भाग ३, पृ. ५७१-७२ ४ निघूनी टाइप करेली प्रतमा अहीं भरुकच्छने बदले उज्जयिनी छे, पण अन्य मूळ ग्रन्थोमां भरुकच्छ छे. एटले निचूना पाठमां कईक भ्रष्टता होवार्नु अनुमान थाय छे. ५ निचू , भाग ३, पृ. ६३३ ६ उचू , पृ. ८३-८४; उशा, पृ. १२७ (नि. गा. १२०); उने, पृ. ५० ७ प्रच (अनुवाद ), पृ. २३ ८ 'वसुदेव-हिंडी' ( अनुवाद ) पृ. ३६ ९ व्यम ( उहे. १०), पृ. ९४; घृकशे, भाग ५, पृ. १४५८ तथा १४८०; वृकम, भाग १, पृ. ७३-७४; कसु, पृ. ५२४-२५; कदी, पृ. ११३-१५; ककि, पृ. १५३, १७६-७९; कदी, पृ. ३-५; कसंवि, पृ. ११८-१९; श्रापर, पृ ७, इत्यादि. १० कालकाचार्य विशेनी जूनी कथाओ माटे जुओ साराभाई नवाबप्रकाशित 'श्रीकालक-कथासंग्रह.' एमां नथी संघराई एवी सोळमा सैकानी गुजराती गद्यमां लखायेली कथा माटे जुओ ‘प्रस्थान,' फागण-चैत्र, सं. १९८८ मां मारो लेख ‘कालकाचार्यकथा.' कालककथानी हाथप्रतोमां मळतां चित्रोना अभ्यास माटे जुओ नॉर्मन ब्राउनकृत 'स्टोरी ऑफ कालक. ११ जुओ श्याम आर्य. १२ प्रच ( अनुवाद ), प्रस्तावना, पृ. २३; 'कालककथासंग्रह,' प्रस्तावना, पृ. ५२-५३. कालणद्वीप _ जुओ काननद्वीप Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ कालनगर कालनगर आनंदपुरनुं बीजं नाम. त्यां ध्रुवसेन राजानो पुत्रमरणनो शोक शमाववा माटे 'कल्पसूत्र'नी वाचना थई हती.' जुओ आनन्दपुर १ ध्रुवसेननृपस्य पुत्रमरणातस्य समाधिमाधातुमानन्दपुरे, संप्रति कालनगरमहास्थानाख्यया रूढे सभासमक्षमयं ग्रन्थो वाचयितुमारब्ध इति । कसंवि, पृ. ११८-१९. आ उल्लेखने शब्दशः स्वीकारीए तो कसंविना कर्ता जिनप्रभसूरिना समयमां (१४ मो सेको) आनंदपुर 'कालनगर' तरीके जाणीतुं हतुं. आ उल्लेख विचारणीय एटला माटे छे के जैन के अन्य साहित्यमा उपलब्ध थतां आनंदपुरना अनेक नामोमां आ नाम नथी. कालवेशिक ___ मथुराना जितशत्रु राजाना काला नामे वेश्याथी थयेला पुत्र. दीक्षा लीधा पछी विहार करता तेओ मुद्गशैलपुर ज्यांना हतशत्रु राजा साथे तेमनी बहेन परणावी हती त्यां गया हता. त्यां प्रतिमा-कायोत्सर्ग ध्यानमा रहेला हता त्यारे एक शियालणीए तेमने फाङी खाधा हता. ___भगवती सूत्र' ( शतक १, उद्दे० ९)मां पार्थापत्य कालाश्यवेशिपुत्र अणगारनो वृत्तान्त आवे छे ते आथी भिन्न छे के केम ए कहेवू मुश्केल छे. १ आ जैन पारिभाषिक शब्द छे, अने मूर्तिवाचक सर्वसाधारण 'प्रतिमा' शब्दथी भिन्न छे. २ उशा, पृ. १२१; उने, पृ. ४७. जुओ कोङ्कण कुञ्जरावर्त कुंजरावर्त अने रथावर्त ए बे पर्वत पासे पासे आवेला हता. Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुणाल जुओ रथावर्तगिरि कुडङ्गेश्वर उज्जयिनीमां अवंतिसुकुमालना देहो सर्गना स्थान उपर तेना पुत्रे बंधावेलु मन्दिर. जुओ अवन्तिसुकुमाल कुणाल सम्राट अशोकनो पुत्र. अशोके तेने उज्जयिनी कुमारभुक्तिमा आप्यु हतुं. ते आठ वर्षनो थयो त्यारे अशोके तेना उपर एक पत्र पाठन्यो अने तेमां लख्यु के–'अधीयतां कुमारः' (कुमार विद्याभ्यास करे). पण कुणालनी अपर माताए ए उपर अनुस्वार मूकीने 'अंधीयतां कुमारः' (कुमारने अंध बनाववामां आवे) एम करी दीधुं. कुणाले तो पितानी आज्ञा शिरोधार्य गणीने तपावेली सळोथी आंखो आंजी अने अंध बन्यो. आ वात जाणीने राजाए उज्जयिनी अन्य कुमारने आपी, अने कुणालने बीजां गामडां आप्यां. कुणाल संगीतविद्यामां निपुण हतो. एक वार अशोक पासे आवीने पडदा पाछळथी गान करीने तेणे अशोकने प्रसन्न कर्यो. अशोके पूछयुं, 'तने शुं आपुं?' त्यारे कुणाल बोल्योः चंदगुत्तपपुत्तो य बिंदुसारस्स नत्तुओ। असोगसिरिणो पुत्तो अंधो जायइ कागिणिं ॥ (चंद्रगुप्तनो प्रपौत्र, बिन्दुसारनो पौत्र अने अशोकश्रीनो अंध पुत्र काकिणी मागे छै.) अशोके पुत्रने ओळख्यो अने आलिंगन कर्यु. अमात्योंए का के 'राजपुत्रोनी बाबतमा काकिणीनो अर्थ राज्य थाय छे." पछी कुणालना पुत्र संप्रतिने राज्य आपवामां आव्यु. आ वृत्तांतमांनी बधी व्यक्तिओ ऐतिहासिक छे. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ ] जुओ संप्रति १ जुओ काकिणी. •लक्षणाथी ज आवी शके. 6 [ कुणाल काकिणी' मां राज्यनी अर्थ तो केवळ २ बुकभा, गा, २९२-९४ बुकम, भाग १, पृ. ८८-८९; बृकक्षे, भाग ३, पृ. ९१७; अनुहा, पृ. १०-११ ककि, पृ १६४-६५, इत्यादि. कुण्डलमेण्ट कुंडल मेंठ नामे व्यंतरनी यात्रामां भरुकच्छनी आसपासना घणा लोको संखडि - उजाणी करता हता. १ १ कोंडल मेंढ पभासे० ब्रुकभा, गा. ३१५० तथा कुण्डलमेण्ठनाम्नो वनमन्तरस्य यात्रायां भरकच्छपरिसरवर्ती भूयान् लोकः संखडिं करोति । बृकक्षे, भाग ३, पृ. ८८३-८४. वळी जुओ त्यां ज ठिप्पणमां आपेलं चूर्णि अने विशेषचूर्णिनुं अवतरण - " अहवा कोंडलमिंढे कोंडलमेंढो वाणमंतरी । देवद्रोणी भरुयच्छाहरणीए तत्थ यात्राए बहुजणो संखडि करेइ । ... ' इति चूर्णों विशेषचूण च । कुत्रिकापण कुत्रिक एटले त्रणे भुवननी तमाम वस्तुओ जेमां मळे एवो आपण एटले दुकान ते कुत्रिकापण.' कुत्रिकापणमां वस्तुनुं मूल्य खरीदनारना सामाजिक दरज्जा प्रमाणे लेवामां आवतुं. जे माणस दीक्षा लेवानो होय ते पोतानां जरूरी उपकरण, पोते सामान्य माणस होय तो पांच रूपियाने कीमते खरीदी शकतो, जो इभ्य ( लक्षाधिपति ) अथवा सार्थवाह होय तो तेणे एक हजार आपवा पडता, अने जो ते. सजा होय तो तेणे एक लाख आपवा पडता. राजगृहमां श्रेणिकना राज्यकाळमां धनिक श्रेष्ठीपुत्र शालिभद्रे दीक्षा लेती वखते पोतानुं रजोहरण अने पात्र कुत्रिकापणमांथी दरेक माटे एक लाख आपीने खरीयां हृतां महावीरस्वामीना जमाई क्षत्रियकुमार जमालिए दोक्षा 3 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुत्रिकापण ] [४५ लीधी त्यारे तेम ज राजा श्रेणिकना पुत्र मेधकुमारे दीक्षा लोधी त्यारे पण एटली ज कीमते पात्र. अने रजोहरण कुत्रिकापणमाथी खरीदवामां आव्यां हतां. राजा चंडप्रद्योत व्यारे अवन्तिजनपद उपर राज्य करतो हतो त्यारे उज्जयिनीमां आवा नव कुत्रिकापण हता; तथा राजगृहमां श्रेणिकना राज्यकाळमां पण कुत्रिकायण हतो. वळी कुत्रिकापण साथे केटलीक लोकवार्ताओ पण जोडाई छे, जेमां कुत्रिकापणमां भूत पण मळता एम कडं छे.' आ प्रकारनी लोकप्रसिद्ध वार्ताओ कुत्रिकापणना वृत्तान्त साथे वणाई गई छे ए वस्तु ज बतावे छे के कुत्रिकापण ध्यारे केवळ भूतकाळनी वस्तु बनी गयो हतो त्यारे पण लोकमानसे एनी स्मृति केवी रीते संघरी राखी हती. कुत्रिकापण जेम त्रिभुवननी सर्व वस्तुओनो भंडार हतो तेम इच्छित वस्तु संपादित करवानी लब्धिवाळा अथवा सकल गुणना भंडार साधुने 'कुत्तियावणभूआ ('कुत्रिकापण जेवा') कह्या छे. [नोंधः-कुत्रिकापण विशेना आगमताहित्यना केटलाक प्रासंगिक उल्लेखो माटे जुओ अभिधानराजेन्द्र,' प्रन्थ ३. वळी सातमी अखिल भारत प्राच्यविद्या परिषदना अहेवालमां: मारो लेख 'ए नोट आन धी कुत्रिकापण' तथा 'इतिहासनी केडी' मां ग्रन्थस्थ , थयेलो लेख * कुत्रिकापण अर्थात् प्राचीन भारतना जनरल स्टोर्स' जोवो.] १बकभा, गा. ४२१४ तथा ते उपरथी क्षेमकीतिनी वृत्तिः भसूअ, शतक १, उद्दे. ३३. २ अकभा, गा. ४२१५ तथा ४२२०-२२; बृकसे, भाग ४, पृ. ११४४-४६. ३ एज ४ भसू, शतक :, उद्दे. ३३ ५ ज्ञाध, पृ. ५३ ६ बृकमा, गा. ४२२०; बृकशे, पृ. ११४५-४६ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ कुत्रिकापण ७ जुओ उज्जयिनी ८ ते ण काले णं से णं समये णं पासावनिचज्जा थेरा भगवंतो कुत्तियावणभूआ, वहुस्सुया, बहुपरिवारा पंचर्हि अणगारसएहिं सद्धि संपरिबुढा...भपू, शतक २, उद्दे. ५. जुओ एमांना अघोरेखित शब्द उपरनी अभयदेवसूरिनी वृत्ति-xx 'कुत्तिआवणभूपत्ति कुत्रिक स्वर्ग-मर्त्य- पाताललक्षणं भूमित्रयं, तस्संभवं वस्तु अघि कुत्रिकम् , सत्संपादक आपणो हः कुत्रिकापण:-तद्भूताः । समीहितार्थसंपादनलब्धियुक्तत्वेन सकलगुणोपेतत्वेन वा तदुपमा । कुमारपाल गुजरातनो प्रसिद्ध चौलुक्यवंशीय राजा (सं. ११९९-१२२९ ई. स. ११४३-११७३ ). जैनधर्म प्रत्येनुं एनुं वलण जाणीतुं छे, कुमारपालनां बहेन अने बनेवी एकवार धूत रमतां हतां तेमां बनेवीए 'मूंडियाने मार' एम कहोने जैन साधुनी मश्करी करी हती एमाथी घोर वेरनां बीज ववायां हता.' १ श्रापर, पृ. १३५. कुम्भकारकट चंपानगरीना (केटलाकना मत मुजब, श्रावस्तीना) स्कन्दक राजाए पोखानी बहेन पुरंदरयशा कुंभकारकटमा राजा दंडकी साथे परणावी हती. केटलाक समय पछी स्कन्दके दीक्षा लीधी अने विहार करता ते कुंभकारकट नई पहोंन्यो, ज्यां दंडकीना आदेशथी एनो वध करवामां आव्यो. स्कन्दक मरीने अग्निकुमार देव थयो अने तेणे आखं ये नगर बाळीने भस्म करी नाख्यु. आम कुंभकारकट नगरने स्थाने अरण्य बन्यु अने दंडकना नाम उपरथी दंडकारण्य तरीके ओळखायुं.' दक्षिण गुजरातमा डांगथी शरू थता अने गोदावरी नदीनी आसपास मुधी विस्तरेला अरण्यमे दंडकारण्य गणवामां आवे छे. वळी कुंभकारकटने अंते आवतो 'कट' पदान्त मोधपात्र छे. जो के जैन संस्कृतमा ए प्रयोजाय छे अने प्राकृसमां एनुं कई एषु रूप अपाय Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुम्भकारप्रक्षेप ] [ छे, छतां मूळे ते संस्कृत 'कृत'मांथी व्युत्पन्न थयेल छे. प्राचीन अने मध्यकालीन भारतमां संख्याबंध नगरोनां नामने अंते 'कट' पदान्त मळे छे, जेमके कोफ्कट, भोगकट, वंशकट, केणाकटक, इत्यादि. पंचासरना जयशिखरी उपर आक्रमण करनार भुवङ कल्याणकटकनो राजा हतो ए जाणीतुं छे. ओरिसाना पाटनगर ' कटक 'नुं नाम आधी रोते मूळ कोई आखा नामनो संक्षेप हशे जेम 'अणहिलवाड पाटण'नो संक्षेप 'पाटण' छे तेम. जावा वगेरे भारतनी प्राचीन वसाहतोमा 'जोग्यकर्त' 'जकर्त' वरोरे नगरोमां नामोने अंते 'कर्त' पदान्त छे, ए संस्कृत 'कृत'मांथी छे, जेमांथी उपर्युक्त 'कट' पण व्युप्तन्न थयेलो छे. गुजरातनां 'क' 'कडी' वगैरे स्थळनामोनी व्युप्तत्ति आ रीते कृतकम् 7 7कटकम्7कडउं कडुं तथा कृतिका कडिआ 7 कड़ी एम साधी शकाय. संस्कृतमा 'कटक 'नो एक अर्थ 'सैन्यनी छावणी' एवो थाय छे, ए आ साथै सरखाची शकाय. जो के त्यां पण ए शब्द प्राकृतमांथी संस्कृतमा लेवामां आव्यो होय ए ज संभवित छे. जुओ दण्डकारण्य १ बृकभा, गा. ३२७४; उच्, पृ. ७३; उने, पृ. ३६; उशा, पृ. ११४- १६; नि, पृ. १११३. २ कदी, ११८ ३ उशा, पृ. ८५ ४ 'गुजरातना जैतिहासिक लेखो,' भाग १ नं. ५४, ६०, ८८ ५ ' तंत्रोपाख्यान, ' पृ. १२; 'पंचतंत्र' (अनुवाद), उपोदघात, पृ. ३९. ६ चटरजी, 'इन्डो-आर्यन अॅन्ड हिन्दी, ' पृ. ६९. कुम्भकारप्रक्षेप वीतभय नगरनुं बीजुं नाम. ए सिनवल्लीमा आवेलं हतुं. सिन्धुसौवीरनो उदायन राजा जे साधु बनी गयो हतो तेणे अहाँ एक Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ ] [ कुम्भकारप्रक्षेप कुंभकारना घरमां निवास को हतो. राजाना भाणेज केशीए एने झेर आपी · मारी नाख्यो हतो, आथी देवोए झंझावात पेदा करी आखा नगरनो नाश करी नाल्यो. एमाथी एक मात्र कुंभकार- घर ज बच्युं. त्यारथी ए स्थळ कुंभकारप्रक्षेप (प्रा. कुम्भयारपक्खेव) तरीके प्रसिद्ध थयु. ''जातक' (नं. ४६३ )मां रेतीना तोफानथी कुंभवती नगरीनो नाश थयानो उल्लेख छे ते उपर्युक कथानक साथे सरखावी शकाय, जुओ उदायन, वीतभय नगर अने सिनवल्ली १ आचू, उत्तर भाग पृ. ३७ कुवलयमाला कथा - दाक्षिण्यांक उद्योतनसूरिए शक सं. ६९९ ( ई. स. ७७७)ना छल्ला दिवसे जाबालिपुर (जालोर)मां रचेली विस्तृत प्राकृत धर्मकथा. भारतना बीजा प्रदेशोना वासीओनी जेम लाटवासीओ अने गुर्जरोनी भाषानी लाक्षणिकता पण एमां सूचनरूपे वर्णवेली छे, जे खास तो एनी प्राचीनताने कारणे नोंधपात्र छे.' _____ अभयदेवसूरिए 'कुवलयमाला कथा'ना महेन्द्रसिंह नामे एक पात्रनो ' स्थानांगसूत्र 'वृत्तिमा निर्देश कर्यो छे. २ १ जुओ 'वसन्त रजत महोत्सव स्मारक ग्रन्थ ' मां आचार्य जिनविजयजीनो लेख, 'कुवलयमाला; आठमा सैकानी एक जनकथा.' २ शोंडीरो यः शौर्यवता शूर एव रणकरणेन वशीकृतः पुत्रतया प्रतिपद्यते यथा कुवलयमालाकथायां महेन्द्रसिंहाभिधानो राजसुतः श्रूयते, स्थासूभ, पृ. ५१६. कुशावर्त जैन साधुओए विहार करवा योग्य साडीपचीश देशो-आर्यक्षेत्र -पैकीनो एक देश, जे- पाटनगर शौरिपुर इतुं.१ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृष्ण बासुदेव ] [ ४९ ન 'वसुदेव - हिंडी' ना कथन प्रमाणे आनर्त, कुशावर्त, सुराष्ट्र अने शुक्रराष्ट्र ए चार जनपदो पश्चिम समुद्रने किनारे आवेला हता, अने ए जनपदोनी प्रधान नगरी द्वारवती हती. हवे, प्राचीनतर शौरिपुर यमुना नदीना किनारे हतुं अने शौरि राजाए पोताना नाना भाई सुबीरने ते सोपीने पश्चिममां कुशावर्तमां जईने शौरिपुर नामे नगर वसायुं हतुं अने यादवो पण जरासंधना भयथी पश्चिममां द्वारवतीमां जईने वस्या हता. आ उपरथी अनुमान थई शके के कुशावर्त तेम ज शौरिपुर बे हतां - एक उत्तरमां अने बीजुं पश्चिममां. स्थळान्तर कर्या पछी नवां स्थानोने जूनां नामो आपवानुं जातिओनुं वलण जाणीतुं छे. ૩ १ बृकभा तथा बृकक्षे, भाग ३, पृ. ९१२ - १४ सूकृशी, पृ. १२३. २ ' वसुदेव - हिंडी' (मूल), पृ. ७७, अनुवाद, पृ. ९२. ३ जुओ शौरिपुर. कृष्ण वासुदेव जैन पुराणकथा प्रमाणे, नव वासुदेवो पैकीना छल्ला - नवमा वासुदेव, यादवोना नेता; बावीसमा तीर्थंकर नेमिनाथना काकाना दीकरा भाई. एमने माटे देवोए पश्चिम समुद्रने किनारे द्वारवती नगरी बसावी हती. कृष्ण वासुदेवनो प्रतिवासुदेव जरासंध हतो. प्रद्युम्न, सांच, भानु, सारण, जालि, मयालि, उवयालि, पुरुषसेन, वीरसेन आदि कृष्णना पुत्रो हता. श्री कृष्णनुं संपूर्ण चरित्र आगमसाहित्याना एके ग्रन्थमां नथी. 'त्रिषष्टिशला कापुरुषचरित्र' जेवा ग्रन्थना नेमिनाथचरित्र 'मांथी तथा अन्य नेमिनाथचरित्रोमांथी तेमज दिगंबर परंपराना पण ए प्रकारना ग्रन्थोमांथी जैन परंपरा अनुसारनुं एमनुं चरित्र संकलित थई ७ 6 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० ] [ कृष्ण वासुदेव शके एम छे. आगम साहित्यमां तो कृष्ण विशेनां संख्याबंध प्रासंगिक कथानको अने प्रसंगोपात्त उल्लेख मात्र प्राप्त थाय छे. ' १ झाध, अध्य. १६; आचू, उत्तर भाग, पृ. १६-१८; आम, पृ. ३५६-५९; अंद. वर्ग १-५; वृद, पृ. ४१-४२; चं, गा. १११; मस, गा. ३७७; उशा, पृ. ११८; ककि, पृ. ७, ३४-३५, १३७-४२; की, पू, २९, १२०-२३ ककौ, पृ. ८, ३३, १६३-७० कसु, पृ. ३७, ७०-७१, ३९९ - ४२४; वत्र. पू. ३४-३५; पाय, पृ. ६७९ इत्यादि. कृष्णना केटलाक संबंधीओनां चरित्र माटे जुओ अंद. केशी सिन्धु- सौवीरना राजा उदायननो भाणेज. उदायने महावीर पासे दीक्षा लोधी व्यारे पोताना पुत्र अभीचि प्रत्येनी श्रेयबुद्धिथी तेने गादी नहि आपता केशीने आपी हती; पण पाछळथी केशीए उदायनने झेर आपीने मारी नाख्यो हतो. ' जुओ अभीचि अने उदायन १ भलू शतक १३, उद्दे. ६; उने, पृ. २५२-५५; कसु, १. ५८७; आचू, उत्तर भाग, पृ. ३६-३७, कोकास एक निष्णात यांत्रिक. सोपारकना एक रथकारनी दासीमां ब्राह्मणथी उत्पन्न थयेलो ते पुत्र हतो. रथकारनी बधी विद्या तेणे शीखी लोधी हती. एक वार सोपारकमां दुष्काळ पडतां ते उज्जयिनी आयो. एवखते पाटलिपुत्रनो राजा जे काकवर्ण नामथी ओळखातो हतो, तेणे उज्जयिनी कबजे करी हती. राजाने पोताना आगमननी जाण करावा माटे कोकायंत्रकपोतो तैयार करावीने तेमनी द्वारा राजमहेलमांथी गंधशालि अर्थात् ऊंची जातनी डांगर मेळवी. राजाए कोकासने बोलाग्यो तथा तेने वृत्ति बांधी आपीने यांत्रिक गरुड तैयार कराव्या. कोकास बड़े हंकाराता ए गरुड उपर बेसीने राजा देवीनी Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोक्कास ] [ ५१ साथै आकाशमां फरतो. पछी बधा राजाओने पण तेणे आ रीते पोतानो प्रभाव बतावीने वश करी लोधा. हवे, एक बार राजानी बीजी एक इर्ष्यालु राणीए यंत्रने पा लावा माटेनी खीली काढी नाखी. गरुड आकाशमां ऊड्या पछी आ वातनी राजाने खबर पडी. कलिंगदेशमां ऋषिप्राणित तळाव आगळ जोरथी ऊडतां गरुडनी पांख भांगी गई, अने सौ नीचे पडयां. गरुडनी पांख सांधवा माटे सामग्री मेळवावा माटे कोक्कास नीकळ्यो अने एक रथका पाईने तेणे एनां उपकरणो माग्यां रथकार उपकरण लेवा गयो, एटलामां तो कोक्का से तेना रथनुं चक्र तैयार करी आयु. आ निपुणता उपरथी रथकारे अनुमान कर्यु के आज कोकास होवो जोईए. तेणे जईने पोताना राजाने खबर आपी. राजाए कोक्कासने तथा काकवर्ण राजा अने तेनी देवीने पकड्यां. पछी कलिंगना राजाए कोक्कास पासे पोताने माटे अने पोताना पुत्र माटे प्रासाद तैयार कराव्यो. आ पछो कोकासे काकवर्णना पुत्रने पत्र लख्यो के 'हुं कलिंगना राजाने मारुं एटले तुं मने अने तारां मातापिताने छोडाव. ' आ माटेनो नियत दिवस पण तेणे पत्रभां लख्यो. ए दिवसे कलिंगनो राजा पुत्र सहित प्रासादमा प्रवेश्यो, एटले कोकासे यंत्रनी खोली दबावतां पुत्रसहित राजा मरण पाम्यो. काकवर्णना पुत्रे नगर कबजे कर्यु तथा मातापिताने अने कोक्कासने छोडाव्यां.' कोक्कासनुं कथानक आगमेतर साहित्यमां सौथी प्राचीन स्वरूपे वसुदेव- हिंडी 'मां छे. बाल्यावस्थामां ते खांडणिया पासे बेसतो अने डांगरनी कुसकी ('कुक्कुसे' ) खातो, तेथी एनुं नाम कोक्कास पड्यु, 6 एम वसुदेव - हिंडी" नोधे छे. जो के उपर्युक्त कथानक साथे तुलना करतां एना प्रसंगौमां कंईक फेर मालूम पडे छे. 'आवश्यक चूर्णि 'वाळा कथानकमां यांत्रिक गरुड कलिंग देशमां ऋषिप्राणित तळाब आगळ ऊतरे छे, ज्यारे 'वसुदेव - हिंडी' मां कोक्का से बनावेला वायुयानने " Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२) [ कोकास तोसलि नगर आगळ ऊतरवानी फरज पडे छे. आ तोसलि नगर पण कलिंगमां आवेलुं हतु ए अहीं नोंधq जोईए जेमां लोकवार्ताजन्य कल्पनाना अंशो मोटा प्रमाणमां भळेला छे एवा आ विख्यात शिल्पीना कथानकमांथी कलिंगना राज्य अने मगधना साम्राज्य वच्चेना प्राचीनकाळथी चाल्या आवता वैरनुं सूचन थाय छे, जेने अशोकना कलिंगविजयमांथी तथा कलिंगचक्रवर्ती जैन सम्राट् खारवेलना उदयगिरि उपरनी हाथीगुंफाना लेखमांथी पण अनुमोदन मळे छे. १ आचू, पूर्व भाग, पृ. ५४०-४१; आम, पृ. ५१२-१३. वळी मात्र सूचनरूपे कोकासना निर्देश माटे जुओ व्यम, उदे० ५. प्राचीन भारतीय साहित्यमां अनेक स्थळे जडता वायुयानविषयक उल्लेखोना अभ्यास माटे जुओ इतिहासनी केडी'मां प्रन्थस्थ थयेलो मारो लेख 'प्राचीन भारतमां विमान.' २. 'वसुदेव-हिंडी' (मूल), पृ. ६१-६४; अनुवाद, पृ. ७४-०७७ कोण . गुजरातनी दक्षिण सरहदने अडीने आवेलो कोंकणनो प्रदेश. साधुए विहार करवा योग्य २५॥ आर्यदेशोमां कोंकणनो समावेश थतो नथी अने कोंकणकने एक अनार्य जाति तरीके गणावेली छे, छतां आगमसाहित्यमां कोंकण विशेना संख्याबंध प्रकीर्ण उल्लेखो मळे छे, जे सूचवे छे के समय जतां ए प्रदेशमां जैन धर्मनो ठीक प्रचार थयो हतो अने त्यां जैन साधुओ वारंवार विचरता हता. 'कोंकण' ए प्रदेश नाम ' कोंकणक' ए जातिनाम उपरथी पड्यु जणाय छे (जुओं कोङ्कणक). ___कोंकणवासीओ पुष्प अने फळनो प्रचुर प्रमाणमा उपभोग करता हता. उत्तरापथ अने बाल्हिकना लोको जेम सक्त खाय छे तेम कोंकणवासीओ 'पेज्जा' (सं. पेया) अर्थात् चोखानी राब ले छे. स्यां भोजनना प्रारंभमां ज आ राब अपाय छे. अत्यारे पण कोंकणमां Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोकण ] चोखा मुख्य खोराक छे ए वस्तु आपणे ध्यानमा राखवी जोईए. कोंकणादि देशोमां गिरियज्ञ नामनो उत्सव दररोज संध्याकाळे थाय छे." त्या पाणीने 'विच्च' कहे वामां आवे छे. संख्यावंध अर्वाचीन भारतीय भाषा ओना 'पिचकारी,' 'पिच(क)दानी' जेवा शब्दोमांना 'पिच' अंगर्नु संतोषकारक निर्वचन संस्कृतद्वारा थतुं नथी, एनो संबंध आ 'पिच्च' साथे हशे. संभव छे के रवानुकारी लागतो ए शब्द मूळे कोई आर्येतर भाषामांथी होय. ___कोंकणदेशोद्भव पुरुषो सह्य पर्वत उपरथी गोळ, घी, धउं, तेल, वगेरे माल उतारे छे अने त्यां चढावे छे. कोंकणदेशमां भारे वरसादने कारणे जैन साधुने छत्री राखबानी पण अनुज्ञा आपवामां आवेली छे. कोंकणनी नदीओमां तीणा पथ्थरो होवाने कारणे एमां चालवू कष्टदायक छे. कोंकणने एक स्थळे ' असंदीनद्वीप' अर्थात् समुद्रनो भरतीथी परिप्लावित न थई जाय एवो प्रदेश कहेवामां आव्यो छे." 'कोंकणार्य' अथवा 'कोंकणकक्षान्त '-कोकणवासी साधुनुं दृष्टान्त अनेक स्थळे आवे छे. दीक्षा लोधा पछी पोताना पुत्रादि माटे तेओ चिन्ता करता हता, एमने आचार्ये समजाव्या हता." एक कोंकणवासीनी पत्नी मरण पामी हती, परन्तु एने एक पुत्र होवाथी फरी वार लग्न माटे कन्या मळती नहोती; आथी तेणे पोताना पुत्रने कपट करी बाणथी वीधीने मारी नाख्यो हतो, एवी पण एक कथा छे. एक कोंकणवासी श्रावकना आदर्श सत्यभाषण दृष्टान्त आवश्यक चूर्णि'मां छे, जेमां तेणे पोताना पितानी सामे ज साक्षी पूरी हती. १ जुओ कोङ्कणक. . २ बृकक्षे, भाग २, पृ. ३८४. वळी जुओ त्यां - टिप्पणमां चूर्णि अने विशेषचूणिमांथी आपेठे अवतरण, ३ आशी, पृ. ५; दवैचू , पृ. ३१६ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] ४ निचू, भाग १, पृ ४६. ५ वृकभा, गा. २८५५; बृकक्षे, भाग ३, पृ. ८०७ चूर्णि भने विशेषचूर्णिनुं अवतरण पण त्यां आपेलुं छे. ६ स्थासूअ, पृ ४९०; पाय, पृ. ५०. ७ आहे, पृ. ५५; आम, पृ. ५१२. ८ आशी, पृ. ३७१. ९ निचू, पृ. ८२७, १० तत्थ जो आसासदीवो सो दुविधो-संदीणो असंदीणो य, तत्थ संदीणो णाम जो जलेण छादेज्जति, सो ण जीवितत्थसंताणाय, जो पुण सो विच्छिण्णत्तणेण उसितत्तणेण य जलेण ण छादेज्जति सो जीवितत्थीणं त्राणाय, असंदीणो दीवो जहा कोंकणदीवो, उचू, पृ. ११४-१५. [ कोकण ११ आचू, उत्तर भाग, पृ. ७७ पाय, पृ. ५६; कसु, पृ. ९ ककि, पृ. ५; कोंकणार्यना मात्र सूचनरूप निर्देश माटे जुओ जीकचू, पृ. १०, १४, १५ तथा जीकचूव्या, पृ. ४३. १२ आचू, उत्तर भाग, पृ. २८२-८३, आम, पृ. १३६ बृकम, भाग १, पृ. ५५. कोङ्कणक एक अनार्य जाति' ' कुंकणा' नामथी ओळखाती आदिवासी प्रजा सूरत, थाणा, पश्चिम खानदेश, वगेरे जिल्लाओमां वसे छे तेने ज अ ' कोकणक' गणवी जोईए. 'कोंकण' ए प्रदेशनाम आ जाति नाम उपरथी पड्युं हरो. १ प्रव्या, पृ. १४. असू, पृ. ५४. कोटिपताका करोडपतिओ महोत्सवप्रसंगे पोताना मकान उपर समृद्धिसूचक कोटिपताका चढावता. ' १ आचू, पूर्व भाग, पू. ४७७-४८; आम, पू. ४५२. Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरण्टक उद्यान ]. कोटयाचार्य जिनभद्रगणिकृत 'विशेषावश्यक भाष्य 'ना विवरणकार. एमने ' आचारांग, ' ' सुत्रकृतांग' आदि उपर वृत्तिओ लखनार शीलाचार्यथी अभिन्न गणवामां आवे छे. जुओ शीलाचार्य कोरण्टक उद्यान भरुकच्छनुं एक उद्यान. वोसमा तीर्थंकर मुनिसुव्रतस्वामी त्यां घणी वार समोसर्या' हता. कोरंटक आदि उद्यानोमां जईने देवतानी समक्ष आलोचना करी प्रायश्चित्त लेवानुं विधान छे. वादी देवसूरिकृत ' स्याद्वादरत्नाकर' ना मंगलाचरण उपरथी जणाय छे के आ उद्यान भरुकच्छना. ईशान खूणे आवेलुं हतुं. [ ६५ कोरंट अथवा कोरंटक एक वनस्पतिविशेष छे अने प्राकृत साहित्यमा एना उल्लेख छे (जुओ 'पाइअ सद महण्णवो' ). हेमचन्द्रना 'निघंटुशेष 'मां गुल्मकांडमां नरहरिकृत ' राजनिघंटु ' मां तेमज अन्य निघंटुओमां तेनो 'कुरंटक' तरीके उल्लेख छे. आ ' कोरंटक ' के 'कुरंटक ' ने गुजरातीमां 'कांटासेरियो' कहे छे. एनी जुदी जुदी चार जातो छे. 'निघंटु आदर्श 'ना कर्ता श्री. बापालाल ग. वैद्य ए विशे ता. १४-१२-५० ना पत्रमां मने लखे छे “ आप कोरंटक नामे उद्याननी वात करो छ। ए मारे माटे नवी माहिती छे, परन्तु आवो उद्यान होय तो नवाई जेवुं न कहेवाय. आ छोड़ अने तेमां ये एनी चारे जातो उद्यानमां होय तो एनुं दृश्य खरेखर रमणीय लागे तेवुं छे ज परन्तु आ छोड छे. बहु सारुं पोषण मळे तो गुल्मनी कोटिमां आवे परन्तु वृक्ष तो आ नथी ज-सघन छायादार वृक्ष तो नथी ज. परन्तु भरूचना ईशान खूणामां कोरंटक नामे उद्यान हतो ए माहिती मने खूब ज गमी छे. उथानमां बीजां वृक्षो तो होय ज, परन्तु आ " Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ] [ कोरण्टक उद्यान कमनीय छोडोए कोई रसिक कवि के बीजानी दृष्टि खेंची लागे छे अने एटले ज आ नाम उद्यानने आप्युं लागे छे." १ तीर्थंकरना महामंगल आगमन माटे प्रयोजातुं क्रियापद 'समोसर' : अने नाम 'समोसरण' छे. ए जैन पारिभाषिक शब्द छे. एनी व्युत्पत्ति संस्कृत सम् + अ + सृ उपरथी छे. २ व्यम, विभाग ३, पृ. १३७. ३ ' निघंटु आदर्श,' उत्तरार्ध, पृ. २१९-२४. कोसुंबारण्य एक अरण्य, ज्यां जराकुमारनुं बाण वागवाथी कृष्ण वासुदेव मरण पाम्या हता. द्वैपायन नामे परिवाजक जे सांब आदि सुरामत यादवकुमारोने हाथे मरण पामी अग्निकुमार देव थयो हतो तेणे द्वारकानुं दहन कर्या पछी बलराम अने कृष्ण सुराष्ट्र देश छोडीने पांडवो पासे दक्षिणमथुरा तरफ जता हता. द्वारकाथी पूर्व तरफ नीकळी तेओ हस्तिकल्प नगरमा आव्या, त्यांना राजा अच्छदंतने हरावी दक्षिण तरफ जतां तेओ कोसुंबारण्य (प्रा. कोसुंबारन्न ) नामे अरण्यमां आध्या त्यां कृष्णने तरस लागतां बलदेव पाणी लेवा गया. ए समये कृष्णना मोटा भाई जराकुमार, जेओ एमने हाथे कृष्णनुं मरण थशे एवी भविष्यवाणी नेमिनाथे भाखी होवाने कारणे द्वारकानो त्याग करीने अरण्यमां जईने रह्य। हता ते शिकारीरूपे आल्या अने ढोंचण उपर एक पग राखीने सूतेला वासुदेवने मृग धारी तेमना पग उपर मर्मस्थाने बाण मारी तेमना मृत्यनुं कारण बन्या. ' • हस्तिकल्प ए भावनगर पासेनुं हाथब होवा संभव छे. कोसुंबारण्य ए उपर्युक्त वर्णन प्रमाणे, सुराष्ट्रमांथी दक्षिण तरफ जतां आवे छे, अने दक्षिण गुजरातर्मा आवेला कोसंबा आसपासनो विस्तार जे आजे पण गुजरातनो समृद्ध अरण्यप्रदेश छे ते ज ए होई शके. Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कौमुदिका ] [५७ भरुकच्छथी दक्षिणापथ जवाना मार्गमां — भल्लीगृह' नामथी ओळखातुं एक मन्दिर हतुं अने एमां भल्ली-बाणथी वधायेला पगवाळी कृष्ण वासुदेवनी मूर्ति हती, एम — निशीथचूर्णि' नोंधे छे, तेथी आ विधानने सबळ अनुमोदन मळे छे... ___वळी आर्य महागिरि अने आर्य सुहस्ती एक वार विहार करता · कोसंबाहार 'मां आव्या हता, एम संप्रति राजाना पूर्वजन्मना वर्णनप्रसंगमां निशीथचूर्ण' ( भाग २, पृ. ४३७) नोंधे छे. पण अहीं 'कोसंबाहार' ए 'कोसंबी आहार'-'कौशांबी आहार'नो अपभ्रष्ट पाठ छे, अने उपर्युक्त गुजरातना कोसंबा साथे एने संबंध नथी, एम 'बृहत्कल्पसूत्र' (क्षेमकीर्तिनी वृत्ति, भाग ३, पृ. ९१७-२१), 'परिशिष्टपर्व' (सर्ग ११) आदि ग्रन्थोमांना वर्णननी. एनी साथे तुलना करतां जणाय छे. १ उने, पृ. ४०-४१; वबू, पृ. ६७-६९, वळी जुओ अंद, पृ. १५-१६; स्थासूअ, पृ. ४३३. अंदमां आ स्थाननुं नाम 'कोसंबवणकाणण' (= कोसांववनकानन ) अने स्थासूअमां 'कोशांबकानन' आप्युं छे. २ जुओ हस्ति ल्प, ३ जुओ भल्लीगृह. - ४ अन्नया ते वि विहरंता कोसंबाहारं गता । निचू , भाग २, पृ. ४३७. कौमुदिका ____ कृष्ण वासुदेवनी एक भेरी (प्रा. कोमुइआ). सामुदायिक उत्सवोनी घोषणा करवाना प्रसंगे वगाडवानुं ए उत्सववाद्य हतुं.' पुराणोमां चतुर्भुज विष्णुना आयुधो पैकी एक कौमोदकी गदा छे, ए अहीं नोधq जोईए. १ ज्ञाध, पृ. १००-१.१; ज्ञाधअ, पृ. १०१. Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ ] क्षेमकीर्ति वृद्ध तपागच्छना स्थापक विजयचंद्रसूरिना त्रण शिष्यो- वज्रसेन, पद्मचन्द्र अने क्षेमकीर्त्ति नामे आचार्यो हता. ए पैकी क्षेमकीर्त्तिए 'बृहत् कल्पसूत्र' उपरनी वृत्ति जे पूर्वकालीन आचार्य मलयगिरिए अधूरी मूकी हती ते' सं. १३३२ ( ई. स. १२७६ ) ना वर्षमा पूर्ण करी. ए वृत्तिनो प्रथमादर्श नयप्रभ आदि साधुओए लख्यो हतो. १ जुओ मलयगिरि. २ ब्रुकझे, विभाग ६, पृ. १७१०-१२, प्रशस्ति. क्षेमपुरी राष्ट्र एक नगर. त्यांना श्रावक राजा ताराचन्द्रना कुमार नरदेवनी धर्मकथा ' वन्दारुवृत्ति 'मां छे.' क्षेमपुरीनो स्थाननिर्णय थई शक्यो नथी. १ क्षेमपुर्यां सुराष्ट्रासु ताराचन्द्रस्य भूभुजः । पद्मव पद्मनाभस्य प्रिया पद्मावतीत्यभूत् ॥ [ क्षेमकीर्ति प्रजायेतां तयोः पुत्रौ रूपलावण्यसंयुतौ । तत्राद्यो नरदेवाख्यो देवचन्द्रो द्वितीयकः ॥ वत्र, पृ. ८६. खण्डकर्ण उज्जयिनीना राजा प्रद्योतनो मंत्री. एक सहस्रयोधी मल्ल प्रद्योतना दरबारमा आग्यो हतो अने पोतानी सेवा बदल एक हजार योद्धाओने अपाय एटला वेतननी तेणे मागणी करी हती. खंडकर्णनी सूचनानुसार एना साहसनी परीक्षा कर्या पछी एनी मागणी मुजब वृत्ति बांधी आपवामां आवी हती. ' १ व्यम, विभाग ३, पृ. ९३. खपुटाचार्य एक प्रभावक आचार्य. ‘ आवश्यकसूत्र 'नी चूर्णि अने वृत्तिमां Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खपुटाचार्य प्राप्त थता एमना वृत्तान्तनो सार आ प्रमाणे छे : खपुटाचार्य एक विद्यासिद्ध आचार्य हता. तेमनो एक भाणेज तेमनो शिष्य हतो. ते सांभळवा मात्रथी विद्याओ शीखी जतो हतो, हवे, गुडशस्त्र नगरमां एक बौद्धाचार्य जैन साधुओ वडे वादमा पराजित थया पछी काळ करोने वृद्धकर नामे व्यंतर थयो हतो, ते साधुओने उपद्रव करतो हतो. आथी खपुटाचार्य पोताना भाणेज शिष्यने भरुकच्छमां बीजा साधुओ पासे राखीने गुडशनमां गया. त्यां यक्षना मन्दिरमा प्रवेशी वस्त्र ओढी सूई गया. पूजारी आव्यो, पण तेओ ऊठया नहि. पछी राजानी आज्ञाथी तेमना उपर अनुचरो लाकडीओनो प्रहार करवा मंड्या, तो ए प्रहारो ऊलटा अंतःपुरमांनी राणीओने वाग्या. आथी राजा आचायने करगरवा लाग्यो. पछी आचार्य ऊठीने चाल्या अने यक्ष तथा बीजी मूर्तिओने पोतानी पाछळ चालवा कयुं, एटले ते पण चालवा मांडी. बे मोटी पाषाणनी कूडीओने पण ए रीते पाछळ चलावी. गामना सीमाडे आवीने यक्ष अने बीजा व्यंतरोने मुक्त कर्या, एटले तेमनी मूर्तिओ पोतपोताने स्थाने गई, परन्तु वे कूडीओ त्यां ज रहेवा दीधी. ___ बीजी बाजू , आचार्यने खबर पडी के तेमन शिष्य-भाणेज विद्याप्रभावथी श्रावकोने घेरथी स्वादिष्ठ खोराक आकाशमार्गे ऊडतां पात्रोमां मंगावीने खाय छे तथा बौदोमा भळी गयो छे. भरुकच्छना संघ तरफथी पण आचार्य उपर संदेशो आव्यो. आचार्य भरुकन्छ गया. पेला ऊडतां पात्रोनी आगळ तेमणे एक शिला गोठवी, एटले बर्षा पात्रोनो तेनो साथे अथडाईने भूको थई गयो, अने शिष्य डरीने नासी गयो. पछी आचार्य बौद्धो पासे गया. बौद्रोए तेमने कह्यु के 'भगवान बुद्धने पगे पडो,' त्यारे आचार्य बोल्या, 'आव वत्स, शुद्धोदनसुत ! मने वंदन कर !' एटले बुद्धनी मूर्ति तेमने पगे पड़ी. त्यां द्वार आमळ एक स्तूप हतो तेने पगे पडवा कडं, एटले ते पण नमी Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [खपुटाचार्य पड्यो. पछी बुद्धनी मूर्तिने ऊठवा कह्यु, एटले ते अर्धनत अवस्थामा रही, अने 'निर्ग्रन्थनामित ' एवा नामथी प्रसिद्ध थई. 'प्रभावकचरित 'ना' पादलितसूरिचरित'मां खपुटाचार्यनो वृत्तान्त आप्यो छे त्यां तेमने भृगुकन्छना राजा बलमित्र-भानुमित्र तथा कालकाचार्यना समकालीन कह्या छे.* ए उल्लेखने जो अतिहासिक वस्तुसूचक गणीए तो, कालकाचार्य विशेनो मुनि कल्याणविजयनो समय निर्णय ध्यानमां लेतां, तेओ वीरनिर्वाण पछी चोथा सैकामां थयेला गणाय. ' प्रभावकचरित' अनुसार, बौद्धोए भृगुकच्छना अश्वावबोध तीर्थनो कबजो लई लोधो हतो ते तीर्थ खपुटाचार्ये 'बिलाडा पासेथी दूध मुकाववामां आवे तेम' छोडाव्युं हतुं. 'आवश्यकसूत्र'नी चूणि अने वृत्तिमा बौद्धोना खपुटाचार्य करेला पराजयनो जे निर्देश छे ते अश्वावबोधतीर्थ विशेनो हशे. वळी 'प्रभावकचरित' कहे छे के आर्य खपुटनी पाटे तेमना शिष्य उपाध्याय महेन्द्र बेठा हता, अने अश्वावबोधतीर्थमां तेमनी परंपरा हजी पण ( एटले के प्रभावकचरित 'ना रचनाकाळे, सं. १३३४ ई. स. १२७८ मां ) विद्यमान छे. ____ उपर्युक्त परंपरागत वृत्तान्तोमाथी चमत्कारनुं तत्त्व बाद करीए तो एटलं स्पष्ट छे के खपुटाचार्यनो विहारप्रदेश मुख्यत्वे लाट आसपासनो हतो, भरूचमा ए काळे बौद्धो अने जैनोनी मोटो वसती हती तथा तेमनी वच्चे स्पर्धा चालती हता, एक बौद्ध स्तूप पण भरूचमा हतो, खपुटाचार्यनो एक शिष्य बौद्धो साथे मळी गयो हतो, बौद्रोए आचार्यनी गेरहाजरीमां जैनोना अश्वाववोध तीर्थनो कबजो लई लीधो हतो, पण आचार्ये युक्तिप्रयुक्तिथी बौद्धोने दूर कर्या हता अने पोतानी पट्टपरंपरा त्यां पुनःस्थापित करी हती. १ आचू, पूर्व भाग, पृ. ५४२-४३; आम, पृ. ५१४. बुकमा Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेट ] ( गा. ५५९३ ) तथा बृकक्षे (भाग ५, पृ. १४८०) मां 'विद्याबली' तरीके खपुटाचार्यनो उल्लेख छे. २ प्रच, ५-श्लो, १४३-४६. जुओ बलमित्र-भानुमित्र अने कालकाचार्य, ३ प्रच, ५-लो. २२४. ४ शकुनिकाविहार, जेना उपर वस्तुपाल - तेजपाले सुवर्णना ध्वजदंडो कराव्या हता ते, अश्वावबोधतीर्थमा हती (जुओ ए प्रसंगना स्मारकरूपे रचायेली जयसिंहमूरिनी 'वस्तुगल-तेजपालप्रशस्ति' ). शकुनिकाविहारनी पाछळथी मस्जिद बनी गई छे, पण एजें आलेखन करतां शिल्पो आबु उपरना तेजपालना मन्दिरमा छे. ( अश्वावबोधतीर्थ तथा शकुनिकाविहारना परंपरागत इतिवृत्त तथा ए शिल्पानां चित्र माटे जुओ मुनि जयन्तविजयजीकृत ‘आबु,' पृ. 1०९-१५. वळी 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' पर्व ७, तथा 'विविधतीर्थकल्प' मा 'अश्वावबोधकल्प.') ५ टि. ४ मां निर्दिष्ट जयसिंहसूरि ( ई. स, नो तेरमो सैको ), जेओ आ तीर्थमां आवेला मुनि सुव्रतचैत्यना अधिष्ठायक -हता तेओ खपुटाचार्यनी परंपरामां थयेला होवा जोईए. खेट [१] जेनी आसपास धूळनो प्राकार होय एवा गामने खेट अथवा खेड कहे वामां आवे छे.' [२] समय जतां · खेट' ए सामान्य नाममांथी विशेष नाम बनी गयुं. संख्याबंध टीकाग्रन्थोमां मळता एक कथानक प्रमाणे, खेडनो वतनी रुद्र नामे ब्राह्मण खेतर खेडतो हतो त्यारे तेनो एक बळद गळियो थई जवाथी तेणे बळदने निर्दयपणे मार मार्यों अने परिणामे बळद मरण पाम्यो, आथी तेनी ज्ञातिए तेने पंक्ति बहार कर्यो हतो. ___ आ खेट अथवा तेनो तद्भव शब्द जेना नाममां अंगभूत होय एवां गामो अनेक स्थळे छे;जेमके गुजरातना खेडा, खेडब्रह्मा,संखेड़ा,चानखेडा, Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૨ ] [ खेट आदि; महाराष्ट्रनां खेडेगांव, आदि. आधी उपर्युक्त कथामांनुं ' खेट ' कयुं गाम हशे ए कही शकाय नहि. ' उज्जड खेडे वाग्यो ढोल' ए अखानी पंक्तिमां तथा ' उज्जड खेडां फरी वसे निर्धनियां धन होय ए सुभाषितमां खेडं' शब्द ' गामडा'ना अर्थमां छे. मराठी 'खेर्डे, ' तथा हिन्दी - पंजाबी 'खेडा ' पण आज अर्थमां छे. " 6 १ पांशुप्राकारबद्ध खेडं, आशी, पृ. २५८; धूलप्राकारोपेतं खेटं एज, पृ. २९९. आ प्रकारना बीजा उल्लेखो माटे जुओ उशा, पू. ६०५; ज्ञाषअ, पृ. ५५, १४०; बृकभा तथा बृकक्षे, भाग २, पृ. ३४२, इत्यादि. २ कसु, पृ. ५०५-०६; ककि, पृ. १९९; कदी, पृ. २२; ककौ, पृ. २३४. ३ खेडा माटे जुओ पुगु मां खेटक. खेट आहार काहारनो उल्लेख वलभीनां दानपत्रोमां अनेक वार आवे छे. ' गुजरातना खेडा आसपासनो ए प्रदेश हतो. आहार ए एक वहीवटी एकम छे. वळी वलभीना लेखोमां आहार अथवा आहरणीनो उल्लेख पर्याय तरीके कर्यो जणाय छे. (जुओ हस्तकल्प टि. ६) 'आवश्यकचूर्णि ' उत्तर भाग पृ. १५२-५३ मां भरुकच्छ ' आहरणी 'नो निर्देश छे ते आ दृष्टिए रसप्रद छे. अट्टण मल्लनो सहायक फलही मल्ल भरुकच्छ आहरणीना एक गामनो ( 'भरुकच्छाहरणीए गामे' ) हतो एम त्यां कहां छे. ' उत्तराध्ययन 'नी शान्तिसूरिनी (पृ. १९२ ) तथा नेमिचन्द्रनी वृत्ति (पृ. ७९ ) मां 'भरुकच्छहरणीगामे' एवो पाठ छे ते देखीती अशुद्धि छे. धान्य, इन्धनादि पूरां पाडवा वडे जे उपभोग्य बने ते एनो आहार गणाय एवो प्रदेश जे नगरने माटे निर्देश आगमसाहित्यमां Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गजापद ] [ ६३ छे. आहारनां उदाहरण तरीके मधुराहार, मोढेरकाहार, खेटाहार वगेरे आपेलां छे." १ पुगु, पृ. ७१. तद्यथा २ क्षेत्राहारस्तु यस्मिन् क्षेत्रे आहारः क्रियते उत्पद्यते व्याख्यायते (?) यदि वा नगरस्य यो देशो धान्येन्धनादिनोपभोग्यः स क्षेत्राहारः, -- मथुरायाः समासन्नो देशः परिभोग्यो मधुराहारो मोढेरकाहारः खेडाहार इत्यादि, सूकृशी, पृ. ३४३; खेत्ताहारो जो जहस नगरस्स आहारो, आहार्यत इत्याहारः, विसभो आहारोत्ति वुच्चति, जहा मधुराहारो खेडाहारो, सुकृचू, पृ. ३७६. सुकृचूमां ' आहार' अने 'विषय' ने पर्याय गण्या छे ए सूचक छे. गज सुकुमाल कृष्ण वासुदेवना नाना भाई. तेमनां लग्न द्वारकाना सोमिल नामे एक ब्राह्मणनी पुत्री साथे नक्की थयां हतां, पण गजसुकुमाले तीर्थंकर नेमिनाथनो उपदेश सांभळीने दीक्षा लीधी, अने रात्रे स्मशानमां जई कायोत्सर्ग ध्यानमा रह्या. आ वातनी सोमिल ब्राह्मणने खबर पडतां तेने गजसुकुमाल उपर घणो क्रोध चढ्यो अने रात्रे स्मशानमां जई गजसुकुमालना माथा उपर बळतां लाकडां मूकीने तेणे तेमनो वध कर्यो. ए समये शुक्ल ध्यानमा रहेला गजसुकुमालने केवल ज्ञान थयुं. श्रीकृष्णने आ वातनी खबर पडतां तेमणे सोमिल ब्राह्मणने देहान्त दंड कयों. ' १ अंद पृ. ५- १४; आचू, पूर्व भाग, पृ. ३५५-५६; आम, पृ. ३५६-५९. गजसुकुमाल विशेना प्रासंगिक उल्लेखो माटे जुओ बृकभा, गा. ६१९६ तथा बृकक्षे, भाग ६, पृ. १६३७; व्यम, विभाग ४, पेटा विभाग १, प्र. २८, इत्यादि. गजानपद दशार्णपुर पासेना दशार्णकूट पर्वतनुं आ श्रीजुं नाम छे. एक चार व्यां महावीर स्वामी समोसर्या त्यारे इन्द्रे औरावत उपर बेसीने, Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ गजाय पद भारे समृद्धिपूर्वक त्यां आवीने तेमने वंदन कर्या हता. ए समये दशार्णकूट उपर औरावतनां पगलां पडवाथी ते पर्वत गजाप्रपद नामथी ओळखायो.' आर्य महागिरि विदिशामां जिनप्रतिमाने वंदन करीने गजाग्रपद तीर्थनी यात्रा माटे एलकच्छ ( दशार्णपुर) गया हता.' जुओ एलकच्छ, दशाणपुर १ आम, पृ. ४६८. २ आचू , उत्तर भाग, पृ. १५६-५७. गन्धहस्ती एक प्राचीन आचार्य. 'आचारांग सूत्र' ना 'शस्त्रपरिज्ञा' अध्ययन उपरना तेमना विवरणनो उल्लेख ए सूत्र उपरनी शीलाचार्यनी टीकामां छे.' ' तत्त्वार्थसूत्र 'ना टीकाकार तरीके पण अन्यत्र तेमनो उल्लेख छे.* 'जीतकल्पभाष्य' मां गंधहस्तीनो श्रुतधर तरीके निर्देश छे. 'उत्तराध्ययन सूत्र' उपरनी शान्तिसूरिनी वृत्तिमां तथा ' आवश्यक' उपरना मलधारी हेमचन्द्रना टिप्पणमां पण गंधहस्तीनो मत टांकेलो छे. ___गंधहस्ती कोण ए विशे केटलोक मतभेद छे. प्रसिद्ध स्तुतिकार स्वामी समंतभद्र ए गंधहस्ती अने तेमणे ' तत्त्वार्थसूत्र' उपर रचेल भाष्य ए ज गंधहरितमहाभाष्य एबी मान्यता दिगंबर संप्रदायमां सामान्य रीते छे, ज्यारे वृद्धवादिशिष्य सिद्धसेन दिवाकर ए गंधहस्ती अने ' तत्त्वार्थसूत्र ' उपर तेमणे व्याख्या लखी हती एवो मान्यता सामान्य रीते श्वेतांबर संप्रदायमा छे." पण पं. सुखलालजी अने पं. बेचरदासे ' सन्मतितर्क 'नी तेमनी प्रस्तावनामां सप्रमाण बताव्युं छे के गंधहस्तो ए सिंहसूरिना प्रशिष्य अने भास्वामीना शिष्य, 'तत्त्वार्थभाष्य 'नी वृत्तिना कर्ता सिद्धसेन छे. आ वृत्तिमां सिद्धसेने अकलंकना 'सिद्धिविनिश्चय 'मांथी अवतरणो आप्यां छे, एटले तेओ ईसवी सनना सातमा सैकाथी तो अर्वाचीन छे. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गर्दभिल्ल ] [६५ १ शस्त्रपरिज्ञाविवरणमतिगहनमितीव किल वृतं पूज्यैः । श्रीगन्धहस्तिमित्रैर्विवृणोमि ततोऽहमवशिष्टम् ॥ आशी, पृ ७४. २ यदाह तत्त्वार्थमूलटीकाकृद् गन्धहस्ती, जंप्रशा, पृ. ३०६. ३ जीकमा, पृ. ११ ४ उशा, पृ. ५१९; आहे, पृ. १११ ५ ‘सन्मतितर्क,' प्रस्तावना, पृ. ५९ ६ ए ज, पृ. ५९-६०. गम्भूता उत्तर गुजरातमां पाटण पासेनुं गांभू गाम. त्यां रहीने शीलाचार्ये * आचारांगसूत्र' नी वृत्ति रची हती.' जुओ शीलाचार्य १ आशी, पृ. २८८ गर्दभ ___ उज्जयिनीना यव राजानो युवराज. एणे पोतानी बहेन अडोलिकाने विषयसेवन माटे भोयरामां पूरी हती.' ___ कालकाचार्यनी बहेन सरस्वती- अपहरण करनार उज्जयिनीना राजा गर्दभिल्लनुं आ स्मरण करावे छे. गर्दभ अने गर्दभिल्ल एक ज जणाय छे. जुओ कालकाचार्य अने गर्दभिल्ल १ बृकक्षे, भाग २, पृ. ३५९ गर्दभिल्ल उज्जयिनीनो राजा. एणे कालकाचार्यनी बहेन सरस्वतीनुं अपहरण कयु हतुं, तेथी कालकाचार्ये शकोने बोलावी गर्दभिल्लनो उच्छेद कर्यो हतो. ___ जुओ कालकाचार्य अने गर्दभ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] गिरिनगर जूनागढ़, गिरिनी तळेटीमां आवेलं होवाथी ते 'गिरिनगर' कहे वाय छे. गिरिनगरमा एक अग्निपूजक वणिक दरवर्षे एक घरमा रत्नो भरीने पछी ए घर सळगावी अग्निनुं संतर्पण करतो हतो. एक वार तेणे घर सळगाव्युं, ए समये खूब पवन वायो, तेथी आखुं नगर बळी गयुं. बीजा एक नगरमा एक वणिक आ प्रमाणे अग्निनुं संतर्पण करवानी तैयारी करे छे एम त्यांना राजाए सांभळ्युं, एटले गिरिनगरनी आगनो प्रसंग याद करीने तेणे एनुं सर्वस्व हरी लीधुं.' गिरिनगरनी त्रण नवप्रसूता स्त्रीओ उज्जयंत उपर गई हती प्यारे चोरो तेमनुं हरण करी गया हता अने पारसकूल - ईरानी अखातना किनारा उपर तेमने वेची दीघी हती एवं पण एक कथानक छे. [ गिरिनगर ' सूत्रकृतांग 'नी शीलाचार्यनी वृत्तिमां उद्भुत थयेला एक हालरडामा रडता बाळकने गिरिनगर आदि नगरोनो राजा कहीने छानुं राखवानो प्रयास छे. विशिष्ट पर्वतवाची 'गिरनार' शब्द गिरिनगर 7 गिरिनअर 7 गिरनार एकमे व्युत्पन्न थयेलो छे, गुजरातमां 'नार' पदान्तवाळां बीजां पण स्थळनामो छे, जे आ साधे सरखावी शकाय दा. त. नगर-नअरनार ( पेटलाद पासेनुं ), कोटिनगर- कोडिनअर-कोडिनार, इत्यादि. " गिरनार 'नी बाबतमां, 'नगर' पदान्तवाळु नाम पर्वत माटे रूढ थयुं एटलं ज नहि पण 'उज्जयंत', 'रैवतक' आदि पर्यायाने तेणे स्थानभ्रष्ट करी दीघा ए वस्तु शब्दोनी अर्थसंक्रान्तिनी दृष्टिए नोधपात्र छे. जुओ उज्जयन्त अने रैवतक १ आचू, पूर्व भाग, पृ. ७१; आम, पृ. ८८; विको, पृ. २७८; अनुहा, पृ. १८, अनुहे, पृ. २७, Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुर्जर ] २ आचू, उत्तर भाग, पृ. २८९ ३ जुओ कान्यकुब्ज. बीजा केटलाक उल्लेखो माटे जुओ अनु, पृ. १५९; आसूचू, पृ. ३३९; जीम, पृ. ५६; इत्यादि. ४ जुओ इतिहासनी केडी'मां ग्रन्थस्थ थयेलो 'गुजरातनों स्थळनामो' ए मारो लेख. गिरिनार ___ सौराष्ट्रमा आवेलो पर्वत, जेने प्राचीनतर साधनग्रन्थोमा ‘उज्जयंत' कह्यो छे. ए माटे 'गिरिनार' एवं तुलनाए अर्वाचीन नाम 'कल्पसूत्र' नी · कौमुदी' टीकामां मळे छे.' जुओ उज्जयन्त अने गिरिनगर. १ ततः प्रभुरन्यत्र विहत्य पुनरपि गिरिनारे समवसृतः, तदा रथनेमिदीक्षां जमाह । ककौ, पृ. १६९. गुडशस्त्र नगर आ नगर लाटदेशमां भरुकच्छथी बहु दूर नहि एवे स्थळे आव्यु हरी, केमके खपुटाचार्य पोताना शिष्यने भरुकच्छमां राखीने वृद्धकर व्यतरनो उपद्रव शमाववा माटे गुडशस्त्रमा गया हता, अने पोतानो शिष्य शिथिलाचारी थईने बौद्धोमां भळी गयो होवाना समाचार मळतां पाछा भरुकच्छ आव्या हता.' वधु माटे जुओ खपुटाचार्य १ आचू , पूर्व भाग, पृ. ५४२, आम, पृ. ५१४ गुर्जर गुजरातनो वासी. जुदा जुदा प्रकारनां वैपरीत्यनां उदाहरण आपतां गुर्जरो मध्य देशनी भाषा बोले एने भाषावैपरीत्य कयुं छे. आवां वैपरीत्यथी हास्यरस निष्पन्न थाय छे.' 'कल्पसूत्र 'नी टीकाओमां 'राज्यदेश Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८] [ गुर्जर नाम ' आप्यां छे तेमां अंग, वंग, कलिंग, गौड, चौड, कर्णाट, लाट, सौराष्ट, काश्मीर, सौवीर, आभीर, चीन, महाचीन, बंगाल, श्रीमाल, नेपाल, जहाल (कको नो पाठ सूचवे छे के 'डाहल' जोईए), कौशल, मालव, सिंहल अने मरुस्थलनी साथे गुर्जर पण आप्युं छे. १ रूपवयोवेशभाषाणां हास्योत्पादनाथै वैपरीत्येन या विडम्बनानिवर्तना तत्समुत्पन्नो होस्यो रसो भवतीति संयोगः, तत्र पुरुषादेर्योषिदादिरूपकरणं रूपवैपरीत्यं, तरुणादेव॒द्धादिभावापादनं वयोवैपरीत्य, राजपुत्रादेर्वणि गादिवेशधारणं वेशवैपरीत्यं, गुर्जरादेस्तु मध्यदेशादिभाषाभिधानं भाषावैपरीत्य, अनुहे, पृ. १३९. अर्थात् अहीं 'वैपरीत्य ' ने हास्योत्पादन- एक निमित्त का छे. एने माटेनो समुचित अंग्रेजी शब्द Incongruency छे, जे वर्तमान साहित्यविवेचनमां पण हास्य- एक निमित्त गणाय छे. __ २ कसु, पृ. ४५७; ककि, पृ. १५२. ककौ (पृ. १८१-८२) मां 'भोट' नाम वधारानुं छे. गोपालगिरि __ वसतिवाळा पर्वतोमा गोपालगिरि, चित्रकूट आदिनो उल्लेख छे.' 'प्रबन्धकोश ' अनुसार गोपालगिरि कान्यकुब्ज देशमां आवेलो छे.. पण विशेष पुरावाने अभावे एनो चोक्कस स्थाननिर्णय थई शके एम नथी. १ गृणन्ति शब्दायन्ते जननिवासभूतत्वेनेति गिरयः गोपालगिरिचित्रकूटप्रभृतयः । भसूअ, शतक ७, उद्दे. ६ उपरनी वृत्ति. २ कन्यकुब्जदेशे गोपालगिरिदुर्गनगरे यशोवर्मनृपतेः सुयशादेवीकुक्षिजन्मा नन्दनोऽहम् । 'प्रबन्धकोश,' पृ. २७. गोविन्दाचार्य गोविन्द नामे एक बौद्ध भिक्षु हतो तेने एक जैन आचार्य वादमां अराढ वार पराजित कर्यो हतो. आथी तेणे विचार कयों के 'ज्यांसुधी हुँ जैन सिद्धान्तनुं स्वरूप नहि समजुं त्यांसुधी जैन आचार्यने पराजित करी शकीश नहि.' आम विचारी तेणे ए ज Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोष्ठामाहिल ] आचार्य पासे दीक्षा लीधी. त्यां अभ्यास करतां एने सम्यक्त्व प्राप्त थयु. गुरु पासेथी व्रतो लीयां अने बधी वात निखालसपणे करी, पछी तेणे एकेन्द्रिय जीवनी सिद्धि करतो 'गोविन्दनियुक्ति' नामे ग्रन्थ रच्यो,' गोविन्दनियुक्ति ' उपलब्ध नथी. 'बृहत्कल्पसूत्र' ना वृत्तिकार आचार्य क्षेमकात्तिए शास्त्र तरीके 'सन्मतितर्क' अने 'तत्त्वार्थ 'नी साथे 'गोविन्दनियुक्ति 'नो सबहुमान उल्लेख कयों छे. 'आवश्यकचूणि 'मां पण 'गोविन्दनियुक्ति 'ने दर्शनप्रभावक शास्त्र कहुं छे. 'गोविन्दनियुक्ति 'नी रचना 'आचारांगसूत्र'ना ' शस्त्रपरिज्ञा' अध्ययनना विवरणरूपे थई होवी जोईए तथा गोविन्दाचार्य विक्रमना पांचमा सैकामां विद्यमान हता एम पू. मुनि श्री पुण्यविजयजीए साधार रीते प्रतिपादन कयु छे. १ निचू, उद्दे० ११; श्रापर, पृ. २७. श्रापर मां गोविन्दने 'वाचक' कह्या छे. २ बृकक्षे, भाग ३, पृ. ८१६; भाग ५, पृ. १४५२. ३ आचू, पूर्व भाग, पृ. ३५३ ‘गोविन्दनियुक्ति ' मांनी केटलीक दार्शनिक चर्वाना संक्षिप्त निर्देश माटे जुओ ए ज, पृ. ३१. ४ 'महावीर जन विद्यालय रजत महोत्सव ग्रन्थ,' पृ. १९९-२०१. गोष्ठामाहिल __आर्य रक्षितसूरिना मामा तेम ज तेमना परिवारना एक साधु. एमणे. मथुरामां एक अक्रियावादीने वादमा पराजित कर्यो हतो. आचार्ये गच्छाधिपति तरीके तेमने बदले दुर्बल पुष्पमित्रनो अभिषेक कों तेथी विरुद्ध पडी ते सातमा निह्नव-साचा धर्मना संघमां तड पडावनार मिथ्यावादी बन्या.' वीर निर्वाण सं. ५८४ ई. सं. ५८मां दशपुरमा आ निह्नव उत्पन्न थयो. एमनो मत ‘अबद्विक' तरीके जाणीतो छे. 'कर्मोनो आत्मा साथे स्पर्श ज थाय छे, अने एथी आत्मा कर्मथी बंधातो नथीं' एम माननारो ए मत छे. ४ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७] [ गोष्ठामाहिल जुओ रक्षित आर्य १ आचू, पूर्व भाग, पृ. ४११; आम, पृ. ३९६-४०१; उशा, पृ. १७२-८८. २ विभा, गा. ३००९ . ३ एज, गा. ३००९-५० तथा विको, पृ. ७२-२९४; आचू, पूर्व भाग, पृ. ४१३-१५; आम, पृ. ४१५-१८. ४ ए ज. वळी अवद्धिक मतना सरळ गुजराती निरूपण माटे जुओ मुनि धुरंधरविजयजीकृत 'निहूनववाद', पृ. १६५-८२. गौरीपुत्र 'गौरीपुत्रो' तरीके 'भिक्षाको' प्रसिद्ध छे' एवो उल्लेख 'कल्पसूत्र 'ना टीकाकारो करे छे; एटले 'गौरीपुत्र' तरीके तेओने समाजनो कोई चोक्कस वर्ग उद्दिष्ट छे. 'कल्पसूत्र 'नी टीकाओना रचयिताओ चौदमा सैकाथी मांडी गुजरातमां थया छे. गुजरातमां मध्यकाळथी भाटचारणो देवीपुत्र' तरीके प्रसिद्ध छे, तो टिकाकारोए नोंधेल ‘गौरीपुत्रो' भाट-चारणो केम न होय ? १ भिक्षाका गौरीपुत्रका इति प्रसिद्धाः, कसं, पृ. ८५; कदी, पृ. ७३. चण्डप्रद्योत जुओ प्रद्योत चण्डरुद्राचार्य . एमने विशेर्नु कथानक नीचे प्रमाणे छे : उज्जयिनीमा स्नपन उद्यानमा एक वार साधुओ समोसर्या हता. एक उदात्तवेशी युवाने मित्रो सहित या आवीने पोताने दीक्षा आपवा मागणी करी. 'आ अमारो परिहास करे छे' एम मानीने साधुओए तेने चंडदाचार्य नोपना कोपशील आचार्य पासे मोकल्यो. चंडरुद्राचार्ये भस्म मंगावी, लोच करी तेने दीक्षा आपी. मित्रो पाछा गया. पछी परोढमां विहार कस्तां आचार्य शिष्यने आगळ चालवा कपु. मार्गमा Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौलुक्य ] [७१ एक ढूंठा उपर आचार्य पडी गया; आथी क्रोध करीने तेमणे शिष्यना माथा उपर दंडनो प्रहार कर्यो पोतार्नु माथु फूटी जवा छतां शिष्ये सम्यक्पणे ते सहन कर्यु. प्रभातमां शिष्यनुं लोहोथो खरडायेलं माथु जो इने आचार्यने पोताना दुर्वर्तन- भान थयुं, अने क्षपकश्रेणि उपर आरूढ थतां तेमने केवल ज्ञान थयु' कोपशील गुरुने पण विनयशील शिष्य प्रसन्न करी शके ए विषयमां चंडमद्राचार्य, दृष्टान्त आपवामां आवे छे. आ आचार्यखरं नाम रुद्र हशे, पण चंड प्रकृतिना होवाथी तेओ चंडरुद्र तरीके ओळखाया हशे-जेम अवंतिनो राजा प्रद्योत चंडप्रयोत कहेवायो हतो तेम, १ आचू, उत्तर भाग, पृ. ७७-७८; उचू, पृ. ३१; उशा, पृ. ४९-५०; उने, पृ. ४-५; बृकभा, गा, ६१०३-४; बृकक्षे, पृ.. १६१२-१३; पाय, पृ. ५६-५७. चित्रकूट आ मेवाडनो चितोडगढ होवा संभव छे. चित्रकूटमा तपश्चर्या करता सुकोशल मुनिने एक वाघणे फाडी खाधा हता,' वसतिवाळा पर्वतोमा गोपालगिरि, चित्रकूट आदिनो उल्लेख करेलो छे. आगमोना पहेला संस्कृत टोकाकार याकिनी महत्तरासू नु हरिभद्रसूरि चित्रकूटना विद्वान ब्राह्मण हता. १ मस, गा. ४६६ २ गृणन्ति शब्दायन्ते जननिवासभूतत्वेनेति गिरयः गोपालगिरिचित्रकूटप्रभृतयः । भसूअ, शतक ७, उद्दे० ६ उपरनी वृत्ति. ३ जुओ हरिभद्रसूरि. चौलुक्य एक क्षत्रिय जाति. कुलकथाना उदाहरण तरीके ए विशे नीचेना Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२] [ चौलुक्य आशयनो एक श्लोक उद्धृत करवामां आवे छे–' अहो ! चौलुक्यपुत्रीओनुं साहस जगतमा सौथी विशेष छे, केम के प्रेमरहित होय तोपण तेओ पतिर्नु मृत्यु थतां अग्निमां प्रवेशे छे." १ एवं उपादिकुलोत्पन्नानामन्यतमाया यत् प्रशंसादि सा कुलकथा, यथा-"अहो चौलुक्यपुत्रीणां साहसं जगतोऽधिकम् । पत्युमत्यो विशन्त्यग्नौ याः प्रेमरहिता अपि ॥" स्थासूअ, पृ. २१०; वळी जुओ प्रव्याअ, पृ. १३९ तथा पाय, पृ. ४८. जउण जुओ यवन जयविजय तपागच्छना विजयानंदसूरिना शिष्य वाचक विमलहर्षना शिष्य. तेमणे सं. १६७७ ई. स. १६२१ मां — कल्पसूत्र' उपर 'दीपिका' नामे टीका रची हती. आ टोकानुं संशोधन भावविजयगणिए कयु हतुं, अने तेनो प्रथमादर्श कर्ताए पोते पोताना शिष्य वृद्धिविजयनी प्रार्थनाथी तैयार कर्यो हतो.' कदी, प्रशस्ति. जिनदत्त सोपारकवासी श्रावक. तेनी पत्नीनुं नाम ईश्वरी हतुं. वज्रस्वामीना शिष्य वज्रसेन सोपारकमां आव्या त्यारे जिनदत्त अने ईश्वरी बन्नेए पोताना चार पुत्रो नागेन्द्र, चन्द्र, निर्वृति अने विद्याधरनी साथे दीक्षा लीधी हती. नागेन्द्र, चन्द्र, निर्वृति अने विद्याधर ए प्रमाणे साधुओनी चार शाखाओ आ चारथी प्रवर्ती.' जुओ वज्रसेन १ कसु, पृ. ५१३; ककि, पृ. १७१; कदी, पृ. १५१. Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिनदासगणि महत्तर ] [ ३ जिनदास ___ मथुरानो श्रावक. एनी पत्नीनू नाम साधुदासी हतुं. तेमनी पासे कंबल-संबल नामे वे उत्तम बळदो हता. एक वार मथुरामां भंडीर यक्षनी यात्रा हती त्यारे जिनदासनो एक मित्र ए वळदोने गाडे जोडी लई गयो, अने तेणे वळी. बीजाने आप्या. ज्यारे पाछा. लाववामां आव्या त्यारे कंबल-संबल खूब थाकी गया हता, अने थोडा समय पछी तेओ अनशन करोने मरण पाम्या,' एवी कथा अनेक टोकाग्रन्थोमां छे. जुओ कम्बल-सम्बल १ आचू, पूर्व भाग, पृ. २८१; आनि, गा. ४६९-७१; बृकक्षे, भाग ५, पृ. १४८९; कसु, पृ. ३०६-७; ककि, पृ. १०५; कदी, पृ. ९०. जिनदासगणि महत्तर ___ परंपरा प्रमाणे, आगमो उपरनी चूर्णि नामथी प्रसिद्ध संख्यावंध प्राकृत टीकाओना कर्ता. ' नंदिसूत्र' उपरनी तेमनी चूर्णि शक सं. ५९८ ई. स. ६७६ मां रचायेली छे,' एटले तेमनो समय ईसवी सनना सातमा सैकामां निश्चित छे. 'निशीथसूत्र' उपरनी विशेष नामे चूर्णि पण तेमनी कृति छे. 'अनुयोगद्वारसूत्र । चूर्णिनी प्रतोने अंते जिनदासगणिनो कर्त्ता तरीके नामोल्लेख छे. आ उपरांत 'आवश्यक' अने ‘उत्तराध्ययन 'नी चूर्णिओ पण तेमनी कृतिओ गणाय छे. 'उत्तराध्ययन ' चूर्णिने अंते कर्ताए पोतानुं नाम आप्यु नथी, पण पोताना गुरु तरीके गोवालिय महत्तरनो नामोल्लेख कर्यो छे. · उत्तराध्ययन ' चूर्णिना कर्ता गोवालिय महत्तरना शिष्य जिनदासगणि महत्तर छे एम स्वीकारीए तो, चूर्णिमांना उल्लेख अनुसार तेओ वाणिज्य कुल, कोटिक गण अने वज्रशाखाना साधु हता एम मानवु प्राप्त थाय छे. Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४] [ जिनदासगणि महत्तर ___ उपर्युक्त चूर्णिोनुं कर्तृत्व जिनदासगणि उपर आरोपित करवा माटेनां प्रमाण अहो जणाव्यां छे, पण ए सिवायनो चूर्णिओ जेमां कर्तानां नाम नथी, ते पैकी केटलीना तेओ खरेखर कर्ता छे एना पुरावा तपासवानी जरूर छे. अहीं ए पण याद राखq जोईए के केटलीक चूर्णि ओमां कर्ता तरीके अन्य प्रसिद्ध ग्रन्थकारोनो उल्लेख छे. दा. त. सिद्धसेनगणिए ‘जीतकल्पसूत्र' उपर चूर्णि रची छे (जुओ सिद्धसेनगणि), अने । श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र' उपरनी विजयसिंहसूरिनी चूर्णिनो उल्लेख रत्नशेखरसूरिए कयों छे (जुओ विजयसिंहमूरि ). ___ पछीना समयमां थयेला संस्कृत टीकाकारोए चूर्णिओनो उपयोग व्यापक प्रमाणमां को छे अने प्राकृत कथानको तो घणी वार चूर्णिमांथी ज शब्दशः उद्धृत कर्या छे. १ शकराज्ञः पंचसु वर्षशतेषु व्यतिक्रान्तेषु अष्टनवतिषु नन्यध्ययनचूर्णिः समाप्ता । नंचू , अंतभाग, २ ‘सन्मतितर्क,' प्रस्तावना, पृ. ३५-३६. ३ इति श्रीश्वेताम्बराचार्यजिनदासगणिमहत्तरपूज्यपादानामनुयोगद्वाराणां चूर्णिः ।। अनुच, पृ. ९१. ४ वाणिजकुलसंभूओ कोडियगणिओ उ वयरसाहीतो । गोवालियमहत्तरओ विक्खाओ आसि लोगमि ॥ ससमयपरसमयविऊ ओयस्वी दित्तिमं सुगंभीरो । सीसगणसंपरिवुडो वक्खाणरतिप्पिओ आसी ॥ तेसिं सीसेण इमं उत्तरज्झयणाण चुण्णिखंड तु । रइयं अणुग्गहस्थं सीसाणं मंदबुद्धीर्ण ॥ उचू, पृ. २८३. जिनभटाचार्य 'विशेषावश्यक भाष्य' उपरनी कोट्याचार्यनी वृत्तिमां जिनभटाचार्यनो मत बहुमानपूर्वक टांकेलो छे.' याकिनी महत्तरासूनु हरिभद्रसूरिए जे गच्छमां जैन दीक्षा लीधी हती तेना अधिपति आचार्य- नाम जिनभद हतुं, एटलं ज नहि, हरिभद्रसूरिए 'आवश्यक सूत्र 'नो Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ] टीकाने अंते स्पष्ट का छे के पोते एनी रचनामां जिनभटना अभिप्रायने अनुसर्या छे. आनो अर्थ ए थयो के जिनभटाचार्ये 'आवश्यक सूत्र' उपर एक टीका रची हती, जे अत्यारे उपलब्ध नथी. 'विशेषावश्यक भाष्य ' उपरनी कोट्याचार्यनो वृत्तिमा स्थळे स्थळे 'मूलटीका' अने आवश्यक मूलटीका 'माथी उद्धरणो आप्यां छे ते जिनभटाचार्यनी टीकामांथी होवां जोईए. १ विको ( भा. गा. ४९८ उपरनी वृत्ति), पृ. १८६ २ प्रच, ९-श्लो. ३, ३०, १८१ ३ समाप्ता चेय शिष्यहिता नाम आवश्यकवृत्तिटीका । वृत्तिः सिताम्बराचार्यजिनभटनिगदानुसारिणो विद्याधरकुलतिलकाचार्यजिनदत्त-: शिष्यधर्मतोयाकिनीमहत्तरासूनोररुपमातुराचार्यहरिभद्रस्य । आह, अंतभाग. - ४ आको, पृ. ६०९, ६७४, ६७५, ७९३, ८४६, ८५५ इत्यादि. जुओ पं. भगवानदासनी प्रस्तावना, पृ. १-४. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण 'आवश्यक सूत्र 'ना सामायिक अध्ययननी भद्रबाहुनी नियुक्ति उपर गाथाबद्ध ' विशेषावश्यक भाष्य' तथा बोजा अनेक प्रौढ ग्रन्थो रचनार आचार्य, ए महान भाष्यग्रन्थने अनुलक्षीने आचार्य मलयगिरिए जिनभद्रगणिने 'दुष्षमान्धकारनिमग्नजिनवचनप्रदीप' कह्या छे.' जेसलमेर भंडारनी एक प्राचीन ताडपत्रीय प्रतने आधारे आचार्य जिनविजयजीए 'विशेषावश्यक भाष्य 'नो रचनाकाळ शकाब्द ५३१ ई. स. ६०९ होवानुं निश्चितपणे पुरवार कयु छे.' जिनभद्रगणिए पोते 'विशेषावश्यक भाष्य' उपर एक टीका रची हती. ए अत्यारे उपलब्ध नथी, पण कोट्याचार्य तथा मलधारी हेमचन्द्रे पोतानां विवरणोमा एनो निर्देश कयों छे. पछीना समयमा थयेला आगमसाहित्यना अनेक टीकाकारोए जिनभद्रगणिना अभिप्रायो' Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ निनभद्रगणि क्षमाश्रमण टांक्या छे अथवा तेमनी रचनाओमांथी मानपूर्वक अवतरणो आप्यां छे. ___ हरिभद्र, हेमचन्द्र अने अभयदेवनी जेम जिनभद्र नाम पण जैन साधुओमा व्यापक प्रचार पाम्यु हतुं, अने जिनभद्र-नामधारी अनेक ग्रन्थकारो आपणे जोईए छीए. १ आह च दुष्षमान्धकारनिमग्नजिनवचनप्रदीपो जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण : x x x नंम, पृ. ८७. २ 'भारतीय विद्या', भाग ३, सिंघी स्मृति अंकमा 'श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमणनो सुनिश्चित समय ' ए लेख. ३ क्षमाश्रमणटीकायां त्वियम्...विको, पृ. २६५; क्षमाश्रमण टीकाऽपीयं, ए ज, पृ ३७३ वळी पूज्यास्तु व्याचक्षते (पृ. ८५९) ए प्रमाणे जिनभद्रनो मोघम उल्लेख पण छे. ४ जुओ विको भी पं. भगवानदासनी प्रस्तावना. ५ उदाहरण तरीके-भसूअ, भाग १, पृ. १२९; नहा, पृ. ५२; बृकक्षे, भाग १, पृ. २५६; भाग २, पृ. ४००; जीकचू, पृ. १, ३०; कसं, पृ. ११५; श्रार, पृ. १, २८, इत्यादि. ६ जैसाइ, पृ. ८४६ डिम्भरेलक महिरावणमां पूर आवे त्यारे डिभरेलक प्रदेशमां धान्य ववाय छे, एवो उल्लेख छे.' . डिंभरेलक कोंकणमां अथवा आसपासना प्रदेशमां आव्युं हशे, केम के 'पुरातन प्रबन्ध संग्रह 'मां कोंकणना राजा मल्लिकार्जुनने 'महिरावणाधिपति' कह्यो छे. १ क्वचिदतिपूरकेण, यथा बन्नासायां पूरादवरिच्यमानायां तत्पूरपानीयभावितायां क्षेत्रभूमौ धान्यानि प्रकीर्यन्ते; यथा डिम्भरेलके महिरावणपूरेण धान्यानि पन्ति । बृकमा, मा. १२३९ ना विवरणरूपे बृकक्षे, भाग Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तगरा [७१ २ अन्यदा कुङ्कणे जालपतनं श्रुत्वा महिरावणाधिपति मल्लिकार्जुनं प्रति दूतं प्राहिणोत् । पुरातनप्रबन्धसंग्रह,' पृ. ३९ ढण्ढणकुमार ___ कृष्ण वासुदेवनो ढंढणा नामे राणीथी थयेलो पुत्र. एने विशे आ प्रमाणे कथानक मळे छेः तेणे तीर्थंकर नेमिनाथनो उपदेश सांभळीने दीक्षा लीधी हती, पण पूर्वकर्मना उदयने कारणे एमने आहार प्राप्त थतो नहोतो. आथी पोतानी लब्धिथी आहार मळे तो ज स्वीकारवो एवो अभिग्रह तेमणे लीधो हतो. हवे, एक वार ढंढण मुनि द्वारकामां गोचरी माटे नोकळ्या त्यारे मार्गमां कृष्णे तेमने वंदन कयु, आथी 'आ कोई प्रभावशाळी मुनि छे' एम धारीने एक गृहस्थे तेमने लाडु वहोराव्या. पछी ढंढण मुनिए नेमिनाथ पासे जईने पोतानी लब्धिथी लाडु मळ्यानी वात करी, त्यारे नेमिनाथे कह्यु के 'ए आहार तो वासुदेवनी लब्धिनो छे.' आथी कया पूर्वकर्मने कारणे पोताने आहारप्राप्ति थती नथी ए विशे ढंढण मुनिए नेमिनाथने प्रश्न करतां तीर्थकरे तेमनो पूर्वभव कह्यो अने अनेक खेडूतो अने बळदोने तेमणे आहारनो अंतराय पाड्यो हतो ए वात करी. आ सांभळी ढंढणमुनिए लाडने परठवी दीधा अने पश्चात्तापनी भावना भावतां तेमने केवलज्ञान थयु.' १ उशा, पृ. ११८-१९, तगरा 'अनुयोगद्वार सूत्र 'मां 'समीप नाम 'नां उदाहरण आपतां का छे के गिरि पासेनुं नगर ते गिरिनगर, विदिशानी पासेनुं नगर ते वैदिशनगर (विदिशा), वेणा पासेर्नु नगर ते वेणातट अने तगरा पासेनुं नगर ते तगरातट.' आम तगरातट नगर तगरा नदीने किनारे आवेलं हतुं. टीकाओमां एनो संक्षेप करीने मात्र 'तगरी तरीके उल्लेख करवामां आव्यो छे. राध आचार्य विहार . करता तगरामां Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८] [ तगरा आव्या हता अने तेमना शिष्यो उज्जयिनीथी तगरामा तेमनी पासे आवी पहोंच्या हता. अरहमित्र नामे बीजा एक आचार्य पण तगरामा रहेता हता. एक तगरावासी आचार्य पासे सोळ शिष्यो हता, जेमांना आठ व्यवहारी (व्यवहारक्रिया-प्रवर्तक ) अने आठ अव्यवहारी हता. ए आठ व्यवहारी शिष्योनां नाम पुष्यमित्र, वीर, शिवकोष्ठक, आर्यास, अहेतक, धर्मान्वग, स्कन्दिल अने गोपेन्द्रदत्त ए प्रमाणे हता. तगरा नगर आमीर देशमां आवेळु हतुं. वि. सं. ९८९ ई. स. ९३३ मां वढवाणमां रचायेला, दिगंबर आचार्य हरिषेण कृत 'बृहत् कथाकोश'मां 'तेरा' (तगरा7 तयरातिइरा7 तेरा ) नगरने 'आभीराख्य महादेश'मां बतावेलुं छे. दिगंबर कवि कनकामरे अगियारमा शतकमां रचेला अपभ्रंश काव्य 'करकंडचरिउ' (४--५)मां तेरापुरनुं तथा त्यांना गुफामन्दिरनु वर्णन छे, तथा ए ज काव्य जैन धार्मिक दृटिए तेरापुरनो केटलोक इतिहास पण आपे छे. हैदराबाद राज्यना उस्मानाबाद जिल्लामा तीर्णा नदीना किनारे आवेलं तेरा नाम गामडुं आ अतिहासिक तगरा नगरीनो अवशेष छे एम मानवामां आवे छे. अत्यारे पण त्यां प्राचीन जैन गुफाओना अवशेष विद्यमान छे.' जुओ आभीर १ से किं तं समीवनामे ! २ गिरिसमीवे णयरं गिरिणयरं विदिसासमीवे णयरं वेदिसं णयरं बेन्नाए समीवे णयरं बेन्नायडं तगराए समीवे णयरं तगरायडं, से तं समीवनामे । अनु, पृ. १४९ २ उशा, पृ. २०० ३ उनि, गा. ९२; उशा, पृ. ९० ४ व्यम, विभाग ४, पेटा विभाग २, पृ. ६८-७. . Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ताम्रलिप्ति ] ५ आमीराख्यमहादेशे तेराख्यनगरं परम् । तदा नीलमहानीलौ प्रयातौ विजिगीषया ॥ 'करवंडचरिउ,' प्रस्तावना, पृ. ४१-४८. तरङ्गवती कथा पादलिताचार्यकृत एक धर्मकथा. जुओ पादलिप्ताचार्य ताम्रलिप्ति 'बृहत् कथाकाश, ५६. ५२ [ ७९ ताम्रलिप्तिने ' द्रोणमुख' कहेवामां आव्युं छे. जल अने स्थल एम बन्ने मार्गोए ज्यां जई शकाय ते द्रोणमुख. एना उदाहरण तरीके भरुकच्छ भने ताम्रलिप्तिनां नाम आपवामां आवे छे.' सिन्धु, ताम्रलिप्ति आदि प्रदेशोमां मच्छर पुष्कळ होय छे एवो उल्लेख ' सूत्रकृतांग सूत्र 'नी चूर्णिमां छे. 2 ताम्रलिप्तिने साधारण रीते बंगाळनुं तामलुक गणवानो मत पुराविदोमां छे, पण गुजरातना स्तंभतीर्थ - खंभातने पण प्राचीन काळथी ताम्रलिप्ति तरीके ओळखवामां आवे छे एना मजबूत पुरावा छे, अने जैन आगमग्रन्थो उपरनी टीकाचूर्णिओ गुर्जर देशमां रचायेली होई एम बंगालना ताम्रलिप्ति करतां गुजरातना ज मोटा वेपारी मथक ताम्रलिप्ति ( खंभात )नो द्रोणमुख तरीके निर्देश होय एम मानवु वधारे सयुक्तिक छे. प्रभाचन्द्रसूरिना' प्रभावक चरित ' ( ई. स. १२७८ ) ना 'हेमाचार्यचरित' (श्लो. ३२-४१) मां ' स्तंभतीर्थ' अने 'ताम्रलिप्ति' ए बन्ने नामो पर्यायो तरीके वापरेला छे ए वस्तु पण अह नाँधवी जोईए. जुओ सिन्धु १ दोहिं गम्मति जलेण वि थलेण वि दोणमुहं जहा भरुयच्छ तामलित्ती एवमादि, आसूचू, पृ. २८२. Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ताम्रलिप्ति द्रोण्यो - नावो मुखमस्येति द्रोणमुखं-जलस्थलनिर्गम-प्रवेश यथा भृगुकच्छ ताम्रलिप्तिर्वा, उशा, पृ. ६.५. द्रोणमुखं जलस्थलनिर्गमप्रवेश, यथा भरुकच्छं तामलिप्तिा , आशी, पू. २५८. वळी जुओ प्रम, पृ. ४८, जुओ भरुकच्छ. २ सूकृचू , पृ. १०१ ३ ज्योडि, पृ. २०३. ४ 'खभातनो इतिहास,' पृ. १८-१९; तथा पुगु मां स्तम्भतीर्थ. तुम्बवनग्राम अवन्ति जनपदमां तुम्बवनग्राममा धनगिरि अने सुनंदा ए दंपतीना पुत्र तरीके वजस्वामी जन्म्या हता.' जुओ व आर्य १ पाचू, पूर्व भाग, पृ. ३९. ; आम, पृ. ३८७. तोसलिपुत्राचार्य .. तोसलिपुत्राचार्य दशपुरमां आव्या त्यारे तेमनी पासे आर्य रक्षिते दीक्षा लीधी हती. रक्षित विद्वान होई राजाना प्रीतिपात्र हता; तेथी राजा कदाच दीक्षा नहि लेवा दे एम धारोने आचार्य तेमने लईने अन्यत्र चाल्या गया हता. जैन अनुश्रुति प्रमाणे आ पहेली शिष्यचोरी ('पढमा सेहनिप्फेडिआ') हती.' १ आम, पृ. ३९४-९५; उने, पृ. २४; ककि पृ १७२-७३; इत्यादि. थावच्चापुत्र ___एने विशेनी कथा आ प्रमाणे छः द्वारका नगरनी समृद्ध सार्थवाही थावच्चानो ए पुत्र हतो युवावस्थामां आवतां इभ्यकुळनी बत्रीस कन्याओ साथे तेनुं लग्न थयु हतुं. एक वार अरिष्टनेमि तीर्थंकर द्वारकामा सुरप्रिय उद्यानमां समोसर्या हता. कृष्ण वासुदेव प्रजाजनो साथे तेमने वंदन करवा माटे आव्या. तेमनो उपदेश सांभळीने Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशपुर ] [८३ थावच्चापुत्रने प्रव्रज्या लेवानी इच्छा थई. माताए तथा वासुदेवे अणु समजाव्या छतां व्यारे एनो निश्चय चलायमान थयो नहि त्यारे वासुदेवे घोषणा करावी के 'जेओ मृत्युभयनो नाश करवा इच्छता होय छता संबंधीओना योगक्षेमनी चिन्ताथी तेम करी शकता न होय तेओ थावच्चापुत्रनी साथे दीक्षा ले; एमना संबंधीओनो निर्वाह हुँ करीश.' आथी केटलाक विचारक युवानोए थावच्चापुत्रनी साथे दीक्षा लीधी. पछी थावच्चापुत्रे तीर्थकरना स्थविरो पासे चौद पूर्वोनुं अध्ययन कयु. पोताना अंतेवासी बधा युवानोने तीर्थकरे थावच्चापुत्रने एमना शिष्य तरीके सौंपी दीधा. पछी विहार करता थावच्चापुत्रे शैलकपुरना शैलक राजाने उपदेश आप्यो अने ५०० मंत्रीओ सहित तेने श्रमणो पासक बनाव्यो. सौगंधिका नगरीनो नगरशेठ सुदर्शन शुक नामे परिव्राजकना उपदेशथी तेना शौचमूलक प्रवचनमां मानतो हतो तेने पण थावच्चापुत्रे श्रमणोपासक बनाव्यो, एटलं ज नहि, सुदर्शननो गुरु शुक पण थावाचापुत्रनी वाणी सांभळी पोताना हजार तापसो सहित तेमनो शिष्य थयो. छेवटे थावच्चापुत्र पोताना परिवार सहित पुंडरीक ( शत्रुजय ) पर्वत उपर गया अने अनशन करीने सिद्ध, बुद्ध अने मुक्त थया.' १ ज्ञाध, श्रु. १, अध्य. ५ (शैलकज्ञात ) दण्डकारण्य जुओ कुम्भकारकट दशपुर माळवामां आवेलं मंदसोर.' दशपुरनी स्थापना केवी रीते थई एनो परंपरागत इतिहास आम आपवामां आवे छेः वीतभय नगरना राजा उदायन पासे जीवंतस्वामी महावीरनी गोशीषचंदननी सुन्दर काष्ठप्रतिमा हती ते उज्जयिनीनो ११ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ ] [ दशपुर राजा प्रद्योत उठावी गयो हतो. ते पाछी मेळवावा माटे उदायने दश राजाओने साथै लई प्रयोत उपर आक्रमण कर्यु. प्रतिमा तो एने स्थाने थी ऊखडी नहि, पण प्रद्योतने केद पकडीने उदायन पाछो वळ्यो. वर्षाऋतुने कारणे मार्गमां तेओ पडाव नाखीने रह्या. कोई शक्य आक्रमणनो प्रतिकार थई शके ए माटे दश राजाओए छावणीनी आसपास धूळनो प्राकार बांध्यो. वर्षाकाळ पूरो थया पछी उदायन त्यांथी गयो, पण एना सैन्य साथे जे वणिकवर्ग आव्यो हतो ते त्यां ज वस्यो. दश राजाओए प्राकार बांध्यो होवाने कारणे नगरनुं नाम दशपुर पड़चं. ' २ आर्य रक्षितसूरि दशपुरना पुरोहित सोमदेवना पुत्र हना. दीक्षा पहेलां ब्राह्मण शास्त्रोनो विशेष अभ्यास करवा माटे तेओ दशपुरथी पाटलिपुत्र गया हता अने दीक्षा लीधा पछी पूर्वोनो अभ्यास करवा माटे आर्य वज्र पासे उज्जयिनी गया हता. सातमो निहून गोष्ठामाहिल दशपुरमा धयो हतो. ४ १ ज्यॉडि, पृ. ५४. २ आचू, पूर्व भाग, पृ. ३९७ - ४०१; आम, पृ. ३९२-९४; निभा, गा. ३१७३; निचू, भाग ३, पृ. ६४६; उने, पृ. २३, इत्यादि. ३ जुओ उपर्युक्त आचू, आम ४ स्थासू, पृ. ४१०. जुओ गोष्ठामाहिल. वळी दशपुर विशेना प्रकीर्ण उल्लेख माटे जुओ ककौ, पृ. २३४ ककि पृ. १७२-७३, १९९, कदी, पृ. २३: कसू, पृ. ५८७-८८. दशार्णपुर दशार्णपुर एकच्छपुर तरीके पण ओळखातुं हतुं, तथा गजानपद तीर्थ एनी पासेना दशार्णकूट पर्वत उपर हतुं दशार्णपुरमा दशाभद्र राजा राज्य करतो हतो. ' जुओ एलकच्छपुर, गजाग्रपद Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ] १ आच, पूर्व भाग, पृ. ४७९; भाम, पृ. ४६८. दशाह अंधकवृष्णिना दश पुत्रो, जेमां नेमिनाथना पिता समुद्रविजय सौथी मोटा हता तेओ दशाह अथवा दसार राजाओ तरीके जाणोता छे.' ए दशा) पैकी सौथी नाना वसुदेवना पुत्र कृष्ण वासुदेव हता. एमनां नाम-समुद्रविजय, अक्षोभ, स्तिमित, सागर, हिमवान, अचल, धरण, पूरण, अभिचंद, वसुदेव.' कुन्ती अने माद्री ए दशा)नी बहेनो हती. १ दवैचू , पृ. ४१. २ अंद, वर्ग १-२. देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ___ दूष्यगणिना शिष्य.' परंपरानुसार तेओ 'नंदिसूत्र 'ना कर्ता छे. वीरनिर्वाण सं. ९८०=ई. स. ४५४ (वि सं. ५१० ) अथवा ९९३ ई. स. ४६७ (वि. सं. ५२३ )मां तेमनी अध्यक्षता नीचे वलभीमां एक परिषद मळी हती अने तेमां जैन श्रुतनी छेवटनी संकलना करवामां आयो हती. एमां आर्य स्कन्दिले तैयार करेली जैन श्रुतनी माथुरो वाचना देवर्षिगणिए मुख्य वाचना तरीके सर्वसंमतिथी चालु राखी हती, अने आर्य नागार्जुननी वलभी वाचनाना मुख्य पाठभेदो ‘वायणंतरे' अथवा एवा अर्थनी नोंध साथे स्वीकार्या हता. वलभी वाचनाना विशेष भेदो टीकाकारोए 'नागार्जुनीयास्तु पटन्ति' एवा टिप्पण साथे टांक्या छे, एटले अध्ययन-अध्यापनमा वलभी वाचनानुं महत्त्व स्वीकारवामां आवतुं हतुं ए निश्चित छे.. देवर्धिगणिए जैन श्रुतनी एक नवी वाचना तैयार करी एम न कहेवाय, पण तेमणे एक पूर्वकालीन वाचनाने सर्वमान्य बनाववानुं तेम ज बोजी वाचनाना मुख्य पाठभेदो साचवी राखवानुं महत्त्वचें कार्य कर्यु. वळी Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ देवद्धिगणि समाश्रमण तमाम उपलब्ब आगमग्रन्थोने तेमना नेतृत्व नीचे एक चोकस पद्धति अनुसार एक साथे लिपिबद्ध करवामां आव्या ए पण जैन इतिहासमा एक घणा महत्त्वनो बनाव गणाय, । 'नंदिसूत्र 'ना प्रारंभमां देवर्धिगणिनी गुरुपरंपरा आपवामां आत्री छे. ए प्रमाणे तेओ महावीरथी बत्रीसमा युगप्रधान आचार्य छे. ए पट्टावलि नीचे प्रमाणे छे : महावीर पछी आर्य सुधर्मा, जंबुस्वामी, प्रभवस्वामी, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूतिविजय, भद्रबाहु, स्थूलभद्र, महागिरि, सुहस्ती, बलिस्सह, स्वाति, श्यामार्य, शांडिल्य, समुद्र, मंगू, आर्य धर्म, भद्रगुप्त, वज्र, रक्षित, नंदिल, नागहस्ती, रेवतिनक्षत्र, ब्रह्मद्वीपक सिंह, स्कन्दिलाचार्य, हिमवंत, नागार्जुन, गोविन्द, भूतदिन्न, लौहित्य, दूष्यगणि, देवर्धिगणि.' 'कल्पसूत्र' अंतर्गत स्थविरावली अनुसार देवर्किगणि महावीरथी ३२मा नहि, पण ३४मा पुरुष हता.' त्यां देवर्षिगणिनी गुरुपरंपरा नीचे मुजब आपेली छे-महावीर पछी सुधर्मा, जंबु, प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूतविजय-भद्रबाहु, स्थूलभद्र, सुहस्ती, सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध, इन्द्रदिन्न, दिन्न, सिंहगिरि, वज्र, रथ, पुष्यगिरि, फल्गुमित्र, धनगिरि, शिवभूति, भद्र, नक्षत्र, रक्ष, नाग, जेहिल, विष्णु, कालक, संपलित-भद्र, वृद्ध, संघपालित, हस्ती, धर्म, सिंह, धर्म, शांडिल्य, देवर्धि. . जुओ नागार्जुन, भट्टि आचार्य, मथुरा, वलभी १ नंम, पृ, ६५. २ कसं, पृ. ११८-१९; ककि, पृ. १२९--३२; कसू, ३७५-७८% कको, पृ. १५६; की, ११३-१५; इत्यादि. ३ नसू, स्थविरावली, गा. १-४१. ४ विविध पट्टावलीओमा प्राप्त देवधिगणिनी गुरुपरंपरानी तुलनात्मक चर्चा माटे जुओ मुनि कल्याणविजयजीकृत : वीरनिर्वाण संवत् ओर Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवेन्द्रसरि ] जैन कालगणना, पृ. ११९ थी आगळ. देविलामुत ___ उज्जयिनीनो राजा. एनी कथा आ प्रमाणे छ : पोताना केशमां पळियां जोईने तेणे राणीनी साथे तापस तरीके दीक्षा लीधी हती. राणी ए समये सगर्मा हती, यथासमये तेणे पुत्रीने जन्म आप्यो, पण प्रसूतिकाळे ते मरण पामी. पुत्रीने बोजी तापसीओए उछेरी. पछी समय जतां युवावस्थामां आवेली पुत्रीने जोईने देविलासुत मोहित थयो अने तेने आश्लेष करवा जतां भोंय उपर पडी गयो. पोताना दुर्वर्तननु फळ अहीं ज प्राप्त थयुं छे, एम समजीने तेणे पुत्री साध्वीओने आपी अने पोते विरक्त थईने सिद्धिमां गयो.' १ आचू , उत्तर भाग, पृ. २०२-३. देवेन्द्रमूरि तपागच्छना स्थापक जगच्चंद्रसूरिना शिष्य अने पट्टधर. तेमणे ' श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र । उपर वृत्ति लखो छे, जे 'वंदारुवृत्ति' नामे प्रसिद्ध छे.' ___ देवेन्द्रसूरि मंत्री वस्तुपालना समकालीन होई ई. स. ना तेरमा शतकमां विद्यमान हता. खंभातमां तेमनुं व्याख्यान सांभळनार श्रोताओमां वस्तुपाल पण एक हतो. देवेन्द्रसुरिए प्राचीन कर्मग्रन्थोनो उद्धार करीने 'कर्मविपाक,' 'कर्मस्तव,' 'बंधस्वामित्व,' 'घडशीति' अने 'शतक' नामे नव्य कर्मग्रन्थो तथा ते उपरनी स्वोपज्ञ टीकाओ रची. आ सिवाय पण बोजा केटलाक ग्रन्थो तेमणे रचेला छे, जे पैको प्राकृत 'सुदर्शनाचरित्र'ना सहकर्ता तेमना गुरुभाई विजयचंद्रमूरि हता.. देवेन्द्रसुरिनुं अवसान सं. १३२७ ई. स. १२७१मां थयु हतु.. १ य, पृ. ९६. २ जैसाइ, पृ. ४०७-८. Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ द्रोणाचार्य द्रोणाचार्य _ 'ओघनियुक्ति' ना टीकाकार. नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरिकृत वृत्तिओनुं संशोधन द्रोणाचार्य जेमा मुख्य हता एवी एक पंडितपरिषदे कयुं हतुं.' द्रोणाचार्य पूर्वाश्रममा क्षत्रिय हता तथा अणहिलवाडना चौलुक्य राजा भीमदेव पहेलाना मामा हता.' तेमनो समय विक्रमना १२मा शतकना पूर्वार्धमा अर्थात् ई. स. ना ११मा शतकना उत्तरार्धमां निश्चित छे. एमनुं मुख्य प्रवृत्तिक्षेत्र अणहिलवाड हतुं. १ जुओ अभयदेवसरि. २ प्रतापाकान्तराजन्यचक्रश्चकेश्वरोपमः ।। श्रीभीमभूपतिस्तत्राभवद् दुःशासनार्दनः ॥ शास्त्रशिक्षागुरुर्दोणाचार्यः सत्याक्षतव्रतः । अस्ति क्षात्र कुलोत्पन्नो नरेन्द्रस्यास्य मातुलः ॥ प्रच, १८-श्लो. ५-६. ३ जुओ अणहिलपाटक. द्वारका-द्वारवती द्वारकाना स्थान विशे साधार चर्चा माटे जुओ पुगु मां द्वारका. साडीपचीस आर्य देशो पैकी सुराष्टनी राजधानी तरीके द्वारवतीनो उल्लेख छे.' आ नगरने नव योजन पहोछं अने बार योजन लांबु वर्णववामां आवेलुं छे.' एनी आसपास पथ्थरनो प्राकार हतो ए दर्शावतो उल्लेख वस्तुस्थितिनो सूचक छे, जो के अन्यत्र एने सुवर्णना प्राकारवाळी वर्णवी छे.' एनाथी ईशानमां रैवतक नामे पर्वत हतो. एमां नंदनवन नामे उद्यान हतुं अने त्यां सुरप्रिय यक्षनुं आयतन हतुं. जुदे जुदे प्रसंगे अंधकवृष्णि, कृष्ण वासुदेव तथा बलदेवने द्वारकाना राजा तरीके वर्णवेला छे. वळी द्वारकाना विख्यात Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वारका द्वारवती ] [ ८७ निवासी ओमां समुद्रविजय प्रमुख दश दशारो, बलदेव प्रमुख पांच महावीरो, उग्रसेन प्रमुख सोळ हजार राजाओ, प्रद्युम्न प्रमुख साडात्रण करोड कुमारो, सांब प्रमुख साठ हजार दुर्दांत पुरुषो, वीरसेन प्रमुख एकवीस हजार वीर पुरुषो, रुक्मिणी प्रमुख सोळ हजार देवोओ, अनंग सेना प्रमुख अनेक गणिकाओं तथा बीजा अनेक सार्थवाहो आदि हता. आ उपरथी यादवोनी राजपद्धति वज्जी, लिच्छवी आदनी जेम गणसत्ताक हती अने तेमां अनेक यादवविशेषो राजा नाम धारण करी शकता हता एम अनुमान थाय छे. ८ प्रतिवासुदेव जरासंघना भयथी यादवोनो समूह मथुराथी द्वारका आग्यो हतो. " द्वारकाना नाश माटे आगमसाहित्यभां नीचे प्रमाणे कथा आपवामां आवे छे : यादवकुमारोए दारू पीने द्वैपायन ऋषिने मार्या हता. आधी बालतप करीने, द्वारवतीविनाशनुं निदान करीने मरण पामी द्वैपायन अग्निकुमार देव तरीके उत्पन्न थया हता. अग्निकुमारे द्वारवती बाळीने भस्म करी दीघी हती. मात्र बलराम अने कृष्ण बे ज जण बचीने नीकळ्या हता. ' ११ १ प्र, पृ. ५५ सुकुशी, पृ. १२३; बृकक्षे, भाग ३, पृ. ९१२ - १४. २ ज्ञाध, पृ. ९९ तथा १०१ वृद, पृ. ३८- ४१; इत्यादि. पाषाणमयः प्राकारो यथा द्वारिकायाम्, बृकक्षे, भाग २, पृ. २५१. ४ दा. त. बारवई नाम नगरी होत्या... .. चामीयरपवरपागारणाणामणिपंचवन्नकविसीस कसोहिया, ज्ञाघ, पृ. ९९. ५ अंद, पृ. १; वृद, पृ. ३८-४१; ज्ञाध, पृ. ९९; आम, पृ. ३५६; इत्यादि. ६ दा. त. तत्थ णं बारवतीनयरीए कण्हे णामं वासुदेवे राया परिवसति, अंद, पृ. २. तत्थ णं वारवतीए नयरीए अंधगवण्ही णामं राया परिवसति, एज, पृ. २. Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८] [ द्वारका-द्वारवती ... तत्थ णं पारवतीए बलदेवे नाम राया होत्था, ए ज, पृ. १४. ७ आ यादीमां 'महसेन प्रमुख छप्पन हमार बळवान पुरुषो' एटलं ज्ञाध (पृ. २०७) उमेरे छे. ८ वृद, पृ. ३८-४१; ज्ञाध, पृ. २०७; इत्यादि. ९ संभवतः एज कारणे ' अंतकृत् दशा' नुं विवरण करतां अभयदेवसूरने लखवू पडयुं छे के -तस्यां च द्वारिकावत्यां नगर्यामन्धकवृष्णिदिवविशेष एव, अंदवृ, पृ. २. १. कंसमि विणिवाइए सावायं खेत्तमेयंति काऊण जरासंधभएण दसारवग्गो महुराओ अवक मिऊण बारवइं गओ त्ति। दवैहा पृ. ३६-३७. - ११ जुओ कोसुम्बारण्य. द्वारकाना अन्य प्रासंगिक उल्लेखो तथा वर्णनो माटे जुओ नंम, पृ. ६०, ६१, ६२, १६१; बृकम, भाग १, पृ. ५६, ५७, वय, पृ. ३४-३५ तथा ६७-६९; पाय, पृ. ६५; कमु, पृ. ३९९-४२४, ककि. पृ. ३४-३५; ककौ, पृ. १६२-१६८, इत्यादि. द्वीप सौराष्ट्रनी दक्षिणे आवेलो दीवनो बेट. जलपत्तन अर्थात् ज्यां जळमार्गे माल आवे छे एवा वेपारना मथक तरीके द्वीपनो निर्देश मळे छे.' सातमा-आठमा सैका सुधी दीव सौराष्ट्रनी मुख्य भूमि साथे जोडायेलो हतो अने त्यार पछी कोई भूस्तरीय परिवर्तनोने कारणे ए टापु बनी गयो हतो एम सूचवती एक अनुश्रुति डॉ. अळतेकर नोधे छे. पण ते उपर आधार राखी शकाय एम नथी, केमके सातमा सैकाना अरसामा रचायेली ' निशीथ सूत्र' उपरनी चूर्णिमां स्पष्ट का छे के दीव सुराष्ट्रनी दक्षिणे एक योजन दूर समुद्रमा आवेलो छे. 'निशीथ सूत्र' उपरना चूर्णि करतां प्राचीनतर भाष्यमां आ वस्तुनो सुचन रूपे उल्लेख छे तथा तेमांना 'दीवना सिक्का' माटे 'दीविच्चगाउ' शब्द ए स्थळर्नु द्वोपत्व सिद्ध करे छे. जैन टीकाचूर्णिओमां मोटे भागे वृद्धपरंपरानुं संकलन करेलं होय छे, एटले आ उल्लेखोने तात्त्विक रीते सातमा सैका करतां केटलाक सैका जेटला प्राचीनतर गणवा जोईए. Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धनपाल पण्डित ] [८९ - दीवमा चालतो मुख्य सिक्को 'साभरक' कहेवातो. एने 'रूपक' कह्यो छे, एटले ते चांदीनो होवो जोईए. बे साभरक बराबर उत्तराः पथनो एक रूपक अने उत्तरापथना बे रूपक बराबर पाटलिपुत्रनो एक रूपक थतो. वळी आ ज कोष्ठक बीजी रोते आपेलं छे के दक्षिणापथना बे रूपक बराबर द्राविड प्रदेशमा आवेल कांचीपुरनो 'नेलक' नामनो एक रूपक अने बे नेलक बराबर पाटलिपुत्रनो एक रूपक थाय छे. पत्तनं द्विधा-जलपत्तनं च स्थलपतनं च। यत्र जलपथेन नावादिवाहनारूढं भाण्डमुपैति तद् जलपत्तनं, यथा द्वीपम् । बृकशे, भाग २, पृ ३४२. २ 'एन्श्यन्ट टाउन्स अॅन्ड सिटीझ इन गुजरात अॅन्ड काठियावाड,' पृ. २६. ३ दो साभरगा दीविच्चगाउ सो उत्तरापधे एक्को । ___ दो उत्तरापधा पुण पाडलिपुत्ते हवति एको ॥ (भा. गा. ९५२) " साहरको" णाम रूपकः, सो य दीविच्चिको । तं दीवं सुरहाए दक्खिणेण जोयणमेत्तं समुद्दमवगाहित्ता भवति, निचू , भाग २, पृ, १२५. ४ निभा, गा. ९५२-५३; निचू, भाग २, पृ. २२५; बृकमा, गा. ३८९१-९२; बृकशे, भाग ४, पृ. १०६९. धनपाल पण्डित ई. स. ना १७ मा शतकमां थयेला माळवाना राजाओ मुंज अने भोज बन्नेनो मान्य कवि. भोजना विनोद माटे धनपाले 'तिलकमंजरी' नामे कथाग्रन्थ रच्यो हतो. ___श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र' उपरनी रत्नशेखर सूरिनी वृत्तिमां धनपाल विशेना बे उल्लेखो छे. एक उल्लेख प्रमाणे, धनपाल वैदिक धर्मावलंबी हतो, पण पोताना बंधु शोभनना संसर्गथी तेणे जैन धर्मनो स्वीकार को हतो.' वीजा उल्लेख प्रमाणे, प्रतिबोध पामेला धनपाले काव्य Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ धनपाल पण्डित गोष्ठिमां भोजने विनोद करायवापूर्वक उपदेश आपोने तेनी पासे मृगया तथा यज्ञमां पशुवधनो त्याग करा यो हतो.' १ श्रापर, पृ ११८..। २ ए ज, पृ. ४१. धनपाल तथा तेनी कृतिओ माटे जुओ जैन साहित्य संशोधक,' खंड ३, अंक ३ तथा जैसाइ, पृ. २००-२०६ धनमित्र __आ विशेनी कथा नीचे प्रमाणे छे : उज्जयिनीना धनमित्र नामे वणिके पुत्र धनशर्मा साथे दीक्षा लोधी हतो. तेओए एक वार मध्या ह्नकाळे विहार को हतो. क्षुल्लक ( बाळसाधु ) धनशर्मा तृषातुर थतां पिताए मार्गमा आवती एक नदीमांथी पाणी पीवा कह्यु. धनशर्माए पाणीनी अंजलि ऊंची करी, पण विचार करीने पाणीने सवित्त जाणीने न पीधुं अने पिपासा परीषह सहन करीने मरण पाम्यो.' १ उशा, पृ ८७; उने, पृ १९. आ बीजी कृतिमा कथानो केटलोक चमत्कारपूर्ण विस्तार आपवामां आव्यो छे. धन्वन्तरि द्वारकामां कृष्ण वासुदेवना बे वैद्यो हता-धन्वन्तरि अने वैतरणि. एमांनो धन्वन्तरि अभव्य-मुक्तिने अयोग्य हतो, ज्यारे वैतरणि भव्यमुक्तियोग्य हतो. धन्वन्तरि साधुओने सावध औषध बतावतो, ज्यारे वैतरणि प्रासुक-निर्दोष औषध सूचवतो. धन्वन्तरिने आनुं कारण छवामां आवे त्यारे ते कहेतो के-' में कई श्रमणोने माटे वैद्यकशास्त्रनुं अध्ययन कयु नथी" १ आचू , पूर्व भाग, पृ. ४६४-६१; आम, पृ. ४६१ धर्मसागर उपाध्याय तपागच्छाचार्य हीरविजयसूरिना शिष्य. एमणे सं. १६२८ ई. स. १५७२ मां राजधन्यपुर-राधनपुरमां ' कल्पसूत्र ' उपर ' किरणावली' नामे प्रमाणभूत टीका रची हती. अमदावादनिवासी संघवी Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नभोवाहन कुंअरजीए ए टीकानी सेंकडो प्रतो लखावी हती.' १ ककि, प्रशस्ति, पृ. २०३-४. धर्मसागरे बीजा पण अनेक प्रन्यो रचेला छे. एमनी खंडनप्रधान शैलीए तत्कालीन जैन समाजमा मोटो खळभळाट मचाव्यो हतो. एमनी रचनाओ माटे जुओ जैसाई, पृ. ५८२-८३. ध्रुवसेन ध्रुवसेन राजाने पुत्रमरणथी थयेलो शोक शमाववा माटे आनंदपुरमा सभा समक्ष ' कल्पसूत्र' वांचवामां आव्युं हतुं.' जुओ आनन्दपुर १ कसं, पृ. ११८-१९; कसु, पृ. १५-१६, ३७५-७८; ककि, पृ. ९, १६, ११०; कदी, पृ. ११३-१५; कको, पृ. ९. नटपिटक भरुकच्छथी उज्जयिनी जवाना मार्गमां आवेलं एक गाम. भरुकच्छथी एक आचार्ये पोताना विजय नामे शिष्यने उज्जयिनी मोकल्यो हतो, पण मार्गमां कोई मांदा साधुनी सारवार माटे एने रोकावू पड्यं हतुं, अने एम समय बीती जतां तेणे नटपिटक (प्रा. नडपिडअ ) गाममा नागगृहमा चातुर्मास को हतो.' १ आचू , उत्तर भाग, पृ. २०९. नन्दन उद्यान द्वारकाना ईशान खूणे रैवतकनी पासे आवेलु उद्यान. जुओ द्वारका, द्वारवती अने रैवतक नभोवाहन भरुकन्छनो नभोवाहन राजा कोशसमृद्ध हतो. प्रतिष्ठाननो सालवाहन बलसमृद्र हतो. दर वर्षे सालवाहन राजा भरुक छने घेरो घालतो अने वर्षाऋतु वेसे एटले पोताना नगरमां पाछो जतो. नभोवाहन कोशसमृद्ध हतो, एटले घेरा Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ ] [ नभोवाहन ► वखते जे कोई सालवाहनना सैनिकोना हाथ अथवा माथां कापी लावे तेने हजारोनां इनाम आपतो हतो. सालवाहन पोताना मायसोने पराक्रमना बदलामां कशुं आपतो नहोतो: आधी तेनुं सैन्य क्षीण श्र अने तेने प्रतिष्ठान पाछा फरवुं पडतं. बीजे वर्षे फरी पाछो ते सैन्य साथै आवीने घेरो घालतो. आ प्रमाणे समय बीततो हतो. एम करतां युक्तिथी विजय मेळवावा माटे एकवार सालवाहनने तेना अमात्ये कर्तुं के ' मारो अपराध थयो छे एम जाहेर करीने मने देशवटो आपो ' सालवाहने एम कर्यु, एटले मंत्री भरकच्छ गयो अने एक देवकुलमां रह्यो सालवाहननो ए निर्वासित मंत्री छे ए बात समय जतां जाहेर थई. नमोवाहने माणसे मोकलीने एने बोलाग्यो, पण ज्यारे ए आव्यो नहि त्यारे राजा पोते त्यां आव्यो अने पोताना मंत्री तरीके एनी नमणूक करी. पछी मंत्रीए नभोवाहनने सलाह आपी के 'पुण्यथी राज्य मळे छे, माटे बोजा भव माटे पुण्य संचित करो. ' पछी नभोवाहने एना कहेवा प्रमाणे देवकुलो अने स्तूपो, तळावो अने वावो बंधायां तथा 'नभोवाहन खाई' नामनी खाई खोदावी. एम द्रव्य चपराई गयुं, एटले मंत्रीए पोताना राजा सालवाहनने बोलाव्यो. एक वारना कोशसमृद्ध नभोवाहन पासे हवे पोताना माणसाने प्रीतिदानरूपे आपवा जेवुं कंई नहोतुं, आथी तेने नासी जवुं पड्युं अने भरुकच्छनो कबजो सालवाहने लीधो. ' नभोवाहननी राणीनुं नाम पद्मावती हतुं वज्रभूति आचार्यनी कवि तरीकेनी ख्यातिथी आकर्षाईने ए आचार्यने मळवा गई हती. पश्चिम भारतनो क्षहरातवंशीय शक क्षत्रप नहपान तेज आ नभोवाहन (प्रा. णहवाहण, णधवाहण ) होई शके. एनो समय ईसवी सन्ना बीजा शतकना पूर्वार्धमा होय ए सौथी वधु संभवित छे. ए. समये महाराष्ट्रमां सालवाहन वंशनो गौतमीपुत्र शातकर्णि Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नर्मदा ] राज्य करतो हतो," ए ज आगमसाहित्यमा जेनो 'सालवाहन-सातवाहन ' एवो नामनिर्देश कर्यो छे ए संभवे. सातवाहनो अने पश्चिम भारतना शक-क्षत्रपो बच्चे शत्रुक्ट चाली आवती हती ए इतिहाससिद्ध छे. शातकर्णिना उत्तराधिकारी वासिष्ठीपुत्र पुळुमायीना एक लेखमां शातकर्णिने माटे 'खखरात-उस-निरवसेस-करस सातवाहनकुल-यस-पतिथापन-करस' (=सं. क्षहरातवंश-निरवशेषकरस्य शातवाहनकुलयशःप्रतिष्ठापनकरस्य ) एवा शब्दो वापरीने एने क्षहरातवंशनो उच्छेद करनार तरीके वर्णव्यो छे ए घणुं सूचक छे. जुओ सातवाहन, सालवाहन १ आचू , उत्तर भाग, पृ. २००-२०१. २ जुओ वज्रभूति आचार्य, ३ रायचौधरी, 'पोलिटिकल हिस्टरी आफ अॅन्श्यन्ट इन्डिया,' पृ. २२१ थी आगळ. ४ ‘सिलेक्ट इन्सक्रिप्शन्स,' नं. ५८, टिप्पण १.. ५ ए ज, नं. ८३-८४. ६ ए ज, नं. ८६. नर्मदा नर्मदा नदी. ' आवश्यक सूत्र 'नो चूर्णिनी एक कथामां स्त्रीचरित्रविषयक एक प्राकृत श्लोकनो पूर्वार्ध नीचे प्रमाणे छे : दिया कागाण बोभेसि रत्तिं तरसि नंमदं ।' 'विशेषावश्यक भाष्य ' उपरनो कोट्याचार्यनी वृत्तिमां नर्मदाना पूरनो उल्लेख छे. १ आचू , उत्तर भाग, पृ. ६१. एक सुप्रसिद्ध संस्कृत श्लोकार्थ" दिवा काकरवाद् भीता रात्रौ तरति नर्मदाम् "-नु आ प्राकृत छे. अथवा जनसमाजमां वहेती प्राकृत कहेवत उपरथी ज आ श्लोक बनाववामां आव्यो होय. २ विको, पृ. १७० Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ ] [ नागवलिका नागवलिका आ कोई नगरनुं नाम छे अने तेनो आनंदपुरनी साथे उल्लेख छे. आनंदपुरमा जेम यक्षपूजा थती तेम नागवलिकामा नागपूजा थती.' नागबलिकानुं स्थान निश्चित थई शक्यु नथी. १ इंदमहे इंदो, खंदो महासेणो, सद्दो रुइमहे, मुगुंदो बलदेवो, णागा णागवलियाए, जक्खा आणंदपुरे सिद्धा चेव, आसूचू , पृ ३३१. नागार्जुन आर्य वीरनिर्वाण पछी नवमी शताब्दीमां (आशरे ईसुनी चोथी शताब्दीमां)' मथुरा अने वलभी एम बे स्थळे अनुक्रमे स्कन्दिलाचार्य अने नागार्जुन एम बे आचार्योए आगमवाचनानुं कार्य कयु. दुर्भाग्ये आ बे आचार्यो परस्परने मळी शक्या नहि, तेथी तेमनी वाचनाओमां केटलाक भेद रही गया. देवर्द्धिगणिए ईसवी पांचमी शताब्दीमां व्यारे आगमो लिपिबद्ध कराव्यां त्यारे स्कन्दिलाचार्यनी माथुरी वाचनाने मुख्य वाचना तरीके स्वीकारी अने नागार्जुननी वालमी वाचनाना पाठोनो निर्देश 'वायणंतरे पुण' एवी नोंध साथे कयों.' पछीना समयनी टीकाचूर्णिओमां पण नागार्जुनीय वाचनानी स्कन्दिलाचार्यनी वाचनाथी भिन्नता 'नागार्जुनीयास्तु पठन्ति' ( नागार्जुनना अनुयायीओने अनुमत पाठ आवो छे ) एवा उल्लेख साथे नोंधवामां आवी छे. १ ‘वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना,' पृ १०४. २ जुओ कसू ने अंते. ३ उदाहरण तरीके उचू, पृ. ९९; उशा, पृ. १८६, २६३, २९.; आशी, पृ. १५०, १६६, १८०, २१६, २२२, २२८, २३२, २७४, इत्यादि.. नारद शौरिपुर नगरना यज्ञयश तापसना पुत्र यज्ञदत्त अने पुत्रवध Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिचन्द्रसरि [ ९५ सोमयशानो पुत्र. तेओ बाळकने अशोकवृक्ष नीचे मूकीने उंछवृत्ति करतां हतां त्यारे जंभक देवताओए तेने लईने उछेयर्यो हतो तथा प्रज्ञप्ति, आकाशगामिनी आदि विद्याओ आपी हती.' नारद महासमर्थ परिव्राजक हता. तेमनो स्वभाव झगडो करावधानो हतो. कृष्ण अने तेमनी पत्नीओ रुक्मिणी आदि वच्चे तेओ कलह उत्पन्न करावता अने वळी शमावी देता. बाह्मण परंपराना नारद मुनिने आम जैन परंपरामां एक परित्राजक तरीके वर्णवेला छे. १ आचू, उत्तर भाग, पृ. १९४. नासिक्य हाल- नासिक. 'नासिक्यपुर" अने · नासिक्यनगर* तरीके पण एनो प्रयोग थयो छे. नासीकनो नंद नामे वणिक पोतानी पत्नो सुन्दरीमां अत्यंत आसक्त होवाने कारणे ‘सुन्दरीनंद' तरीके ओळखातो हतो. बुद्धनो ओरमान भाई नंद पोतानी पत्नी सुन्दरीमा अत्यासक्त हतो, एने पराणे दीक्षा आपवामां आवी हती अने अनेक दृष्टान्तोथी वैराग्यमां स्थिर करवामां आव्यो हतो-एनी वार्ता वर्णवता अश्वघोषना — सौन्दरानन्द' काव्यना वस्तुनु कोई स्वरूपान्तर उपयुक्त उल्लेखमां रजू थयु लागे छे. जुओ सुन्दरीनन्द १ नम, पृ. १६७. २ वव, पृ. ५२. ३ आचू, पूर्व भाग, पृ. ५६६; आम, पृ. ५३३. नेमिचन्द्रमूरि बृहद्गच्छना आम्रदेश उपाध्यागना शिष्य. तेमणे पोताना गुरुभाई Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ ] [ नेमिचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रना वचनथी सं. ११२९--ई. स. १०७३ मां अणहिलपाटकमा दोहडि श्रेष्ठोनी वसतिमा रहीने 'उत्तराध्ययन सूत्र' उपर वृत्ति रची.' ए ज नगरमां अने ए ज वसतिनां रहीने तेमणे सं. ११४१-ई. स. १०८५ मां प्राकृत ' महावीरचरित ' रच्यु हतुं.' नेमिचन्द्रनुं सूरिपदनी प्राप्ति पहेलानु नाम देवेन्द्रगणि हतुं.' १ उने, प्रशस्ति. २ उने, प्रस्तावना, पृ. २ ३ जिस्को, पृ. ४३; उने, प्रस्तावना, पृ. १. नेमिनाथ ___ बावीसमा तीर्थकर. दश दशारो पैकी सौथी मोटा समुद्रविजय अने तेमनी राणी शिवादेवीना पुत्र. तेमना जन्म पूर्वे माताए चक्रनी रिष्ट-रत्नमय नेमि आकाशमां जोई हती, तेथी तेओ · अरिष्टनेमि' कहेवाया.' कृष्णे तेमनो विवाह उग्रसेन राजानी पुत्री राजिमती साथे नक्की को हतो, पण लग्नमंडपमां नोतरेला माणसोने मांसनो खोराक आपवा माटे बांधेलां पशुओनो आर्तनाद सांभळीने नेमिनाथे वैराग्य पामीने रैवतक उद्यानमां दीक्षा लोधी हती. यादवकुळना अनेक युवानोए नेमिनाथ पासे दीक्षा लीधी हती. नेमिनाथ गिरनार उपर निर्वाण पाम्या हता. चोवीस तीर्थकरो पैकी ऋषभदेव, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ अने महावीरनां चरित्रो साहित्यिक दृष्टिए सौथी वधारे लोक प्रिय बन्यां छे. आगमेतर साहित्यमां नेमिनाथनां संस्कृत-प्राकृत चरित्रो, स्तोत्रो, एमना जीवन विशेनां काव्यो वगैरे मळीने कुडीबंध कृतिओ जाणवामां आवेली छे. १ कसं, पृ. १९९-२०. २ कमु, पृ. ३९९-४२३; ककि, पृ. १६४; ककौ, पृ. १६२-७०%; कदी, पृ. १२०-२३, व, पृ. ३४-३५, इत्यादि. Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पावलिप्ताधार्य ] ३ अंद, वर्ग १-५ ४ जिरको, पृ. २१६-१९ पत्तन . वेपारनें केन्द्र होय एवं नगर, पत्तन बे प्रकारनां होय छः जलपत्तन अने स्थलपत्तन. ज्यां जळमार्गे माल आवे ते जलपत्तन अने स्थलमार्गे आवे ते स्थलपत्तन, जलपत्तनना उदाहरण तरीके द्वीप ( दीव ) अने काननद्वीपना नाम अपाय छे, ज्यारे स्थलपत्तन तरीके मथुरा अने आनंदपुर आपवामां आवे छे.' केटलाक टीकाकारोए प्राकृत — पट्टण' शब्दनां पट्टन अने — पत्तन' एवां बे संस्कृत रूपो स्वीकारीने बेना जुदा अर्थ आप्या छः जेम के ज्यां नौकाओ मारफत जवाय ते पट्टन अने ज्यां गाडांमां के घोडे बेसीने तेम ज नौका मारफत जवाय ते पत्तन. कालक्रमे — पत्तन' सामान्य नाममांथी विशेष नाम बन्यु: अने गुजरातनुं मध्यकालीन पाटनगर 'अणहिलपत्तन' मात्र ‘पत्तम' एवा ढूंका नामे जाणीतुं थयुं. ' कल्पसूत्र 'नी · कौमुदी' नामे टीकाना कर्ता शान्तिसागर पोते ए टीका ‘पत्तनपत्तन 'मां -एटले के पाटणनगरमां लखो होबार्नु जणावे छे. १ उशा, पृ. ६०५; आशी, पृ. २५८; बृकमा, गा १०९०; बृकक्षे, भाग २, पृ. ३४२; वळी जुओ ज्ञाधअ, पृ. ५५, १४०. २ जुओ भरुकच्छ. ३ कको, प्रशस्ति, श्लो. ४. पाण्डुमथुरा जुओ मथुरा पादलिप्ताचार्य एक प्रभावक आचार्य, जेमनुं नाम सौराष्ट्रना प्रसिद्ध जैन तीर्थ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ पादलिप्ताचार्य पादलिप्तपुर-पालीताणा साथे जोडायेलं छे. पादलिप्ताचार्य पाटलिपुत्रमा मुरुंड राजाना दरबारमा हता. एक वार मुरुंड राजा उपर यवनोए मीणवाळु सूतर, कापीने सरखी करेली लाकडी तथा सुंवाळी मुद्रित दाबडी मोकली अने साथे संदेशो कहाव्यो के ' सूत्रनो अंत, लाकडीनो आदिभाग अने समुद्गकनुं द्वार बतावो.' पण आ कार्य कोई करी शक्यु नहि. छेवटे पादलिप्ते सूतर ऊना पाणीमां नाल्युं, एटले मीण ओगळी गयुं अने छेडा देखाया: लाकडी पण पाणीमां नाखी, एटले मूळनो भाग भारे होवाथी अंदर डूब्यो अने. दाबडी उपर लाख हती ते गरम पाणीमां बोळीने उखाडी.' मुरुंड राजानी शिरोवेदना वैद्यो माडी शक्या नहेाता, ते पादलिप्ताचार्य मंत्रशक्तिथी मटाडी हती एवं कथानक मळे छे. पादलिताचार्य यंत्रविद्यामां पण कुशळ हता. तेमणे एक वार राजानी बहेनने बराबर मळती यंत्रप्रतिमा बनावी हती. ए प्रतिमा उन्मेषनिमेष करती हाथमां पंखो लईने ऊभेली हती. पादलिप्ताचार्य ' तरंगवती' नामनी एक विख्यात प्राकृत धर्म कथा रची हती, जेना उल्लेखो आगमसाहित्यमां तेम ज अन्यत्र अनेक स्थळे प्रात थाय छे. मूळ कथा तो सैकाओ पहेला नाश पामी गई छ, पण पादलिपनी पछी थयेला परन्तु जेनो चोकस समय अनिश्चित छे एवा आचार्य वीरभट्ट के वीरभद्रना शिष्य नेमिचन्द्रे १९०० प्राकृत गाथाओमां करेलो तेनो संक्षेप मात्र हालपां उपलब्ध छे. पादलिसचार्ये ' ज्योतिष्करंडक' उपर वृत्ति लखी हती एम आगमसाहित्यना सुप्रसिद्ध टीकाकार आचार्य मलयगिरिना कथन उपरथी स्पष्ट छे. आ वृत्ति नष्ट थई गई होपर्नु मानवामां आवतुं हतुं, पण एनी हस्तलिखित प्रति पू. मुनिश्री पुण्यविजयजीए जेसलमेरना ग्रन्थभंडारमाथी शोधी काढी छे. Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पादलिप्ताचार्य 1 ___ पादलिप्ते दीक्षा अने प्रतिष्ठाविधि विशे — निर्वाणकलिका' नामे जाणीतो ग्रन्थ रच्यो छे. आ उपरांत 'प्रभावकचरित 'ना. पादलिप्तसूरिचरित 'मां तेमणे 'प्रश्नप्रकाश' नामे ज्योतिषग्रन्थनु निर्माण कर्यु होवानो उल्लेख छे. चूर्णिओमां 'कालज्ञान' नामे एक रचनानु कर्तृत्व पण पादलिस उपर आरोपित करेलुं छे. पादलितनी प्राकृत गाथाओ हालकृत प्राकृत सुभाषितसंग्रह 'गाथासप्तशती'मां उद्धत करेली छे. ___ 'प्रभावकचरित' नोधे छे के पादलिप्ताचार्य एक वार तीर्थयात्रा करता सौराष्ट्रमा ढंकापुरी ( ढांक )मां गया हता. त्यां एमने सिद्ध नागार्जुननो समागम थयो. पछी नागार्जुने पोताना ए गुरुना स्मरणरूपे शत्रुजयनी तळेटीमां पादलिप्तपुर नामनु नगर वसाव्युं, शत्रुजय उपर जिनचैत्य करावी त्यां महावीरनी प्रतिमा स्थापित करो अने त्यां ज पादलिप्तसूरिनी मूर्ति पण स्थापित करी. ___ पादलिप्ताचार्यनो समय विक्रम संवतनी प्रारंभिक शताब्दीओमां निश्चित करवामां आव्यो छे. एमर्नु परंपरागत विस्तृत चरित 'प्रभावकचरित 'ना ‘पादलिप्तसूरिचरित 'मां मळे छे. १ आचू, पूर्व भाग, पृ. ५५४; आम, पृ. ५२४-२५; नम. पृ. १६२. २ निचू , भाग ४, पृ. ८७२; पिनिम, पृ. १४१-४२. पिनिम मां मुरुंडने प्रतिष्ठानपुरनो राजा कयो छे, ए मुद्रणदोष होवो जोईए, केम के ए ज काए रचेली अन्य वृत्तिओमां स्पष्ट रीते पाटलिपुत्रनो उल्लेख छ ( जुओ उपर टिप्पण १). ३ बृकभा, गा. ४९१५, बृको, भाग ५, पृ १३१५-१६. आ प्रकारनां 'स्त्रीरूपो' • यवनविषय' मां पुष्कळ बने छ एम अही टीकाकार नोंधे छे. ४ निचू, भाग ३, पृ. ४७९; भाग ५, पृ. १०२९; विको, पू. ४३३; बृकम, पृ. १६४-१६५; बृकक्षे, भाग ३, पृ. ७२२; भाग Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० [ पादलिप्ताचार्य ५, पृ. १४८९; व्यम ( उ० ५ उपरनी वृत्ति ). पृ ६, आगमेतर साहित्यमा 'तरंगवती' ना उल्लेखो माटे जुओ ‘निर्वाणकलिका,' प्रस्तावना, पृ. १५-१६. ५ आ संक्षेपनो जर्मन अनुवाद प्रो. ल्युमेने कयों छे. एना गुजराती भाषान्तर माटे जुओ ‘जैन साहित्य संशोधक,' ग्रन्थ २. ६ xx ज्योतिष्करण्डकमूलटीकायां श्रीपादलिप्तसूरिभिः उक्तं, सूप्रम, पृ. ७३ तथा चास्यैव ज्योतिःकरण्डकस्य टीकाकारः पादलिप्तसूरिराह-“ एए उ सुसमादयो अद्धाविसेका जुगाइणा सह पवत्तंते, जुगतेण सह समापंति" त्ति । ज्योकम, पृ. ५२ ७ प्रच, ५-श्लो, ३४७ ८ प्रव. गुज, अनुवाद, प्रस्तावना, पृ. ३२; वळी जुओ व्यम ( भा. गा. २६३ उपरनी वृत्ति)-यथा पादलिप्तकृतविवरणे कालज्ञाने.... ९ प्रच, ५-लो. २४७-३०६ १. 'निर्वाणकलिका,' प्रस्तावना, पृ १६ पालक उज्जयिनीना प्रद्योत राजाना बे पुत्रो हता-पालक अने गोपालक, एमाथी गोपालके दीक्षा लीधी, एटले पालक राजा थयो. एने बे पुत्रो हता-राष्ट्रवर्धन ( राज्यवर्धन ) अने अवंतिवर्धन. तेमांथी अवंतिवर्धनने राजपदे अने राज्यवर्धनने युवराजपदे स्थापीने पालके पण राज्य भोगवीने दीक्षा लीधी हती.' तित्थोगाली' प्रकीर्णकमां जणाच्या प्रमाणे-जे रात्रिए भगवान महावीर निर्वाण पाम्या हता ते.ज रात्रिए अवंतिमां पालक राजानो अभिषेक थयो हतो. जुओ अवन्तिवर्धन १ आचू, उत्तर भाग, पृ. १८९; ववृ, पृ. ९०- ९२. Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रद्योत ] । १०१ २ ज रयणि सिद्धिगओ. अम्हा तित्थंकरो महावीरो । तं स्यणिमवंतीए अहिसित्तो पालगो राया ॥ 'अभिधान-राजेन्द्र,' भाग १, पृ. ४९४ प्रतिष्ठान महाराष्ट्रमां गोदावरीने किनारे आवेलुं पैठण. प्रतिष्ठान गोदावरी नदीना तट उपर आवेलुं हतुं. त्यां सालवाहन राजा राज्य करतो हतो. एनो अमात्य खरक नामे हतो.' सालवाहन दर वर्षे भरुकच्छ, ज्यां नभोवाहन राज्य करतो हतो त्या आक्रमण करतो हतो.' ___प्रतिष्ठानमां जैनोनी मोटी वस्ती हती तथा राजानु वलण पण जैनधर्मने अनुकूळ हतुं. आ नगरना संघ तथा राजाना अनुमोदनथी कालकाचार्ये पर्युषण भादरवा सुद पांचमने बदले चोथे प्रवर्ताव्यु हतुं नियुक्तिकार भद्रबाहुस्वामी अने तेमना भाई वराहमिहिर आ नगरना ब्राह्मणकुमारो हता. १ बृको, भाग ६, पृ. १६४७ २ जुओ नभोवाहन ३ जुओ कालकाचार्य. ४ 'अभिधान-राजेन्द्र,' भाग ५, पृ. १३६९ प्रद्योत उज्जयिनीनो राजा. ते उग्र स्वभावनो होवाथी चंडप्रद्योत तरीके ओळखातो हतो. तेने आठ राणीओ हती, जेमांनी शिकादेवी वैशालीना राजा चेटकनी पुत्री हती अने अंगारवती सुंसुमारपुरना राजा धुंधुमारनी पुत्री हती.' एना मंत्री नाम खंडकर्ण हतुं (जुओ खण्डकर्ण ). शकुन्त नामे एनो एक अंध मंत्री पण हतो (जुओ शकुन्त ). प्रद्योतना समयनुं Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ ] [ प्रयोत उज्जयिनी भारतनां सौथी समृद्ध नगरो पैकी एक हतुं. एना समयमां उज्जयिनीमां नव कुत्रिकापण-त्रिभुवननी सर्व वस्तु जेमां मळे एवा वस्तुभंडारो हता. प्रद्योतना जीवननो घणो भाग पोताना पडोशी राजाओ जे एना साढुओ थता हता एमनी साथे लडवामां गयो हतो. पडोशी राज्यो साथेना आ कलहना परंपरागत वृत्तान्तो आगमसाहित्यमां मळे छेः .. एक बार प्रद्योते राजगृह नगर घेयु. राजगृहना राजा श्रेणिकनो नंदा राणीथी थयेलो पुत्र अभयकुमार जे एनो मंत्री पण हतो तेणे प्रद्योत आव्यो ते पहेलां एना स्कंधावारनिवेशनी जग्या जाणी लीधी हती अने त्यां घणुं धन दटाव्युं हतुं. पछी प्रद्योते आवीने पडाव नाख्यो एटले अभयकुमारे कहेवराव्यु के " तमारुं आखू सैन्य मारा पिताए फोडी नात्यु छे; आ वात उपर विश्वास न पडतो होय तो छावणीमां खोदीने जुओ." आ प्रमाणे खोदतां द्रव्य नीकळ्यु, एटले प्रद्योत डरीने नासी गयो. पण पाछळथी वस्तुस्थिति जाणवामां आवतां प्रद्योते अभयकुमार उपर रोषे भराई तेने केद करवानो निश्चय कयों, तेणे एक गणिकाने राजगृह मोकली अने सहायक तरीके बोजी केटलोक गणिकाओ आपी. गणिकाए एक धर्मप्रेमी जैन विधवानो वेश धारण कर्यो. चैत्यपरिपाटीमां सौ अभयने घेर गया. त्यां तेणे धर्मप्रेमी अभयने पोताने घेर जमवानुं निमंत्रण आप्युं अने भोळवीने मद्यपान करावी, केद करीने अवंति भेगो को. त्यां अभयकुमारे चातुर्यथी प्रद्योतने प्रसन्न कर्यो, एटले प्रद्योते एने छोडी मूक्यो, पण ए समये अभयकुमारे प्रयोतने कह्यु के “ तमे मने कपटथी पकड़ी आण्यो हतो, पण हुं तो तमे पोकारो पाडता हशो अने अहीथी तमने उपाडी जईश." थोडा समय पछी अभयकुमार राजगृहथी बे गणि. काओ लईने आव्यो अने वेपारीने वेशे उज्जयिनीमा रहेवा लाग्यो. तेणे Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रयोत ] [ १०३ पोताना एक दासने गांडानो वेश धारण करायो हतो अने तेने प्रद्योत नाम आप्युं हतुं. एने दररोज खाटलामां बांधीने वैद्य पासे लई जवामां आवतो त्यारे ते ' हुं प्रद्योत कुं' एवी बूमो पाडतो हतो. हवे, पेली गणिकाओ जे अभयकुमार साथै रहेती हती तेमना सौन्दर्यथी आकर्षाने एमनी कामना करतो प्रद्योत संकेत अनुसार त्यां अन्यो, एटले तेने अभयकुमारनी सूचना थी पकडी लेवामां आव्यो, अने 'हुं प्रद्योत कुं' एवी बूमो ते पाडतो रह्यो अने एने उज्जयिनी बच्चेथी खाटलामां बांधने उपाडी जवामां आग्यो. नगरजनोए तेनी बूमो सांभळीने मान्युं के पेला प्रयोतनामधारी गांडाने दररोजनी जेम वैधयां लई वामां आवे छे. राजगृहमां श्रेणिके प्रद्योदनो वध करवानो विचार कर्यो, पण अभयकुमारे तेने एम करतां अटकाव्योः पाछळथी प्रद्योतने मुक्त करवामां आव्यो हतो. * 3 सिन्धु - सौवीरना राजा उदायन साधे पण प्रद्योतने युद्धनो प्रसंग आव्यो हतो. उदायन पासे जीवंतस्वामी महावीरनी एक सुन्दर काष्ठप्रतिमा हती अने उदायननी देवदत्ता नामे एक कुब्जा दासी ए प्रतिमानुं संगोपन करती हती. प्रतिमाने वंदन करवा माटे गांधारथी आवेला एक श्रावके आपेली गुटिका लेवाथी ए दासीनो काया कांचनवर्णी बनी गई हती अने ते सुवर्णगुलिका तरीके प्रसिद्ध थई हती. नलगिरि हाथी उपर आबीने प्रयोते ए दासोनुं हरण कर्तुं हतुं अने एना आग्रहने कारणे पेली काष्ठप्रतिमा पण साये लोधी हती. आ खबर पडतां उदायन दश राजाओने सहायमा लईने उज्जयिनी उपर चडी आव्यो अने प्रयोतने पराजित कर्यो प्रयोत केद्र पकडायो अने उदायने एना कपाळ पर ' दासीपति' शब्द अंकित कर्यो. प्रतिमाने लेवा माटे उदायने घणो प्रयास कर्यो, पण ए तो एना स्थानेथी चलित भई नहि. एटले प्रयोतने लाईने उदायन पाछो सिन्धु-सौवीर तरफ चाल्यो. मार्गमां चालतां पर्युषणनो समय आग्यो अने तेमां प्रद्योते उपवास करवानी Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ ] [ प्रधोत इच्छा व्यक्त करतां उदायने एने धर्मबंधु जाणीने मुक्त कर्यो अने खमाग्यो, अने कपाळमांनो ' दासीपति' शब्द न वंचाय ए माटे त्यां सुवर्णपट्ट बांध्यो अने प्रयोतनुं राज्य एने पाछु आप्युं कहेवाय छे के व्यारथी राजाओ मस्तक उपर मुकुटने स्थाने पट्ट बांधनारा थया. " 1 वत्स देशना राजा शतानीक उपर पण प्रद्योते आक्रमण कयै हतुं. प्रद्योतने आवतो सांभळीने शतानीक यमुनाना दक्षिण किनारेथी उत्तर किनारे चाल्यो गयो, प्रद्योत यमुना ओळंगी शक्यो नहि; अने छेवटे केटलीक हेरानगति वेठी पाछो फर्यो. केटलाक समय पछी एक चित्रकारे शतानीक साथेना अणवनावने कारणे एनी स्वरूपवान राणी मृगावती चित्र चीतरी प्रयोतने बतान्युं मृगावतीना सौन्दर्यथी मोह पामीने प्रद्योते शतानीक पासे दूत मोकलीने मृगावतीनी मागणी करो; पण शतानीके दूतनो तिरस्कार करीने एने पाछो काढचो. आधी क्रोधे भरायेलो प्रद्योत वत्सदेशनी राजधानी कौशांबी उपर चडी आव्यो. तेने आवतो सांभळी अल्प बळवाळो शतानीक क्षोभ पाम्यो अने अतिसारथी मरण पाम्यो. आधी मृगावतीए विचार्य के " मारो बाळक पुत्र नाश न पामे एम करवुं जोईए. " आधी तेणे प्रद्योत पासे दूत मोकलीने युक्तिपूर्वक कहेवरात्र्युं के " हुं तमारी पासे आवुं त्यार पछी मारा पुत्रने कोई पीडा करे एम वु न जोईए. " पछी मृगावतीना कदायी प्रथोते उज्जयिनीनी ईंटोथी मृगावतीना नगरने दृढ करायुं, एमा धान्य वगेरे भराव्यं. आ प्रमाणे प्रद्योतने मूर्ख वनाच्या पछी मृगावती फरी गई. ए अरसामां भगवान महावीर कौशांबीमां समोसर्या. तेमनी देशना सांभळीने मृगावतीए प्रद्योतनी अनुज्ञा लईने दीक्षा लेवानी इच्छा इव्यक्त करो. ए महान पर्षदानी लज्जाने कारणे प्रद्योत मृगावतीने वारी शक्यो नहि; अने मृगावतीए पोतानो पुत्र उदयन प्रद्योतने सोने दीक्षा लोधी ए समये प्रद्योतनी अंगारवती आदि • Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभास] [ १०५ आठ राणीओए पण महावीर पासे दीक्षा लीधी. उदयन पाछळथी प्रद्योतनी पुत्री वासवदत्ताने परण्यो हतो. __प्रद्योतने बे पुत्रो हता-पालक अने गोपालक. एमाथी गोपालके दीक्षा लीधी हती, एटले एनी पछी पालक गादी उपर आयो.. १ आचू , उत्तर भाग, पृ. १९९-२००; विको, पृ. ३३५ २ वृकभा, गा ४२१४; वृकक्षे, प्रन्थ ४, पृ. ११४४-४६. जुओ कुत्रिकापण. ३ आचू , पूर्व भाग, पृ. ५५७-५५८; उत्तर भाग, पृ. १५८-५९; आम, पृ. ५२७-२८ ४ जुओ दशपुर. ५ आचू, पूर्वमाग, पृ. ४००; आम, पृ. २९२-९४: विविध दिव्य अने मानव पात्रोने माटे केवा प्रकारना मुकुटो, पहबंधो अने शिरोभूषणो योग्य छे ए माठे जुओ मरतनुं नाष्टथशास्त्र' ( काशीनी भावृत्ति), अध्याय २३, लो. १३२-४९; तथा 'विष्णुधर्मोत्तर पुराण, तृतीय खंड, अध्याय २७, लो. ३३ अने आगळ. ६ आचू, उत्तर भाग, पृ. १६७ ७ आचू, पूर्व भाग, पृ. ८८-९१; आम, पृ. १०१-४ ८ जुओ उदयन. ६ आचू , उत्तर भाग, पृ. १८९. प्रद्योत विशेना अन्य महत्त्वना कथारूप वृत्तान्तो अथवा उल्ले खो माटे जुओ नंम, पृ. १६% बृकक्षे, भाग २, पृ. ५८७; कसु; पृ. ५८७-८८; ककि, पृ. ९३ तथा १९९; कदी, पृ. २३; कको, पृ. २३४. प्रभास सौराष्ट्रना दक्षिण किनारे आवेलुं प्रभासतीर्थ. ए तीर्थनी उत्पत्ति आ प्रमाणे आपवामां आवे छे: पांडवोना वंशमां पांडुसेन नामे राजा थयो हतो. तेनी बे पुत्रीओ मति अने सुमति समुद्रमार्गे सुराष्ट्रमा आवती हती. मार्गमा समुद्रनुं तोफान थतां बीजा लोको Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ] स्कन्द अने रुद्रने नमस्कार करवा लाग्या, व्यारे आ बे बहेनोए पोतानी जातने संयममां जोडी. छेवटे वहाण मांगी गयुं अने बन्ने जणीओ कालधर्म पामी मोक्षे गई. लवणसमुद्रना अधिपति सुस्थित देवे तेमनो महिमा कर्यो. त्यां देवोद्योत थयो, अने त्यारथी प्रभासतीर्थ थयुं.' 9 भरत चक्रवर्तीना दिग्विजयवर्णनमां पश्चिममां प्रभासतीर्थनो उल्लेख छे, ' ' बहत्कल्पसूत्र 'नां भाष्य, चूर्णि अने वृत्तिमां प्रभासतीर्थमां यात्रामा थती संखडी - उजाणीनो निर्देश छे. २ उ १ आचू, उत्तर भाग, पृ. १९७० २ आम, पृ. २३०. वळी जुभो 'वसुदेवहिंडी' अनुवाद, पृ. २४१. ३ बुकमा, गा. ३१५०; ब्रुकक्षे, भाग ३, पृ. ८८३-८४ प्रियग्रन्थमूरि प्रभास सुस्थित- सुप्रतिबुद्धना शिष्य प्रियग्रन्थसूरिए अजमेरु पासे आवेला हर्षपुरमा पोताना विद्याचमत्कारथी यज्ञमां थतो पशुवध अटकाव्यो हतो.' जुओ अजमेरु १ कफि, पृ. १६९, कसु, पृ. ५०९-१०; कदी, पृ. १४८-४९. फलही.. सोपारकना मात्स्यिक मल्लने पराजित करवा माटे उज्जयिनीवासी अट्टणमल्ले भरुकच्छ पासेना एक खेडूतने तालीम आपी तैयार कर्यो हतो, जे फलही नामे प्रसिद्ध थयो हतों. जुओ अट्टण बन्नासा उत्तर गुजरातनी बनास नदी. ( बहत कल्पसूत्र 'ना वृत्तिकार कहे छे के कोई स्थळे अति Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बलमित्र - भानुमित्र ] [ १०७ पूरथी पण धान्य पाके छे, जेम के बन्नासामां ज्यारे खूब पूर आवे त्यारे ए पूरी भावित थयेली क्षेत्रभूमिमां बीज वेरवामां आवे छे. ' १ वृकसे, भाग २, पृ. ३८३. बलभद्र कृष्ण वासुदेवना मोटा भाई अने नवमा बलदेव तेओ अत्यंत स्वरूपवान हता. द्वारका नगरीनुं दहन थयुं त्यारे बन्ने भाईओ जलदीथी त्यांथी नीकळीने दक्षिण तरफ जता हता त्यारे कोसुंबारण्यमां कृष्णनुं मरण थयुं अने कृष्णना शरीरने अग्निसंस्कार करीने बलभद्रे दीक्षा लोधी. सुमुख, दुर्मुख, कूपदारक, निषद, ढंड वगेरे बलभद्रना पुत्रो हता. बलभद्रनुं संपूर्ण चरित्र आगमसाहित्यमां नथी, पण निषढ आदि तेमना बार पुत्रोए नेमिनाथ पासे दीक्षा लोधी हती तेनो वृत्तान्त े तथा बलभद्रना जीवनना केटलाक प्रसंगो अने तेमने विशेना उल्लेखो मळे ૩ छे. कृष्णनी जेम बलभद्रनुं चरित्र पण नेमिनाथचरित्र साथै संकळायेलुं छे' अने ' त्रिषष्टि' अंतर्गत तथा विविध लेखकोए रचेलां ‘नेमिनाथचरित्रो 'मां ते उपलब्ध थई शके. १ जुओ कोसुंबारण्य. २ वृद; तथा अंद, वर्ग ४ 3 ३ उदाहरण तरीके - उशा, पृ. ११७; मस, गा. ४९६-९७; कसु, पृ. ३९९ - ४२४, ककि, पृ. १३७-४२; इत्यादि. वलमित्र - भानुमित्र भरुकच्छता राजकर्ताओ. तेओ बे भाईओ हता. तेमना भाणेज • बलभाने कालकाचार्ये दीक्ष्म आपी होवाने कारणे आचार्यने कच्छ छोडीने प्रतिष्ठान चाल्या जवुं पड्युं हतुं. एक परंपरा प्रमाणे, बलमित्रभानुमित्र कालकाचार्यना भाणेज हप्ता. एमने माटे जुओ कालकाचार्य - २ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૦૮ ] arras एक अनार्य जाति, जे लूटपाट करी त्रास वर्तावती हती. आगमसाहित्यमा बोकिने मालवोथी अभिन्न गण्या छे. जुओ मालत्र - १ बळी जुओ उज्जयिनी, मथुरा ब्रह्मद्वीप आमीर देशमां कृष्णा अने वेणा नदीना संगम आगळ आवेलो एक द्वीप. त्यां वसता पांचसो तापसोने आर्य वज्रना मामा आर्य समित सूरिए प्रतिघोष माड्यो हतो. ए प्रतिबोध पामेला साधुओश्री जैन साधुओनी ब्रहृदीपक शाखानो प्रारंभ थयो हतो.' 'नंदिसूत्र'ना प्रारंभ आपली देवर्द्धिगणिनी गुरुपरंपरामा सिंहसूरने 'ब्रह्मद्वीपक सिंह' का छे. 2 [ बोधिक १ आचू, पूर्व भाग, पृ. ५४३; आम, पृ. ५१५, कसं, ट १३२; कसु, पृ. १३४; ककि, पृ. १७१; कदी, पृ. १४९ - १५० नंसू, पृ. ५१; पिनिम, पं. १४४. २ जुओ देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण. भट्टि आचार्य २ दूष्यमणि क्षमाश्रमणना शिष्य भट्टि आचार्यनो मत ' सूत्रकृतांग सुत्र 'नी चूर्णिमां टांकेलो छे.' जैन परंपरा अनुसार, मूळ आगमोने संकलित रूपे लिपिबद्ध करावनार देवर्द्धिगणि दूष्यगणिना शिष्य छे. भट्टि आचार्य ए देवगिणिनुं जीजुं नाम हतुं के तेमने मानार्थे भट्टि (सं. भर्म) आचार्य एटले मुख्य आचार्य कहेवामां आवता हता के पछी भट्टि आचार्य दूष्यगणिना बीजा ज कोई शिष्य जेमने विशे अयार सुधीमां कई जाणवामां आव्युं नथी एमनुं नाम हशे ए निश्चितपणे कहेतुं मुश्केल छे. Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भद्रगुप्ताचार्य ] [ १०९ सुप्रसिद्ध संस्कृत व्याकरणकाव्य ‘रावणवध ' जे सामान्य रीते ' भट्टिकाव्य ' तरीके ओळखाय छे तेनो कर्ता 'महाब्राह्मण महायाकरण स्वामिपुत्र भट्टि' वलभीनो हतो, एटले बलभीमा भट्टि नाम प्रचलित हतु; अने देवगिणिनो निवास पण वलभोमा हतो, एटले भट्टि ए देवर्धिगणिर्नु अपर नाम हाय ए कदाचित् संभवे छे. १ अत्र दूषगणिक्षमाश्रमणशिष्या भट्टियाचार्या ब्रवते...सूकृचू , पृ ४०५ २ नंम, पृ. ६५. जुओ देवद्धिगणि क्षमाश्रमण. भण्डीरवन मथुरानी पासे आवेलुं एक उद्यान. त्यां मंडीर यक्षनुं आयतन हतुं. लोको बळदगाडा जोडीने एनी यात्राए जता. जुओ कम्बल-सम्बल, मथुरा भद्रगुप्ताचार्य उज्जयिनीवासी एक आचार्य. आर्य रक्षित दशपुरमा पोताना गुरु तोसलिपुत्राचार्य पासे अगियार अंग अने जेटलो दृष्टिवाद तेमने अवगत हता तेटलो शीख्या. पछी उज्जयिनीमां दृष्टिवादना ज्ञाता आर्य वन छे एम सांभळीने तेओ उज्जयिनी गया. त्यां भद्रगुत नामे एक वृद्ध आचार्यनी संलेखना प्रसंगे आर्य रक्षित निर्यामक तरीके रह्या अने तेमनी उत्तम शुश्रूषा करी. भद्रगुप्ताचार्य कालधर्म पाम्या पछी रक्षिते वज्रस्वामी पासे साडानव पूर्वोनो अभ्यास कर्यो. पोताना अंतकाळे भद्रगुहा कार्ये आर्य रक्षितने कयुं हतुं के “ तमारे आर्य वज्रनी साथे रहेवु नहि, कारण के जे तेमनी साथे रहेशे ते तेमनी साथे ज मरण पामशे. " आथी आय रक्षित वज्रस्वामोथी अलग रह्या हता.' १ आचू , पूर्वभाग, पृ. ४०३-४; उने, पृ. २३; ककि, पृ. १७०-७३; कदी, पृ. १४५. Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० । [ भरूकच्छ भरुकच्छ . भरूच, गुजरातनुं प्राचीन बंदर. आगमसाहित्यना प्राचीनतर अंशोमां मोटे भागे आ नगरनुं ' भरुकन्छ' नाम छ, 'सृगुकच्छ 'नो प्रयोग मुकाबले पाछळनी संस्कृत टीकाओमां छे.' ' भरूच 'नी व्युत्पत्ति भरुकच्छ 7 भरुअच्च 7 भरूच ए प्रमाणे साधी शकाय, जे 'भृगुकच्छ 'माथी शक्य नथी, ए वस्तु पण मूळ नाम ' भरुकन्छ । होवाना पक्षमा छे... ___ केटलेक स्थळे भरुकच्छने 'द्रोणमुख' का छे. जल अने. स्थल एम बन्ने मार्गोए व्याथी जई शकाय ते द्रोणमुख. एना उदाहरणमां तरीके भरुकच्छ अने ताम्रलिप्तिनां नाम आपवामां आवे छे. कळो केटलाक टीकाकारोए प्राकृत 'पट्टण' शब्दना ‘पट्टन' अने 'पत्तन' एवां बे संस्कृत रूपो स्वीकारीने बन्नेना जुदा अर्थो आप्या छे : ज्यां नौकाओं मारफत जवाय ते 'पट्टन', अने ज्यां गाडांमां के घोडे वेसीने तेम ज नौकाओ द्वारा जवाय ते ‘पत्तन,' जेमके "भरुकच्छ.' 'आवश्यकचूर्णि' ( उत्तर भाग, पृ. १५२-५३ )मां एक स्थळे 'भरुकच्छने' 'आहरणी' अर्थात् 'आहार' जेवू वहीवटी एकम कहेल छे ( जुओ खेट आहार ). भरुकच्छना ईशान खूणे कोरटक नामे उद्यान हतुं अने तेमां मुनि सुव्रतस्वामीनु चैत्य हतुं. भरुकच्छमां जैनो तेम ज बौद्धोनी मोटी वस्तो हती अने बन्ने बच्चे धणी वार परस्पर स्पर्धा चालती हती.' भरुकच्छमां जिनदेव नामे जैन आचार्य भदंतमित्र अने कुणाल नामे वे बौद्ध साधुओ जेओ बे भाईओ हता तेमने वादमा पराजित कर्या हता अने ते बे जण गोविन्दाचार्यनी जेम जिनदेवना शिष्यो थया हता एवो पण उल्लेख छे. भरुकच्छनी पासे कुंडलमेण्ठ नामे व्यंतरर्नु Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरुकच्छ ] [ १११ स्थानक हतुं अने एनी यात्रामां आसपासना प्रदेशना घणा लोको एकत्र थईने संखडि - उजाणी करता हता. विक्रम पूर्वे पांचमी शताब्दीमां भरुकच्छ अवंतिना राजा प्रद्योत अथवा चंडप्रद्योतना आधिपत्यमां हतुं प्रद्योतनो दूत लोहजंघ एक दिवसमां पचीस योजननी सफर करी शकतो हतो अने ते प्रद्योतना हुकमो लईने वारंवार भरुन्छ आवतो हतो आ प्रमाणे नवा नवा हुकमो लावतो एने बंध करवाने लोकोए तेने एक वार विषमिश्रित माथु आप्युं हतुं, पण मार्गमां मानशुकन थतां लोहजंघे ते खाधुं नहोतुं. ' भरुकच्छ अने उज्जयिनी बच्चे सारो संपर्क हतो. भरुकच्छमांथी एक आचार्ये पोताना विजय नामे शिष्यने उज्जयिनी मोकल्यो हतो, पण मार्गमां एक मांदा साधुनी सारवार माटे तेने रोकाई जवं पहच हतुं, अने एथी नटपिटक गाममां नागगृहमां एने चोमासुं गाळवु पड्यु हतुं. ९ १० भरुकच्छमां नभोवाहन राजा राज्य करतो हतो त्यारे प्रतिष्ठाननो राजा सालवाहन ए नगर उपर दर वर्षे आक्रमण करतो हतो. ' कालकाचार्यना समयमा भरुकच्छमां वलमित्र अने भानुभित्र ए बे भाईओ राज्य करता हता." नभोवाहनना राज्यकाळमां वज्रभूति नामे एक आचार्य भरुकच्छमां वसता हता. ए आचार्यने उत्तम कवि तरीके वर्णवेला छे." अट्टण मल्लनो सहायक फलही मल्ल रुकच्छ पासेना गामनो एक खेडूत हतो, ' १३ उपर कर्तुं तेम, भरुकच्छ जळमार्गे तेमज स्थळमार्गे वेपारनुं मोटुं भथक हतुं. मुख्यत्वे आ दृष्टिए प्रधोत जेवा माळवाना राजाने भरुकच्छ उपर आधिपत्य जाळववानी जरूर लागी हो. भरुकच्छना वेपारीओ विशे केटली किंवदन्तीओ आगम साहित्यमांश्री मळे छे : मरुकच्छना कोई वेपारीए उज्जयिनीना एक कुत्रिकापणमांथी" Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ [ भरकच्छ भूत खरीबो हतो. वणिकनी बुद्धिथी पोते पराजित थयो एनी याद. गोरीमा ए भूते भरकच्छनी उत्तरे बार योजन दूर 'भूततडाग' नामे तळाव बांध्यु हतुं." भरुकच्छमां आवेला एक परदेशी वेपारीए कपटी श्रायकपणुं धारण करीने, केटलीक रूपवती साध्वीओने पोताना वहाण उपर बोलावीने तेमनुं हरण कयु हतुं." - भरुकच्छथो दक्षिणापथ तरफ जतां मार्गमां भागवत संप्रदायना अनुयायीनुं एक मन्दिर आवेलु हतुं. जेने जैनो 'भल्लीगृह ' नामे ओळखता हता." १ मुकाबले जूना कही शकाय एवा टीकाग्रन्थोमा उने (पृ. ६०५), व्यम ( भाग. ३, पृ. १२७), प्रम (पृ. ४८), बृकम (पृ. ५२) अने बृकक्षे (पृ. ३४२, ५९४ इत्यादि) 'भृगुकच्छ । नो प्रयोग करे छे, ज्यारे चूर्णिओ अने भाष्योमा ‘भरुकच्छ' (प्रा. भरुयच्छ ) शब्दप्रयोग लगभग निरपवाद छे. पुराणोमां पण 'भृगुकच्छ' नी तुलनाए ‘भारुकच्छ ' अने ‘भरुकच्छ 'नी व्यापकता छे (जुओ पुगु). २ दोहिं गम्मति जलेग वि थलेण वि दोणमुहं, जहा भरुयच्छे तामलित्ती एवमादि, आसूचू , पृ. २८२.. द्रोण्यो-नावो मुखमस्येति द्रोणमुख-जलस्थलनिर्गमप्रवेशं यथा भृगुकच्छं ताम्रलिप्तिर्वा, उशा, पृ ६०५. द्रोणमुखं जलस्थलनिर्गमप्रवेशं, यथा भरुकच्छं तामलिप्ती बा, आशी, पृ. २५८. वळी जुओ प्रम, पृ. ४८. “जीवाभिगम सूत्र ' नी मलयगिरिनी वृत्ति (पृ. ४० ) मां 'द्रोणमुख प्रायेण जलनिर्गमप्रवेशम् । छे, त्यां मुदित प्रतमां 'जल'नी पछी स्थल' शब्द रही गयो हशे एम अनुमान थाय छे. ३ — पट्टण ' त्ति पट्टनं पत्तनं वा, उमयत्रापि प्राकृतत्वेन निर्देशस्य समानत्वात् , तत्र यन्नौभिरेव गम्यं तत्पट्टन, यत्पुनः शकटोटकैनौंभिर्वा गम्यं तत्पत्तन यथा भरुकच्छम् । उक्तं च-“ पसनं शकटैर्गम्यं घोटकैनौंभिरेव च । नौभिरेव तु यद् गम्यं पट्टन तत्प्रचक्षते ॥१॥" जीम, पृ. ४० पत्तनं जलस्थलनिर्गमश्वेश-यथा मृगुकच्छम् । उक्तं च-पत्तनं Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भल्लीगृह ] [ १९३ शकटैगम्यं घोटकैनौंभिरेव घ । नौभिरेव तु यद् गम्यं पटनं तत्प्रचक्षते ॥ व्यम, भाग ३, पृ १२७. जुओ पत्तन. ४ जुओ कोरण्टक उद्यान. ५ जुओ खपुटाचार्य. ६ आच , उत्तर भाग, पृ २०१ .७ बृकभा, गा. ३१५०; बृकक्षे, भाग ३, पृ. ८८३-८४. जुओ कुण्डलमेण्ठ. ८ आचू , उत्तर भाग, पृ. १६०-६१ ९ आचू , उत्तर भाग, पृ. २०९ १० जुओ नभोवाहन अने सालवाहन. ११ जुओ कालकाचार्य. १२ जुओ वनभूति आचार्य. १३ जुओ अट्टण अने फलही. १४ जुओ कुत्रिकापण. १५ बृकभा, गा. ४२२०-२२; बृकक्षे, पृ. ११४५-४६. १६ निचू , भाग ३, पृ. ४९८; बृकभा, गा. २०५४; बृकक्षे, पृ ५९४ १७ जुओ कोसुबारण्य त भल्लीगृह. भल्लीगृह ___ महीगृह संबंधमां नीचेन! भावार्थ- कथानक 'निशीथचूर्णि 'मां छे: एक साधु सार्थनी साथे भरुकच्छथी दक्षिणापथ जतो हतो. तेने कोई भागवते पूछा, ' भल्लीगृह ए शुं छे ? ' एटले साधुए द्वारवतोना दहनथी मांडीने वासुदेव कोसुंबारण्यनां प्रवेश्या अने जराकुमारनुं बाण वागवाथी तेमनुं मरण थयुं त्यांसुधोनी हकीकत कही संभळावी. आ प्रमाणे भल्लीगृहनी उत्पत्तिनो सर्व वृत्तान्त तेणे कयो. आ सांभळीने भागवत द्वेषपूर्वक विचार करवा लायो, 'जो एम नहि होय तो आ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४] [ भल्लीगृह श्रमणनो हुं घात करीश. पछी ते गयो, अने तेणे वासुदेवनो पग बाणथी वौधायेलो जोयो, एटले आवीने साधुने खमाल्या अने कह्यु, ' में आ प्रमाणे चिंतव्युं हतुं, माटे क्षमा करो." ___आ कथानक उपरथी अनुमान थाय छे के कोसुंबारण्य के ज्यां जैन परंपरा अनुसार, जराकुमार- बाण पगमां वागवाथी कृष्ण वासुदेवे देहत्याग कर्यो त्यां पगमां भल्ली-बाणना घा होय एवा प्रकारनी वासुदेवनी मूर्ति हशे. जे मन्दिरमा आवी मूर्ति हशे ते भल्लीगृह तरीके ओळखातुं हशे. ___ ब्राह्मण परंपरा अनुसार, श्रीकृष्णनो देहोत्सर्ग प्रभासमां थयो हतो. ज्यां कृष्णने बाण वाग्युं हतुं ते जग्या त्या भालकुं (भल्लुकेश्वर) तरीके जाणीती छे तथा समुद्रकिनारे ज्या तेमनुं अवसान थयुं हतुं त्यां देहोत्सर्गनुं तीर्थ छे. १ निचू, ( भा. गा. २३३० नी चूर्णि), भाग ३, पृ. ४७९ २ जुओ कोसुंबारण्य भिल्लमाल - जुओ श्रीमाल भूलेश्वर एक व्यंतर. गुज. — भूलेश्वर.' आनंदपुरना एक दरिद्र ब्राह्मणे भूलेश्वर (प्रा. भूलिस्सर )ना उपासना करी हती. व्यंतरे तेने कच्छमां ज्यां आभीरो श्रावक हता त्यां मोकल्यो हतो.' जैन शास्त्रोमा घणी वार शिव, ब्रह्मा आदि ब्राह्मण देवाने व्यंतर अथवा बानमंतर तरीके वर्णवेला होय छे; एटले अहीं भूलेश्वर व्यंतर वडे भूलेश्वर महादेव उद्दिष्ट छे एम अनुमान करवु वधारे पडतुं नथी. भूलेश्वरनां मन्दिरो गुजरातमा छे तथा ईडर तरफना ब्राह्मणोमां Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूत तडाग ] [ ११५ भूलेश्वर विशेष नाम पण होय छे. अहीं, ' आवश्यकचूर्णि 'मां 'भूलिस्सर 'नो उल्लेख छे, एटले ए नाम ओछामां ओलुं आठमा सैका जेटलुं जूनुं छे. बळी प्रस्तुत उल्लेख एम सूचवे छे के आनंदपुरमां ' भूलिस्सर 'नुं मन्दिर होवुं जोईए. प्राकृत 'भुल्ल'-' भूल' (गुज. 'भूल' ) अने 'मोल' (गुज. 'भोळो' ) ए देश्य शब्दो लागे छे. जो के केटलाक एनो संबंध सं. भद्र प्रा. भल्ल7गुज. भलो इत्यादि साथै जोडे छे. आ शब्दोने तेम ज भूलिस्सर' शब्दमांना ' भूल ' अंगने महादेवना अर्थमां वपराता भोलानाथ, ' ' भोळा शंभु' जेवा प्रयोगो साथे वाग्व्यापारगत संबंध e at स्वाभाविक कल्पना थाय छे. 6 " १ कच्छे आभीराणि सड्ढाण, आनंदपुरतो धिज्जातिओ दरिद्दो भूलिस्सरे उववासे ठितो, वरं मग्गति, चाउवेज्जस्स भत्तमुलं देहि, वाणमंतरेण भण्गति-कच्छे सावर्गाणि भज्जवतियाणि ताणं भत्तं करेहि । आचू, उत्तर भाग, पृ. २९१ भूततडाग भरुच्छथी बार योजन उत्तरे आवेलं एक तळाव ए विशेनुं परंपरापत कथानक आ प्रमाणे छे : भरुकच्छना एक वणिके उज्जयिनीना कुत्रिकापणमांथी एक भूत खरीधो हतो. ए भूत एवो हतो के एने सतत काम आपवामां न आवे तो खरीदनारने मारी नाखे वणिके जे काम सोप्युं ते बधुं भूते क्षण वारमां करी दीधुं. आथी छेवटे वणिके एने एक स्तंभ उपर चढवा ऊतरवानुं काम सोयुं भूते पोतानो पराजय स्वीकारी लोधो अने पराजयनुं कईक चिह्न मूकवानी इच्छा व्यक्त करीने कधुं के 'घोडा उपर सवारी करीने चालतां ज्यां तुं पार्छु वाळीने जोईश त्यां हुं एक तळाव बांधीश. ' वणि बार योजन जईने पाहुं वाळीने जोयुं अने त्यां भूते एक तळाव बांधयुं, जे भूततडाग नामथी प्रसिद्ध थयुं. ' Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ ] [ भूततडाग आ कथानकना काल्पनिक अंशो न स्वीकारीए तो पण भरुकच्छनी उत्तरे बारेक योजन दूर आवेलं एक तळाव लोकश्रुतिमां भूततडाग नामे जाणीतुं हतुं एटली वस्तु तो निथित छे. जुओ कुत्रिकापण १ बृकमा, गा. ४२२०-२२; बृकक्षे, भाग ४, पृ. ११४५-४६ भृगुकच्छ जुओ भरुकच्छ म आर्य एक प्राचीन आचार्य. तेओ आर्य समुद्रनी साथे विहार करता सोपा रकमां गया हता. तेमनुं शरीरस्वास्थ्य सारुं हतुं, ज्यारे आर्य समुद्र दुर्बळ हता.' वळी आर्य मंगू आचार्य बहुश्रुत, घणा शिष्योना परिवारवाळा तथा उद्यतविहारी हता. तेओ एक वार मथुरा गया हता. त्यांना श्रावको दररोज दूध, दही, घी अने गोळवाळो खोराक बहोरायता हता. बोजा साधुओ त्यांची चाल्या गया, पण आर्य मंगूए जिह्वारसना लोभथी विहार न कर्यो . श्रामण्यनी विराधना करीने ते मरण पाम्या अने नगरनी निर्धमनी - नीकमां व्यंतर थया. पछी कोई साधु त्यांथी पसार थाय एटले ए व्यंतर प्रतिमामा प्रवेशीने मोटी जीभ लांबी करतो, अने साधुओ पूछे त्यारे कहेता के 'हुं जिह्वा - दोषथी व्यंतर थयो लुं अने तमारा प्रतिबोध माटे आव्यो छु. माटे मारा जेवुं वर्तन तमे करशो नहि. ' वळी बीजो एक मत एवो छे के ज्यारे साधुओ जमवा बेसता त्यारे साधुओनी सामे ते पोतानो अलंकारखचित हाथ लंबावतो, अने ज्यारे पूछवामां आवे त्यारे उपर प्रमाणे कहेतो. 2 'नंदिसूत्र 'नी स्थविरावलीमां आर्य समुद्रनी पछी आर्य मंगूने चंदन की छे, एटले आर्य मंगू आर्य समुद्रना शिष्य संभवे छे. ૩ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणिप्रभ] [ ११७ प्रस्तुत स्थविरावलीमां आर्य मंगूने खूब आदरपूर्वक प्रणाम करेलां छे, ज्यारे उपर्युक्त कथानकनो ध्वनि एथी ऊलटो ज छे. आथी एक ज नामवाळा बे जुदा जुदा आचार्योनो पछीना समयमां थयेला चूर्णिकारो अने टीकाकारोए संभ्रम कों हशे एम अनुमान थाय छे." १ व्यम (उद्दे० ६ उपरनी वृत्ति), पृ. ४४. जुओ समुद्र आर्य. २ निचू , भाग ३; पृ. ६५०-५१; बळी जुओ आचू , उत्तर भाग, पृ. ८०; बृकम; पृ. ४४; श्रापर, पृ. १९२. ३ तिसमुदखायकित्ति दीवसमुहेसु गहियपेयाल । वंदे अज्जसमुदं अक्खुभियसमुद्गभीरं ॥२७॥ भणगं करगं झरगं पभावगं णाणदसणगुणाणं । वंदामि अज्जमगुं सुयसागरपारग धीरं ॥२८॥ नंसू, पृ. ४९-१० ४ ' श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र 'ना बे टीकाकारो देवेन्द्रसूरि (व, पृ. ९२) अने रत्नशेखरसूरि (श्रापर, पृ. १९२) आ रसगृद्धिनी वात करता ' मथुरामंगू' आचायनो उल्लेख करे छे ते शु सोपारकवाला मंगूथी भिन्नता दर्शाववा माटे हशे ? मणिप्रभ उज्जयिनीना राजा पालकना पुत्र राहवर्धन ( राज्यवर्धन )नो नानो पुत्र, जे पाछळथी कौशांबीनो राजा थ्यो हतो. पालकना मोटा पुत्र अवन्तिवर्धने पोताना भाईनी स्त्रीने वश करवा भाटे भाईने मारी नाख्यो हतो.' आथी तेना भाईनी स्त्री धारिणी पोतानुं शील बचाववा माटे एक सार्थनी साथे कौशांबी चाली गई हती. ए वखते ए सगर्भा हती. कौशांबीमा राजानी यानश लामा रहे ती साध्वीओ पासे तेणे दीक्षा लीधी, पण पोताना गर्भनी वात करो नहि. पण पाछळथी ए वातनी खबर पडतां एने गुप्त राखवामां आवो अने एने पुत्रनो जन्म थतां नाममुद्राथी अंकित करीने राजाना आंगणामा मूकी देवामां आव्यो. ए पुत्र ते मणिप्रभ. कौशांबीनो राजा अजितसेन. पण अपुत्र हतो, Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] [ मणिप्रभ तेथी तेणे मणिप्रभने पुत्र तरीके स्वीकार्यो. पुत्रप्रेमने लीधे धारिणीए अजितसेननी राणी साथे मैत्री करी. काळे करी अजितसेननी पछी मणिप्रभ गादो उपर आयो. ए समये तेनो सगो भाई अवन्तिसेन जे अवन्तिवर्धननो पछी उजयिनीनी गादीए बेठो हतो ते कौशांबी उपर चढी आव्यो, अने बन्ने भाईओ वच्चे युद्ध थवानी तैयारी हती त्यां माता धारिणीए बन्ने पासे जईने तेमनो साचो वृत्तान्त कही संभळाव्यो, अने युद्ध रहेवा दईने बन्ने उत्साहपूर्वक नगरीमा प्रवेश्या. १ जुओ अवन्तिवर्धन. २ जुओ अवन्तिवर्धन. ३ आचू , उत्तर भाग, पृ. १८९-९०; वत्र, पृ ९०-९२ मण्डन मूत्रधार सूत्रधार मंडनकृत ' वास्तुसारं 'माथी केटलाक श्लोको 'जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति' उपरनी शान्तिचन्द्रनी वृत्तिमां उद्धृत थयेला छे.' मंडन ए नाम मध्यकाळमां गुजरात-राजस्थान अने माळवामां व्यापक विशेषनाम — मांडण 'नुं संस्कृतीकरण छे. ___मंडन मेवाडना राजा कुंभकर्ण-कुंभाराणा ( ई. स. नो १५ मो सैको )नो आश्रित हतो. 'रूपमंडन' आदि शिल्प अने वास्तुशास्त्रना संख्याबंध ग्रन्थो तेणे रचेला छे. विक्रमना पंदरमा शतकना अंतमां अने सोळमाना प्रारंभमां अर्थात् ईसुना पंदरमां शतकमां ‘अलंकारमंडन', 'काव्यमंडन', 'चंपूमंडन,' 'काव्यमनोहर' आदि ग्रन्थो लखनार मंत्री मंडन अथवा मांडण माळवामां आवेला मंडपदुर्ग (मांडु)नो श्रीमाली वणिक होई सूत्रधार मंडनथी भिन्न छे.' १ एतत्संवादनाय सूत्रधारमण्डनकृतवास्तुसारोकिरपि लिख्यते यथा-" चतुःषष्टया पदैर्वास्तु पुरे राजगृहेऽचयेत् । एकाशीत्या गृहे भागः शतं प्रासादमण्डपे ॥" इत्यादि १३ श्लोक टॉक्या छे. प्रशा, पृ. २०८. Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मथुरा ] [ ११९ २ जुओ ‘देवतामूर्ति प्रकरण अने रूपमंडन,' प्रस्तावना, पृ. १-४ ३ जुओ हेमचन्द्राचार्य सभा प्रकाशित 'मंडनग्रन्थसंप्रह.' मण्डिक वेणतट नगरनो एक चोर, जे दिवसे तूनारानो धंधो करतो अने रात्रे चोरी करतो. ए ज नगरना राजा मूलदेवना हाथे ते पकडाई गयो हतो. जुओ मूलदेव मत्स्यदेश २५।। आर्य देशो पैकी एक. एर्नु पाटनगर वैराट नगरमा हतुं.' मत्स्य देशमां जयपुर राज्यनो केटलोक भाग तथा अल्वर राज्य आवी जाय छे. १. सूकृशी, पृ. १२३; बृकक्षे, भाग ३, पृ. ९१२-१४ २ ज्योडि, पृ. १२८-२९ मथुरा २५॥ आर्य देशो पैकी शूरसेना जनपदनी राजधानी.' मथुरा नगरी घणी प्राचीन छ, भने तेथी एने 'चिरकाल-प्रतिष्ठित कहेवामां आवी छे अने त्यांना स्तूपने ‘देवनिर्मित ' कह्यो छे.' मथुरानुं बीजुं नाम इन्द्रपुर हतुं. प्राचीन भारतना महत्त्वना सार्थमार्गो उपर आवेलु होई मथुरा एक महत्त्वनुं वेपारी केन्द्र (पत्तन') हतुं, एथी ए. ' स्थलपत्तन' तरीके वर्णवायुं छे." ___ मथुरामां भंडीर उद्यानमा सुदर्शन यक्षनुं आयतन हतुं.' केटलेक स्थळे यक्षनुं नाम पण भंडीर यक्ष आपेलुं छे. लोको भारे उत्साहपूर्वक भंडीर यक्षनी यात्रामा गाडा जोडीने जता. Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ] [ मथुरा आवश्यक सूत्र 'नी वृत्तिमां आ यज्ञायतननो परंपरागत इतिहास नीचे प्रमाणे आपवामां आव्यो छेः मथुरामां राजानी आज्ञाथी हुंडिक नामे एक चोरने शूळीए चढाववामां आव्यो हतो. चोरना बीजा साथीओ पकडाई जाय ए माटे तेनी तपास राखवानी सूचना राजाए पोताना माणसोने करी हतो. जिनदत्त नामे श्रावक ए स्थळेथी पसार थतो हतो, तेनी पासे चोरे पाणी माग्युं. जिनदत्ते एने नवकार भणवानुं कह्युं अने पोते पाणी लेवो गयो. आ बाजू नवकार बोलता चोरनो जीव नीकळी गयो अने ते यक्ष थयो. राजाना माणसोए जिनदत्तने पकड्यो अने राजाए एने शूलो उपर चढाववानी आज्ञा करी. यक्षे अवधिथी आ वात जाणी. तेणे पर्वत उपाडीने नगर उपर भूक्यो अने कहां के ' श्रावकने खमावो, नहि तो नगरनो चूरो करी नाखीश. ' आ पछी जिनदत्तने खमाबीने वैभवपूर्वक एनो नगरप्रवेश कराववामां आव्यो, अने नगरनी पूर्व दिशाए यक्षनुं आयतन बंधाववामां आयु. आ वृत्तान्त उपरथी स्पष्ट छे के उपर्युक्त यक्षायतन मथुरानी पूर्व दिशाए होवु जोईए. 6 राजकीय दृष्टिए मथुरा उत्तरापथनु एक अगत्यनुं शहेर हतुं अने ९६ गाम एनी साथे जोडायेलां हतां.' आ दृष्टिए 'मथुराहार'नो उल्लेख नोधपात्र छे. ' १० · मथुरा जैन धर्म एक मोटु केन्द्र हतु मथुरामां वरना बारणानी ओतरंग उपर सौ पहेलां अर्हत्-प्रतिमानुं स्थापन करवामां आवतु, अने एम न थाय तो ए मकान पडी जाय एम मनातुं. आवी स्थापनाने ' मंगलचैत्य' कहेता. मथुरा साथे संबंध धरावतां ९६ गाममा पण मंगलचैत्य हतां.' ११ मथुरानो जैन स्तूप एटलो प्राचीन हतो के एने 'देवनिर्मित स्तूप' कहेता . " कोई समये आ तूपनो कबजो बौद्धोर लई लीधो १२ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मथुश ] [१२१ हतो. आना निर्णय माटे राजानी संमतिथी एम नक्की थयुं हतुं के ‘जो स्तूप खरेखर रक्तपटोनो-बौदोनो होय तो ते उपर प्रभातमां राती पताका फरके अने जो जैनोनो होय तो त पताका फरके.' रात्रे देवताए स्तूप उपर श्वेत पताका फरकावी ते प्रभातमां सौए जोयु, अने ए रीते जैन संघनो विजय थयो.” आ अनुश्रुतिमाथी अतिहासिक दृष्टिए एवो निष्कर्ष नोकळी शके के मथुराना जैन स्तूप उपर बौद्रोए आधिपत्य जमाव्युं हतुं, पण मथुराना राजाए ए स्तूप जैनोने पाछो सोप्यो हतो. ____ उपर्युक्त देवनिर्मित स्तुपनो महिमा-उत्सव पग पर्वदिवसोए थतो. एक वार स्तूपनो महिमा करवा माटे केटलीक श्राविकाओ साध्वीओनी साथे गई हती. ए समये त्यां एक साधु, जेओ पूर्वाश्रममा राजपुत्र हता तेओ आतापना लेता हता. वाचक जातिना लुटामओए ए स्त्रीओने पकडी अने स्तूपमाथी तेओ एमने बहार लाव्या. साधुने जोईने स्त्रीओए भारे आनंद कयु, ए सांभळी क्षत्रिय साधुए बोधिको साथे युद्ध करीने तेमने छोडावी." __ देवनिर्मित स्तूप जेवा जैनोना प्रसिद्ध यात्राधाम पासेथा आवी रीते पूजार्थ आवेलो स्त्रीओनुं लुटारु भो हरण करे ए वतावे छे के आ घटनाना समय सुधीमां मथुरामाथी जैनोनुं वर्चस ठीकठीक प्रमाणमां घट्युं हशे अने स्तूपनी आसपासनो प्रदेश उज्जड जेबो बनी गयो हशे. 'सूत्रकृतांग सूत्र'नी चूणि अने वृत्तिमा एक पुरातन गाथा उतारेलो छ,' एमां कुसुमपुर छाने मथुरानो एको साथे एवी रीते उल्लेख छे, जे प्रस्तुत गाथाना रचनाकाळे कुसुमपुर (पाटलिपुत्र ) अने मथुरानुं एकसरखं प्राधान्य सूचवे छे. पाटलिपुत्रमा जैन श्रुतनी पहेली वाचना थया पछी केटली शताब्दीओ बाद स्कन्दिलाचार्य Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ मथुरा १७ १२२ ] जैन श्रुती बीजी वाचना मथुरामां करी" अने एने देवर्धिगणि क्षमाश्रमणे पोतानी छेवटनो श्रुतसंकलनामा मुख्य वाचना तरीके सर्वसंमत रोते स्वीकारी, ए. वस्तु जैन इतिहासमा घणी महत्त्वत्नी छे, अने माधुरी वाचना माटे मुनि कल्याणविजयजीए निश्चित करेलो समय (वीरनिर्वाण सं. ८२७ थी ८४० ई. स. ३०१ थी ३१४) मान्य राखीए तो, एवं विधान निःसंदेह थई शके के चोथी शताब्दीमां मथुरा जैन धर्मनुं एवं मोढुं केन्द्र हतुं, जेनी बराबरी पश्चिम भारतनुं वलभी ज करी शके एम हतुं. २० 6 भगवान महावीर मथुरामां आव्या हता एवो एक उल्लेख * विपाक सूत्र 'मां छे." आर्य मंगू" अने आर्य रक्षित जेवा आचार्योए मथुराम विहार कर्यो हतो. आर्य रक्षित मथुरामां भूतगुहा नामना व्यंतरगृह- यक्षायतनमां रह्या हता आवश्यक सूत्र 'नी चूर्णिमां एक स्थळे मथुराने ' पाखंडिगब्भ' (सं. पाषण्डिगर्भ ) कं छे, " ए बतावे छे के एमां बौद्धो अने अन्य संप्रदायना अनुयायीओनी वस्ती सारा प्रमाणमा हती. २२ ચ ૨૪ मथुराने लगता केटलाक प्रकीर्ण उल्लेखों मळे छे, जेम के - देवतापूजनमा उपयोगी त्रांचा एक वासण मथुरामां 'चंदालक ' तरीके सुपरिचित छे पत्नी ने पुत्रने घेर मूकीने देशावरमा फरता मथुराना वणिकोनी केटलीक कथाओ टीका - चूर्णिओमां छे. उत्तरमथुरानो वणिक वेपार अर्थे दक्षिणमथुरा (मदुरा ) पण जाय छे. अपायवाळा क्षेत्रनो त्याग करवा संबंधमां, जरासंघना उपद्रवने कारणे दशाहोंए मथुरानो त्याग कर्यो हतो ए उदाहरण अपाय छे. आ उपरांत मथुराना अनेक प्रासंगिक उल्लेखो आगमसाहित्यमा छे, " जे आ प्राचीन नगरीनुं ब्राह्मण अने बौद्धनी जेम जैन इतिहासमा पण जे असाधारण महत्त्व छे ए बतावे छे. २५ 26 Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मथुरा ] १ सूकृशी, पृ. १२३ बृकक्षे, भाग ३, पृ. ९१२-१४. २ चिरकालपट्टियाए महुराए... उशा, पृ. १२५. ३ जुओ टि. १२. ४ जुओ इन्द्रपुर. ५ उशा, पृ. ६०५; आशी, पृ. २५८ ६ महुरा विसू, पृ. ७० ७ नाम नयरी, भंडीरे उज्जाणे, जुओ भण्डीर यक्ष. १२३ ८ आम, पृ. ५५५ ९ जुओ टि. ११ १० जुओ खेट आहार ११ अरहंत पहाए महुरानयरीए मंगलाई तु गेहेसु चरचरेसु य छन्न उई गामअद्वेसु ॥ ( भा. गा. १७७६ ) मथुरानगय गृहे कृते मङ्गलनिमित्तमुत्तरत्रेषु प्रथममई प्रतिमाः, रिष्ठाप्यन्ते, अन्यथा तद् गृहं पतति । तानि मङ्गलचैत्यानि । तानि च तस्यां नगय गेहेषु चत्वरेषु च भवन्ति । न केवलं तस्यामेव किन्तु तरपुरी प्रतिवद्धा ये षणवतिसंख्याका प्रामार्द्धास्तेष्वपि भवन्ति । इहोत्तरापथानां ग्रामस्थ ग्रामार्द्ध इति संज्ञा । आह च चूर्णिकृत् - ग्रामद्वेसु सि देवभणिती, छन्नउईगामेसु त्ति भणियं होइ, उत्तरावहाणं एसा भणिइति । बुक, भाग २, पृ. ५२४. उत्तरापथमां ग्रामने प्रामार्ध कहेवानी रूढि छे, एवो आमांनो निर्देश नोंधपात्र छे. सुदंसणे जक्खे, १२ निचू, भाग ३, पृ. ५९० बृकक्षे, भाग ६, १६५६; व्यम, भाग ४, पेटा वि. १, पृ. ४३ १३ व्यमा तथा व्यम ( उद्दे० ५ ), पृ. ८ " १४ निच, भाग ३, पृ ५९०; बृकक्षे, भाग ६, पृ. १६५६; व्यम, भाग ४, पेटा वि. १, पृ. ४३. बोधिक' जातिनो उल्लेख 'महाभारत' अने 'रामायण' मां 'बोध' तरीके छे. जुओ बिमलाचरण ला- कृत ' ट्राइब्स इन अन्श्यन्ट इन्डिया', पृ. ३९७. जैन आगम साहित्यमां ' बोधिक ' ने 'मालव' श्री अभिन्न गणेला छे; जुओ मालब. ८ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ ] [ मथुरा १५ कुसुमपुरोप्ते बीजे मथुरायां नाङ्कुरः समुद्भवति । यत्रैव तस्य बीजं तत्रैवोत्पद्यते प्रसवः ॥ सूकचू , पृ. ३७९-८०; सूकृशी, पृ. ३५० १६ नंचू , पृ. ८; नंम, पृ. ५१; ज्योकम, पृ ४१; इत्यादि. वळी जुओ देवद्धिगणि क्षमाश्रमण. १७ 'वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना', पृ १८६ १८ जुओ जैन, ‘लाइफ इन अॅन्श्यन्ट इन्डिया,' पृ. ३०९. १९ जुओ म गू आर्य. २८ आचू, पूर्व भाग, पृ. ४११; आम, पृ. ४०० २१ आचू, पूर्व भाग, पृ. १६३ २२ सूकृशी, पृ. ११८ २३ आचू , उत्तर भाग, पृ. २८७; व्यम, भाग ४, पेटा वि. पृ. ४७ २४ आचू , उत्तर भाग, पृ. १७. २५ स्थाअ, पृ. २५५ २६ ज्ञाध, पृ. २०८; जीक व्या, पृ. ४०; निचू , भाग ४, पृ. ७४३; मस, गा. ४९४-५०३; भप, गा. १४५; आचू , उत्तर भाग, पृ. ३५-३६; इत्यादि मथुरा मङ्गु आचार्य जुओ मफ़ आर्य मरुस्थल __ आजनो मारवाड. एनां मरु, मरुभूमि, मरुविषय, मरुदेश एवां नामो पण मळे छे. 'कल्पसूत्रांनी विविध टीकाओमां राज्यदेशनाम आप्यां छे तेमां 'मरुस्थल' छे.' - मरु आदि रेताळ प्रदेशमा रस्तो भूली न जवाय ए माटे मार्गमां कीलिकाओ तोकवामां आवे छे एवो उल्लेख आगमसाहित्यमा छे.' Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मरुस्थल ] [ १२५ मरुविषयमां पाणीनी तंगी छे अने पाणी मेळवावा माटे रात्रे दूर सुधी जवुं पडे छे. जल विकलताने कारणे मरुस्थलमा धान्यसंपत् जोईए एवी थती नथी. निष्णुण्यपिपासित मनुष्योने जेम पीयूष प्राप्त थतुं नथी तेम मरुभूमिमां कल्पवृक्षनो प्रादुर्भाव थतो नथी. " ५ 6 मरुमंडलनी केटली विशेषताओ पण नोधवामां आवी छे: यवनालक ' ( प्रा. जवणालओ ) नामनो कन्या चोलक ' - कन्याओनो पहेरवेश मरुमंडलादिमां प्रसिद्ध होवानुं कथं छे. एमां चणियोचोळी भेगां सीवी लेवामां आवतां, जेथी वस्त्र खसी पडे नहि. कन्याना माथी ते पहेरातो, एथी ए प्रकारना पहेरवेशने ऊपो ' सरकंचुक ' पण कदेवामां आवतो. ६ 6 आ उल्लेख विशिष्ट महत्वनो छे, केम के एमां कन्याओना खास पोशाकने निर्देश छे. वळी प्राचीन संस्कृत साहित्यमां स्त्रीओना पहेरवेशमां ' नीवि 'नो निर्देश आवे छे ते वस्त्रनी गांठ छे, चणियानी दोरीनी गांठ नथी, ए दृष्टिए पण आ वस्तु विचारवा जेवी छे. संभव छे के साडीनी नीचे चणियो पहेरवानुं कोई परदेशी जाति के जातिओनी असरथी दाखल थयुं होय; दक्षिण भारतमां चगियानो पहेरवेश नथीए पण आदृष्टि सूचक छे उपर्युक्त उल्लेखमांना 'जवणालओ' शब्दनुं 'जवण' (सं. यवन. ए शब्द शिथिल अर्थमां गमे ते परदेशी जाति माटे प्रयोजातो हतो ए जाणीतुं छे ) अंग पण घणुं करीने ए ज सूचवे छे. ए 'कन्याचोलक ' मरुमंडलादिमां प्रसिद्ध होवानुं कथं छे, एटले मरुमंडल सिवायना बीजा केटलाक प्रदेशोमां पण एनो प्रचार होवो जोईए. हेमचन्द्रना 'द्वयाश्रय' महाकाव्यमाथी एने लगतो एक रसिक उल्लेख प्राप्त थाय छे. एमां लतागृहमा रहेली मयणलानो 'चोलक ' जोईने एनो भावी पति कर्ण सोलंकी अनुमान करे छे के ए कन्या होवी जोईए 1 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ मरुस्थल यच्चोलकमधास्तन्नाद्यापि कन्यात्वमत्यगाः । आर्तेवास्था यत्र त्वं स्मरस्तश्वां शरैरदात् ॥ ( सर्ग ९, श्लो. १४५ ) १२६ ] दयाश्रय 'ना टीकाकार अभयतिलकगणि अहीं ' चोलक 'नो अर्थ समजावतां लखे छे-'यत्वं चोलकं कन्योचितं सर्वाङ्गीणकञ्चुकविशेषमधाः परिधानेनाधारयस्तज्ञायते त्वमद्यापि कन्यावं नाव्यगाः । ' अ ' चोलक 'ने ' कन्योचित सर्वांगीणकंचुक विशेष ' कह्यो छे, ए आगमसाहित्य- अंतर्गत उल्लेखने बराबर मळतुं आवे छे. 6 ७ वळी ' बृहत् कल्पसूत्र ' उपरनी क्षेमकीर्त्तिनी टीकामां 'मरुतैल' नामना एक विशिष्ट तेलनो पण उल्लेख छे; ए तेल महदेशमां पर्वतमाथी नीकळतुं. अर्थात् आ खनिज तेल छे. मारवाडमां पण एक काळे खनिज तेल नीकळतुं हतुं ए दृष्टिए आ उल्लेखने अनेक शक्यताओनो सूचक गणी शकाय . नका घास नोंदवा माटे जे नानुं लाकडं ( गुज. ' खरपडी ' ) हळ साथै खेतरमा फेरववामां आवे छे एने मरुमंडळमां 'कुलिक' कहे छे एवो पण एक उल्लेख छे. " १ जुओ गुर्जर. २ रेणुप्रचुरे प्रदेशे कीलिकानुसारेण गम्यते, अन्यथा पथभ्रंशः । सूक्कृच्, पृ. २४० कीलकमार्गों यत्र वालुकोत्कटे मस्कादिविषये कीलिकाभिज्ञानेन गम्यते । सूकशी, पृ. १९६ ३ निचू, भाग ५, पृ. १०९७ ४ नं पृ. २२३ ५ कसु, पृ. २२०, ककौ, पृ. ८७ ६ retreat नाम कन्याचोलकः, स च मरुमण्डलादिप्रसिद्धश्वरणत्ररूपेण कन्या परिधानेन सह चीवितो भवति येन परिधानं न खसति, Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलयगिरि आचार्य ] [ १२७ कन्यानां चेष मस्तकप्रदेशेन प्रक्षिप्यते, अत एवायमूर्ध्वः- सरकञ्चुक इति व्यपदिश्यते, तथा च तप्रादिव्याख्यानं कुर्वन्नाह भाष्यकृत्-" x x जवना लउ त्ति भणिओ उब्भो सरकंचुओ कुमारीए xx" इति। आम, पृ. ६८ . . मरुतैलं-मरुदेशे पर्वतादुत्पद्यते । बृकक्षे. भाग ५. पृ. १५९१. बृकभा, गा, ६०३१ मां 'मरुतेल्ल'नो उल्लेख छे. जेनी टीकारूपे उपर्युक्त संस्कृत अवतरण छे, ए सूचवे छ के ' मरुतैल' विशेनो उल्लेख मुकाबले घणो प्राचीन छे. . ८ 'कुलिक ' लघुतरं काष्ठं तृणादिच्छेदार्थ यत् क्षेत्रे वाह्यते तत् मरुमण्डलादिप्रसिद्धं कुलिकमुच्यते, ततश्च यदा हलकुलिकादिभिः क्षेत्राण्युप. क्रम्यन्ते... , अनुहे, पृ. ४४ मलयांगरि आचार्य . आगमसाहित्यना सौथी मोटा संस्कृत टीकाकारोमा आचार्य मलयगिरिनु स्थान छे. एमणे पोतानी अनेक कृतिओ पैकी एकेयमां रचनासंवत आप्यो नथी तेम ज पोताने विशे कशी माहिती आपी नथी. पोते रचेलं 'शब्दानुशासन' जे 'मुष्टिव्याकरण' (मूठीमां माय एवं संक्षिप्त व्याकरण ) पण कहेवाय छे एमां तेमणे 'अरुणत् कुमारपालोऽरातीन् ' एवं उदाहरण आप्युं छे,' अने एमां क्रियापद अद्यतन भृतमा होई कर्ता थोडाक समय उपर बनेला बनावनी वात करे छे एवं अनुमान स्वाभाविक रीते थई शके. आचार्य मलयगिरि गुजरातमां थई गया छे ए तो निश्चित छे, पण उपर्युक्त प्रमाणने आधारे तेओ ई.स.ना बारमा सैकामां थयेला राजा कुमारपाल (ई. स. ११४३११७३ ) ना समकालीन हता के एनी पछी थोडाक समये थया हता एवं अनुमान थई शके. वळी मलयगिरिए आवश्यक सूत्र ' उपरनी पोतानी वृत्तिमा · आह च स्तुतिषु गुरवः ' एवी नोंध साथे आचार्य हेमचन्द्रकृत 'अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका 'मांथी · अन्योन्यपक्षप्रतिपक्षभावात् ' ( श्लो. ३०) ए श्लोक उद्धृत कयों छे, त्यां हेमचन्द्र माटे एमनुं नाम लीधा सिवाय ' गुरवः' एवो बहुमानसूचक Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ ] [ मलयगिरि आचार्य छता परिचयप्रदर्शक मोघम निर्देश कर्यो छे ए उपरथी पण तेओ हेमचन्द्रना लघुवयस्क समकालीन होबार्नु अनुमान थाय छे. ___ मलयगिरिए नीचेना आगमग्रन्थो उपर टीकाओ लखी छे : 'आवश्यक,' 'ओघनियुक्ति,' 'जीवाभिगम,' 'ज्योतिष्करंडक,' 'नंदिसूत्र,' ' पिंडनियुक्ति,' 'प्रज्ञापना,' 'भगवती' द्वितीय शतक, 'राजप्रश्नीय,' 'व्यवहार सूत्र, ' ' सूर्यप्रज्ञप्ति,' अने 'विशेषावश्यक.' 'बहत्कल्पसूत्र'नी पीठिका उपर मलयगिरिनी वृत्ति छ, पण त्यार पछीनी वृत्ति आचार्य क्षेमकातिए पूरी करी छे, ए उपरथी अनुमान थाय छे के 'बहत्कल्पसूत्र'नी वृत्ति लखतां लखतां ज मल यगिरिनु अवसान थयु हशे. 'जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति 'नी मलयगिरिनी वृत्ति नाश पामी होवानुं विधान सत्तरमा सैकामां थयेला टीकाकारो पुण्यसागर अने शान्तिचन्द्रे कयु छे," पण ए वृत्तिनी प्रत जेसलमेरना भंडारमाथी जाणवामां आवी छे.' आ टीकाकारोने एनी प्रतो अलभ्य होवी जोईए. वळी ' तत्त्वार्थ सूत्र' उपर पण मलयगिरिए एक टोका रची हती, जे आजे उपलब्ध नथी (जुओ टि. १९). आगमग्रन्थोनी टोकाओ उपरांत मलयगिरिए केटलाक आगमेतर धर्मग्रन्थो उपर टीकाओ रची छे, अने जेमांथी एमनो समय नक्की करवामां उपयोगी थाय एवो उल्लेख प्राप्त थाय छे ते, उपर्युक्त ' मुष्टिव्याकरण' नामे ' शब्दानुशासन' पण लख्यु छे. मलयगिरिनी टीकाओमा उच्च कोटिनी विद्वत्ता साथे सरलतानो सुभग समन्वय थयो छे अने परिणाम विद्वानो तेम ज विद्यार्थीओने ते एकसरखी उपयोगी वनी छे. एमां एमणे प्रसंगोपात्त पोताना पूर्वकालना वृत्तिकारोनो उल्लेख को होवाने कारणे आगमसाहित्यना इतिहास माटे ए केटलोक अगत्यनी सामग्री पूरी पाडे छे. जेम के( आवश्यक सूत्र' उपर हरिभद्रसूरिनी वृत्ति होवानुं प्रसिद्ध छे, पण Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलयगिरि आचार्य ] [ १२९ मलयगिरिए पोतानी ' आवश्यक वृत्ति'मा पूर्वकालीन, वृत्तिओनो बहु, वचनमा निर्देश को छे, ए सूचक छे. हरिभद्र उपरांत बोजा एक आचार्य जिनभटनी टोका ज जो तेमने उद्दिष्ट होत तो निर्देश द्विवचनमा होत. पण बहुवचननो प्रयोग बतावे छे के ए सिवाय पण बीजी एक अथवा वधारे टीकाओ 'आवश्यकसूत्र' उपर होवी जोईए. 'विवृतयः' एवो स्पष्ट उल्लेख होबाथी उपयुक्त बे विवरणोमां चूर्णिनो समावेश करीने बहुवचनना प्रयोगनुं समाधान करवु ए दूराकृष्ट लागे छे. .. ज्योतिष्करंडक, १० : पिंडनियुक्ति, ११ अने 'जीवाभिगम'नी'२ वृत्तिओमां मलयगिरिए वारंवार ते ते ग्रन्थो उपरनी 'मूल टीका'नो उल्लेख को छे. आ त्रणे सूत्रग्रन्थो , उपर मलयगिरि पूर्वेनी कोई टीका आजे विद्यमान नथी. जीवाभिगम'नी 'मूल टीका'ना उल्लेखो 'राजप्रश्नीय'नी वृत्तिमां पण छे.” 'प्रज्ञापना' तथा 'नंदिसून उपरनी हरिभद्रसूरिनी टीकाओनो उल्लेख तेमणे कयों छे." वळी पोतानी रचनाओमा मलयगिरिए पोतानी ज अन्यान्य वृत्तिओना उल्लेख कर्या छे, जे तेमनी कृतिओनी आनुपूर्वी नक्की करवामां सहायभूत थाय छे. 'नंदिसूत्र' अने 'पिंडनियुक्ति'नी वृत्तिओमां पोतानी 'धर्मसंग्रहणि टीका'नो उल्लेख" तेमणे कर्यो छे. ए ज रीते 'ज्योतिष्करंडक'नी वृत्तिमा क्षेत्रसमास'नौ टीकानो उल्लेख कर्यो छे." 'बृहत्कल्प सूत्र'नी पीठिकावृत्तिमां 'संस्कृत' शब्दनो अर्थ समजावतां तेमणे पोताना व्याकरण नो निर्देश कयों छे." ए ज प्रमाणे 'सूर्यप्रज्ञप्ति' नी वृत्तिमां पग तेमणे स्वरचित 'शब्दानुशासन'नो उल्लेख कों छे.८ 'तत्त्वार्थपूत्र' उपरनी स्वरचित टीकानो उल्लेख एमणे 'प्रज्ञापना सूत्र' तथा 'ज्योतिष्करंडक'नी वृत्तिओमां को छे." .. 'जीवाभिगमसूत्र' उपरनी पोतानी वृत्तिमा 'देशीनाममाला' Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ मलयगिरि आचार्य ('पहकर-ओरोह संधाया' इति देशीनाममालावचनात् , जीम, पृ.१८८) अने 'नाममाला' ( 'मोहणघरगा' इति मोहणं-मैथुनसेवा "रमिय मोहणरयाई" इति नाममालावचनात्, जीम, पृ २००) ए बे कोशग्रन्थो सूचित कर्या छे, पण एमणे आपेलां अवतरण अनुक्रमे हेमचन्द्रकृत 'देशीनाममाला'मां के धनपालकृत 'पाईअलच्छी नाममाला'मां नथी, एटले ए सिवायना कोई पूर्वकालीन कोशोनो आधार आचार्य मलयगिरि अीं टांके छ एम मानवू जोईए. पछीना समयमां थयेला आगमसाहित्यना टीकाकारोए मलयगिरिनी टोकाओना प्रसंगोपात्त आधार आप्या छे. जेमके-' श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र 'ना टीकाकार रत्नशेखरसूरिए मलयगिरिकृत — राजप्रश्नीय ' वृत्तिनो आधार टोक्यो छे° अने 'जंबुद्वीपप्रज्ञाप्ति 'ना टीकाकार शान्तिचन्द्रे 'बहत्संग्रहणि,२१ क्षेत्रसमास'२२ अने 'ज्योतिष्करंडक' उपरनी तेमनी वृत्तिओनो बहुमानपूर्वक उल्लेख कर्यो छे. १ जैसाइ, पृ. २७३ २ आम, पृ. " ३ जैसाइ, पृ. २७३-७४ ४ जुओ क्षेमकीर्ति. ५ तत्र प्रस्तुतोपाङ्गस्य वृत्तिः श्रीमलयगिरिकृतापि संप्रति कालदोषेण व्याच्छिन्ना, जंप्रशा, पृ. २. वळी जुओ जिरको, पृ. १३०-३१. ६ जिरको, पृ. १३० ७ जैसाइ, पृ. २७४; जिरको, पृ. ३१२ ८ नत्या गुरुपदकमलं प्रभावतस्तस्य मन्दशक्तिरपि । आवश्यकनियुक्ति विवृणोमि यथाऽऽगमं स्पष्टम् ॥३॥ वद्यपि विवृतयोऽस्याः सन्ति विचित्रास्तथापि विषमास्ताः । सम्प्रति जनो हि जडधी यानिति विवृतिसंरम्भः ॥४॥ आम पृ. १ ९ जुओ जिनभटाचार्य Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाकाल ] १० ज्योकम, पृ. १२१, १८६ ११ पिनिम, पृ. ४२, ६२, ८१ १९४, १००, २०४, २०५, १२ जीम, पृ. ४, १५, १८६, २.९, २१०, २१३, २१४, २३१, ३२१, ३५४, ४३८, ४४४, ४५०, ४५२, ४५७, इत्यादि. १३ राम, पृ. ६२, ६४, ६८, ६९, ७०, ७१, ७५, ७९ इत्यादि. ९३, १४ प्रम, पृ. ६११; नंम, पृ. २५० १५ नंम, पृ. १९३; पिनिम, पृ. २३ १६ ज्योकम, पृ. ५६-५७, १०१, १०७ १७ मलयगिरिप्रभृतिव्याकरणप्रणीतेन लक्षणेन संस्कारमापादितं वचनं संस्कृतम्, बृकम, पृ. ३. १८ सूत्रम, २२३ १९ प्रम, पृ. २९८; ज्योकम, पृ. ८१ २० श्रामर, पृ. ३५ ३१ जंप्रशा, पृ. १२७, २१६ २२ जंप्रशा, पृ. २२९, ३४८, ३५७ २३ जंप्रशा, पृ. ८७ मलयपट्टण [ १३१ सोपारकनी पासे आवेलुं शहेर. ए वेपारनुं मथक हतुं. एक सार्थवाह हजार वृषभ उपर माल भरीने त्यां गयो हतो. ' मुंबई पासेनुं मलाड आ कदाचित् होय एवो तर्क थई शके. जो के नेपा को अतिहांसिक आधार नथी. १ वसहाणं सहस्सेहिं सत्थवाहु व सो गओ । थलमग्गेण सोपारासन्नं मलयपट्टणं ॥ श्रामर, ट ६६ महाकाल . अवन्तिसुकुमालना पुत्रे उज्जयिनीमां पोताना पिताना मरणस्थान Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३९] [महाकाल उपर बंधावेलुं देवमन्दिर ' महाकाल' तरीके ओळखाय छे. जुओ अवन्तिसुकुमाल महागिरि आर्य स्थूलभद्रस्वामीना बे शिष्यो आये महागिरि अने आर्य सुहस्ती नामे हता. एमां महागिरि सुहस्तीना उपाध्याय हता. समय जतां महागिरिए साधुगण आर्य सुहस्तीने सोप्यो, अने ए. काळे जिनकल्पनो विच्छेद थयो होवाथी गच्छनिश्रामा रहीने तेओ जिनकल्पने योग्य वृत्तिथी विहार करवा लाग्या. एक वार तेओ विहार करता पाटलिपुत्र गया. ए समये आर्य सुहस्ती पण त्यां हता. पाटलिपुत्रनो वसुभूति नामे एक श्रेष्ठी आर्य सुहस्तीना उपदेशथी श्रावक थयो हतो. एनां कुटुं. बीओने उपदेश आपवा भाटे आर्य सुहस्ती एने घेर गया हता. ए वखते आर्य महागिरि भिक्षाने माटे त्यां आवी चढया. आर्य सुहस्तीए एमने वंदन कयु. आथी श्रेष्ठीए एमने विशे प्रश्न करतां सुहस्तीए कह्यु के ' तेओ मारा गुरु छे. ' आ सांभळीने श्रेष्ठोए पोतानां माण सोने कह्यु के 'व्यारे आ साधु आवे त्यारे--आ बधुं त्याग करवा लायक भक्तपान छे-एम कहीने तमारे तेमने बहोरावq.' बोजे दिवसे आर्य महागिरि आव्या खरा, पण आम कृत्रिम रीते वहोराबवामां आक्तां अन्न-पाणीमांथी कशुं पण तेमने लेवा लायक मायुं नहि. उपाश्रयमां पाछा आवीने तेमणे आर्य सुहस्तीने कह्यु के 'तमे गई काले मारो विनय करीने मारे माटे अनेषणा करी दीधी छे, माटे फरी वार तमारे आq न करवू. ' सुहस्तीए महागिरिनी क्षमा मागी.' ____ कडक आचारपालन माटेना आर्य महागिरिना आग्रहने लगतो बीजो एक वृत्तान्त पण मळे छ, जे अनुसार तेमणे आर्य सुहस्ती साथे आहारपाणी लेवानुं बंध कयु हतुं : जीवनस्थामीनी प्रतिमाने वंदन करवा माटे आर्य सुहस्ती Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महागिरि आर्य] (१३३ उज्जयिनीमां आव्या हता. ए समये त्यां संप्रति रामा हतो. जीवंतस्वामीनी रथयात्रामा रथनी सामे आर्य सुहस्तीने जोईने राजाने जातिस्मरण थयु अने पूर्वजन्ममां संप्रति पोतानो शिष्य होवानो वृत्तान्त आर्य सुहस्तीए तेने कह्यो. तेमना उपदेशथी संप्रतिए श्रावक धर्मनो स्वीकार को. पछी राजाए पोताना रसोयाओने आज्ञा करी के 'रसोडामां जे कई वधे ते अकृत अने अकारितना अर्थो साधुओने तमारे आपq. ' बळी नगरना कंदोईओ, तेलीओ, छाश वेचनाराओ, दोशीओ वगेरेने तेणे सूचना करो के ' साधुओने जे जोईए ते तमारे आपq; एर्नु मूल्य हुं आपीश. ' आ पछी साधुओने इच्छानुसार आहार अने वस्त्र मळवा मंड्यां. आथी आर्य महागिरिए आर्य सुहस्तीने कह्यु के 'प्रचुर आहार वस्त्रादि साधुओने मळे छे; माटे राजानी प्रेरणाथी तो लोको आपता नथी ने ! ए बाबतमा तपास करो.' आर्य सुहस्ती बधुं जाणता हता, छतां पोताना शिष्यो प्रत्येना ममत्वथी तेओ बोल्या के 'राजधर्मनुं अनुकरण करती प्रजा ज आ आहारादि आपे छे. एटले आर्य मह गिरिए कयुः तमे बहुश्रुत होवा छतां पोताना शिष्यो प्रत्येना ममत्वथी आq बोलो छो, माटे हवेथी आपणे बन्ने जुदा आहार लईशं.' पाछळथी आर्य सुहस्तीए पोताना अपराधनी क्षमा मागी हसी अने बन्ने आचार्यो करी वार सांभोगिक-साथे आहार लेता-थया हता. ___ आर्य महागिरि दशार्णपुरनो पासे आवेला गजाग्रपदमां अनशन करीने काळधर्म पाम्या हता. जुओ सम्पति, सुहस्ती आर्य । आचू, उत्तर भाग, पृ. १५५-५५ २ बुकमा (गा. २१४२ ) तथा बृकझे, माग ३, पृ. ९१७-२१; निचू, भाग २, पृ. ४३७-३८. वळी निचू , भाग ५, पृ. १७१४-१६ (भा. गा. ५६५४-५७.८ उपरमी चूलि )मां एज वृत्तान्त संक्षेपमा छे.. Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ महागिरि आर्य जीवन्तस्वामीनी प्रतिमा संबंधमां जुओ ‘जनल ऑफ धी ओरियेन्टल इन्स्टिटयुट,' अन्य १, पृ. ७२-७९ मां श्री उमाकान्त शाहनो लेख 'ए युनिक इमेज आफ जीवन्तस्वामी.' आचू उत्तर भाग, पृ.१५५; आम, पृ. ४६८. जुओ गजाग्रपद. महाराष् पश्चिम भारतनो महाराष्ट्र प्रान्त. महाराष्ट्रनी गणना जैन आगमसाहित्यमा अनायं देशोमां करेली छे. महाराष्ट्र, कुडुक्क आदि अनार्य देशोमां जैन साधुओनो विहार राजा संप्रतिना प्रयत्नने लीधे शक्य बन्यो हतो.' 'प्रश्नव्याकरण सूत्र 'मां' 'महाराष्ट्र' (प्रा. मरहट्ठ) जातिने म्लेच्छ जाति तरीके गणावेली छे. ___म्लेच्छ जाति तरीके ' मरहट 'नो उल्लेख जवल्ले ज मळे छे ए दृष्टिए आ नोधपात्र छे. अहीं 'म्लेच्छ' शब्द वडे का तो परदेशी जाति के कां तो अझैना भूळ वतनी-बेमाथी एक उद्दिष्ट होय. भारतना बीजा अनेक प्रान्तोनां नाम जेम ते ते जातिओ उपरथी छे तेम महाराष्ट्रनुं नाम पण आ 'मरहटु' जाति उपरथी पडेलु छे. _ 'अनुयोगद्वार सूत्र'मा मागध, मालव, सौराष्ट्र अने कोंकणनी साथे महाराष्ट्रनो उल्लेख छे. महाराष्ट्रीओनी वाचालता प्रसिद्ध हती. 'व्यवहार सूत्र'ना भाष्यमा कयुं छे के-अक्रूर मतवाळो आंध्रवासी, अवाचाल महाराष्ट्री, अने निष्पाप कोसलवासी सोमां एक पण देखातो नथी. ___ महाराष्ट्रना विविध रिवाजो अने रूढिओना उल्लेख आगमसाहित्यमां छे. 'महाराष्ट्र देशमा मद्यनी दुकानोमां मद्य होय के न होय, पण तेनी उपर ध्वज फरकाववामां आवे छे, जे जोईने भिक्षाचर आदि त्यां जता नशी. महाराष्ट्र देशमां. ठंडा पाणीमां.दीवडा मूक Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र ] [ १३५ वामां आवे छे. महाराष्टमां प्रसिद्ध कोल्लुकचक्रपरंपरा - शेरडी पीलवाना कोलनां चकोनो पण निर्देश छे." पालंक ( गुज. पालख ) नुं शाक महाराष्ट्र अने गोल्ल देशमां प्रसिद्ध छे.' महाराष्टमां नग्न साधुनुं चिह्न वधीने एमां कडी नाखवानो रिवाज हतो. महाराष्ट्रमां कल्पपाल - कलालने बहिष्कृत गणवामां आवतो नहोतो; एनी साधे बीजाओ भोजन लई शकता. " नीलकंबल आदि ऊननां वस्त्रो महाराष्ट्र देशमां घणां मोंघां होय छे, छतां शियाळामां साधुओए ए धारण करवां, केम के ए. सिवाय शीतनुं निवारण थतुं नथी." महाराष्ट्रमां भादरवा सुद पडवाना दिवसे 'श्रमणपूजा' नामे उत्सव थतो. एमां लोको साधुओने वहोरावीने अट्टमना उपवासनुं पारणं करता. कालकाचार्ये प्रतिष्ठानमां पर्युषण कर्यु व्यारथी आ उत्सवनो प्रारंभ थयो हतो. १३ १३ १४ ११६ महाराष्ट्रनी भाषाने लगता पण केटलाक उल्लेखो छे. मालवमहाराष्ट्रादि देशप्रसिद्ध विविध भाषाओ बोलवाथी सांभळनारने हास्य उत्पन्न थाय छे." महाराष्ट्रनी भाषामां स्त्रीने 'माउग्गाम, " रूनी पूणीने 'पेलु तथा पूणी बनाववा माटेनी काष्ठशलाकाने 'पेलु - करण" कहे छे. ' दशवैकालिक सूत्र'नी चूर्णि अनुसार, महाराष्ट्रमां संबोधनार्थे ( अण्ण' शब्द चपराय छे; ए बतावे छे के अर्वाचीन मराठी शब्द 'अण्णा'नो प्रयोग ओछामां ओलुं आठमा सैका जेटला प्राचीन काळमां जाय छे. १८ ' चोद्दिति ' अथवा 'कुणिय' जेवा शब्दो बोलनार महाराष्ट्र प्रदेशमा हास्यपात्र थाय छे, " एम 'निशीथचूर्णि' लखे छे. एनो अर्थ एथयो के 'निशीथ चूर्णि' ज्यां रचाई ए प्राचीन गुर्जर देशमां लगभग आठमा सैका सुधी आशब्दो अश्लील गणता नहोता. १. जुओ सम्प्रति. २ प्रन्या ( अधर्मद्वार ), पृ. १४. तेमांनुं अवतरण - xxx इमे य बहवे बहवे मिलक्खू जाती, के ते? सक- जवण - सबर-बर- माय Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ ] [ महाराष्ट्र मुरुड-उद-भडग- तितिय-पक्कणिय - कुलक्ख-गोड सीहल- पारस- कोंचंधदविल- बिलद - पुलिंद - अरोस - डोव - पोकण - गंधहारग-बहलीय-जल- रोममास - बउस मलया - चंचुया य चूलिया कोंकणगा मेत- पण्डव- मालव-महुरआमासिया अणक- चीण-ल्हा सिय-खस खासिया - नेहुर- मरहट्ठ- मुट्ठिअआरब-डोबिलग- कुहण - केकय-हूण- रोमग हरु- मरुणा चिलासविसयवासी य पारमतिणो xxx आ उपरांत ' प्रज्ञापना सूत्र (पद १, सू ३७ ) पत्र ५४ मां म्लेच्छ जातिओनी एक यादी छे, पण एमां ' मरहट्ट' नथी. > ३ अनु, पृ १४३ ४. अंध अकूरमययं अवि य मरहट्टयं अवगिलं । कोसलयं अपावं सएस एकं न पेच्छामो ॥ व्यभा, गा. १२६ रुय्यकना अलंकार सर्वस्व ( ई. स. नो १२ मो सैको ) मां व्याजस्तुति अलंकारना उदाहरण तरीके आपेला एक श्लोकमां दाक्षिणात्यनी प्रकृतिमुखरतानो उल्लेख छे, एम ठोकनो कर्ता पोते दाक्षिणात्य जणाय छे- कि वृत्तान्तैः परगृहगतैः किं तु नाहं समर्थस्तूष्णीं स्थातुं प्रकृतिमुखरी दाक्षिणात्यः स्वभावः । गेहे गेहे विपणिषु तथा चत्वरे पानगोष्ठयामुन्मत्तेव भ्रमति भवतो वल्लभा हन्त कीर्त्तिः ॥ ' ५ निचू ( भा. गा ११४७ उपर ), भाग २, पृ. २५७; 'बृकक्षे, भाग ३, पृ. ९२१ ६ निचू, भाग ५, पृ. ११५३ ७ बृकम, भाग १, पृ. १६७ ८ बृकक्षे, भाग २, पृ. ३०३. गोल्ल देश ए गंतुर जिल्लामां गल्ला नदीने किनारे आवेल गोली आसपासनो प्रदेश छे एवो केटलाक विद्वानोनो मत छे ( जैन, 'लाइफ इन एन्श्यन्ट इन्डिया' पृ. २८६ ). आ विशे कदाच मतभेद संभवे तोषण गोल्ल देश दक्षिणमां होवा विशे शंका नथी, केमके ए शब्द ज द्राविड भाषानो छे. तामिल अने कन्नडम 'गोल्ल ' नो अर्थ ' भरवाड ' थाय छे. चंद्रगुप्तनो गुरु चाणक्य मोल देशना चणक नामे गामनो वतनी हतो साहित्यमा छे (जुओ ' अभिधान राजेन्द्र,' ? एवा उल्लेखो आगमभाग २, पृ. १०११). Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यमिका ] [१३७ चौलुक्ययुगना गुजरातना शिलालेखो अने साहित्यमां वणिकोनी एक 'गल्लक' जातिनो उल्लेख छे, एनो संबंध दक्षिण भारत साथे हशे ? ९ महाराष्ट्रविषये सागारिकं विद्वा तत्र विण्टकः प्रक्षिप्यते, बृकक्षे, भाग ३, पृ. ७३० यद्वा कस्यापि महाराष्ट्रादिविषयोत्पन्नस्य साधोरङ्गादानं वेण्टकविद्धं, ततस्तद् दृष्ट्वा ब्रुवते-कथं नु नामासौ साधुधर्म न करिष्यति यस्थेयन्तः कर्णा विद्धाः ? ए ज, भाग ३, पृ. ७४१ १० ए ज, भाग २, पृ. ३८३-८४ ११ ए ज, भाग ४, पृ. १०७४ १२ निचू, भाग २, पृ. ६३३ १३ जुओ कालकाचार्य-२. १३ बृकक्षे, भाग ६, पृ. १६७० १५ निचू, भाग ३, पृ. ४४६ १६ विको, पृ. ९२२ १७ एज १८ दवैचू , पृ. २५० १९ निचू, भाग ३, पृ. ५५५ महिरावण कोंकणनी कोई नदी. जुओ डिम्मरेलक मात्स्यिक मल्ल ___सोपारकनो एक मल्ल, जेने उज्जयिनीना अट्टण मल्लने हाथे तालीम पामेला फलही मल्ले पराजित कर्यो हतो. जुओ अट्टण माध्यमिका माध्यमिका नगरीनो उल्लेख 'विपाक सूत्र 'मां छे.' Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८] [ माध्यमिका. .....चितोडनी दक्षिणे आवेलं 'नागरी' नामे स्थान माध्यमिका छे एवो विद्वानोनो मत छे. हाल पण माध्यमिकामां केटलाक विरल प्राचीन अवशेषो छे. १ विसू, २-५ २ ज्योडि, पृ. ११६ मालव-१ एक अनार्य जाति, जेना नाम उपरथी अवन्ति जनपद मालब तरीके प्रसिद्ध थयो.' आगमसाहित्यमां 'मालव' जातिने ' म्लेच्छ जाति' तथा ' मालव ' देशने ' म्लेच्छ देश' कह्यो छे. आ मालव म्लेच्छो पर्वतमाळाओमा रहेता अने वस्तीमां आवोने माणसोनुं हरण करी जता. 'निशीथचूर्णि' कहे छे के तेओ मालव नामना पर्वत उपर विषम प्रवेशमा रहेता.' केटलाक ग्रन्थोमां — मालब' तेम ज 'बोधिक 'ने अभिन्न गण्या छे तथा तेओना आक्रमणनो भय आवी पडतां शीघ्र देशान्तर करवु एवं सूचन करेलं छे. मालवने ' स्तेन 'चोर तेम ज ‘उज्जयिनीतस्कर" कह्या छे. आ बीजा विशेषण उपरथी तेओ उज्जयिनी आसपासना प्रदेश उपर वारंवार आक्रमण करता ए हकीकत सूचित थाय छे. उज्जयिनीना एक श्रावकपुत्रने चोर हरी गया हता अने तेने ' मालवक '-मालवदेशमा सूपकारने त्यां वेच्यों हतो, एवं कथानक मळे छे. मालब जातिना आक्रमणकारोनी उज्जयिनीमां केटलो धाक हती एजें एक विशिष्ट दृष्टान्त ' ओधनियुक्ति 'ना भाष्यमा छे, जेनुं स्पष्टीकरण द्रोणाचार्यनी टीका करे छे. ए दृष्टान्त वास्तविक न होय तो पण परिस्थितिनुं द्योतक तो अवश्य छे. द्रोणाचार्य लखे छः उज्जयिनीमां वारंवार मालवोनु आक्रमण थतुं अने तेओ मनुष्योने हरी जता. एक वार कूवामां रहेंटनी माळा पडी गई ( माला पतिता); कोई बोल्यु के ' माळा पडी.' बीजो कोई संभ्रममा एम समज्यो के Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालव-१] [१३९ 'मालवो आव्या छे' ( मालवाः पतिताः ); अने एम नासभाग थई रही.” अणसमजुने भडकाववा माटे पण ' मालवस्तेन आव्या छे !' (मालवतेणा पडिया ) एम कोई बोलतुं एवो निर्देश मळे छे." आ उल्लेखो बतावे छे के बोल चालनी प्राकृतमा 'मालवाः' ने 'माला' पण कहेता हशे. 'ओघनियुक्ति ' ( गा. २६) मां — सुभिए मालुज्जेणी पलायणे जो जओ तुरियं' ए प्रमाणे 'मालव' ने बदले 'माल' नो उल्लेख छे, ते पण आ अनुमाननुं समर्थन करे छे. हवे बीजी तरफ जोईए तो, संस्कृतमां ( अने केटलीक अर्वाचीन भारतीय भाषाओमां) 'माल' शब्दनो अर्थ 'घरनो उपरनो भाग' थाय छे. बंगाळीमां 'मालभूमि 'नो अर्थ 'पार्वत्य भूमि, उच्च प्रदेश' थाय छे, अने पश्चिम बंगाळना — मालभूम' नामना डुंगराळ जिल्लामा रहेती एक आदिवासी जाति पण 'माल' जाति कहेवाय छे. प्राचीन गुर्जर देशना पाटनगर 'भिल्लमाल 'ना उत्तर अंगमां — माल 'नो संबंध पण ए माल जाति साथे होय ए शक्य छे.. ___ कोई वार समयसूचकतावाळा माणसो हिंमत करीने आ लुटाराने केवी रोते पराजित करता एना पण उल्लेख छः कोई गाम उपर मालवशबरोना सैन्ये आक्रमण कयु हतुं. एमांना केटलाक बोधिकोए केटलीक साध्वीओनुं तथा एक क्षुल्लक-नाना साधुनुं अपहरण कयु. ए चोरो पोतानामांथी एकने साध्वीओ तथा क्षुल्लकनी सोंपणी करीने बीजांनु हरण करवा माटे गया. हवे, ए एक चोर तरस्यो थतां पाणी पोवा माटे कूवामां ऊतयों, क्षुल्लके विचार कयों के ' अमने आटलां बधांने आ एक चोर शुं करी शकवानो छ ?' तेणे साध्वीओने कह्यु के 'आपणे आ चोर उपर पाषाणपुंज नाखोए.' साध्वीओए गभराईने ना पाडी, परन्तु क्षुल्लके तो एक मोटो पत्थर पेला चोर उपर नाख्यो, एटले बधी साध्योओए पण. एक साथे पथ्थरो नाख्या. एनाथी चोर मरण पाम्यो, अने क्षुल्लक साध्वोओने लईने सुरक्षित स्थळे गयो.१२ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४०] [ मालव-१ ____ आ मालवो ज्यारे पकडाता त्यारे तेमने हेडमां नाखवामां आवता." मालवो स्वभावथी ज परुष वाणी बोलनारा हता एवो उल्लेख छ.१४ मालवो ( मालोइ' )ना जे गणसत्ताक राज्यनो सिकंदरनी सवारीना काळे ( ई. स. पूर्वे चोथो सैको) निर्देश छे ते पंजाबमां मुलताननी आसपास आवेलु हतुं एवो विद्वानोनो मत छे." आगमसाहित्यनो मालवदेश एनाथो अभिन्न छे के केम ए निश्चितपणे कहेवू मुश्केल छे. परन्तु पोताना मूळ प्रदेशमाथी पर्यटन करता मालवो उज्जयिनी आसपासनां जंगलोमां आव्या हशे अने त्यांथी उज्जयिनी अने अवन्ति जनपदना प्रदेशमा चोरी, लूंट अने मनुष्यहरण करता हशे, अने कालक्रमे आ जातिनुं वर्चस वधतां अवंतिने पण 'मालव' नाम मळ्यु हशे. जुओ अवन्ति, उज्जयिनी, बोधिक, मथुरा १ जुओ उज्जयिनी. २ प्रव्या, पृ. १४; प्रसू, पृ. ५४. वळी जुओ सूकृशी, पृ. १२३, २७७. ३ द्वितीयभङ्गे आर्यदेशे मालवनामकम्लेच्छदेशेन, व्यम, भाग ३, पृ. १२२ ४ ‘बोहिगा' मालवादिमेच्छा, ते पव्वयमालेसु ठिया माणुसाणि हरंति, निचू, भाग ५, पृ. १११० मालवा म्लेच्छविशेषाः शरीरापहारिणः...व्यम ( उद्दे० ४ उपरनी वृत्ति), पृ. १३ ५ मालवगो पव्यतो तस्सुवरिं विसमते तेणया वसंति, ते मालवतेणा । निचू, भाग २, पृ. २९० ६ बोधिकाः मालवस्तेनाः, म्लेच्छाः पारसीकादयः तदादीनां भये समुपस्थिते शीघ्र देशान्तरं गन्तव्यम् । बृका, भाग ३, पृ. ८८० क्वचित् प्रामे मालबशबरानीकमापतितम् । तत्र कैश्चिद् बोधिकै Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालव-२) [ १४२ श्चौरैरार्यिकाणामेकस्य च क्षुल्लकस्य हरणं कृतम् । व्यम ( उद्दे० ७ उपरनी वृत्ति), पृ. ७१ बोधिक अने मालवनी अभिन्नता संबंधमा वळी जुओ टि. ४. ७ जीकमा, गा. ९३३ ८ मालवा-उज्जयिनीतस्कराः । जीकचूल्या, पृ. ४३ ९ उज्जेणीए सावगस्स सुतो चोरेहिं हरिउं मालवके सूयगारस्स हत्थे विकीतो, उचू, पृ. १७४ उज्जेणीए सावगसुतो चोरेहिं हरिउँ मालवके सूयगारस्स हत्ये विकीतो, उशा, पृ. २९४. आचू (उत्तर भाग, पृ. २८३ ) मां मालव देशनो उल्लेख नथी, पण उज्जयिनीमांथी छोकराओने मालवो उपाढी गया इता अने एमांथी श्रावकना छोकराने रसोयाए खरीद्यो हतो, एम कथु छे. १० ओनिभा, गा. २६; ओनिद्रो, पृ. १९ ११ निचू, भाग २, पृ. २९. १२ व्यभा, गा. ४११; ब्यम ( उ० ७ उपरनी वृत्ति ), पृ. ७१ १३ प्रायेण जिगलरंधो हडिबंधणादिणा विवरेण करेति, बहा मालवाण, सूकृचू, पृ. ३६४ ६४ द्रव्यतो नाम-न दुष्टभावतया परुष भणन्ति किन्तु तत्स्वाभाव्यात् , यथा मालवाः परुषवाक्या भवन्ति । बृकक्षे, भाग ६, पृ. १६१९ १५ ज्योडि, पृ. १२२. जैन आगमसाहित्य सिवायनां सापनोमांथी प्राप्त थता मालव जातिना वृत्तान्त माटे जुओ ‘टाइन्स हन अन्श्यन्ट इन्डिया, पृ. ६०-६५. मालव-२ मध्य भारतनो माळवा प्रान्त. 'अनुयोगद्वार सूत्र'मां क्षेत्रसंयोगनी वात करतां मागध, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र अने कोंकणनी साथे मालवकनो उल्लेख कर्यों छे.' स्पष्ट छे के अहीं 'मालवक' वडे जंगली मालवजातिना मूळ पहाडी वतननो नहि, पण संभवतः अत्यारना माळवा प्रान्तनो निर्देश छे (जुओ मालव-१). ए रीते 'अनुयोगद्वार सूत्र'ना Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ ] [ मालब-२ २ रचनाकाले अवन्ति जनपद माटे 'मालव' नाम प्रचारमां होवुं जोईए एवं अनुमान करी शकाय.' 'कल्पसूत्र'नी विविध टीकाओमां आपेलां 'राज्यदेशनाम' मां मालव पण छे. ए मालवमां 'मंडक'- मांडा नामनो खाद्य पदार्थ प्रसिद्ध छे. मालवादिमां मसूर धान्यने 'चवलग' कहेवामां आवे छे." मसूर अने तुवेर बे धान्या माळवामां जाणोतां छे. त्रिपुटक ए पण माळवामां प्रसिद्ध धान्यविशेष छे. अळसी तथा एमांथी बनतुं वस्त्र ए बन्ने माळवामां जाणीतां छे.' 'मन होय तो माळवे जवाय' एम माळवानुं दूरत्व सूचवती कहेवत गुजरातीमां छे, एनी साथै सरखावी शकाय एवो एक श्लोक 'कल्पसूत्र'नी केटलीक टीकाओमां छे. इन्द्रभूति, जेओ पछीथी महावीरना प्रथम गणधर थाना छे तेओ महावीर पासे वाद करवा माटे जतां पोतानी विद्वत्ता विशे अभिमानपूर्वक कहे छे : यमस्य मालवो दूरे किं स्थात् को वा वचस्विनः । अपोषितो रसो नूनं किमजेयं च चक्रिणः ॥ ( यमने माटे माळवा शुं दूर छे ? वचस्वी पुरुष कया रसनुं पोषण करतो नथी ? चक्रधारी विष्णु माटे खरेखर शुं अजेय छे ? ) जुओ अवन्ति, उज्जयिनी १ अनु, पृ. १४३ २ जुओ उज्जयिनी. ३ जओ गुर्जर. ४ विनिम, पृ. ७३ ५ दवैचू, पृ. २१२ ६ श्रार, १९९ ● ए अ ८ निच, भाग पृ. २३६; आम, पृ. २६५; अनुहे, पृ. ३५ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहेश्वरी] [१४३ ९ कसु, पृ. ३९९; कदी, पृ. १०४ माहेश्वर ____ जुओ माहेश्वरी माहेश्वरी माहेश्वरीनी स्थापना विशेनी कथा आ प्रमाणे छः पोतनपुरना राजा प्रजापतिने भद्रा नामे राणीथी अचल नामे पुत्र थयो हतो. अचल बलदेव हतो प्रजापतिए पोतानी मृगावती नामे पुत्री साथे गान्धर्वविवाह को हतो; आथी भद्रा पोताना पुत्र अचल साथे दक्षिणापथ चाली गई हती अने त्यां तेणे माहेश्वरी नामे नगरो वसावी हती. ए नगरी मोटा औश्वर्यवाळी होवाथी माहेश्वरी (प्रा. माहेस्सरी) कहेवाती हती. अचल पोतानी माताने ए नगर सोपोने पाछो पितानी पासे गयो हतो.' __ माहेश्वर, श्रीमाल अने उज्जयिनीमां लोको समूहमा एकत्र थईने सुरापान करे छे एवो उल्लेख मळे छे. पुरिकापुरीना बौद्ध राजाए पर्युषण पर्वमा जिनपूजामां पुष्पोनो निषेध कर्यो हतो, तेथी वज्रस्वामी आकाशमार्गे माहेश्वरी जईने पोताना पिताना मित्र एक माळी पासेथी पुष्पो लाव्या हता.' ___ माहेश्वरी एज कार्तवीर्यनी माहिष्मती छे अने ते इन्दोरनी दक्षिणे चाळीस माईल दूर नर्मदाकिनारे आवेल महेश्वर अथवा महेश छे, एवो सामान्य मत छे. पण नर्मदातटे आवेल मान्धाताने पण माहिमती गणवामां आवे छे, ज्यारे श्री. क. मा. मुनशीना मत प्रमाणे हालनु भरूच ते ज कार्तवीर्यनी माहिष्मती छे. १ माचू, पूर्व भाग, पृ. २३२ २ आसूचू , पृ. ३३३. वळी जुओ उज्जयिनी. . ३ कसु, पृ. ५११-१३; ककि, पृ. १७०-७१ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ ] ४ ज्याडि, पृ १२० ५ पुगु, पृ. १६० ८ अतिहासिक संशोधन, पृ. ५६१ मूलदेव " एक प्रसिद्ध विट अने धूर्त, जे पाछळथी वेणातट नगरनो राजा थयो हतो. 'उत्तराध्ययन सूत्र 'नी चूर्णि तथा ते उपरनी शान्तिसूरि अने नेमिचन्द्र वृत्तिओमां मूलदेवनो वृत्तान्त प्रमाणमां विस्तारथी अने विगतथी आपेलो छे. चूर्णि अने शान्तिसूरि अनुसार, मूलदेव उज्जयिनीनो विट हतो. ( नेमिचन्द्रनाकथन मुजब मूलदेव पाटलिपुत्रनो राजकुमार हतो अने पोताना पिताथी रिसाईने उज्जयिनीमां आवीने रह्यो हतो. ) ते एक मोटो धतकार होवा उपरांत गीतकला अने मर्दनकलामां पण निपुण हतो. उज्जयिनीनी एक सुप्रसिद्ध गणिका देवदत्ता तेनी साथै प्रेममां पडी हती, परन्तु गणिकानी माता अचल नामे बोजा एक धनिक वणिकनो पक्ष करती होवाने कारणे मूलदेवने उज्जयिनी छोडीने चाल्यां जवुं पड्युं हतुं पछी ए दक्षिणमां आवेला वेणातट नगरमां जईने रह्यो . त्यां कोईना घरमा खातर पाडतो हतो त्यारे नगररक्षकोए एने पकड़ी लीधो अने वधस्थान उपर लई जवा मांड्यो. ए दिवसे नगरनो राजा अपुत्र मरण पाम्यो हतो. मंत्रीओ नवा राजानी शोधमां हता. ए माटे अधिवासित करेलो अश्व मूलदेव पासे आवी ऊभो. ( नेमिचन्द्रना कथन मुजब, मूलदेवने जोईने हाथीए गर्जना करी, अश्वे हेपारव कर्यो, भृंगारे अभिषेक कर्यो, चामरे वीजन कयुँ, अने कमळ तेनो उपर आवी रह्युं; ए प्रमाणे पांच दिव्य थयां . ) एटले तेनो राजा तरीके अभिषेक थयो. पछी मूलदेवे उज्जयिनीना विक्रम राजा उपर पत्र लखीने तथा अनेक प्रकारनों भेट मोकलीने देवदत्ता गणिका पोताने सोपवानी विनंति करी, अने विक्रम राजाए देवदत्तानी इच्छा जाण्या पछी, ते कबूल राखी. मूलदेव देवदत्तानी साथै सुखपूर्वक रहेवा लाग्यो. ए समये मंडिक नामे एक [ मूलदेष Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूलदेव ] चोर दिवसे लंगडा तूनारा तरीके रहेतो ने रात्रे शहेरमा खातर पाडीने - लोकोने त्रास आपतो. एक वारना चोर मूलदेवे युक्तिप्रयुक्तिथी मंडिकने पकडयो अने तेनी पासेनुं बधुं द्रव्य लई लीधा पछी एने शूळोए चढाव्यो.' 'व्यवहारसूत्र 'नां भाष्य तथा वृत्तिमां मूलदेवना राज्याभिषेकनो वृत्तान्त संक्षेपमां अने सहेज जुदी रीते आप्यो छे. वळी त्यां नगरनु नाम पण नथी. चोरी करतां पकडायेला मूलदेवनो वध करवानी राजाए आज्ञा करी हती, पण ए पछी तुरत ज राजा एकाएक मरण पाम्यो. राजा अपुत्र हतो, तेथी एनी पछी कोनो राज्याभिषेक करवो ए प्रश्न उपस्थित थयो. वैद्य अने मंत्रीए राजाना मरणनी बात गुप्त राखीने तथा राजा बोली शकता नथी एम जणावी, पडदामाथी राजानो हाथ लाबो करावी तेओ मूलदेवना अभिषेकनी सूचना करता होवार्नु जणाव्यु. पछी एक वारनो आ चोर राजा थयो होवाथी सामंतो तेनुं योग्य सन्मान करता नहोता. राजदरबारमा पोतानी उपेक्षा करता सामंतोने जोईने मूलदेव बोल्यो के ' मारी आज्ञा पाळनार कोई छे के नहि !' ए समये तेना पुण्यप्रभावथी राज्यदेवता वडे अधिष्ठित श्रयेला चित्रमय प्रतीहारोए केटला ये सामंतोनां माथां कापी नाख्यां. आथी बाकीना सामंतो ताबे थई गया.' ____ आचार्य हरिभद्रसूरिए (वि. सं. ७५७-८२७ ई. स. ७०१७७१) नर्म अने कटाक्षथी भरेलु 'धूर्ताख्यान' नामे एक प्राकृत कथानक रच्यु छे, जेमां मूलदेव एक पात्र तरीके आवे छे. आ धूर्ताख्याननुं वस्तु 'निशीथ सूत्र'नां भाष्य अने चूर्णिमा मळे छे. एमां मूलदेव, एलाबाद, अने शश ए त्रण धूर्ती तथा खंडपाना नामे धूर्तानी वात छे. एमांना प्रत्येक धूतनी साथे बोजा पांचसो धूर्तो अने खंडपानानी साथे पांचसो धूर्ताओ हती. एक वार भरचोमासामा उज्जयिनीनी उत्तरे आवेला जीर्णोद्यानमा ए बधां ठंडीथी थरथरतां भूखे मरतां बेठां हतां त्यार मूलदेवे एम का के Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ ] [ मूलदेव 'आपणे दरेके पोतपोताना अनुभवो कहेवा, अने जेना अनुभवो खोटा पुरवार थाय तेणे आ धूर्तमंडळीने भोजन आपq.' एमां त्रणे धूर्तानी न मानी शकाय एवी वातोने पण बीजाओए ब्राह्मण शास्त्रपुराणोमांनी ए प्रकारनी कथाओ रजू करी समर्थन आप्यु. आ पछी हरिभद्रसूरिना ‘धूर्ताख्यान 'मां एम आवे छे के-खंडपानानी वातने कोई साची के खोटी कही शक्यु नहि; सर्वेए हार स्वीकारी, अने पछी सौनी विनंतिथी खंडपानाए पोते भोजन पण आप्युं. पण ए बधु नहि वर्णवतां 'निशीथ चूर्णि' तो ' सेसं धुत्तक्खाणाणुसारेण णेयं (बाकी- 'धूर्ताख्यान' प्रमाणे जाणी लेवू) एम कहीने वात पूरी करी ले छे. 'निशीथचूर्णि 'नो समय पण ईसवी सनना सातमा सैकाथी अर्वाचीन नथी, एटले ते जे 'धूर्ताख्यान 'नो उल्लेख कर छे ते हरिभद्रसूरिकृत होवानो संभव नथी. कां तो चूर्णिकार पासे बीजं कोई प्राचीनतर प्राकृत 'धूर्ताख्यान' होय अथवा आ धूर्तीनी लोकप्रचलित कथा जे पण 'धूर्ताख्यान' कहेवाती होय, एनो उल्लेख तेमणे को होय. ___ 'आवश्यक सूत्र 'नी चूर्णि' अने वृत्तिमा मूलदेवना मित्र तरीके कंडरीकनुं नाम छे, जे हरिभद्रसूरिना 'धूर्ताख्यान 'मां एक पात्र तरीके छे. मूलदेवनां विदग्धता, धूर्तता अने बुद्धिचातुर्यनी कथाओ पण आगमसाहित्यमा अनेक स्थळे छे. एक ठेकाणे बुद्धिवान पुरुषने 'मूलदेव जेवो' कह्यो छे. प्राचीन भारतनी लोककथामां अमर बनेलो आ मूलदेव खरेखर तिहासिक व्यक्ति हशे एवो डॉ. विन्टरनित्सनो मत छे; जो के मूलदेव विशेनी बधी वार्ताओ अतिहासिक हशे एवं कई एमाथी फलित थतुं नथी. आगमेतर तेम ज जैनेतर संस्कृत-प्राकृत साहित्यमा मूलदेव विशेनां कथानको तथा एना मित्रोने लगता उल्लेखो संख्याबंध छे. शूद्रक कविना ' पद्मप्राभृतक भाण 'मां मूलदेव अने देवसेना ( देव Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलदेव ] [ १४७ दत्ता ) नी प्रणयकथा आवे छे तथा ए भाणनो प्रवक्ता मूलदेवनो मित्र शश छे. मूलदेवनुं 'कर्णीसुत' एवं नाम पण एमां छे. महाकवि बानी ' कादंबरी 'मां विन्ध्याटवीना वर्णनमां एक लिट वाक्यखंडमां कर्णीसुत (मूलदेव) अने तेना ऋण मित्रो - विपुल, अचल अने शरानो उल्लेख छे. काश्मीरी सोमदेव भट्टकृत ' कथासरित्सागर 'ना 'विषमशील लंबक 'नो छेल्ली वार्तामा - ' स्त्रीमात्र कंई नठारी होती नथी. बधे कई विषवल्लीओ होती नथी; अतिमुक्तलता जेवी आत्रने वळगनारी वेलोओ पण होय छे' – ए सूत्र पुरवार करवा माटे मूलदेव पोताना ज रंगीला जीवननो एक प्रसंग राजा विक्रमादित्यने कही संभळावे छे, एमां पण मूलदेवनी साथे एनो मित्र शश छे. सं. १२५५ई. स. ११९९ मां रचायेलं पूर्णभद्र मुनिनुं ' पंचाख्यान', जे 'पंचतंत्र 'नुं ज एक अलंकृत संस्करण छे तेमां ( तंत्र १, कथा १० ) मूलदेव विशेनो एक रसप्रद उल्लेख छे: एक राजानी पथारीपां जू रहेती हती त्यां आवीने एक माकणे पण पोताने रहेवा देवानी विनंति करी. " जूए दाक्षिण्यथी माकणनी विनंति स्वीकारी, कारण के एक वार राजाने मूलदेवनं कथानक कहेवामां आवतुं हतुं त्यारे चादरना एक भागमा रहेली जूए ते सांभळ्युं हतुं. एमां मूलदेवे देवदत्ता गणिकाने कां हतुं के 'पगमां पडीने करेली विनंति पण जे मानतो नथी तेना उपर ब्रह्मा, विष्णु अने महादेव त्रणे कोपायमान थाय छे.' ए वचन संभारीने जूए माकणनी विनंति स्वीकारी. " एक प्रकारनी गुप्त सांकेतिक भाषा मूलदेवप्रणीत होवाने कारणे 'मृलदेवी' नामथी ओळखाती (जुओ कोऊहल- कृत 'लीलावईकहा 'नुं संस्कृत टिप्पण, पृ. २८ ). बळी मूलदेवने स्तेयशास्त्र अथवा चोरशात्रनो प्रवर्तक मानवामां आवे छे." एने मूल श्री, मूलभद्र, करटक, कलांकुर, खरपट, कर्णीसुत आदि नामोथी संस्कृत साहित्यमां ओळखवामां आवे छे. ईसवी सनना Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ [ मूलदेव सातमा शतकना पूर्वार्धमा थयेला महेन्द्रविक्रमवर्माकृत 'मत्तविलास प्रहसन' (पृ. १५ )मा 'खरपटने नमस्कार एम कहो, जेणे चोरशास्त्र रच्यु !' एवो उल्लेख छे. दंडीना 'दशकुमारचरित ' ( उच्छ्वास २)मां चोरीनो धंधो स्वीकारनार एक पात्र ‘कर्णीसुते उपदेशेला मार्गमां में बुद्धि चलावी!' एम कहे छे. आ लाक्षणिक उदाहरणोथी ए स्पष्ट थशे के जेनी आसपास लोकप्रिय वार्ताचको रचायां छे एवां थोडांक विचित्र अने विलक्षण पात्रो पैकीनो एक मूलदेव छे. साहस, विदग्धता अने मुक्त प्रणयमां राचती जे सष्टि 'दशकुमारचरित ' जेवी प्राचीन कथाओना नायको रजू करे छे तेनो ज एक विशिष्ट प्रतिनिधि आ मूलदेव पण छे. एनी अने एना मित्रोनी कथाओ जेम जैन साहित्यमा छे तेम जैनेतर साहित्यमां पण छे, ए बतावे छे के वत्सराज उदयननी जीवनकथानी जेम मूलदेव विशेनी वातो पण प्राचीन भारतीय कथासाहित्य- एक जीवंत अंग हतुं. १ उचू, पृ. ११८-२१; उशा, पृ. २१८-२२; उने, पृ. ५९-६५ २ व्यभा, गा. १६८-६९; प्यम ( उ० ४) नी वृत्ति, पृ. ३२ ३ हरिभद्रसूरिकृत 'धूर्ताख्यान ' मां आ ऋण उपरांत कंडरीक नामे चोथो धूर्त छे. ४ निभा, गा. २९४; निच् , भाग १, पृ. ९३-९५ ५ आचू, पूर्व भाग, पृ. ५४९ ६ आम, पृ. ५२१ • आचू, पूर्व भाग, पृ. ५४९; आम, पृ. ५२१; दवैचू , पृ. ५५-५६, दवैहा, पृ. ५७-५८, इत्यादि. तत्थ य एगो मूलदेवसरिसो मणुस्सो आगच्छइ. दवैचू, पृ. ५८ ९ 'हिस्टरी ऑफ इन्डियन लिटरेचर,' भाग २, पृ. ४८८ १० मा विशे वधु विस्तार माटे जुओ 'कुमार' ना ३०० मा Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ येवन अंकमां मारो लेख प्राचीन साहित्यमा चोरशास्त्र.' मेदपाट मेवाड. मूयक नामे तृणविशेष मेवाडमा प्रसिद्ध छे.' १ प्रध्याअ, पृ. १२७ मोढेरक ___ उत्तर गुजरातनु मोढेरा. मोढेरक आहारनो उल्लेख ' सूत्रकृतांगसूत्र 'नी वृत्तिमा छे.' ए ज सूत्रनी चूर्णिमां मोढेरकनो ए प्रकारनो उल्लेख छे, जेथी ए एक महत्त्व- स्थळ होवानुं सिद्ध थाय छे.' पुराणोमां आ नगर- ' मोहेरक ' एवं नाम मळे छे.' १ सूकशी, पृ. ३४३. जुओ खेट आहार. २ महा पुट्ठो केणइ-केसि तुम मोढेरगातो आगतो भवान् ? सो भणइ-गाहं मोढेरगातो, भवप्रामायातो- । सूकचू, पृ. ३४८ __३ जुओ पुगु मा मोहेरक. मोढेराना इतिहास माटे जुओ श्री. मणिलाल मू. मिस्त्रीकृत पुस्तिका - मोढेरा.' ___ जुओ यवन यवन ... मथुरानो एक राजा. प्राकृत्तमा एनुं नाम जउण, जबुण अथवा जउणसेण मळे छे. एना मंत्री- नाम चित्तप्रिय हतुं.' ए रामा विशे आवी कथा छ: 'जउणाक' नामे उद्यानमां भातापमा लेता दंड नामे अणगारनो ए राजाए वध कर्यो हतो. दंड अणगार काळ करीने सिद्धिमां गया. तेमनो महिमा करवा आवेला इन्द्रे राजाने का के 'तुं दीक्षा लईश तो ज आ पापथी मुक्त थईश.' पछी राजाए स्थविरों पासे दीक्षा लीधी... जउण, जवुण आदि संस्कृत रूप ' अभियानराजेन्द्र' (ग्रन्थ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० ] [ यवन " ४ ) तथा ' पाइअ - सह - महण्णवो 'ए सूचव्युं छे ते प्रमाणे ' यमुन एवं पण जो के आपी शकाय तथा मथुरा नगर यमुना नदीना तटे बसेलुं होई त्यांना राजाने पण 'यमुन' नाम आपवामां आवे एमां एक प्रकारनुं कथोचित सारल्य जणाय छे खरं, परन्तु मने एनी 'यवन' एवी छाया वधारे उचित लागे छे. मथुरामां एक काळे यवन अर्थात् ग्रीक राजाओनुं राज्य हतुं ए इतिहाससिद्ध छे. एवो कोई परदेशी राजा धार्मिक असहिष्णुताथी प्रेराई जैन साधुनो वध करे ए पण संभवित छे. आगमसाहित्यमा आ राजाने 'परपक्ष ' नो कह्यो छे, एथी एनं परदेशीपणुं सूचवाय छे एम समजवुं ? विको, पृ २९४ < २ आचू, उत्तर भाग, पृ. १५५. ' विविध तीर्थकल्प ' (पृ. १९) म आ प्रसंगनो निर्देश छे, त्यां राजानुं नाम ' वंकजण ' आप्युं छे अने राजाए साधु उपर घा करतां साधुने केवल ज्ञान थयुं एम कह्युं छे. ३ परपक्खो उ सपक्खे भइतो जह होइ जउणराया तु । तं पुण अतिसयणाणी दिक्खंतधिकारणं नाउं ॥ परपक्खो सपक्खे दुहो जहा मधुराए मउणराया, निचू (उ० ११ ), पृ. ७४३ मथुरा नगरी नवणो राया, यवुणावकं उज्जाणं, आचू, उत्तर भाग, पृ. १५५ निभा, गा. ३६७२ महराए जणसेणो राया, चित्तप्पिओ य से मंती, विको, पृ. २९४ यशोदेवरि चंद्रगच्छना वीरगणिना शिष्य श्रीचन्द्रसूरिना शिष्य. एमणे सं. १९८० = ई. स. ११९२४ मां जयसिंहना राज्यमा अहिल -- वाडमां सौवर्णिक नेमिचन्द्रनी पौषधशाळामां रहीने पाक्षिक सूत्र 1 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यौगन्धरायण . उपर 'सुखावबोधा' नामे वृत्ति रची हती.' यशोदेवसूरिए संख्याबंध आगमेतर धार्मिक ग्रन्थो उपर पण टीकाओ लखी छे.' १ पाय, प्रशस्ति २ जैसाइ, पृ. २४४ यादव यदुना वंशजो,' जेओ प्रथम शौरिपुरमां अने पछी द्वारकामा वसता हता. १ जैन साहित्य अनुसार यदुना वंशवृक्ष माटे जुओ जैन, अन्श्यन्ट इन्डिया, पृ. ३७६ यौगन्धरायण वत्सराज उदयननो मंत्री. अवंतिना राजा प्रद्योते उदयनने केद पकड्यो हतो, एने छोडाववानो प्रयत्न करतो यौगंधरायण उज्जयिनी आव्यो हतो. उदयन अने वासवदत्ताने हाथणी उपर बेसाडीने नसाडवानी योजना तेणे विचारी, अने पछी ए योजना परत्वे पोताना बुद्विवैभवनुं अभिमान नहि जीरवी शकायाथी मागें जतां ते एक श्लोक बोल्यो के यदि तां चैव तां चैव तां चैवायतलोचनाम् । न हरामि नृपस्यार्थे नाहं यौगन्धरायणः ॥ एज समये नगरमा फरवा नीकळेला प्रद्योत राजाए आ शब्दो सांभळ्या अने कुद्ध दृष्टिथी एनी सामे जोयु. पण यौगंधरायणे गांडपणनो देखाव कों, एटले प्रद्योत पोताना कोपनो निग्रह करोने चाल्यो गयो. थोडा समय पछो वत्सराज अने वासवदत्ता उज्जयिनीथी कौशांबी चाल्यां गयां अने घणो प्रयत्न करवा छतां प्रद्योत एमने पकड़ी शक्यो नहि.' Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२] [ यौगन्धरायण ___ अहो ए नोंध, रसप्रद थशे के उपर टांकेलो “यदि तां चैव०" ए श्लोक नजीवा पाठांतर साथे, भासना 'नतिज्ञायोगंधरायण' नाटक ( अंक ३, श्लो. ८ ) मां यौगंधरायणना मुखमां मुकायेलो छे. एक ज जीवंत, लोकप्रिय वस्तुनो जुदी जुदी परंपराओमां केवी रीते विनियोग थयो एनुं आ पण एक रसिक उदाहरण छे. जुओ उदयन, प्रयोत १ आचू , उत्तर भाग, पृ. १६२-६३. जैन परंपरा अनुसार आ आखा ये प्रसंगना रसप्रद वर्णन माटे जुओ हेमचन्द्रकृत 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र,' पर्व १०, सर्ग ११. . रक्षित आर्य ___आर्य रक्षित अथवा रक्षितसूरिनी स्तुति · नंदिसूत्र' नी स्थविरावलीमां अनुयोगोना रक्षक तरीके करेली छे.' आर्य रक्षित दशपुरना राजाना पुरोहित सोमदेवना पुत्र हता. एमनी मातानुं नाम रुद्रसोमा हतुं; तोसलिपुत्र नामे आचार्य जेओ दशपुर आव्या हता तेमनी पासे एमणे दीक्षा लीधी हती. उज्जयिनीमां वनस्वामी पासे जईने तेमणे साडानव पूर्वनो अभ्यास कर्यो हतो, तथा ते पहेलां उज्जयिनीमां एक वृद्ध आचार्य भद्रगुप्तसूरिने अनशननी आराधना करावी हती.' आय रक्षिते एमना पिता सोमदेव अने भाई फल्गुरक्षित सुद्धा आखा कुटुंबने दीक्षित कयु हतुं. तेमना पिता सोमदेव एक याज्ञिक ब्राह्मण होई, पोताने बीजाओ वंदन करे के न करे, पण वस्त्रनो त्याग करवानी विरुद्ध हता. छेवटे तेमणे कटिबनने बदले चोलपट्टक धारण कों हतो. जो के प्रभावकचरित' आदि ग्रन्थो कहे छे के स्वर्गवास पामेला एक मुनिनो मृतदेह व्यारे सोमदेवे उपाड्यो हतो त्यारे एमनुं अधोवस्त्र खेंची लेवामां अव्युं, अने त्यार पछी एमणे वस्त्र धारण कयु नहि.' पूर्व काळमां साधुओने मात्र एक ज पात्र राखवानी छूट हती, Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रक्षित आर्य : आर्य रक्षितसूरिए चोमासाना चार मास माटे पात्र उपरांत एक मात्रक ( नानु पात्र ) राखवानी छूट आपी हतो. आर्य रक्षितसूरिना समय पूर्वे साध्वीओ साध्वीओनी पासे आलोचना लेती, पण एमना समयथी साध्वीओए साधुओनी पासे आलोचना लेवान टयु. आर्य रक्षिते पोतानी पछी गच्छर्नु आधिपत्य दुर्बल पुष्पमित्र नामे साधुने सोप्यु हतुं, आश्री गोष्ठामाहिल नामे बीजा विद्वान मुनि जेओ एमना मामा थता हता तेमने माटुं लाग्युं गोष्ठामाहिल सातमा निह्नव बन्या. एमनो मत ‘अबद्धिक' तरीके जाणीतो छे. -आर्य रक्षितनो जन्म वि. सं. ५२ ई. स. पूर्वे ४ मां, दीक्षा सं. ७४ई. स. १८ मां, युगप्रधानपद सं. ११४ ई. स. ५८ मां अने अवसान सं. १२७ ई. स. ७१ मां थयां हतां." १ 'अभिधान राजेन्द्र,' भाग १, पृ. २१२ २ जुओ दशपुर. ३ जुओ तोसलिपुत्राचार्य ४ जुओ भद्रगुप्ताचार्य तथा वन आर्य. ५ उशा, पृ. ९८; उने, पृ. २३-२५. ६ जुओ ‘परिशिष्ट पर्व ' मां तेरमो सर्ग तथा 'प्रभावकचरित ' मां 'आर्यरक्षितसूरिचरित '. आर्य रक्षितना वृत्तान्त माटे जुओ उनि, गा. ९४-९७; उशा, पृ. ९६-९८; उने, पृ. २३-२५, इत्यादि. एमने विशेना प्रासंगिक उल्लेखो पण आगमसाहित्यमां अनेक स्थळे हे, जेमके-- मस, गा. ४८९; जीकभा, पृ. ५३, ककि, पृ. १७२-७३; कदी, पृ. १५१, इत्यादि - ७ निभा, मा. ४५१४; निचू , भाग ४, पृ. ८८७, न्यम ( उ० : ८ उपरनी वृत्ति), पृ. ४१-४२. ८ व्यम ( उद्दे० ५ उपरनी वृत्ति ), पृ. १६ ९ जुओ गोष्ठामाहिल. ....१० प्रच (अनुवाद), प्रस्तावना, पृ. २१ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ ] [ रत्नशेखरगणि रत्नशेखरगणि - तपागच्छाधिपति सोमसुन्दरसूरिना शिष्य भुवनसुन्दरसूरिना शिष्य. एमणे सं. १४९६ ई. स. १४४०मां श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र' उपर 'अर्थदीपिका' नामे वृत्ति रची छे.' रत्नशेखरनी वृत्तिनो उल्लेख शान्तिचंद्रे · जंबुद्वीपप्रज्ञति 'नी वृत्तिमां कों छे.' १ श्रापर, मंगलाचरण तथा प्रशस्ति २ प्रशा, पृ. ३२७, ३६६, ४३१ रथनेमि शौरिपुरना समुद्रविजय राजाना, राणी शिवादेवीथी थयेला चार पुत्रो हता-अरिष्टने म (नेमिनाथ), रथनेमि, सत्यनेमि अने दृढनेमि. उग्रसेननी पुत्री राजीमतीने परणवा माटे नेमिनाथ जता हता त्यां मार्गमां जानने भोजन आपवा माटे बांधेलां पशुओना चित्कार सांभळी तेमने वैराग्य उत्पन्न थयो अने तेमणे दीक्षा लीधी.' एमनां वाग्दत्ता राजीमती पण दीक्षित थयां. पछी एक वार वर्षाऋतुमां द्वारका पासेना रैवतक उद्यानमा रहेला नेमिनाथने वंदन करीने आवतां राजीमतीनां वस्त्रो वरसादमां भीजायां. तेमणे एक गुफामां आश्रय लीधो अने तमाम वस्त्रो उतारीने ते सूकववा मंड्यां. ए समये नेमिनाथना भाई रथनेमि जेमणे पण दोक्षा लीधी हती तेओ वृष्टिना कारणथी गुफामां प्रवेश्या अने राजीमतीने जोईने विकारवश थया. पण राजीमतीना उपदेशथी तेओ पोतानो भूल समज्या, अने अंते रथनेमि अने राजीमती बन्ने केवल ज्ञान पाम्यां. .. १ रथनेमि अने राजीमतीना अद्भुत कवित्वमय संवाद माटे जुओ उ, अध्याय २२ ( रथनेमीय ); वळी जुओ कसु, पृ. ३९९-२४; कको, पृ. १६९-७०; ककि, पृ. १३७-४२; कदी, पृ. १२०-२३, इत्यादि. स्थावर्तगिरि वजस्वामीए बार वर्षना दुष्काळनी शरूआतमां आ पर्वत उपर Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजधन्यपुर ] [१५५ जईने अनशनपूर्वक देहत्याग कयों हतो. एमना देहत्याग पछी इन्द्रे त्यां आवीने पोताना रथ साथे ए स्थाननी प्रदक्षिणा करी हती, अने ए कारणथी पर्वतर्नु नाम ' रथावर्त ' पड्यु हतुं.' स्थावर्तगिरि कुंजरावर्तनी यासे आवेलो हतो.' बीजी एक परंपरा प्रमाणे, वज्रस्वामी पांचसो साधुओनो साथे रथावर्त पर्वत उपर आव्या हता. त्यां एक क्षुल्लक-नाना साधुने मूकीने तेओ बीजा पर्वत उपर गया हता. क्षुल्लकना कालधर्म पाम्या पछी लोकपालोए रथमां आवीने एमनी शरीरपूजा करी हती; आथी ए गिरि रथावर्तगिरि तरीके लोकमां प्रसिद्ध थयो. बीजा पर्वत उपर वज्रस्वामी मरण पाम्या. इन्द्रे हाथी उपर त्यां आवीने ए स्थाननी प्रदक्षिणा करी त्यारथी ए गिरि 'कुंजरावर्त तरीके ओळखायो. रथावर्त ए जैनो- एक प्रसिद्ध तीर्थ हतुं. मुनि कल्याणविजयजीना मत प्रमाणे ते माळवामां विदिशानी पासे आवेलुं हतुं.' १ आम, पृ. ३९६ २ जुओ कुअरावत; वळी मुनि कस्याणविजयजीकृत 'वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना, पृ. ९०. ३ मस, गा. ४६७-४७३ ४ प्रच (अनुवाद), प्रस्तावना, पृ. १७. बीजा उल्लेखो माटे जुओ कसु, पृ. ५११-१३; कदी, पृ. १४५. राजधन्यपुर राधनपुर. उपाध्याय धर्मसागरे ' राजधन्यपुर 'मां सं. १६२८ई. स. १५७२ मां ' कल्पसूत्र' उपर ' किरणावली' नामे प्रमाणभूत टीका रची हती. जुओ धर्मसागर उपाध्याय Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ] राजीमती जुओ नेमिनाथ, रथनेमि राध आचार्य १ अचलपुरना जितशत्रु राजाना युवराजे राध आचार्य पासे दीक्षा लोधी हती. तेओ एक बार बिहार करता तगरा नगरीमा आव्या हता. ' राध आचार्यना बीजा एक शिष्य-जेमनुं नाम पण राध हतुं तेओउज्जयिनीमां हता. त्यां राजपुत्र अने पुरोहितपुत्र साधुओने हेरान करता हता, एना समाचार आपका उज्जयिनोथी साधुओ तगरामां आव्या हता. १ जुओ तगरा. २ अयलपुरे जुवराया सीसो राहस्स नगरीमुज्जेणिं । अज्जा राहखमणा पुरोहिए रायपुक्तो य ॥ ( उनि, गा. ९८ ) अचलपुरं नाम पतिद्वाणं तत्थ जियसत्तू राया, तस्स पुत्तो जुवराया, खो राहायरियाण अंतिए पव्वइओ । सो य अन्नया विहरंतो गतो तगरं नगरि, तस्स राद्दावरियस्स सज्यंतेवासी अज्जराहखमणा उज्जेणिए 'विहरति, तओ आगया साहुणो तगरं, गया शहसमीवं, ते पच्छिया निरुवसगं ति, भणति - रायपुत्त पुरोद्दियपुत्तो य वार्हिति उशा, पृ. ९९-१०० [ राजीमती वळी जुओ - राहायरियस सज्झतेवासी अजराहा नामा भायरिया उज्जेणींए विहरति, तेसिं सयासाओ साहुणो तगरं गया राहायरियसमीवं, उने, पृ. २६ राष्ट्रकूट एक क्षत्रियकुल. ' राठोड ' शब्द ते उपरथी राष्ट्रकूट 7 रहऊड 7 राठोड ए क्रमे आवेलो छे. शीलाचार्ये जे परिचिततानी रीतिए 6. राष्ट्रकूट 'नो निर्देश कर्यो छे ते उपरथी अनुमान थाय छे के एमना समयमां गुर्जर देशमां राष्ट्रकूटो सुज्ञात हता. ' १' यस्मिन् राष्ट्रकूटादौ कुले जातो • ... सूकृशी, पू. १३ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोहक ] राष्ट्रवर्धन उज्जयिनीना पालक राजानों पुत्र. विशेष माटे जुओ अवन्तिवर्धन, पालक, मणिप्रभ रिष्टपुर $ दशमा तीर्थंकर शीतलनाथने प्रथम भिक्षा रिष्टपुरमा मळी हती. जुओ अरिष्टपुर रैवतक १ आनि, पृ. ३२४ २ उज्जयंत अर्थात् गिरनारनु बीजुं नाम रैवतक छे.' रैवतक पर्वत द्वारकानी ईशाने आवेलो हतो. रैवतकमां नंदनवन नामे उद्यान हतुं अने सुरप्रिय नामे यक्षनुं आयतन हतुं सामान्य रौते रैवतकनो उल्लेख पर्वत तरीके छे. मूलसूत्रो जेवां के ' अंतकृत्दशा ', ' वृष्णिदशा, ' ' ज्ञाताधर्म कथा' आदिमां रैवतकने पर्वत कह्यो छे, ज्यारे पछीना समयनी केटलीक टीकाओ आदिमा रैवतकनो उल्लेख उद्यान तरीके छे. [ S 0 रैवतकता परंपरागत वृत्तान्त गाटे जुओ ' विविधतीर्थकल्प मां 'रैवतकल्प'; वळी जुओ उज्जयंत, द्वारका १. ' निष्क्रम्य' निर्गम्य द्वारकातः द्वारकापुर्याः ' रैवतके ' उज्जयंते. ' स्थितः ' गमनान्निवृत्तः, उशा, पृ. ४९२ २ नुओ द्वारका. ३ बृकम, भाग १, पृ. ५६-५७, कसु, पृ. ३९९-४२४; कको, पृ. १६२-६८, इत्यादि. रोहक उज्जयिनी पासेना नटोग एक गामडामां वसतो नटपुत्रः एनी औपत्तिकी बुद्धिनी चतुराईमरी कथाओ आगमसाहित्यतां जाणीती छे. ' Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८] [ रोहक ए कथाओ प्रमाणे रोहक छेवटे उज्जयिनीना राजाने प्रसन्न करीने एनो मंत्री थयो हतो. लोकवार्ताना तुलनात्मक अभ्यासमा रोहकना संबंधमां मळती कथाओ घणी महत्त्वनी छे, केम के एनी ए कथाओ सहेज फेरफार साथे भोज अने कालिदास तथा अकबर अने बीरबलने विशे पण प्रचलित छे. रोहकने नामे चढेली कथाओनो निर्देश दि. सूत्र 'ना भाष्यमा छे-जो के एनो विस्तार तो टोकाचूर्णिओमां छेए उपरथी लोककथा तरीके पण एमनी प्राचीनता- सहेजे अनुमान थई शके छे. १ आम, पृ. ५१५-१८; नंम, पृ. १४५-४९. २ रोहकना बुद्धिचातुर्यनी कथाओ माटे जुओ 'प्रजाबंधु-गुजरातसमाचार ' दीपोत्सवा अंक, सं. १९९९ मा मारो लेख ' नटपुत्र रोहक अने राजा.' लाट लाटदेश. 'कल्पसूत्र 'नी टीकाओमा ‘राज्यदेशनाम ' आप्यां छे त्या लाटनो पण उल्लेख छ,' लाटदेश वडे सामान्यतः आजनो दक्षिण गुजरात उद्दिष्ट छे, जे- पाटनगर भरुकच्छ हतुं. पण एक काळे लाट वडे उत्तर सिन्धना लाडकाणा (लारखाना )थी मांडी पश्चिम भारतनो समुद्रकिनारानो आखो प्रदेश उद्दिष्ट हतो, ए विषयनी विगतवार चर्चा माटे तथा लाटनी व्युत्पत्ति माटे जुओ 'पुगु'मां लाट. जैन आगमसाहित्यना उल्लेखोमा ‘लाट ' वडे हालनो दक्षिण गुजरात ज उद्दिष्ट होय एम जणाय छे. एमाथी लाट तथा त्यांना वतनीओ विशे केटलीक प्रकीर्ण पण रसिक सामग्री मळे छे. लाटविषयमा वरसादनां पाणीथी धान्य नीपजे छे.' लाटना वतनोओने 'गुंठ'-कपटी कह्या छे तथा एने लगती एक रसिक वार्ता आपो छः एक लाटवासी गाडामां बेसीने कोई नगर तरफ जतो हतो. मार्गमां Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाट] [ १५९ एक महाराष्ट्री मळ्यो. तेणे लाटवासीने पूछयु के ' लाटवासीओ कपटी कहेवाय छे ते केवा ?' लाटवासीए कह्यु, ‘पछीथी बतावीश.' मार्गमा सवारनो समय बीती जतां पोते ओढेलं वस्त्र महाराष्ट्रीए गाडा उपर मूक्यु. लाटवासीए एनी दसीओ (लटकता छेडा ) गणी लीधी. पछी नगरमां पहोंच्या पछी महाराष्ट्रीए पोतानुं वस्त्र लेवा मांड्युं, एटले लाटवासी बोल्यो के ‘आ तो मारं वस्त्र छे.' महाराष्ट्री एने राजदरबारमा लई गयो.. त्यां विवाद थतां लाटवासी बोल्यो, 'महाराष्ट्रीने पूछो के वस्त्रनी दसीओ केटली छे.' महाराष्टी ए कही शक्यो नहि अने लाटवासीए ते कही, एटले वस्त्र लाटवासीने मळ्यु. राजदरबारमाथी बहार नोकळ्या पछी लाटवासीए महाराष्ट्रीने बोलावोने वस्त्र पार्छ आप्यु अने कह्यु के 'मित्र ! तें पूछयु हतुं एनो आ जवाब छे. लाटवासीओ आवा होय छे. ___ लाटवासीओ जेने 'क्षीर' कहे छे तेने कुडुक्क (घणे भागे कूर्ग)ना वतनीओ 'पीलु' कहे छे. लाटदेशमां 'दवरक-वलनक'-दोराना गूंचळाने मांगलिक गणवामां आवे छे. आ ‘दवरक-वलनक' ए नाडाछडी होय ए संभवित छे. लाटदेशमां धान्य भरवानी कोठी 'पल्लग' अथवा 'पल्लक' ( सर० गुज 'पाल्लु' कोठी ) कहेवाय छे ते ऊंचे अने नीचे पहोळी, पण छेक उपर कईक सांकडी होय छे." लादेशनी 'रूतपोणिका'रूनी पूणी महाराष्ट्रमा ‘पेलु' कहेवाय छे.' लाटदेशमा समान वयनी सखीओने ' हलि' (गुज. — अली') अने नणंदने ‘भट्टा' कहीने संबोधवामां आवे छे. कणसलांमांथी अनाज छूटुं करवानी क्रिया - जोवण, " चोखानुं धोवण 'कांजिय' के ' कांजिक'' (गुज. 'कांजी' ) कहेवाय छे. लाटवासीओ जेने 'अड्डपल्लाण' ( घोडा, पलाण; एनुं गुजराती रूप 'आडपलाण' Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] लार एवं थई शके ) कहे छे ते वीजा प्रदेशोमां 'थिल्लि' तरीके ओळखाय छे." एक खास प्रकारनी वनस्पति लाटवासीओमां 'इकडा' (अर्वाचीन गुज. 'ईकड' ) नामे प्रसिद्ध छे." लाट अने महाराष्ट्रना वतनी चोखाने 'कूर ' कहे छे; एने ज पूर्वदेशना वासीओ 'ओदन,' द्राविडो 'चोर' अने आन्ध्रो — कनायु' कहे छे. ___ लाटनी केटलीक रूढिओनो पण निर्देश छे. 'निशीथचूर्णि' प्रमाणे, लाटमा मामानी दीकरी गम्य छे, पण माशीनी दीकरी अगम्य छे. 'स्थानांगसूत्र 'नी अभयदेवसूरिनी वृत्ति प्रमाणे लाटदेशमा 'मातुलगिनी'-माशी गम्य छे, पण अन्यत्र ते अगम्य छे." ____ आ छेल्लो उल्लेख चिन्त्य लागे छे, केम के सामान्य रीते आवं बने नहि. जो के टीकानो पाठ आ बाबतमा स्पष्ट छे. तो शुं अर्थनी स्पष्टता होवा छतां पाठमां कोई प्रकारनी भ्रष्टता प्रवेशी हशे ?" 'निशीथचूर्णिमा प्राकृत शब्द 'भोयडा 'नी समजूती आ प्रमाणे आपी छेः लाटवासीओ जेने 'कच्छ ' कहे छे ते महाराष्ट्रमा ‘भोयडा' कहेवाय छे. स्त्रीओ बालपणथी मांडीने लग्न थया बाद सगर्भा थतां सुधी कच्छ बांधे छे. सगी थाय त्यारे भोजन करवामां आवे छे, वजनाने बोलावी वस्त्र पाथरवामां आवे छे, अने ए समयथी कच्छ बांधवानुं बंध थाय छे." लाटदेशमा वर्षाऋतुमां गिरियज्ञ अथवा मत्तबाल-संखडि नामे उत्सव थाय छे. भूमिदाह ए पण एजें बीजुं नाम छे. लाटवासीओं श्रावणपूर्णिमाने दिवसे आषाढी पूर्णिमा करे छे" एम 'आवश्यक चूर्णि' नोंधे छे. दक्षिणापथमां लोहकार अने कलाल जात्यधम गणाय छे तेम लाटमां चर्मकार अधम गणाय छे." लाटदेशनी स्त्रीओना रूप अने बिदग्धतानुं वर्णन करतो एक श्लोक आगमसाहित्यमा केटलेक स्थळे उद्धत करवामां आव्यो छे." Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाट ] [ १६१ लाटदेशनी स्त्रीओना कच्छ-बंधादि नेपथ्यनी प्रशंसा माटे औदीच्य देशनी स्त्रीओनां वस्त्र-परिधाननी निन्दा करतो श्लोक पण एक स्थळे उद्भुत थयेलो छे.२१ १ बृकक्षे, भाग २, पृ. ३८३-८४ २ व्यभा, गा. ३४५; व्यम, भाग ४, पेग भाग २, पृ. ६९-७० ३ आचू, पूर्वभाग, पृ. २७ ४ आम, पृ. ६; विको, पृ. १८ ५ आम, पृ ६८, ११३; नंम, पृ. ८८; प्रम, पृ. ५४२ ६ विको, पृ. ९२२. जुओ महाराष्ट्र. ७ दवैचू , पृ. २५०. अहीं चूर्णिकार एलो झीणो भेद पाडे छे के लाटमां सखीने ‘हलि' कहे छे, ज्यारे वरदातट ( वर्धा नदीना किनाराना प्रदेश ) मां तेने ‘हलि' तरीके संबोधाय छे. ८ ओनिद्रो, पृ. ७५ ९ बृकक्षे, भाग ३, पृ. ८७१ १० औसूअ, पृ. ५९; जीम, पृ. २८२; ज्ञाधअ, पृ. ४३ ११ निचू , पृ २१४ १२ दवैचू, पृ. २३६ १३ निचू , भाग १, पृ. ४६; आचू, उत्तर भाग, पृ. ८१; आम ( उत्तर भाग, पृ. ८१) एटलं ज कहे छे के लाटमां मामानी दीकरी गम्य छे; आचू वधारामां एम पण नोंधे छे के गोल्ल देशमा भगिनी गम्य छे, 'विच्चो 'ने ( 'विच्चाण'-अर्थात् वचमा रहेनाराओने ! मध्य प्रदेशमा रहेनाराने ? ) मातानी सपत्नीओ गम्य छे. १४ स्थासूअ, पृ. २११. छन्दो-गम्यागम्यविभागो यथा-लाटदेशे मातुलभगिनी गम्या अन्यत्रागम्येति । १५ संभव छे के “ मातुलभागिनेया'-माशीनी पुत्री होय. १६ णेवत्थं भोयडादीयं भवति । " भोयडा" णाम जा लाडाणं कच्छा सा मरहट्टयाणं भोयडा भण्णति । तं च बालप्पभिति इत्थिया ताव बंधन्ति जाव परिणीया जाव य आवण्णसत्ता जाया तदो भोयणं कज्जति, २१ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ ] [ लाट सय मेलेऊण पडओ दिज्जति, तप्पभिई फिइ भोयडा । निचू , भाग १, पृ. ४६ १७ विशेषचूर्णिकारः पुनराह-गिरिजन्नो ति मत्तवालसंखडी भन्नइ, सा लाडविसए वरिसारत्ते भवइ ति [ गिरिक(ज)-नति भूमिदाहो त्ति भणितं होइ ] बृकशे, भाग ३, पृ. ८०७ १८ आसाढी-आसाहपुणिमा इह, लाडाण पुण सावष्णपुणिमाए भवति, आचू, उत्तर भाग, पृ. २२१ । १९ निचू . भाग ५, पृ. १११७ २० स्थासूअ, पृ. २१०,४४५, प्रव्याअ, पृ. १३९; पाय, पृ ४८. जुओ-तथा अन्ध्रीप्रभृतीनामन्यतमाया यत्प्रशंसादि सा रूपकथा. चन्द्रवक्त्रा सरोजाक्षी सद्गीः पीनघनस्तनी । कि लाटी नो मता साऽस्य देवानामपि दुर्लभा ॥ स्थासूअ, पृ. २१० २१ तासामेवान्यतमायाः कच्छपन्धादिनेपथ्यस्य यत्प्रशंसादि सा नेपथ्यकथा यथा धिग नारीरौदीच्या बहुवसनाच्छादिताङ्गलतिकत्वात् । यद्योक्नं न यूनां चक्षुर्मोदाय भवति सदेति ॥ पाय, पृ. ४८ लाटाचार्य एक आचार्य. एमना नाम उपरथी तेओ लाटना हो एवं अनुमान थाय छे. ___ जैन शास्त्रनु सामान्य विधान एवं छे के शय्यातर-वसति आप. नारना गृहेथी साधुए पिंड न लेवा. हवे, एक ज गुरुना शिष्यो जग्यानी संक.डाशने कारणे बे जुदी वसतिमा रहेता होय तो शय्यातर कोने मणयो ? बोजे स्थळे रहेला साधुओ सवारे सूत्रपौरुषी कर्या पछी मूल उपाश्रयमां आवे तो बन्ने स्थानना मालिको शय्यातर गणाय अने जो मूल उपाश्रयमा आवीने सूत्रपौरूषी करे तो एक ज शय्यातर गणाय. आ वाबतमा लाटाचार्यनो मत एवो छे के ज्यां आचार्य क्सता होय ते वसतिनो मालिक शय्यातर गगाय, बीजो वसतिनो मालिक शय्यातर गणाय नहि. Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बच आर्य ] [ १६३ १ बृकभा, गा. ३५३१; बृकक्षे, भाग ४, पृ. ९०३; निभा, गा. ११३९; निचू, भाग २, पृ. २५५ लोहजङ्ग उज्जयिनीना राजा प्रद्योतनो दूत. ते एक दिवसमां पचीस योजननी सफर करी शकतो हतो. जुओ भरुकच्छ. वज्र आर्य एमने विषेनी कथा आ प्रमाणे छे : आर्य वज्र अथवा वज्रस्वामी अवंति जनपदमां तुंबवन ग्राममां वसतां धनगरि अने सुनन्दा ए दंपतीना पुत्र हता. वज्रस्वामी माताना गर्भमां जहता, अने धनगिरिए सिंहगिरि गुरु पासे दीक्षा लोधी हती. जन्म पछी वज्रस्वामी पोताना जृंभक देव तरीकेना पूर्वजन्मनुं स्मरण करीने रोया करता हता; अने एना आ सतत रुदनथी माता खूब कंटाळी गई हती. आ बाळक एना दीक्षित पिता धनगरिने सोपवामां आव्यो त्यारे ज छानो रह्यो . वज्र जेवो शक्तिशाली होवाथी आ बाळक वज्र नामथी ओळखायो. केटलाक समय पछी सुनंदाए आ बाळकने साधुओ पासेथी पाछो मेळववा प्रयत्न कर्यो, पण ज्यारे ले न आव्यो त्यारे माताए पोते ज जैन साध्वी तरीके दीक्षा लीधी. बाळ वज्रस्वामीने शय्यातर स्त्रीओए उछेर्या तथा साध्वीओना उपाश्रयमां रहीने तेओ अमियार अंग भण्या. बाल्यावस्थामां ज एमनी असाधारण विद्वत्ताथी प्रसन्न थईने गुरुए एमने वाचनाचार्य बनाव्या हला. एक बार गुरु सहित वज्रस्वामीनी दशपुरमा स्थिति हती त्यांथी उज्जयिनीमां दश पूर्वघर भद्रगुप्ताचार्य' पासे जहने तेपणे दश पूर्वोनो अभ्यास कर्यो. ए पछी वज्रस्वामीने गच्छ सोपीने सिंहगिरि आचार्य अनशनपूर्वक कालधर्म पाम्या. Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] [ वज्र आर्य दुष्काळथी पीडा पामता जैन संघने तेओ पाटलिपुत्रथो पुरिकापुरी नामे नगरीमा लई गया हता. आ नगरनो राजा बौद्ध हतो, अने तेणे जैनोने पर्युषण पर्वमा पुष्पो अपवानो निषेध कर्यो हतो, तेथी वजस्वामी आकाशगामिनी विद्याथी माहेश्वरी नगरीमा जईने जिनपूजा माटे पुष्पो लाव्या हता. आ आकाशगामिनी विद्या तेमणे 'आचारांगसूत्र 'ना 'महापरिज्ञा' अध्ययनमांथी उदरी हती एम कहेवाय छे. बार वर्षना एक मोटा दुष्काळना समयमां वजस्वामी एक पर्वत उपर अनशन करीने कालधर्म पाम्या, जे पर्वत पाछळथी 'रथावर्त" तरीके प्रसिद्ध थयो. वजूस्वामी एक प्रभावक जैन आचार्य हता. तेमनो विहार मुख्यत्वे माळवा, मगध अने कलिंगना प्रदेशमां थयो हतो. जो के तेमना शिष्योए कोंकणमां विहार करेलो छे, एटले संभव छे के तेओ पण कदाच कोंकणमां आव्या होय. आर्य रक्षितसृरिए साडानव पूर्वोनुं अध्ययन वजूस्वामी पासे कयु हतुं. वजस्वामीना नामश्री साधुओनी वजूशाखा प्रवर्तमान थई हती. युगप्रधान पट्टावलीओने आधारे मुनिश्री कल्याणविजयजीए वजूस्वामीना समय विशे एवो निर्णय कर्यो छे के तेमनो जन्म सं. २६ ई. स. पूर्वे ३०मां, दीक्षा सं. ३४ ई. स. पूर्वे २२मां, युगप्रधानपद सं. ७८ ई. स. २२मां अने स्वर्गवास सं. ११४ ई. स. ५८मां थयो हतो.. __वज्रस्वामीना जीवनना प्रासंगिक उल्लेखो पण आगमसाहित्यमां अनेक स्थळे छे." १ जुओ भद्रगुप्ताचार्य. २ पुरिकापुरी ए प्राचीन कलिंगनी पुरी (जगन्नाथपुरी) होवा Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वज्रभूति आचार्य ] संभव छे. जुओ 'लाइफ इन एन्वयन्ट इन्डिया, पृ. ३२५. ३ जुओ माहेश्वरी. ४ जुओ रथावर्त ५ आचू, पूर्व भाग, पृ. ३९० थी आगळ, आम, पृ. ३८७९१ तथा ५३२; विभा, गा. २७७५-८३ तथा ते उपरनी कोट्याचार्यनी वृत्ति आगमेतर साहित्यम वज्रस्वामीना वृत्तान्त माटे जुओ हेमचन्द्रना 'परिशिष्टपर्व ' मां सर्ग १२ तथा प्रभाचन्द्रसूरिना ' प्रभावकचरित' मां वज्रस्वामिचरित '. " ६ जुओ वज्रसेन. ७ जुओ भद्रगुप्ताचार्य, रक्षित आर्य. ८ कसं, पृ. १३० ९ प्रच (अनुवाद), प्रस्तावना, पृ. १७ [ १६५ १० जुओ आनि, गा. २६४; आशी, पृ. २३७, ३८६; जीकभा, गा. ६१० -१२; जीकचूव्या, पृ. ३५; बृकम, पृ. ११९; नंम, पृ. १६७, इत्यादि. ' कल्पसूत्र ' नी विविध टीकाओमां वज्रस्वामीनुं चरित्र ठीक ठीक विस्तारथी आपेलुं छे, जेम के ककि, पृ. १७०-७३; ऋभु, पृ. ५११ - १४; कदी, पृ. १४५, इत्यादि. वत्रभूति आचार्य भरुकच्छवासी एक आचार्य. भरुकच्छमां नभोवाहन राजा हतो.' तेनी पद्मावती देवी हती. ए नगरमा वज्रभूति नामे आचार्य रहेता हता. तेओ मोटा कवि हता, पण रूपहीन भने अत्यंत कृश हता. एमने शिष्यादि परिवार पण नहोतो. एमनां काव्यो राजाना अंतःपुरमा गवातां हतां. ए काव्योथी पद्मावती देवोनुं चित्त आकर्षायुं हतुं अने ए रचनाओना कर्ताने जोवाने ते उत्सुक बनी हती. एक बार राजानी अनुज्ञा लईने तथा योग्य भेटणं साधे लईने अनेक दासीओ सहित ते वजभूतिनी वसंति तरफ गई. पद्मावतीने वसतिना बारणामां ऊभेली जोईने वज्रभृति पोते ज, परि म Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ ] [ बज्रभूति आचार्य वारने अभावे, हाथमां आसन लईने बहार नीकळ्या. पद्मावतीए पूछयुं, वज्रभूति आचार्य क्यां छे ? ' वज्रभूतिए उत्तर आयो, 'बहार गया छे.' पण दासीए राणीने निशानीथी समजायं के ' आज वज्रभूति छे.' आथी पद्मावती विराग पामीने, विचार करीने बोली के - ' हे कसेरुमती नदी ! तने जोई अने तारुं पाणी पीधुं ! तारुं नाम सारु छ, पण दर्शन सारुं नथी. * पछी पोते आणेलुं भेटणुं राणीए वज्रभूतिने सॉप्युं, अने पोते एमने ओळखती ज नथी एवो देखाव चालु राखी, ‘आ आचार्यने आपजो,' एम कहीने पाछी गई. ( अगाउ सूचव्युं छे तेम, नभोवाहननो समय इसवी सनना बीजा सैकाना पूर्वार्धमा मानीए तो वज्रभूतिनो समय पण एज मगवो जोईए. १ जुओ नभोवाहन. २ जुओ कसेरुमती. ३ व्यभा, गा. ५८-५९; व्यम, विभाग ४, पेटा वि. २, पृ. १४-१५ ४ जुओ नभोवाहन. वज्रसेन वज्रस्वामीना शिष्य. 1 एक मोटा दुर्भिक्षने कारणे साधुओने भिक्षा मळवानुं मुश्केल बन्युं त्यारे बज्रस्वामी अनशन करका माटे स्थावर्तगिरि तरफ गया. ' त्यारे पहेलां एमणे पोताना शिष्य वज्रसेनने कां हतुं के ' जे दिवसे तने शतसहस्रं मूल्यनी भिक्षा मळे तेने बीजे दिवसे सुभिक्ष थशे. आ पछी केटलेक समये वज्रसेन विहार करता सोपारकमां अल्या. त्यां जिनदत्त नामे श्रावक अने तेनी ईश्वरी नामे पत्नी हती. तेमनुं आखं कुटुंब धान्यना अभावे दुःखाकुल बनी गयुं हतुं. आधी छेवटनो लक्षमूल्य पाक रांधी, तेमां विष नाखीने मरणने भेटवानो निश्चय तेओए Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पलमी] [ १६७ कयों. आ प्रमाणे लक्षमूल्य पाक रांधीने ईश्वरी एमां विष नाखया जती हती एटलामा वजूसेन मुनि त्यां आवी पहोंच्या. ईश्वरीए हर्षित थईने मुनिने ए पाक भिक्षा तरीके आप्यो अने बधी. वात करी. पोताना गुरुए भाखेला भविष्य उपरथी वजूसेने तेओने कह्यु के ' हवे तमारे चिन्ता करवानी जरूर नथी, केम के आवती काले सुभिक्ष थशे.' बीजे दिवसे अनाजथी भरेलां वहाणो सोपारक बंदरे आव्यां अने लोकसमुदाय निश्चिन्त थयो. जिनदत्त अने तेना कुटुंबीजनोए वजूसेन पासे दीक्षा लीथी. १ जुओ रथावर्त. २ जुओ जिनदत्त. ३ आम, पृ, ३९५-९६; वळी कसु, पृ. ५१३; ककि, पृ. १७० -७१, इत्यादि वत्सका एक नदी. आ नदी उजयिनी अने कौशांबीनी वक्मां आवेली छे. ए नदीने किनारे पर्वतकंदरामां धर्मयशमुनिए तपश्चर्या करी हती.' १ बितिओ धम्मजसो विभूसं नेच्छतो कोसंबीए उज्जेणीए अंतरा वस्थकातीरे पव्वतकंदराए एकन्थ भत्तं पच्चक्खाति । आचू, उत्तर भाग, पृ. १९.. वळी जुओ ववृ, पृ. ९०-९१. वलभी सौराष्ट्रनुं वळा अथवा वलभीपुर, जे वलभी वंशना राजाओनी राजधानी हतुं. जैन आगमनो नागार्जुनी वाचना जे 'वालभी' वाचना नामश्रीः ओळखाय छे ते तथा जैन श्रुतनुं लिखित स्वरूपे संकलन वलभीमां थयां हता. जुओ देवद्धिंगणि क्षमाश्रमण, नागार्जुन, स्कन्दिल आर्य. Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [वसुदेववरित वसुदेवचरित ___ 'वसुदेव-हिंडी 'नुं खरं नाम, जे एना कर्ताने उद्दिष्ट हतुं. जुओ सङ्घदासगणि वाचक वासुदेव जुओ कृष्ण वासुदेव विजयसिंहमूरि ___ श्राद्रप्रतिक्रमण सूत्र ' उपर विजयसिंहसूरिए सं. ११८३ ई. स. ११२७ मां रचेली चूर्णिनो उल्लेख रत्नशेखरसूरिए 'श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र 'नी वृत्तिमां कों छे. एनो साथोसाथ रत्नशेखरे ए ज ग्रन्थ उपरना जिनदेवसूरिकृत भाष्यनो निर्देश कर्यो छे,' पण एवं कोई भाष्य हजी सुधी जाणवामां आव्युं नथी. १ श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रस्य च विक्रम ११८३ वर्षे श्रीविजयसिंहसूरिश्रीजिनदेवसूरिकृते चूर्णिभाष्ये अपि स्तः, वृत्तयः च बहवः, श्रापर, पृ. २०१. २ जुओ जिरको, पृ. ३९०. विदिशा माळवामां भोपालथी आशरे २४ - माइल ईशान खूणे बेटवा अथवा वेत्रवतीने किनारे आवेलुं भिलसा. 'अनुयोगद्वार सूत्र 'मां ' समीप नाम 'नां उदाहरण आपतां का छे के गिरि पासेनुं नगर ते गिरिनगर, विदिशानी पासेनुं नगर ते वैदिशनगर (विदिशा), वेणा पासेनुं नगर ते वेणातट अने तगरा पासेनुं नगर ते तगरातट.' आ उल्लेखमांनी 'विदिशा' ते बेस अथवा बेसली नदी छे, जे मिलसा पासे बेटवाने मळे छे. भिलसानुं बेसनगर एवं नाम ए नदी साथे संबंध धरावे छे, जेनुं मूळ 'वैदिशनगर । (प्रा. वेदिसणयर )मां छे... Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिराटनगर ] [ १६९ आर्य महागिरि विदिशामा जिनप्रतिमाने वंदन करीने गजाग्रपद एवो उल्लेख ' आवश्यक तीर्थनी यात्रा माटे एलकच्छपुर गया हला, सूत्र 'नी चूर्णिमां छे. ૐ जुओ एलकच्छपुर, गजाग्रपद, वेत्रवती १ से किं तं समोवनामे ? २ गिरिसमोवे णयरं गिरिणयरं विदिसासमीवे यरं वेदिस यरं बेन्नाए समीचे णयरं बेन्नायडं तगराए समीवे णयरं तगरायडे, से तं समीवनामे । अनु, पृ. १४९ २ ज्योद्धि, पृ. ३५ ३ दो वि जणा वइदिसिं गता, तस्थ जिणपडिमं वंदिऊण अजमहागिरि एलकच्छं गता गयग्गपदं वेदका । आचू, उत्तर भाग, पृ. १५६-५७. विनयविजय उपाध्याय हीरविजयसूरिना शिष्य कीर्त्तिविजयना शिष्य एमणे रामविजय पंडितना शिष्य विजयगणिनी अभ्यर्थनाथी सं. १६९६=ई. स. १६४० मां ' कल्पसूत्र उपर 'सुबोधिका' नामे प्रमाणभूत टीका रची हती, अने ते विमलहर्ष वाचकना शिष्य भावविजये शोधी हती. ' " विनयविजये सं १७०८=ई. स. १६५२ मां जूनागढमां जैन विश्वविद्याविषयक महान ग्रन्थ लोकप्रकाश' रच्यो हतो. न्याय, व्याकरण, काव्य, स्तोत्र आदि विविध विषयो उपर तेमणे रचनाओ करेली छे. ' २ १ कसु, प्रशस्ति २ जुओ जैसाइ, पृ. ६४७-४९ विराटनगर ' साडीपचीश आर्यदेशो पैकी मत्स्यदेशनुं पाटनगर. ' जयपुर राज्यमां आवेलं वैराट एज विराट के वैराट नगर होय ए संभवे छे. ૨ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० ] जुओ मत्स्य १ सुकुशी, पृ. १२३; बृकक्षे, भाग ३, पृ. ९१२-१४ वीतिभयनगर [ विराटनगर महावीरना समयमा सिन्धु–सौवीर देशनुं पाटनगर' एनी पूर्व २ दिशामां मृगवन नामे उद्यान आवेलुं हतुं. वीतिभयमा उदायन राजा राज्य करतो हतो. वीतिभयनुं बीजुं नाम कुंभकारप्रक्षेप हतुं. ર पंजाबनुं मेरा गाम ए प्राचीन वीतिभयनगर होवानुं मानवामां आवे छे." १ भसू, शतक १३, उहे. ६; बृकक्षे, भाग २, पृ. ३१४; आचू, उत्तर भाग, पृ. ३६-३७, आम, पृ. ३९२; ककि, पृ. १९९; क. कौ, पृ. १३४, इत्यादि २ भसू, शतक १३, उ. ६ ३ जुओ उदायन. ४ जुओ कुम्भकारप्रक्षेप. ५ मुनि कल्याणविजय, 'श्रमण भगवान महावीर', पृ. ३८८ वेत्रवती २ - एक नदी. चारुदत्त वेत्रलताने वळगीने ए नदी ओळंगा गयानो उल्लेख छे.' चारुदत्तनी आ कथा ' वसुदेव- हिंडी 'ना 'गन्धर्वदत्ता लंक 'मां विस्तारथी वर्णवेली छे एमां एवं वर्णन छे के - वैताढ्य - पर्वतांथी नकळत इषुवेगा नदी अताग छे. एनां पाणीनो वेग एटलो बधो छे के तीरछा मार्गे पण सामे पार जई शकाय एम नथी. मात्र वेला ओनो आधार लईने, उत्तर तरफथी पवन वाय त्यारे, एना उत्तर किनारेथी दक्षिण किनार जवातुं, अने दक्षिण तरफथी पवन वाय त्यारे एज रीते उत्तर किनारे जई शकातुं प्रवासे नीकळेलो चारुदत्त ए ते वेत्रवती नदी ओळंगी गयो हतो. इषुवेगा अने वेत्रवती ए बन्ने नाम एक ज नदीनां होय एवं अनुमान आ वर्णन उपरथी थई शके. Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेणातट ] [१७१ ___ कवि कालिदासना 'मेघदूत' (पूर्वमेघ, २४)मां माळवाना वर्णनमां वेत्रवतीनां ऊछळतां पूरनो निर्देश छे. एना तटे विदिशा आवेलु हतुं एवं सूचन पण त्यां छे. गुजरातनी वात्रक नदोनो पण पुराणोमां वेत्रवती तरीके उल्लेख छे ए अर्हो नोधर्बु जोईए.' ___ माळवामां वहेती बेटवा नदी ए आगमोक्त वेत्रवती होवार्नु मानवामां आवे छे. जुओ विदिशा १ वेत्रमागों यत्र वेत्रलतोपटम्मेन जलादो गम्यते इति, तद्यथाचारुदत्तो वेत्रलतोपष्टम्भेन वेत्रवती नदीमुत्तीर्य परकूलं गनः । सुकृशी, पृ. १९६. वळी जुओ सूकृचू, पृ. २३९. २ 'वसुदेव-हिंडो' ( भाषान्तर ), पृ. १९२ ३ पुगुमां वेत्रवती. ४ ए ज; तथा ज्योडि, पृ. ३५; जैन, ‘लाइफ इन एन्श्यन्ट इन्डिया,' पृ. ३५४ वेणातट ___ आभीरदेशमा' वेणानदीना किनारे आवेलु नगर'. एनां प्राकृत रूपो वेणातड, बेण्णायड, बेन्नायड, एवां थाय छे. राजगृहना राजा प्रसेनजितनो पुत्र श्रेणिक ज्यारे कुमारावस्थामा हतो त्यारे वेणातटमा गयो हतो. त्यां एक वणिकनी नंदा नामे पुत्रीथी तेने अभयकुमार नामे पुत्र थयो हतो, जे मोटो थतां राजगृह आवीने पोतानी चतुराईथी श्रेणिकने प्रसन्न करीने तेनो मंत्री थयो हतो. एक वारनो चोर मूलदेव भाग्ययोगे वेणा तट नगरनो राजा बन्यो हतो एवी कथा छे. वेणातटमा बौद्धो तेम ज जैनोनी वस्ती हती तथा आ बन्ने संप्रदायो बच्चे स्पर्धा चालती हती, एम केवळ लोककथाना प्रकारनो Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२] [ वेणातट एक टुचको ‘नंदिसूत्र 'नी वृत्तिमां आप्यो छे ते उपरथी अनुमान थाय छे : " वेगातट नगरमां कोई बौद्ध भिक्षुए श्वेतांबर क्षुल्लक-नाना साधुने पूछयु, 'अरे क्षुल्लक ! तमारा अर्हतो सर्वज्ञ छे अने तमे एमना दीकराओ छो, माटे कहे के आ नगरमा केटला कागडा छे ? " क्षुल्लके चातुर्यथी उत्तर आप्यो 'सहि कागसहस्सा इह(यं ) बिन्नायडे परिवसति । जइ ऊणगा पसिया अब्भहिया पाहुणा आया ।। ( आ वेणातट नगरमा साठ हजार कागडा क्से छे. ए करतां जो ओछा होय तो ते प्रवासे गया छे अने वधारे होय तो परोणा तरीके आव्या छे.) आ सांभळीने बौद्ध भिक्षु माथु खणतो चूप थई गयो.'' हरिषेणाचार्यना 'बृहत्कथाकोश 'मां का छे के विन्यातटपुर वराट विषयमा विन्या ( वेणा ) नदीना किनारे आवेलुं छे. १ जुओ आभीर. २...से किं तं समीवनामे ! २ गिरिसमीवे णयरं गिरिणयर विदिसासमीवे णयरं वेदिसं णयरं बेन्नाए समीवे णयरं बेन्नायडं तगराए समीवे जयरं तगरायड, से तं समीवनामे। ३ आचू, पूर्वभाग, पृ. ५४७; आम, पृ. ५१९. ४ जुओं मूलदेष. ५ नंम, पृ. १५२. वळी आ कथा माटे जुओ आचू, पूर्व भाग, पृ. ५४५, आम, पृ. ५२.. ६ वराटविषये रम्ये दिशाभागे च पश्चिमे। वैराकरस्य सारस्य जनानन्दविधायिनः ॥ विन्यानदीसमीपस्थं सालूरापणराजितम् । विहरन् स मुनिः क्वापि प्राप विन्यातटं पुरम् ॥ _ 'बृहत्कथाकोश, ' पृ. १९९. Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शङ्खपुर । वैतरणि कृष्ण वासुदेवनो एक वैद्य. जुओ धन्वन्तरि शकुन्त अवन्तिपति प्रद्योतनो अंध मंत्री. वासवदत्ताए उदयननी साथे उज्जयिनीथी कौशांबी चाल्यां जवा माटे हाथणी सज्ज करवानी आज्ञा करी. हाथणीने ज्यारे तंग बांधवा मांड्यो त्यारे हाथणीए गर्जना करी. ए सांभळीने शकुन्त नामे अंध मंत्रीए कह्यु के ' तंग बांधती वखते आ हाश्रणी गर्जना करे छे, माटे सो योजन जईने ते मरण पामशे." मार्गना श्रमथी थाकेली हाथणी सो योजन जेटलो प्रवास करीने कौशांबीमा प्रवेशतो मरण पामी हती. जुओ उदयन, प्रद्योत १ कक्षायां बध्यमानायां यथा रसति हस्तिनी । योजनानां शतं गत्वा प्राणत्यागं करिष्यति ॥ आ चू, पृ. १६२ शङ्खपुर ' उत्तराध्ययन सूत्र 'नी नेमिचन्द्रनी टीका प्रमाणे, अगडदत्त शंखपुरना राजानो पुत्र हतो.' 'विविधतीर्थकल्प' अनुसार, राजगृहनो राजा प्रतिवासुदेव जरासंध, वासुदेव कृष्ण साथे युद्ध करवा माटे पश्चिम दिशा तरफ नीकळ्यो. कृष्ण पण बधी सामग्री साथे द्वारवतीथी नीकळीने पोताना प्रदेशनी सोमा सुधी आव्या. ए स्थळे अरिष्टनेमि कुमारे शंखनाद कयों अने त्यां जरासंध उपर विजय प्राप्त थया पछी शंखपुर अथवा शंखेश्वर नामे नगर वसाववामां आव्युं, तथा त्यां पार्श्वनाथनी प्रतिमा स्थापित करवामां आवी. Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ ] [ शङ्खपुर उत्तर गुजरातमां वढियारमां आवेलुं जैन तीर्थ शंखेश्वर ए आ शंखपुर होवा संभव छे. १ जुओ अगडदत्त. २ ' विविधतीर्थंकल्प मां मुनि जयन्तविजयकृत 'महातीर्थ शंखेश्वर,' पृ. १६-२५. शत्रुञ्जय सौराष्ट्रनो एक पर्वत, ज्यां अर्वाचीन काळमां जैनोनुं सौथी वधु प्रसिद्ध तीर्थधाम छे. 'शंखपुरपार्श्वकल्प;' वळी जुओ २ गौतमकुमार अरिष्टनेमि पासे दीक्षा लईने शत्रुंजय उपर निर्वाण पाम्या हता.' बोजा केटलाक साधुओनी पण ए निर्वाणभूमि छे. थावच्चापुत्रनुं निर्वाण पण शत्रुंजय उपर थयुं हतुं. पांच पांडवो कृष्णना मरणथी संवेग पामीने, सुस्थित स्थविरनी पासे दीक्षा लईने शत्रुंजयना शिखर उपर पादपोपगमन ( वृक्षनी जेम स्थिर रहने अनशन करे ते ) करीने कालधर्म पाम्या हता 3 'विविधतीर्थकल्प 'मां शत्रुंजयनां नीचे प्रमाणे एकवीस नाम आपेलां छेः सिद्धिक्षेत्र, तीर्थराज, मरुदेव, भगीरथ, विमलादि, बाहु " चली, सहस्त्रकमल, तालध्वज, कदंब, शतपत्र, नगाधिराज, अष्टोत्तरशतकूट, सहस्रपत्र, ढंक, लौहित्य, कपर्दिनिवास, सिद्धिशेखर, शत्रुंजय, मुक्तिनिलय, सिद्धिपर्वत, पुंडरीक. ४ १ अद १ ४५७-४६४; आचू, उत्तर भाग, पृ. १९७० २ अंद २ तथा ४ ३ मस, गा. प्रमाणमा अर्वाचीन कही शकाय एवा आगमिक टीकाप्रन्थोमां शत्रुंजयना केटलाक प्रासंगिक उल्लेख माटे जुओ कसु, पृ. १३-१४; ककि, पृ. ८; कदी, पृ. ८ ककौ, पृ. ८, इत्यादि. Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्तिसूरि ] [ १७५ शान्तिचन्द्र वाचक - तपागच्छना सकलचन्द्र वाचकना शिष्य. एमणे ' जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति' उपर 'प्रमेयरत्नमंजुषा' नामे टीका रची छे. ए टोकाने अंते आपेली ५१ श्लोकनी विस्तृत प्रशस्ति' प्रमाणे, एनी रचना सं. १६५१= ई. स. १५९५ मां थई हती ( श्लो. १९ ). सं. १६१०ई. स. १६०४मां राजधन्यपुर-राधनपुरमा केटलाक समकालीन जैन विद्वानोने हस्ते विजयसेनसूरिनी समक्ष एनुं संशोधन थयु हतुं . (श्लो. ३४-४०). एना लेखन अने शोधनमां कर्ताना शिष्य तेजचन्द्रे सहाय करी हती ( श्लो. ४२). रत्नचंद्रे गुरुभक्तिश्री एना अनेक आदर्शों तैयार कर्या हता (श्लो. ४९ ) अने लिपिकलामां चतुर धनचन्द्रे एनो प्रथमादर्श लख्यो हतो ( श्लो. ५१ ). १ प्रशा, पृ, ५४३-४६. शान्तिचन्द्र अने तेमना अन्य प्रन्थो माटे जुओ जैसाइ, पृ. ५४८ .५५. शान्तिसागर उपाध्याय ____ तपागच्छना उपाध्याय धर्मसागरना शिष्य श्रुतसागरना शिष्य. एमणे सं. १७०७ ई. स. १६५१मां पाटणमा · कल्पसूत्र' उपर 'कौमुदी' नामे वृत्ति रची छे.' १ ककौ, प्रशस्ति शान्तिसूरि शान्तिसूरि थारापद्रीय गच्छना आचार्य हता. एमणे 'उत्तराध्ययन सूत्र' उपर 'पाइअ टीका' नामे प्रसिद्ध प्रमाणभूत टीकानी रचना करी हती.' 'प्रभावकचरित 'ना १६ मा 'वादिवेताल शान्तिसूरिचरित 'मां आ आचार्य- चरित विस्तारथी आपेलुं छे. तेओ पाटण पासेना उन्नतायु-ऊण गामना वतनी हता (श्लो. ९-१८). एमना गुरुर्नु नाम विजयसिंह हतुं (श्लो. ७). भोज राजाना आश्रित कवि Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ ] [ शान्तिसूरि धनपालकृत ' तिलकमंजरी ' कथानुं संशोधन तेमणे कर्तुं हतुं तथा भोजे तेमने 'वादिवेताल 'नुं बिरुद आप्युं हतुं ( श्लो. २४ - ५९ ). शान्तिसूरिनुं अवसान सं. १०९६ ई. स. १०४०मां थयुं हतुं ( श्लो. १३० ). आगमसाहित्यमा केटलेक स्थळे शान्तिसूरिनो 'वादिवेताल ' तरीके उल्लेख छे." शान्तिसूरि नामना अनेक आचार्यो थई गया छे. एमने माटे जुओ 'न्यायावतारवार्त्तिक वृत्ति, प्रस्तावना, पृ. " १४६-१४९. १ उशा, प्रशस्ति. २ कसं, पृ. ११९-२० कदी, पृ. ११५, इत्यादि शालवाहन जुओ सालवाहन शीलाचार्य 6 6 आचारांग सूत्र' अने 'सूत्रकृतांग सूत्र 'ना टीकाकार. आचारांगसूत्र 'नी टीका गंभूता ( गांभू) गाममां रचाई हती. ' आ बन्ने टीकाओनी रचनामा शीलाचार्यने वाहरिगणिए सहाय करी हती. 'आचारांग सूत्र 'नी टीकानी जुदी जुदी प्रतोनी पुष्पिकाओमां तेनो रचना संवत जुदा जुदो आप्यो छे. कोईमां शक सं. ७८८, कोईमां शक सं. ७९८, कोईमां गुप्त सं. ७७२, तो कोईमां शक सं. ७७२ छे. आ चारमांनी कई साल साची ए नक्की करवानो कोई चोकस पुरावो नथी. उद्योतनसूरिनी 'कुवलयमाला 'नी प्रशस्तिमां जेमनो उल्लेख छे ते तत्त्वाचार्य ए ज शीलांक अथवा शीलाचार्य एवो एक मत छे, अने आ शीलांक अणहिलवाडना स्थापक वनराजना गुरु हता एवी पण एक परंपरा छे. आ सर्व उपरथी, शीलाचार्य हरिभद्र Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शीलाचार्य ] [ TES सूरिना समकालीन होई ईसवी सन्ना आठमा सैकामां थया हशे एवो अजमायशी निर्णय आचार्य श्रीजिनविजयजीए कर्यो छे. 'प्रभावकचरित 'ना कर्ता प्रभाचन्द्रसूरिए शीलांक अने कोट्याचार्यने अभिन्न गण्या छे. ' ' विशेषावश्यक भाष्य' उपरनी वृत्तिना कर्ता कोट्याचार्य ज ' प्रभावकचरित'ने उद्दिष्ट हशे एवं अनुमान सहेजे श्रई शके छे. शीलाचार्यनी पूर्वे ' सूत्रकृतांग सूत्र' उपर टीका अथवा टीकाओ होवो जोईए एम एमना ज विधान उपरथी जणाय छे." वळी एक स्थळे तो तेओ लखे छे के - जुदा जुदा सूत्रादर्शोमां नानाविध सूत्रों देखाय छे, अने टीकासंवादी एक पण आदर्श मळी शक्यो नथी, आथी अमुक एक ज आदर्शने अनुसरीने विवरण कर्तुं छे, ए वस्तु वचने कोई स्थळे सूत्रधी विसंवाद जणाय तो चित्तव्यामोह न करवो. # १ जुओ गम्भूता. २... निर्वृतिकुलीन श्री शीलाचार्येण तत्त्वादित्यापरनाम्ना वारिसाधुसहायेन कृता टीका परिसमाप्तेति । आशी, पृ. २८८ समाप्ता चेयं सूत्रकृतद्वितीयाङ्गस्य टीका कृता चेयं शीलाचार्येण वाहरिगणिसहायेन | यदवाप्तमत्र पुण्यं टीकाकरणे मया समाधिमृता, तेनापेततमस्को भव्यः कल्याणभाग भवतु ॥ सूकृशी, पृ. ४२७ ३ ' जीतकल्पसूत्र, ' प्रस्तावना, पृ. ११ - १५; वळी जुओ ' वस्तुपालनुं साहित्यमंडळ अने संस्कृत साहित्यमां तेनी फालो, ' पेरा १९. ४ जुओ अभयदेवसूरि, कोट्याचार्य. ५ व्याख्यातमङ्गमिह यद्यपि सूरिमुख्यै भक्त्या तथापि विवरीतुमहं यतिष्ये । किं पक्षिराज गतमित्यवगम्य सम्यक् येनैव वाञ्छति पथा शलभो न गन्तुम् ॥ सूकुशी, पृ. १ ६ इह च प्रायः सूत्रादर्शेषु नानाविधानि सूत्राणि दृश्यन्ते, न च २३ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ ] [शीलाचार्य टीकासंवाद्येकोऽप्यस्माभिरादर्शः समुपलब्धोऽत एकम दर्शमङ्गीकृत्यास्माभिविवरण क्रियते इत्येतदवगम्य सूत्रविसंवाददर्शनाच्चित्तव्यामोहो न विधेय इति । सूकृशी, पृ. ३३६ आ अवतरणमा स्पष्ट रीते — टीका 'नो निर्देश छे, एटले शीलाचार्य अहीं 'सूत्रकृतांग सूत्र 'नी प्राचीनतर चूर्णिनो उल्लेख करता नथी-प्राचीन. वर कोई टीकानो करे छे-ए देखीतुं छे. शैलकपुर थावच्चापुत्र अणगार द्वारवतीथी शैलकपुर आव्या हता अने त्यांना शैलक राजाने उपदेश आपीने श्रमणोपासक बनायो हतो. वर्णन उपरथी शैलकपुर सौराष्ट्रना प्रदेशमा होय एषु अनुमान थाय छे. 'शैलकपुर ' ए नाम जोतां सौराष्ट्रना पार्वतीय प्रदेशमां ते आवेलु हशे. जुओ थावच्चापुत्र शोभन ___ कवि धनपालनो भाई. ' शोभनस्तुति ' नामे एणे रचेलं स्तोत्र प्रसिद्ध छे. जुओ धनपाल शौरिपुर साडीप चीश आर्य देशो पैकी कुशावर्तन पाटनगर. द्वारकानी पहेलां ए यादवोनी राजधानी हतुं. महावीर शौरिपुरमा आव्या हता.' एमना समयमा शौरिपुरना राजानु नाम सौर्यदत्त हतुं. त्यांना सौर्यावतंसक उद्यानमा एक माछीमारना पूर्वभवोर्नु महावीरे वर्णन कयु हतुं.' ___ आग्रा जिल्लामां यमुना नदीना किनारे बटेश्वरनी पासे आवेलु सूर्यपुर अथवा सूरजपुर ए प्राचीन काळजें शौरिपुर मनाय छे. Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमाल ] [ १७९ जुओ कुशावर्त १ आचू , गा. १२८९; आचू, उत्तर भाग, पृ. १९३. २ मुनि कल्याणविजय, ‘श्रमण भगवान महावीर,' पृ. ३९६-९७ ३ जैन, ‘लाइफ इन एश्यन्ट इन्डिया,' पृ. ३३५ श्याम आर्य परंपरानुसार, आर्य श्याम प्रज्ञापना सूत्र 'ना कर्ता गणाय छे.' आर्य श्याम तथा आर्य कालक के कालका चार्य एक होवा संभव छे एवो केटलाक विद्वानोनो मत छे, पण कालकाचार्य एक करतां वधु थया छे जेमांथी कोने आर्य श्याम गणवा एनो निर्णय सरल नश्री एम तेओए ज स्वीकार्यु छे. बीजा केटलाक एम माने छे के पहेला कालकाचार्य जेओ ' निगोदव्याख्याता' तरीके प्रसिद्ध छे तेओ ज़ आर्य श्याम छे. १ विको, पृ. १४२; नंम, पृ. १०५, ११५, ११८; आम, पृ. ५३६; श्रापर, पृ. १३३, इत्यादि २ पं. बेचरदासकृत 'भगवती सूत्र, ' अनुवाद, भाग २, पृ. १३९-४०, टिप्पण ३ 'कालककथासंग्रह,' उपोद्घात, पृ. ५२. जुओ कालकाचार्य-१ श्रीचन्द्रमुरि चंद्रकुलना शीलभद्रसूरिना शिष्य धनेश्वरसूरिना शिष्य. एमणे सं. १२२७ ई. स. ११७१ मां अणहिलवाडमा ‘जीतकल्प सूत्र 'नी बृहच्चूर्णि उपर विषमपदव्याख्या रची छे.' १ जीकचूल्या, प्रशस्ति. श्रीचन्द्रसूरिना अन्य अन्धो माटे जुओ जैसाइ, पृ. २४३. श्रीमाल ___ कल्पसूत्र 'नी विविध टीकाओमा ‘राज्यदेशनाम ' आप्यां छे तेमां श्रीमाल पण छे.' Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० ] [ श्रीमाल श्रीमानुं बीजुं नाम भिल्लमाल के भिन्नमाल छे. भिल्लमालमां द्रम्म नामनुं रूपानार्थं चालतुं हतुं.' वळी 'निशीथचूर्णि ' अनुसार, भिमालमा चालतो रुपानो एक सिक्को 'चम्मलात ' - ( सं 'चर्मलात') कहे वातो. माहेश्वर, उज्जयिनी, श्रीमाल वगैरे नगरोमां लोको उत्सव - प्रसंगोए एकत्र थईने सुरापान करता हता. भिल्लमालमां चालता एक सिक्काने चम्मलात ' - ' चर्मलात ' कह्यो छे ए वस्तु जरा विचारवा जेवी छे. सिक्कानुं ए नाम ज विलक्षण अने अर्थरहित लागे छे. 'निशीथचूर्णि 'नी टाईप करेली आवृत्तिना संपादनमा अनेक अशुद्धिओ छे, अने अहीं पण मूळ प्रतना 'व' ने बदले भूलथी 'च' वंचायो होय अथवा मूळ प्रतोना लहियाओए 'व' नो 'च' करी नाख्यो होय एम बनवु असंभवित नथी. आ रीते 'चम्मलात'ने स्थाने ' वम्मलात ' ( = सं.' वर्मलात ' ) वांचवामां आवे तो ए नामनुं श्री मालना इतिहास साधे अनुसंधान थई शके तेम छे. श्रीमालना राजा वर्मलानो उल्लेख ' प्रभावकचरित 'मां छे. गुजरातना सुप्रसिद्ध संस्कृत कवि माघे पोताना ' शिशुपालवध 'नी प्रशस्तिमां जे वर्मलातनो निर्देश कर्यो छे ते ज आ होय एम बने. माघनो दादो सुप्रभदेव आ वर्मलानो मंत्री हतो." वर्मलात राजाना नामथी बहार पडेला सिक्का ' वर्मलात' नामथी ओळखाता होय ए तद्दन शक्य छे-जेम मध्यकालना केटलाक राजाओना सिक्काओनो निर्देश 'भीमप्रिय, ' 'बीसल कदाच वर्मलात 'ए वर्मलात प्रिय' आदि वडे करेलो छे तेम. प्रिय 'नुं संक्षिप्त रूप पण होय. 6 6 श्रीमालना पौराणिक वृत्तान्त माटे जुओ 'पुगु' मां श्रीमाल, एना इतिहास माटे जुओ 'बॉम्बे गेझेटियर, ' पु. १, भाग १मां 'भिन्नमाल ' विशेनुं परिशिष्ट, तथा ' काव्यानुशासन, ' प्रस्तावना, पृ. ८३ - १०२. १ जुओ गुर्जर. Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीहर्ष ] [ १८१ २ रूपमयं वा नामकं भवति, यथा-भिल्लमाले द्रम्मः । बृकक्षे, भाग २, पृ. ५७४, श्रीमालना द्रम्मने 'पारोपथ द्रम्म' कहेता. ' श्रीमालनी टंकशाळमां पाडेला, त्रण वार परखेला, बजारना व्यवहारमा आवता, चाल, भेळसेळ विनाना, रोकडा' पारौपथ द्रम्मनु चलण गुजरातमा ओछामां ओर्छ, विक्रमना तेरमा शतकना अंत सुधी हतुं एम 'लेखपद्धति' (पृ. २०, ३३, ३५, ३७, ३९ ४२, ५५ इत्यादि ) उपरथी जणाय छे. ३ कवड्डगा से दिज्जति, ताम्रमयं वा जं णाणगं ववहरति तं दिज्जति । जहा दक्खिणावहे कागणी, रुप्पमयं जहा भिल्लमाले चम्मलातो, निचू, भाग ३, पृ. ६१६-१७ ४ आसूचू , पृ. ३३३ ५ हेमचन्द्रकृत 'काव्यानुशासन,' प्रस्तावना (प्रो. र. छो. परीख ), श्रीस्थलक श्रीस्थलक नगरमां भानु राजा हतो. एना सुरूप नामे पुत्रने मोदक भावता होवाथी ते 'मोदकप्रिय' नामे प्रसिद्ध थयो हतो. सुरूपने एक वार वैराग्य पेदा थतां सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र्य सांपड्यां हतां अने छेवटे ते केवलज्ञान पाम्यो हतो, एवी कथा छे.' गुजरातनुं सिद्धपुर प्राचीन काळथी 'श्रीस्थल' तरीके जाणीतुं छे. ते आ श्रीस्थलक हशे ? १ पिनिम, पृ. ३३. श्रीहर्ष ईसवी सनना बारमा सैकाना उत्तरार्धमां थई गयेलो ' नैषधीयचरित'नो कर्ता. 'श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र 'नी रत्नशेखरसूरिनी वृत्तिमां 'नैषध " अने श्रीहर्षनो नामोल्लेख करीने ए काव्यना श्लोको टांकेला छे. मंत्री वस्तुपालना समयमा 'नैषध 'नी नकल गुजरातमां आवी त्यार पछी ए काव्यनुं अध्ययन-अध्यापन अहीं चालतुं रघु हतुं एनो आ एक विशेष पुरावो छे. Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.८२ ] [ श्रीहर्ष १ यदुक्तं नैषधेऽपि-पूर्वपुण्यविभवव्ययबद्धाः श्रापर. पृ. १०२ २ श्रीहर्षमहाकविनापि यज्ञे हिंसा दोषहेतुर्दर्शिता, यन्नैषधे द्वाविंशे सर्गे षट्सप्ततितम वृत्त-इज्येव देवत्र नभोज्यऋद्धिः० । ए ज, पृ. ४१ ३ आ संबंधमा ‘भारतीय विद्या,' सिंघी स्मृतिप्रन्थमा मारो लेख 'गुजरातमां नैषधीयचरितनो प्रचार तथा तथा ते उपर लखायेली टीकाओ.'. आ लेख 'वस्तुपालनु विद्यामंडळ अने बीजा लेखो' ए पुस्तकमां पण संगृहीत थयो छे. सङ्घदासगणि क्षमाश्रमण 'व्यवहारभाष्य, ' 'बहत्कल्पमाष्य,' 'पंचकल्पभाष्य' आदि भाष्यग्रन्थोना कर्ता. तेओ 'वसुदेव-हिंडी'ना कर्ता संघदासगणि याचकथी भिन्न छे तथा तेमनाथी कंईक अर्वाचीन काळमां थयेला छे एवं मुनिश्री पुण्यविजयजी मंतव्य छे.' जुओ सइन्दासगणि वाचक १ जुओ 'बृहत्कल्प सूत्र, ' ग्रन्थ ६, प्रस्तावना, पृ. २०-१३. सङ्घन्दासगणि वाचक पैशाची प्राकृतमां रचायेला, गुणाढ्य कविकृत लुप्त कथाग्रन्थ 'बह कथा 'ना प्राकृत गद्यमां थयेला जैन रूपान्तर 'वसुदेव-हिंडी'ना कर्ता. एनी रचना ईसवी सननी पांचमी शताब्दीनी आसपास थयेली छे.' _ 'वसुदेव-हिंडी 'नुं जे नाम एना कर्ताने इष्ट हतुं ते 'वसुदेवचरित' छे; पण वसुदेवना 'हिंडण'--परिभ्रमणनो वृत्तान्त एमां होवाथी ए ग्रन्थ समय जतां 'वसुदेव-हिंडो' तरीके वधु प्रख्यात थयो.' आगमसाहित्यमां आ ग्रन्थ विशेना सौथी प्राचीन उल्लेखो 'आवश्यक सूत्र 'नी चूर्णिमा छे, त्यां एनुं नाम 'वसुदेव-हिंडी' आप्यु छे.' जो के 'वसुदेव-चरित' नाम पण क्वचित् मळे छे खलं. 'श्रादप्रतिक्रमण सूत्र 'नी रत्नशेखरसूरिनी वृत्तिमां 'वसुदेवहिंडी'ने 'आगम' कहेल छे अने 'ज्ञाताधर्मकथा 'नी साथे तेनो Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सङ्घदासगणि वाचक ] [ १८३ उल्लेख कर्यो छे, ते उपरथी कथानुयोगना ग्रन्थ तरीके एनुं केटलं महत्त्व गणातुं एनी कल्पना थई शके छे. जैन साहित्यना सर्व उपलब्ध आगमेतर कथाग्रन्थोमां 'वसुदेव-हिंडी' प्राचीनतम छे. जुओ सङ्घदासगणि क्षमाश्रमण १' वसुदेव- बिंडी' (अनुवाद), उपोद्घात, पृ. १-२ २ एज, पृ. ३-५ ३ आचू, पूर्वभाग, पृ. १६४, ३२४, ४६०. आगमसाहित्यमां ' वसुदेव - हिंडी' ना अन्य आधारो तथा उल्लेखो माटे जुओ आम, पृ. २१८; व्यम ( उद्दे. ५ उपरनी वृत्ति ), पृ. ६; श्रार, पृ. १६५; वत्र, पृ. १६५; ककि, पृ. ३५. ४ नंम, पृ. ११७; बृकक्षे, भाग ३ पृ. ७२२ ५ न च तेषामिष्टसिद्धिभवनं सन्दिग्धमिति वाच्यं ज्ञाताधर्मकथाङ्गवसुदेवहिण्डिप्रभृत्यागमे साक्षादुक्तत्वात् । श्रापर, पृ. १६५. ( ६ संघदासगणिनो समय, वसुदेव - हिंडी' अने 'बृहत्कथा 'नो संबंध, ' वसुदेव- हिंडी 'नी भाषा, एमांथो प्राप्त थती सांस्कृतिक-सामाजिक माहिती अने बीजा आनुषंगिक मुद्दाओनी चर्चा माटे जुओ ' वसुदेवहिंडी' (अनुवाद), उपोदघात. सपादलक्ष राजपूतानामां आवेल शाकंभरी सांभरनी आसपासनो प्रदेश सांभर ए प्रदेशनुं मुख्य नगर हतुं.' २ सपादलक्ष आदिमां ' बरडी ' - बंटी नामनुं धान्य प्रसिद्ध छे. जुओ साम्भरि १ ज्याडि, पृ. १७४ तथा १७८ २ बरगति बरही धान्यविशेषः सपादलक्षादिषु प्रसिद्धः । जंप्रशा, " पृ. १२४ समयसुन्दर खरतरगच्छना जिनचन्द्रसूरिंना शिष्य सकलचन्द्रना शिष्य. Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ ] [ समयसुन्दर तेमणे रतंभतीर्थमां सं. १६९१ = १६३५ मां 'दशवैकालिक सूत्र उपर ' दीपिका' नामे टीका रची हती.' आ उपरांत ' कल्पसूत्र उपर पण ' कल्पलता' नामे एमनी टोका जाणीती छे. समयसुन्दर संस्कृतना एक उत्तम विद्वान हता, अने तेमणे अनेक ग्रन्थो रचेला छे. जैन गुर्जर साहित्यना पण तेओ एक सुप्रसिद्ध कवि छे. तेमनी साहित्यप्रवृत्ति सं. १६४२ = ई. स. १५८५ ( 'भावशतक ' रचायुं ) थी मांडी सं. १६९८=ई स. १६४२ ( ' जीवविचार,' 'नवतत्त्व ' अने ' दंडक ' उपरनी टीकाओ) सुधीना अर्थी शताब्दी करतां ये लांबा समयपट उपर विस्तरेला छे. १ दवेस, पृ. ११७ ( प्रशस्ति ) २ समयसुन्दरना जीवन अने तेमना ग्रन्थो माटे जुओ जैसाइ, पृ. ५७६ तथा ५८८-८९. तेमनां गुजराती काव्यो माटे जुओ पांचमी गुजराती साहित्य परिषदमां स्व. श्री. मोहनलाल द. देसाईनो निबंध 'कविवर समयसुन्दर . समिताचार्य समिताचार्य अथवा आर्य समित वज्रस्वामीना मामा हता. जैन साधुओनी ब्रह्मद्वीपक शाखा तेमना कर्तृत्वथी केवी रीते प्रवर्तमान थई ए विशे नीचेनो वृत्तान्त मळे छे: आभीरदेशमां कृष्णा अने वेणा नदीओना संगमस्थाने ब्रह्मद्वीपमा पांचसो तापसो रहेता हता. एमांनो एक तापस पोताना पग उपर अमुक प्रकारनो लेप करीने पाणी उपर फरतो हतो, आ चमत्कारथी लोको आश्चर्य पामता हता अने श्रावकोनी हेलना थती हती, वज्रस्वामीना मामा आर्य समित एक वार विहार करता त्यां आव्या. श्रावकोए तेमने बधी वात करी. ' आ तापस कोई प्रयोगथी श्रावकोने छेतरतो हशे ' एवं अनुमान करीने आर्य समिते तेमने कयुं के 'तापसने तमारे घेर आमंत्रणथी बोलावीने चरण प्रक्षालन-ना मिषथी एना पग बराबर धोई नाखो. ' पछी एक श्रावके तापस Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समुद्र आर्य] [१८५ आमंत्रण आपीने तेना पग धोई नाख्या, एटले पेलो लेप पण धोवाई गयो. तापस नदीकिनारे आवी पाणीमां ऊतर्यो, एटले डूबी गयो. पछी आचार्य त्यांथी नीकळ्या. तेमणे नदीकिनारे आवी बासक्षेप नाखी कडं, ' आव, पुत्रि ! मारे सामे किनारे जq छे.' एटले नदीना बन्ने तट मळी गया, अने आचार्य सामे किनारे चाल्या गया. आथी बधा तापसोए चमत्कृत थईने आर्य समित पासे जैन दीक्षा लीधी. तेभो सर्वे ब्रह्मद्वीपमा रहेता हता, तेथी · ब्रह्मदीपक' तरीके प्रसिद्ध थया.' - वसन्तपुरना निलय श्रेष्ठीना पुत्र क्षेमंकरे समितिसूरि पासे दीक्षा लीधी हती. हरन्त नामे संनिवेशमां समितिसूरि आव्या त्यारे त्यांनो जिनदत्त नामे श्रावक साधुओ प्रत्येनी भक्तिथी खास तेमने निमित्ते आहार तैयार करावतो हतो, तेथी आचार्य पोताना साधुओने ए वहोरवानो निषेध कर्यो हतो, एवो वृत्तान्त पण मळे छे.' जुओ अचलपुर, ब्रह्मद्वीप, वज्र आर्य १ आचू , पूर्वभाग, पृ. ५१४-१५; निभा, गा. ४४४८-५०; निचू, भाग ४, पृ ८७४-७५, वळी जुओ जीकभा, · गा. १४६३, कसं, पृ. १३२, कसु, पृ. ५१३-१४; ककि, पृ. १७१; कदी, पृ. १४९-५०, इत्यादि. २ विनिम, पृ. १००. ३ पिनिम, पृ. ३१. समुद्र आर्य - आर्य समुद्र ए आर्य मंगूना गुम होय एम जणाय छे.' एमर्नु शरीर घणुं दुर्बळ हतुं. आथी एमने माटे आहारनी वानीओ जुदां जुदा मात्रक आदिमां जुदा जुदी लेवामां आवती हती, ज्यारे आर्य मंगू तो बधी चीजो एक ज पात्रमा लेता हता; जुदां जुदा पात्रमा लावेली चीजो तेओ खाता नहोता. एक वार ए बन्ने आचार्यो विहार करता सोपारकमां गया. त्यांना बे श्रावकोमांनो एक गाडां चलावतो हतो, Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .१८६] [ समुद्र कार्य ज्यारे बीजो दारू माळवानो धंधो करतो हतो. तेओए आ बन्ने आचायोनी आहार स्वीकारवानी रीतिनो भेद जोईने आर्य मंमूनी पासे आवीने आ विशे पूछा, त्यारे आर्य मंमूए तेनो नीचे प्रमाणे उत्तर आप्योः गाडांवाळा श्रावकने तेमणे कडं, 'हे शाकटिक ! तमारं जे गाडं दुर्बळ होय तेने तमे प्रयत्नपूर्वक दोरडांथी बांधो छो; -पछी ते चाले छे. बांध्या विना ज चलाववामां आवे तो ते तूटी पडे छे. मजबूत गाडं बंध विना पण चाली शके छे, एटले तेने तमे बांधता नथी.' पछी वैकटिक-दारूवाळाने तेमणे का, 'हे वैकटिक ! तमारी जे कुंडी दुर्बळ होय तेने वांसनी पटीओथी बांधीने पछी तेमां मद्य भरो छो; पण मजबूत कुंडीने बंधननी जरूर पडती. नथा. आर्य समुद्र दुर्बळ गाडा अथवा कुंडी जेवा छे, ज्यारे अमे मजबूत गाडाः अथवा कुंडी जेवा छोए. आर्य समुद्र सारी रीते योगसंधान करी शके, ए माटे तेमनो आहार आ रीते लेवामां आवे छे." 'बृहत्कल्पसूत्र' नी वृत्तिमा आर्य मंगू, आर्य समुद्र अने आर्य सुहस्तीना मतोनो एक साथे उल्लेख करेलो छे. ____ अंधाबल क्षीण' थतां आर्य समुद्रे पादपोपगमनथी देहत्याग कों हतो. १ जुभो मंगू आर्य. २ तत्र च द्वौ धावकावेकः शाकटिकोऽपरो वैकटिको । वैकटिको नाम सुरासन्धानकारी। व्यम (उद्दे. ६), पृ. ४४ ३. व्यमा (उदे. ६), गा. २४१-४६; व्यम ( उहे. ६), पृ. ४३-४४ ४ बृकम, भाग 1, पृ. ४४ ५ माशी,पृ. २३.८ मत मौर्यवंशीय राजा अशोकना अंध पुत्र कुणालनो पुत्र.' जैन परंपस प्रमाणे, ते उज्जयिनीमां वसतो हतो अने त्यां रहीने एणे आख Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्प्रति दक्षिणापथ, सुराष्ट्र तथा आंध्र, द्राविड आदि देशो ताबे कर्या हता. ___ जैन कथा अनुसार, संप्रति पूर्वजन्ममां कौशांबीमा 'भिखारी हतो अने मरती वखते आर्य सुहस्तीनो शिष्य थयो हतो. बोजा जन्ममां ते राजा थयो, ए वखते आर्य सुहस्ती उज्जयिनीमां जीवन्तस्वामीनी प्रतिमानुं वंदन करवा माटे आव्या त्यारे रथयात्रामा एमने जोईने संप्रतिने पूर्वजन्मनु स्मरण थयु अने ते आचार्यनो शिष्य अने मोटो प्रवचनभक्त थयो. संप्रतिनो राजपिंड आर्य सुहस्तीना शिष्यो वापरता हता ए निमित्त महामिरि अने सुहस्ती ए बन्ने आचार्यों बच्चे मतभेद थयो हतो, जेमा छेवटे सुहस्तीए क्षमा मागी हती. ए समये साडीपचीश आर्यदेशो सिवायना प्रदेशोमां जैन साधुओनो विहार थतो नहोतो. आथी संप्रतिए पोताना सरहदी मांडलिकोने बोलावी तेमने जैन धर्भनो उपदेश आप्यो, अने साधुओ ज्यारे एओना देशमा विहार करे त्यारे एमनी प्रत्ये केवा प्रकारचं प्रवचनोचित वर्तन थq जोईए एजें सूचन कयु. पछी संप्रतिए राजपुरुषोने साधुवेश धारण करावी ए देशोमां मोकल्या, अने ए शैते त्यांनी प्रजाने साधुओ साथे केवी रीते वर्तवु एनी विधिथी परिचित बनावी. पछौथी साधुओ पण त्यां जवा लाग्या, अने सरहदी देशो 'भद्रक'-विहार योग्य बन्या. आ प्रमाणे संप्रतिए आन्ध्र, द्रविड, महाराष्ट्र, कुडुक आदि सरहदी प्रदेशो, जे अनेक अपायोथी भरेला हता तेमां साधुओनो सुखविहार प्रवर्ताव्यो.' ___ संप्रति राजा ए जैन इतिहासमां मोटो प्रवचनभक्त राजा गणाय छे. तेणे सवा करोड जिनचैत्य, सवा करोड जिनबिंब, छत्रीस हजार जीर्ण जिनचैत्योनो उद्धार, पंचाणु हजार पितळनां बिंब तथा हजारो उपा. श्रयो कराव्यां होवानी अनुश्रुति छे.' आजे पण कोई स्थळे भूगर्भमा दटायेली प्रतिमा मळे छ एमे श्रद्धालु जैनो संप्रति राजाना समयनी माने छे. Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८] [सम्प्रति १ जुओ कुणाल. २ बृकक्षे, भाग ३, पृ. ९१७-१८ ३ निचू, भाग २, पृ. ४३८ ४ जुओ महागिरि आर्य, सुहस्ती आर्य. ५ बुकक्षे, भाग ३, पृ. ९१७-२१ ६ ककि, पृ. १६४-६५; ककौ, पृ. १९६ सरस्वती उत्तर गुजरातनी सरस्वती नदी, जेना किनारे पाटण, सिद्धपुर वगेरे अतिहासिक स्थानो आवेलां छे. सरस्वती नदीनो पूर्वदिशाभिमुख प्रवाह ज्यां छे त्यां जईने आनंदपुरवासी लोको शरदऋतुमा यथावैभव संखडि-उजाणी करे छे.' वळी अन्यत्र, एक दिवसनी संखडि माटे सरस्वतीयात्रानुं उदाहरण आपेलं छे. ___ सरस्वतीको प्रवाह पूर्वथी पश्चिमे वहे छे, आथी जे थोडा प्रदेशमां पण ए पूर्वाभिमुख थाय छे ए प्रदेश पवित्र गणाय छे. सरस्वतीनो आ ' प्रावीनवाह' प्रवाह सिद्धपुर पासे छे, अने त्यां जूना समयथी कार्तिकी पूर्णिमाने दिवसे मोटो मेळो भराय छे, ज्यां आसपासना प्रदेशमाथी हजारो माणसो एकत्र थाय छे. 'आनंदपुरवासी लोको 'नो अर्थ ' प्राचीन आनंदपुरनी आसपासना विस्तारमा वसता लोको' एवो करीए तो एथी अतिहासिक औचित्य जळवाशे. ___ सरस्वतीना पूर्वाभिमुख प्रवाहनो उल्लेख जयसिंहसूरिना ' हम्मीरमदमर्दन' नाटक (ई. स. ना १३मा शतकनो पूर्वार्ध) मां सिद्धपुरना । रुद्रमहालयना वर्णनप्रसंगमां पण छे... सरस्वतीना इतिहास माटे जुओ ‘खंभातना इतिहास 'मां परिशिष्ट २; पुगु मां सरस्वती, तथा श्री. कनैयालाल दवे संपादित 'सर.. Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साम्ब ] [ १८९ स्वती पुराण'. १ बुकक्षे, भाग ३, पृ. ८८३-८४. जुओ आनन्दपुर. २ तत्थ ताओ संखडीओ एगदेवसियाओ जहा सरस्सईजत्ता, आसूचु, ३ नूनमस्याः [ सरस्वत्याः ] सिद्धपुरपरिसरे प्राचीमुखप्रस्मरं पयःप्रवाहमधिवसन् सुचिरविरञ्चिशिरःकर्तनसञ्जातपातकविशुद्धयर्थमिव भगवान् भद्रमहाकाल:, हम्मीरमदमर्दन, पृ. ४७ . सहस्राम्रवन उज्जयंतगिरि उपर- ए वन, ज्यां नेमिनाथने केवलज्ञान थयुं हतुं.' १ को, पृ. १६९-७० सापर्वत ___पश्विमघाटने उत्तर तरफनो भाग. एनो उल्लेख 'आवश्यकसूत्र'नी नियुक्तिमा छे.' एक दुर्गमा बसता कोंकण देशना पुरुषो सह्य नामे पर्वत उपरथी घडं, गोळ, घी, तेल आदि उतारवार्नु अने त्यां चढाववानुं काम करे छे, एवो पण निर्देश छे १ आनि, गा. ९२५ २ एकस्मिन् दुर्गे निवसन्तः कुकुणदेशोद्भवाः पुरुषा: सह्यनाम्नः पर्वताद् गोधूमगुडघृततैलादिभाण्डमवतारयन्त्यारोहयन्ति च । आहेहा, पृ. ५५ कोणे एगम्मि दुग्गे सम्झस्स भंडं आइहंति विलयंति य, आम, पृ. ५१२ सातवाहन ___ जुओ सालवाहन साम्ब ___ जांबवतोथी थयेलो कृष्णनो तोफानी पुत्र. एनां अडपलांनी कथाओ अनेक स्थळे छे, अने ते पुराणादिमा वर्णवेली कृष्णनी क्रीडाओ साधे Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९०] [साब केटलेक अंशे मळती आवे छे. केटलीक उदाहरणरूप कथाओमो संक्षेप अहीं आप्यो छे : द्वारवतीमां बलदेवना पुत्र निसढनो पुत्र सागरचन्द्र खूब रूपाळो हतो अने सांब वगेरे सर्वने ते प्रिय हतो. द्वारवतीमां वसता बीजा एक राजाने कमलमेला नामनी एवी ज रूपवान पुत्री हती. उग्रसेनना भाणेज धनदेव साथे एनुं सगपण करेलु हतुं. एक बार नारद मुनि सागरचन्द्र पासे आव्या अने तेनी आगळ कमलमेलानी प्रशंसा करी. आथी सागरचन्द्र कमलमेलामां आसक्त थयो, अने ते कन्यानी आकृति चीतरतो तथा एनुं नाम रटतो रहेवा लाग्यो. पछी नारद कमलमेला पासे गया, अने एनी आगळ तेमणे सागरचन्द्रनी प्रशंसा करी अने धनदेवनी निन्दा करी, आथी कमलमेला पण सागरचन्द्रमा आसक्त थई. नारदे आ वात जईने सागरचन्द्रने करी. पछी सागरचन्द्रे सबने कमलमेला साथे पोतानो मेळाप करी आपवानी विनंति करी. बीजा कुमारोए सांबने मद्य पिवरावीने तेनी पासे आ विनंतो स्वीकारावी, पण मधनु धेन ऊतरी गया पछी सांबने आ कामनी मुस्केलीनुं भान थयु. विचार करीने तेणे प्रद्युम्न पासे प्रज्ञप्तिविद्यानी मागणी करी. प्रज्ञप्तिनो सहायथी तेणे कमलमेलानु प्रतिरूप विकुयु तथा कमलमेलानी जगाए गोठवी दीधुं अने जे दिवसे कमलमेलानुं धनदेव साथे लग्न थवानुं हतुं ते दिवसे एर्नु हरण करीने रैवतक उद्यानमा एने सागरचंद्र साथे परणावी दीधी. पछी धनदेव साथेना लग्न समये विद्याप्रतिरूप तो अट्टहास करीने आकाशमां ऊडी गयु. कमलमेला विशे नारदने पूछवामां आवतां तेमणे कयु के 'कमलमेलाने में रैवतक उद्यानमां जोई हती; कोई विद्यावर एने हरी गयो. छ. ' आ सांभळी कृष्ण सैन्य सहित नगरनी बहार नोकळ्या. सांब पण विद्याधरनु रूप धारण करीने लडवा माटे सामे आव्यो. सर्व राजाओनो सांधे पराजय कों, पण ज्यारे एणे जोयु के पिता क्रोधायमान थया छ त्यारे ए कृष्णने पगे पडयो, अने का, 'आ कमलमेला आपघात Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ ] करवा माटे गोखमाथी पडतुं मूकती हती, तेने बचावीने अमे अहीं लाव्या छीए.' पछी कृष्णे उग्रसेननु सान्त्वन कर्यु अने बधा सुखपूर्वक रहेवा लाग्या. एक बार भगवान अरिष्टनेमि हास्वतीमां समोसर्या. एमनेा उपदेश सांभळीने सागरचन्द्रे एमनी पासे दीक्षा लीधी. ए पछी एक वार सागरचन्द्र शून्यगृहमा एकरात्रिकी प्रतिमामा रहेला हता त्यारे धनदेवे एमना वीसे नखमां त्रांबानी सोयो ठाकी. दीधी. आधी सागरचन्द्र मरण पाम्या. बीजे दिवसे तपास करतां त्रांबाना कारीगर पासेथी मालूम पड्यु के आ सोयो धनदेवे घडावी हती. क्रोधायमान थयेला सांब आदि कुमारोए धनदेव पोताने सोंपी देवामां आवे एवी मागणी करी. परिणामे यादवोना बे पक्षो वच्चे युद्ध भ्यु, परन्तु देव थयेला सागरचन्द्रे बन्नेने शान्त कर्या. पछी कमलमेलाए पण भगवान अरिष्टनेमि पासे दीक्षा लीधो. .. एक वार जांबवतीए कृष्णने कह्यु के 'मारा पुत्रनुं कोई तोफान हजी जोवामां आव्यु नथी,' त्यारे कृष्णे कडं के 'काई वार बतावीश.' पछी कृष्ण पोते आभीर थया अने जांबवतीए आमीरीनुं रूप लोधु, अने तेओ द्वारवतीमा दही वेचतां फरवा लाग्यां. सांबे जांबवतीने जोईने दहीं लेवा बोलाको; अने पछी तेने एकलीने पराणे एक देवळमां खेंचो जवा लाग्यो. पाछळथी आभीरना रूपमां कृष्ण आव्या, अने बन्ने वच्चे युद्ध थयु. आभीर कृष्ण वासुदेव थया अने आभीरी जांबवतीरूपे प्रकट थई, एटले माबापथी शरमायेलो सांब अवगुंठन करीने नासी गया. बोजे दिवसे यादवोनी सभामा एने पराणे बोलाववामां आव्यो त्यारे ते लाकडानो एक खोलो घडतो घडतो आव्यो. कृष्णे एनुं कारण पूछतां ते बोल्यो, 'जे गई कालनी बात कहेशे एना मुखमां आ ठोकवानो छे." १ आम, पृ. १३६-३५; आचू, पूर्व भाग, पृ. ११२-११४. Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ ) [साम्ब सांब भने प्रद्युम्ननी क्रीडाओ, सत्यभामाना पुत्र भानुनी सांबे करेली पजवणी, कृष्णे करेलं सांबर्नु देशनिर्वासन, तथा छेवटे एना उपर करेलो अनुग्रह, ए सर्व माटे जुओ ‘वमुझेव-हिंडी 'ना पीठिका, मुख भने प्रतिमुख ए विभागो (गुज. अनुवाद, पृ. ९२-१४३ ). आवी कथाओ तेमनी अतिशय तामां काल्पनिक हशे, पण यादव गणराज्यनी वास्तविक स्थिति तथा यादवोना आंतरिक संघर्ष उपर ते द्वारा केटलोक प्रकाश पडे छे. , साम्भरि सांभर-शाकंभरी; सपादलक्षवें मुख्य शहेर. सांभरिना लवणनो उल्लेख मळे छे. १ ज्योडि, पृ. १७४ भने १७८. वळी जुओ सपादलक्ष. २ 'लवणं च ' सांभरिलवणं, दवैहा, पृ. ११८ । पुनः सौवर्चलं, सैन्धवं पर्वतदेशैकजातं, लवणं च सांभरलवणं, दवस, पृ. ७ सालवाहन गोदावरीने किनारे आवेला प्रतिष्ठाननो राजा.' एना 'शालिवाहन,' 'शालवाहन' अने 'सातवाहन' एवां पण नाम मळे छे. ए दर वर्षे भरुकच्छना नभोवाहन राजा उपर आक्रमण करतो हतो. सालवाहनना मंत्री- नाम खरक हतुं. सालवाहननी सूचनाथी कालकाचार्ये पर्युषणपर्व चतुर्थीने बदले पंचमीए करवानुं शरू कयु हतुं. सालवाहन विशेनां केटलांक रसप्रद कथानको आगमसाहित्यमां छे. एक बार सालवाहन राजाए एना दंडनायकने आज्ञा आपी के 'शीघ्र मथुरानो कबजो लई लो.' दंडनायक वधारे कंई पूछ्या सिवाय सैन्य लईने नीकळ्यो, पण पछी तेने विचार थयो के 'कई मथुरानो कबजो लेवो ? उत्तर मथुरानो के दक्षिण मथुरा (मदुरा)नो !' पण सालवाहननी आज्ञा घणी कडक गणाती हती, आथी वधारे पूछपरछ करवान शक्य नहो. एणे पोताना सैन्यना बे भाग पाडी दीधा, अने उत्तर Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९३ सालवाहम] मथुरा तेम ज दक्षिण मथुरा बन्ने उपर विजय कों. पछी जईने राजाने विजयनी वधामणी आपी. ए ज समये बीजा कोई दृते राजाने जईने कडं के ' अग्रमहिषीने पुत्र जन्म्या छे.' त्यारे वळी त्रीजाए खबर आपी के ' अमुक स्थळे विपुल निधि प्रकट थयो छे.' आ प्रमाणे एक साथे अनेक मंगल समाचारो आववाथी अतिहर्षने कारणे सालवाहन दीप्तचित्त थई गयो. ते पलंगो तोडवा लाग्यो, स्तंभो उपर प्रहार करवा लाग्यो, अने अनेक प्रकारे असमंजस बोलवा लाग्यो. एना प्रलापमा नीचेनी गाथाओ पण हती : सचं भण गोदावरि ! पुव्वसमुद्देण साविया संती। साताहणकुलसरिस, जति ते कूले कुलं अस्थि ॥६२४६।। उत्तरतो हिमवंतो, दाहिणत सालिवाहणो राया। समभारभरकता. तेण न पल्हत्थए पुहवी ॥ ६२४७ ।। [अर्थात् हे गोदावरी ! पूर्व समुद्रना सोगन खाईने साधु कहे : सातवाहनना जेवू बीजुं कोई कुल तारा कूल-किनारा उपर छे ! उत्तरमा हिमालय अने दक्षिणमा शालिवाहन राजा-एम (बन्ने दिशामां) सरखा भारथी आक्रान्त थयेली पृथ्वी चलायमान थती नथी.] पछी राजाने भानमां लाववा माटे खरक मंत्रीए एक उपाय कयों. अनेक स्तंभो अने भीतो तेणे तोडी नाख्यां. राजाए पूछ्यु : 'आ कोणे कयु ?' एटले मंत्रीए उत्तर आप्यो : ' आपे.' पछी 'आ मारी आगळ मिथ्या भाषण कर छे' एम मानीने राजाए तेने लात मारी. संकेत प्रमाणे बीजा माणसोए अमात्यने अन्यत्र छुपावी दोधो. पछी कंईक जरूर पडतां राजाए पछ्युः 'अमात्य कयां छे ?' पेला माणसोए कह्यु: 'आपनी आगळ अविनय कों, तेथी एमनो वध करवामां आव्यो छे.' त्यारे राजा सोरवा मांड्यो , ' में आ सारुं न कयुः ए समये मने कई भान न रडुं.' पछी पेला राजपुरुषो बोल्या के २५ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ सालबाहर कदाच चंडालोए अमात्यनुं रक्षण कर्यु होय तो अमे तपास करीए.' पछी अमात्यने लाववामां आव्यो, अने राजा प्रसन्न थयो.' सातवाहननी अग्रमहिषीनुं नाम' पृथ्वी हतुं. एक वार सजा क्यांक बहार गयों हतो त्यारे तेनो वेश धारण करीने, बधी राणीओथी वौटळाईने ते राजाना आसन उपर बेठी. केटलीक वार पछी राजा त्यां आव्या; तो पण ते ऊठी नहि. पृथ्वीनुं आ वर्तन राजाने गम्यु नहि. त्यारे पृथ्वी बोली के 'राजा ज्यारे दरबार भरीने बेठो होय त्यारे गुरुजनो सिबाय बोजो गमे तेवो मोटा माणस आवे तो पण ते ऊभो थतो नथी. हुं तमारी लीला करतो हती, तेथी ऊभी न थई. जो एम न होत. तो जरूर ऊभी थईने तमारं अभिवादन करत.' एम कहीने तेणे राजाने प्रसन्न कर्यो. १ जुओ प्रतिष्ठान. २ जुओ. नभोवाहन. नभोवाहन ते ईपवी सनना बीजा शतकना पूर्वार्धमा थयेलो क्षहरातवंशीय शक-क्षत्रप नहपान, तथा सालवाहन अथवा सातवाहन ते एनों समकालीन सातवाहन वंशनो गोतमीपुत्र शातकर्णि होई शके. आ संबंधमां पण जुओ नभोवाहन. ३ बृकक्षे, भाग ६, पृ. १६४७ ४. जुओ कालकाचार्य-२. ५ आ — दीप्तचित्त' शब्द मूळनो छे. त्यां एनो अर्थ 'हरखघेलो, हषोन्मत ' ( Excited ) एवो छे. झीणी अर्थच्छायाओ व्यक्त करवा माटे आपणने अनेक शब्दोनी जरूर छे त्यारे आ जूनो शब्द प्रचलित करवा जेवो छे. आवों एक बीजो शब्द ‘क्षिप्तचित्त' छे. राग, भय, अपमानादियी जेनी सज्ञा नष्ट थई गई होय ए ‘क्षिप्तचित्त' कहेवाय छे (जुभो । अभिधानराजेन्द्र' ग्रन्थ ३ मा 'खित्तचित्त'). ६ बुकमा. गा. ६२४४-४९; बृकक्षे, भाग ६, पृ. १६४७-४९ ७ व्यभा ( उद्दे. ६, गाः १९९-२०१ ), व्यम ( उद्दे. ६), Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धसाधु ] [१९५ सिद्धराज जयसिंह सं. ११४९ थी ११९९ ई. स. १०९३ थी ११४३ सुधी मणहिलवाडनी गादी भोगवनार गुजरातनो चौलुक्यवंशीय राजा. अभिलषित धन होय छतां एनी रक्षा, प्रतिष्ठाप्राप्ति अने अभीष्ट स्त्रीनी कामना करतां मनुष्य दुःखी थाय, अने स्त्रीनी प्राप्ति थाय छतां मनुष्य पुत्रादिनी आशाथी दुःखी थाय-ए सबंधमां राजा सिद्धराज जयसिंहनुं उदाहरण 'श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र'नो रत्नशेखरनी वृत्ति (ई. स. १४४०) मां आपेलं छे.' सिद्धराज विशेनी आ प्रकारनी किंवदंती लोकप्रसिद्ध हो, ते उपरथी आ उदाहरण लेवायुं लागे छे. १ एवमभिलषितधनत्वेऽपि तद्रक्षास्वप्रतिष्ठाप्राप्त्यभीष्ट-स्त्रीसयोगकामितकामभोगाद्याशया तत्प्राप्तावपि सिद्धराज-जयसिंहनृपादिवत् पुत्राद्यपत्याशया......सर्वदापि दुःखिन एव,...श्रापर, पृ. १०१ सिद्धसाधु __ तेओ हरिभद्रसूरिना शिष्य हता. बुद्धधर्मनो मर्म जाणवा माटे तेओ बौद्धो पासे गया हता; त्यां बौद्ध मतथी तेओ भावित थया, पण गुरुने वचन आप्यु हतुं, एटले तेमनी विदाय लेवा माटे आव्या. गुरुए तेमने प्रतिबोध कर्यो, पण बौद्धोने पण वचन आप्यु हतुं एटले पाछा तेमनी विदाय लेवा माटे गया. ओम एकवीस वार थयु. छेवटे हरिभद्रसूरिए तेममा प्रतिबोध माटे 'ललितविस्तरा' वृत्ति रची, त्यारपछी तेओ गुरु पासे स्थिर थईने रह्या.' 'प्रभावकचरित' अनुसार आ सिद्ध साधु ते 'उपमितिभवप्रपंच. कथा'ना कर्ता सिद्धर्षि छे. पण ऐतिहासिक प्रमाणो आपणने निश्चितपणे एम मानवा प्रेर छे के सिद्धर्षि ए हरिभद्रसूरिना प्रत्यक्ष शिष्य नहोता, केम के सिद्धर्षिना पोताना ज कथन मुजब, तेमनी उपर्युक्त कथा Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ ] [ सिद्धसाधु सं. ९६२ ई. स. ९०६मां रचाई छे, ज्यारे हरिभद्रसूरि ए विक्रमना आठमा सैकाना उत्तराधमां अने नवमा सैकाना पूर्वार्धमां थई गया. सिद्धर्षिए पोताना 'धर्मबोधकर गुरु ' तरीके हरिभद्रनो उल्लेख कर्यो छे अने तेमणे 'ललितविस्तरा' वृत्ति अनागतनो विचार करीने पोताने माटे ज निर्मी होवानुं बहुमानपूर्वक नोंध्यु छे. 'ललितविस्तरा' वृत्ति जाणे के अनागत-भविष्यनो विचार करीने पोताने माटे हरिभद्रे रची ए सिद्धर्षिना शब्दोनो वास्तविक अर्थ तो ए थई शके के बन्ने प्रत्यक्ष समकालीनो नथी. एमां तो एक पूर्वकालीन विद्वाने पोतानी आध्यात्मिक दृष्टिने बराबर रुचे एवी कृति लखी ए माटेना सिद्धर्षिना प्रशंसाना उद्गारो छे. सिद्धर्षिने बौद्धमतर्नु आकर्षण हशे, पण 'ललितविस्तरी'नुं अध्ययन करीने तेओं जैन मतमां स्थिर थया एवो अर्थ पण उपर टांकेली अनुश्रुतिनो करी शकाय. १ श्रापर, पृ. ३२ २ प्रच, 'सिर्षिचरित,' श्लो. ९९-१४७ ३ पहेली ओरियेन्टल कॉन्फरन्समां आचार्य जिनविजयजीनो निबंध 'हरिभदाचायस्य समयनिर्णयः । सिद्धसेनगणि : जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणकृत 'जीतकल्पसूत्र' उपरनी चूर्णिना कर्ता.' आ सिद्धसेनगणि जिनभद्रगणिनी पछी अर्थात् ई. स. ६०९थी अर्वाचीत काळमां थया एटलं तो नको छे, पण तेमना समय विशे तथा तेओ कोण हता ए विशे निश्चयपूर्वक कही शकाय एम नथी.' १ जीतकरुपचूर्णिः समाप्ता। सिद्धसेनकृतिरेषा। जीकसू , पृ. ३० २ जीकसू, प्रस्तावना पृ. १७ सिद्धसेन दिवाकर आदि जैन तार्किक, कवि अने स्तुतिकार, जेमने परंपराथी राजा Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धसेन दिवाकर ] विक्रमादित्यना समकालीन गणवामां आवे छे, तथा विक्रमने जेमणे जैनधर्मी को होवार्नु मनाय छे. एमने विशेना केटलाक प्रकीर्ण उल्लेखो अागमसाहित्यमा छे एमां सौथी महत्त्वनो उल्लेख केवलीने केवलज्ञान अने केवलदर्शन युगपत् थतुं होबा विशेनो तेमनो मत छे. आगमिक मत एवो छे के केवलीने केवलज्ञान अने केवलदर्शन युगपत्-एक साथे थतुं नथी, पण एक समये केवलज्ञान अने बीजे समये केवलदर्शन एम वारंवार थयां करे छे. सिद्धसेन आ मतने तर्कथी असिद्ध गणे छे. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण जेवा पछीना आचार्योए सिद्धसेनना आ मतनुं खंडन कर्यु छे. आगमसाहित्यमां सिद्धसेन अने जिनभद्रना आ मतांतरोनी वारंवार नोंध लेवामां आवी छे.' सिद्धसेनकृत ' द्वात्रिंशिकाओ' मांथी कवचित् अवतरण आपबामां आवेलं छे. 'निशीथसूत्र ' उपर सिद्धसेने एक टीका रची हती, एम 'निशीथचूर्णि मांना उल्लेखो उपरथी जणाय छे. पण आजे ए टीका विद्यमान नथी. ' योनिप्राभृत' शास्त्रथी सिद्धसेनाचार्य घोडा बनाव्या होवानो उल्लेख पण छे. एमना सुप्रसिद्ध न्यायग्रन्थ ‘सन्मतितर्क-' नो उल्लेख प्राचीन चूर्णिओमां : दर्शनप्रभावक शान' तरीके करेलो छे. 'न्यायावतार सूत्र' अने 'कल्यागमन्दिरस्तोत्र' ए सिद्धसेननी अन्य कृतिओ छे. सिद्धसेनना समय विशे विद्वानोमां जबरो मतभेद छे अने ईसवी सननी पहेली शताब्दीथी मांडी सातमी शताब्दी सुधी जुदा जुदा विद्वानोए एमनो समय गण्यो छे.' 'सन्मतितके 'नो प्रस्तावना (पृ. ३५-४३)मां तेमनो समय विक्रमनो पांचमो सैको गणेलो छे. मिस शार्लोट क्रौझेए सिद्धसेनने समुद्रगुप्तना समकालीन गण्या छे." Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ ] [ सिद्धसेन दिवाकर सिद्धसेन विशेना परंपरागत वृत्तान्त माटे जुओ ' प्रभावकचरित -' मां ' वृद्धवादिचरित' तथा ' प्रबन्धकोश 'मां ' वृद्धवादि - सिद्धसेन - सूरिप्रबन्ध, ' तथा एमना जीवन विशे अतिहासिक चर्चा माटे जुओ सन्मतिप्रकरण, ' प्रस्तावना, पृ. ३५-८२. सिद्धसेननी विशिष्टताओना संक्षिप्त, पण समर्थ निरूपण माटे जुओ 'भारतीय विद्या, पु. ३, सिंधी स्मृतिग्रन्थमां पं. सुखलालजीनो लेख ' प्रतिभामूर्ति सिद्धसेन दिवाकर. ' १ जुओ गन्धहस्ती १ भसूअ ( शतक १, उ. ), नेहा, पृ. ५२; नंम, पृ. १३४, १३५, १३८, १७५; कसं, पृ. ११५; ककि, पृ. १२७; इत्यादि. २ बृकक्षे, भाग २ पृ. ३५५ ३ एतस्स चिरातनगाहापायस्स सिद्धसेनाचार्यः स्पष्टेनाभिधानेनार्थमभिधते । निचू, भाग १, पृ ७८ अस्यैवार्थस्य स्पष्टतरं व्याख्यानं सिद्धसेनाचार्यः करोति - भुंजसु प• क्खातं ( भा. गा. ३०३ ), एज, पृ. ९६ ¡ भा. गा. ५०४ ( एक्केकं तं दुविहं० ) सिद्धसेनकृत छे, केम के एनी पूर्वे लख्युं छे : इदमेवार्थ सिद्धसेनाचार्यों वक्तुकाम इदमाह, एज, पृ. १५३ ४ यत्र योनिप्राभृतादिना यदेकेन्द्रियादिशरीराणि निर्वर्त्तयति, यथा सिद्धसेनाचार्येणाश्वा उत्पादिताः । बृकक्षे, भाग ३, पृ. ७५३ 'निशीथचूर्णि 'मां पण आ प्रकारनो उल्लेख छे ( 'सन्मति प्रकरण', प्रस्तावना, पृ. ३७ ). ५ प्रच, (अनुवाद), प्रस्तावना, पृ. ४९ ६ विन्टरनित्स, हिस्टरी ऑफ इन्डियन लिटरेचर, ' प्रन्थ २, पु. ४.७७, टिप्पण ' ८ > ७ 'विक्रम वोल्युम (पृ. २१३ - २८० ) मां तेमनो लेख 'सिद्धसेन दिवाकर ॲन्ड विक्रमादित्य. • Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिन्धु 1 सिनवल्ली सिनवल्ली रण जेवी जगा हती.' कुंभकारप्रक्षेप नगर त्यां आवेलं हतुं. १९९ 'सिनवल्ली 'नुं 'सिन' अंग ' सिन्ध ' शब्दनुं अपभ्रष्ट रूप हशे ? जुओ कुम्भकारप्रक्षेप, वीतभयनगर १ आचू, उत्तर भाग, पू. ३४-३७ सिन्धु [१] सिन्धु नदी: गंगा, सिन्धु वगेरेने महानदीओ कही छे अने तेमना जळने : ' महासलिला जल' कह्युं छे. ' મ ५ [२] सिन्ध देश. सिन्ध आदि देशो' असंयम विषय ' ( ज्यां संयम पाळवो कठण पडे एवा प्रदेश) होवाथी त्यां वारंवार विहार करवानो निषेध करेलो छे. सिन्धु, ताम्रलिप्त (खंभात) आदि प्रदेशोमां मच्छर पुष्कळ होय छे." सिन्धनां ऊंटनुं चर्मः घणुं मृदु होय छे.* सिन्धमां गोरसनो खोराक व्यापक प्रचारमां होवाथी जे सिन्धवासीए दीक्षा लोधी होय ते गोरस विना रही शकतो नथी. " सिन्ध देशमां अग्निने मंगल गणेलो छे, तथा त्यां धोबीओने अपवित्र गणनामां आवता नथी. सिन्धु विषयमां वगर फाडेलां, आखां वस्त्रों परवानो रिवाज छे.' दुर्भिक्षना समयमां मांसभक्षण सामान्य छे, पण सिन्धमां सुभिक्षना समयमा पण लोको मांस खाय छे. त्यां नदीनां पाणीथी धान्य नीपजे छे." सिन्धमां दारू राखवाना पात्रमां पण भोजन गर्हित गणातुं नथी, एवो देशाचार छे. ६ છ ११ १ बृकक्षे, भाग ४, पृ. ९५७ २ ए ज, भाग ३, पृ. ८१६ ३. सूकृच्, पृ. १०१, जुओ ताम्रलिप्ति. ४ आसूच, पृ. ३६४ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० ] ५ बृकक्षे, भाग ३, पृ. ७७५ ६ विको, पृ. १८ आम, पृ. ६ ७ निचू, भाग २, पृ. ३४६; बृकक्षे, भाग २, पृ. ३८३-८४ ८ बृकक्षे, भाग ६, पृ. १६८१ 3 ९ ए ज, भाग २, पृ. ३८३-८४ १० ए ज, भाग २, पृ. ३८३-८४ ११ बृक ( विशेषचूर्णि ), भाग २, पृ. ३८४ टि. सिन्धु - सौवीर साडीपचीश आर्यदेशो पैकीनो एक देश, एनी राजधानी बीतिभय नगरमा हती, ज्यां उदायन राजा राज्य करतो हतो. [ सिन्धु अल बिरूनीए मूलताननो आसपासना प्रदेशने सौवीर कह्यो छे. सिन्धु - सौवीरनो सामान्यतः एक साथे उल्लेख होय छे, " ए उपरथी बन्ने प्रदेशोनुं एक ज एकम गणातुं होतुं जोईए. आजना सिन्ध तथा पश्चिम पंजाबना प्रदेशोनों समावेश सिन्धु- सौवीरमां थतो हतो. ' १ सूकृशी, पृ. १२३; बृकक्षे, भाग ३, पृ. ९१२-१४ १२ जुओ वीतिभयनगर. सिन्धु - सौवीरादिमां त्याग करवा लायक विरूप वत्र पहेरनार गर्हित थाय छे, तेथी त्यां आखां वस्त्रो पहेवानुं विधान छे. ७ ३ जुओ उदायन. ४ ज्याडि, पृ. १८३ ५ भसू, शतक १३, उदे. ६; ककि, पृ. १९९; क, पृ. ५८७८८; कदी, पृ. २३ ककौ, पृ. २३४, इत्यादि. जुओ उदायन, वीतिभयनगर. ६ ज्याडि, पृ. १८३ ७ बृकभा, गा. ३९१३ बृकसे, भाग ४, पृ. १०७३-७४. सरखावो सिन्धु. ५ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुन्दरीनन्द ] [२०१ सिपा माळवानी एक नदी, जेना किनारे उज्जयिनी आवेलुं छे. रोहकने सिप्रा नदीना किनार बेसाडीने एनो पिता कोई बीसरायेली वस्तु लेवा माटे पाछो उज्जयिनीमां गयो, त्यारे रोहके नदीनी रेतीमां प्राकार सहित आखी उज्जयिनीनुं आलेखन कयु हतुं. एवी वार्ता छे.' १ नंम, पृ. १४५. जुओ रोहक. सिंहपुर अगियारमा तीर्थंकर श्रेयांसनाथना जन्मस्थान तरीके सिंहपुरनो उल्लेख छे, ते बनास्स पासेनुं जैन तार्थ सिहपुरी मानवामां आवे छे.' . पण 'सूत्रकृतांग सूत्र'नो शोलांकदेवनी वृत्तिमां उद्धत थयेला एक हालरडामां नकपुर, हस्तकल्प, गिरिपत्तन, कुक्षिपुर, पितामहमुख अने शौरिपुर ए नगरोनी साथे सिंहपुरनो उल्लेख छे. आ सिंहपुर ते बनारस पासेनुं सिंहपुरी के सौराष्ट्रनु सिंहपुर-सीहोर ए. प्रश्न विचारवा जेवो छे. ए हालरडामा निर्देशेलां हस्तकल्प अने गिरिपत्तन" ए बे नगरो निःशंकपणे गुजरातनां छे ए पण साथोसाथ याद राखवू जोईए. १ आनि, ३८३ . . २ 'प्राचीन तीर्थमाला,' पृ. ४ ३ सूकृशी, पृ. ११९; अवतरण माटे जुओ कान्यकुब्ज. ४ जुओ हस्तिकल्प. ५ जुओ गिरिनगर. सुन्दरीनन्द एने विशेनी कथानो सारांश आ प्रमाणे छे. नासिक्य-नासीकमां नंद नामे वणिक हतो, एनी सुन्दरी नामे पत्नी हती. सुन्दरीमां नंद अत्यंत आसक्त होवाने कारणे लोकोए एनुं नाम 'सुन्दरीनन्द' पाड्युं हतुं. एना भाईए दीक्षा लीधी हती, ए नंदने प्रतिबोध पमाडवा माटे आव्यो, Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ ] [ सुन्दरीनन्द सुन्दरीनंदे तेने भोजन वहोराव्यु. पछी साधुए तेनी पासे पात्र उपडाव्यु अने पोतानी साथे चलाव्यो. सुन्दरीनन्दना मनमा हतुं के 'हमणां भाई मने रजा आपशे.' पण साधु तो तेने पोताना निवास ज्यां हतो ते उद्यान सुधी लई गया. लोकोए हाथमां पात्र सहित नंदने जोयो, अने कहेवा लाग्या के 'सुन्दरीनंदे दीक्षा लीधी छे !' एटलामां तो उद्यानमां साधुए नंदने देशना आपी, पण उत्कट रागवाळो होवाने कारणे तेने प्रतिबोध पमाडी शकायो नहि. साधु वैक्रिय लब्धिवाळा-इच्छा मुजबनां रूपो उत्पन्न करवानी शक्तिवाळा हता. तेमणे वानरयुगल विकुव्यु, अने नंदने पूठ्यु के, 'सुन्दरी अने वानरी बच्चे केटलुं अंतर !' नंदे उत्तर आप्यो, 'भगवन् ! सरसव अने मेरु जेटलं.' पछी साधुए विद्याधरमिथुन वि कुव्यु अने नंदने पूछयु, एटले तेणे उत्तर आप्यो के 'विद्याधरी अने सुन्दरी तुल्य रूपवाळां छे.' पछी साधुए देवमिथुन विकुन्यु, एटले ए देवांगनाने जोईने नंद बोल्यो के 'भगवन् ! आनी आगळ, सुन्दरी वानरी जेवी छे.' साधुए कह्यु के 'आ तो थोडा धर्मथी पामी शकाय छे.' आ पछी साचा धर्मनुं फळ विचारीने सुन्दरीनन्दे दीक्षा लीधी.' बुद्धनो ओरमान भाई नंद पोतानी पत्नी सुन्दरीमा अत्यासक्त हतो, एने पराणे दीक्षा आपवामां आवीहती अने दृष्टान्तोथी वैराग्यमां स्थिर करवामां आव्यो हतो-एनी कथा वर्णवता अश्वघोषना 'सौन्दरानन्द काव्य'ना वस्तुनु कोई स्वरूपान्तर उपर्युक्त कथामां रजू थयु छे एम जणाय छे. ____एक भाई दीक्षित होय अने ते गृहस्थ भाईने त्यां भिक्षा माटे आवी पात्र उपडावी एने पोतानी साथे लई जाय अने पछी दीक्षा आपे ए प्रसंग उपर्युक्त कथानी जेम जंबुस्वामीनी पूर्वभवकथामां भवदत्त अने भवदेवना संबंधमां मळे छे, जे एना प्राचीनतम रूपे 'वसुदेव-हिंडी' (भाषान्तर, पृ. २५-२७)मां प्राप्त थाय छे. Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुराष्ट्र जुओ नासिक्य १ आचू, पूर्व भाग, पृ. ५६६; आम, पृ. ५३३ सुरप्रिय एक यक्ष. एनुं आयतन द्वारवती पासेना नंदनवन उद्यानमा हतुं. जुओ द्वारवती, रैवतक सुराम्बर एक यक्ष. एनुं आयतन शौरिपुरमा हतुं.' १ पाय, पृ. ६७ सुराष्ट्र साडीपचीस आर्य देशो पैकी एक. जेनी राजधानी द्वारवतीद्वारकामा हती.' 'अनुयोगद्वार सूत्र'मां क्षेत्रनी वात करता, मगध, मालव, महाराष्ट्र अने कोकणनी साथे सुराष्ट्रनो उल्लेख कर्यो छे.' 'कल्पसूत्र'नी विविध टीकाओमां आपेलां 'राज्यदेशनाम'मा 'सौराष्ट्र' पण छे. 'सुरद्वा' अथवा सुराष्ट्र छन्नु मंडलमां वहें चायेलो हतो. . एक माणस 'सौराष्ट्र' एटले के 'सुराष्ट्रनो' केवी रीते कहेवाय ए नीचे प्रमाणे समजाव्यु छः गिरिनगरमां निवास करवानी इच्छाथी कोई माणस मगधमांथी सुराष्ट्र तरफ जवा नीकळे अने सुराष्ट्रना सीमाडे आवेला गाममां पहोंची जाय, पछी एनो निर्देश करवानो प्रसंग उपस्थित. थतां एने माटे 'सौराष्ट्र' अर्थात् 'सुराष्ट्रनो'-एवा शब्दनो व्यवहार थाय छे. वळी 'सूत्रकृतांगचूर्णि'मां मगधना श्रावक साथे सुराष्ट्रना श्रावकनो उल्लेख छ ('खेत्ते जो जत्थ खेत्ते पुरिसो, जहा सोरट्टो. सावगो मागधो वा एवमादि,' पृ. १२७), ए वस्तु सूचवे छे के चूर्णिकारना समयमा जैनधर्मनां केन्द्रोमां मगध अने सुराष्ट्र पण हता, Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ ] [ सुराष्ट्र एक संनिवेशमां वे दरिद्र भाईओ हता; तेओए सुराष्ट्रमां जईने एक हजार रूपक उपार्जित कर्या हता एवं एक प्राचीन कथानक छे. ते उपरथी समुद्री वटायेला सुराष्ट्रमां बहोळो वेपार चालतो हतो एवं अनुमान स्वाभाविक रीते ज थाय छे. 'वसुदेव - हिंडी' ( ई. स. ना पांचमा सैका आसपास ) ना 'गन्धर्वदत्ता लंभक'मांथी सुराष्ट्रनी वेपारी जाहोजलालीनुं समर्थन करतो पुरावो प्राप्त थाय छे. एमां चारुदत्त नामे वणिकपुत्र चीनस्थान, सुवर्णभूमि, कमलपुर, यवद्वीप, सिंहल तथा पश्चिमे बर्बर अने यवन देशनो जलप्रवास खेडीने पाछे। फरतां सुराष्ट्रना किनारे प्रवास करतो हतो अने किनारो दृष्टिमर्यादामां हतो व्यारे एनुं वहाण भांगी गयुं अने सात रात्रिओ एक पाटियाने आधारे समुद्रमां गाळ्या पछी 'उंबरावतीवेला' ए नामथी ओळखता तीरप्रदेश उपर ते फेंकाई गयो हतो ( 'वसुदेवहिंडी,' मूळ पृ. १४६; भाषान्तर, पृ. १८९). कुणालना पुत्र संप्रति उज्जयिनी मां रहीने सुरा विषय स्वाधीन कर्यो हतो." सुरा ए नेमिनाथनी जन्मभूमि अने विहारभूमि होई त्यां जैन धर्मनुं जोर होय अने जैन साधुओ ए प्रदेशमां विचरता होय ए स्वाभाविक छे, पण संप्रतिनुं आधिपत्य त्यां स्थपाया पछी जैन धर्मनी प्रवृत्तिने वेग मळ्यो हशे 'आ अनुमानने समर्थन आपतां प्रमाणरूप कथानको आगमसाहित्यमां मळे छेः सुराष्ट्र विषयमां बे आचार्यो हता. एक आचार्य कायम त्यां ज रहेता हता, तेओ आगंतुक आचार्यने सुगमदुर्गम मार्गो तथा सुखविहार करी शकाय एवां क्षेत्रो वगेरे बधुं समजावता हता. जुदा जुदा प्रदेशोना वतनी साधुओना देशराग विशे आम कयुं छे: एक साधु सुराष्ट्रनी प्रशंसा करे छे के ' सुरराष्ट्र विषय रमणीय छे. ' बीजो साधु बोल्यो के 'तुं कूपमंडूक छे. तने शीं खबर छे ! सारो देश तो दक्षिणापथ छे.' आम देशरागथी चालता उत्तर- प्रत्युत्तरोमांथी कलह उत्पन्न थाय छे.' १० Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुराष्ट्र ] । २०५ __सुराष्ट्रमां जैन साधुओनो विहार घणा प्राचीन काळथी व्यापक हतो एम सूचवतुं एक लोकप्रचलित पद्य, ई. स. ना पांचमा सैका आसपास रचायेल प्राकृत गद्य कथाग्रन्थ 'वसुदेव-हिंडी'ना 'गंवदत्ता लंभक'मां मळे छे. जुओअट्ठ णियंठा सुरठं पविट्ठा, कविट्ठस्स हेह। अह सन्निविट्ठा । पडियं कविट्ठ फुट्ट च सीसं, अव्वो ! अव्यो ! वाहरंति हसति सीसा ।। ( मूल, पृ. १२७) अर्थात् आठ निर्ग्रन्था सुराष् मां प्रवेश्या, अने त्यां एक कोठना झाडनी नीचे बेठा; कोह पड्यु अने (निर्ग्रन्थनु) माथु फूटी गयुं 'अव्वो!' ‘अब्यो ! ' एम बोलता शिष्यो हसवा लाग्या (भाषान्तर, पृ. १६२). सुराष्ट्रनो एक श्रावक उज्जयिनी जतो हतो. दुष्काळनो समय हतो. एने बौद्ध साधुओनो संगाथ थयो. मार्गमां चालतां एनुं भा, खूटी गयु. बौद्धोए कडं के 'अमारो धर्म स्वीकार तो तने खावार्नु आपीए.' पछी श्रावकने पेटमां दर्द थयु बौद्रोए अनुकंपाथी तेना उपर चीवर ओराढ्यु, पण ते तो नमस्कारमंत्रनो जाप करतो कालधर्म पाम्यो." सुराष्ट्र अने उज्जयिनी वच्चेनो व्यवहार, सुराष्ट्र तथा आसपासना प्रदेशोमां बौद्धोनी वस्ती वगेरे बाबतो उपर आ कथानक केटलोक प्रकाश पाडे छे. तेल भरवा माटेनुं विशिष्ट प्रकारचें माटीनुं पात्र सौराष्ट्रमां 'तैलकेला' नामथी प्रसिद्ध हतुं. ए तूटी न जाय तेम ज चोराई न जाय ए माटे एनुं सारी रीते संगोपन करवामां आवतुं हतुं.१५. 'कंगु'-कांग नामे धान्य सुरा'ट्रमा सारा प्रमाणमां थतुं हतुं.१३ आगमसाहित्यना प्राचीनतर अंशोमां 'सौराष्ट्र' करतां 'सुराष्ट्रा Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ [सुराष्ट्र -सुराष्ट्र' (प्रा. सुरवा, सुग्द) शब्दना प्रयोग प्रत्ये स्पष्ट पक्षपात जोवामां आवे छे. अन्य साहित्यमा पण एम ज छे ए वस्तु नोवपात्र छे." १ सूकृशी, पृ. १२३; वृकक्षे, भाग ३, पृ. ९१२-१४ २ अनु, पृ. १४३ ३ जुओ गुर्जर. ४ छन्नउई मंडलाई सुरवा, निचू, भाग ५, पृ. ९४० मण्डलमिति देशखण्डम् , यथा-षण्णवतिमण्डलानि सुराष्ट्रादेशः, बृकक्षे, भाग १, पृ. २९८ ५ जीम, पृ. ५६ ६ दवैचू , पृ. ४०; दवैहा, पृ. ३५ ७ निचू , भाग २, पृ. ४३० ८ जुओ सम्प्रति. . ९ निचू, भाग २, पृ. ४३४ १० बृकशे, भाग ३, पृ. ७६. ११ आचू , उत्तर भाग, पृ. २७८ १२ तैलकेला-सौराष्ट्रप्रसिद्धो मृन्मयस्तैलस्य भाजनविशेषः स च भाभयालोच(ठ)नभयाच्च सुठु संगोप्यते...ज्ञाधअ, पृ. १४ १३ निचू , भाग २, पृ. २६५ १४ जुओ पुगु मां सुराष्ट्र. मुहस्ती आर्य आर्य महागिरि अने आर्य सुहस्ती ए बे स्थूलभद्र स्वामीना शिष्यो हता. एमां महागिरि ए सुहस्तोना उपाध्याय हता. आगमप्रोक्त आचारपालन माटे आर्य महागिरि खूब आग्रही हता. आर्य सुहस्तीना साधुओ राजा संप्रतिनो राजपिंड स्वीकारता हता अने सुहस्ती ए बस्तु चालवा देता हता ए मुद्दा उपर तेमनी अने सुहस्ती Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोपारक] [ २०७ वच्चे मतभेद थयो हतो, जेमा छेवटे सुहस्तीए पोतानी भूलनो स्वीकार कर्यो हतो.' __ आर्य महागिरिए गजाग्रपदमां' अनशन कर्यु त्यारपछी आर्य सुहस्ती पोताना शिष्यो साथे उज्जयिनी गया अने त्यां भद्रा नामे शेठाणीनी यानशाला-वाहनशालामां निवास को. त्यां भद्रानो अवंतिसुकुमाल नामे पुत्र एमनेा शिष्य थयो हतो.' आर्य सुहस्तीना नीचे प्रमाणे बार शिष्यो हताः आर्य रोहण, भद्रयश, मेघ, कालर्षि, सुस्थित, सुप्रतिबुद्ध, रक्षित, रोहगुप्त, ऋषिगुप्त, श्रीगुप्त, ब्रह्मा अने सोम. १ जुओ महागिरि आर्य, सम्प्रति. २ जुओ गजायपद. ३ जुओ अवन्तिसुकुमाल. ४ ककि, पृ. १६८ सोपारक मुंबईनी उत्तरे थाणा जिल्लामा दरियाकिनारे आवेढं सोपारा. आगमसाहित्यना उल्लेखो पण सोपारक समुद्र किनारे आवेलु होवान कहे छे.' त्यांनी सिंहगिरि राजा मल्लविद्यानो शोखोन हतो.' ___ सोपारक जैन धर्मनुं एक केन्द्र हतुं. आर्य समुद्र, आर्य मंगू अने वजूस्वामीना शिष्य वजसेन जेवा आचार्योनी ए बिहारभूमि हतुं, तथा नागेन्द्र, चन्द्र, निर्वृति अने विद्याधर-ए साधुओनी चार शाखाओ सोपारकथी प्रवर्ती हती.' __प्रसिद्ध शिल्पी कोकास सोपारकनो वतनी हतो अने त्यांथी पोतार्नु नसोब अजमाववा माटे उज्जयिनी आव्यो हतो. सोपारकमां कलालो बहिष्कृत गगाता नहि होय, केम के आर्य समुद्रगना श्रावकोमा एक वैकटिक-दारू गाळनार पण हतो एवो Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ ] [सोपारक उल्लेख छे. पडोशना महाराष्ट्रमा पण कलालो बहिष्कृत नहोता अने तेमनी साथे बीजाओ भोजन लई शकता, एवा अन्य उल्लेखनी तुलना आ साथे करवा जेवी छे. - सोपारक दरियाकिनारा नगर होई वेपार- केन्द्र हतुं. परदेशी धान्य भरीने वहाणो आवतां त्यां एक वार दुर्भिक्षनो सुभिक्ष थयो हतो. 'निशीथचू र्णिमां नोधायेली एक अनुश्रुति प्रमाणे, सोपारकमां वेपारीओनां पांचसो कुटुंबो हता. एमनो कर माफ थयेलो हतो, पण त्यांना राजाए मंत्रीना कहेवाथी तेमनी पासे कर माग्यो, परन्तु 'एम करवाथी पुत्रपौत्रादिए पण कर आपको पडशे' एम समजीने वेपारीओए ना पाडो. राजाओ कयु के ' कर आपवों न होय तो अग्निप्रवेश करो.' आथी पांचसो ये वणिको पोतानी स्त्रीओ साथे अग्निप्रवेश करीने मरण पाम्या हता. आ वणिकोए अगाउ सोपारकमा पोतानुं एक सभागृह कराव्यु हाँ, एमां पांचसो सालभंजिकाओ हती." ___आ छेल्लो उल्लेख आर्थिक-सामाजिक इतिहासनी दृष्टिए घणो अगत्यनो छे. एमाथी मुख्य आटलो वस्तुओ फलित थाय छः सोपारा वेपारनुं मोटुं मथक होई एमां वेपारीओनां पांचसो कुटुंबो हतां. ए वेपारीओनुं एक महाजन हतुं. महाजन पासे तेनी पोतानी कचेरी अने एमां मोटुं सभागृह हतुं, जेमां पांचसो पूतळीओ हतो. अर्थात् शिल्पनी दृष्टिए पण ए सभागृह नोंधपात्र हशे. माफ करेलो कर राजाए लेवा धार्यों ए सामे विरोध करतां बधा वेपारीओ मरण पाम्या, ए वस्तु पण प्राचीन श्रेणि'ओ (Juilds) ना संगठनना प्रतीक जेवी छे. 'निशीथसूत्र'नी चूर्णिमां ज नहि, पण तेना भाष्यमा ये ) अनुश्रुति नौधाई छे, ए एनी प्राचीनता सूचवे छे. सोपारक-शूर्पारकना उल्लेखो पुराणो अने बौद्ध साहित्यमा तेम ज ग्रीक भूगोळग्रन्थोमां पण छे. जुओ 'पुगुमां शूर्पारक. Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौराष्ट्रिका ] "१ इओ य समुद्दतडे सोपारयं नाम नगरं । बने, पृ. ७९. वळी जुओ आचू , उत्तरभाग, पृ. १५२ २ जुओ अट्टण. ३ जुओ समुद्र आय. ४ जुओ मधे आर्य. ५ जुओ पनसेन. ६ जुओ जिनदत्त. ७ जुओ कोकास. ८ जुओ समुद्र आर्य. ९ जुओ महाराष्ट्र. १० निभा, गा. ५१३३-३४; निचू, भाग ५, पृ. १०२.. वळी बृकक्षे, भाग ३, पृ. ७०८ सौर्यपुर जुओ शौरिपुर सौराष्ट्र जुओ सुराष्ट्र सौराष्टिका ___सौराष्ट्रमा थती एक खास प्रकारनी माटीने 'सौराष्टिका' (प्रा. सोरट्रिआ)कहेवामां आवे छे. एनो जूनामां जूनो उल्लेख 'दशवकालिक सूत्र'मां छे.' एमांना 'सोरद्विआ' शब्दनो अर्थ टीकाकार समयसुन्दर 'तुवरिका' एवो पर्याय आपीने समजावे छे, परन्तु ते पण आजे तो अपरिचित छे. सिद्वसेननी 'जीतकल्पचूर्णिमा पृथ्वीकायना भेदोमा सोर. ट्रिया'नो उल्लेख कर्यो छे' तथा ते उपरनी वृत्तिमां श्रीचन्द्रसूस्थि 'तूवरिका' नाम आप्यु छे. 'व्यवहार सूत्र'नी मलयगिरिनी वृत्तिमा पण 'सौराष्ट्रिकी' शब्द छे.* श्रीचन्द्रसूरिए एने 'वर्णिका' कही छे ते उपरथी ए कदाच गोपीचंदन जेबी रंगीन माटी होय एवो तर्क थाय छे, Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० ] [ सौराष्ट्रका पं. हरगोविन्ददासना 'पाइअ - सद-महण्णवो 'मां 'सोरट्टियां'ना एक अर्थ 'फटाकडी' आप्यो छे. १ गेरुअवन्निअसे दिअ - सोरट्ठिअपिट्ठ कुकुराए, दवे, ५-१-३४ २ सौराष्ट्रका तुवरिका, दवेस, पृ. ३० ३...महिया - ओस - हरियाल - हिगुल्य-मणोसिला - अंजण- लोण- गेस्य - वन्निय-सेडिय - सोरट्ठिय - मक्लिए करमत्ते सव्वश्थ पुरिमड्ढे । एयं पुढ• विमक्खियं । जी.चू, पृ. १५-१६ ... ૪ . एस्थेत्यादिना पृथ्वीकायो मृत्तिकालवणोषत्व रिकावर्णिकादिरूपः । जीकचूव्या, पृ. ४७ ५ . तथा हरिताल हिगुलकमनः शिलाः प्रतीताः, अंजनं सौवीराजनादि, लवणं सामुदादि, एते सचित्तपृथिवीकायभेदाः, उपलक्षणमेतत्, तेन शुद्धपृथिव्यूष गेरुवर्णिका सेटिका सौराष्ट्रिक्यादयोऽपि सचित्त पृथ्वीकाय मेदाः प्रतिपत्तव्याः । व्यम ( प्रथम भाग ), पृ. ४३-४४ सौवीर ' कल्पसूत्र 'नी विविध टीकाओमां आपेलां ' राज्यदेशनाम 'मां सौवीर पण छे. ' जुओ सिन्धु- सौवीर १ जुओ गुर्जर. स्कन्दिल आर्य आये स्कन्दिल अथवा स्कन्दिलाचार्यना अध्यक्षपणा नीचे ईसवी चोथा सेकामां मथुरामां जैन श्रुतनी वाचना थई हती, जे 'माथुरी 'वाचना' तरीके प्रसिद्ध छे. देवर्धिगणि क्षमाश्रमणे वलभीमां आगमो लिपिबद्ध कर्या तेमां आ ' माथुरी वाचना'ने मुख्य बाचना तरीके स्वीकारी हती. जुओ देवर्षिगण क्षमाश्रमण, मथुरा, वलमी Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरन्त संनिवेश [ २१९ स्थानक मुंबईनी उत्तरे आवेलुं थाणा.. कोंकण देशना स्थानकपुरनो उल्लेख 'द्रोणमुख'-अर्थात् जळ अने स्थळ एम बन्ने मार्गे जई शकाय एवा स्थान-तरीके करेलो छे.' 'स्थान' पदान्तवाळां स्थळनामो-पंजाबन मूलस्थान ( मुलतान ), सौराष्ट्रनुं थान तथा आ थाणानो संबंध भाषाशास्त्र तेम ज सामाजिक इतिहासनी दृष्टिए विचारवा जेवो छे. मूलस्थान अने थान तो सूर्यपूजानां प्राचीन केन्द्रो छे; थाणा विशे वधु संशोधन अपेक्षित छे. १ तस्य वा द्रोणमुखं जल[ स्थल ]निर्गमप्रवेशम्। यथा कोङ्कणदेशे स्थानक नामकं पुरम् । व्यम, भाग ३, पृ. १२७ अहीं कोसमा मूकेलो 'स्थल' शब्द मुद्रित प्रतमां नथी. व्यम नुं ए संपादन हजारो अशुद्धिभोथी भरेलुं छे. बीजी तरफ 'द्रोणमुख'नो उपर्युक्त अर्थ निश्चित छे (जुओ भरुकच्छमां टि. २, तथा अभिधानराजेन्द्र 'मां दोणमुह), एटले आटलो सुधारो आवश्यक छे. स्नपन उज्जयिनी, एक उद्यान. त्यां साधुओ ऊतरता हता.' स्नपन शब्दनुं प्राकृत रूप ‘ण्हवण' छे; ए उपरथी त्यां कोई जाहेर स्नानागार अथवा नाहवाधोवानी जग्या हशे एवं अनुमान करी शकाय! १. अवंतीजणवए उज्जेणीगयरीए ण्हवणुज्जाणे साहुणो समोसरिया, उशा, पृ. ४९-५० हरन्त संनिवेश समिताचार्य विहार करता एक वार हरंत संनिवेशमां गया हता. . हरंत संनिवेशनुं स्थान निश्चित थई शक्यु नथी,. पण समिताचार्यनी विहारभूमि मुख्यत्वे माळवा अने कृष्णा तथा वेणा आसपासनो Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२. ] [ हरन्तः संनिवेश प्रदेश जे ए समये आभीर देश तरीके ओळखातो हतो त्यां हती, एटले हरंत संनिवेश पण एटला प्रदेशमां क्योंक होवा संभव छे. जुओ आभीर, ब्रह्मद्वीप, समिताचार्य १ पिनिम, पृ. ३१ हरिभद्रसूरि याकिनी महत्तरासूनु (याकिनी नामे साध्यीना धर्मपुत्र ) हरि - भद्रसूरि आगमोना पहेला संस्कृत टीकाकार छे. एमनो समय आचार्य जिनविजयजीए सं. ७५७ थी ८२७ ई. स. ७०१ थी. ७७१ सुधीनो निश्चित कर्यो छे' हरिभद्रसूरि पूर्वाश्रममां चित्रकूटना समर्थ विद्वान ब्राह्मण हता. एमना परंपरागत वृत्तान्त माटे जुओ 'प्रभावकचरित 'मां' हरिभद्रसूरि चरित. ' १५ आममो उपरनी हरिभद्रसूरिनी संस्कृत टीकाओमां ' आवश्यक, ' 'दशवैकालिक, " ' अनुयोगद्वार," तथा ' नंदिसूत्र " उपरनी टीकाओं मुख्य छे. एमनी टीकाओना उल्लेख अने आधार पछीना समयनी आगमटीका ओमां अनेक स्थळे आपवामां आज्या छे; जेम के --- ' तत्त्वार्थ सूत्र' उपरनी हरिभद्रसूरिनी वृत्तिनुं उद्धरण मलयगिरिए 'जीवाभिगम सूत्र' उपरनी वृत्तिमां आप्युं छे. हरिभद्रनी 'अनुयोगद्वार' टीकानो आधार पण मलयगिरिए 'ज्योतिष्करंडक' वृत्तिमां आप्यो छे. वळी "बृहत्कल्पसूत्र 'ना टीकाकार क्षेमकीर्त्तिए हरिभद्रसूरिकृत 'पंचवस्तुक 'मांथी,' 'श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र 'ना वृत्तिकार रत्नशेखरसूरिए 'दशवैकालिक 'नी हरिभद्रकृत वृत्तिमांथी, तथा कल्पसूत्र 'ना टीकाकार धर्मसागरे हरिभद्रकृत 'पंचाशक 'मांथी,' अवतरण आभ्यां छे, अने ' कल्पसूत्र 'ना बीजा टीकाकार विनयविजये 'पंचाशक' उपरनी नवांगोवृत्तिकार अभयदेवसूरिंनी टीकानों पण Here आयो छे." हरिभद्रकृत कथानक ' धूतख्यान 'नुं वस्तु पण प्राचीनतर आगमसाहित्यमां प्राप्त थाय छे. १२ हरिभदनी पछी थयेला . 6 १००/ ११ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ afrat ] [ २१३ बृहत्कल्पसूत्र 'ना टीकाकारे कर्तानुं नाम लीवा सिवाय धूर्ताख्यान 'नो उल्लेख कर्यो छे. संभव छे के तेमने हरिभद्रनी कृति उद्दिष्ट होय. 4 जैन साहित्यना इतिहासमा हरिभद्रसूरि एक असामान्य व्यक्ति छे. आगमोनी टीकाओ ए तो तेननी साहित्यप्रवृत्तिनो एक अंशमात्र छे. न्याय, योग, धर्मकथा, औपदेशिक साहित्य आदि अनेक विषयोनी एमनी रचनाओ छे, अने ' षड्दर्शनसमुच्चय' जेवी कृतिमां-जे भारतीय साहित्यमा ए प्रकारनो पहेलो ज संग्रहग्रंथ छे तमाम भारतीय दर्शनोनो सार समर्थ रोते तेमणं आप्यो छे. परंपरा तो एमना उपर १४०० ग्रन्थोना कर्तृत्वनुं आरोपण करे छे. एमनी रचनाओनी समालोचना माटे जुओ 'समराइच्चकहा 'नी डॉ. याकोबीकृत प्रस्तावना तथा 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ. १५३-१७०. CR , १ पहेली ओरियेन्टल कॉन्फरन्समां आचार्य जिनविजयजीना लेख हरिभद्राचार्यस्य समयनिर्णयः ' २ जुओ जिनभटाचार्य. ३. महत्तराया याकिन्या धर्मपुत्रेण चिन्तिता । आचार्यहरिभद्रेण टीकेयं शिष्यबोधिनी ॥ 4. दवैा, पृ. २८६ ( अंते ) ४ समाप्तेयं शिष्यहिता नामानुयोगद्वारटीका, कृतिः खिताम्बराऽऽचार्य हरिभद्रस्य । कृत्वा विवरणमेतत्प्राप्तं यत्किञ्चिदिह मया कुशलम् । अनुयागपुरस्सरध्वं लभतां भव्यो जनस्तेन ॥ अनुहा, पृ. १२८ ५ आ टीकानो उल्लेख मलयगिरिए 'नंदिसूत्र' उपरनी वृत्तिमां कर्यो छे. जुओ जिरको, पृ. २०१. ६ आह च तत्रार्थटीकाकारो हरिभद्रसूरिः - " नात्यन्तं शीताचन्द्रमसः नात्यन्तोष्णाः सूर्याः किन्तु साधारणा द्वयोरपी "ति, जीम, पृ. ३४१. आ टोकानो उल्लेख ' प्रवचन सारोद्धार 'ना टीकाकार सिद्धसेने (पृ. ३.३७ ) पण कर्यो छे. पं. सुखलालजीना मत प्रमाणे ( ' तस्वार्थसूत्र', बीजी आवृत्ति, प्रस्तावना, पृ. ५५- ६५ ) तत्त्वार्थटीकाकार हरिभद्रसूरि ए याकिनी महत्तरासूनु ज छे, बीजा कोई हरिभव होवा संभव नथी. Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ [ हरिभद्रसरि ७. ज्योकम, पृ. ४६ ८ बृकक्षे, भाग २, पृ. ३९६, ४८५ ९ श्रापर, पृ. २ १. ककि, पृ. ६, १२ ११ कसु, पृ. २०-२१. जुओ अभय देवसूरि. १२ जुओ मूलदेव. हर्षपुर ___अजमेरु पासेनुं एक नगर, ज्यां सुभटपाल राजा राज्य करतो हतो. हर्षपुरमां ब्राह्मणो यज्ञमां बकरानो वध करता हता त्यारे प्रियग्रन्थसूरिए पोतानी मंत्रशक्तिथी बकराने वाचा अर्पो, ब्राह्मणोने बोध आप्यो हतो, एवी कथा छे.' विक्रमना अगियारमा सैकामां थयेला मेवाडना राजा अल्लू अथवा अल्लटनी राणी हरियदेवीए हर्षपुर वसाव्युं हतुं. जैनोनो हर्षपुरीय गच्छ जे पाछळथी मलधार गच्छ तरीके ओळखायो ते आ हर्ष पुर उपरथी थयो छे. ए गच्छना जयसिंहसुरिना शिष्य अभयदेवसूरि वस्त्रमा मात्र एक ज चोलपट्टो अने पछेडी राखता हता. तेमने मलिन वत्र अने देहवाळा जोईने सिद्वराजे ( मतांतरे कर्णदवे ) ' मलधारी' बिरुद आप्यु अने त्यारथी एमनो गच्छ 'मलवार गच्छ' कहेवायो. १ कसु, पृ. ५०९-१०; ककि, पृ, १६९; कदी, पृ. १४८-४९ २ 'राजपूताने का इतिहास,' भाग १, पृ. ४२६-२८ ३ जैसाइ, पृ. १९३, २२७ हस्तकल्प जुओ हस्तिकल्प हस्तिकल्प द्वारवतीने दहन थया पछी बलराम अने कृष्ण त्यांथी पूर्व तरफ नीकळीने हस्तिकल्प (प्रा. हथिकप्प, हत्थकप्प) नगरमां आव्या Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हस्तकल्प ] [ २१५ " हता. त्यांना राजा अच्छदंतने हरावी पछी दक्षिण तरफ जतां तेओ कोसुंबारण्य नामे अरण्यमां आवी पहोंच्या हता. दक्षिण मधुरामां वसता पांच पांडवो अरिष्टनेमि अरिहंत सुराष्ट्र जनपदमां विहार करे छे एम सांभळीने सुराष्ट्र आव्या. त्यां हस्तकल्प नगर पासे एमणे सांभळयुं के अरिष्टनेमि गिरनार उपर निर्माण पाम्या छे. आ उल्लेखो उपरथी स्पष्ट छे के हस्तकल्प के हस्तिकल्प नगर सुराष्ट्रथी दक्षिण तरफ जवाना मार्गमां, पण सुराष्ट्रनी भूमि उपर ज आलु हतुं. 3 'पिंडनिर्युक्ति' उपरनी मलयगिरिनी वृत्तिमां क्रोधपिंडना उदाहरणमां हस्तकल्प नगरमा एक ब्राह्मणना घरमा भिक्षार्थे गयेला जैन साधुनुं कथानक छे. ' सुत्रकृतांग सूत्र ' उपरनी शीलाचार्यनी वृत्तिमा उदाहृत करवामां आवेला एक हालरडामा बीजां नगरोनी साथे हस्तकल्पनो पण उल्लेख छे. जीतकल्प भाष्य 'मां हस्तकल्प ' ( प्रा. हत्थप्प, हत्थकप्प )नो निर्देश छे. * भावनगर पासेनुं कोळियाक तालुकानुं 'हाथ' गाम ए ज आ हस्तकल्प होई शके. ' जीतकल्पभाष्य' मांनुं एनुं 'हत्थष्प' नाम एना अर्वाचीन उच्चारणने मळतुं ज छे. वलभीनां दानपत्रोमां तेनुं 'हस्तवप्र' एवं नाम मळे छे. ' १ उने, पृ. ४०. जुओ कोसुंबारण्य. २ ज्ञाध, पृ २२६ आचू, उत्तर भाग, पृ. १९७ ३ पिनिम, पृ. १३४ ४ सूशी, पृ. ११९; अवतरण माटे जुओ कान्यकुब्ज. ५ जीकभा, गा. १३९४-९५. ६ गुजरातना अतिहासिक लेखो, ' नं. २५, ६१; अहीं तळ 6 हस्तप्रनो उल्लेख छे. वलभीना अन्य लेखोमां हस्तवप्रनो उल्लेख ए नामना आहार अथवा आहरणीना मुख्य शहेर तरीके छे ( ' गुजरातना अतिहासिक लेखो, ' नं. १६, १७, १९, २०, २१, २२, २३, ४१, ४५, २६ अ तथा ६१, ७०, ७९, ८० ). །་ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ ] हस्तिमित्र उज्जयिनीना एक गाथापति- गृहस्थ. एमनुं कथानक नीचे प्रमाणे छे: हस्तिमित्र गाथापतिए पोतानी पत्नी मरण पामतां पुत्र हस्तिभूति साथे दीक्षा लीधी. एक बार तेओ उज्जयिनीथी भोजकटक जवा माटे नीकळ्या. मार्गमां अटवीमां हस्तिमित्रने पगे लाकडानो खूंटो वाग्यो, एटले बीजा साधुओने आम्ही विदाय करी तेओ एक गिरिकंदरामां अनशन करीने रह्या. हस्तिभूति क्षुल्लकने साधुओ पराणे लई गया, पण ते एमने विभ माडीने पाछो पिता पासे आव्यो. वेदनाने लीधे हस्तिमित्र ते ज दिवसे कालधर्म पामीने देवलोकमां गया, पण तेमनो पुत्र 'तो' पिता मरण पाया छे' ए समजतो ज नहोतो, आधी देव तेना पिताना शरीरमा प्रवेशीने तेनी साथै वातो करवा लाग्या. देवे हस्तिभूतिने वृक्षो पासे भिक्षा माटे जवा कयुं वृक्षो पासे जईने धर्मलाभ कहेतां एमांथी सालंकार हस्त नीकळीने मिक्षा आपवा लाग्यो. आ प्रमाणे एक वर्ष वीती गयुं. बीजे वर्षे साधुओ त्यां आव्या. एमणे क्षुल्लकने जोयो तथा वृद्धना शुष्क शरीरने पण जोयुं, अने तेओ समज्या के देवोए अनुकंपा करी छे. ' 1 [ हस्तिमिश्र १ उनि, गा. ८६; उशा, पृ. ८५-८६; उने, पृ. १८, मस, गा. ४८५ मां पण आ कथानकना सारभागनुं सूचन छे. हारिळ वाचक हारिल वाचककृत बे वैराग्यबोधक श्लोको ' उत्तराध्ययन उपरनी शान्तिसूरिनी वृत्तिमां उद्धृत करेला छे. आ हारिल वाचक कोण, तेओ क्यारे थया तथा एमनी कई रचनामाथी आ उदाहरण आपवामां आव्यां के ए निश्चित करवानुं साधन नथी. श्लोको सामान्य वैराग्यबोचना छे अने एमांश्री कर्ताना संप्रदाय परवे कई अनुमान करी शकाय नहि, परन्तु 'वाचक' पदवी तेमना जैनत्वनी सूचक छे. ' 9 Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हारिल वापक ] अलबत्त, पट्टावलीओ प्रमाणे एक हारिल नामे युगप्रधान आचार्य वीर सं. १०५५ (वि. सं. ५८५ ई. स. ५२९ )मां स्वर्गवासी थया हता ('प्रभावकचरित,' भाषान्तर, प्रस्तावना पृ. ५४ ), सेमने आ हारिल वाचकथी अभिन्न गणवामां आवे तो हारिल वाचक ईसवी सनना पांचमा शतकना उत्तरार्धमा अने छठा शत्कना प्रारंभमां विद्यमान हता एम गणी शकाय. १ प्रस्तुन उदरणो नीचे प्रमाणे छ : तथा च हारिलवाचकः"चलं राज्यैश्वर्य धनकनकसारः परिजनो नृपाद वालभ्यं च चलममरसौख्यं च विपुलम् । चलं रूपारोग्यं चलमिह चरं जीवितमिदं जनो दृष्टो यो वै जनयति सुखं सोऽपि हि बलः ॥" पसा, पृ. २८९; उने, पृ. १२६ तथा च हारिल: वासोद्धतो दहति हुतभुग्वेहमेकं नराणां मतो भागः कुपितमुजगविदेहं तथैव । शानं शीलं विनयविमवौदार्यविज्ञानदेहान् सर्वानर्थान् दहति वनिताऽऽमुष्मिकानैहिकांश्च ॥ उशा, पृ. २९७ बीजा एक अवतरण साथे जो के हारिल वाचक नाम- आप्यु नथी, पण एनी रचनाशैली जोतां ए पण हारिलन होय ए असंभवित. नथी : खास करीने एना शिखरिणीनी तुलना उपर टांकेला पहेला अवतरण साथे करवा जेवी छे: तथा चाहु: भवित्री भूतानां परिणतिमनालोच्य नियतां पुरा यद्यत्किश्चिद्विहितमशुभं यौवनमदात् । पुनः प्रत्यासन्ने महति परलोकैकगमने तदेवैकं पुंसां व्यथयति जराजीर्णवपुषाम् ॥ उशा, पृ. २४६ . Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ ] हिन्दुक देश हिन्दुओनो देश - हिन्दुस्तान. रचनाकाळ लगभग ई. स. ना सातमा सैका जेटलो जूनो छे ए' निशीथचूर्णि 'मां हिन्दुक देश 'नो प्रयोग छे. उज्जयिनीना राजा गर्द भिल्ले एमनी बहेन सरस्वतीनुं हरण कर्तुं होवाथी कालकाचार्य ' पारस कूल 'मां जईने छन्नु ' शाहि ' राजाओ - शक राजाओ - जेओ एमना अधिराजा ' साहानुसा हि ? ( सर० शहेनशाह ) थी त्रासेला हता एमने हिन्दुक देश 'मां आवत्रा प्रेरे छे; अने सर्वने लइने सुराष्ट्रमा आवी पांचे छे. ' जुओ कालकाचार्य - २ . १ साहिणा भणियं परमसामिणा रुद्रेण एत्थ अच्छिउ ण तरह । कालगज्जेण भणियं-एह हिन्दुगदेस बच्चामा । रष्णा प डिस्सु । तत्तल्लाण य अण्णेसि पि पंचाणउतीए साहिणा सअंकेण कारियाओ मुद्दे पेसियाओ । तेण पुव्विल्लेण दूया पेसिया मा अप्पाणे मारह | एह वच्चामो हिंदुगदेसं । ते छण्णउति पि सुरद्रमागया । कालो य णवपाउसो वह । वरिसाकाले ण तीरति गंतुं । छण्णउई मंडलाई कयातिणि विमतिऊणं । जं कालगज्जो समल्लीणो सो तत्थ अधिराया ठेवितो । ताहे समबंसो उप्पण्णो । निचू, भाग ३, पृ. ५७१-७२ [ हिन्दुक देश हेमचन्द्रः कलिकालसर्वज्ञ गुजरातमां बारमा काम थयेला प्रतापी राजाओ सिद्धराज तथा कुमारपालना समकालीन आ महान आचार्यनां जीवन अने कार्य प्रसिद्ध छे. ए माटे जुआ डॉ. व्युलरकृत 'लाईफ ऑफ हेमचन्द्राचार्य, ' अध्यापक रसिकलाल छो परीखनी हेमचन्द्रकृत 'काव्यानुशासन 'नी अंग्रेजी प्रस्तावना, तथा श्री. मधुसूदन मोदीकृत हैमसमीक्षा' इत्यादि. " आचार्य हेमचन्द्रनी पछी थयेला आगमसाहित्यना टीकाकारो एमना विविध ग्रन्थोना आधारो घणा वार टांके छे. उदाहरणरूपे एमांना केटाको निर्देश अह कर्यो छे. ' Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमचन्द्र मलधारी ] [२१९ १ हेमचन्द्रकृत 'प्राकृत व्याकरण' : जंप्रशा, पृ. १३, २४, २६, ४१, १७७; 'देशीनाममाला ' : जंप्रशा, पृ. १२४ " अनेकार्थकोशः श्रार, पृ. १७५ 'त्रिशिलाका पुरुषचरित्र 'अंतर्गत पृ. १२७, १३४, १३६ ' महावीरचरित: ' ककि, पृ. १२५; , ' ऋषमदेव चरित्रः' अंप्रशा, शान्तिनाथचरित: जंप्रशा, पृ. १९७; " परिशिष्टपर्व: ' जंप्रशा, पृ. २८० द्वात्रिंशिका : ककि, पृ. १२५. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका . मांथी मलयगिरि पण अवतरण आप्युं छे, जे मलयगिरिनो समय नक्की करवाम उपयोगी थाय छे ( जुओ मलयगिरि ). योगशास्त्रः श्रार, पृ. २०२ ग्रन्थनी नामोल्लेख कर्या विना हेमचन्द्रमाथी अवतरणः श्रामर, पृ. ७, ६२, १४९, इत्यादि " ८ , . 6 हेमचन्द्र मलधारी 6 हर्षपुरी ( मलधार ) ' गच्छना मुनिचन्द्रसूरिना शिष्य अभयदेवसूरिना शिष्य मलधारी राजशेखरसूरि सं. १३८७= ई. स. १३३१मां रचायेली पोतानी प्राकृत दयाश्रय 'वृत्तिमां जणावे छे तेम, हेमचन्द्र पूर्वाश्रममां प्रद्युम्न नामे राजसचिव हता अने तेमणे चार स्त्रीओ त्यजीनें अभयदेवसूरिना उपदेशथी तेमनी पासे दीक्षा लोधी हती. मलधारी हेमचन्द्रकृत ' जीवसमास ' विवरण सं. ११६४ ई. स. ११०८ मां, ' भवभावनासूत्र' सं. १९७० = ई. स. ११९४ मी अने ' विशेषावश्यक भाष्य' उपरनी बृहद्वृत्ति सं. १९७५ =ई. स. १९१९ मां रचायेल होई तेओ ईसवी बारमा शतंकना पूर्वार्धमां विद्यमान हता ए निश्चित छे. हेमचन्दना शिष्य श्रीचंद्रसूरि पोताना 'मुनिसुव्रतचरित 'नी प्रशस्तिमां जणावे छे ते प्रमाणे, राजा, सिद्धराज जयसिंह आ आचार्य प्रत्ये खूब भक्तिभाव राखतो हतो अने घणी वार तेमना दर्शन करवा माटे पोते ज तेमना उपाश्रयमां आवतो हतो. Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० ] [ हेमचन्द्र मलधारी आगमोना नामांकित टोकाकारोमा मलधारी हेमचन्द्रनी पण गणना थाय छे. ' आवश्यक सूत्र' अने 'नंदिसूत्र' उपर टिप्पण तथा 'अनुयोगद्वार सूत्र' अने । विशेषावश्यक भाष्य ' उपरनी वृत्तिओ ए आ क्षेत्रमा एमनो मुख्य फाळो छे. विशेषावश्यक भाष्य 'नी वृत्तिनी रचनामा तेमणे पोताना सात सहायकोनां नाम आप्यां छे, जे एमना शिष्यसमुदायनी व्यक्तिओ होय एम जणाय छ : अभयकुमारगणि, धनवगणि, जिनभद्रगणि, लक्ष्मणगणि, विबुधचन्द्रमुनि. तथा आनंदश्री महत्तरा अमे वीरमती गणिनी ए बे साध्वीओ. मलधारी हेमचन्द्रे ‘विशेषावश्यक भाष्य' उपरनी, वृत्तिमा जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणानी स्वोपज्ञ टीकानो उल्लेख कयों छे, एटले ए टीका ओछामा ओछु बारमा सैका सुधी तो विद्यमान हती ज. वळी आ सिवायनी पण बीजी बे प्राचीन टीकाओना हवाला तेओ आपे छे.. उपर्युक्त जीवसमास ' वृत्तिनी मलधारी हेमचन्द्रना हस्ताक्षरोमां लखायेली ताडपत्रीय प्रत खंभातमां शान्तिनाथना . भंडारमा छे, एटले मंत्री वस्तुपालनी जेम आ प्रकांड विद्वानना हस्ताक्षर पण अनेक शताब्दीओना अंतर पछी आपणने जोवा मळे छे. मंत्री वस्तुपालना हस्ताक्षरोमां सं. १२९० ई. स. १२३ ४ मां लखायेली ‘धर्माभ्युत्य' महाकाव्यनी साडपत्रीय प्रति पण खंभातमा ए ज भंडारमा छे. १ जुलो हर्षपुर. २ जैसाइ, पृ. २४६-४७ ३ ए न. एमना अन्य प्रन्यो माटे पण जुभो त्यां. ४ आ लक्ष्मणगणि ते प्राकृत ‘सुपार्श्वनाथचरित 'ना कर्ता छे. ५ जैसाइ, पृ. २४७ ६' विशेषावश्यक भाष्य,' श्रीसागरानंदसूरिनी प्रस्तावना, पृ. ३ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचि [ संस्कृत - प्राकृत अवतरणोमां आवतां विशेषनामोनो समावेश आ सूचिमा कर्यो नथी. ] अकबर १५८ अकलंक ६४ अक्रियावादी ६९ अक्षोभ ८३ अखो ६२ अगदत्त ३,४, ५, १६, १७३ 'अगडदस पुराण' ४ अगियार अंग १६३ अग्निकुमार देव ४६, ५६, ५७ अग्निपूजक वणिक ६६ अचल ८३, १४३, १४४, १४७ अचलग्राम ५ अचलपुर ५, २०, २६, १५६ अच्छदंत ५६, २१५ अजमेर ५ अजमेरु १०६, अजातशत्रु १३ अजितसेन ११७, ११८ २१४ अट्टण ६, ७, ८ अट्टण मल्ल २८, ६२, १०६ १११, १३७ अडोलिका ६५ अणहिल पत्तन ९७ अणहिलपाटक ९६ अणहिल भरवाड : ८. अणहिलवाड ९, ८६, १५०, १७६, १७९, १९५ अणहिलवाड पाटण ८, ४७ 'अण्णा' १३५ अतिमुक्तक २४ अनशन ७३, ८१, १३३, १५५, १६३, १६४, १६६, २०७, २१६ 'अनुत्तरोपपातिकदशा' १० अनुयोग १५२ 'अनुयोगद्वार' टीका २१२ 'अनुयोगद्वारसूत्र' २८, ७३,६७, १३४, १४१, २०३, २१२१८, . २२० 'अनेकार्थकोश' २१९ अनेषणा ३९, १३२ अनंग सेना ८७ अनंतवीर्य ३७० 'अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका १२२१ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ ) [ सूचि अबद्धिक ६९, १५३ अर्हत्-प्रतिमा १२० अबधिक मत ७० अहंतक ७८ अभयकुमार १०२,१०३, १७१ अल बीरूनो २०० अभयकुमारगणि २२० 'अलंकारमंडन' ११८ अभयदेव ११, ७६ 'अलंकारसर्वस्व' १३६ अभयदेवसूरि ९, १०, १२, ४६, अल्लट २१४ ४८, ८६, ८८, १६०, अल्लू २१४ २१२, २१४, २१९ अल्बर ११९ "अभयदेवसूरि-चरित' ११, १२ । अवधि १२० अभयतिलकगणि १२६ अवन्ति १५,७१, १००, १०२, अभव्य ९० १११, १५१, १७३ अभिचन्द्र ८३ अवन्ति जनपद २५, २८, ४५, 'अभिधानराजेन्द्र' ४५, १०१, ८०,१३८, १४०,१४२, १३६, १४९, १५३, १६३ १९४, २११ अवन्तिवर्धन १६,१००, ११७, अभीचि १३, १४, ५० ११८ अमदावाद ९० अवन्तिसुकुमाल १६, १७,४३, अमोघरथ ३ . १३१, २०७ अरिष्टनेमि . ८०, ९६, १५४, | अवन्तिसेन १६,११८ । १७३, १७४, १९१,२१५ अव्यवहारी,७८ अरिष्टपुर १४ अशकटा १७ अर्कस्थल १४, १५ : अशकटापिता १७, १८ अर्कस्थली १४, १५, १४ अशोक २५, ४३, ५२, १.८६ 'अर्थदीपिका' १५४ अशोकश्री ४३ अर्धमागध-धी १५ अश्वघोष ९५, २०२ अर्बुद पर्वत १५ अश्वसेन वाचक १.८ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सचि] 'अश्वावबोध कल्प' ६ अश्वावबोध तीर्थ ६०, ६१ अष्टोत्तरशतकूट १७४ अष्टांग महानिमित्त ३९ असंदीन द्वीप ५३ असंयम विषय १९९ अरहमित्र ७८ अंग ६८, १०९ अंगारवती १०१, १०४ 'अंतकृत् दशा' १०, ८८, १५७ अंधकवृष्णि ८३, ८६ अंग्रेजी ६८ आकाशगामिनी विद्या ९५, १६४ आगमेतर साहित्य ४ . आग्रा जिल्लो १७८ 'आचारांग' ९, ११, ५५ 'आचारांग सूत्र' ६४, ६५, [ २२३ ३२, ४२, ९१, ९४, ९७,११४, ११५,१८८ आनंदश्री महत्तरा २२० आन्ध्र १८७ आन्ध्रवासी १३४ आन्ध्रो १६० आबु १५, ६१ आभीर २१, २६, ३२, ६८, १९१ आभीर जाति १७, २० आभीर देश ५, ७८, १०८, १७१, १८४, २१२ आभीरी १९१ आम राजा ३६ आम्रदेव उपाध्याय ९५ आयामुख ३६ 'आराधनाकुलक' १० आर्य कालक १७९ आर्य क्षेत्र १५, ४८ आय देशो ५२ आर्य धर्म ८४ आर्य नागार्जुन ८३ . आर्य महागिरि ५७, ६४, १३२, . १३३, १६९, २०६, आचार्य मलयगिरि ७५ आचार्य श्रीजिनविजयजी १७७, १९६, २१२, २१३ आजीवको ३९, ४० आतापना १२१, १४९ आनत ४९ आनंदपुर १४, १८, १९, २१, २०७ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७] [ सूचि आर्य मंगू ११६, ११७, १२२, 'आवश्यक मूलटीका' ७५ १८५, १८६, २०७ । 'आवश्यक वृत्ति' १२९ आर्य रक्षित ८०, १०९, १२२, ! 'आवश्यक सूत्र' ७, ३६, ५८, १५० ६०, ६४, ७४, ७५, आर्य रक्षितसूरि ६९, ८२, ९३, १२०, १२२, १२७, १२८, १२९, 'आर्य रक्षितसूरिचरित' १५३ . १४६, १६९, १८२, आर्य रोहण २०७ १८९, २१२, २२० आर्य वज्र ५, २०, ८२, १०८, आषाढ २२, २५ १०९, १६३ आषाढभूति २२ आर्य श्याम १७९ आहरणी ६२, ११०, २१५ आर्य समित २०, १८४, १८५ 'आहार' ६२, ११०, २१५ आर्य समितसूरि १०८ आहीर २१ आर्य समुद्र ११६, १८५, १८६, २०७ इक्षुगृह २२ आर्य सुधर्मा ८४. इडर ११४ आर्य सुहस्ती ५७, १३१, १३३, 'इतिहासनी केडी' . २९, ४५, ५२, ६७ १८६, १८७, २०६ आर्य स्कन्दिल २.१० 'इन्डो-आर्यन अॅन्ड हिन्दी' ४७ आर्यास ७८ इन्दउर २४ आलोचना १५३ . इन्दोर २४, १४३. आल्सडॉर्फ ५ इन्द्र ३७, ६३, १५५ 'आवन्त्य खंड' १७ इन्द्रकील २३ 'आवश्यक. चूर्णि' ५१, ५३, इन्द्रदत्त २३ ६२, ६९, ७३, ११०, इन्द्रदिन ८४ ११५, १६० । इन्द्रपुर २३, २४, ११९ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचि [२२५ इन्द्रभूति १४२ १७३, १८०, १८६, इन्द्रमहोत्सव ३९ १८७, २०२, २०४, इभ्य २७, ४४ २०५, २०७, २११, इषुवेगानदी १७० २१६, २१८ ईरान ३८ 'उज्जयिनी इन एन्श्यन्ट लिटरेचर' ईश्वरी ७२, १६६, १६७ २९ उग्रसेन २४, ८७, ९६,१५४, 'उज्जयिनीतस्कर' १३८ १९०, १९१ उत्तर मथुरा १२२, १९५ उज्जयन्त २४, २५, ६६, ६७, 'उत्तराध्ययन' ५, ९, २६, ४०, १५७ ६२, २१६ उज्जयन्तगिरि १८९ 'उत्तराध्ययन' टीका १८ उज्जयिनी ३, ६, ७, १५, १६, 'उत्तराध्ययन सूत्र' ३, ४, ३०, २२, २५, २६, २७, ३३, ३४,६४,७३,९६, २८, २९, ३०, ३७, १४४, १७३, १७५. ३८, ३९, ४१. ४३, उत्तरापथ ५२, ८९, १२० ४५, ५०, ५८, ६५. उदयगिरि ५२ ७०, ७८, ८१, ८२, उदयन १०४, १०५, १४८, ८५, ९०, ९१, १००, १५१, १७३ १०१, १०२, १०३, उदायन १३, ३०, ३१, ४७, . १०४, १०६, १०९, ५०, ८१, ८२, १०३, १११, ११५, ११७, १०४, १७०, २०० . ११८, १३१, १३३, उद्योतनसूरि १७६ १३७, १३८, १४०, उन्नतायु १७५ १४३, १४४, १४५, 'उपमितिभवप्रपंचकथा' १९५ . १५२, १५६, १५७, उपाध्याय धर्मसागर १५५,१७५ १५८, १६३, १६७; । उपाध्याय महेन्द्र ६० Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'उपासक दशा' १० उमाकान्त शाह १३४ उवधालि ४९ उस्मानाबाद ७८ उंछवृत्ति ९५ रंबरावतीवेला २०४ ऊण १७५ .. ऊभो 'सरकंचुक' १२५ ऋषभदेव ९६ 'ऋषभदेवचरित्र' २१९ ऋषिगुप्त २०७ ऋषितडाग २७ ऋषिपाल २७ ऋषिप्राणित तळाच ५१ एकरात्रिकी प्रतिमा १९१ एकेन्द्रिय जीब ६९ एरछ ३२ 'ए नोट ऑन धी कुत्रिकापण' २९, ४५ 'ए मोट आन धी वर्ड किराट- ए डिसौटफुल मर्चन्ट' २२ 'ए न्यू वर्सन ऑफ धी अगडदत्त स्टोरी' ५ 'एन्श्यन्ट इन्डिया' १५२ . 'एन्स्यन्ट टाउन्स अॅन्ड सिटीझ इन गुजराल अॅन्ड काठि याचाड' ८९ [ सूचि एलकच्छ ३१, ३२, ६४ एलकच्छपुर ८२, १६९ एलाषाढ १४५ 'ऐतिहासिक संशोधन' १४४ ऐरावत ६३, ६४ 'ओपनियुक्ति' १३८, १३९ 'ओघनियुक्ति वृत्ति' ९, ८६, १२८ ओझा ३६ ओरिसा ४७ औदीच्य देश १६१ औत्पत्तिकी बुद्धि १५७ औपदेशिक साहित्य २१३ 'औपपातिक टीका १० . कन्छ १९, २१, ३२, ३३, कटक ४७ 'कट' पदान्त ४६ कडी ४७ कडं ४७ कथानुयोग १८३ 'कथासरित्सागर' १४७ कदंब १७४ कनकामर ७८ कनैयालाल दवे १९, १८८ कनोज ३६ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २७ कन्नड १३६ ९१,९७, १२४, १४२, 'कन्याचोलक' १२५ १५५, १५८, १६५, कपर्दक ३४ १६९, १७५, १७९, कपर्दिनिवास १७४ १८४, २०३, २१०, कमलपुर २०४ २१२ कमलमेला १९० कल्याणकटक ४७.. कमलसेना ३ 'कल्याणमंदिरस्तोत्र' १९७।। कमलसंयम उपाध्याय ३३ कल्याणविजयजी ३७,३८,१२२ क. मा. मुनशो १४३ कल्याणी ८ 'करकंडचरिउ' ७८, ७९ 'कविवर समयसुन्दर' १८४ करटक १४७ कसेरूमती नदी ३४, १६६ कर्णदेव २१४ कसेरूमान् ३४ कर्ण सोलंकी १२५ कंडरीक १४६, १४८ कर्णाटक ६८ कंथारकुडंग १७ कर्णीसुत १४७ कंबल-संबल ३३, ३४, ७३ 'कर्मविपाक' ८५ कंस ७, २४ 'कर्मस्तव' ३३, ८५ काकवर्ण ५०, ५१ कलाचार्य ३ काकिणी ३४, ३५, ४३, ४४ कलाल २०७, २०८ काकिणीरत्न ३५ कलांकुर १४७ 'कादंबरी' १४७ कलिंग ६८ काननद्वीप ३५, ९७ कलिंग देश ५१, ५२, १६४ । कान्यकुब्ज ३६, ६८ .. कलिंगविजय ५२ कार्तवीर्य ३७, १४३ 'कल्पलता' १८४ कालक ४०, ८४ 'कल्पसूत्र' १८,२१, ४०, ४२, . 'कालक कथासंग्रह' १७९ ६७, ७०, ८४, ९०, । 'कालकाचार्य कथा' ४०, ४१ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ ] कालकाचार्य २६, ३७, ३८, ३९, ४०, ४१, ६०, ६५, १०१, १०७, १३५, १७९, १९२, २१८ कालणद्वीप ३५ कालनगर १९, ४२ काल २० 'कालज्ञान ' काला ४२ कालायवेशिपुत्र ४२ कालिदास १५८, १७१ कायोत्सर्ग १६, १७ कायोत्सर्ग ध्यान ४२, ६३ काव्यगोष्ठि ८९, ९० 'काव्यमनोहर' ११८ ९९ 6 क्रीडापर्वत २५ कुक्षिपुर ३६, २०१ कुटुंबेश्वर १७ कुडंगेश्वर १७ कुडंगेसर १७ कुडुक १३४, १५९, १८७ कुडुंगेश्वर १७ कुणाल २५, ४३, ११०, १८६, २०४ ' काव्य मंडन' ११८ ' काव्यमीमांसा' ३४ काव्यानुशासन' १८०, १८१, कुरंटक ५५ 4 २१८ काशी १०५ काश्मीर ६८, कांचीपुर ८९ कांटासेरियो ५५ ; 'किरणावली ९०, १५५ : किराट ११ कीर्तिविजय १६९ कुत्रिकापण २६, २७, ४४, ४५, १०२, १११, ११५ 'कुत्रिकापण - प्राचीन भारत जन रल स्टोर्स' २९, ४५ [ सूचि 'कुन्ती ८३ 'कुमार' १४८ कुमारपाल ४६, १२७, २१८ कुमारभुक्ति २५, ४३ 'कुलिक' १२६ 'कुवलयमाला, ' आठमा सैकानी एक जैन कथा ४८, १७६ कुशस्थल ९५ कुशावर्त ४९, १७८ कुसुमपुर १२१ कुंअरजी ९१ कुंकणा ५४ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचि [ २२९ कुंजरावर्त ४२, ५५ केशी १३, १४, ३१, ४८, ५० कुंडलमेंठ ४४, ११० कोऊहल १४७ कुंभकर्ण ११८ कोकास ५०, ५१, ५२, २०७ कोटिकगण ७३ कुंभकारकट ४६ . कोटिनगर ६६ कुंभकारप्रक्षेप ४८, १७० कोटिपताका ५४ कुंभकारप्रक्षेप नगर १९९ कुंभराणा ११८ कोटयर्क १४ कोट्याचार्य ११, ७४, ७५, कुंभवती नगरी ४८ ९३, १६४, १७७ कूणिक १३ कोडिनार ६६ कूपदारक १०७ कोपकट ४७ कूर्ग १५९ कोरंटक ५५ कृष्ण ७, २०, २४, ५०, ५६, कोरंटक उद्यान ५५, ११० ८७, ९५, ९६, १०७, ०७, कोमुइआ ५७ १७४, १८९, १९०, कोल्लुकचक्रपरंपरा १३५ १९१, २१४ कोशांबकानन ५७ कृष्ण वासुदेव ४९, ५६, ५७, कोसलवासी १३४ - ६३, ७७, ८०, ८३,८६, कोसंबवण काणण ५७ ९०, १०६, १७३ कोसंबा ५६, ५७ कृष्णा ५, १०८, १८४, २१.१ । कोसंबी. आहार ५७ 'कॅम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया' कोसुंबारण्ये ५६, १०७, ११३, १६, ३१ ११४, २१५ केवलज्ञान ६३, ७१,७७,१८१, कोसंबाहार ५७ . १८९, १९७ कोळियाक २१५ केवलदर्शन १९७ . कोंकण ५२, ५३, ७६, १३४, केवली १९७ १३७, १४१, १६४, Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० ] १८९, २०३, २११ कोंकणक ५२ कोकणकक्षान्त ५३, ५४ कोंकणाचार्य ५३ क्रोधपिंड २१५ 'कौमुदी' १७५ 'कौमुदी' टीका ६७, कौमोदकी गदा ५७ कौशल ६८ कौशांबी ३,७, २६, ३०, १०४, ११७, ११८, १५१, १६७, १७३, १८७ कौशांबी आहार ५७ क्षपकश्रेणि ७१ क्षहरातवंशी ९२, ९३, १९४ क्षिप्तचित्त १९४ क्षुल्लक ९०, १३९, १५५, १७२, २१६ 'क्षेत्रसमास' १३० 'क्षेत्रसमास' नी टीका १२९ क्षेमकीर्ति १६, ४५, ५७, ५९ ६९,१२६, १२८, २१२ क्षेमंकर १८५ खनिज तेल १२६. खपुटाचार्य ५९, ६०, ६१, ६७ खरक १०१, १९२ [ चि खरक मंत्री १९३ खरतर गच्छ १०, ३३, १८३ खरपट १४७, १४८ खारवेल ५२ खेट ६१, ६२ खेटकाहार ६.२ खेटाहार ६३ खेड ६१ खेडा ६१, ६२ खेडं ६२ खेडब्रह्मा ६१ खेडेगांव ६२ खंडकर्ण १०१ खंडपाना धूर्ता १४५, १४६ खंभात ७९, ८५, १९९, २२० 'खंभातनो इतिहास' ८०, १८८ गच्छनिश्रा १३२ गजसुकुमाल ६३ गजाम्रपद ६४, १३३, २०७ गजापद तीर्थ ३२, ८२, १६९ गणधर १४२ गणराज्य १९२ गणसत्ताक राज्य ३०, ८७, १४० 'गणितसार' ३५ गर्दभ ६५ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ सचि] [ २३१ गर्दभिल्ल २६, ३७, ३८, ६५, गुजरात ५७ 'गुजरातना अतिहासिक लेखो' गर्दभीविया ३८ ४७, २१५ 'गल्लक' जाति १३७ 'गुजरातनां स्थळनामो' ६७ गल्लारु नदी १३६ 'गुजरातमा नैषधीयचरितनो प्र गंगा नदी १९९ चार तथा ते उपर लखा गंतुर १३६ येली टीकाओ' १८२ 'गंधर्वदत्ता लंभक' १७०, २०४, गुजरात विद्यासभा ८. २०५ गुडशस्त्रनगर ५९ गुणाढ्य ४, १८२ 'गंधहस्ती' ६४ गुर्जर देश ७९ गंधहस्ती 'महाभाष्य' ६४ गुर्जरो ४८, ६७ गंभूता १७६ गुलाम २८ 'ग्लोरी घेट वोझ गुर्जरदेश' ३६ गोचरी ७७ गाथापति २१६ गोदावरी ४६, १०१, १९२, 'गाथासप्तशती' ९९ गान्धर्व विवाह १४३ गोपालक १६, १००, १०५ गांधार १०३ : गोपालगिरि ६८, ७१ गांभू ९, ६५, १७६ । गोपीचंद २०९ गिरनार २४,२३, ९६, १५७, गोपेन्द्रदत्त ७८ गोवालिय महत्तर ७३ गिरिनगर ६६, ६७, ७७, गोविन्द ६८, ८४ १६८, २०३ गोविन्दाचार्य ११० गिरिपत्तन ३६, २०१ 'गोविन्दनियुक्ति' : ६९ गिरियज्ञ ५३, १६० गोली १३६ ग्रीक १५० गोल्ल १३६ ग्रीक भूगोळग्रन्थो २०८ | गोल्लदेश १३५, १३६, १६१ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ सूचि चीनस्थान २०४ चीवर २०५ चूर्णि ४, ११, ४४, ५३, ५४, __७३, ७४, ९९, १२९, २३२] गोष्ठामाहिल ८२, १५३ गोड ६८ गौतमकुमार १७४ गोतमीपुत्री शातकर्णि ९२, १९४ 'गौरीपुत्रो' ७०. चणक १३६ चण्डप्रद्योत ३०, ३१, ४५,७१, १०१, १११ चण्डरुद्राचार्य २५, ७०, ७१... चतुर्वेदी १९, २१ 'चन्दालक' १२२ चन्द्र ७२ चन्द्रकुल १७९ चन्द्र गच्छ १०, १५० चन्द्रगुप्त ४३, १३६ 'चम्मलात' १८० 'चर्मलात' १८० चाणक्य १३६ चानखेडा ६१ चारुदत्त १७०, २०४ चावडावंश ८ चितोड १३८ चितोड गढ ७१ चित्तप्रिय १४९ चित्रकूट ६८, ७१, २१२ चीन ६८ चूर्णिकार २०३ चेटक ३०, ३१, १०१ चेटरजी ४७ चैत्यपरिपाटी १०२ चोरशास्त्र १४७ 'चोलक' १२५, १२६ चोलपट्टक १५२ चोलपट्टो २१४ चौड ६८ चौद पूर्वो ८१ चौलुक्य ८, ७२, ८६ चौलुक्य युग १३७ . चौलुक्यवंशी ४६, १९५ चंपा १३ चंपानगरी ४६ 'चंपूमंडन' ११८ जउण १४९ जउणसेण १४९ 'जउणावंक' उद्यान १४९ जकर्त ४७ जगच्चन्द्रसूरि ८५ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बचि] [२१५ जगदीशचन्द्र जैन ३२ जालि ४९ जगन्नाथपुरी १६४ जालोर ४८ जमदग्नि ऋषि ३७ जावा ४७ जमालि ४४ जांबवती १८९, १९१ जयपुर ११९, १६९ जितशत्रु राजा ३, ४२, १५६ जयशिखरो ४७ जिनकल्प १३२ जयसिंह १५० जिनचंद्रसूरि १०, १८३ जयसिंहसूरि ६१, १८८,२१४ । जिनचैत्य १८७ जयंती श्रमणोपासिका ३० जिनदत्त ७२, १२०, १६६, जराकुमार ५६, ११३, ११४ १६७, १८५ जरासंध २४, ४९, ८७, १२२, जिनदास ७३ १७३ जिनदासगणि ७३ 'जर्नल ऑफ धी ओरियेन्टल | जिनदासगणि महत्तर ७३ इन्स्टिट्यूट' १३४ जिनदास श्रावक ३३ जर्मन १०० जिनदेव ११० जलपत्तन ३५, ८८, ९७ जिनदेवसूरि १६८ जवणालओ १२५ जिनप्रभसूरि १४, ४२ जवुण १४९ जिनबिंब १८७ जहाल ६८ जिनभट १२९ जळधोध २५ जिनभटाचार्य ७४, ७५ 'जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति' ११८, १२८, जिनभद्र ११, ५५, ७६ १३०, १५४, १७५ जिनभद्रगणि ७५, २२० जंबुस्वामी ८४, २०२ जिनभद्रगणि क्षमा श्रमण १९६, जातक ४८ १९७, २२० जातिस्मरण १३३ जिनभद्रसूरि ३३ जाबालिपुर ४८ जिनविजयजी ४८, ७५ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ [सूचि जिनेश्वरसूरि १० । 'जैन साहित्य संशोधक' ९०, 'जीतकल्प चूर्णि' २०९ 'जीतकल्प भाष्य' २१५ जैन स्तूप १२०, १२१ 'जीतकल्प सूत्र' ९, ७४, ___ जोग्यकर्त ४७. १७७, १७९ 'ज्येष्ठीमल्ल ज्ञाति अने मल्लपुराण' ८ 'जीतकल्प सूत्र' उपरनी चूर्णि ज्योतिष्करंडक' ९८, १२८, १२९, १३० जीर्णोद्यान १४५ 'ज्योतिष्करंडक' वृत्ति २१२ 'जीवविचार' १८४ 'ज्ञाताधर्मकथा' १०, १५७; 'जीवसमास' विवरण २१९ १८२ 'जीवसमास' वृत्ति २२० 'ट्राइब्स इन एन्श्यन्ट इन्डिया' जीवंतस्वामी २५, ८१, १०३, १२३ १३२, १३३, १३४, १८७ 'डाइनेस्टिझ आफ ध कलि एज' 'जीवाभिगम सूत्र' १२८, १२९, २१२ ३० 'जीवाभिगमसूत्र' उपरनी वृत्ति डाहल ६८ २१२ डांग ४६ जूनागढ ६६, १६९ डिभाइ २४ जंभक देवताओ ९५, १६३ डिभरेलक ७६ जेहिल ८४ डोड २१ जेसलमेर ९८ डॉ अळतेकर ८८ जेसलमेर भंडार ७५, १२८ डॉ. व्युलर २१८ जैन गुफाओ ७८ डॉ. याकोबी २१३ 'जैन गूर्जर कविओ' ५ डॉ. विन्टरनित्स १४६ जैन श्रुत ८३, २१० ढंक १७४ 'जैन साहित्य और महाकाल- ढंकापुरी ९९ मन्दिर' १७ ढंढ १०७ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूधि] [२३५ ढंढणमुनि ७७ तुम्बवनग्राम ८०, १६३ ढंढणा ७७ तुरुमिणी ३७ ढांक ९९ तेजचन्द्र १७५ णधवाहण ९२ तेजपाल ६१ णहवाहण ९२ तेरा ७८ तगरा २०, ७७, ७८, १६८ तेरापुर ७८... तगरातट ७७, १६८ 'तैलकेला ' २०५ तगरा नगरी १५६ . तोसलिनगर २७, ५२ 'तत्त्वबोधविधायिनी' १२ तोसलिपुत्राचार्य ८०, १०९, 'तत्त्वार्थसूत्र' ६४, ६९, १२८, १२९, २१२, २१३ । 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' ४९, तपागच्छ ७२, ८५, ९०,१५४, ६१, १०७, १५२, २१९ थान २११ 'तरंगवती' ९८, १०० थाणा ५४, २११ . 'तंत्रोपाख्यान' ४७ थाणा जिल्लो २०७ तापस ८५, १८४ थारापद्रीय गच्छ १७५ तामलुक ७९ थावच्चा ८० तामिल १३६ थावच्चापुत्र ८१, १७४ ताम्रलिप्ति ७९, ११०, १९९ थावच्चापुत्र अणगार १७८. ताराचन्द्र ५८ दक्षिण मथुरा ५६, . १२२, तालध्वज १७४ १९२, १९३, २१५ 'तित्थोगाली' प्रकीर्णक १०० दक्षिणापथ २०,२५,३४, ५७, 'तिलकमंजरी' ८९, १७६, ८९, ११२, ११३, १४३, तीर्णा ७८ १६०, १८७, २०४ तीर्थकर ९६. दत्त ३७ तीर्थराज १७४, २०१ । 'दशकुमारचरित ' १४.८ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ दशपुर २२, ६९, ८०, ८१, दीव ८८, ८९, ९७ ८२, १०९, १५२, १६३ । 'दीतचित्त' १९३, १९४. दश पूर्वधर १६३ दुर्बल पुष्पमित्र ६९, १५३ दश पूर्वो १६३ | दुर्मुख १०७ 'दशवैकालिक सूत्र' १३५, दुर्योधन ७ १८४, २०९, २१२ । दूण्यगणि ८३, ८४ दशार्णकूट पर्वत ६२, ८२ दूष्यगणि क्षमाश्रमण १०८ दशार्णपुर ३१, ३२, ६३, ६४, दृढनेमि १५४ ८२, १३३ दृष्टिवाद ४०.१०९ दशाभद्र ८२ देवकुल ९२ दशाह १०, ८३, १२२ 'देवतामूर्ति प्रकरण अने रूपदसार ८३, ८७, ९६ मंडन' ११९ दंड अणगार १४९ । देवदत्ता २८, १०३, १४४, 'दंडक' १८४ १४६, १४७, दंडकारण्य ४६ 'देवनिर्मित स्तूप' १२०, १२१ दंडकी ४६ देवर्धिगणि ८३, ८४, ९४, १०८ दंडी ११८ 'देवर्धिगणि क्षमाश्रमण' १२२, दाक्षिण्यांक उद्योतनसूरि ४८ २१० दानपत्रो २१५ देवसेना १४६ दिगंबर आचार्य ७८ देवेन्द्रगणि ९६ दिगंबर परंपरा १९ देवेन्द्रसूरि ११७ दिनंबर संप्रदाय ६४ देविलाघुत ८५ दिवेशकद्र सरकार २४ 'देवीपुत्र' ७० दिन ८४ देशना १०४ दियरवटुं २१ 'देशीनाममाला' १२९, १३०, 'दीपिका १८४ २१९ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ૨૭ देहोत्सर्गर्नु तीर्थ ११४ . धनभित्र ९० दोहडि श्रेष्ठी ९, ९६ धनशर्मा ९० द्रम्म १८० धनेश्वरसूरि १७९ द्राविड १८७ धन्वन्तरि ९० द्राविड प्रदेश ८९ धरण ८३ द्राविडो १६० धर्म ८४ द्रोणमुख ७९, ११०, २११ । धर्मकथा ९८, २१३ द्रोणाचार्य ९, १०, १३८ धर्मयश मुनि १६७ 'व्याश्रय' महाकाव्य १२५, १२६ धर्मसागर ९१, २१२ द्वारका १०, २४, ५६, ६३, 'धर्मसंग्रहणि टीका' १२९ ७७, ८०, ८६, ८७, धर्मान्वग ७८ ९०, १०७, १५१, 'धर्माभ्युदय' २२० १५४, १५७, १७८, धारावासनगर ३८ २०३ धारिणी ११७, ११८ द्वारवती २४, ४९, ८६, ११३, धुंधुमार १०१ १७३, १७८, १९०, धूर्ताख्यान' १४५, १४६, २०२, २१४ १४८, २१२, २१३ 'द्वात्रिंशिकाओ' १९७, २१९ धूर्तो १४५, १४६ द्वीप ८८, ९७ ध्रुवसेन राजा १८, ४२, ९१ द्वैपायन ५६, ८७ नकपुर ३६, २०१ धनगिरि ८०, ८४, १६३ नक्षत्र ८४ धनचन्द्र १७५ . नगाधिराज १७४ धनदेव १९०, १९१ नट २८, ३० धनदेवगणि २२० नषिदक ९१, १११ धनपाल ८९, ९०, १३०, 'नटषुत्र रोहक अने राजा' ३० १७६, १७८ | नडपिडअ ९१ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮ ] नभोवाहन ९१, ९२, १०१, १११, १६५, १६६ १९२, १९४ नभोवाहन खाई ' ९२ नमस्कार मंत्र २०५ 4 नयप्रभ ५८ नरदेव ५८ नरहरि ५५ नर्मदा नदी ९३, १४३ नलगिरि हाथी १०३. 'नलिनोगुल्म ' अध्ययन १६ नवकार १२० 6 नवतत्त्व ९८४ नवांगी वृत्तिकार ९, १०, १२, ८६, २१२ नव्य कर्मग्रन्थो ८५ नहपान ९२, १९४ नंद ९५, २०२ नंदनवन ८६, १५७ नंदनवन उद्यान २०३ नंदा १७१ नंदाराणी १०२ नंदिल ८४ 'नंदिसूत्र' ४०, ७३, ८३, ८४, १०८, ११६, १२८, १२९, १५२, १५८, [ चि १७२, २१२, २१३, २२० नाग ८४ नागरी १३८ नागवलिका ९४ नागगृह ९१, १११ नागपूजा ९४ नागभद्र बीजो ३६ नागहस्ती ८४ नागार्जुन ८४, ९४ नागार्जुनीय वाचना ९४, १६७ नागेन्द्र ७२, २०७ 'नाट्यशास्त्र? १०५ नाममाला' १३० नार ६६ " नारद ९५ नारदमुनि १९० नाशिक ९५ नासिक्य २०१ नासिक्य नगर ९५ नासीक २०१ निगोदना जीवो ३७ 'निगोदव्याख्याता १७९ 'निघंटु आदर्श' ५५, ५६ 'निघंटुशेष' ५५ निमित्तशास्त्र ४० Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचि ] निरंगण ७ निर्ग्रन्थनामित ६० निर्ग्रन्थो २०५ निर्यामक १०९ निर्युक्ति १८, १७, १८९ 'निर्वाणकलिका ९९, १०० निर्वृति ७२, २०७ निर्वृतिकुल १० निलय श्रेष्ठी १८० निषढ १०७, १९० 'निशीथचूर्णि ' ५७, ११३, १३५, १३८, १४६, १६०, १८०, १९७, १९८, २०८, २१८ 'निशीथ सूत्र' ७३, ८८, १४५ १९७, २०८ निह्नव ६९, ८२, १५३ 'निह्नववाद' ७० नेलक ८९ 'नैषधीयचरित' १८१ नोर्मन ब्राउन ४ १ न्याय २१३ 'न्यायावतारवार्त्तिक वृत्ति' १७६ 'न्यायावतार सूत्र' १९७ 'न्यू इन्डियन एन्टिक्वेरी' ५ पट्टण ९७, ११० पट्टन ९७, ११० पट्टावलि ८४, २१७ पत्तन ९७, ११०, ११९ पत्तनपत्तन ९७ पद्मचन्द्र ५८ 'पद्मप्राभृतक भाण' १४६ पद्मस्थल १४, १५ पद्मावती ९२, १६५, १६६ परशुराम ३७ ' परिशिष्ट पर्व' १७, '५७, १५३, 'नीवि' १२५ १६५, २१९ नेपाल ६८ नेमिचन्द्र ३, ४, ९, २६, ६२, पर्युषण १०१, १०३ पर्युषण पर्व ३७, १९२ ९६,९८, १४४, १७३ नेमिनाथ २४, ४९, ५६, ६३, ७७, ८३, ९६, १०७, १५४, १८९, २०४ 'नेमिनाथचरित्र' ४९, १०७ पवनचंड ३ पश्चिम खानदेश ५४ पश्चिम घाट १८९ पश्चिम पंजाब २०० [ २३९ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० ] पहेली ओरियेन्टल कॉन्फरन्स १९६, २१३ पंक्ति बहार ६१ 'पंचकल्प' भाष्य ३९, ४०, १८२ 'पंचतंत्र' २२, ४७, १४७ 'पंचवस्तुक' २१२ 'पंचाख्यान' १४७ 'पंचाशक' १०, २१२ पंचासर ४७ पंजाब १४० पंडित परिषद ८६ पं. बेचरदास ६४, १७९ पं. भगवानदास ७५, ७६ पं. सुखलालजी ६४, १९८, २१३ पं. हरगोविन्ददास २१० 'पाइअ टीका' १७५ ' पाइअलच्छीनाममाला' १३० 6 पाइअसद्दमहण्णवो' ५५, १५०, २१० 9 'पाक्षिक सूत्र ९, १५० पाटण ९, ३५, ४७, ६५, ९७, १७५, १८८ पाटलिपुत्र २७, ५०, ८२, ८९, ९८, १२१, १३२, १४४, १६४ पादपोपगमन १७४, १८६ पादलितपुर ९८, ९९ ' पादलिप्तसूरिचरित' ६०, ९९ पादलिप्ताचार्य ७९, ९८, ९९ पारसंकूल ३८, ६६, २१८ , पारौपथ द्रम्म १८१ 6 [ चि पार्जिटर ३० पाश्वनाथ ९६, १७३ पार्श्वापत्य ४२ पालक १६, १००, १०५, ११७ पालक राजा १६, १५७ 'पालि प्रोपर नेम्स' १४, ३१ पालि साहित्य १४, ३० पालीताणा ९८ पांच दिव्य १४४ पांचमी गुजराती साहित्य परिषद् १८४ पांचाल १४ पांडवो २४, ५६, १०५, १७४, २१५ पांडु मथुरा २४ पांडुसेन १०५ पितामहमुख २०१ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सचि पिपासा परीषह ९० 'पिंडनियुक्ति' १९, १२८, १२९, २१५ पुण्यसागर १२८ पुरंदरयशा ४६ पुराण ३०, १८९ 'पुरातनप्रबन्धसंग्रह' ७६, ७७ पुरिकापुरी १४३, १६४ पुरी १६४ पुण्यगिरि ८४ पुष्यमित्र ७८ पुरुषसेन ४९ पुंडरीक ८१, १७४ पूरण ८३ पूर्णभद्र मुनि १४७ पूर्वो ८२, १०९, १५२ पृथ्वी १९४ पेटलाद ६६ पैठण १०१ पशाची प्राकृत १८२ पोतनपुर १४३ 'पोलिटिकिल हिस्टरी ऑफ अन्श्य ट इन्डिया' ९३ प्रज्ञप्तिविद्या ९५, १९० 'प्रज्ञापनासूत्र' १०, ४०, १२८, १२९, १३६, १७९ [२४९ प्रज्ञा परीषह ३९प्रजापति १४३ 'प्रजाबंधु-गुजरात समाचार ! ३०, १५८ 'प्रतिज्ञायौगंधरायण' १५२ 'प्रतिभामूर्ति सिद्धसेन दिवाकर' १९८ प्रतिमा ४२ प्रतिवासुदेव ४९, ८७, १७३ प्रतिष्ठान ३९, ९१, ९२, १०१ १०७, १११ प्रतिष्ठानपुर ९९ प्रतिष्ठाविधि ९९ प्रतिहारवंशीय ३६ प्रथमादर्श १७५ प्रथमानुयोंग ४० प्रधम्न ४९, ८७, १९०, १९२, २१९ प्रद्योत १६, २६, ३०, ५८, ७१, ८२, १००,१०१, १०२, १०३, १०४, १०५, १११, १५१, १६३, १७३ प्रपात २५ प्रबन्ध २३ प्रबन्धकोश' ६८, १९८ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४९ २४२] [ सूचि प्रभवस्वामी ८४. । 'प्राचीन भारतमा विमान'.५२ प्रभाचन्द्रसूरि ७९, १६५, १७७ । प्राचीनवाहिनी सरस्वती १९ । 'प्रभावकचरित' ११, १२, ३६, । 'प्राचीन साहित्यमां चोरशास्त्र' ३७, ३८, ६०, ७९, ९९, १५२, १५३, प्रापुक ९० १६५, १७५, १७७, प्रियग्रन्थसूरि ५, १०६, २१४ १८०, १९५, १९८, प्रो. ल्युमेन १०० २१२, २१७ फलही ८, १०६ प्रभावती ३१ फलही मल्ल ६, ६२, १११, प्रभास ११४ प्रभास तीर्थ १५, १०५, १०६ । फल्गुमित्र ८४ 'प्रमेयरत्नमंजुषा १७५ फल्गुरक्षित १५२ प्रवक्ता १४७ बटेश्वर १७८ 'प्रवचनसारोद्धार ' २१३ बनारस २०१ 'प्रश्नप्रकाश' ९९ बनास नदी १०६ 'प्रश्नव्याकरण' १० बन्नासा १०७ 'प्रश्वव्याकरण' वृत्ति १४ . बप्पभट्टिसूरि ३६ 'प्रश्नव्याकरण सूत्र' १३४ . 'बप्पभटिसूरिचरित' ३६ प्रसेनजित १७१ बर्बर २०४ 'प्रस्थान' ४१ वलदेव ८६, ८७, १०७, प्राकृत ९३, ९८, ९९, १४६ १४७, १९० प्राकृत टीकाओ ७३ बलभद्र १०७ प्राकृत 'द्वयाश्रय' वृत्ति २१९ बलभानु ३९, १०७ 'प्राकृत व्याकरण' २१९ । बलमित्र ३८, ३९, १०७, १११ प्राचीन कर्मग्रन्थो ८५ बलमित्र-भानुमित्र ६० 'प्राचीन तीर्थमाळा' २०१ । बलराम ७, ५६, ८७, २१४ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सचि] [२४३ बलिस्सह ८४ 'बहत्कल्पसूत्र' ५७, ५८, ६९, बंग ६८ १०६, १२६, १२८, बंगाल ६८, ७९ १२९, १८६, २१२, बंगाली १३९ २१३ 'बंधस्वामित्व' ८५ 'बहत्कल्पसूत्र' वृत्ति २७ बंधुदत्त ३ 'बृहत् संग्रहणि' १३० बाण १४७ बृहद् गच्छ ९५ बापालाल ग. वैद्य ५५ बेटवा नदी १६८, १७१ बारमुं गुज. साहित्य-संमेलन ३५ । बेण्णायड १७१ बालतप ८७ बेन्नायड १७१ बाल्हिक ५२ बेस १६८ बाहुबली १७४ बेसनगर १६८ बिन्दुसार ४३ बेसली नदी १६८ बिंब १८७ बोड्डि ३५ बीरबल १५८ बोडी ३५ बुद्ध ३१, ५९, ९५, २०२ बोध १२३ बुद्धनी मूर्ति ६० बुद्धिसागरसूरि १० बोधिक १०८, १२१, १२३, 'बुद्धिस्ट इन्डिया' ३० १३८, १३९, १४१ बुलंदशहर २४ 'बॉम्बे गेझेटियर' १८० बृहच्चूर्णि १७९ बौद्ध १६४ 'बृहत्कथा' ४, १८२, १८३, बौद्धधर्म १९५ 'बृहत् कथ,कोश' ७८, ७९, बौद्ध भिक्षु ६८, १७२ १७२ बौद्धमत १९५, १९६ 'बृहाकल्प भाष्य' १८२ बौद्ध साधुओ २०५ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [धि raj बौद्ध साहित्य २०८ बौद्ध स्तूप ६० बोद्राचार्य ५९ बौद्धो ११०, १२०, १२१, १२२, १७१, १९५, ब्रह्मा ११४, २०७ ब्रह्मद्वीप ५, १८४, १८५ ब्रह्मद्वीपक १८५ ब्रह्मद्वीपक शाखा ५, १०८,१८४ ब्रह्मद्वीपक सिंह ८४, १०८ भक्तपान १३२ 'भगवती' १०, १२८ ' भगवती वृत्ति' ११ 'भगवती सूत्र' ४२, १७९ भगोरथ १७४ भट्टि १०९ भटि आचार्य- १०० 'भडिकाव्य' १०९ भदंतमित्र ११० भद्र ८४ भद्रगुप्त ८४ भद्रगुप्तसूरि १५२ भद्रगुप्ताचार्य. २५, १०९, १६३ भद्रबाहु ७५, ८४ भद्रबाहुस्वामी १०१ भद्रयश २०७ भद्रा १६, ३७. १४३ भद्रा शेठाणी २०७ भरत १०५ भरत चक्रवर्ती ३२, १०६ ।। भरुकच्छ ६, २६, २७, ३३, ३४, ३८, ४१, ४४, ५५, ५७, ५९, ६०, ६५, ७९, ९१, ९२, १०१, १०६, १०५, ११०, १११, ११२, ११५, ११६, १५८, १६५, १९२ भरुकच्छ आहरणी ६२ भरुयच्छ ११२ भरूच ५५, ६०, ११०, १४३ भल्लीगृह ५७, ११२, ११३, भल्लुकेश्वर ११६ भवदत्त २०२ भवदेव २०२ 'भवभावना सूत्र' २१९ भव्य ९० भंडीर उद्यान ११९ भंडीर यक्ष ७३, १०९, ११९ भंडीर यक्षनी यात्रा ३३ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ afe ] भागवत ७, ११३ भागवत संप्रदाय ११२ भाण १४७ भानु ४९, १९२ भानु राजा १८१ भानुमित्र ३८, ३९, भानुश्री ३९ 'भारतीय विद्या' २२, ७६ 6 'भारतीय विद्या, ' सिंघी स्मृति ग्रन्थ १८२, १९८ भारकच्छ ११२ भालकुं ११४ भावनगर ५६२१५ भावना ७७ भावविजयगणि ७२, १६९ भावशतक' १८४ भाष्य २०८ भाष्यमन्थो १८२ १०७, १११ भास १५२ भास्वामी ६४ भिक्षाको ७० भिन्नमाल १८० भिलसा १६८ 'भिल्लमाल' १३९, १८० भीमदेव पहेलो ८६ 'भीमप्रिय' १८० मुक्ड ४७ भुवनसुन्दरसूरि १५४ भूतगुहा १२२ भूततडाग २७, १९२, ११५, १२६ भूत दिन्न ८४ भूमिदाह १६० [ २४५ भूलिस्सर ११४, ११५ भूलेश्वर ११४११५ भूस्तरीय परिवर्तनो ८८ भृगुकच्छ ११०, ११२ भेरा गाम १७० भोगकट ४७ भोज ८९, ९०, १५८, १७६ भोजकटक २१६ भोजराजा १७५ भोजवृष्णि २४ भोट ६८ मगध ९, १३, ५२, १६४, २०३ मणिप्रभ ११७, ११८ मणिलाल मू. मिस्त्री १४९ मति १०५ मत्तवाल - संखडि १६० ' मत्तविलास प्रहसन १४८ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६] [धि मत्स्यदेश ११९, १६९ मयालि ४९ मथुरा १४, १८, ३३, ३५, । मलधार गच्छ २१४ ४२, ६९, ७३, ८७, मलधारी २१४ ९४,९७, १०९, ११६, मलधारी राजशेखरसूरि २१९ ११९, १२०, १२१, मलधारी हेमचंद्र ९, ६४, ७५, १२२, १४९, १५०, २१९, २२० १९२, २१० मलयगिरि ९, ३६, ५८, ९८, 'मथुरा मंगू' ११७ ११२, १२७, १२९, मथुराहार ६३, १२० १३०, २०९, २१२, मदनमंजरी ३ २१३, २१५, २१९ मदुरा १२२, १९२ मलाड १३१ मधुसदन मोदी २१८ मलालसेकर १४, ३१ मध्यप्रदेश १६१ 'मल्लपुराण' ८ मरहटु १३४, १३६ मल्लयुद्ध ६, ७, ८ मराठी १३५ मल्लविद्या ७, ८, २०७ मरु १२४ 'मल्लविनोद ' ८ मरुतेल्ल १२७ मल्लिकार्जुन ७६ मरुतैल १२६, १२७ महाकाल १७, १३२ मरुदेव १७४ महागिरि २५, ३२, ८४, १८७ मरुदेश १२४, १२६ महाजन २०८ मरुभूमि १२४ 'महातीर्थ शंखेश्वर' १७४ मरुमंडल १२५ 'महापरिज्ञा' अध्ययन १६४ . मरुविषय १२४, १२५ 'महाभारत' ७, १२३ मरुस्थल ६८, १२४. १२५, महाराष्ट्र १४, ६२, ९२, १०१ मयणल्ला १२५ १३४, १३५, १४१, Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सधि ] ( ૨૭ १५९, १६०, १८७, मंडिक १४४, १४५ २०३, २०८ मंत्रशक्ति ९८ महाराष्ट्री १३४, १५९ मंथनिकाशुद्धि २१ महावीर १३, १६, ३१, ३३, मंदसोर ८१ ५०, ८१, ८४, ८७, मुंज ८९ . ९६, १००, १०३, मागध १३४, १४१ १०४, १०५, १२२, माघ १८० १४२, १७०, १७८ मात्रक १५३, १८५ 'महावीरचरित ' ९६, २१९ | मात्स्यिक ८ महाचीन ६८ मात्स्यिक-माछी मल्ल ६, १०६ • महावीर जैन विद्यालय रजत | मादी ८३ महोत्सव ग्रन्थ' ६९ माथुरी वाचना ८३, ९४, १२२ महावीरस्वामी ४४, ६३ २१० महासेन ३१ माध्यमिका १३७, १३८ महास्थल १५ 'मानसोल्लास' ८ महिरावण ७६ मान्धाता १४३ महेन्द्रविक्रमवर्मा १४८ मारवाड १२४ महेन्द्रसिंह ४८ माल १३९ महेश १४३ 'माल' जाति १३९ महेश्वर १४३ मालमृमि १३९ मंगल चैःय १२० मालव २८, ६८, १०८, १२३, मंगू ८४ १३४, १३८, १३९, मंडन ११८ १४१, १४२, २०३ 'मंडन ग्रन्थसंग्रह' ११९ मालवक १३८, १४१ मंडपदुर्ग ११८ मालव जाति २८, १३८ मंडल २०३ | मालव देश १४१ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ ] मालव पर्वत १३८ मालव म्लेच्छो १३८ मालव शबरी १३९ मालवस्तेन १३९ मालवो १३९, १४० माझ्या कच्छ ३३ 'मालोइ' १४० माहिष्मती ३६, १४३ माहेश्वर १४३, १८० माहेश्वरी २८, १४३ माहेश्वरी नगरी १६४ माळवा १५,८९, १११,११८, १४१, १५५, १६४, १६८, १७१, २०१, २११ मांडण ११८ मांडु १०८ मिथिला १४ मिथ्यावादी ६९ मुक्तिनिलय १७४ मद्गशैलपुर ४२ मुनशी ३६ मुनि कल्याणविजयजी ६०, ८४, १५५, १६४, १७०, १७९ मुनिचन्द्र ९६ मुनिचन्द्रसूरि २१९ [ सूचि मुनि जयन्तविजयजी ६१, १७४ मुनि धुरंधरविजयजी ७० मुनिश्री पुण्यविजयजी ६९, ९८, १८२ 'मुनि सुव्रतचरित' २१९ मुनिसुव्रतचैत्य ६१ मुनि सुव्रतस्वामी ५५ मुनि सुव्रतस्वामीनुं चैत्य ११० मुरुडराजा ९८ ९९ मुलतान १४०, २००, २११ 'मुष्टिव्याकरण' १२७, १२८ मुंबई १३१, २११ 'मूल टीका ' ७५, १२९. मूलदेव २८, ११९, १४४, १४५, १४७, १४८, १७१ 'मूलदेवी' १४७ मूल 'प्रथमानुयोग' ४० मूलभद्र १४७ मूलश्री १४७ मूलस्थान २११ मृगवन उद्यान १७० मृगावती २९, १०४, १४३ मेघ २०७ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचि [२४९ मेघकुमार ४५ यवन विषय ९९ 'मेघदूत' १७१ यवनालक १२५ मेवाड ११८, १४९, २१४ यवनो १२५ मोढेरक १४९ यवराजा ६५ मोढेरकाहार ६३, १४९ यशश्चंद्र ११ मोढेरा ३६, १४९ यशोदेवसूरि ९, १५१ 'मोढेरा' १४९ यशोधर मुनि ५ मोथ तहेसील ३२ यशोधरा २१ मोहनलाल द. देसाई १८४ यशोभद्र ८४ मोहेरक १४९. यंत्रकपोत ५० मौर्यवंशी १८६ यंत्रप्रतिमा ९८ म्लेच्छ १३४ यंत्रविद्या ९८ म्लेच्छदेश १३८ याकिन २१२ यक्ष २०३ याकिनी महत्तरासूनु ७१, ७४, यक्षतुं मंदिर ५९ . २१२, २१३ यक्षपूजा १९, ९४ यक्षायतन १२०, १२२ यादव १९२ यादवकुळ ९६ यज्ञदत्त ९४ यज्ञयश तापस ९४ यादवो ४९, १७८ यांत्रिक ५० यदु १५१ यांत्रिक गरुड ५० यदुकुळ ९ यमुन १५० युगप्रधान आचार्य ८४, २१७ यमुना नदी ४९, १०४, १५०, युगप्रधान पट्टावलीओ १६४ १७८ योग २१३ यवद्वीप २०४ योगराज २१ यवन १५०, २०४ | योगशास्त्र' २१९ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ सूचि २५० ] योग्नी २१ 'राजपूनाने का इतिहास' ३६, 'योनिप्रामृत' शास्त्र १९७. . । २१४ यौगंधरायण १५१ 'राजप्रश्नीय' १२८ थी १३० रक्तपट २६, १२१ राजशेखर ३४ रक्ष ८४ राजस्थान ११८ रक्षित २२, २५, ८४, २०७ । राजिमती २४, ९६, १५४ रक्षितसूर १५२ राज्यवर्धन १६, १००, ११७ रत्नचंद्र १७५ राठोड १५६ रत्नशेखरसूरि ७४, ८९, ११७, राध आचार्य ७७, १५६ १३०, १५४, १६८, राधनपुर ९०, १५५, १७५ १८१, १९५, २१२ राम ३७ रामविजय पंडित १६९ रथ ८४ रथनेमि १५४ 'रामायण' १२३ राय चौधरी ९३ रथयात्रा १३३, १८७ 'रावणवध' १०९ रथावर्त गरि ४२, १५५,१६४, राष्ट्रकूट १५६ रा टूर्धन १६, १००, ११७ रसिकलाल छो. परीख २१८ . रिष्टपुर १४, १५७ राजगच्छ १२ रुक्मिणी ८७, ९५ - राजगृह २६, २७, ४४, ४५, . रुद्र ६१, ७१, १०६ १०२, १०३, १७१, रुद्रमहालय १८८ रुद्रसोमा १५२ राजधन्यपुर ९०, १५५, १७५ रुप्यक १३६ ‘राजनिघंटु' ५५ रूपक १९, ३४, ३५, ८९, राजपिंड १८७, २०६ २०४ राजपूताना १८३ . | 'रूपमंडन' ११८ . Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बजू ८४ - १९६ सचि] [ २५१ रूपा नाणुं १८० लिच्छवी ८७ रेणुका ३७ लिपिकला १७५ रेवती नक्षत्र ८४ 'लीलावई कहा' १४७ रैवतक ६६, ८६, ९१, १५७ 'लेखपदति' १८१ . " रैवतक उद्यान ९६, १५४, १९० लोकप्रकाश' १६९ 'रैवतकल्प ' १५७ लोकप्रचलित पद्य २०५ रोहक १५८, २०१ लोच ७० रोह गुप्त २०७ लेहजंघ १११ लक्ष्मणगणि २२० लौहित्य ८४, १७४ लब्धि ७७ वज्जी ८७ 'ललितविस्तरा' वृत्ति १९५, वजूभूति आचार्य ३४, ९२, लवण समुद्र १०६ . १११, १६५, १६६ 'लाइफ इन एश्यन्ट इन्डिया' वजूशाखा ७३, १६४ . ३२, १२४, १३६, वजूसेन ५८, ७२, , १६६, १६५, १७१, १७९ 'लाइफ ऑफ हेमचन्द्राचार्य १६७, २०७ २१८ | वजूस्वामी ७२, ८०, १४३, लाक्खाराम ८ १५२, १५४, १५५, लाट २६, ३८, ६०, ६८, १६३ थी १६६, १६०, १६२ १८४, २०७ लाटदेश ६७, १५८, १६१ वजस्वामी चरित' १६५ लाटवासी ४८, १५९, १६०. वडनगर १८, १९ लाटाचार्य १६२ वढवाण ७८ लाडकाणा १५८ वढियार १७४ लारखाना १५८ वत्थगा नदी ३२ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ वत्सदेश ३०, १०४ वत्सराज २१, ३०, वनराज ८, १७६ ' वन्दारु वृत्ति' ५८, ८५ वरदातट १६१ वराट विषय १७२ वराहमिहिर १०१ वर्धा १६१ वम्मलात १८० बर्मलात १८० १४८, १५१ बर्मलातप्रिय १८० वलभी ६२, ८३, ९४, १०९ १२२, २१०, २१५ वलभीपुर १६७ बलभी वाचना ८३, ९४ भोवंश १६७ वसति १६२, १६५ वसन्तपुर ९८५ 'वसन्त रजत महोत्सव स्मारकग्रंथ ' ४८ वसुदेव ८३ ' वसुदेव-चरित' १८२ 'वसुदेव - हिंडी' ४, ५, १४, २६, ४०, ४१, ४९, ५१,५२, १०६, १६८, [ सूचि १७०, १८२, १८३, १९२, २०४, २०५ 'वसुदेव - हिंडी' ( भाषान्तर ) १७१, १८३, २०२ वसुभूति १३२ वस्तुपाल २३, ८५, १८१, २२० वस्तुपाल - तेजपाल ६१ 'वस्तुपाल - तेजपाल प्रशस्ति '६१ 'वस्तुपालनुं विद्यामंडळ अने बीजा लेखो' १८२ 'वस्तुपालनुं साहित्यमंडळ अने संस्कृत साहित्यमां तेनो फाळो' १७७ वळा १६७ वंशकट ४७ पंकज उण १५० वंशकुडंग १७ वाचक १८ वाचक पदवी २१६ वाचक विमलहर्ष ७२ वाचनाचार्य १६३ वाणिज्य कुल ७३ वात्रक नदी १७१ वाद ६८, ६९ 'वाद महार्णव' १२ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सचि] वादि देवसूरि ५५ | विजयसिंह १७५ वादिवेताल १७६ विजयसिंहसूरि ७४, १६८ 'वादिवेताल शान्तिसूर चरित' । विजयसेनसूर १७५ विजयानंदसूरि ७२ वानमंतर ११४ विट १४४ वायुयान ५१ विदिशा ३२, ६४,७७, १५५, वाराणसी ३ १६१, १६९, १७१ वालभी वाचना १६७ विण्या नदी १७२ वासक्षेप १८५ विद्याधर ७२, २०७ वासवदत्ता ३०, १०५, १५१, विनयविजय १६९, २१२ विन्टरनित्स १९८ वासिष्ठीपुत्र पुलुमायी ९३ विन्ध्य १९ वासुदेव ७७, ८१, ११३, विन्ध्याटवी १९, १४७ विन्यातटपुर १७२ वासुदेव कृष्ण १७३ विपाक १० वासुदेवो ४९, ५६ वास्तुशास्त्र ११८ विदुल १४७ 'वास्तुसार' ११८ 'विपाकसूत्र' १२२, १३७ वाहरिगणि १७६ विबुधचन्द्र मुनि २२० विमलहर्ष वाचक १६९ विक्रमराजा १४४ 'विक्रमस्मृतिग्रंथ' १७ विमलाचरण लो २९, २१३ विक्रमादित्य १४७, १९७ विमलाद्रि १७४ 'विक्रम वोल्युम १९८ विराटनगर १६९ विजय २६, ९१, १११ 'विविध तीर्थकल्प' १४, १७, विजयगगि १६९ ६१, १५०, १५७, विजयचंद्रसूरि ५८, ८५ १७३, १७४ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ २५४] [ सूचि 'विशेषचूर्णि' ३३, ४४, ५३, वीरसेन १८, ४९, ८७ ५४, २०० वीरस्थल १४ 'विशेषावश्यक भाष्य' ५५, ७४, वीसलदेव २३ ७५,९३, १२८, १७७, वीसलप्रिय १८० २२० वृद्ध ८४ 'विशेषावश्यक भाष्य' बृहद्वृति वृद्धकर व्यंतर ५९, ६७ वृद्ध तपागच्छ ५८ विश्वविद्या १६९ 'वृद्धवादिचरित' १९८ 'विषमपद व्याख्या १७९ 'वृद्धवादि-सिद्वसेनसूरि प्रबन्ध' विष्णु ५७, ८४ 'विष्णुधर्मोत्तर पुराण' १०५ वृद्धवादी ६४ वीणावत्सराज ३० वृद्रिविजय ७२ वीत भय १३, ३१ 'वृष्णिदशा' १५७ वीतभयनगर ४७, ८१ वेढिन. १८ वीतिभय १७० वेणा ५, २०, ७७, १०८, वीतिभयनगर २०० . १६८, १७१, १७२, वीर ७८ १८४, २११ वीरगणि १५० . वेणाकटक ४७ वीरनिर्वाण ९४ वेणातट २०, ७७, ११९, 'वीरनिर्वाण संवत और जैन १४४, १६८, १७२ कालगणना' ८४, ८५, वेणातड १७१ ___ ९४, १२४, १५५. वेत्रवती १६८, १७०, १७१ वीरभट्ट ९८ वेदिस णयर १६८ वीरभद्र ९८ वैकटिक १८६, २०७ वीरमती गगिनी २२० वैक्रिय लब्धि २०२ वीरसिंह ३८ | वैतरणि ९० Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचि ] वैतादय पर्वत १७० वेदिशनगर ७७, १६८ वैद्यकशास्त्र ९० वैभार २५ वराटनगर ११९, १६९ ३१ वैशाली ३०, व्यवहार क्रिया - प्रवर्तक ७८ 6 'व्यवहार भाष्य ' १८२ " व्यवहार सूत्र' १२८, १३४, १४५, २०९ व्यवहारी ७८ व्यंतरगृह १२२ व्यंतरी ५९, ११४ व्याकरण काव्य १०९ व्याजस्तुति अलंकार १३६ शक ३८, ६५ शक क्षत्रप ९२, ९६, १९४ शक राजा २१८ शक लोको २६ शकुनिकाविहार ६१ शकुन्त १०९, १७३ " " शतक ८५. शतपत्र १०४ शतानीक ३०, १०४ शत्रुंजय ८१, ९९, १७४ " [ २९५ शब्दानुशासन १२७, १२८, १२९ " शय्यातर १६२, १६३ शय्यंभव ८४ शश १४५, १४७ ' शस्त्रपरिज्ञा' अध्ययन ६४, ६९ शेखपुर ३, १७३, १७४ 'खपुर पार्श्व कल्प' १७४ शंखेश्वर १७३, १७४ शाकंभरी १८३, १९२ शातकर्णि ९३ शान्तिचन्द्र १५, ११८, १२८, १३०, १५४ शान्तिनाथ ९६ 'शान्तिनाथचरित' २१९ शान्तिनाथनो भंडार २२० शान्तिसागर ९७ शान्तिसूरि ३, ४, ९, १८, ३४, ६२, ६४, १४४, १७५, १७६, २१६ शान्त्याचार्य ३० शार्लोटेकाउझे १९७ शालिवाहन १९२ शालिभद्र ४४ शालिवाहन १९२ शालिवाहन राजा १९३ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [सूचि शासनदेवी ११ शैलकपुर ८१, १७८ 'शाहि ' राजाओ २१८ शैलकराजा ८१, १७८ शांडिल्य ८४ शोभन ८९ . शिल्प ११८ 'शोभनस्तुति ' १७८ शिव ११४ शौचमूलक प्रवचन ८१ शिवकोष्ठक ७८ शौरिपुर ९, ३६, ४८, ४९, शिवमूति ८४ .९४, १५१, १५४, शिवादेवी ९६, १०१, १५४ १७८, २०१, २०३ शिविराजा १४ शौरि राजा ९, ४९ 'शिशुपालबध' १८० श्रमण ११४ शिष्यचोरी ८० 'श्रमण भगवान महावीर ' १७०१ शीतलनाथ १५७ १७९ शीलभद्रसूरि १७९ श्रमणपूजा उत्सव १३५ शीलाचार्य ११, ३६, ५५, श्रमणोपासक ८१, १७८ ६४, ६५, ६६, १५६, 'श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र' ७४, १७६, १७८, २१५ ८५, ८९, ११७, १३०, शीलांक ११, १७६, १७७ १५४, १६८, १८१, शीलांकदेव २१, २०१ १८२, १९५, २१२ शीलांकाचार्य ९ श्रावस्ती ४६ शुक ८१ श्रीकालक-कथासंग्रह ४१ शुक्रराष्ट्र ४९ श्रीकृष्ण ४९, ६३, ११४ शुद्धोदनसुत ५९ श्रीगुप्त २०७ शुक्लध्यान ६३ श्रीचन्द्रसूरि ९, १५०, १७९, शूद्रक कवि १४६ २०९, २१९ शूरसेना जनपद ११९ श्रीमाल २८, ६८, १४३, शूर्पारक २०८ १७९, १८० Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सधि] [ २५० श्रीमालना द्रम्म १८१ 'सन्मतितर्क' १२, ६४, ६५, श्रीमालनी टंकशाळा १८१ ६९, ७४, १९७ श्रीमाली वणिक ११८ 'सन्मतिप्रकरण' १९८ श्रीस्थल १८१ सपादलक्ष १८३, १९२ श्रीहर्ष १८१ सभागृह २०८ श्रुत १२२ समयसुन्दर १८४, २०९ श्रुतज्ञान ४० 'समराइच्चकहा' २१३ .. श्रुतधर ६४ 'समवायांग' १० श्रुतसागर १७५ समित्रसूरि ५ श्रेणिक ४४, ४५, १०२, समिताचार्य १८४, २११ १०३, १७१ | समीपनाम ७७ श्रेणी २०८ समुद्र ८४ श्रेयांसनाथ २०१ समुद्रगुप्त १९७ श्याम ४० समुद्रविजय १०, ८३, ८७, श्यामाचार्य ८४ ९६, १५४ श्वेतांबर १७२ सम्यक्त्व ६९ श्वेतांबर संप्रदाय ६४ सरस्वती ८, १९, २६, ३८, 'षट्स्थानक' १० ६५, १८८, २१८ ‘षडशीति ' ८५ सरस्वतीनो पूर्वाभिमुख प्रवाह 'षड्दर्शनसमुच्चय ' २१३ १८८ सकलचन्द्र १८३ 'सरस्वतीपुराण' १८८, १८९ सकलचन्द्र वाचक १७५ सरस्वतीयात्रा १८८ सचित्त ९० सर्वज्ञ १७२ सत्कार-पुरस्कार परिषह २३ सर्वार्थसिद्धि ३३ सत्यनेमि १५४ सहस्रकमल १७४ सत्यभामा १९२ सहस्रपत्र १७४ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ ] [ सूचि सहस्रयोधी मल्ल ५८ साडीपचीस आर्यदेशो १५, ४८, सहस्रार्जुन ३६ ८६, ११९, १६९, सहस्रानीक ३० १७८, १८७, २००, सह्यपर्वत ५३, १८९ २०३ संखडि १५, १९, ४४, १०६, सातमी अखिल भारत प्राच्यविधा १११, १८८ परिषद ४५ संखेडा ६१ सातमी ओरियेन्टल संघदासगणि ४, ३९, ४०, कोन्फरन्स २९ सातवाहन ३९, ९३, १९२, संघदासगणि वाचक १८२ १९३, १९४ संघपालित ८४ सातवाहन वंश १९४ संनिवेश २०४ साधुदासी ७३ संपलितभद्र ८४ साभरक ८९ सामायिक अध्ययन ७५ संप्रति २५, ४७, ५७, १३३, सारण ९४ १३४, १८७, २०४, साराभाई नवाब ४१ २०६ सार्थमार्गो २७, ११९ संभूतिविजय ८४ सार्थवाह २७, ४४ . संलेखना १०९ सालभंजिका २०८ 'संवेगरंगशाला' १० सालवाहन ९१, ९२, १०१, साकेत २७ १११, १९२, १९४ सागर ८३ सालवाहन वंश ९२ सागरचन्द्र १९०, १९१ सालवाहन ९३ सागरश्रमण ३९ सावध औषध ९० सागरानंदसूरि २२० साहसदण्ड २० साडानव पूर्वो १६४ साहानुसाहि २१८ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचि ] [२५९ सांकेतिक भाषा १४७ सिद्धिशेखर १७४ सांब ४९, ५६, ८७, १९०, सिनवल्लि ४७, १९९ १९१, १९२ सिन्ध १९९, २०० सांभर १८३, १९२ सिन्ध देश १९९ सांभरिनु लवण १९२ सिन्धवासी १९९ सांभोगिक १३३ सिन्धु ७९, १५८, १९९ सिकंदर १४० सिन्धु-सौवीर १३, ३१, ४७, सिद्धनागार्जुन ९९ ५०, १०३, १७०, सिद्धपुर १९, १८८ २०० सिद्धराज २१४, २१८ | सिमा २०१ सिद्धराज जयसिंह १९५, २१९ सिलेक्ट इन्स्क्रिप्शन्स'२४, ९३ सिषि १९५, १९६ सिंह ८४ 'सिद्धर्षिचरित ' १९६ सिंहगिरि ६, ८४, १६३ सिद्धसाधु १९५ सिंहगिरि राजा २०७ सिद्धसेन ६४, १९७, १९८, | सिंहपुर ३६ २०८, २१३ सिंहपुरी २०१ सिद्रसेनगणि ७४, १९६ सिंहल ६८, २०४ सिद्धसेन दिवाकर ६४ सिंहसूरि ६४ 'सिद्धसेन दिवाकर अॅन्ड विक्रमा. सीहोर २०१।। दित्य' १९८ सुकोशल मुनि ७१ 'सिद्धांतसारोद्वार ' सम्यक्त्वोल्लास 'सुखावबोधा' १५१ टिप्पन ३३ सुदर्शन ८१ सिद्धि ८५.. सुदर्शन तळाव २५ सिद्रिक्षेत्र १७४ । सुदर्शन यक्ष ११९ सिद्धिपर्वत १७४ 'सुदर्शनाचरित्र' ८५ 'सिद्धिविनिश्चय' ६४ सुनंदा ८०, १६३ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० 'सुपार्श्वनाथचरित' २२० सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध ८४, १०६ सुप्रतिबुद्ध २०७ सुस्थित स्थविर १७४ सुप्रभदेव १८० सुहस्ती १६, २५, ८४ 'सुबोधिका' १६९ सुंदर ३ सुभटपाल ५, २१४ सुंदरी ९५, २०१, २०२ सुभद्रा १० सुंदरीनन्द ९५, २०१, २०२ सुभूम ३७ सुसुमारपुर १०१ सुमति १०५ 'सूत्रकृतांग चूर्णि' २०३ सुमुख १०७ 'सूत्रकृतांग सूत्र' ९, ११, २१, सुरट २०६ ३६, ५५, ५६, ७९, सुरद्वा २०३, २०६ १०८, १२१, १७६सुरप्रिय उद्यान ८० १७८, २०१, २१५ सुरप्रिय यक्ष ८६, १५७ सूत्रधार ११८ सुरभिपुर ३३ सूत्रपौरुषी १६२ सुराष्ट्र ६, २४, २५, २६, सूरग्राम २१ ३८, ४९, ५६, ५८, सूरजपुर १७८ ८६, १०५, १८७, सूरत ५४ २०३, २०४, २०५, । सूर्यपुर १७८ सूर्यपूजा २११ सुराष्ट्रा २०५ 'सूर्यप्रज्ञप्ति ' १२८, १२९ सुरूप १८१ सेक्रेड बुक्स ऑफ ध इस्ट ३५ सुवर्णगुलिका १०३ सोपारक ६, ५०, ७२, १०६, सुवर्णभूमि ३९, २०४ ११६, १३१, १३७, सुवीर ४९ १६६, १६७, १८५, सुस्थित २०७ २०७, २०८ सुस्थितदेव १०६ सोपारकवाळा मंगू ११७ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बांची [११ सोपारा २०७, २०८ | स्कन्दिल ७८ सोम २०७ स्कन्दिलाचार्य ८४, ९४, १२१, सोमदेव ८२, १५२ २१० सोमदेव भट्ट १४७ 'स्टोरी ऑफ कालक' ४१ सोमयश ९५ स्तिमित ८३ सोमसुन्दरसूरि १५४ स्तेयशास्त्र १४७ सोमिल ६३ स्तूप ५९, १२०, १२१ सोरठ्ठिया २०९, २१० स्तंभतीर्थ ७९, १८४ सौगंधिकानगरी ८१ स्थलपत्तन १८, ३५, ९७, — सौन्दरानन्द' काव्य ९५, २०२ सौराष्ट्र ६७, ६८, ८८, ९७, स्थविरावली ४१, ८४, ११६, ९९, १०५, १३४, ११७, १५२ १४१, १६७, १७४, स्थविरो ८१ ।। १७८, २०५, २०९, स्थानकपुर २११ 'स्थानांग' १० सौराष्ट्र (सौराष्ट्रनो) २०३ 'स्थानांगवृत्ति' ११ सौराष्ट्रिका २०९ सौराष्ट्रिकी २०९ 'स्थानांगसूत्र' १६० सौर्थदत्त १७८ स्थूलभद्र ८४, १३२, २०६ सौर्यावतंसक उद्यान १७८ स्नपन उद्यान २६, ७० सौवर्णिक नेमिचन्द्र ९, १५० स्नानागार २११ सौवीर ६८, २००, २१० 'स्याद्वादरत्नाकर' ५५ स्कन्द १०६ स्वाति ८४ स्कन्दगुप्त २४ स्वामी समंतभद्र ६४ स्कन्दपुराण १७ हतशत्रु ४२ स्कन्दराजा ४६ हत्थप्प २१५ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૬૨ ] हत्थकप २१४, २१५ हत्यिकप्प २१४ 'हम्मीरमदमर्दन' नाटक १८८ हन्त संनिवेश १८५, २११, २१२ हरिभद्र ७६, १२९, २१३. हरिभद्रसूरि ९, १०, ७१, ७४, १२८, १४५, १४६, १४८, १७६, १९५, १९६, २१२ 'हरिभद्रसूरिचरित' २१२ 'हरिभद्राचार्यस्य समयनिर्णयः ' १९६, २१३ हरियदेवी २१४ 'हरिवंश' ७ हरिषेणाचार्य ७, ८, १७२ हर्षपुर ५, १०६, २१४ हर्षपुरोय गच्छ २१४ हर्षपुरी (मलधारी) गच्छ २१९ हस्तकल्प ३६, ५६, २०१, २१५ हस्तव २१५ हस्ति ८४ हस्तिकल्प २१४, २१५ हस्तिनापुर ३६ हस्तिभूति २१६ हाथब ५६; २१५ हाथीगुफा ५२ हारिल २१७ हारिलवाचक २१६ हाल ९९ | हारडुं ६६, २०१, २१५ [ सूचि हिमवंत ८४ हिमवान ८३ हिमालय १९३ हिन्दुकदेश ३८, २१८ 'हिस्ट्री ऑफ इन्डियन लिटरेचर' १४८, १९८ हीरविजयसूरि ९०, १६९ हुंडिक १२० हेमचन्द्र १७, ३५, ५५, ७६, १२५, १२७, १२८, १३०, १५२, १६१, १८१, २१८, २१९ 6 'हेमचन्द्राचार्यचरित' ७९ हेमचन्द्राचार्य सभा ११९ हैदराबाद ७८ 'हैमसमीक्षा' २१८ Erzahlungen in Maha. rastri 5 Page #316 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